अरविंद केजरीवाल कभी डंके की चोट पर कहा करते थे कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। वे जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। कोई राजनीतिक पद नहीं लेंगे। पर जब मौका आया तो वे अपने ही मुँह से निकली इन सारी बातों से पलट गए। उन्होंने वह सब कुछ किया जिसको लेकर वे दूसरों को खाँस-खाँसकर कोसते थे।
इतना तो चलता है, क्योंकि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव का रास्ता राजनीति से ही निकलता है। लेकिन इस राजनीति के लिए केजरीवाल की गिरने की खुद से ही जो प्रतिस्पर्धा रहती है, उस मामले में उनकी टक्कर का कोई दूसरा दूर-दूर तक नहीं दिखता। हर बार वे ‘नीचता’ का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ डालते हैं।
भारतीय राजनीति की कुछेक बीमारियों में से एक परिवारवाद भी है। ऐसे बहुतेरे नेता हैं (करीब-करीब सभी दलों में) जो राजनीति में अपने बाल-बच्चों/रिश्तेदारों को ही आगे बढ़ाते हैं। कई राज्यों में तो परिवारवादी दलों का अच्छा-खासा प्रभाव तक भी है। बिहार में तो भनसाघर से पत्नी को निकालकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा देने की परंपरा 90 के दशक में ही लिख दी गई थी।
लेकिन शायद ही किसी ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए अपनों की झूठी कसम खाई हो। शायद ही राजनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए अपने बुजुर्ग माँ-बाप की प्रदर्शनी लगाई हो। केजरीवाल इस मामले में इकलौते हैं।
उन्होंने कभी अपने ही बच्चों की कसम खाकर कहा था कि आम आदमी पार्टी बीजेपी या कॉन्ग्रेस से कभी हाथ नहीं मिलाएगी। लेकिन उन्होंने अपनी पहली ही सरकार कॉन्ग्रेस के समर्थन से बनाई। बाद में कॉन्ग्रेस की छतरी के नीचे जमा भी हुए। उसके साथ मिलकर चुनाव भी लड़ा।
इस नीचता का अगला अध्याय उन्होंने तब लिखा जब दारू घोटाले के छींटों से भ्रष्टाचार से लड़ने का उनका मुखौटा उतरा, जब उन्हें तिहाड़ की हवा खानी पड़ी, जब ‘शीशमहल’ खाली करना उनकी मजबूरी हो गई, उन्होंने अपनी सियासत को आगे बढ़ाने के लिए बुजुर्ग माँ-बाप को मीडिया के आगे कर दिया।
इस उम्मीद में कि उनकी उम्र, उनकी बीमारी से उनके दाग छिप जाएँगे। अब इससे भी आगे निकलते हुए उन्होंने बुजुर्ग माँ-बाप की ‘परेड’ तब निकाली है, जब 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों को आम आदमी पार्टी के लिए अब तक की सबसे कड़ी परीक्षा बताई जा रही है।
5 फरवरी को मतदान करने के बाद उन्होंने ट्विटर/एक्स पर एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, “आज पूरे परिवार के साथ जाकर मतदान किया। हर दिल्लीवासी की तरक्की और हर गरीब परिवार के सम्मानजनक जीवन के लिए वोट दिया। आप भी अपने परिवार के साथ मतदान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें। दिल्ली की तरक्की रुकनी नहीं चाहिए। गुंडागर्दी हारेगी, दिल्ली जीतेगी।”
आज पूरे परिवार के साथ जाकर मतदान किया। हर दिल्लीवासी की तरक़्क़ी और हर ग़रीब परिवार के सम्मानजनक जीवन के लिए वोट दिया। आप भी अपने परिवार के साथ मतदान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें। दिल्ली की तरक़्क़ी रुकनी नहीं चाहिए।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 5, 2025
गुंडागर्दी हारेगी, दिल्ली जीतेगी। pic.twitter.com/6eSZnNTXBB
अपने समर्थकों को वोट के लिए प्रेरित करने में कोई बुराई नहीं है। हर राजनीतिक दल ऐसा करते हैं। अपने परिवार के साथ मतदान भी आम है। लेकिन इस पोस्ट के साथ शेयर किए गए वडियो में जिस तरह का ‘प्रदर्शन’ दिखता है, वह सामान्य नहीं है। वीडियो में आप मीडिया से बात करते हुए केजरीवाल को खाँसते भी देख सकते हैं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि चुनावी मौसम में अक्सर केजरीवाल की यह दबी बीमारी बाहर आ जाती है। बुजुर्गों को वोटिंग के लिए ले जाना कोई गलत बात नहीं है। लोकतंत्र के पर्व में सबकी भागीदारी हो, यह सबसे अच्छी बात है। लेकिन बात-बात पर माँ-बाप को बीमार बताने वाले केजरीवाल उन्हें बाकायदा गाड़ी में भी बिठा कर ले जा सकते थे।
उनके पास गाड़ियों का पूरा काफिला है, कभी वैगनआर से चलने वाले केजरीवाल आज ₹50 लाख की गाड़ी से चलते हैं। पत्रकार आदेश रावल ने खुलासा किया था कि केजरीवाल की सेवा में पंजाब से आई लैंड क्रूजर गाड़ियाँ भी रहती हैं। लेकिन इन सभी का उपयोग ना करके माँ-बाप की प्रदर्शनी रोड पर निकाली गई।
वह चाहते तो चुनाव आयोग की घर बैठ कर वोट वाली सुविधा का फायदा भी उठा ही सकते थे। उनके पिता इसके लिए योग्य भी हैं। लेकिन उन्होंने बुजुर्ग माँ-बाप का व्हीलचेयर पर परेड निकाल सहानुभूति और वोट जुटाने की कोशिश की।
वोटिंग के दिन बूढ़े माँ-बाप को सड़क पर लेकर घूमने वाले केजरीवाल मई, 2024 में उन्हें परेशान ना किए जाने की अपील कर रहे थे। वो नहीं चाहते थे कि दिल्ली पुलिस उनके घर पर स्वाति मालीवाल कि पिटाई के मामले में पूछताछ करने पहुँचे। इसके लिए उन्होंने पीएम मोदी तक को घेरा था। अब उन्हें अपने बूढ़े माँ-बाप को सड़क पर घुमाने में कोई समस्या नहीं है।
केजरीवाल ने सोचा कि यह सब देख कर दिल्ली की जनता उनके 10 साल के कुकर्मों को भूल जाएगी। खुद को फैमिली मैन दिखने वाले केजरीवाल का यह स्टंट बताता है कि उनके लिए राजनीति ही सब कुछ है। इसके लिए वह कुछ भी कर सकते हैं।
वे राजनीतिक तौर पर अति महत्वाकांक्षी हैं। वे कुर्सी के लिए, सत्ता के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। ऐसा करते हुए केजरीवाल को शायद ही एहसास हो कि जनता की लाठी जब पड़ती है तो आवाज नहीं होती।