तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते गर ऐतबार होता।
फैज़-परस्त उदारवादियों पर ग़ालिब का यह शेर एकदम सही बैठता नजर आता है। रामभक्त गुलशन (बदला हुआ नाम) के जामिया में बन्दूक लहराने और सोशल मीडिया पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसे शब्दों को ट्रेंड होने में बस कुछ ही पलों का फासला रहा होगा। लेकिन वैचारिक जिहादियों की छटपटाहट ने बंदूकधारी गुलशन के सारे तमाशे को बर्बाद कर दिया।
गुलशन के फायर करने और शादाब के जख्मी होने के इस नाटकीय क्रम के बस आधे घंटे में ही रामभक्त बताए गए इस अल्पवयस्क युवक की सोशल मीडिया से वायरल हुई तस्वीरों और सभी सोशल मीडिया अकाउंट के अचानक गायब हो जाने के खेल ने तस्वीर लगभग स्पष्ट कर दी।
जामिया में कल हुए इस पूरे नाटक के दौरान सबसे ज्यादा आश्चर्य एक अल्पवयस्क के बंदूक उठाकर फायर कर देने में नहीं था, बल्कि इसके बाद सदियों से ‘हिन्दू आतंकवाद’ और ‘हिन्दू कट्टरपंथी’ शब्द गढ़ने के लिए लालायित बौद्धिक दैन्य लिबरल गिरोह की प्रतिक्रिया थी। सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कालजयी मुस्कान लेकर जरा देर से अपने प्राइम टाइम में आए लेकिन इससे पहले ही उनकी घातक टुकड़ियों के सिपहसालार ध्रुव राठी से लेकर शेहला रशीद और स्वरा भास्कर ट्विटर पर गोडसे और गो** में तालमेल बैठाते नजर आए।
यह स्क्रीनशॉट ‘रामभक्त गुलशन’ के जामिया में चर्चा बनने के कुछ देर बाद ही ट्विटर से लिया गया था:
एक घंटे के भीतर ही ट्विटर पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसे शब्द ट्रेंड करने लगे। एक लम्बे समय तक देश में विचारधारा के इकलौते मसीहा बने हुए वामपंथ और नव-उदारवादियों ने हमेशा से ही हिन्दुओं को भी एक आतंकवाद का मुखौटा पहनाने का भरसक प्रयास किए हैं।
बुरहान वानी और अफजल गुरु के लिए टेसू बहाने वाले इस विचारक वर्ग ने इस क्रम में कभी गोडसे को कट्टर हिन्दू साबित करने की कोशिशें की तो कभी किसी रामभक्त गुलशन को। लेकिन इस छटपटाहट और इस जल्दबाजी में ये लोग कभी भूल से भी असम को भारत से अलग काट देने की योजना बनाने वाले शाहीन बाग़ के मास्टर माइंड शरजील इमाम को अपनी जुबान से राजद्रोही तक कहते नहीं सुने गए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसी भीड़ में से आज एक मुहम्मद इलियास नाम के युवक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। दिसंबर 13, 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास के क्षेत्र में हुई हिंसा मामले में इलियास की गिरफ्तारी हुई है। कायदे से तो बौद्धिक आतंकवादियों को आज ‘इस्लामी आतंकवाद’ जैसे शब्दों को ट्रेंड करवाना चाहिए, क्योंकि वह तो स्वयं को सेकुलर उदारवादी ही महसूस करते आए हैं, तो फिर इलियास के नाम पर यह चुप्पी क्या साबित करती है? या फिर हो सकता है कि अपनी जान का खतरा उन्हें एक सुरक्षित ‘अल्पसंख्यक विचारधारा’ की तरफ होने के लिए मजबूर करता हो, वरना विचारकों की तो कोई सीमा ही नहीं होनी चाहिए।
इन बौद्धिक आतंकवादियों ने मौका मिलते ही हिन्दुओं के प्रतीक चिन्हों को अपमानित किया है। कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी कर रहे ‘युवा’ इनकी नजरों में मासूम और भटके हुए हुआ करते हैं। जितनी जल्दबाजी और तत्परता रामभक्त गुलशन को हिन्दू आतंकवादी कहने में दिखाई गई है, उसी तत्परता से सेना पर बन्दूक तानने वाले और पत्थरबाजी करने वाले इन समुदाय विशेष के युवाओं को कभी इस्लामिक आतंकी नहीं कहा गया।
शाहीन बाग़ इसका सबसे ताजा उदाहरण बनकर सामने आया है। शाहीन बाग़ में खुलेआम पत्रकारों की ‘लिंचिंग’ की जा रही हैं, जनता, सत्ता और सेना के खिलाफ खुले में भड़काऊ भाषणबाजी करते हुए बुर्के और लाल दाढ़ी वाले लोग देखे जा रहे हैं। शरजील इमाम तो खुद स्वीकार कर चुका है कि वह कट्टर इस्लामी है और देश को इस्लामी मुल्क बना देना चाहता है। लेकिन वैचारिक जिहादियों को यह सब अनदेखा करना होता है। इन वैचारिक उदारवादी आतंकियों को इंतजार सिर्फ किसी रामभक्त गुलशन के बन्दूक लहराते हुए खुदको हिंदूवादी विचारधारा से जुड़ते हुए देखने का था।
अगर ऐसा न होता तो सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कुमार इस घटना की शाम हुए प्राइम टाइम में उस विजयी मुस्कान के साथ न देखे जाते। यह बौड़म और पाखंडी बौद्धिक उदारवादी आतंकी एक अल्पवयस्क को बन्दूक फायर करते हुए देखकर सिर्फ इसलिए ‘हें हें हें’ की हंसी हँसता है क्योंकि उसे अपना नायक मिल चुका है।
एक नजर रामभक्त गुलशन पर प्राइम टाइम पढ़ते हुए सत्यान्वेषी पत्रकार की ऐतिहासिक विजयी मुस्कान पर जरूर डालें-
यह लिबरल पत्रकार और वामपंथी विचारधारा का ‘कैसेनोवा’ जिस जहर को रामभक्त गुलशन के बन्दूक उठाने के लिए जिम्मेदार बताता नजर आया है, वह जहर तो सत्यान्वेषी पत्रकार रोजाना 9 से 10 अपने प्राइम टाइम में अनुलोम-विलोम में छोड़ते और ग्रहण करते हैं। यही वजह है कि उम्र के साथ झुर्रियों की जगह दर्रे देखने को मिल रहे हैं।
देश के इस पाखंडी उदारवादी गिरोह की हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों को गढ़ने से पहले वर्षों तक अभी आत्म चिंतन की आवश्यकता है। उसे यह तय करना होगा कि उसका पहला लक्ष्य आज़ादी है या फिर शाहीन बाग की नाकामयाबी को छुपाना। क्योंकि शाहीन बाग़ को जिस अरमानों से सजाया गया था उसकी इमारते जर्जर होकर बिखरने लगी हैं। इस शाहीन बाग़ के इस्लामी एजेंडे का मकसद कभी शरजील तो कभी कुदरती खाने की दुहाई देता हुआ CAA-विरोधी प्रदर्शनकारी साबित करते जा रहा है।
‘हिन्दू आतंकवाद’ को साबित करने से पहले बस एक बार स्वयं से यह जरूर पूछिए कि शाहीन बाग़ में जो कुछ भी चल रहा है वो संविधान की किताब के मुताबिक़ है या फिर किसी आसमानी किताब के अनुसार उसकी रूपरेखा तय हुई है? यदि इसका जवाब मिलने पर आपका विवेक, जो कि यूँ तो कब का मर चुका है, लेकिन फिर भी अगर गवाही दे कि वह सब सेक्युलर है तो हिन्दू आतंकवाद की ओर जरूर आगे बढ़ें।