Thursday, April 18, 2024
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15-19 की उम्र में प्रेगनेंट होने में मुस्लिम लड़कियों ने सबको पिछाड़ा, पीरियड के दौरान नहाने में खुद हुईं पीछे: सर्वे रिपोर्ट

हमने इसी सर्वे रिपोर्ट के हवाले से महिलाओं के घटे फर्टिलिटी रेट के बारे में आपको जानकारी दी थी। जिसमें आँकड़ों से निष्कर्ष निकला था कि बच्चे पैदा करने में आज भी (समुदाय की महिलाओं से तुलना में फर्टिलिटी रेट घटने के बावजूद) मुस्लिम महिलाएँ अन्य धर्म की महिलाओं से आगे हैं। अब ये रिपोर्ट भी यही जानकारी देती है कि कम उम्र में प्रेगनेंट होने वाली लड़कियाँ मुस्लिम समुदाय में ज्यादा हैं।

भारत में कम उम्र की युवतियों का बच्चे पैदा करना भले ही कोई अचंभे वाली बात न हो, लेकिन हकीकत में महिला स्वास्थ्य की दृष्टि में ये चिंता का विषय है। कम उम्र की लड़की जब गर्भधारण करती हैं तो केवल उनके शरीर पर असर नहीं पड़ता बल्कि मानसिक जद्दोजहद से भी उन्हें गुजरना पड़ता है। पहले के मुकाबले आज के समय में ये स्थिति बदली है। शिक्षा के सुधरते स्तर के साथ महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं। लेकिन कई जगह हालात अब भी वैसे ही हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) की एक रिपोर्ट बताती है कि 15-19 साल की उम्र में गर्भधारण करके पहले बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं की दर में 2015-16 के मुकाबले 2019-2021 तक में 1 फीसद कमी आई। यानी 2015-16 में जो दर 8% थी अब 7% है।  जाहिर है कि देश की बढ़ती जनसंख्या की चिंता के बीच इन आँकड़ों में ये 1% का जो बदलाव दिख रहा है वो शिक्षा के कारण ही आया होगा। जहाँ महिलाएँ ज्यादा शिक्षित होने की दिशा में आगे बढ़ी होंगी वहाँ ये आँकड़े कम हो गए होंगे और जहाँ ऐसा नहीं हुआ होगा वहाँ हालात पहले जैसे ही होंगे।

शिक्षा में कमी के कारण कम उम्र में होते हैं बच्चे पैदा

रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है कि आज भी ग्रामीण महिलाएँ युवावस्था में बच्चे पैदा करने में शहरी औरतों से आगे हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण शिक्षा में कमी ही है। NFHS की रिपोर्ट के अनुसार 15-19 साल की लड़कियाँ जो कभी स्कूल नहीं गईं उनकी 18 फीसद ने इस उम्र में गर्भधारण किया, बच्चे को जन्म दिया जबकि इस सूची में पढ़ी-लिखी लड़कियाँ (12 साल तक शिक्षा पाने वाली लड़कियाँ) केवल 4 फीसद थीं जो कम उम्र में पहली बार गर्भवती हुईं और बच्चे को जन्म दिया।

शिक्षा के अलावा परिवार की संपन्नता भी कम उम्र में लड़कियों के प्रेगनेंट होने की संभावना घटती है। इसका खुलासा भी इसी रिपोर्ट से होता है। आँकड़ों के मुताबिक, जिन परिवारों की माली हालत ठीक थी उस परिवार में केवल 2 फीसद युवतियों ने अपनी युवावस्था में बच्चा पैदा किया जबकि कम पैसे वाले घरों में ये दर 10 फीसद तक पहुँची मिली।

अन्य धर्म की महिलाओं के मुकाबले मस्लिम महिलाएँ हुईं ज्यादा प्रेगनेंट

इस विषय को यदि और वर्गीकृत करके देखें तो पाएँगे कि अनुसूचित जनजाति की महिलाएँ अन्य पिछड़ी जातियों की सूची की महिलाओं से ज्यादा (9% तक) प्रेगनेंट हुई। वहीं धर्म के आधार पर देंखें तो इस उम्र में प्रेगनेंट होने के मामले में मुस्लिम महिलाओं ने बाकी सारी धर्म की महिलाओं को पीछे छोड़ दिया। 

नीचे दिए आँकड़ों में देख सकते हैं कि 15-19 साल की उम्र में गर्भधारण की दर मुस्लिम औरतों में 8.4 फीसद देखने को मिली। इसके बाद अगला नंबर ईसाइयों में 6.8%, हिंदुओं में 6.5%, बौद्धों में 3.7%, सिखों में 2.8 देखने को मिला।

किस राज्य में कम उम्र में ज्यादा प्रेगनेंट हुई महिलाएँ

राज्यवर ढंग से टीनेजर प्रेगनेंसी को देखें तो आँकड़ों से पता चलेगा कि युवावस्था में प्रेगनेंट होने वाली महिलाएँ त्रिपुरा में 22 % के साथ सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में ये आँकड़ा 16% का है, आंध्र प्रदेश में 13%, असम में 12 %, बिहार में 11% और झारखंड में 10% का है।

कम उम्र में प्रेगनेंट होने के आँकड़े सबसे कम केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में (0.8%) देखने को मिलते हैं। इससे थोड़ा ऊपर जम्मू-कश्मीर (1.0%), लक्षद्वीप(1.1%) है। प्रदेश की बात करें तो उत्तराखंड अकेला प्रदेश है जहाँ 15-19 साल की लड़कियों के प्रेगनेंट होने की दर 3% है।

मुस्लिम महिलाओं का फर्टिलिटी रेट, कम उम्र में प्रेगनेंट होने की दर, दूसरे बच्चे की इच्छा ज्यादा

बता दें कि इससे पहले हमने इसी सर्वे रिपोर्ट के हवाले से महिलाओं के घटे फर्टिलिटी रेट के बारे में आपको जानकारी दी थी। जिसमें आँकड़ों से निष्कर्ष निकला था कि बच्चे पैदा करने में आज भी (समुदाय की महिलाओं में पहले के मुकाबले फर्टिलिटी रेट घटने के बावजूद) मुस्लिम महिलाएँ अन्य धर्म की महिलाओं से आगे हैं। अब ये रिपोर्ट भी यही जानकारी देती है कि कम उम्र में प्रेगनेंट होने वाली लड़कियाँ मुस्लिम समुदाय में ज्यादा हैं। इसी तरह सर्वे में ये भी बताया गया है कि कितनी महिलाएँ अधिक बच्चे नहीं चाहती। जिसमें सबसे कम प्रतिशत (64%) मुस्लिम महिलाओं का आया। जबकि 72% सिख महिलाओं और 71% हिंदू महिलाओं ने कहा कि वो अब अतिरिक्त बच्चे नहीं चाहतीं।

मासिक धर्म के दौरान स्नान

इन सबसे अलावा महिलाओं की हाइजिन पर भी सर्वे में सवाल किए गए। पूछा गया कि मासिक धर्म के दौरान वो नहाने पर कितना ध्यान देती हैं। रिपोर्ट के अनुसार 96 फीसदी शहरी महिलाएँ और 91 फीसदी ग्रामीण महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान नहाती हैं और उसी बाथरूम में नहाती हैं जिसमें घर के अन्य लोग नहाते हैं। आँकड़ों से पता चलता है कि पढ़ी-लिखी औरतें इस दौरान अपने स्वच्छता का ख्याल ज्यादा रखती हैं। स्कूल न जाने वाली जहाँ 94% नहाती हैं वहीं स्कूल जाने वाली लड़कियों का आँकड़ा 97% हैं।

धार्मिक आधार पर देखें मासिक धर्म के दौरान नहाने वाली हिंदू महिलाएँ 99% हैं। इसके बाद जैन (98%) हैं और अंत में मुस्लिम महिलाएँ हैं जिनका फीसद 88% हैं। आगे रिपोर्ट बताती हैं कि संपन्न परिवार के घर की 97% महिलाएँ इस दौरान स्नान करती हैं वहीं कम संपन्न परिवार की औरतों का फीसद 85% है। राज्यों के दृष्टि से ज्यादातर प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश की 90% महिलाएँ इस दौरान स्नान करती हैं। जबकि लद्दाख में ये आँकड़ा 37% है, जम्मू-कश्मीर में 43% है।

NFHS-5

गौरतलब है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे का काम भारत में दो बार में हुआ। पहला चरण जून 2019 से 2020 में जिसने 17 राज्य और 5 केंद्रशासित राज्यों को कवर किया, फिर अगला चरण जनवरी 2020 से अप्रैल 2021 तक चला जिसमें 11 प्रदेश और 3 केंद्रशासित प्रदेश कवर किए गए। ये सर्वे 6.3 लाख परिवारों द्वारा दिए गए फीडबैक पर आधारित है। 7.2 लाख इसमें महिलाएँ शामिल हुईं और 1.01 आदमी। इससे पहले ये रिपोर्ट 2016 में जारी की गई थी। 2019-2021 की रिपोर्ट कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया द्वारा जारी की गई।

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