Friday, May 10, 2024
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आप आदेश मानते नहीं, अहंकार में रहते हैं, भेज देंगे जेल: दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज को हाई कोर्ट ने फटकारा

दिल्ली हाई कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता बेजोन कुमार मिश्रा द्वारा दाखिल पीआईएल पर सुनवाई कर रही है। इसी सुनवाई के दौरान पिछली तारीख में कोर्ट ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार को तलब किया था। अब कोर्ट ने दोनों को जमकर फटकारा है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने न्यायिक आदेशों का पालन न करने पर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार को चेताया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर वो आदेशों का पालन नहीं करते हैं और अपने अहंकार में रहते हैं, तो कोर्ट उन्हें जनहित को देखते हुए जेल भेजने में तनिक भी संकोच नहीं करेगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने सौरभ भारद्वाज को डांट भी लगाई और कहा कि कोर्ट को वो अपनी राजनीतिक लड़ाई में मोहरा न बनाए। हाई कोर्ट ने कहा कि हम जज भले हैं और नेता नहीं हैं, लेकिन नेता कैसे सोचते हैं, ये बात हमें अच्छे से पता है।

दिल्ली हाई कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता बेजोन कुमार मिश्रा द्वारा दाखिल पीआईएल पर गुरुवार (21 मार्च 2024) को सुनवाई कर रही है। इसी सुनवाई के दौरान पिछली तारीख में कोर्ट ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार को तलब किया था। अब कोर्ट ने दोनों को जमकर फटकारा है और कहा है कि दोनों जनता के सेवक हैं, ऐसे में अहंकार को किनारे पर रखें और जनता के हित के हिसाब से फैसले लें। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो जरूरत पड़ने पर हम आप दोनों को जेल भेज देंगे और किसी तीसरे पक्ष को इस काम को करने के लिए कहेंगे।

ये पीआईएल इस बात के लिए दाखिल की गई थी कि दिल्ली में 20-25 हजार पैथोलॉजी लैब खुली हैं, जो लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रही हैं। पीआईएल की तरफ से अधिवक्ता शशांक देव सुधी ने दलील दी। उन्होंने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत प्रयोगशालाएं और डायग्नोस्टिक केंद्र अयोग्य तकनीशियनों के साथ काम कर रहे थे और मरीजों को गलत रिपोर्ट दे रहे थे। दरअसल, सौरभ भारद्वादज ने कोर्ट में कहा कि दिल्ली स्वास्थ्य विधेयक को मई 2022 में ही अंतिम रूप दे दिया गया था, कोर्ट ने पूछा कि इसे अभी तक मंजूरी के लिए केंद्र के पास क्यों नहीं भेजा गया। कोर्ट ने कहा कि अगर इसमें समय लगेगा, तो दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार के कानून- क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 को लागू करने पर विचार करना चाहिए।

भारद्वाज की यह दलील कि कोर्ट की कृपा से सरकार को विधेयक को अधिनियमित करने में मदद मिलेगी, से कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की और कहा, “आपको लगता है कि हम इस खेल में एक मोहरा हैं और आप इसे रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। हम किसी के प्यादे नहीं हैं।” इस ग़लतफ़हमी को दूर करो कि तुम अदालत की प्रक्रिया का उपयोग करोगे।”

हाई कोर्ट ने फटकार लगते हुए आगे कहा कि हमारे साथ ऐसा मत करो नहीं तो तुम दोनों जेल जाओगे। अगर इससे आम आदमी को फायदा नहीं होगा तो हमें तुम दोनों को जेल भेजने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। तुम दोनों बड़ा अहंकार नहीं कर सकते, तुम दोनों ही नौकर हो। कोर्ट ने कार्यवाही के दौरान कहा कि सरकार और आप दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आम आदमी को फायदा हो। आप क्या कर रहे हैं? लोगों को उनके खून के नमूनों की गलत रिपोर्ट मिल रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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