Saturday, July 27, 2024
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स्तन काटे, प्राइवेट पार्ट्स जलाए, हड्डियाँ तोड़ी, जाँघें मसली… भाग्यशाली हैं कंगना रनौत कि उन्हें बलजीत जैसी ‘सजा’ नहीं मिली, क्योंकि थप्पड़ जितने समय में ही गोली भी मारी जा सकती है

जो लोग आज कुलविंदर कौर के झापड़ मारने को केवल आवेश में उठाया गया कदम बताकर हल्का दिखाने का प्रयास कर रहे हैं वो तो गोली चलाने को भी ऐसा ही कह देते और कई संगठन पहुँच जाते तब भी कुलविंदर को सम्मानित करने।

लोकसभा चुनाव में मंडी से सांसदी जीतने के बाद कंगना रनौत के साथ एयरपोर्ट पर जो घटना घटी है वो सामान्य नहीं है। उनके सांसद बनने के बाद उन्हें सरेआम थप्पड़ मारा गया है। अब कुछ लोग इस मामले में उनकी ओर से बोलना तो दूर उलटा उन पर ही सवाल उठा रहे हैं। वहीं सीआईएसएफ की कर्मी कुलविंदर कौर को ‘नायिका’ बनाकर पेश कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए कॉन्ग्रेस की महिला नेत्री को लीजिए। वो इस मामले में दिखावे के लिए सांसद को थप्पड़ मारे जाने की निंदा जरूर करती हैं, लेकिन बाद में ये दिखाने की कोशिश करती हैं कि कंगना ने सोचो कैसी बात कही होगी जिसकी टीस सीआईएसएफ कर्मी के मन में रह गई और उसने ऐसा कदम उठाया।

ऐसी घटना को जस्टिफाई करना दिखाता है कि इकोसिस्टम के लोगों के मन में घटना की गंभीरता को लेकर चिंता बिलकुल नहीं है बल्कि खुशी इस बात की है कि भाजपा की सांसद को थप्पड़ पड़ा तो सही हुआ और थप्पड़ मारने वाला निर्दोष ही होगा… जबकि ये मामला पूर्ण रूप से सोचने वाला है।

आज के समय में हर राजनेता अपने आप को सिद्ध करने के लिए कहीं न कहीं से कुछ न कुछ उदाहरण देता है। कभी किसी मामले पर तो कभी किसी प्रतिद्वंद्वी पर… ऐसे में कुछ लोग होते हैं तो राजनेताओं की बातों से कभी असहमत होते हैं या आहत होते हैं कानूनी कार्रवाई की माँग करते हैं, मानहानि का केस दर्ज करते हैं…लोकतांत्रिक देश में ऐसे मामलों में यही विकल्प सबसे अच्छा होता है। मगर, वहीं दूसरी ओर अगर बातें बुरा लगने पर जनता में बैठे लोग इस तरह हिंसा पर उतर जाएँगे तो क्या स्थिति अराजकता वाली पैदा नहीं हो जाएगाी। क्या हम ऐसी घटनाओं को सोच भी सकते हैं कि राजनेताओं को उनके बयानों के लिए सरेआम मारा जा रहा है। ऊपर से लोग ऐसे कृत्यों का समर्थन भी कर रहे हैं।

घटना के बाद जब कंगना रनौत ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए पंजाब में बढ़ रही खालिस्तानी विचारधारा पर सवाल उठाए तो इसके खिलाफ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि कंगना के नफरत भरे बयान पंजाबियों का अपमान हैं। उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि आज अगर देश में बहुजातीय व बहुभाषी संस्कृति जीवित है तो उसके पीछे का कारण पंजाबियों द्वारा दी गई कुर्बानियाँ हैं। SGPC ने अपील की है कि भाजपा उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाए और एयरपोर्ट पर हुई घटना के कारणों की जाँच करे।

हैरानी की बात है कि एसजीपीसी जिस सक्रियता से कंगना के विरोध में उतरा है, उतनी सक्रियता से खालिस्तान समर्थकों के विरुद्ध उनसे कुछ नहीं कहा जा रहा। अभी 1 दिन पहले की ही बात है, स्वर्ण मंदिर में खालिस्तान समर्थन में नारेबाजी हुई है। लेकिन, कहीं इसका किसी सिख संगठन ने विरोध नहीं किया। उलटा आज वो लोग कुलविंदर कौर को महान दिखाने के लिए उसके घर पहुँचे हुए हैं। उसे सम्मान दे रहे हैं, उनके परिवार को पीड़ित दिखा रहे हैं।

हाथ में गोली होती तो…

सोचिए, जो काम कुलविंदर कौर ने आवेश में आकर किया है, उसकी चरम क्या हो सकती थी। गुस्से में उन्होंने थप्पड़ मारा, थोड़ा और गुस्सा आता और हाथ में हथियार मिलता तो वो गोली भी मार देतीं… वहीं वो लोग जो आज कुलविंदर के झापड़ मारने को केवल आवेश में उठाया गया कदम बताकर हल्का दिखाने का प्रयास कर रहे हैं वो तो गोली चलाने की घटना को भी ऐसा ही कह देते और कई संगठन पहुँच जाते तब भी कुलविंदर को सम्मानित करने।

मालूम हो गोली वाली घटना का जिक्र करना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अगर लगे, तो 1984 में इंदिरा गाँधी के साथ क्या हुआ था उसे याद कर लीजिए। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इसी तरह कुछ लोग इंदिरा गाँधी से नाराज हुए थे और बाद में उन्हें सरेआम गोली मार दी गई थी…। ऐसी मानसिकता के लोग तो उस घटना को भी जायज दिखा देते जबकि उस समय की रिपोर्ट्स खुद बताती हैं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार में जिस भिंडरावाले और उसकी सोच के खात्मे का काम हुआ था उसने स्वर्ण मंदिर के परिसर में ही कई लोगों की हत्या को अंजाम दिया था। इन लोगों की लिस्ट में एक नाम बलजीत कौर का भी था।

बलजीत कौर की निर्मम हत्या

बलजीत कौर वह महिला थीं, जिन्होंने भिंडरावाले के दाएँ हाथ सुरिंदर सिंह सोढी की हत्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब भिंडरावाले को इस संबंध में पता चला तो उसने पहले मुख्य साजिशकर्ता का गला कटवाया और उसके बाद भिंडरावाले के लोगों का मारने का अंजाम क्या होता है, ये संदेश देने के लिए बलजीत कौर को अकाल तख्त में लाया गया।

बलजीत ने चूँकि सोढी पर गोली दागी थी, तो उसे सजा और भयानक मिली। हत्या से पहले उसे तमाम प्रताड़नाएँ दी गईं। अंत में उसके दोनों स्तनों को काट कर उसे वहीं मार दिया गया। रिपोर्ट बताती हैं कि बलजीत के प्राइवेट पार्ट्स को जला दिया गया था। उसकी हड्डियाँ तोड़ी जा चुकी थीं। जांघें और हाथ बुरी तरह मसल दिए गए थे। शुरू में किसी को समझ भी नहीं आ रहा था कि ये शव किसका है। हालाँकि बाद में पुलिस ने कयास लगाए कि ऐसी बर्बरता खालिस्तानी सिर्फ बलजीत के साथ कर सकते हैं, जिसने सोढी को मारा था।

नाराजगी नहीं, नफरत

सोचिए, अगर कोई भिंडरावाले की भावनाओं का हवाला देकर बलजीत कौर की निर्मम हत्या को जस्टिफाई करने लग जाएँ तो क्या आप अपेक्षा करेंगे कि लोगों में कानून का सम्मान बचा है। एक सामान्य नागरिक भी जानता है कि किसी बात से आहत होने पर कानून का सहारा लेकर कार्रवाई करने का अधिकार लोकतांत्रिक देश में हर नागरिक पर होता है। कानून का सहारा लेने का काम सिर्फ वो नहीं करते देश को, उसके संविधान को नकारते हैं और कट्टरपंथ की विचारधारा के रास्ते पर होते हैं जैसे भिंडरावाला था। लेकिन खुद सरकारी ड्यूटी पर तैनात कुलविंदर कौर ने ऐसा क्यों किया होगा ये सोचने का विषय है… अगर उनका देश के सामान्य नागरिक जैसा बर्ताव होता तो वो उस भाषण के विरोध में अपनी शिकायत दे सकती थीं, मानहानि का मुकदमा डाल सकती थीं, आहत होने की बात लोगों को खुलेआम बता सकती थीं… मगर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। पहले थप्पड़ मारा, फिर सफाई देती घूमीं। उनकी सीधा आकर कंगना को थप्पड़ मारने की हरकत साफ बताती है कि उनके मन में सिर्फ एक नाराजगी नहीं बल्कि नफरत थी। ऐसी नफरत जिसे सही समय पर नहीं रोका जाए तो देश में अराजक माहौल हो सकता है।

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