कॉन्ग्रेस पार्टी इस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और इसकी वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं। वे खुद 5 बार सांसद रही हैं और 10 साल पर्दे के पीछे से भारत सरकार चलाने का अनुभव भी है। उनकी सास और पति प्रधानमंत्री रहे हैं। ससुर भी नेता थे, जिनका आज परिवार में कोई नाम लेने वाला भी नहीं है। सास के पिता भी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री थे।
उनके बेटे राहुल गाँधी भी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। लगातार 4 बार से सांसद हैं। अब सोनिया की बेटी प्रियंका गाँधी भी राजनीति में आ चुकी हैं। पार्टी में उन्हें महासचिव का पद मिला है, लेकिन उनका जनप्रतिनिधि बनना अभी बाकी है। आज मैं राजनीति की समझ रखने वाली इस देश की एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ये जानना चाहती हूँ कि गाँधी परिवार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आर्थिक रूप से क्या योगदान दिया है, खासकर अपनी व्यक्तिगत संपत्ति में से?
चूँकि देश-विदेश में गाँधी परिवार की संपत्ति होने की बात सामने आती रहती है, इसलिए माना जा सकता है कि उनके पास कम से कम इतना धन तो है ही कि उसमें से कुछ रुपए अस्पताल बनाने या ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने के लिए दान में दिए जा सकें। गाँधी परिवार समाजवाद में विश्वास रखता है और लाभ कमाने को बुरा मानता है, ये स्वाभाविक है कि वे अपने शब्दों को धरातल पर उतारेंगे। इसलिए, मैंने इसी सवाल को ट्विटर पर डाला।
सवाल बस इतना था कि क्या गाँधी परिवार ने अस्थायी क्वारंटाइन सेंटर्स, अस्पताल, ऑक्सीजन प्लांट्स बनवाने या प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था करने में कोई योगदान दिया है? मेरा सवाल सपाट तो था, लेकिन विनम्र भी। बदले में मुझ जवाब क्या मिला, वह देखिए। इस ट्वीट की प्रतिक्रिया में गाय को लेकर मजाक किए गए और ‘गोबर’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया गया। भारत में गाय को पवित्र माना जाता है, इसलिए इस्लामी आतंकी और कट्टरवादी अक्सर गाय को निशाना बनाते हैं।
Thanks, Congress workers for giving me details about their contribution. Most obliged. pic.twitter.com/zrqsf5k7ZM
— Nirwa (@nirwamehta) April 26, 2021
भारतीयों और खासकर हिन्दुओं को लेकर ‘गोमूत्र’ वाले चुटकुले शेयर किए जाते हैं। यही तंज कॉन्ग्रेस समर्थकों ने मुझ पर भी कसा, क्योंकि मैंने गाँधी परिवार से सवाल पूछने की हिमाकत की थी। गाली तक दी गई। इसमें 11,000 फॉलोवर्स वाली एक अंजलि शर्मा भी शामिल थीं, जिन्हें अलका लांबा और पवन खेरा जैसे कॉन्ग्रेस नेता फॉलो करते हैं। अब कॉन्ग्रेस नेता से सिर्फ समर्थक बन चुके संजय झा भी। अंजलि ने मुझे गाली दी, रिप्लाई में कॉन्ग्रेस समर्थकों ने हँसने वाली इमोजी डाली।
अलका लांबा द्वारा ट्विटर पर फॉलो किए जा रहे एक ध्रुवदेब चौधरी ने मुझे याद दिलाया कि ये 2014 नहीं, बाकि 2021 है जिसमें नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। तो क्या सिर्फ इसी वजह से भारत के सबसे अमीर परिवारों में से एक पर निशाना नहीं साधा जाना चाहिए? वही परिवार, जो सेना के वॉरशिप का उपयोग अपनी पारिवारिक छुट्टियों और मौज-मस्ती के लिए करता था। उनसे सवाल पूछना ही समर्थकों के लिए गाली है।
जहाँ तक मौत की दुआ है, वो तो आजकल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लिए भी मनाई जाती है। खासकर इस्लामी कट्टरवादियों द्वारा और कॉन्ग्रेस के वफादार पत्रकारों द्वारा भी। फिर मैं तो बस एक आम नागरिक हूँ। फिर राणा देब राजवंशी ने मेरे कोविड-19 पॉजिटिव होने, ऑक्सीजन व दवाओं के लिए तड़पने की दुआ की, तो मुझे कुछ नया नहीं लगा। उनका कहना था कि ऐसा होगा तभी मुझे ‘एहसास होगा’ कि ज़मीन पर कौन लोग काम कर रहे हैं।
मृगांका सिंह ने भी यही कामना की, लेकिन मेरे साथ-साथ मेरे परिवार के लिए भी। चलिए, फिर मैंने इसे ही कोरोना के इस काल में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का योगदान मान लिया। मेरे ट्वीट की प्रतिक्रिया में पीएम मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए जोक मारे गए। राहुल गाँधी महिला सम्मान की बातें भले करते हैं, लेकिन उनसे सवाल पूछते ही आपका महिला होना का सर्टिफिकेट रद्द कर दिया जाता है और आप अब सिर्फ ‘भक्त’ रह जाते हो।
और आपको तो पता ही है, लिबरल का मानना ही है कि ‘भक्त’ तो भला होते ही हैं मरने के लिए। गाँधी परिवार MPLAD से भी योगदान दे सकता है। लेकिन देश के पुराने अमीर और रईस खानदान के लोगों से उनके व्यक्तिगत संपत्ति में से त्रासदी के इस समय में देश के लिए योगदान को लेकर सवाल करना क्या गुनाह है? इसी गाँधी परिवार ने ही न पिछले कुछ दिनों में ये नैरेटिव बनाया है कि भारत में अमीर होना ही एक गुनाह है।
राहुल गाँधी और उनके समर्थक हमेशा भारत के उद्योगपतियों को गाली देते रहते हैं। वही उद्योगपति, जो लाखों रोजगार पैदा करते हैं। पहले अम्बानी-अडानी, अब वैक्सीन निर्माताओं को गाली दी जा रही है। इसी से कॉन्ग्रेस समर्थकों के मन में ये बात बैठ गई है कि अमीर होने या लाभ कमाने का एक ही मतलब है – भ्रष्टाचार। लेकिन, जब बात गाँधी परिवार की आती है तो ये समाजवाद कहाँ हवा हो जाता है? या ये सब सिर्फ कहने-सुनने की कोरी बातें हैं, थ्योरी है, प्रैक्टिकल नहीं?