Thursday, April 25, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्देमुस्लिम महिला सबसे गोरी, ब्राह्मण सबसे काले: Cadbury वालो, धंधा करो ज्ञान मत बाँटो

मुस्लिम महिला सबसे गोरी, ब्राह्मण सबसे काले: Cadbury वालो, धंधा करो ज्ञान मत बाँटो

कॉर्पोरेट वालों को सोशल मीडिया पर Social Justice Warrior बनना या ज्ञान-बाजी करना कितना महंगा पड़ता है, किसी को यह Gillette वालों से पूछना चाहिए। इसी तरह Zomato की हलाल-"खाने का मज़हब नहीं होता" विवाद से छवि खराब हो गई है।

Cadbury का मूल काम-धंधा क्या है? चॉकलेट बनाना-बेचना। Zomato का? खाना रेस्तराँ से उठा कर घर पहुँचाना। Gillette का काम है दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड और रेज़र बनाना-बेचना। लेकिन पिछले कुछ महीनों में ये ब्रांड किसी बिज़नेस कारण से नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय (social justice) के पहरुए बनने या सोशल मीडिया पर दूसरों को ज्ञान बाँचने को लेकर खबरों में रहे हैं। और यह काम भी वे ढंग से करने की बजाय मूर्खता करते ही अधिक नज़र आ रहे हैं।

ताज़ातरीन मामला Cadbury का है, जिसने अपने ‘नस्लभेद-विरोधी’ unity bar को भारतीय बाजार में 15 अगस्त के मौके पर उतारा था। इसके लिए उसने ज्ञान बाँचा कि आइए उस देश का सम्मान करें जहाँ विभिन्नता में एकता है। और इसका प्रतीक बताया अपना यूनिटी बार- जिसमें ‘गोरी वाली’ (मिल्क चॉकलेट) और ‘काली वाली’ (डार्क चॉकलेट) चॉकलेट से लेकर दो और रंगों की चॉकलेट यानी “हर रंग (‘नस्ल’ पढ़ें) की चॉकलेट में एकता” है।

इस विज्ञापन में Cadbury दो बातें करता दिख रहा है: न केवल यह कि भारत में नस्लभेदी/रंगभेदी माहौल है (वरना इस तरह के संदेश की कोई ज़रूरत क्यों थी?), बल्कि वह इतना गंभीर भी है कि इससे निबटने के लिए विदेशी कंपनियों को यहाँ के लोगों को “नस्लभेदी मत बनो” सिखाने उतरना पड़ रहा है।

पहली बात तो यह ज्ञान-बाजी ही बोगस है, क्योंकि भारत में कभी भी नस्लभेद का इतिहास रहा ही नहीं है। लाख साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषाई टकराव भले हों भारत में, लेकिन रंग और नस्ल के आधार पर सामाजिक भेदभाव एक ऐसी बुराई है जो बड़े-छोटे किसी भी स्तर पर भारत में पैर नहीं जमा पाई है।

जब भी इसकी कोशिश हुई, सरकारों ने इसे कुचल दिया है। याद करें कुछ साल पहले जैसे ही खबर आई कि उत्तर-पूर्व के लोगों को दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में कुछ चिरकुट उनकी नस्ल को लेकर निशाना बना रहे हैं, तो तत्कालीन केंद्र सरकार ने कानून बनाकर उनके लिए नस्लभेदी और अपमानजनक शब्द “चिंकी” को ही पाँच साल सजा वाला अपराध बना दिया था। इसके पहले पेरियार ने उत्तर-दक्षिण भारत को विभाजित करने के लिए अंग्रेज़ों के झूठे ‘आर्य आक्रमण सिद्धांत’ को नस्ल का रूप देकर हिंदी-संस्कृत-भाषियों को तमिल-मलयालम-भाषियों से अलग नस्ल साबित कर देश के एक और विभाजन की नींव रखने की कोशिश की थी, लेकिन लोगों ने ही उनको ज्यादा भाव नहीं दिया। (गोरे रंग को लेकर भारतीयों में थोड़ा-बहुत आकर्षण ज़रूर है, लेकिन यह औपनिवेशिक हैंगओवर है जो बिना Cadbury की ज्ञान-बाजी के तेज़ी से जा रहा है। इसके अलावा हमारे पुराणों में न केवल गहरे रंग की द्रौपदी को मानव इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला बताया गया था, बल्कि श्री कृष्ण भी काले होने के बावजूद आकर्षण का पर्याय माने गए हैं। देवी का सबसे अधिक पूजित रूप भी माँ काली का है।)

और अगर Cadbury के इसी विज्ञापन को देखें तो यह तथाकथित नस्लभेद को खत्म कर रहा है या फिर नस्लवादी स्टीरियोटाइप को बढ़ावा ही दे रहा है? इसका रैपर देखिए:

सबसे गोरी मुस्लिम महिला, और सबसे काले दक्षिण भारतीय ब्राह्मण। रेशियल स्टीरियोटाइपिंग हुई कि नहीं? क्या Cadbury के अधिकारियों ने कभी गहरे रंग की या साँवली मुस्लिम महिला नहीं देखी? और अगर ‘गोरे’ दक्षिण भारतीय ब्राह्मण कैडबरी वालों को देखने हों तो सुब्रमण्यम स्वामी या आनंद रंगनाथन को देख लें। और या फिर यह सब करने से बेहतर होगा कि कैडबरी वाले चॉकलेट बनाने पर ध्यान दें, समाज-सुधार कॉर्पोरेट जगत के Social Justice Warriors का खिलौना नहीं है।

Gillette ने गँवाए 800 करोड़ डॉलर

कॉर्पोरेट वालों को सोशल मीडिया पर Social Justice Warrior बनना या ज्ञान-बाजी करना कितना महंगा पड़ता है, किसी को यह Gillette वालों से पूछना चाहिए। “Toxic Masculinity” के वैचारिक कैंसर को बढ़ावा देने और पुरुषों को ज़लील करने के नारीवादी अंधेपन में वह भूल गया कि उसका 99% से अधिक बिज़नेस मर्दों से ही आता है। नतीजा यह हुआ कि “Toxic Masculinity” वाला वाहियात विज्ञापन YouTube पर प्रकाशित करने के बाद उसकी अभिवावक/होल्डिंग कंपनी प्रॉक्टर एंड गैम्बल को Gillette के मूल्य के आकलन में 8 अरब डॉलर की कमी करनी पड़ी। बनाने को बहाना “मर्दों ने शेव करना ही बंद कर दिया होगा” का बनाया जा सकता है, लेकिन सच्चाई हर बहाने से और साफ़ ही हो जाती है।

Zomato को हलाल-“खाने का मज़हब नहीं होता” विवाद में ठीक-ठीक कितना आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है, यह तो समय बता ही देगा, लेकिन एक ब्रांड के तौर पर उसकी छवि निश्चित रूप से खराब हुई है। यही नहीं, इसी विवाद के चलते रेस्तराँ मालिकों द्वारा किसी और मुद्दे पर की गई आलोचना को भी मीडिया और सोशल मीडिया पर और तूल मिला।

कॉर्पोरेट को यह समझना होगा कि उसके HR और एडवरटाइजिंग विभाग में सामाजिक न्याय का झंडा गाड़ कर बैठे लोग किसी मुद्दे का समाधान करने की कोशिश कर रहे लोग नहीं, प्रोफेशनल एजेन्डाबाज और राजनीतिक रूप से वामपंथी झुकाव वाले हैं। उनकी बकवास में आकर यदि कॉर्पोरेट जगत अपने मूल व्यवसाय से ज्यादा ऐसी फ़िज़ूल की गतिविधियों में ऊर्जा खपाएगा तो न ही वह किसी मुद्दे पर कुछ कर पाएगा, न ही अपना खुद का व्यवसाय बचा पाएगा। बेहतर होगा कि बिना किसी मुद्दे की गहरी समझ के और एजेंडेबाज लोगों के झाँसे में आकर, अपना समय व्यर्थ करने की बजाय बिज़नेस एग्जीक्यूटिव उसे अपने काम में ही लगाएँ।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

माली और नाई के बेटे जीत रहे पदक, दिहाड़ी मजदूर की बेटी कर रही ओलम्पिक की तैयारी: गोल्ड मेडल जीतने वाले UP के बच्चों...

10 साल से छोटी एक गोल्ड-मेडलिस्ट बच्ची के पिता परचून की दुकान चलाते हैं। वहीं एक अन्य जिम्नास्ट बच्ची के पिता प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं।

कॉन्ग्रेसी दानिश अली ने बुलाए AAP , सपा, कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता… सबकी आपसे में हो गई फैटम-फैट: लोग बोले- ये चलाएँगे सरकार!

इंडी गठबंधन द्वारा उतारे गए प्रत्याशी दानिश अली की जनसभा में कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ गए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe