अंतरराष्ट्रीय संस्था इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) ने आतंकी घटनाओं को ध्यान में रखते ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स (The Global Terrorism Index -GTI) के तहत विश्व के 20 प्रमुख आंतकी संगठनों की सूची जारी की है। इस सूची में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का भी नाम है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा हैं। इसके केंद्रीय नियंत्रण आयोग में पन्नियन रवींद्रन, सीआर बख्शी, सीए कुरियन, जोगिंदर दयाल, पीजे चंद्रशेखर राव, बिजॉय नारायण मिश्रा सहित कई प्रमुख नाम शामिल हैं।
🆕Global Terrorism Index 2023: Terrorist attacks more deadly, despite decline in the West.
— IEP Global Peace Index (@GlobPeaceIndex) March 14, 2023
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ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित थिंक टैंक IEP की ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2022 में CPI को इस्लामिक स्टेट, बोको रहम, अल शहाब जैसे दुनिया के 20 खूंखार आतंकी संगठनों वाली सूची में 12वें स्थान रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में सीपीआई ने 61 हमले किए। इन हमलों में 39 लोगों की मौत हो गई, जबकि 30 लोग घायल हो हुए।
बता दें कि CPI भारत का प्रमुख राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना साल 1920 में एम.एन. रॉय ने एम.पी.टी आचार्य, अबनी मुखर्जी और मोहम्मद अली आदि लोगों के साथ मिलकर की थी। आगे चलकर कम्युनिस्ट पार्टी के कई धड़े बन गए। इसका एक धड़ा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) भी भारतीय राजनीति में सक्रिय है। इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) ने शायद CPI लिखकर किसी एक को नहीं, बल्कि अनेकों नाम वाली वामपंथी पार्टियों और उनकी खूनी राजनीति को बताने की कोशिश की है।
वामपंथी संगठनों में से एक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के हिंसक कारनामों की वजह से उसे बहुत पहले प्रतिबंधित कर दिया गया है। बाद में साल 2004 में CPI-ML, माओइस्ट कॉम्युनिस्ट सेंटर (MCC) और पीपुल्स वार ग्रुप को मिलाकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) बनाई गई। इसे साल 2009 में आतंकी संगठन घोषित कर दिया गया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का निर्माण जिन संगठनों को मिलाकर हुआ है, वे बेहद खूंखार संगठन हैं। बिहार में इन्होंने बड़े पैमाने पर नरसंहार को अंजाम दिया। CPI-ML के तत्कालीन प्रमुख विनोद मिश्रा के नेतृत्व में बिहार में बड़े पैमाने पर हिंसा को अंजाम दिया गया। इनमें ईचरी कांड और सेनारी कांड महत्वपूर्ण है। परिणामस्वरूप रणवीर सेना का उदय हुआ। हालाँकि, MCC और CPI (M) अभी भी बिहार और झारखंड में सक्रिय हैं।
आजकल ये राजनीतिक मुखौटे के रूप में रहकर हिंसा को अंजाम देते हैं। एमसीसी ने बिहार के औरंगाबाद में अभी पिछले महीने ही कई नेताओं को धमकी दी। ये सभी नेता सवर्ण हैं। हालाँकि, बिहार और झारखंड में राजनीतिक फायदे के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है। किसी भी सरकार ने इस खूंखार नक्सली संगठनों को जड़ से खात्म करने की कोशिश नहीं की।
फरवरी 2023 में जहानाबाद से बीजेपी सांसद सुशील सिंह को नक्सलियों ने धमकी देते हुए गाँव में पोस्टर चिपकाए थे। इसके अलावा, जिले के गोह के पूर्व विधायक रणविजय सिंह को भी नक्सलियों ने धमकी दी थी। ये नक्सली औरंगाबाद में ना सिर्फ बड़े पैमाने पर घटना को अंजाम देते हैं, बल्कि झारखंड में सटे पलामू के जंगलों में आराम की जिंदगी भी जीते हैं।
फरवरी 2014 में खूंखार नक्सली राम प्रवेश बैठा उर्फ सतीश और प्रवेश मिश्रा को गिरफ्तार किया था। प्रवेश मिश्रा MCC के खूंखार नक्सली प्रमोद मिश्रा का भाई है। प्रमोद मिश्रा बीबीजी, अग्नि और बन बिहारी के नाम से कुख्यात था। प्रमोद मिश्रा के नेतृत्व में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नेतृत्व में बिहार में भयंकर तबाही मचाई गई। साल 2006 में अमेरिका के आतंकियों की सूची में उसका नाम था।
प्रमोद मिश्रा को मई 2008 में गिरफ्तार किया था। हालांकि, सबूतों के अभाव में उसे अगस्त 2017 में रिलीज कर दिया गया। इसके बाद से वह गायब है। माना जाता है। कि फिर से नक्सली गतिविधियों में शामिल है। इसके बाद, साल 2022 में कुख्यात जोनल कमांडर बनवारी सहित चार खूंखार नक्सलियों को बिहार पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
माओवादियों की हिंसा आज ना सिर्फ बिहार, बल्कि झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा आदि राज्य प्रमुख हैं। यहाँ के विभिन्न नामों से पहचाने जाने वाले नक्सली सरकार और पुलिस प्रशासन के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। ये अक्सर पुलिस और केंद्रीय बलों को निशाना बनाते रहे हैं।
ये उन दलों की कहानी है, जो माओवाद के नाम पर बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में खून की होली खेलते रहे। इसके बावजूद CPI जैसे राजनीतिक संगठनों ने भी अपने तरीके से हत्या को अंजाम दिया। इसके लिए बंगाल में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु का नाम भी लिया जाता है।
पश्चिम बंगाल में सन 1979 में तत्कालीन ज्योति बसु सरकार की पुलिस व सीपीएम कैडरों ने बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों के ऊपर निर्ममता से गोलियाँ बरसाई थीं। जान बचाने के लिए दर्जनों लोग समुद्र में कूद गए थे। अब तक इस बात का कहीं कोई ठोस आँकड़ा नहीं मिलता कि उस मरीचझापी नरसंहार में कुल कितने लोगों की मौत हुई थी। प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि इस दौरान 1000 से ज्यादा लोग मारे गए। लेकिन, सरकारी फाइल में केवल दो मौत दर्ज की गई।
5 मार्च 2008 को कन्नूर जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक के हवाले से उन्होंने अपने आलेख में लिखा है कि जो पिनरायी विजयन अभी केरल की मार्क्सवादी सरकार के मुख्यमंत्री हैं, उस समय सीपीएम के सेक्रेटरी थे। उन्होंने कहा थ कि विजयन ने अपने कार्यकर्ताओं को साफ संदेश दिया था कि केरल में पश्चिम बंगाल के मॉडल को अपनाया जाना चाहिए।
इसी तरह केरल में भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या आम है। वहाँ भाजपा और हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों की हत्या कर दी जाती है। अभी दो दिन पहले दिनेश और विष्णु नाम के 2 भाजपा कार्यकर्ता को घायल हो गए। दोनों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसी तरह नवम्बर 2021 में 26 साल के युवा RSS कार्यकर्ता संजीत की हत्या उनकी पत्नी के आगे ही कर दी गई थी। घटनास्थल पलक्कड़ का इल्लापुल्ली था।
इसके अलावा 16-17 फरवरी 2022 की रात लगभग 12.30 पर बीजेपी कार्यकर्ता सरथ कुमारपुरम को चाकुओं से गोद दिया गया था। सरथ कुमारपुरम के करीब स्थित वरयंकोडे के रहने वाले थे। एक अन्य मामले में 26 सितम्बर 2022 से लापता भाजपा कार्यकर्ता बिंदु कुमार का शव बरामद हुआ था। यह घटना केरल के कोट्टयम जिले के चंगनसेरी क्षेत्र की थी।