महाराष्ट्र के नागपुर में 17 मार्च 2025 को इस्लामिक भीड़ ने हिंदुओं और पुलिस के खिलाफ हिंसा की, जिसमें डीसीपी समेत कई पुलिसकर्मी और आम हिंदू घायल हुए। हिंदुओं के घरों को फूँक दिया गया। उनकी कारों को निशाना बनाया। खास बात ये है कि एक भी मुस्लिम घर, मुस्लिम की गाड़ी पर कोई हमला नहीं हुआ।
ये सब तब शुरू हुआ जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोग औरंगजेब की कब्र हटाने की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। अफवाह उड़ी कि उन्होंने औरंगजेब का पुतला जलाया, जिसमें कुरान की आयतें लिखी थीं। लेकिन पुलिस ने साफ कर दिया कि ये अफवाह गलत थी और दंगा पहले से प्लान किया गया था। फिर भी भारत में इस्लामिक-वामपंथी गिरोह और दुनिया भर में विदेशी मीडिया ने इस हिंसा का ठीकरा हिंदुओं, बीजेपी और फिल्म ‘छावा’ पर फोड़ दिया।
पश्चिमी मीडिया ने हिंदुओं को हिंसा के लिए ठहराया जिम्मेदार, फर्जी नरेटिव गढ़ा
पश्चिमी मीडिया ने इस खबर को ऐसा घुमाया कि सच को ही ढक दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT), एसोसिएटेड प्रेस (AP), बीबीसी और स्काई न्यूज जैसे बड़े नामों ने एक ही सुर में हिंदुओं को विलेन बना दिया। इनका कहना था कि हिंदू संगठनों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की माँग की और फिल्म ‘छावा’ ने लोगों को भड़काया, जिससे दंगे हुए। लेकिन सच ये है कि हिंसा इस्लामिक भीड़ ने शुरू की थी। बीबीसी ने अपनी हेडलाइन में लिखा, “भारत के एक शहर में औरंगजेब की कब्र को लेकर हिंसा के बाद कर्फ्यू”। उसने दावा किया कि नागपुर के महाल इलाके में वीएचपी और बजरंग दल ने औरंगजेब का पुतला जलाया, जिससे गुस्सा भड़का।

बीबीसी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बयान को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया। उसने लिखा कि फिल्म ‘छावा’ ने लोगों को उकसाया, जिसमें छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब के हाथों क्रूर यातनाएँ झेलते दिखाया गया। बीबीसी ने ये साबित करने की कोशिश की कि हिंदू कार्यकर्ताओं की वजह से मुस्लिम भीड़ ने हिंसा की। लेकिन फडणवीस ने ऐसा कुछ नहीं कहा। उन्होंने विधानसभा में बताया कि ये दंगा पहले से सोचा-समझा था। मौके पर पत्थरों से भरी ट्रॉलियाँ मिलीं, जो साजिश की ओर इशारा करती हैं। बीबीसी ने सच को नजरअंदाज कर हिंदुओं को दोषी ठहराया।
फडणवीस ने साफ कहा कि वो किसी फिल्म को दोष नहीं दे रहे। उन्होंने मराठी में कहा, “‘छावा’ ने छत्रपति संभाजी महाराज की सच्ची कहानी सामने लाई। इससे लोगों में औरंगजेब के खिलाफ भावनाएँ जागीं। कुछ लोग जो औरंगजेब को पसंद करते हैं, वो भी सामने आए।” उनका कहना था कि फिल्म ने इतिहास को लोगों तक पहुँचाया, जिससे औरंगजेब की हकीकत खुली। लेकिन बीबीसी ने उनके बयान के कुछ हिस्सों को चुनकर ये दिखाया कि फिल्म ही हिंसा की जड़ है। ये फडणवीस के बयान को गलत तरीके से पेश करने की हिमाकत थी।
एपी ने भी हिंदुओं को कटघरे में खड़ा किया
अमेरिका की न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (AP) ने भी हिंदुओं को ही कटघरे में खड़ा किया। उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की माँग की, जिससे पश्चिमी भारत में सांप्रदायिक झड़पें हुईं।” आर्टिकल के लेखक शेख सलिक तो अलग ही कहानी बताने की कोशिश की, उसके हिसाब से नागपुर में हिंसा तो मुस्लिम भीड़ ने की, लेकिन वो पीड़ित हैं। AP ने ये भी कहा कि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजेब के हिंदुओं पर अत्याचार की कहानियाँ बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हैं। जबकि सच ये है कि औरंगजेब ने लाखों हिंदुओं को मारा, मंदिर तोड़े, जजिया टैक्स लगाया-ये सब इतिहास में दर्ज है।
AP ने ये भी लिखा कि पिछले दस साल में पीएम नरेंद्र मोदी के राज में औरंगजेब के खिलाफ नफरत बढ़ी। उसने कहा कि मोदी ने औरंगजेब पर हिंदुओं को सताने का आरोप लगाया, जिससे मुस्लिम अल्पसंख्यक डरे हुए हैं। उसने ये भी जोड़ा कि हिंदू राष्ट्रवादियों की हिंसा से मुस्लिम परेशान हैं। लेकिन AP ने हरियाणा के नूहँ में 2023 की हिंसा, मध्य प्रदेश के मऊ में 2025 के हमले, राम नवमी, होली, दिवाली पर हिंदुओं पर हुए हमले, उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या, उमेश कोल्हे का कत्ल और 2020 के दिल्ली दंगों का जिक्र तक नहीं किया। इन सबमें मुस्लिम भीड़ ने हिंदुओं पर हमला किया था।
AP ने फिल्म ‘छावा’ और विक्की कौशल को भी निशाने पर लिया। उसने कहा कि इस फिल्म ने धार्मिक तनाव बढ़ाया। रिपोर्ट में लिखा, “कुछ समीक्षकों ने फिल्म को विभाजनकारी बताया, जो देश में धार्मिक दरार बढ़ा सकती है।” लेकिन सच ये है कि ‘छावा’ ने संभाजी महाराज की बहादुरी और औरंगजेब की क्रूरता को हल्के से दिखाया। फिल्म में कोई ऐसा नरेटिव नहीं था जो लोगों को बाँटे। फिर भी AP ने इसे हिंदुओं के खिलाफ इस्तेमाल कर लिया। ये साफ था कि वो इस्लामिक हिंसा को छुपाना चाहते थे।

हर बार जब हिंदू अपनी कहानी फिल्मों के जरिए बताते हैं, जैसे ‘छावा’ में संभाजी महाराज की वीरता या ‘द कश्मीर फाइल्स’ में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार, तो इस्लामिक कट्टरपंथी और उनके समर्थक हंगामा शुरू कर देते हैं। वो चाहते हैं कि हिंदू अपने अत्याचारों की बात न करें, अपने मंदिरों की माँग न उठाएँ और औरंगजेब जैसे अत्याचारियों की तारीफ को चुपचाप सुनें। AP ने कोर्ट में मंदिरों की माँग करने वाले हिंदुओं को ‘हिंदू चरमपंथी’ कहकर बदनाम करने की एकतरफा कोशिश की।
स्काई न्यूज ने भी अलावा ‘हिंदुओं’ को जिम्मेदार बताने का राग
स्काई न्यूज ने भी वही राग अलापा। उसने कहा कि ‘छावा’ ने महाराष्ट्र में तनाव बढ़ाया। उसने लिखा, “मुस्लिम, जो 14% आबादी हैं, उन्हें लगता है कि हिंदू भीड़ उन पर हमला कर रही है और सरकार चुपचाप समर्थन दे रही है।” स्काई न्यूज ने लव जिहाद को ‘साजिश थ्योरी’ कहकर खारिज कर दिया, जबकि हर दिन ऐसी खबरें आती हैं। उसने ये भी कहा कि बीजेपी सरकार मुस्लिमों के घर बुलडोजर से तोड़ रही है। लेकिन सच ये है कि बुलडोजर सिर्फ दंगाइयों की अवैध संपत्ति पर चलता है, न कि हर मुस्लिम के खिलाफ।
NYT भी फर्जी नरेटिव गढ़ने में रही शामिल
न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) ने भी हिंदुओं को दोषी ठहराया। उसने लिखा, “एक कट्टर हिंदू समूह की औरंगजेब की कब्र हटाने की माँग से महाराष्ट्र में तनाव बढ़ा और हिंसा हुई।” NYT ने भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बयान को गलत तरीके से पेश किया और ‘छावा’ को जिम्मेदार ठहराया। उसने कहा कि हिंदुओं ने प्रदर्शन किया, जिससे दिक्कत शुरू हुई। लेकिन सच ये है कि हिंदुओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था। हिंसा की शुरुआत इस्लामी कट्टरपंथियों भीड़ ने की, जो औरंगजेब को अपना हीरो मानती है।

NYT ने इतिहासकार सोहेल हाशमी का हवाला दिया, जिसने कहा कि संभाजी और औरंगजेब का झगड़ा धार्मिक नहीं, बल्कि दो राजाओं की लड़ाई थी। लेकिन औरंगजेब के फरमान, मंदिर तोड़ने, हिंदुओं की हत्या और जबरन धर्मांतरण के सबूत मौजूद हैं। NYT चाहता है कि लोग ये मानें कि औरंगजेब हिंदू-विरोधी नहीं था। वो ये भी नहीं चाहता कि लोग जानें कि आज के इस्लामिक कट्टरपंथी औरंगजेब और टीपू सुल्तान जैसे हिंदू-विरोधियों को क्यों पूजते हैं।
नागपुर हिंसा का पूरा घटनाक्रम, हिंदू बने निशाना
अब असली घटनाक्रम पर एक नजर डालते हैं। जिसमें 17 मार्च 2025 की शाम को नागपुर में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा भड़की। अफवाह फैली कि हिंदुओं ने कुरान जलाई। इसके बाद मुस्लिम भीड़ ने हिंदुओं और पुलिस पर हमला कर दिया। भालदरपुरा इलाके में एक महिला पुलिसकर्मी के साथ बदसलूकी हुई, उसके कपड़े फाड़ने की कोशिश की गई। पुलिस ने 84 लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें मास्टरमाइंड फहीम शमीम खान भी शामिल है। फहीम माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी का शहर अध्यक्ष है और उसने 500 से ज्यादा दंगाइयों को इकट्ठा किया था।
महाराष्ट्र पुलिस को पता चला कि बांग्लादेश से सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाई गईं। 97 अकाउंट्स मिले, जिनमें ज्यादातर बांग्लादेशी आईपी से पोस्ट किए गए थे। स्थानीय हिंदुओं ने बताया कि मुस्लिम दंगाइयों ने उनके घरों पर तुलसी के गमले फेंके। एक चश्मदीद ने कहा कि वो गालियाँ दे रहे थे और भड़काऊ नारे लगा रहे थे। दंगाइयों ने हिंदुओं की गाड़ियों को निशाना बनाया, जिनमें स्वास्तिक या हिंदू देवताओं की तस्वीरें थीं।
कई गवाहों ने बताया कि मुस्लिम दंगाइयों ने पेट्रोल बम, तलवारें और बोतलें इस्तेमाल कीं। उनके चेहरे ढके हुए थे। उन्होंने बच्चों पर भी पत्थर फेंके और आसपास के लोगों और संपत्ति पर अंधाधुंध हमला किया। लेकिन मुस्लिम घरों या गाड़ियों को छुआ तक नहीं। ये साफ था कि ये हमला सिर्फ हिंदुओं के खिलाफ था। फिर भी पश्चिमी मीडिया ने इसे हिंदुओं की गलती बता दिया।
पश्चिमी मीडिया ने इस हिंसा को गलत तरीके से पेश किया। उसने हिंदुओं की माँग और फिल्म ‘छावा’ को हिंसा का कारण बताया, जबकि ये इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश थी। वो हिंदुओं को आक्रामक और मुस्लिम भीड़ को पीड़ित दिखाना चाहते हैं। ये पक्षपाती रिपोर्टिंग इस्लामिक हिंसा को सही ठहराती है और हिंदुओं को चुप रहने की नसीहत देती है। ये लोग कह रहे हैं कि अगर हिंदुओं ने अपनी कहानी न सुनाई होती, तो ये हिंसा न होती।
मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। मूल रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।