अयोध्या के रामजन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण बीजेपी के कोर एजेंडे में रहा है। सालों तक ‘मंदिर वहीं बनाएँगे, पर तारीख नहीं बताएँगे’, जैसे तंज कस बीजेपी का मजाक उड़ाया गया है। आज न केवल रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हैं, बल्कि जिस बीजेपी का ‘काउ बेल्ट पार्टी’ कहकर मजाक बनाया जाता था, वह भी पूरे देश में फैल चुकी है।
इस यात्रा में कई मौके आए जब पार्टी के समर्थक भी अधीर हो गए। खासकर, 2014 के बाद से, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने राजनीतिक सफलताओं की नई गाथा लिखनी प्रारंभ की, ऐसे समर्थक भी मैगी बनने की गति से परिणाम की आकांक्षा करने लगे, जिन्होंने शनै: शनै: पार्टी को खड़े होते देखा है।
वास्तविकता यही है कि बीजेपी कभी अपने कोर मुद्दों से पीछे नहीं हटी। उसकी सरकारों ने ऐसे मोर्चों पर कार्य कर दिखाया है जिसकी स्वतंत्र भारत में कल्पना नहीं की जाती रही है। जिन मुद्दों को छूने मात्र से देश जलने की धमकी दी जाती है। उन मुद्दों को भी धीरे—धीरे शांति के साथ दफन किया गया है।
जैसे, हाल में संसद से पास हुआ वक्फ संशोधन विधेयक। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून भी अब बन चुका है। आज से 10 वर्ष पूर्व कोई सोच तक नहीं सकता था कि कोई सरकार वक्फ, तीन तलाक और 370 जैसे मुद्दों को छू भी पाएगी। इन्हें छूना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा था।
मुस्लिमों की सड़क पर शक्ति प्रदर्शन का इतना डर भारतीय जनमानस में बैठा हुआ था कि सब ऐसी कोई कल्पना से ही डर जाते थे। आज खुद को दक्षिणपंथी बताने वाले तक आशंका जताते थे कि अगर ऐसे कानून छुए गए तो इस देश में खून खराबा होगा, हिंदुओं पर हमले होंगे और ना जाने कितनी जानें जाएँगी।
आशंका के विपरीत चाहे वक्फ हो या फिर नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने का समय, ‘सब शांतिपूर्वक’ से निपट गया। एकाध जुबानी जुगाली और बयानों को छोड़ दें तो देश के वो बटेर तक नहीं मरी। इस कानून के संसद में पारित होने ने साफ कर दिया कि भाजपा अपने एजेंडे पर कायम है और लगातार एक एक करके उन्हें पूरा करेगी। लेकिन इस पूरे एपिसोड से एक और बात निकल कर आती है, वो ये है कि पार्टी अपने हर वादे को पूरा करेगी लेकिन समय देख कर।
इस बात को समझना जनता और विशेषकर उन समर्थकों के लिए जरूरी है, जो हर बात पर मोदी से आशा रखते हैं कि वह बम-बंदूक चला दें और एकदम कठोर एक्शन ले लें। किसी भी पार्टी का समर्थक होने के नाते कार्यकर्ता की आकांक्षा होती है कि सभी एजेंडा फटाफट पूरे हों। लेकिन सरकारें इस तरह नहीं चलती।
वर्ष 2020 में होने वाले शाहीन बाग के ड्रामे को लेकर पूरा देश गुस्सा था। चाहे शरजील इमाम का देश काटने वाला बयान हो या फिर कुदरती बिरयानी और बिल्किस दादी वाले ड्रामे, सबको मालूम था कि इस भीड़ का असल एजेंडा देश को एक गृह युद्ध में झोंकना था। तब सरकार ने उन्हें थकाया, बैठे रहने दिया और बाद में उनपर हंटर चलाया। तुरंत लाठी और गोली चलाने से क्या होता, बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
हसीना ने कुछ दिन धैर्य से काम लिया, लेकिन बाद में पुलिस को खुली छूट दी। उसने इस्लामी कट्टरपंथियों को वह दे दिया, जो वह चाहते थे। यह था उकसावे का मौका। इसके बाद हसीना को देश छोड़ना पड़ा। उनका घर जमींदोज हो गया और मोहम्मद युनुस नाम की कठपुतली ढाका में आकर बैठ गई। पीछे से उसे इस्लामी कट्टरपंथी ही चला रहे हैं, यह दुनिया को पता है।
शाहीन बाग की कारस्तानिययों का सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। यह कहना झूठ है। आज शरजील इमाम, उमर खालिद और खालिद सैफी जैसे लोग जेलों में सड़ रहे हैं। उन दादी और नेताओं का कोई नामलेवा तक नहीं बचा जो सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते थे। इसी तरह मोदी सरकार के CAA कानून को रोकने पर भी समर्थकों ने प्रश्न उठाए थे। वह मार्च, 2024 में लागू भी हो गया और कोई कुछ नहीं बोल सका। इसी तरह अनुच्छेद 370 का मामला रहा। भाजपा सरकार ने ऐसे समय पर यह हटाया कि इसे वापस लाना अब संभव नहीं है।
वक्फ बोर्ड को लेकर आज से कुछ साल पहले व्हाट्सऐप पर मैसेज चलते थे, यह कानून कितना भयावह है, इसके विषय में बताया जाता था। अब वो इतिहास हो चुका। साल भर तक दिल्ली घेर कर बैठने वाले कथित किसान आंदोलनकारी भी आज अप्रासंगिक हो गए, उनके भीतर ही आज इतने गुट और सिर फुटौव्वल है कि एका नहीं हो पा रहा।
सरकार जिस दिन चाहेगी कानून लागू हो जाएगा। समर्थकों को समझना होगा कि हम चीन की तरह कोई देश नहीं जहाँ लोकतंत्र नाम की चिड़िया का उड़ना मना हो। ना हम पाकिस्तान हैं जहाँ फौज जो चाहे, संगीनों की नोक के बल पर वो कर ले। हम पूर्ण रूप से लोकतंत्र हैं और विरोधी आवाज का भी सम्मान करते हैं।
महान दार्शनिक प्लेटो का कहना है कि जो काम एक आदमी एक घंटे में राजतंत्र में करता है, वही काम लोकतंत्र में 7 आदमियों की समिति मिलाकर 7 दिन में करती है।
भारत के संबंध में भी यही बात है, यहाँ सब काम झटके से नहीं हो सकते। लेकिन जो होता है, स्थाई होता है। इस हिसाब से देखा जाए तो मोदी सरकार बीते 10 सालों के भीतर इतने मुद्दे हल करने के सफल रही है, जितने बीते 67 साल में भी पार्टियां नहीं कर पाई थीं। अगर आपको मोदी सरकार की स्पीड कछुए जैसी लगती हो, तो समझिए कि इससे पूर्व में काम घोंघे की रफ़्तार से होते थे।
मालदीव का भारत विरोध और फिर मुइज्जु का भारत आकर कर्ज माँगना इसका क्लासिक उदाहरण है। स्वाभाविक है कि भारत के किसी शहर के एक मुहल्ले की आबादी वाला देश आपके प्रधानमंत्री पर अपमानजनक टिप्पणियां करे तो गुस्सा आती है।
आप चाहते हैं कि उस देश को मसल कर रख दिया जाए। लेकिन सरकार ऐसे नहीं सोचती। उसने इसी मुइज्जु को दिल्ली बुलाकर भिखारी साबित किया। वो दिन दूर नहीं है जब यही सरकार UCC भी लाएगी और वह भी देश में लागू होगा।
आगे चलकर शायद देश का संविधान अपने मूल स्वरूप में भी वापस लौट सके। उसमें जबरदस्ती समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का जो पुट डाला गया है, उसे हटाया जाए।
ऐसे सैकड़ों उदाहरण है और लिखने की कोई सीमा नहीं है, लेकिन समर्थकों को एक बात समझने की जरूरत है:
धीरे-धीरे होय रे मना, सब धीरे-धीरे होय।