भारत में जनगणना न सिर्फ एक आँकड़ों का संग्रह है, बल्कि यह देश की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तस्वीर को सामने लाता है। यह नीतियाँ बनाने, संसाधनों का बँटवारा करने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का आधार है। 2027 में होने वाली जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने कई बड़े ऐलान किए हैं, जिनमें जातिगत गणना को शामिल करना एक ऐतिहासिक फैसला है। लेकिन इस बीच कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक भ्रामक प्रचार शुरू कर दिया।
कॉन्ग्रेस का दावा है कि 16 जून 2025 को जारी गजट नोटिफिकेशन में ‘जातिगत जनगणना’ का जिक्र नहीं है और यह सरकार का ‘यू-टर्न’ है। यह लेख कॉन्ग्रेस के इस झूठ को पूरी तरह बेनकाब करेगा, जनगणना की प्रक्रिया को विस्तार से समझाएगा और तेलंगाना-बिहार के सर्वे और राष्ट्रीय जनगणना के बीच अंतर को स्पष्ट करेगा। साथ ही, यह कॉन्ग्रेस के इतिहास और उनके राजनीतिक प्रचार के मकसद को भी उजागर करेगा।
आइए, अब इस मामले से जुड़े हर पहलू को हम आसान तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
कॉन्ग्रेस का झूठ: एक सुनियोजित प्रचार
16 जून 2025 को केंद्र सरकार ने जनगणना 2027 के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी किया। इस नोटिफिकेशन में जनगणना की तारीखें और कुछ बुनियादी जानकारियाँ थीं। लेकिन कॉन्ग्रेस ने इसे मौके की तरह भुनाने की कोशिश की। पार्टी के नेताओं ने दावा किया कि नोटिफिकेशन में ‘जातिगत जनगणना’ शब्द का जिक्र नहीं है, और सरकार ने अपने वादे से मुकरने की कोशिश की है। यहाँ कॉन्ग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं के बयान हैं-
कॉन्ग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, “गजट नोटिफिकेशन में जातिगत जनगणना का कोई जिक्र नहीं है। यह सरकार का एक और यू-टर्न है। केंद्र ने 30 अप्रैल को वादा किया था, लेकिन अब पीछे हट रही है।”
Modi govt has issued the notification for census
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) June 16, 2025
It’s a routine decadal exercise. In fact this one is delayed by almost 5 years – so what exactly is being lauded?
And where is the mention of ‘caste census’?
Don’t play games Mr Modi, caste census will happen- no matter what pic.twitter.com/NNVBwcVfaQ
पवन खेड़ा ने कहा, “तेलंगाना ने अपने सर्वे में तीन बार ‘जाति’ शब्द का जिक्र किया, लेकिन केंद्र के नोटिफिकेशन में एक बार भी नहीं। अगर यह जातिगत जनगणना है, तो ‘जाति’ शब्द कहाँ है?”
फोटो 1 – तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना की घोषणा की, जिसमें 'जाति' शब्द का तीन बार उल्लेख किया गया है।
— Pawan Khera 🇮🇳 (@Pawankhera) June 17, 2025
फोटो 2 – केंद्र की मोदी सरकार ने जनगणना (जाति जनगणना मानी जाने वाली) की घोषणा की, जिसमें 'जाति' शब्द का उल्लेख तक नहीं किया गया है। pic.twitter.com/FWXQG2YwvO
इन बयानों के जरिए कॉन्ग्रेस ने यह प्रचार शुरू किया कि सरकार अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के हितों के खिलाफ काम कर रही है। सोशल मीडिया पर कॉन्ग्रेस समर्थकों ने इसे और हवा दी। लेकिन क्या यह दावा सच है? आइए, तथ्यों की पड़ताल करते हैं।
सच्चाई: सरकार की प्रतिबद्धता और प्रेस रिलीज
केंद्र सरकार ने कई मौकों पर साफ किया है कि जनगणना 2027 में जातिगत गणना शामिल होगी। यह घोषणा सिर्फ बयानों तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की आधिकारिक रिलीज और गृह मंत्रालय के बयानों में भी दर्ज है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं-
30 अप्रैल 2025 की प्रेस रिलीज: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) की बैठक के बाद ऐलान किया कि जनगणना में जातिगत गणना होगी। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के लिए ऐतिहासिक कदम बताया।
शाह ने यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी दशकों तक सत्ता में रहते हुए जातिगत जनगणना के खिलाफ थे, लेकिन विपक्ष में रहते हुए इसे राजनीतिक मुद्दा बनाते रहे।
सामाजिक न्याय के लिए संकल्पित मोदी सरकार ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है।
— Amit Shah (@AmitShah) April 30, 2025
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में आज हुई CCPA की बैठक में, आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का निर्णय लेकर सामाजिक समानता और हर वर्ग के अधिकारों के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता का…
4 जून 2025 की प्रेस रिलीज: गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि जनगणना 2027 दो चरणों में होगी, और इसमें जातिगत गणना शामिल होगी। इस रिलीज में जनगणना की तारीखें और कुछ तकनीकी पहलुओं का भी जिक्र था।
यह प्रेस रिलीज PIB की वेबसाइट पर उपलब्ध है और इसे कोई भी पढ़ सकता है।

15 जून 2025 की प्रेस रिलीज: गृहमंत्री अमित शाह ने एक बार फिर पुष्टि की कि जनगणना में जातिगत गणना होगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए 34 लाख गणनाकर्ता और 1.3 लाख कर्मचारी तैनात किए जाएँगे। साथ ही, यह जनगणना डिजिटल तरीके से होगी।
इस रिलीज में यह भी कहा गया कि सरकार ने डेटा सुरक्षा के लिए सख्त नियम बनाए हैं।

16 जून 2025 को गृह मंत्रालय का जवाब: जब कॉन्ग्रेस ने नोटिफिकेशन में ‘जातिगत जनगणना’ शब्द न होने का मुद्दा उठाया, तो गृह मंत्रालय ने तुरंत जवाब दिया। मंत्रालय ने कहा, “कुछ लोग भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं कि नोटिफिकेशन में जातिगत गणना का जिक्र नहीं है। हम स्पष्ट करते हैं कि 30 अप्रैल, 4 जून और 15 जून 2025 की प्रेस रिलीज में पहले ही बता दिया गया था कि जनगणना में जातिगत गणना शामिल होगी।”
The notification to conduct Census has been published in the Official Gazette today. The Census will include Caste enumeration as well. However, some misleading information is being spread that there is no mention of caste census in the notification. It has already been mentioned… pic.twitter.com/hZ5cxV13xl
— Spokesperson, Ministry of Home Affairs (@PIBHomeAffairs) June 16, 2025
इन तथ्यों से साफ है कि सरकार ने बार-बार अपनी प्रतिबद्धता जताई है। कॉन्ग्रेस का यह कहना कि सरकार ने यू-टर्न लिया है, पूरी तरह गलत है।
गजट नोटिफिकेशन का सच: क्या होता है इसमें?
कॉन्ग्रेस ने गजट नोटिफिकेशन में ‘जातिगत जनगणना’ शब्द न होने को बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन यहाँ यह समझना जरूरी है कि गजट नोटिफिकेशन का मकसद क्या होता है। जनगणना अधिनियाम 1948 की धारा 3 के तहत गजट नोटिफिकेशन में सिर्फ यह घोषणा की जाती है कि जनगणना होगी और उसका संदर्भ तिथि (Reference Date) क्या होगी। इसमें सवालों की सूची या प्रक्रिया का जिक्र करना जरूरी नहीं होता।
16 जून 2025 के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि जनगणना 2027 में होगी।। देश के अधिकांश हिस्सों के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 होगी, जबकि लददाख और कुछ बर्फीले इलाकों (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड) के लिए यह 1 अक्टूबर 2026 होगी।
नोटिफिकेशन में न तो चरणों (हाउसालिस्टिंग और जनसंख्या गणना) का जिक्र है, न ही सवालों की कोई विवरण। इसका मतलब यह नहीं कि ये चरण या सवाल नहीं होंगे।
क्यों नहीं होता जिक्र: गजट नोटिफिकेशन का काम सिर्फ कानूनी घोषणा करना है। सवालों की सूची और प्रक्रिया बाद में तय होती है और इसे रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) और गृह मंत्रालय तैयार करते हैं।
उदाहरण के लिए – 2011 की जनगणना के नोटिफिकेशन में भी सवालों की कोई जिक्र नहीं था, लेकिन फिर भी कई तरह की जानकारियाँ इकट्ठी की गई थीं।
कॉन्ग्रेस का भ्रम: कॉन्ग्रेस ने यह जानते हुए भी कि नोटिफिकेशन में सवालों का जिक्र नहीं होता, ‘जातिगत जनगणना’ शब्द की गैरमौजूदगी को मुद्दा बनाया। यह एक तकनीकी बिंदु को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने की कोशिश है।
कॉन्ग्रेस का झूठ क्यों? राजननीतिक मकसद
कॉन्ग्रेस का यह प्रचार सिर्फ भ्रामक ही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित राजनैतिक रणनीति का हिस्सा है। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं-
चुनावी रणनीति का हथियार: 2024 के लोकसभा चुननेन में कॉन्ग्रेस ने जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाया। राहुल गाँधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा दिया और इसे SC, ST और OBC समुदायों के बीच लोकप्रिय करने की कोशिश की।
लेकिन जब केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को अपने हाथ में लिया और जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी, तो कॉन्ग्रेस का यह सबसे बड़ा हथियार छिन गया। इससे कॉन्ग्रेस बौखलाहट में आ गई।
तेलंगाना मॉडल का गलत प्रचार: कॉन्ग्रेस बार-बार तेलंगाना के सर्वे को ‘जातिगत जनगणना’ का मॉडल बताती है। पवन खेड़ा ने तेलंगाना के नोटिफिकेशन में ‘जाति’ शब्द के इस्तेमाल को केंद्र के नोटिफिकेशन से तुलना की। लेकिन सच यह है कि तेलंगाना का सर्वे एक स्थानीय सर्वे था, न कि राष्ट्रीय जनगणना।
भाजपा को बदनाम करना: कॉन्ग्रेस का दावा है कि भाजपा SC, ST और OBC के खिलाफ है। सुप्रिया श्रीनेत ने यह तक कहा कि भाजपा ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जातिगत जनगणना का विरोध किया। लेकिन यह आधा सच है। उस समय सरकार ने कहा था कि सिर्फ SC और ST की गणना नीति के तहत की जाती है, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और सरकार ने स्पष्ट रूप से जातिगत गणना को मँजूरी दे दी है।
कॉन्ग्रेस इस पुराने बयान को तोड़-मरोड़कर यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि भाजपा का सामाजिक न्याय में कोई विश्वास नहीं।
SC/ST/OBC वोट बैंक की राजनीति: कॉन्ग्रेस के लिए SC, ST और OBC समुदाय एक बड़ा वोट बैंक हैं। राहुल गाँधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ जैसे नारों के जरिए इन समुदायों को लुभाने की कोशिश की। लेकिन जब सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है, तो कॉन्ग्रेस ने नया नरेटिव गढ़ना शुरू कर दिया।।
जनगणना और जाति सर्वे: अंतर को समझें
कॉन्ग्रेस बार-बार तेलंगाना और बिहार के सर्वे को राष्ट्रीय जनगणना से जोड़कर भ्रम फैला रही है। लेकिन इन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं-
राष्ट्रीय जनगणना
क्या है: यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, जो संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत आती है। यह हर 10 साल में होती है और पूरे देश की जनसंख्या का हिसाब-किताब रखती है।
उद्देश्य: जनसंख्या, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जानकारी इकट्ठी करना, ताकि नीतियाँ बनाई जा सकें। इसमें अब जातिगत गणना भी शामिल होगी।
प्रक्रिया
चरण 1: हाउसलिस्टिंग ऑपरेशन (HLO): घरों की स्थिति, संपत्ति और सुविधाओं की जानकारी।
चरण 2: जनसंख्या गणना (PE): हर व्यक्ति की जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जानकारी।
विशेषता: यह डिजिटल होगी, जिसमें मोबाइल ऐप और सेल्फ-एन्यूमरेशन की सुविधा होगी। डेटा सुरक्षा के लिए सख्त नियम होंगे।
उदाहरण: 2011 की जनगणना, जिसमें SC और ST की गणना की गई थी। अब 2027 में सभी जातियों की गणना होगी।
जाति सर्वे
क्या है: यह राज्य सरकारें अपने स्तर पर करती हैं, जैसे बिहार (2023) और तेलंगाना (2025) में हुआ।
उद्देश्य: स्थानीय स्तर पर जातिगत आँकड़े इकट्ठा करना, ताकि आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर बनाया जा सके।
प्रक्रिया: यह जनगणना से छोटा और सीमित होता है। इसमें सिर्फ जाति और कुछ सामाजिक-आर्थिक जानकारी पर फोकस होता है।
उदाहरण
बिहार (2023): नीतीश कुमार की सरकार ने सर्वे कराया, जिसमें OBC और EBC 63% से ज्यादा, SC 19.65% और सामान्य वर्ग 15.52% पाए गए। इसका मकसद आरक्षण बढ़ाना था।
तेलंगाना (2025): कॉन्ग्रेस सरकार ने सर्वे कराया, जिसमें BC (पिछड़ा वर्ग) 56.33% पाए गए। यह भी स्थानीय स्तर का था।
जातिगत जनगणना और जातिगत सर्वे में अंतर
स्कोप: जनगणना पूरे देश के लिए होती है, जबकि सर्वे किसी एक राज्य तक सीमित होता है।।
प्रक्रिया: जनगणना में कई तरह की जानकारियाँ इकट्ठी की जाती हैं, जबकि सर्व में सिर्फ जाति और कुछ आर्थिक जानकारी।
कानूनी आधार: जनगणना का आधार जनगणना अधिनियाम 1948 है, जबकि सर्वे का आधार राज्य सरकार का नीतिगत फैसला होता।
विश्वसनीयता: जनगणना का डेटा ज्यादा विश्वसनीय होता है, क्योंकि यह एकसमान और व्यापक स्तर पर इकट्टा किया जाता।
कॉन्ग्रेस का तेलंगाना और बिहार के सर्वे को राष्ट्रीय जनगणना से जोड़ना सिर्फ भ्रम फैलाने की कोशिश है। यह राष्ट्रीय जनगणना की तुलना एक छोटे से स्थानीय सर्वे से करना है, जो पूरी तरह गलत है।
जन-गणना की पूरी प्रक्रिया: क्या-क्या होगा?
जनगणना 2027 दो चरणों में होगी, और यह पहली बार पूरी तरह डिजिटल होगी। यहाँ प्रक्रिया और सवालों का विस्तार से विवरण है-
चरण 1: हाउस लिस्टिंग ऑपरेशन (HLO)
समय: अप्रैल 2026 से सितंबर 2026 तक।
क्या पूछा जाएगा?
घर की स्थिति: घर पक्का, कच्चा या अस्थाई। कितने कमरे, छत और दीवार की सामग्री।
संपत्ति: टीवी, फ्रिज, मोबाइल, वाहन (स्कूटी, कार, ट्रैक्टर), इंटरनेट कनेक्शन आदि।
सुविधाएँ: पीने का पानी (नल, कुआँ, हैंडपंप), बिजली, शौचालय, रसोई, ड्रेनेज।
घर का उपयोग: आवासीय, व्यावसायिक या अन्य (दुकान, गोदाम, स्कूल)।
उददेश्य: देश के आवासीय ढाँचे और जीवन स्तर को समझना। इससे स्लम सुधार, आवास योजनाएँ और बुनियादी सुविधाओं की नीतियाँ बनती हैं।
कैसे होगा: गणनाकर्ता घर-घर जाएँगे और मोबाइल ऐप में जानकारी दर्ज करेंगे। लोग खुद भी ऑनलाइन जानकारी भर सकते हैं।
चरण 2: जनसंख्या गणना (PE)
समय: फरवरी 2027 में
क्या पूछा जाएगा?
जनसांख्यिकीय जानकारी
नाम, उम्र, लिंग, वैवाहिक स्थिति (शादीशुदा, अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा/विधुर)।
जन्म स्थान, माता-पिता का जन्म स्थान और प्रवास की जानकारी (क्या आप कहीं और से आए हैं?)।
शिक्षा: पढ़ाई का स्तर (अनपढ़, प्राइमरी, हाई स्कूल, ग्रेजुएट, आदि)।
क्या स्कूल/कॉलेज में दाखिल हैं। पढ़ते हैं या छोड़ चुके हैं।
रोजगार: नौकरी या व्यवसाय का प्रकार: सरकारी, निजी, मजदूरी, खेती, आदि।
आय का स्तर, बेरोजगारी की स्थिति।
काम के घंटे और काम की स्थिति (स्थाई, अस्थाई, दिहाड़ी)।
जातिगत जानकारी: हर व्यक्ति की जाति दर्ज की जाएगी। इसके लिए एक ‘अन्य’ कॉलम होगा, जिसमें जातियों की ड्रॉप-डाउन लिस्ट होगी।
यह पहली बार होगा जब स्वतंत्र भारत में सभी जातियों की गणना होगी। पहले सिर्फ SC और ST की गणना होती थी।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति: परिवार की आय, संपत्ति और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ (राशन कार्ड, पेंशन, उज्जवला)।
क्या परिवार BPL (गरीबी रेखा से नीचे) में है। कितना है।
सांस्कृतिक जानकारी: मातृभाषा, दूसरी भाषाएँ, धर्म।
पारंपरिक रीति-रिवाज या सांस्कृतिक प्रथाएँ (वैकल्पिक)।
उददेश्य: यह चरण देश की जनसंख्या के हर पहलू को समझने के लिए होता है। इससे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक नीतियाँ बनती हैं। जातिगत गणना से OBC, SC/ST की सही संख्या पता चलेगी, जिससे आरक्षण और कल्याणकारी योजनाएँ बेहतर होंगी।
डिजिटल प्रक्रिया
मोबाइल ऐप: गणनाकार्ता मोबाइल ऐप के जरिए डेटा दर्ज करेंगे। यह पहली बार होगा जब जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी।
सेल्फ-एन्यूमेरेशन: लोग ऑनलाइन पोर्टल या ऐप पर खुद अपनी जानकारी भर सकते हैं। इससे प्रक्रिया तेज और पारदर्शी होगी।
डेटा सुरक्षा: डेटा कलेक्शन, ट्रांसमिशन और स्टोरेज में सख्त नियम होंगे। डेटा लीक से बचने के लिए साइबर सिक्योरिटी के उपाय होंगे।
जातिगत गणना का महत्व
ऐतिहासिक कदम: स्वतंत्र भारत में पहली बार सभी जातियों की गणना होगी। आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश सरकार ने ऐसा किया था।
उददेश्य: OBC और अन्य समुदायों की सही संख्या जानना, ताकि आरक्षण, शिक्षा और रोजगार में उनके हक को सुनिश्चित किया जा सके।
प्रक्रिया: जातिगत डेटा को एक अलग कॉलम में दर्ज किया जाएगा। हर व्यक्ति अपनी जाति बता सकेगा और एक ड्रॉप-डाउन लिस्ट होगी जिसमें हजारों जातियाँ शामिल होंगी।
कॉन्ग्रेस का इतिहास: जातिगत जनगणना पर क्या रहा रुख?
कॉन्ग्रेस दावा करती है कि वह SC, ST और OBC के हितों की रक्षा करती है। राहुल गाँधी ने 2024 के चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन कॉन्ग्रेस का इतिहास कुछ और कहता है-
1951 से 2011 तक: कॉन्ग्रेस कई दशकों तक सत्ता में रही, लेकिन उसने कभी जातिगतिगत जनगणना नहीं कराई। सिर्फ SC और ST की गणना होती थी। OBC की गणना का कोई सटीक डेटा नहीं था।
1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में भी कॉन्ग्रेस ने रोड़े अटकाए। यहाँ तक कि राजीव गाँधी ने संसद में इसके विरोध में जोरदार दलीलें दी थी।
2011 का SECC (सामाजिक-आर्थिक और जातिगत सर्वेक्षण): यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत सर्वेक्षण शुरू किया, लेकिन यह पारदर्शी नहीं था। डेटा पूरी तरह सार्वजनिक नहीं हुआ और कई राज्यों ने इसे अव्यवहारिक बताया।
कॉन्ग्रेस ने इस डेटा का इस्तेमाल नीतियाँ बनाने में नहीं किया, जिससे इसका मकसद अधूरा रहा।
2024 में प्रचार: राहुल गाँधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा दिया और जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन जब केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है, तो कॉन्ग्रेस ने इसे यू-टर्न बताकर भ्रम फैलाना शुरू कर दिया है।
कॉन्ग्रेस ने यह भी वादा किया कि वह आरक्षण की 50% की सीमा हटाएगी, लेकिन यह अव्यवहारिक और कानूनी रूप से जटिल है।
कॉन्ग्रेस का यह रवैया दिखाता है कि वह इस मुद्दे को सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करती है। जब सरकार ने उनकी माँग पूरी कर दी, तो उन्होंने नया झूठ गढ़ लिया।
तेलंगाना और बिहार के सर्वे: विस्तार से समझें
कॉन्ग्रेस बार-बार तेलंगाना और बिहार के सर्वे को राष्ट्रीय जनगणना का मॉडल बताती है। लेकिन ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं। यहाँ विस्तार से समझते हैं-
बिहार (2023)
क्या हुआ: नीतीश कुमार की सरकार ने जाति सर्वे कराया। इसमें OBC और EBC 63.13%, SC 19.65%, ST 1.68%, और सामान्य वर्ग 15.52% पाए गए।
उददेश्य: आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 75% करना। बिहार ने इसके आधार पर नया आरक्षण कानून बनाया।
प्रक्रिया: यह एक सीमित सर्वे था, जिसमें सिर्फ जाति और कुछ आर्थिक जानकारी इकट्ठी की गई। इसमें राष्ट्रीय जनगणना की तरह व्यापक डेटा नहीं था।
विवाद: कुछ लोगों ने डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी।
तेलंगाना (2025)
क्या हुआ: कॉन्ग्रेस सरकार ने सर्वे कराया, जिसमें BC (पिछड़ा वर्ग) 64.33%, SC 20.37%, ST 11.76%, और सामान्य वर्ग 23.52% पाए गए।
उददेश्य: स्थानीय स्तर पर आरक्षण और कल्याणकारी योजनाएँ। कॉन्ग्रेस यह दावा करती है कि यह सर्वे राष्ट्रीय जनगणना का मॉडल है।
प्रक्रिया: यह भी एक स्थानीय सर्वे था, जिसमें सीमित जानकारी इकट्ठी की गई। इसमें जनगणना की तरह व्यापक सवाल नहीं थे।
विवाद: कॉन्ग्रेस ने इसे केंद्र के खिलाफ प्रचार के तौर पर इस्तेमाल किया, जो गलत है।
क्यों गलत है तुलना?
राष्ट्रीय जनगणना पूरे देश के लिए होती है और इसका डेटा एकसमान होता है। सर्वे स्थानीय होते और उनके डेटा में एकरूपता नहीं होती।
जनगणना का मकसद नीति निर्माण है, जबकि सर्वे का मकसद स्थानीय जरूरतें। दोनों की प्रक्रिया और स्कूल अलग हैं।
कॉन्ग्रेस का यह दावा कि तेलंगाना का सर्व राष्ट्रीय जनगणना का मॉडल है, सिर्फ भ्रक्ति फैलाने की कोशिश है।
जनगणना का महत्व और प्रभाव
जनगणना 2027 न सिर्फ जातिगत आँकड़े देगी, बल्कि देश के विकास के लिए कई नीतियों को आकार देगी। इसके कुछ प्रमुख प्रभाव होंगे:
सामाजिक न्याय: जातिगत आँकड़ों से OBC, SC और ST की सही संख्या पता चलेगी। इससे आरक्षण, शिक्षा और रोजगार में उनके हक को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
यह डेटा सामाजिक असमानता को कम करने में मदद करेगा।
लोकसभा सीटों का पुनर्गठन: 2026 के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों का पुनर्गठन होगा। जनगणना का डेटा इसके लिए आधार होगा।
इससे जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व में बदलाव आएगा।
महिला आरक्षण: नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करने में यह डेटा मदद करेगा।
नीतिगत फैसले: शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के लिए सटीक डेटा मिलेगा।
इससे सरकारें बेहतर योजनाएँ बना सकेंगी।
आर्थिक नियोजन: जनगणना का डेटा GDP, गरीबी और बेरोजगारी जैसे आर्थिक संकेतकों को समझने में मदद करता है।
कॉन्ग्रेस का प्रचार क्यों गलत है?
जनगणना 2027 एक ऐतिहासिक कदम है, जो न सिर्फ देश की जनसंख्या का सही आँकड़ा देगा, बल्कि सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को भी बढ़ावा देगा। जातिगत गणना से OBC, SC और ST समुदायों की सही संख्या पता चलेगी, जिससे उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित होगी। लेकिन कॉन्ग्रेस इस मुद्दे पर भ्रामक प्रचार कर रही है, ताकि वह SC, ST और OBC समुदायों के बीच भ्रम फैलाकर वोट हासिल कर सके।
कॉन्ग्रेस का यह दावा कि गजट नोटिफिकेशन में ‘जातिगत जनगणना’ का जिक्र नहीं है, पूरी तरह भ्रामक है। सरकार ने पहले ही 30 अप्रैल, 4 जून और 15 जून 2025 की प्रेस रिलीज में स्पष्ट कर दिया था कि जनगणना में जातिगत गणना होगी। गजट नोटिफिकेशन का काम सिर्फ जनगणना की घोषणा करना है, न कि सवालों की सूची देना। कॉन्ग्रेस इस तकनीकी बिंदु का फायदा उठाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है।
इसके अलावा, कॉन्ग्रेस का तेलंगाना और बिहार के सर्वे को राष्ट्रीय जनगणना से जोड़ना भी गलत है। ये सर्वे स्थानीय स्तर के थे, जबकि जनगणना एक राष्ट्रीय प्रक्रिया है। कॉन्ग्रेस का यह प्रचार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए है, ताकि वह SC, ST और OBC समुदायों के बीच भ्रम फैलाकर वोट हासिल कर सके।
जनगणना 2027 एक ऐतिहासिक कदम है, जो न सिर्फ देश की जनसंख्या का सही आँकड़ा देगा, बल्कि सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को भी बढ़ावा देगा। कॉन्ग्रेस को इस मुद्दे पर झूठ फैलाने की बजाय सरकार के साथ मिलकर इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में योगदान देना चाहिए।