भावनाओं का उद्वेग कभी-कभी नेत्रों पर पट्टी बाँध देता है। जब से भारत-पाकिस्तान के बीच तत्काल और पूर्ण युद्ध विराम की खबर आई है, ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जिनकी नेत्रों पर पट्टी नहीं है, उन्हें भी 1191 ईस्वी में हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच लड़े गए तराइन के पहले युद्ध का स्मरण हो रहा है। जो सरल, सहज और देसी तरीकों से संवाद में विश्वास करते हैं, उनका कहना है कि अधमरे साँप को नहीं छोड़ा चाहिए।
इसके अतिरिक्त एक वर्ग ऐसा भी है जो इस बात को लेकर चिंतित है कि विपक्ष इंदिरा गाँधी का नाम लेकर ताने मार रहा है। हिंदू, मोदी और भारत घृणा में डूबा मीडिया इसे ‘पराजय’ के तौर पर प्रस्तुत करेगा। पाकिस्तान और इस्लाम परस्त शेखी बखारेंगे।
विचारों के इन तमाम प्रवाहों के बीच यह स्मरण होना चाहिए कि भारत ने कोई युद्ध नहीं छेड़ा था। हमने पाकिस्तान के टुकड़े करने के लक्ष्य निश्चित नहीं किए थे। हमने संघर्ष विराम का उल्लंघन नहीं किया था।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत के बाद ही सेना ने स्पष्ट कर दिया था कि उसके लक्ष्य पर पाकिस्तान के वे ठिकाने थे, जहाँ से पहलगाम जैसे हमले करने वाले इस्लामी आतंकियों को निर्देशित किया जाता है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। भारत और हिंदुओं को निशाना बनाने का षड्यंत्र रचा जाता है।
यही कारण है कि 6 मई 2025 की रात भारत ने इस्लामी आतंक के 9 अड्डों पर मिसाइल दागे। ये अड्डे हैं,
- मरकज सुभान अल्लाह, बहावलपुर
- मरकज तालिबा, मुरीदके
- मेहमूना कैम्प, सियालकोट
- मरकज अहले हदीस,
- सरजाल आतंकी कैम्प, नरोवाल
- मरकज अब्बास, कोटली
- मरकज राहिल शहीद, कोटली
- सवाई नाला कैंप, मुजफ्फराबाद
- सैयद बिलाल कैंप, मुजफ्फराबाद
भारत के इस एक्शन से न केवल आतंकी कैंप तबाह हुए, बल्कि 100 से अधिक आतंकवादी भी ढेर हुए। आतंकी मौलाना मसूद अजहर का तो खानदान ही खाक हो गया। 5 ऐसे आतंकवादी मार गिराए गए, जिसको लेकर कहा जा सकता है कि भारतीय सेना ने कश्मीर से लेकर कंधार तक का बदला एक साथ ले लिया। ये आतंकी हैं,
- मुदस्सर खादियान खास उर्फ अबू जुंदाल
- हाफिज मुहम्मद जमील
- मोहम्मद यूसुफ अजहर
- खालिद उर्फ अबू अकाशा
- मोहम्मद हसन खान
इन आतंकियों को ढेर कर, इन आतंकियों के जनाजे की तस्वीरें दिखाकर, भारत ने दुनिया के सामने पाकिस्तान के उस झूठ को भी उजागर किया, जिसके तहत वह खुद को ‘आतंकवाद का पीड़ित’ बताता है। इसके बाद बौखलाहट में पाकिस्तानी फौज ने न केवल नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, बल्कि हमारे सैन्य से लेकर रिहायशी इलाकों तक को निशाना बनाकर गोले दागे, ड्रोन और मिसाइल छोड़े। मंदिर, गुरुद्वारे, स्कूल तक को निशाना बनाने की कोशिश की।
भारत ने इसके बाद जो कुछ किया वह जवाब देने तक ही सीमित था। हमले नाकाम कर पाकिस्तान में घुसकर जवाबी कार्रवाई तक की गई। इन सीमित कार्रवाइयों ने परमाणु हमले की गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान को भीख की कटोरी लेकर पूरी दुनिया के सामने घूमने को विवश कर दिया। यह तथ्य अब आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक हो चुका है कि अपने 8 एयरबेस पर भारत की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने ही युद्ध विराम की गुहार लगाई थी।
जब हम युद्ध में गए ही नहीं, जब हमने सीमित कार्रवाइयों से ही अपने लक्ष्य हासिल कर लिए, फिर मुल्ला मुनीर की फौज की गुहार को सुनना ही उस राष्ट्र का धर्म होना चाहिए जो सनातन की नींव पर खड़ा है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने वही किया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2008 में मुंबई में 26/11 के हमलों में इन्हीं इस्लामी आतंकियों ने 166 जानें ली थी। हम कुछ नहीं कर पाए थे। उस समय के हमारे रक्षा मंत्री कहते थे कि हथियार खरीदने को पैसे नहीं हैं।
नरेंद्र मोदी ने 11 सालों की सत्ता में ही इस स्थिति को पूरी तरह पलट दिया है। सर्जिकल स्ट्राइक हो, एयरस्ट्राइक हो या फिर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हमने बताया है कि हम कभी भी पाकिस्तान का उसके घर में घुसकर उपचार सकते हैं और वह हमारा कुछ नहीं कर सकता है। हमास आतंकियों की मिसाइलों को निष्फल करने वाले इजरायल के आयरन डोम को देखने वाली आँखों ने पहली बार सुदर्शन, AKASH, MRSAM, L-70 की ताकत को देखा है। यह बताता है कि इन 11 सालों में रक्षा के क्षेत्र में हम कितने आत्मनिर्भर, उन्नत और ताकतवर हुए हैं। यही कारण है कि जब पाकिस्तान ड्रोन और मिसाइल दाग रहा था, हम सब अपने घरों में चैन की नींद सो रहे थे। सुबह जब आँख खुलती थी तो पता चलता था कि दिल्ली पर दागे गए मिसाइल को रास्ते में ही हमारी सेना ने मार गिराया है।
ऐसे में हमें उन पार्टियों, कथित बुद्धिजीवियों, कलाकारों की प्रतिक्रियाओं की चिंता ही नहीं होनी चाहिए जिनके बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तान की तरफ से भारत को बदनाम करने के लिए किया गया है। हमें उन मीडिया संस्थानों की परवाह ही नहीं करनी चाहिए जो पहलगाम में धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या करने वाले इस्लामपरस्तों को ‘आतंकवादी’ लिखने में संकोच करते हैं।
वैसे भी ये पारंपरिक युद्ध का जमाना नहीं है। हम सदैव युद्धकाल में ही जी रहे हैं। मोदी सरकार ने स्पष्ट भी कर दिया है कि अब से आतंकी हमला भी युद्ध माना जाएगा। युद्ध विराम की घोषणा के चंद घंटों बाद ही संघर्ष विराम के टूटने की भी खबरें आ रही हैं। इसलिए सूअर घर के भीतर के हो या बाहर के उनका इलाज होना निश्चित है।
यह दूसरी बात है कि वो समय आपकी आकांक्षाओं पर आज फिट नहीं बैठता। पर जैसा कि मैंने कहा है कि हम युद्ध काल में ही जी रहे हैं और युद्ध काल में धैर्य सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र होता है। धैर्य रखिए। समय ही आपके आज के सभी प्रश्नों का उत्तर भी देगा और मनवांछित परिणाम भी।
वैसे भी युद्ध काल के जिस दौर में हम जी रहे हैं, युद्ध विराम जैसा कुछ होता नहीं। लेकिन भावनाओं के जिस आवेग में आप पाकिस्तान का सरेंडर नहीं देख पा रहे, भारत की जिस विजय को नहीं महसूस कर पा रहे हैं, उस यथार्थ से आपका साक्षात्कार तभी होगा जब भावनाओं का यह ज्वार उतरेगा।