Wednesday, January 22, 2025
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आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में नियुक्त हो सकते हैं ‘ठेके’ पर जज, सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमों का पहाड़ घटाने को की पहल: 62 लाख मामले हैं लंबित

देश के अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित मुकदमों का पहाड़ खड़ा हो चुका है। लंबित मामलों की जानकारी देने वाले पोर्टल नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार वर्तमान में देश के 25 हाई कोर्ट में 62 लाख से अधिक मुकदमे लंबित पड़े हैं। इनमें से 18 लाख से अधिक आपराधिक मामले हैं।

देश के अलग-अलग हाई कोर्ट में बढ़ते मुकदमों के पहाड़ को कम करने के लिए अस्थायी तौर पर जजों की नियुक्ति की जा सकती है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है। यह जज ‘एड हॉक’ आधार पर लाए जाएँगे। सुप्रीम कोर्ट ने कई हाई कोर्ट में जजों के खाली पदों को लेकर चिंता जताई है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मंगलवार (22 जनवरी, 2025) को सुनवाई करते हुए अस्थायी जजों की नियुक्ति पर टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अस्थायी जज, हाई कोर्ट के एक स्थायी जज के साथ बेंच में शामिल हो कर आपराधिक मामले की अपीलों को निपटा सकते हैं। हालाँकि, यह बाकी किसी तरह का मामला नहीं सुनेंगे।

बढ़ते केस चिंता का विषय

CJI संजीव खन्ना, जस्टिस BR गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट में आपराधिक मामले बहुत बढ़ गए हैं। बेंच ने कहा कि ऐसे में हाई कोर्ट में अस्थायी तौर जजों की नियुक्ति का रास्ता जल्द साफ़ किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में हाई कोर्ट में अस्थायी जजों की नियुक्ति को लेकर फैसला दिया था।

इसके बाद ऐसी नियुक्तियों के लिए नियम बनाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इन नियमों में कुछ संशोधन की जरूरत है। अभी तक के नियमों के अनुसार, अगर किसी हाई कोर्ट में 20% पद खाली हैं, तभी इन अस्थायी जजों की नियुक्ति की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट इन नियमों में बदलाव चाहता है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति को गंभीरता को बताने के लिए कई हाई कोर्ट में लटके आपराधिक मामलों का डाटा भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में 63 हजार जबकि कर्नाटक हाई कोर्ट में 20 हजार ऐसे मामले लटके हैं। पटना हाई कोर्ट और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में भी कमोबेश यही स्थिति है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल R वेंकटरमणी से इस मामले में सहयोग करने को कहा है। उसने कहा, “हम चाहते हैं कि सभी वकील और अटॉर्नी जनरल इस बात पर विचार करें कि क्या हाई कोर्ट की खंडपीठों में लटके आपराधिक मामलों के निपटान के लिए एड हॉक जजों की नियुक्ति की जा सकती है।”

गौरतलब है कि एड हॉक नियुक्क्तियों को भारत में ‘ठेके वाली भर्तियाँ’ भी कहा जाता है।

2021 में दिया था अस्थायी जजों पर फैसला

हाई कोर्ट के भीतर मामलों के तेज निपटान के लिए एड हॉक जजों की नियुक्ति को लेकर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 224A का हवाला देते हुए फैसला दिया था। इस अनुच्छेद में एड हॉक जजों की नियुक्ति के बारे में लिखा हुआ है।

अनुच्छेद 224A के अनुसार “किसी भी राज्य के हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, किसी भी व्यक्ति से, जो उस कोर्ट या किसी दूसरे हाई कोर्ट के जज का पद धारण कर चुका है, उस राज्य के हाई कोर्ट के जज के रूप में बैठने और काम करने का अनुरोध कर सकता है।”

कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर एड हॉक जजों की बहाली को लेकर फैसला होता है, तो हाई कोर्ट से रिटायर हो चुके जज ही वापस लाए जाएँगे। इन्हें 1 वर्ष तक के लिए नियुक्त किया जा सकता है। इस पर अभी बाकी नियम बनना बाक़ी है।

62 लाख मुकदमे लटके

देश के अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित मुकदमों का पहाड़ खड़ा हो चुका है। लंबित मामलों की जानकारी देने वाले पोर्टल नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार वर्तमान में देश के 25 हाई कोर्ट में 62 लाख से अधिक मुकदमे लंबित पड़े हैं। इनमें से 18 लाख से अधिक आपराधिक मामले हैं।

अकेले इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने ही 5.47 लाख आपराधिक मामले में लंबित हैं। इनमें से 4.5 लाख मामले 1 साल से ज्यादा लम्बे समय से लटके हैं। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में 1.9 लाख आपराधिक मुकदमे लटके हुए हैं। वहीं पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में भी 1.6 लाख से ज्यादा आपराधिक मुकदमे लटके हुए हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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