प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के आर्थिक कुप्रबन्धन और परमिट राज लाने को लेकर कॉन्ग्रेस पर हमला बोला है। पीएम मोदी ने आर्थिक मोर्चे पर भारत की बदनामी करवाने के लिए गाँधी परिवार को दोषी ठहराया है। पीएम मोदी ने अर्थव्यवस्था को लेकर भारतीयों की हुई बदनामी पर भी कॉन्ग्रेस को घेरा।
राज्यसभा में गुरुवार (6 फरवरी, 2025) को प्रधानमंत्री मोदी बजट अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर बोल रहे थे। पीएम मोदी ने इस दौरान कॉन्ग्रेस की तमाम नीतियों की आलोचना के साथ जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के कार्यकाल के दौरान धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था को लेकर बात की।
पीएम मोदी ने कहा, “शाही परिवार के आर्थिक कुप्रबन्धन और गलत नीतियों के चलते पूरे समाज में भारतीयों को दोषी ठहराया गया और बदनाम किया गया। जबकि इतिहास देखें तो भारत के समाज में स्वभाव में लाइसेंस और परमिट नहीं थी। हम खुले समाज में विश्वास करते थे। हम दुनिया भर में मुक्त व्यापार और फ्री ट्रेड करते थे।”
दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "शाही परिवार के आर्थिक कुप्रबंधन और गलत नीतियों के कारण पूरे समाज को दुनिया भर में दोषी ठहराया गया और बदनाम किया गया…"
— IANS Hindi (@IANSKhabar) February 6, 2025
(वीडियो सौजन्य: संसद टीवी) pic.twitter.com/SmqzMQlPW8
पीएम मोदी का यह हमला कॉन्ग्रेस राज के दौरान भारत की धीमी विकास दर और ‘लाइसेंस राज’ के चलते देश के औद्योगिकिकीकरण में हुई बाधा को लेकर था। गौरतलब है कि भारत आजाद होने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को बंद किए हुए था और स्थिति काफी खराब होने के बाद इसमें 1991 में सुधार किया गया।
जिस आर्थिक कुप्रबन्धन और उससे हुई बदनामी की बात प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं, उसका एक बड़ा उदाहरण ‘हिन्दू विकास दर’ शब्द है। कॉन्ग्रेस राज की नीतियों के चलते भारत की धीमी विकास दर को ‘हिन्दू विकास दर’ कहा जाने लगा था। नेहरू और इंदिरा सरकार की विफलता को छुपाने के लिए यह शब्द कम्युनिस्ट अर्थशास्त्रियों ने गढ़ा था।
कई दशकों की सरकार की विफलता को बताने की जगह तब ‘हिन्दू विकास दर’ कह कर पूरे भारत को धीमा और हिन्दुओं को आलसी बताने का प्रयास किया गया था। देश के आर्थिक विकास की जिम्मेदारी का पूरा ठीकरा हिन्दुओं पर रख दिया गया था। यह शब्द जब तब अब भी चर्चा में आता है।
‘हिंदू विकास दर’ शब्द साल 1978 में तथाकथित अर्थशास्त्री राज कृष्ण द्वारा गढ़ा गया था। यह उन्होंने साल 1950 से 1980 तक जीडीपी वृद्धि दर का उल्लेख करने के लिए तैयार किया था। ‘हिंदू विकास दर’ पूरी तरह से एक गलत शब्द है, क्योंकि उस समय और बाद में भी देश की अर्थव्यवस्था में हिंदुओं का सबसे बड़ा योगदान था।
1950-80 के दशक तक देश के विकास को लेकर कई प्रयास किए जा रहे थे। हालाँकि इसके बाद भी विकास कमोबेश स्थिर रहा। वास्तव में उस दौरान विकास दर करीब 3.5% थी। इसलिए उस समय स्थिर विकास दर को ‘हिंदू विकास दर’ कहते हुए एक गलत शब्द के प्रयोग की शुरुआत की गई।
इस हिन्दू विकास दर को असल में अर्थशास्त्रियों को नेहरू विकास दर कहना चाहिए था। जवाहर लाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। वह 1964 तक पद पर बने रहे। अधिकांश आर्थिक नीतियाँ नेहरू द्वारा तय या बनाई गई थीं। इसलिए, उनके शासन के दौरान और उसके बाद के वर्षों के आर्थिक विकास के लिए ‘नेहरू विकास दर’ शब्द सही प्रतीत होता है।
नेहरू समाजवाद के प्रति इतने जुनूनी थे कि भारत सरकार होटल भी चलाती थी। उस समय बिड़ला और टाटा जैसे मेहनती व्यक्तियों को अपने व्यवसाय का विस्तार करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई थी। नेहरू की इस अदूरदर्शी दृष्टि को विकास की धीमी दर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। पीएम मोदी ने संसद में इसी बात को दोहराया है।
नेहरूवादी नीतियों को उनकी बेटी इंदिरा गाँधी ने भी आगे बढ़ाया। इंदिरा गाँधी ने बैंकिंग, कपड़ा, कोयला, इस्पात, ताँबा जैसे क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसके चलते इस ‘हिन्दू विकास दर’ का दंश देश कई दशकों तक झेलता रहा था। ऐसे में पीएम मोदी का यह कहना एकदम सही है कि शाही परिवार ने भारत की वैश्विक मंच पर बदनामी करवाई।