Monday, October 7, 2024
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‘अल्लाह ने जो भी कहा है, वो मानना ही पड़ेगा’: सुप्रीम कोर्ट को बुर्का पक्ष के वकील सलमान खुर्शीद ने दी कुरान, कहा – न मानने वालों को मिलता है दंड

उन्होंने कहा, "अन्य धर्मों के उलट इस्लाम में अनिवार्य और गैर-अनिवार्य का कोई दोहरा मापदंड नहीं हैं। अल्लाह का कहा हुआ हर शब्द अनिवार्य है।"

सुप्रीम कोर्ट में आज हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनना इस्लाम में एक मौलिक मजहबी प्रथा नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता युसूफ मुछला पेश हुए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के मुताबिक हिजाब उनके मजहब का हिस्सा है और पूर्व छात्र कई वर्षों से बिना किसी रोक-टोक हिजाब पहन रहे हैं।

इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, “आपका तर्क क्या है? हम केवल उच्च न्यायालय के समक्ष की गई बातों को ध्यान में रख सकते हैं।” इस पर युसूफ कहते हैं कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। इस पर मेरे मित्र कामत ने निवेदन किया है, जिसे मैं दोहराऊँगा नहीं।” उन्होंने कहा, “यह मेरी प्राथमिकता है कि मैं हिजाब पहनूँ या नहीं। कुरान कहता है मर्यादा का पालन करो और उसका पालन करने के लिए मेरे पास यह व्यक्तिगत अधिकार होना चाहिए।”

मुछला ने आगे कहा अदालत को कुरान की व्याख्या का काम शुरू नहीं करना चाहिए और सिर्फ एक नजरिए को नहीं अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने यही किया है और अब्दुल्ला युसूफ अली के अनुवाद को अलग रूप में लिया गया है।

इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा, “मैं इस बात को समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप मजहबी प्रथा के रूप में दावा करते हुए उच्च न्यायालय गए। HC के पास क्या विकल्प है? एचसी अपने तरीके से निर्णय देता है और आप कहते हैं कि यह नहीं किया जा सकता है।”

इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद इस मामले पर कहते हैं, “कुरान मानव निर्मित नहीं हैं। इसमें आयतें हैं, नियम हैं, जो पैगंबर के माध्यम से आए थे। यह सब उनके अनुसार बनाया गया है और यह अनिवार्य है।”

उन्होंने कहा, “अन्य धर्मों के उलट इस्लाम में अनिवार्य और गैर-अनिवार्य का कोई दोहरा मापदंड नहीं हैं। अल्लाह का कहा हुआ हर शब्द अनिवार्य है।” उनके मुताबिक पैगंबर ने जो किया वह कुरान के शब्द हैं। इस्लाम में अनिवार्य और गैर-अनिवार्य का बाइनरी नहीं है। इसके बाद खुर्शीद ने जजों को कुरान की प्रतियाँ सौंपी। उन्होंने कहा कि कुरान की बातें न मानने वालों के लिए दंड का भी प्रावधान है।

जस्टिस धूलिया ने इस पर खुर्शीद से पूछा कि आपकी क्या राय है? क्या यह एक धार्मिक मामला है? उन्होंने कहा, “इसे धर्म के रूप में देखा जा सकता है, विवेक के रूप में देखा जा सकता है, संस्कृति के रूप में देखा जा सकता है, व्यक्तिगत गरिमा और गोपनीयता के रूप में देखा जा सकता है।” इसके बाद खुर्शीद ने बेंच को बुर्का, जिलबाब, हिजाब के बीच के अंतर को समझाया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में महिलाओं के लिए घूँघट बहुत जरूरी माना जाता है, जब वे बाहर जाती हैं।

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने भी संविधान के अनुच्छेद 25(2) के तहत अपनी दलीलों के दौरान सवाल उठाया, “अगर मैं एक स्कार्फ पहनता हूँ, तो मैं किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा हूँ।” सुप्रीम बता दें कि कोर्ट ने आठ सितंबर को राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के राज्य सरकार के आदेश को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी थी। शीर्ष न्यायालय ने हिजाब बैन पर अगली सुनवाई आज (12 सितंबर 2022) तय की थी।

हिजाब विवाद पर हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

बता दें कि कर्नाटक में 14 मार्च, 2022 को हाई कोर्ट का फैसला आया था। इसमें कहा गया था कि छात्राएँ तय यूनिफॉर्म को पहनकर आने से मना नहीं कर सकती हैं। इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएँ डालकर चुनौती दी गई। इस मामले पर सुनवाई के दौरान हिजाब को उचित ठहराने के लिए पगड़ी और तिलक पर भी वकील राजीव धवन ने प्रश्न खड़े किए थे। हालाँकि जस्टिस गुप्ता ने कहा था , “पगड़ी को हिजाब के समान नहीं कहा जा सकता, वह धार्मिक नहीं होती। इसे राजशाही दरबारों में पहना जाता था। मेरे दादा जी कानून की प्रैक्टिस करते हुए उसे पहनते थे। इसकी तुलना हिजाब से मत कीजिए।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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