Saturday, April 27, 2024
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पूर्व CJI के पुत्र, पाटर्नर विदेशी: गे वकील सौरभ कृपाल को HC जज बनाने पर क्या है आपत्ति, क्यों उनके लिए अड़ा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम

वकील सौरभ कृपाल के गे पार्टनर स्विस नागरिक निकोलस जर्मेन बाकमैन (Nicolas Germain Bachmann) हैं। बाकमैन स्विस दूतावास के साथ काम करते हैं। वह गे राइट्स को लेकर भी मुखर रहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की विवादित कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) ने सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक वकील सौरभ कृपाल (Gay Advocate Saurabh Kripal) को दिल्ली हाईकोर्ट का न्यायाधीश (Delhi High Court Judge) नियुक्त करने की फिर सिफारिश की है। हालाँकि, केंद्र ने इस सिफारिश को मानने से इनकार कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम कृपाल के नाम पर अड़ा हुआ है और उनके नाम को दोबारा 18 जनवरी 2023 को भेजा है।

केंद्र सरकार का कहना है कि गे राइट्स (Gay Rights) के बारे में सौरभ कृपाल का जो रुझान है, उसे देखते हुए उन्हें इस मामले में पूर्वाग्रह से ग्रसित होने सेे इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही उनके पार्टनर के विदेशी होने का हवाला दिया। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के सेक्सुअल ओरिएंटेशन और पार्टनर के विदेशी होने आधार पर उसे जजशिप के लिए अनुपयुक्त नहीं ठहराया जा सकता।

केंद्र सरकार की आपत्ति

केंद्र सरकार का कहना है कि वकील सौरभ कृपाल समलैंगिक हैं और उनका पार्टनर स्विस नागरिक है। केंद्र सरकार ने यह भी तर्क दिया कि भारत में समलैंगिकता को भले ही अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन ऐसे विवाह को अभी भी समाज में मान्यता नहीं है।

केंद्र सरकार ने इसके पीछे रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RA&W) के एक लेटर का जिक्र किया। अप्रैल 2019 और मार्च 2021 में RAW ने भी कृपाल को जजशिप में उनके स्विस पार्टनर और खुलेआम सेक्सुअल ओरिएंशन पर आपत्ति जाहिर की थी। इससे भारत की संप्रभुता और अखंडता प्रभावित हो सकती है।

इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू (Kiren Rijiju) ने कहा था कि चूँकि कृपाल अपनी सेक्सुअल ओरिएंशन को लेकर खुलकर बात करते हैं। इसलिए वे अपने फैसलों में पक्षपातपूर्ण रवैया भी अपना सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का तर्क

सु्प्रीम कोर्ट का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल के पास योग्यता भी है और निष्ठा भी है। उनकी नियुक्ति से दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच में वैल्यू एडिशन होगा और विविधता आएगी। इसलिए उनके नाम को केंद्र सरकार के पास दोबारा भेजा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कृपाल का पार्टनर स्विस नागरिक है, इस तर्क को आधार नहीं बनाया जा सकता। कॉलेजियम ने कहा कि वर्तमान और पूर्व में कई ऐसे लोग उच्च संवैधानिक पदों रहे हैं, जिनका पति या पत्नी विदेशी हैं। कॉलेजियम ने पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायण और वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर का उदाहरण दिया।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने यह भी कहा कि RAW ने कृपाल के व्यक्तिगत आचरण या व्यवहार को लेकर किसी तरह की आशंका व्यक्त नहीं की है। ऐसे में उनकी नियुक्ति से राष्ट्रीय सुरक्षा कैसे प्रभावित होगी? कॉलेजियम ने यह भी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी यौन इच्छा को बनाए रखने का अधिकार है। यह मानवीय गरिमा से जुड़ा मामला है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम में न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बयान में कहा है, “कॉलेजियम ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल की नियुक्ति के लिए 11 नवंबर 2021 की अपनी सिफारिश को दोहराया है, जिस पर तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता है।”

कौन हैं सौरभ कृपाल

भाई-भतीजावाद को लेकर केंद्र सरकार के निशाने पर आया सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बीएन कृपाल के बेटे सौरभ कृपाल को जज बनाना चाहता है। कृपाल को वकालत का 20 साल का अनुभव है। मार्च 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कृपाल को सीनियर ऐडवोकेट का दर्जा दिया था।

कृपाल ने ग्रेजुएशन दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से की है। इसके बाद वे अमेरिका के ऑक्सफोर्ड यूनिर्सिटी से लॉ में ग्रेजुएशन किया। उसके बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से लॉ में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है।

कृपाल ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ जेनेवा में भी काम किया है। कृपाल का नाम पहली बार सुर्खियों में ‘नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ’ के केस में सामने आया था। इस केस में वह समलैंगिकता से संबंधित धारा 377 को हटाने के लिए याचिकाकर्ता के वकील थे। सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को खत्म कर दिया था।

इतना ही नहीं, सौरभ कृपाल अपनी सेक्सुअल ऑरिएंटेशन को खुले तौर पर स्वीकार करने के लिए भी जाने जाते हैं। कृपाल के गे पार्टनर स्विस नागरिक निकोलस जर्मेन बाकमैन (Nicolas Germain Bachmann) हैं। बाकमैन स्विस दूतावास के साथ काम करते हैं। इसी सेक्सुअल ओरिएंशन केंद्र सरकार की ऑब्जेक्शन का एक प्रमुख कारण है।

पाँच साल से लटका है कृपाल का मामला

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कहा कि सौरभ कृपाल का मामला पाँच साल से पेंडिंग है। 13 अक्टूबर 2017 को दिल्ली हाईकोर्ट की कॉलेजियम ने उनका उनका नाम प्रस्तावित किया था। इस प्रस्ताव पर दिल्ली हाईकोर्ट के सभी 31 जजों में इसे लेकर सर्वसम्मति थी।

उनके नाम को 4 सितंबर 2018, 16 जनवरी 2019, 1 अप्रैल 2019 और 2 मार्च 2021 को SC कॉलेजियम ने आगे बढ़ाया। मार्च 2021 में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे ने केंद्रीय कानून मंत्री को पत्र लिखकर कृपाल की नियुक्ति पर आपत्तियों को स्पष्ट करने को कहा था।

इसके बाद 11 नवंबर 2021 को जस्टिस यूयू ललित, एएम खानविलकर और तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना वाले कॉलेजियम ने कृपाल के नाम को सरकार के पास भेजा। हालाँकि, केंद्र सरकार ने कई तरह की आपत्तियों को गिनवाते हुए 25 नवंबर 2022 को इसे वापस कर दिया।

बता दें कि कॉलेजियम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के बीच खींचतान जारी है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से लेकर केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू तक सवाल उठाते रहे हैं। किरेन रिजिजू ने गुरुवार (18 जनवरी 2023) को फिर कहा कि केंद्र सरकार न्यायपालिका का सम्मान करती है, क्योंकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता आवश्यक है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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