Sunday, June 22, 2025
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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के हाथ लगा ‘खजाना’, दुनिया की बड़ी ताकतें हमारे सामने फैला रही हाथ: रिवर्स इंजीनियरिंग के कमाल से चीन-पाक को पीछे छोड़ देगा हिंदुस्तान

पंजाब के होशियारपुर में 9 मई 2025 को इस मिसाइल के न सिर्फ टुकड़े मिले, जिसमें मिसाइल लगभग पूरी तरह से सुरक्षित भी मिली है। अब इसके पीछे वैश्विक ताकतें भी आ चुकी हैं।

भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की ओर से दागी गई चीनी पीएल-15ई मिसाइल को नष्ट कर एक बड़ा कारनामा किया। भारत ने न सिर्फ इन मिसाइलों को मार गिराया, बल्कि मलबा भी बरामद किया है। अब इस मिसाइल के मलबे ने वैश्विक ताकतों का ध्यान खींचा है।

फाइव आईज देश (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका), फ्रांस और जापान इस मलबे को हासिल करने में रुचि दिखा रहे हैं। चूँकि पंजाब के होशियारपुर में 9 मई 2025 को इस मिसाइल के न सिर्फ टुकड़े मिले, जिसमें मिसाइल लगभग पूरी तरह से सुरक्षित भी मिली है। अब इसके पीछे वैश्विक ताकतें भी आ चुकी हैं।

भारतीय वायु सेना के एयर मार्शल भारती ने 12 मई 2025 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पाकिस्तान ने जे-10सी और जेएफ-17 लड़ाकू विमानों से ये मिसाइलें दागी थीं, लेकिन भारत की एस-400 और आकाश तीर एयर डिफेंस सिस्टम ने इन्हें नाकाम कर दिया।

पीएल-15ई एक अत्याधुनिक लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है, जिसे चीन ने बनाया है। यह 300 किलोमीटर तक की रेंज और मैक 5 की गति के साथ दुश्मन के विमानों को निशाना बना सकती है। हालाँकि, निर्यात संस्करण पीएल-15ई की रेंज थोड़ी कम है। इसमें एक्टिव रडार सीकर, जाम-प्रतिरोधी विशेषताएँ और ड्यूल-पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर जैसे उन्नत फीचर्स हैं।

होशियारपुर में मिला मलबा इसमें मौजूद प्रणोदन प्रणाली, डेटा लिंक, रडार सीकर और इनर्शियल रेफरेंस यूनिट की जानकारी दे सकता है, जो चीन की सैन्य तकनीक को समझने के लिए अहम है।

वैश्विक ताकतों की भी इस मलबे में रुचि इसीलिए है, क्योंकि यह फाइव आईज, फ्रांस और जापान को चीन की मिसाइल तकनीक की गहराई से जाँच करने का मौका देगा। राफेल विमान को फ्रांस से बनाया है। चूँकि भारत राफेल का इस्तेमाल करता है और उसके आमने-सामने चीन और पाकिस्तान ही हैं, ऐसे में वो इस मिसाइल को समझना चाहता है। वहीं, जापान जो चीन के साथ क्षेत्रीय तनाव का सामना कर रहा है, वह भी इस मिसाइल की तकनीक को समझना चाहता है।

भारत इस मलबे को डीआरडीओ लैब में विश्लेषण के लिए भेज रहा है और माना जा रहा है कि अमेरिका जैसे मित्र देशों को भी इस डेटा तक पहुँच मिल सकती है।

रिवर्स इंजीनियरिंग का इतिहास पुराना

रिवर्स इंजीनियरिंग यानी किसी तकनीक को तोड़कर उसकी बनावट और कार्यप्रणाली समझना, सैन्य और तकनीकी क्षेत्र में क्रांति ला चुका है। दुनिया भर में देशों ने दुश्मन की तकनीक को रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए कॉपी किया और अपनी ताकत बढ़ाई। इसे इस बात से समझ सकते हैं कि जब ओसामा बिन लादेन को मारने के दौरान अमेरिकी हेलीकॉप्टर पाकिस्तान के एटबाबाद में खराब हो गया था, तब अमेरिकी सेना ने उसे वहीं पर पूरी तरह से नष्ट कर दिया, ताकि पाकिस्तान-चीन उसकी रिवर्स इंजीनियरिंग न कर सकें।

चीन की रिवर्स इंजीनियरिंग

चीन ने रिवर्स इंजीनियरिंग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए, उसने सोवियत संघ के मिग-21 जेट को कॉपी कर जे-7 फाइटर जेट बनाया। मिग-21 के डिज़ाइन को समझकर चीन ने इसे अपने हिसाब से बदला और बड़े पैमाने पर उत्पादन किया। इसी तरह रूस के सु-27 जेट की रिवर्स इंजीनियरिंग से चीन ने जे-11 और जे-16 जैसे फाइटर जेट विकसित किए। चीन का पहला विमानवाहक पोत लियाओनिंग भी सोवियत युग के वारयाग जहाज को खरीदकर रिवर्स इंजीनियरिंग से बनाया गया।

इसके अलावा चीन ने अमेरिकी स्टील्थ तकनीक को भी रिवर्स इंजीनियरिंग से समझने की कोशिश की, जब 1999 में सर्बिया में एक अमेरिकी एफ-117 स्टील्थ जेट नष्ट हुआ था।

अमेरिका और मिग-25

अमेरिका ने भी रिवर्स इंजीनियरिंग का सहारा लिया। 1976 में सोवियत पायलट विक्टर बेलेनको ने मिग-25 जेट को जापान में उतारकर शरण माँगी। अमेरिका और जापान ने मिलकर इस जेट के पुर्जे-पुर्जे को खोल लिया और इसकी तकनीक का गहरा अध्ययन किया।

इस घटना ने जापान को सोवियत तकनीक की गहरी समझ दी, जिससे उसने अपने रक्षा तंत्र को मजबूत किया। वहीं, मिग-25 की रडार, इंजन और स्टील्थ विशेषताओं को समझने के बाद अमेरिका ने अपने एफ-15 और एफ-16 जेट्स को बेहतर बनाया। हालाँकि, दबाव में जेट को सोवियत संघ को लौटाना पड़ा, लेकिन इस रिवर्स इंजीनियरिंग ने जापान और अमेरिका को तकनीकी बढ़त दी।

पीएल-15ई की रिवर्स इंजीनियरिंग से भारत को फायदा

पीएल-15ई मिसाइल की रिवर्स इंजीनियरिंग से भारत और फाइव आईज देशों को कई फायदे हो सकते हैं। सबसे पहले…

  1. इस मिसाइल के एक्टिव रडार सीकर और ड्यूल-पल्स मोटर की तकनीक को समझकर भारत अपनी मिसाइल रक्षा प्रणालियों को और मजबूत कर सकता है। डीआरडीओ इस डेटा का इस्तेमाल आकाश, बराक-8 और नई मिसाइलों को बेहतर बनाने में कर सकता है।
  2. यह मिसाइल की जाम-प्रतिरोधी विशेषताओं को समझने से भारत को इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में बढ़त मिलेगी। पाकिस्तान के पास जे-10सी और जेएफ-17 जैसे विमान हैं, जो पीएल-15ई ले जा सकते हैं। इस तकनीक को समझकर भारत अपनी वायु सेना को इन खतरों से निपटने के लिए तैयार कर सकता है।
  3. चीन के खिलाफ भारत को रणनीतिक लाभ मिलेगा। चीन की जे-20 और जे-16 जैसी स्टील्थ विमान इस मिसाइल का इस्तेमाल करते हैं। पीएल-15ई की कमजोरियों को जानकर भारत अपनी राफेल, सुखोई-30 और तेजस विमानों की रक्षा रणनीति को मजबूत कर सकता है।

फाइव आईज देशों के लिए यह मलबा चीन की सैन्य ताकत को समझने का सुनहरा मौका है। अमेरिका, जो पहले ही मिग-25 जैसी रिवर्स इंजीनियरिंग कर चुका है, इस डेटा से अपनी मिसाइल रक्षा प्रणालियों को अपग्रेड कर सकता है। फ्रांस अपने राफेल जेट्स को पीएल-15ई के खिलाफ बेहतर बना सकता है, जबकि जापान को दक्षिण चीन सागर में चीन के खतरे से निपटने में मदद मिलेगी।

पीएल-15ई मिसाइल का मलबा भारत के लिए एक तकनीकी खजाना है। रिवर्स इंजीनियरिंग से भारत न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन के खिलाफ भी अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत कर सकता है। साथ ही फाइव आईज, फ्रांस और जापान जैसे देशों के साथ सहयोग से भारत वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और सशक्त करेगा। रिवर्स इंजीनियरिंग का इतिहास बताता है कि ऐसी तकनीकों ने देशों को सैन्य और तकनीकी रूप से सशक्त बनाया है, और भारत के पास अब ऐसा ही मौका है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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