Thursday, April 25, 2024
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‘गाँव जाकर अपने शिक्षकों के पाँव छूना मेरे जीवन का सबसे यादगार पल’: बोले राष्ट्रपति कोविंद – अपनी पूरी क्षमता से निभाए दायित्व, देशवासियों का आभार

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा इन 5 सालों के सफर में उनके सबसे यादगार पल वह थे जब उन्होंने अपने पैतृक गाँव का दौरा किया और कानपुर के विद्यालय में वयोवृद्ध शिक्षकों के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया।

राष्ट्रपति के तौर पर रामनाथ कोविंद ने आज (24 जुलाई 2022) आखिरी बार देश को संबोधित किया। इस संबोधन में उन्होंने देशवासियों के प्रति और जन प्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि कानपुर के गाँव से निकल यदि वो आज राष्ट्रपति के तौर पर देश को संबोधित कर पा रहे हैं तो इसके लिए वह लोकतांत्रिक व्यवस्था को नमन करते हैं।

उन्होंने कहा, “आज से 5 साल पहले, आप सबने मुझ पर अपार भरोसा जताया था और अपने निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों के माध्यम से मुझे भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना था। मैं आप सभी देशवासियों के प्रति तथा आपके जन-प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।”

अपनी पृष्ठभूमि को याद करते हुए और राष्ट्रपति पद तक पहुँचने के सफर को लेकर वह बोले, “कानपुर देहात जिले के परौंख गाँव के अति साधारण परिवार में पला-बढ़ा राम नाथ कोविंद आज आप सभी देशवासियों को संबोधित कर रहा है, इसके लिए मैं अपने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था की शक्ति को शत-शत नमन करता हूँ।”

उन्होंने बताया कि इन 5 सालों के सफर में उनके सबसे यादगार पल वह थे जब उन्होंने अपने पैतृक गाँव का दौरा किया और कानपुर के विद्यालय में वयोवृद्ध शिक्षकों के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। वह बोले, “अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। मैं युवा पीढ़ी से यह अनुरोध करूँगा कि अपने गाँव या नगर तथा अपने विद्यालयों तथा शिक्षकों से जुड़े रहने की इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहें।”

अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “19वीं शताब्दी के दौरान पूरे देश में पराधीनता के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए। देशवासियों में नई आशा का संचार करने वाले ऐसे विद्रोहों के अधिकांश नायकों के नाम भुला दिए गए थे। अब उनकी वीर-गाथाओं को आदर सहित याद किया जा रहा है।”

उन्होंने 20वीं सदी के जननायकों को याद करते हुए कहा कि 20वीं सदी की शुरुआत में जब रवींद्र नाथ टैगोर देशवासियों को सांस्कृतिक विरासतों से जोड़ रहे थे, वहीं बाबा साहेब समाज के समानता के आदर्श की पुरजोर वकालत कर रहे थे। तिलक और गोखले से लेकर भगत सिंह और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तक; जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुकर्जी से लेकर सरोजिनी नायडू और कमलादेवी चट्टोपाध्याय तक – ऐसी अनेक विभूतियों का केवल एक ही लक्ष्य के लिए तत्पर होना, मानवता के इतिहास में अन्यत्र नहीं देखा गया है।

उन्होंने संविधान सभा में पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाली 15 महिलाओं का जिक्र किया। साथ ही कहा, “संविधान सभा के सदस्यों के अमूल्य योगदान से निर्मित भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ रहा है।”

आगे राष्ट्रपति कोविंद ने देश को पूर्वजों के पद चिह्नों पर चलने की सलाह दी और 21वीं सदी को लेकर कहा कि अब भारत सक्षम हो रहा है। वह बोले, “अपने कार्यकाल के 5 वर्षों के दौरान, मैंने अपनी पूरी योग्यता से अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। मैं डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर एस. राधाकृष्णन और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसी महान विभूतियों का उत्तराधिकारी होने के नाते बहुत सचेत रहा हूँ।”

भाषण के अंत में उन्होंने बिगड़ती जलवायु, पर्यावरण पर चिंता जताई और इनके संरक्षण को कर्तव्य बताया। उन्होंने सभी देशवासियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए भारत माँ को नमन कर राष्ट्रपति के तौर पर अपने अंतिम भाषण को समाप्त किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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