Tuesday, June 17, 2025
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कभी न्यूज चैनल का मालिक, कभी BSP का नेता… पुराना घोटालेबाज है विजेंद्र सिंह हुड्डा, जिस यूनिवर्सिटी से बाँट रहा था फर्जी डिग्री वह 58 एकड़ में है फैला: यूपी STF ने किया गिरफ्तार

हजारों करोड़ के घोटालेबाज विजेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने काले कारोबार को छिपाने के लिए राजनीति का सहारा लिया। साल 2022 में लोकदल, तो 2024 में BSP में शामिल हुआ लोकसभा चुनाव लड़ा।

उत्तर प्रदेश स्थित हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी चर्चा में है। करीब 58 एकड़ में फैली मोनाड यूनिवर्सिटी में यूपी एसटीएफ ने छापेमारी की और शनिवार (17 मई 2025) को मोनाड यूनिवर्सिटी के चेयरमैन बिजेंद्र सिंह हुड्डा समेत 12 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। एसटीएफ की कार्रवाई में 1372 फर्जी मार्कशीट. 262 फर्जी प्रोविजनल और माइग्रेशन सर्टिफिकेट, मोबाइल फोन, आईपैड, 7 लैपटॉप, 26 सर्वर मशीन, 6 लाख से ज्यादा की नकदी भी बरामद की। आरोप है कि मोनाड यूनिवर्सिटी से फर्जी मार्कशीटों का धंधा चलाया जा रहा था, जिसकी छपाई की कीमत होती थी 5000 रुपए, लेकिन छात्रों-खरीदारों तक पहुँचते पहुँचते इसकी कीमत 50 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक हो जाती थी।

हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी आज घोटालों, जालसाजी और ठगी का अड्डा बन चुकी है। मोनाड यूनिवर्सिटी का चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा, जो कभी उत्तर प्रदेश पुलिस का 5 लाख रुपये का इनामी बदमाश रह चुका है। उसने फर्जी डिग्री घोटाले, बाइक-बोट घोटाले और न्यूज वर्ल्ड इंडिया चैनल के जरिए कर्मचारियों के शोषण जैसे कई कांडों को अंजाम दिया। विजेंद्र सिंह हुड्डा ने हजारों करोड़ रुपये की ठगी कर एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया। यह रिपोर्ट विजेंद्र के काले कारनामों की परतें खोलती है, जिसमें हर घोटाला एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इस रिपोर्ट में मोनाड यूनिवर्सिटी के कामकाज और उसके फर्जीवाड़े को विस्तार से बताया गया है।

झाँसे से लिया न्यूज वर्ल्ड इंडिया और निकल पड़ा घोटालों की राह पर

विजेंद्र सिंह हुड्डा ने 2010 के दशक में न्यूज वर्ल्ड इंडिया चैनल को नवीन जिंदल से खरीदा था। पहले यह चैनल ‘हमार टीवी’ के नाम से चलता था। इस चैनल का मालिक एक कॉन्ग्रेसी नेता हुआ करता था। उससे कॉन्ग्रेस में रहते हुए नवीन जिंदल ने न्यूज वर्ल्ड इंडिया में तब्दील किया। विजेंद्र ने इसे आधे-अधूरे सौदे और उधारी में हासिल किया। सौदा 16 करोड़ रुपये में तय हुआ था, लेकिन विजेंद्र ने जिंदल को पूरा भुगतान नहीं किया। उसने वादा किया था कि पैसे बाद में देगा, लेकिन बाद में वह बाइक-बोट घोटाले में फँस गया और चैनल को छोड़ दिया। इस दौरान चैनल का लाइसेंस भी रद्द हो गया।

न्यूज वर्ल्ड इंडिया में विजेंद्र ने 200 से अधिक पत्रकारों और कर्मचारियों का जमकर शोषण किया। वह कर्मचारियों के वेतन से पीएफ और टीडीएस तो काटता था, लेकिन इसे जमा नहीं करता था। इससे कर्मचारियों का लाखों रुपये डूब गया। कर्मचारियों का कहना है कि विजेंद्र ने चैनल के जरिए न सिर्फ उनका पैसा हड़पा, बल्कि उनके करियर को भी बर्बाद कर दिया। कई पत्रकारों ने बताया कि उनके पास न तो पीएफ का पैसा मिला और न ही उनकी मेहनत की सही कीमत।

न्यूज चैनल बंद होने के कुछ साल बाद इसी चैनल के फर्जी नाम – NewZ World India नाम से यूट्यूब चैनल इसके गुर्गे चला रहे हैं। कथित तौर पर इसका एक स्टूडियो मोनाड यूनिवर्सिटी के परिसर में बनाया गया, जहाँ डिजिटल चैनल चलाने के साथ-साथ बीजेएमसी (बैचलर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन) की पढ़ाई भी कराई जाती थी। लेकिन यह पढ़ाई महज एक दिखावा थी। असल में यूनिवर्सिटी का मुख्य धंधा फर्जी डिग्रियाँ बेचना था।

बाइक-बोट स्कैम से 1500 करोड़ रुपए की ठगी से जुड़ा नाम

विजेंद्र का सबसे चर्चित कांड बाइक-बोट घोटाला था, जिसने लाखों लोगों को ठगा। 2018 में विजेंद्र ने गर्वित इनोवेटिव लिमिटेड कंपनी के साथ मिलकर बाइक-बोट स्कीम शुरू की। इस स्कीम में निवेशकों से 62,000 रुपये लेकर हर महीने 9,500 रुपये देने का वादा किया गया। बाद में एक इलेक्ट्रिक बाइक स्कीम लॉन्च की गई, जिसमें 1.24 लाख रुपये के निवेश पर हर महीने 17,000 रुपये देने का लुभावना ऑफर था। शुरुआत में कुछ निवेशकों को पैसे लौटाए गए, ताकि स्कीम पर भरोसा बढ़े। लेकिन जल्द ही कंपनी बंद हो गई और निवेशकों का पैसा डूब गया।

इस घोटाले में करीब 15000 करोड़ रुपये की ठगी हुई। लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर जैसे शहरों में 118 से अधिक एफआईआर दर्ज हुईं। जाँच के दौरान विजेंद्र और उसकी करीबी दीप्ति बहल लंदन भाग गए। दोनों पर 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित था। 2022 में विजेंद्र ने कोर्ट से जमानत हासिल की और भारत लौट आया। लौटते ही उसने हापुड़ के पिलखुआ में मोनाड यूनिवर्सिटी को खरीद लिया।

वैसे तो ये यूनिवर्सिटी साल 2010 से चल रही थी, लेकिन लॉकडाउन की आड़ में उसने साल 2022 में इस यूनिवर्सिटी को खरीद लिया और चेयरमैन बन बैठा। बाइक बोट घोटाले से जमा रकम उसके पास थी ही और फिर वो राजनीति के मैदान में उतरने की तैयारी करने लगा। वो मोनाड यूनिवर्सिटी से पैसे छापता और बाइक-बोट घोटाले के पैसों को खपाता रहा, साथ ही राजनीतिक मंसूबे भी पालता रहा, जिसके बारे में आगे विस्तार से जानकारी दी गई है।

दरअसल, बाइक-बोट घोटाले में विजेंद्र का साथी संजय भाटी भी शामिल था, जो साल 2019 में गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाला था। उसने नाम की घोषणा भी हो चुकी थी, लेकिन गिरफ्तारी के बाद से वो अब तक जेल में बंद है। इस बाइक बोट घोटाले की जाँच यूपी पुलिस की ईओडब्ल्यू यूनिट को सौंपी गई थी, और अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इसकी जाँच कर रहा है।

मोनाड यूनिवर्सिटी को बनाया फर्जी डिग्रियों का कारखाना

लौटते हैं विजेंद्र के नए कारनामे यानी मोलाड यूनिवर्सिटी की तरफ। मोनाड यूनिवर्सिटी हापुड़ के पिलखुआ में स्थित है। विजेंद्र ने इसे 2022 में खरीदा और इसे फर्जी डिग्रियाँ बेचने का अड्डा बना दिया। हालाँकि इस यूनिवर्सिटी का नाम साल 2019 में भी फर्जी सर्टिफिकेट के मामले में सामने आ चुका था, लेकिन किसी तरह ये यूनिवर्सिटी बच निकली थी। विजेंद्र सिंह हुड्डा की नजर उस पर थी, क्योंकि वो राजनीतिक कनेक्शनों के दम पर इसे आगे बढ़ाना चाहता था और 58 एकड़ में बसी यूनिवर्सिटी का मालिक बनने के बाद वो पूरी तरह से खुद को सफेदपोश ही समझने लगा था।

इसी क्रम में मोनाड यूनिवर्सिटी में बीए, बीएड, बीटेक, फार्मासिस्ट और बीए-एलएलबी जैसे कोर्स की डिग्रियाँ 50,000 से 4 लाख रुपये में बेची जाने लगी थीं। शनिवार (17 मई 2025) को एसटीएफ की छापेमारी में 1372 फर्जी मार्कशीट, 282 फर्जी प्रोविजनल और माइग्रेशन दस्तावेज जब्त किए गए। यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सहित 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें यूनिवर्सिटी के चांसलर नितिन कुमार सिंह, चेयरमैन का पीए मुकेश ठाकुर, हेड ऑफ वैरिफिकेशन डिपार्टमेंट गौरव शर्मा, विपुल ताल्यान, एडमिशन डायरेक्टर इमरान, अकाउंटेंट अनिल वत्रा, कुलदीप, सनी कश्यप और संदीप सेहरावत शामिल थे।

मोनाड यूनिवर्सिटी का कामकाज पूरी तरह से फर्जीवाड़े पर आधारित था। बाहर से देखने में यह एक सामान्य यूनिवर्सिटी लगती थी, जहाँ छात्र पढ़ने आते थे और डिग्रियाँ हासिल करते थे। लेकिन हकीकत में यह एक ऐसा कारखाना था, जहाँ डिग्रियाँ और मार्कशीट छापी जाती थीं। यूनिवर्सिटी में कोई ठोस अकादमिक सिस्टम नहीं था। न तो प्रोफेसरों की नियुक्ति सही तरीके से की गई थी, न ही कोई मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम चलाया जा रहा था। जो कोर्स चलाए जा रहे थे, वे सिर्फ दिखावे के लिए थे। असल में, यूनिवर्सिटी का मुख्य काम फर्जी डिग्रियाँ बेचना था।

इन फर्जी डिग्रियों के लिए अलग से डेटाबेस बना हुआ था। ताकी छापेमारी जैसी कोई कार्रवाई हो भी, तो विजेंद्र सिंह हुड्डा जैसे इसके असली कर्ता-धर्ता बच निकले। यही वजह थी कि उसने यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर चेयरमैन के तौर पर अपना नाम भी नहीं डाला था। बाकी रिपोर्ट्स बता रही हैं कि वो अब मेरठ में भी एक कॉलेज खोलने की तैयारी कर रहा था, ताकी अपने जालसाजी के साम्राज्य को वो और बड़ा कर सके।

यूनिवर्सिटी में एक अलग डिपार्टमेंट बनाया गया था, जिसे वैरिफिकेशन डिपार्टमेंट कहा जाता था। इस डिपार्टमेंट का काम फर्जी डिग्रियों को वैरिफाई करना था, ताकि अगर कोई जाँच करे तो डिग्री असली लगे। गौरव शर्मा इस डिपार्टमेंट का हेड था और उसने सैकड़ों फर्जी डिग्रियों को वैरिफाई करने में अहम भूमिका निभाई। एडमिशन डायरेक्टर इमरान उन लोगों को टारगेट करता था, जो आसानी से डिग्री खरीदना चाहते थे। वह ऐसे छात्रों को लुभाने के लिए झूठे वादे करता था, जैसे कि बिना पढ़ाई के डिग्री मिल जाएगी या कम समय में कोर्स पूरा हो जाएगा।

यूनिवर्सिटी से बाहर हरियाणा में प्रिंटिंग सिस्टम भी था, जहाँ फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां छापी जाती थीं। हरियाणा का रहने वाला संदीप सेहरावत वहाँ से गिरफ्तार हुआ। संदीप ने बताया कि वह विजेंद्र के कहने पर बीएड, बीए, बीए-एलएलबी, फार्मासिस्ट और बीटेक की फर्जी मार्कशीट और डिग्रियाँ छापता था। विजेंद्र का खास राजेश इस काम में उसकी मदद करता था। हर कोर्स की डिग्री के लिए अलग-अलग रेट तय थे। जैसे, बीए की डिग्री 50,000 रुपये में मिलती थी, जबकि बीटेक की डिग्री 4 लाख रुपये तक में बिकती थी।

यूनिवर्सिटी में डिजिटल सिस्टम भी था, जिसमें सारी जानकारी स्टोर की जाती थी। एसटीएफ की छापेमारी में 14 मोबाइल फोन, 6 आईपैड, 7 लैपटॉप, 26 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, लैपटॉप, हार्ड डिस्क और सर्वर सिस्टम जब्त किए गए। इन डिजिटल उपकरणों में फर्जी डिग्रियों का पूरा डेटाबेस था, जिसमें यह जानकारी थी कि किन-किन छात्रों को डिग्रियाँ बेची गईं और कितने पैसे लिए गए। एसटीएफ अब इस डेटाबेस के जरिए पिछले दो सालों में दी गई हर डिग्री की जाँच कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि फर्जी डिग्रियों का इस्तेमाल कहाँ और कैसे हुआ।

यूनिवर्सिटी का एक और गोरखधंधा माइग्रेशन सर्टिफिकेट बेचना था। जो छात्र किसी दूसरी यूनिवर्सिटी से मोनाड यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर होना चाहते थे, उन्हें फर्जी माइग्रेशन सर्टिफिकेट दिए जाते थे। इन सर्टिफिकेट्स की कीमत 20,000 से 50,000 रुपये तक होती थी। इस काम में यूनिवर्सिटी का अकाउंटेंट अनिल वत्रा और सनी कश्यप भी शामिल थे। उन्होंने सैकड़ों फर्जी माइग्रेशन सर्टिफिकेट बेचे और मोटा मुनाफा कमाया।

मोनाड यूनिवर्सिटी का फर्जीवाड़ा सिर्फ हापुड़ तक सीमित नहीं था। इसकी पहुँच हरियाणा तक थी। एसटीएफ को शक है कि विजेंद्र का सोनीपत के फर्जी डिग्री रैकेट से भी कनेक्शन था, जिसे दिल्ली पुलिस का एक सिपाही चलाता था। इस रैकेट में 60 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हुए थे। मोनाड यूनिवर्सिटी से फर्जी डिग्रियाँ हरियाणा भेजी जाती थीं, जहाँ विजेंद्र का बेटा संदीप इस काम को मैनेज करता था। सोनीपत में फर्जी डिग्रियों से नौकरी पाने वाले कई लोग जैसे लेखपाल और शिक्षक भी पकड़े गए थे। खास बात ये है कि फर्जी मार्कशीटों के साथ पकड़े गए व्यक्ति का नाम भी संदीप है, लेकिन उसका उपनाम सहरावत है। ऐसे में ये दोनों लोग एक ही हैं, या अलग-अलग इसे वेरिफाई किया जाना बाकी है।

यूपी एसटीएफ चीफ अमिताभ यश ने बताया कि विजेंद्र सिंह हुड्डा पहले भी बाइक-बोट घोटाले का मास्टरमाइंड रह चुका है। अब उसका नाम शिक्षा से जुड़े इस बड़े घोटाले से भी जुड़ गया है। जाँच में यह भी पता चला कि विजेंद्र ने पिछले तीन सालों से यह धंधा चला रखा था। उसने यूनिवर्सिटी के जरिए हजारों छात्रों को ठगा और करोड़ों रुपये की कमाई की।

राजनीति के मैदान में तेजी से बढ़ रहा था विजेंद्र, जाटों की राजनीति कर बना रहा था नाम

विजेंद्र ने अपने काले कारोबार को छिपाने के लिए राजनीति का सहारा लिया। 2022 में उसने लोक दल (रालोद नहीं) की सदस्यता ली और सुनील सिंह के साथ मिलकर एक बड़ा पद हासिल किया। उसने कई प्रदर्शन किए और यहाँ तक दावा कर दिया कि उसी की कोशिशों के चलते चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान प्राप्त हुआ।

उसने अपने गुर्गों के दम पर अखबारों में बाकायदा आर्टिकल भी छपवाए, ताकी उसके दावे को मजबूती मिल सके। यही नहीं, वो लगातार खुद को रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को भी पीछे करने के दावे अखबारों में कराने लगा, ताकी जाटों की राजनीति का वो महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सके। उसके फेसबुक प्रोफाइल पर इससे जुड़े समाचारों के कटिंग भी शेयर किए गए हैं।

विजेंद्र सिंह हुड्डा ने रालोद प्रमुख को चुनौती देने वाले आर्टिकल भी छपवाए

हालाँकि लोक दल में रहते हुए जब उसे मजबूत मुकाम नहीं मिला, तो उसने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दामन थाम लिया। 2024 में उसने बसपा के टिकट पर बिजनौर से लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उसे 2,18,986 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहा। वेस्ट यूपी में बसपा के लिए सबसे ज्यादा वोट लाने वाला उम्मीदवार भी वही था। उसके लिए खुद मायावती ने चुनाव प्रचार किया था।

बीएसपी सुप्रीमो मायवती के साथ विजेंद्र सिंह हुड्डा

बिजनौर लोकसभा सीट पर उसे चुनावी हार मिली, तो उसने बसपा से नाता तोड़ लिया। उसने दूसरी पार्टियों में भी शामिल होने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय जाट और ठाकुर नेताओं के विरोध के कारण उसे सफलता नहीं मिली। रालोद के बीजेपी के साथ आने से उसे नई उम्मीद दिखी, लेकिन उससे पहले ही एसटीएफ ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

विजेंद्र का आपराधिक इतिहास और संपत्ति

विजेंद्र सिंह हुड्डा सिर्फ 10वीं पास है। उसने चीन में लैपटॉप और टैबलेट बेचकर करोड़ों रुपये कमाए। 2010 में भारत लौटकर उसने यही कारोबार शुरू किया और फिर धीरे-धीरे न्यूज चैनलों और अन्य कामों में हाथ डालने लगा। इस दौरान उसने देश के नामी पत्रकारों और बड़े नौकरशाहों से संपर्क बनाए। जिंदल के न्यूज चैनल को खरीदने की कहानी आगे बताई जा चुकी है। इस बीच, जब उनका बाइक बोट घोटाले में नाम आने लगा, तो वो चैनल और देश छोड़कर भाग निकला।

विजेंद्र पर धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक षड़यंत्र और साक्ष्य मिटाने जैसे 100 से अधिक मामले दर्ज हैं। वह इन मामलों का सामना गाजियाबाद, दिल्ली और गौतमबुद्धनगर की अदालतों में कर रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में दिए गए शपथपत्र में उसने बताया कि उसकी संपत्ति 28 करोड़ रुपये है, लेकिन देनदारी 230 करोड़ रुपये की है। उसकी वार्षिक आय मात्र 15 लाख रुपये थी। फिर भी वह अकूत संपत्ति का मालिक कैसे बना, यह जाँच का विषय है।

ईडी की रडार पर आ चुका है विजेंद्र सिंह

अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) विजेंद्र को अपने रडार पर लेने की तैयारी कर रहा है। ईडी यह जाँच करेगी कि बाइक-बोट घोटाले से जुटाई गई 15000 करोड़ रुपये की रकम कहाँ निवेश की गई और मोनाड यूनिवर्सिटी का साम्राज्य कैसे खड़ा हुआ। विजेंद्र के राजनीतिक आकाओं की भूमिका भी जाँच के दायरे में आएगी। एसटीएफ के डीएसपी संजीव दीक्षित ने बताया कि उनकी टीम ने जो सबूत जुटाए हैं, उन्हें जल्द ही ईओडब्ल्यू और ईडी को सौंपा जाएगा।

विजेंद्र सिंह हुड्डा का यह काला साम्राज्य पत्रकारिता, शिक्षा और स्टार्टअप के नाम पर ठगी का एक बड़ा उदाहरण है। उसने न्यूज वर्ल्ड इंडिया से लेकर मोनाड यूनिवर्सिटी तक हर क्षेत्र में जालसाजी की। अब एसटीएफ और ईडी की कार्रवाई से उसके घोटालों का पूरा मकड़जाल सामने आ रहा है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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