Saturday, April 27, 2024
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BJP और RSS ने ही दिल्ली में मुस्लिमों को मारा: ताहिर को बचाने के लिए पगलाए ‘स्क्रॉल’ ने याद किया बाबरी और गुजरात

स्क्रॉल के लेख में लिबरलों व सेक्युलर वामपंथियों की तरह ही कपिल मिश्रा का रोना रोया गया है। जबकि ये साबित हो चुका है कि कपिल मिश्रा के बयान से पहले ही दंगे शुरू हो गए थे। ताहिर हुसैन के घरों से ट्रकों में भर कर पत्थर निकले। क्या उन सभी को कपिल मिश्रा के बयान के तुरंत बाद घर में जमा कर लिया गया था? मस्जिदों और मुस्लिम दंगाइयों के घरों में जैसी तैयारी थी, वो एक दिन में की ही नहीं जा सकती।

प्रोपेगंडा परस्त पोर्टल ‘स्क्रॉल’ ने एक बार फिर से मस्जिदों और कथित अल्पसंख्यकों का राग अलापते हुए भाजपा पर निशाना साधा है। उसने लेख की शुरुआत ही एक ऐसे तथ्य के साथ की है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। ‘स्क्रॉल’ लिखता है कि दिल्ली में हुए दंगों में भाजपा के कार्यकर्ताओं और स्थानीय मुस्लिमों के बीच लड़ाई हुई। एक हिन्दू-विरोधी दंगे को इस तरह से एक पार्टी और समुदाय विशेष के बीच का संघर्ष इतनी आसानी से बता देने का काम ‘स्क्रॉल’ जैसे प्रोपगैंडिस्ट वेबसाइट ही कर सकते हैं। ‘स्क्रॉल’ लिखता है कि इन दंगों में समुदाय विशेष को निशाना बनाया गया, उन्हें मारा गया और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जला डाला गया।

जबकि अगर आप ऑपइंडिया पर दंगों की कवरेज देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि सच्चाई कुछ और है। इन हिन्दू-विरोधी दंगों में हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुन कर जलाया गया। 19 साल के विवेक के सिर में ड्रिल कर दिया गया। जब ये क्रूरता हुई, तब वो अपनी दुकान में ही बैठे हुए थे। जिन दिलबर नेगी के हाथ-पाँव काट कर उन्हें जिन्दा जला दिया गया, वो भी किसी की दुकान में ही काम करते थे। ऐसी कई घटनाएँ हैं, जो बताती हैं कि हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया।

फिर ‘स्क्रॉल’ घूम-फिर कर मस्जिदों पर आ जाता है। उसने लिखा है कि मस्जिदों को निशाना बनाया गया और ऐसा हिन्दुओं ने किया। जबकि उसने शिव विहार के प्राचीन हनुमान मंदिर का कोई जिक्र नहीं किया है, जिस पर हमला किया गया और उसे बचाने के लिए हिन्दुओं ने बम और पत्थर सहे। या फिर चाँदबाग़ का वो शिव मंदिर, जिसकी छत पर ईंट-पत्थरों का जमावड़ा लगा हुआ था। ये सभी तो मंदिर थे, फिर उनका जिक्र इस लेख में क्यों नहीं किया गया? ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ जैसे अन्य प्रोपेगंडा पोर्टलों ने भी ये साबित करने का प्रयास किया कि मंदिर पर हमले नहीं किए गए। मजहबी दंगाइयों को बचाने के लिए उन्होंने ऐसा किया।

इसके बाद इस लेख में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बेवजह निशाना साधते हुए कहा गया है कि ये संगठन शुरू से मस्जिदों और समुदाय विशेष को निशाना बनाते रहे हैं। बाबरी मस्जिद विध्वंस वाली घटना का भी जिक्र किया गया है। जबकि ये सभी को पता है कि बाबरी मस्जिद वाली घटना एकदम अलग थी और सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर मामले में फ़ैसला आने के बाद भी इस मुद्दे को पकड़ कर रखे रहना ये दिखाता है कि ये प्रोपेगंडा पोर्टल्स साम्प्रदायिकता के बिना एक दिन भी जिन्दा नहीं रह सकते।

इसके अलावा 2002 दंगों की भी बात की गई है, जो नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए। वो तब का समय था, जब देश के विभिन्न राज्यों में दंगे होने आम बात थे और गुजरात कुछ ज्यादा ही अशांत था। उस मामले में भी नरेंद्र मोदी को कोर्ट की क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन, 2002 के बाद से अब तक गुजरात में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ- इस बात का जिक्र ‘स्क्रॉल’ ने नहीं किया है। उस दौरान कॉन्ग्रेस शाषित राज्यों में अधिकतर दंगे हुए और गुजरात में कॉन्ग्रेस के कार्यकाल में रोज दंगे होते थे- इन सबके बावजूद ‘स्क्रॉल’ ने 2002 का जिक्र किया। लेकिन हाँ, कारसेवकों को जिन्दा जलाने वाली घटना पर प्रोपेगंडा पोर्टल ने चुप्पी साध ली है।

दंगाइयों को बचाने के लिए फिर से सक्रिय हुआ ‘स्क्रॉल’

इसके अलावा दावा किया गया है कि हिन्दुओं ने भड़काऊ नारे लगाए और मस्जिदों के बाहर आपत्तिजनक हरकतें की। अगर ऐसा है तो हमेशा जुमे के दिन ही पुलिस फ़ोर्स को पूरी ताकत लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? आज भी पड़ती है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि मस्जिद में जमा हुई भीड़ ने कई बार निकल कर बवाल किया। दिल्ली ही नहीं, बंगाल सहित अन्य राज्यों में हुए दंगों में भी ये ट्रेंड देखा गया। ‘फक हिंदुत्व’ के पोस्टर लगाने और काली माता को हिजाब पहनाने वाले हरकतें सार्वजनिक रूप से कौन कर रहा था? ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ के नारे को भड़काऊ रूप देकर कौन चिल्ला रहा था?

इस लेख में सुप्रीम कोर्ट तक को नहीं बख़्शा गया है। संविधान की रट लगाने वाले राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और संसद द्वारा बनाए गए क़ानूनों की अवहेलना करने से भी बाज नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की और राम मंदिर के निर्माण का मार्ग क्यों प्रशस्त किया, इस पर आपत्ति जताई गई है। यानी कोर्ट भी अब इन वामपंथियों से पूछ कर फ़ैसला लेगा? अगर कोई अन्य सुप्रीम कोर्ट तो छोड़िए, सेशन कोर्ट के फ़ैसले के बारे में भी कुछ टिप्पणी करे तो यही वामपंथी उस पर संविधान का सम्मान न करने का आरोप मढ़ते हैं।

यह भी दावा किया गया है कि देश भर के मुस्लिमों ने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या जजमेंट को सिर-आँखों पर रखा और आगे बढ़ गए। ऐसा नहीं है। तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर- इन चारों का गुस्सा सीएए के बहाने हिन्दुओं पर निकाला गया। चूँकि राम मंदिर पर फ़ैसले के समय और अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के समय सुरक्षा व्यवस्था कड़ी थी, इसीलिए दंगाई कुछ नहीं कर पाए। ख़ासकर उत्तर प्रदेश में, जहाँ योगी आदित्यनाथ की सरकार है। इसीलिए उन दंगाइयों ने दिल्ली को चुना, जहाँ चुनाव होने वाले थे। अमानतुल्लाह और ताहिर हुसैन जैसे नेताओं पर लग रहे आरोपों से इसकी पुष्टि भी हो जाती है।

इस लेख में लिबरलों व सेक्युलर वामपंथियों की तरह ही कपिल मिश्रा का रोना रोया गया है। जबकि ये साबित हो चुका है कि कपिल मिश्रा के बयान से पहले ही दंगे शुरू हो गए थे। ताहिर हुसैन के घरों से ट्रक्स में भर कर पत्थर निकले। क्या उन सभी को कपिल मिश्रा के बयान के तुरंत बाद घर में जमा कर लिया गया था? मस्जिदों और मजहबी दंगाइयों के घरों में जैसी तैयारी थी, वो एक दिन में की ही नहीं जा सकती।

कुल मिला कर बात ये है कि इस पूरे लेख में एक बार फिर से दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों में कट्टरपंथियों को पीड़ित और हिन्दुओं को हत्यारा साबित करने के प्रयास को पुनर्जीवित किया गया है। ताहिर हुसैन जैसों को बचाने और अंकित शर्मा की हत्या से हिन्दुओं का ध्यान भटकाने के लिए ये प्रोपेगंडा पोर्टल ‘पोस्ट रायट टास्क’ पर काम कर रहे हैं, जिसमें लोगों के दिमाग में ये भरना है कि ये दंगे भाजपा ने कराए थे और संघ ने समुदाय विशेष के लोगों को मारा। पुलिस क्या कहती है, कौन-कौन गिरफ़्तार हुए, जाँच में क्या निकला, जनता क्या कह रही है और वीडियो में क्या दिख रहा है- इन सबसे ऐसे पोर्टलों को कोई मतलब नहीं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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