लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव हारने और राज्यों में दशकों से सत्ता से बाहर होने के बाद भी कॉन्ग्रेस अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति छोड़ने को तैयार नहीं है। हिन्दुओं के संघर्ष के प्रतीक राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और महाकुंभ से दूरी बनाने वाला कॉन्ग्रेस नेतृत्व अब इफ्तार में सहर्ष शामिल हो रहा है। यह इफ्तार आयोजन भी उस संगठन का था, जिसकी जड़ें मोहम्मद अली जिन्ना की बनाई मुस्लिम लीग में हैं। हालाँकि, गाँधी परिवार के हर काम पर ह्म्ल्ला मचाने वाली कॉन्ग्रेस इस इफ्तार को लेकर चुप भी है।
भारत की राजनीति में हिन्दू (या जो अपने आप को हिन्दू बताते हों) नेताओं की इफ्तार में जाने की तस्वीरे 2014 से पहले आम थीं। इसे वोटबैंक राजनीति का एक बड़ा हथियार माना जाता था। यह ‘इफ्तार राजनीति’ राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गई थी। हालाँकि, 2014 में जब मुस्लिम तुष्टिकरण से त्रस्त भारत की जनता ने भाजपा को बहुमत दिया तो इससे देश की राजनीति 180 डिग्री घूम गई। इसके बाद ‘टोपी’ पहनने-पहनाने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई और उसी अनुपात में धीमे-धीमे इफ्तार पार्टी में कमी आने लगी।
लेकिन 2025 में इफ्तार राजनीति की वापसी हुई है। इस बार भी ‘इफ्तार राजनीति’ की झंडाबरदार कॉन्ग्रेस ही है। नई दिल्ली में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने गुरुवार (20 मार्च, 2025) को एक इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था। इसमें कई विपक्षी नेता आमंत्रित किए थे। इफ्तार पार्टी में पहुँचने वालों में सबसे बड़ा नाम कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी का था। उनके साथ ही कॉन्ग्रेस के मुखिया मल्लिकार्जुन खरगे भी शामिल हुए। दोनों नेताओं ने सपा मुखिया अखिलेश यादव और AAP नेता संजय सिंह के साथ इफ्तार किया।
इसकी तस्वीरें सामने आईं तो लोगों के मन में एक ही सवाल कौंधा। इस इफ्तार से मात्र 2 माह पहले ही 144 वर्षों के बाद प्रयागराज में हिन्दुओं का सबसे बड़ा समागम ‘महाकुंभ’ हुआ था। महाकुंभ में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और सिलचर से लेकर पोरबंदर तक के हिन्दू आए। ट्रेनें-बसें भरी रहीं। प्रयागराज से 200-400 किलोमीटर दूर तक के शहर महाकुंभ आने वाले श्रद्धालुओं से जाम हो गए। लेकिन इस 60 करोड़ की संख्या में 2 नाम गायब मिले थे।
इनमें से एक नाम इफ्तार पार्टी में शामिल होने वाली कॉन्ग्रेस की डी-फैक्टो मुखिया सोनिया गाँधी का था। दूसरा नाम ‘दत्तात्रेय ब्राह्मण‘ राहुल गाँधी का था। इन दोनों मनुष्यों को कोई महाकुंभ में नहीं देख सका। सक्रिय राजनीति में 2024 में कदम रखने वाली प्रियंका गाँधी भी इससे दूर रहीं। यानी इफ्तार पार्टी में एक बुलावे पर पहुँचने वाले कॉन्ग्रेस नेता प्रयागराज नहीं जा पाए। विडंबना यह है कि प्रयागराज वही शहर है जहाँ से यह परिवार निकला है।
मुस्लिमों से गलबहियाँ और हिन्दू आयोजनों से दूरी का गाँधी परिवार का यह कोई पहला मामला नहीं है। यह परंपरा जवाहर लाल नेहरू ने तभी शुरू की थी, जब उन्होंने हिन्दुओं द्वारा खँडहर से वापस तैयार किए गए सोमनाथ मंदिर में जाने से मना किया था। खुद तो नेहरू इस कार्यक्रम में नहीं ही गए थे, उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को भी जाने से रोकने की कोशिश की थी। उसी ‘क्षद्म धर्मनिरपेक्षता’ की परंपरा का निर्वहन गाँधी परिवार एकदम मन लगाकर कर रहा है।
महाकुंभ से पहले ठीक एक वर्ष पहले भी गाँधी परिवार ने स्पष्ट कर दिया था कि उनकी प्राथमिकताएँ क्या हैं। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिन्दुओं को मिले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण कॉन्ग्रेस ने ठुकरा दिया था। सोनिया गाँधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी ने इस कार्यक्रम में शामिल होने से मना किया था। इस कार्यक्रम में कॉन्ग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से कोई शामिल नहीं हुआ था। हास्यास्पद ये है कि IUML की इफ्तार पार्टी में शामिल होने वाली कॉन्ग्रेस ने राम मंदिर का न्योता इसलिए ठुकराया था क्योंकि उसके हिसाब से यह RSS-BJP का कार्यक्रम था।
इफ्तार में लेकिन ‘तुष्टिकरण को जो करे प्यार, इफ्तार से कैसे करे इनकार’ के फार्मूला पर चलते हुए तुरंत शिरकत की गई। यह IUML वही पार्टी है, जिसके पहले अध्यक्ष मुहम्मद इस्माइल ने भारत के विभाजन के लिए हुए आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। इन्हीं मुहम्मद इस्माइल ने संविधान सभा में भारतीय मुस्लिमों के लिए शरिया कानून को बनाए रखने की वकालत की थी।
कॉन्ग्रेस को लेकर इन सब बातों से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है, वह तो इस पार्टी के साथ मिलकर केरल में चुनाव लड़ती है। हालाँकि, ये इफ्तार एक तरह से थोड़ा अलग रहा। गाँधी परिवार के तीन बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उनकी विक्ट्री साइन वाली तस्वीरें सामने आती हैं। इस इफ्तार की एक भी तस्वीर कॉन्ग्रेस ने साझा नहीं की। अब यह क्यों किया गया ये साफ़ नहीं है। लेकिन, कुछ चीजें जरूर साफ़ हैं और वह हैं कॉन्ग्रेस की हिन्दुओं से अलगाव की नीति, उसका मुस्लिम प्रेम और उसकी तुष्टिकरण की राजनीति को लेकर प्रतिबद्धता।