जनजातीय हिन्दू समुदाय के लिए बनाए गए श्मशान में पिता का अंतिम संस्कार करने पर अड़े एक ईसाई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि है कि वह सभी पक्ष को स्वीकार हो, ऐसा फैसला चाहता है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यदि ईसाई व्यक्ति का अंतिम संस्कार हिन्दुओं के श्मशान में किया गया, तो इससे विवाद पैदा होगा। सुप्रीम कोर्ट से पहले छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ईसाई व्यक्ति को राहत देने से मना कर दिया था। ईसाई व्यक्ति का शव पिछले 15 दिन से मोर्चरी में रखा हुआ है।
क्या है मामला?
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के रहने वाले रमेश बघेल के पिता सुभाष बघेल की मौत 7 जनवरी, 2025 को हो गई थी। रमेश बघेल एक ईसाई है और उसके दादा हिन्दुओं की महरा जाति से ईसाई बन गए थे। मृतक सुभाष बघेल एक ईसाई पादरी भी रहा था।
सुभाष बघेल की मौत के बाद बेटे रमेश बघेल ने गाँव के श्मशान में उसका ईसाई रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करना चाहा था। यहाँ रहने वाले हिन्दुओं और बाकी समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया। हिन्दुओं ने रमेश बघेल से कहा कि वह अपने पिता का अंतिम संस्कार 20 किलोमीटर दूर एक ईसाई श्मशान में करें।
मामले में घटनास्थल पर पहुँची पुलिस ने भी रमेश बघेल से कहा कि वह बिना विवाद के ईसाइयों के श्मशान में अपने पिता का अंतिम संस्कार कर दें। हालाँकि, रमेश बघेल इस बात पर अड़ गया कि उसे इस जनजातीय श्मशान में ही अपने पिता का अंतिम संस्कार करना है।
वह इस मामले में याचिका लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट पहुँच गया। उसने माँग की कि हाई कोर्ट पुलिस और प्रशासन को आदेश दे कि वह इसी जनजातीय श्मशान में अंतिम संस्कार करवाएँ।
क्या बोला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट?
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने 9 जनवरी, 2025 को इस याचिका की सुनवाई की। हाई कोर्ट में इस मामले में राज्य सरकार ने बताया कि गाँव के श्मशान में ईसाइयों के लिए कोई अलग जगह निर्धारित नहीं है और अगर रमेश बघेल अपने पिता का अंतिम संस्कार ईसाई तरीके से करना चाहता है तो वह 20 किलोमीटर दूर स्थित ईसाई श्मशान में जा सकता है।
राज्य सरकार ने बताया कि इस स्थिति में ग्राम पंचायत को भी कोई शिकायत नहीं है और इसे कोई समस्या भी खड़ी नहीं होगी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की यह दलील मानते हुए रमेश बघेल की याचिका पर कोई आदेश पारित करने से मना कर दिया।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “इस रिट याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा माँगी गई राहत प्रदान करना उचित नहीं होगा, इससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है।” हाई कोर्ट ने कहा कि पास में ही ईसाई श्मशाम उपलब्ध है, ऐसे में वह राहत नहीं देगा। इस फैसले के खिलाफ रमेश बघेल सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 जनवरी, 2025 को छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर जवाब माँगा था। मामले में 20 जनवरी, 2024 को भी बहस हुई थी। इस दौरान राज्य सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया था कि ईसाई तौर तरीकों से अंतिम संस्कार किए जाने की इजाजत जनजातीय हिन्दू श्मशान में नहीं दी जा सकती।
उन्होंने रमेश बघेल की तरफ से पेश वकील कोलिन गोंसाल्वेस पर आरोप लगाया था कि वह उन जनजातीय लोगों में विवाद पैदा कर रहे हैं, जो ईसाइयत में धर्मान्तरित हो चुके है और जो अभी भी हिन्दू हैं। उन्होंने कहा था कि विवाद से बचने के लिए ईसाई व्यक्ति को 15-20 किलोमीटर दूर स्थित ईसाई श्मशान में ले जाया जाए।
मामले में वकील गोंसाल्वेस ने आरोप लगाया था कि ईसाई व्यक्ति को इसलिए नहीं अनुमति दी जा रही है क्योंकि वह धर्मांतरित है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर दुख जताया था कि अंतिम संस्कार के लिए व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट तक आना पड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (22 जनवरी, 2025) को इस मामले की दोबारा सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जल्द ही अपना फैसला दे देगा क्योंकि मृत व्यक्ति का शरीर लम्बे समय से मोर्चरी में रखा हुआ है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान SG मेहता ने कहा , “मान लीजिए कल कोई हिन्दू यह तर्क रखता है कि ‘मैं अपने परिवार के शव का अंतिम संस्कार मुस्लिम कब्रिस्तान में करना चाहता हूँ, क्योंकि उसके पूर्वज मुस्लिम थे या और कुछ थे तथा उसने धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म अपना लिया तो स्थिति क्या होगी?”
SG मेहता ने कहा कि इससे कानून व्यवस्था का मुद्दा खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ईसाई व्यक्ति को एम्बुलेंस देने को तैयार है और वह दूसरी जगह स्थित ईसाई कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार कर सकता है। उन्होंने साफ़ किया कि गाँव का कब्रिस्तान जनजातीय हिन्दुओं के लिए है, ना कि ईसाइयों के लिए।
वकील गोंसालेवेस ने सुनवाई के दौरान आरोप लगाया कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। इस पर जस्टिस शर्मा ने कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं है। SG तुषार मेहता ने यह भी साफ़ किया कि निजी भूमि पर भी अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे जमीन की प्रकृति कृषि या आवासीय से बदल कर पवित्र हो जाती है।
इस मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि ईसाइयों के लिए अलग श्मशान हर जगह होने चाहिए। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ से एक हलफनामा दायर करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले में सबको स्वीकार होने वाला निर्णय चाहता है।