आंतरिक सुरक्षा किसी भी देश स्थिरता की रीढ़ होती है। खासकर भारत जैसे देश के लिए जहाँ इतनी बड़ी आबादी में लोग रहते हैं, वहाँ आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुँचाने का मतलब नागरिक असुरक्षा की स्थिति पैदा करना है।
देश की अंदरूनी सुरक्षा केवल आतंकवाद और हिंसा से निपटने तक सीमित नहीं होती बल्कि यह उस राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी प्रभावित करती है। लेकिन 2014 से पहले तक भारत आंतरिक सुरक्षा के संकट से लगातार जूझता रहा है।
कॉन्ग्रेस के निष्क्रिय रवैये से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को मिला बल
कॉन्ग्रेस के शासनकाल में वर्ष 2004-2013 के बीच भारत एक के बाद एक आतंकवादी और नक्सली हमलों की चपेट में रहा। राजनीतिक कमजोरी और नीतिगत अभाव के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा पंगु हो चुकी थी।
इस बीच माओवादी हिंसा अपने चरण पर थी। कॉन्ग्रेस राज में 2,213 से अधिक वामपंथी उग्रवाद की घटनाएँ कॉन्ग्रेस के शासनकाल में सामने आई हैं। उस वक्त सरकार की राजनीतिक ढील और काम करने के तौर तरीके ने हालात को और खराब कर दिया।
कॉन्ग्रेस सरकार में इस्लामी कट्टरपंथियों ने उठाया सिर
देश में 2004 से 2013 के बीच देश में पाकिस्तान समर्थित संगठनों को काफी मजबूती मिली। PFI(पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया) और SIMI(स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) जैसे संगठनों ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर खुलकर काम करना शुरू कर दिया।
NDA सरकार के द्वारा 2001 में SIMI पर औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिए जाने के बाद भी UPA शासन के दौरान प्रतिबंध प्रभावी ढंग से रूप लागू नहीं हुआ और अप्रभावी ही रहा। इसका नतीजा हुआ कि इन संगठनों ने नेपथ्य रूप से अपने जिहादी कामों को जारी रखा।
SIMI के थे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से थे संबंध
यह भी सामने आया था कि SIMI का हमास और पाकिस्तान के हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी जैसे जिहादी संगठनों के साथ संबंध है। भारत में इस संगठन द्वारा चलाए गए देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाने वाले धन का एक स्रोत हमास भी था।
यह सभी पैसे अक्सर कतर, सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका के माध्यम से भेजा जाता था। SIMI ने केरल, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में अपनी पैठ जमा ली थी। कॉन्ग्रेस इससे मिलने वाले फायदे को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। नतीजतन कॉन्ग्रेस ने वह सब होने दिया जो देश की सुरक्षा के विरुद्ध था।
लगातार घाव झेलता रहा देश
कॉन्ग्रेस के शासनकाल में एक के बाद एक भीषण आतंकी वारदातों का गवाह रहे देश पर अब तक उन यातनाओं के घाव मौजूद हैं। 2004-2013 के बीच भारत के कई शहरों में क्रूर आतंकी हमले किए गए। इन हमलों में सैकड़ो लोगों की जान गई और हजारों लोग घायल हुए।
इसके अलावा देश के कई राज्यों में नक्सली हमले भी बढ़ते जा रहे थे। 2010 में घटित दंतेवाड़ा नरसंहार में माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के 76 CRPF जवानों को मार डाला था। यह भारत के सबसे घातक उग्रवादी हमले में से एक था जिसमें 13 आम नागरिकों की भी जान गई थी।
साल 2013 में दरभा घाटी में भी माओवादियों ने एक राजनीतिक काफिले पर हमला कर दिया जिसमें कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और विद्याचरण शुक्ला समेत 29 लोग मारे गए। 2004 से 2013 के बीच भारत में बम धमाकों और आतंकी हमले की एक बाढ़ सी आ गई थी।
इनमें मुंबई लोकल ट्रेन धमाका(2006), जयपुर ब्लास्ट(2008), पुणे की जर्मन बेकरी ब्लास्ट (2010), हैदराबाद ब्लास्ट(2013), उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 28 जुलाई 2005 को श्रमजीवी एक्सप्रेस में हुआ बम विस्फोट और 2005 में हुए दिल्ली बम विस्फोट शामिल हैं।
इन हमलों में सेकड़ो लोग मारे गए और इनमें आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा से लेकर ISIS तक का हाथ था। देश में रेलवे स्टेशन, शॉपिंग मॉल, होटल और पार्कों समेत ऐसा कोई सार्वजनिक स्थान नहीं था जहां आतंकी हमले की आशंका ना जताई जा सके।
सुरक्षा एजेंसियों के बीच भी आपसी तालमेल का था अभाव
कॉन्ग्रेस के शासनकाल में NIA और RAW जैसी महत्वपूर्ण एजेंसियां अस्तित्व में तो थी लेकिन कॉन्ग्रेस की लचर नीति और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ ने सब मटियामेट कर दिया। सभी सुरक्षा एजेंसियां एकीकृत ना होकर अलग-अलग काम करती थी।
इससे आपसी तालमेल बिठाने में बेहद कठिनाई हुई। 2013 में गृह मामलों की संसदीय स्थाई समिति की रिपोर्ट के अनुसार 26/11 के हमले के बाद स्थापित मल्टी एजेंसी सेंटर में सूचना का प्रवाह काफी खराब था। इंटेलिजेंस और सुरक्षा बल अलग-अलग अपना कार्य कर रहे थे।
इससे देश की सुरक्षा जानकारी साझा करने में अनियमितता देखने को मिली। नतीजा यह हुआ की सीमा पार से घुसपैठ आम बात हो गई। इतना ही नहीं PFI(पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया) जैसे कट्टरपंथी समूह के लोगों को पकड़े जाने के बावजूद वह दंडमुक्त होकर काम कर रहे थे। पकड़े जाने के बाद भी सजा में देरी से आतंकवादी संगठनों का हौसला और मजबूत बना रहा। कॉन्ग्रेस ने अपने सत्ता-स्वार्थ के लिए देश की आंतरिक सुरक्षा को आंतरिक अलगाववाद की भेंट चढ़ा दी।
आतंक फंडिंग भी थी चुनौती
कॉन्ग्रेस की सरकार में आतंकवादियों को विदेश से खूब पैसा आता था। FATF(Financial Action Task Force) 2010 की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार आतंकवादियों को फंडिंग करने में कई वित्तीय संस्थान शामिल थे।
हालत ऐसी थी कि साल 2013 में 42 करोड़ से अधिक नकली नोट जब्त किए गए जो मुख्य रूप से पाकिस्तान के माध्यम से भेजे गए थे। यह सारा पैसा देश में अराजकता फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। कट्टरपंथी संगठन इन पैसों का इस्तेमाल करके देश की सुरक्षा को खासा नुकसान पहुँचा रहे थे।
2014 के बाद आंतरिक सुरक्षा में आया निर्णायक बदलाव
केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद आंतरिक सुरक्षा को विशेष बल मिला। NIA(राष्ट्रीय जाँच ऐजेंसी) को 2019 में मिले संशोधित अधिकारों के बाद देश विरोधी ताकतों को निष्क्रिय करने की कवायद शुरू हो गई। NIA को यह अधिकार दिया गया कि उसे राज्य सरकार के बिना अनुमति के कार्यवाही करने का अधिकार है।
दरअसल राज्य सरकारों के साथ परस्पर तालमेल की कमी ने इन एजेंसियों को व्यावहारिक रूप से कम उपयोगी बना दिया था। लेकिन 2019 के बाद अधिकारों में किए गए बदलाव के बाद उनकी शक्तियाँ बढ़ा दी गईं। इससे आतंकवाद, मानव तस्करी और साइबर आतंकवाद पर रोक लगाना आसान हो गया।
UAPA के तहत देश विरोधी ताकतों पर आसानी से कार्रवाई करते हुए आतंकवादी घोषित करने की क्षमता आ गई। इस कानून के माध्यम से कट्टरपंथियों की संपत्ति को आसानी से जप्त करना संभव हो गया। इतना ही नहीं विदेशों से आने वाला पैसा भी आतंकी अकाओं तक नहीं पहुंचने से पहले ही जांच एजेंसियों की नजर में आ जाता था।
अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद घुसपैठ में आई कमी
मोदी सरकार द्वारा 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर वहाँ पनप रहे अलगाववादी मानसिकता पर नकेल कसी गई। कश्मीर घाटी से पाकिस्तान के संपर्क को भी पूरी तरह खत्म कर दिया गया।
कश्मीर में स्थानीय भर्ती के माध्यम से युवाओं को पत्थरबाजी और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने से रोका गया। धारा 370 के लागू होने के बाद पहले की तुलना में आतंकवादी घटनाओं में भी कमी दर्ज की गई। इसके साथ ही राज्य में बुनियादी विकास का ढांचा तैयार किया गया। इसके अलावा कश्मीर में बलिदान होने वाले हमारे सैनिकों की संख्या में भी लगभग 48% की कमी आई।
नक्सलों पर भी हुआ प्रहार
सरकार ने 2014 से लेकर अब तक वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इलाकों को मुक्त कराया। इससे नक्सलवादी इलाकों में दोगुना कमी आई जहां एक साल में 1000 से अधिक माओवादी घटनाएं होतीं थी वहां केवल कुछ सौ रह गई।
सरकार द्वारा अबूझमाड़ के जंगलों और कर्रगुट्टा जैसे क्षेत्रों को नक्सल मुक्त किया गया। 2024 में करीब 400 से अधिक नक्सलियों को निष्क्रिय किया गया और बड़ी मात्रा में हथियार और ड्रोन जप्त किए गए।
डिजिटल पुलिसिंग को दिया गया बढ़ावा
मोदी सरकार के द्वारा लगभग 99% पुलिस स्टेशनों को CCTNS(Crime and criminal tracking network system) से जोड़ दिया गया। इसके अलावा पुलिस, अदालत, जेल और फोरेंसिक लैब को भी आपस में जोड़ा गया।
सीमाओं पर निगरानी बढ़ा दी गई। पंजाब में ड्रोन द्वारा नशे और हथियार की तस्करी को रोकने के लिए एंटी ड्रोन तकनीक लगाई गई। नतीजतन साल 2024 में अकेले पंजाब में 250+ अधिक ड्रोन पकड़े गए।
मोदी के नेतृत्व में भारत में स्थापित किया नया कीर्तिमान
साफ जाहिर होता है कि 2014 से पूर्व की स्थिति और वर्तमान भारत की अंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में काफी अंतर है। मोदी सरकार ने इसे राष्ट्रीय पुनर्निर्माण से जोड़ दिया। हमारे देश की खुफिया एजेंसी का लोहा पूरी दुनिया मानने लगी।
आतंकवाद, नक्सलवाद और कट्टरपंथ जैसे खतरों से निपटने के लिए हम किसी पर आश्रित नहीं रहे। इसी का परिणाम है कि आज भारत लोकतांत्रिक मर्यादाओं में रहते हुए भी कठोर आतंकवाद विरोधी उपाय से निपटने में केवल सक्षम नहीं बल्कि अग्रणी भूमिका में है।