Sunday, June 15, 2025
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86 साल बाद निर्मली और भपटियाही का ‘मिलन’, पर आत्मनिर्भर बिहार कब बनेगा

इस काम में भाजपा सरकार के केंद्र में दुबारा आने पर फिर से तेजी आई और आख़िरकार ये पुल बनकर तैयार हो गया। इस पुल को पूरा करने में उन प्रवासी मजदूरों का भी प्रबल योगदान रहा जो कोविड-19 नाम के चीन से शुरू हुए वायरस के कारण घर लौट आने को मजबूर हो गए थे।

निर्मली और भपटियाही मेरे लिए नए नाम नहीं थे। इन इलाकों का नाम करीब-करीब हमेशा से सुन रखा था। जब सुनाई दिया कि यहाँ कोसी रेल मेगा ब्रिज बनने से कोई 86 साल पुराना सपना पूरा हो रहा है तो हमने सोचा कौन सा सपना? भारत नेपाल के पास 516 करोड़ की लगत से बने इस 1.9 किलोमीटर लम्बे पुल से सीमाओं को जोड़ने का महत्व तो हमें समझ में आता था, लेकिन आखिर ये इतना पुराना सपना कैसे होगा? ठीक है एक अलग मिथिलांचल राज्य की माँग का मुद्दा करीब सौ वर्ष पुराना है, लेकिन रेल?

थोड़ी पूछताछ करते ही बुजुर्गों ने पुराने किस्से सुनाने शुरू किए। करीब सवा सौ वर्ष पहले 1887 में ही इस इलाके में रेल आ गई थी। जैसे पटना जंक्शन 1861 का होता है वैसे ही निर्मली और भपटियाही के बीच मीटर गेज की रेल 1887 में बनी थी। फिर सन 1934 में एक भयावह भूकंप और फिर बाढ़ आई। ये भूकंप ऐसा था कि आज भी बुजुर्ग अपने जन्म की तारीख भूकंप के इतने वर्ष बाद के जरिए बताते हैं। इस भूकंप और फिर बाढ़ से ये रेल संपर्क टूटकर बह गया। तबसे लेकर आज तक इस इलाके को दोबारा रेल संपर्क देने की किसी ने नहीं सोची। 2003-04 में केन्द्रीय सरकार ने इसे मँजूरी दे दी।

फिर सरकार बदली और काम धीमा पड़ गया। हर बार की तरह मिथिलांचल वासियों ने मान लिया कि उनके साथ छल हुआ है। कुछ लोगों के पास मगध का मुख्यमंत्री, मिथिलांचल को नहीं देखता का रटा-रटाया जवाब भी था। खैर, इस काम में भाजपा सरकार के केंद्र में दुबारा आने पर फिर से तेजी आई और आख़िरकार ये पुल बनकर तैयार हो गया। इस पुल को पूरा करने में उन प्रवासी मजदूरों का भी प्रबल योगदान रहा जो कोविड-19 नाम के चीन से शुरू हुए वायरस के कारण घर लौट आने को मजबूर हो गए थे। यद्यपि राज्य सरकार विस्थापन पर विशेष ध्यान नहीं देती, मगर केंद्र सरकार के वक्तव्य में उनका भी जिक्र है।

इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी, कटिहार-न्यू जलपाईगुड़ी, समस्तीपुर-दरभंगा-जयनगर, समस्तीपुर-खगड़िया और भागलपुर-शिवनारायणपुर के रेल मार्ग के इलेक्ट्रिफिकेशन को भी हरी झंडी दिखा दी। इसके अलावा भी दो नए रेल प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुआ है और बाढ़-बख्तियारपुर के बीच तीसरी रेल लाइन को भी शुरू किया गया है। जब रेल मंत्री बिहार का ना हो, तब इतना कुछ बिहार को मिले, ऐसी कल्पना नहीं की जा रही होती। जहाँ तक नए रेल पुल का सवाल है, ये सुपौल, अररिया और सहरसा के लोगों को कोलकाता, दिल्ली और मुंबई जैसी जगहों तक पहुँचने के लिए ढेरों सुविधाएँ देता है।

रेलवे से जुड़े होने पर जहाँ एक तरफ कई जगहों तक लोगों का पहुँचना आसान होता है, वहीं दूसरे कई बदलाव भी आते हैं। सबसे पहला बदलाव तो ये आता है कि रेलवे से महानगरों के जुड़े होने पर बिहार से माल बड़े शहरों तक पहुँचना आसान हो जाएगा। कृषि पर निर्भरता वाले राज्य बिहार के लिए ये फलों-सब्जियों के लिए कई नए बाजार खोल देगा। फोर-लेन सड़क के पास होने के कारण भपटियाही में विकास पहले ही रफ़्तार पकड़ चुका था। अब रेल से जुड़ने के बाद कृषि उत्पादों के लिए ये एक नई मंडी के तरह भी जगह बना सकता है। पुराने दौर में जहाँ राजधानी पटना से करीब तीन सौ किलोमीटर दूर होने के कारण ये अनजान सी जगह थी, अब सहरसा-सुपौल जैसे इलाके भी विकास के कदम से कदम मिलकर आगे बढ़ेंगे।

बाकी सवाल ये है कि दिल्ली, कोलकाता या मुंबई जाना ही क्यों पड़ता है? आखिर आत्मनिर्भर बिहार कब बनेगा जहाँ के लोग रोजगार के लिए पलायन करने के बदले रोजगार देने वाले बनें? बिहार में बदलावों की जैसी शुरुआत हो रही है, लगता नहीं कि ये सवाल ज्यादा दिन बाकी रहेगा।

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Anand Kumar
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