Sunday, October 6, 2024
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राजीव गाँधी की हत्या के बाद चुनाव आगे बढ़ाने से कॉन्ग्रेस को ऐसे हुआ था फायदा, चुनाव आयुक्त रहे TN शेषन को आडवाणी के खिलाफ मिला टिकट: कहानी 1991 की

हत्या से पहले जहाँ-जहाँ चुनाव हुए वहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी को 5.7% नुकसान हुआ, जबकि हत्या के बाद जिन सीटों पर चुनाव हुए वहाँ कॉन्ग्रेस को 1.6% का फायदा हुआ। वोटर टर्नआउट भी बढ़ा था। हत्या से पहले बिहार में ये 56% था, हत्या के बाद 63% हो गया।

अब जब लोकसभा चुनाव 2024 अपने अंतिम चरण में है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धुआँधार प्रचार अभियान अब भी जारी है। गुरुवार (23 मई, 2024) को इंडिया टीवी के कार्यक्रम ‘सलाम इंडिया’ में रजत शर्मा ने उनका इंटरव्यू लिया। ये कार्यक्रम ‘भारत मंडपम’ में आयोजित किया गया था। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मुद्दों पर बात की, जिसमें से एक चुनाव आयोग की निष्पक्षता का भी था। विपक्षी दल अक्सर आरोप लगाते रहे हैं कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

PM मोदी ने याद दिलाया 33 साल पुराना इतिहास

डेढ़ घंटे के इस वीडियो में 55:20 के बाद का हिस्सा आप देखेंगे तो पाएँगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की है कि कैसे विपक्ष के लोग चुनाव आयोग को गाली देते हैं। इसके बाद उन्होंने कॉन्ग्रेस को आईना दिखाने के लिए इतिहास का सहारा लिया। उन्होंने नियम समझाया कि हमारे देश की चुनावी व्यवस्था कहती है कि मतदान से पहले किसी उम्मीदवार की मृत्यु हो जाए तो उस सीट पर चुनाव स्थगित होता है और उसकी तारीख़ बाद में आई है।

इसके बाद उन्होंने कहा, “कोई मुझे बताए कि राजीव गाँधी नाम का एक व्यक्ति संसदीय चुनाव का उम्मीदवार था। आतंकवाद में उनकी हत्या हो गई। उनकी सीट पर चुनाव रुकनी चाहिए थी। लेकिन, उस समय के चुनाव आयोग ने पूरे देश का चुनाव रोक दिया। कोई लॉजिक नहीं था। करीब 21-22 दिन दिए गए। उनकी अस्थियाँ लेकर देश भर में यात्रा निकाली गई और फिर चुनाव हुआ। देश के इलेक्शन कमिश्नर, बाद में उन्होंने खुद कॉन्ग्रेस प्रत्याशी बन कर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा।”

बता दें कि विपक्षी नेता अक्सर ‘Level Playing Field’ न होने की बात करते हैं और कहते हैं कि भाजपा सरकारी मशीनरी अपने पक्ष में होने के कारण फायदे में है। इसी का जवाब देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने इस घटना को याद किया और पूछा कि ये कौन सा ‘लेवल प्लेयिंग फिल्ड’ था? कुछ भी हो, 33 वर्ष पहले हुई इस घटना की याद दिला कर प्रधानमंत्री ने एक नई चर्चा तो छेड़ ही दी है। आइए, जानते हैं 1991 के उस चुनावी घटनाक्रम के दौरान क्या हुआ था।

चंद्रशेखर सरकार का गिरना और राजीव गाँधी की हत्या

उस समय TN शेषन देश के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे। राजीव गाँधी ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार पर दबाव डाल कर दिसंबर 1990 में उन्हें ये पद दिलवाया था। उस सरकार को बाहर से कॉन्ग्रेस का समर्थन था। तत्कालीन कानून मंत्री सुब्रमण्यन स्वामी ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई थी। सुब्रमण्यन स्वामी ने ही मई 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराने के लिए सोनिया गाँधी और AIADMK की जयललिता की बैठक करवाई थी। आज भी वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भला-बुरा कहते रहते हैं।

1991 में मध्यावधि चुनाव हुए थे। उससे पहले चंद्रशेखर की सरकार गिर गई थी, क्योंकि कॉन्ग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था। मार्च 1991 में हरियाणा के 2 पुलिसकर्मियों को राजीव गाँधी के आवास के बार चाय पीते हुए पाया गया। पार्टी ने आरोप लगाया था कि ये दोनों CID से हैं और राजीव गाँधी की जासूसी कर रहे थे। उस समय 197 सीटों वाली कॉन्ग्रेस सत्ता से बाहर थी, लेकिन उसने VP सिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर को समर्थन दिया था, जिन्होंने 64 सांसद तोड़ते हुए ‘समाजवादी जनता पार्टी’ बनाई थी

उस समय हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की सरकार थी, जो चंद्रशेखर की पार्टी का अहम हिस्सा थे। गुस्साए राजीव गाँधी ने चंद्रशेखर की सरकार गिरा दी। 6 मार्च, 1991 को चंद्रशेखर बहुमत साबित करने में नाकाम रहे और मई में चुनावों की घोषणा हो गई। 20 मई को पहला चरण संपन्न हुआ। इसके अगले ही दिन तमिलनाडु के श्रीपेरूम्बदुर में राजीव गाँधी की श्रीलंका के उग्रवादी संगठन LTTE ने हत्या कर दी। चुनाव स्थगित कर दिया गया। इसके बाद 12 और 15 जून को चुनाव हुए।

राजीव गाँधी की हत्या के बाद चुनाव क्यों स्थगित हुआ, इसका कोई स्पष्ट कारण नज़र नहीं आता। राजीव गाँधी अमेठी से चुनाव लड़ रहे थे, जहाँ उनकी हत्या से 1 दिन पहले ही वोट डाले जा चुके थे। जब बाद में परिणाम जारी हुए तो राजीव गाँधी ने 53.13% मत पाकर जीत दर्ज की थी। उन्हें 1.87 लाख वोट प्राप्त हुए थे, जबकि भाजपा के रवींद्र प्रताप 75,000 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। बाद में अमेठी में उपचुनाव हुआ, जिसमें कॉन्ग्रेस के सतीश शर्मा विजयी रहे।

दिल्ली में यमुना नदी के किनारे उनकी माँ इंदिरा गाँधी की समाधि के नज़दीक ही राजीव गाँधी का भी अंतिम संस्कार 24 मई, 1991 को हुआ। उससे पहले उनके शव को लेकर तीन मूर्ति भवन से लेकर शक्ति स्थल तक ये यात्रा निकाली गई। 33 सैनिकों की 5 पलटन आगे और 5 पलटन पीछे इस दौरान चल रही थी। राजीव गाँधी के अंतिम संस्कार के लिए 10 क्विंटल लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें 4 क्विंटल चन्दन की लकड़ी थी।

जो TN शेषन चुनाव स्थगित किए जाने के समय मुख्य चुनाव आयुक्त थे, उन्होंने 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी के टिकट पर भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण अडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा। वो 1.89 लाख वोटों से चुनाव हार गए। इससे पहले वो 1997 में भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके थे, लेकिन कॉन्ग्रेस की तरफ से उतारे गए KR नारायणन से हार गए थे। TN शेषन को मात्र 5% वोट ही प्राप्त हुआ था।

राजीव गाँधी की हत्या के बाद कॉन्ग्रेस को फायदा

राजीव गाँधी की हत्या के बाद हुए एग्जिट पोल से स्पष्ट पता चला था कि कॉन्ग्रेस पार्टी को चुनाव में इसका फायदा मिल रहा है। उनकी हत्या से पहले हुए एग्जिट पोल में कॉन्ग्रेस को 190 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था जबकि हत्या के बाद 265. कॉन्ग्रेस ने 244 सीटें जीती भी। ग्रामीण इलाकों में, और मुस्लिम समुदायों द्वारा कॉन्ग्रेस के पक्ष में मतदान बढ़ा। राजीव गाँधी की हत्या से पहले 211 सीटों पर मतदान हुआ था, जबकि हत्या के बाद 332 सीटों पर।

हत्या से पहले जहाँ-जहाँ चुनाव हुए वहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी को 5.7% नुकसान हुआ, जबकि हत्या के बाद जिन सीटों पर चुनाव हुए वहाँ कॉन्ग्रेस को 1.6% का फायदा हुआ। वोटर टर्नआउट भी बढ़ा था। हत्या से पहले बिहार में ये 56% था, हत्या के बाद 63% हो गया। बिहार में पहले कॉन्ग्रेस 6% वोटों के घाटे में थी, राजीव गाँधी की हत्या के बाद 1.8% के फायदे में आ गई। सबसे अधिक बदलाव तो कॉन्ग्रेस के पक्ष में राजस्थान में हुआ था।

वहाँ पार्टी पार्टी को 2% वोटों का फायदा हो रहा था, लेकिन राजीव गाँधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में पार्टी को 14% वोटों का फायदा हुआ। वोटर टर्नआउट भी 5% बढ़ा। आंध्र प्रदेश में TDP को 9% वोटों का नुकसान हुआ। बिहार और राजस्थान में भाजपा को घाटा हुआ। राजीव गाँधी की हत्या को कॉन्ग्रेस ने अपने पक्ष में जम कर भुनाया, चुनाव आयोग ने किसके इशारे पर ये सब किया होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है। तभी TN शेषन को आगे चल कर प्रत्याशी बनाया गया।

उम्मीदवार की मौत हो जाए तो… क्या कहता है नियम?

आइए, अब आपको बताते हैं कि किसी उम्मीदवार की मौत होने की स्थिति में चुनाव का क्या होता है। 1951 के लोक प्रतिनिधित्व कानून (Representation of Peoples Act) में कहा गया है कि अगर चुनाव के दौरान किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रत्याशी की मौत हो जाती है तो धारा-52 के तहत उक्त सीट पर मतदान स्थगित किया जा सकता है। नामांकन की आखिरी तारीख़ को सुबह 11 बजे से लेकर मतदान शुरू होने तक की अवधि के बीच में अगर उम्मीदवार की मौत होती है तो ये नियम लागू होता है।

इसके बाद RO (रिटर्निंग ऑफिसर) को चुनाव आयोग को तथ्यों से अवगत कराना होता है। फिर चुनाव आयोग संबंधित राजनीतिक को किसी अन्य प्रत्याशी को नामांकित करने के लिए कहता है। इसके लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है। अगर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची पहले ही तैयार की जा चुकी है तो उसे रद्द कर के नई सूची तैयार की जाती है। प्रकाशित की गई नई सूची में मृत उम्मीदवार की जगह नए नामांकित उम्मीदवार का नाम होता है।

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी ऐसी घटना हुई है। मुरादाबाद में चुनाव संपन्न होने के 1 दिन बाद ही भाजपा प्रत्याशी कुँवर सर्वेश सिंह का निधन हो गया। वो बीमार थे। उनका निधन मतदान के बाद हुआ है, इसीलिए इस स्थिति में मतगणना तक रुका जा सकता है। क्योंकि, अगर किसी और प्रत्याशी की जीत हुई तो उपचुनाव की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी, लेकिन अगर कुँवर सर्वेश सिंह मरणोपरांत विजयी होते हैं तो चुनाव रद्द कर उपचुनाव कराया जाएगा।

ताज़ा उदाहरण हम मध्य प्रदेश के बैतूल का भी ले सकते हैं। यहाँ BSP उम्मीदवार अशोक भलावी की हार्ट अटैक के कारण मौत हो गई थी। इस सीट पर दूसरे चरण में मतदान होना था, लेकिन इसे तीसरे चरण तक के लिए टाल दिया गया। व्यवस्था दी गई कि अगर नया उमीदवार बसपा उतारती है तो उसे नामांकन दाखिल करना होगा, पूर्व से नामांकित उम्मीदवारों की स्थिति ज्यों की त्यों रहेगी। किसी एक सीट पर ऐसी घटना होने के कारण पूरे देश में चुनाव रद्द नहीं किया जाता।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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