इन बर्खास्त किए गए मंत्रियों में इमरती देवी, तुलसीराम सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, महेन्द्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युमन सिंह तोमर और डॉ. प्रभुराम चौधरी शामिल हैं।
इस्तीफा देने वाले कॉन्ग्रेस विधायकों में से 6 आज स्पीकर से मिलेंगे। स्पीकर ने इन विधायकों से मिलकर इस्तीफे की सत्यता बताने को कहा था। 6 विधायकों को आज, 7 को शनिवार और बाकी 9 विधायकों को रविवार को उपस्थित होना है।
इतिहास का यह पन्ना सन् 57 से भी पुराना है। तब सम्पूर्ण भारतवर्ष में मराठा शासन का प्रभाव चरम पर था। मुगलों से अपने तलवे चटवाने वाला एक सिंधिया भी था। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के पूर्वजों की बगावत को कुचलने वाला भी सिंधिया ही था।
जयपुर के दो रिसॉर्ट में कॉन्ग्रेस ने मध्य प्रदेश के अपने विधायकों को रखा है। रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का यह 14वॉं मौका है। अब तक नौ राज्यों की सियासी उठापठक की वजह से यह देखने को मिला है। इस सिलसिले की शुरुआत 1982 में कॉन्ग्रेस के ही भय से हुई थी।
प्रदेश में इन दिनों काला दिन चल रहा है। सिंधिया जी के कारण प्रदेश में सरकार बनी लेकिन उनकी और उनके साथ उनके समर्थक विधायकों की कमलनाथ सरकार में उपेक्षा की गई। कमलनाथ ने ठान लिया था कि सिंधिया जी के समर्थित विधायकों को न तो कोई काम देना है न ही उनकी सुननी है।
"आज यदि राजमाता साहब हमारे बीच होतीं तो आपके इस निर्णय पर जरूर गर्व करती। ज्योतिरादित्य ने राजमाता जी द्वारा विरासत में मिले उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हुए देशहित में यह फैसला लिया है, जिसका मैं व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही तौर पर स्वागत करती हूँ।"
माधवराव सिंधिया जब जनसंघ के सदस्य बने थे, तब उनकी उम्र मात्र 25 साल थी। बाद में वे कॉन्ग्रेसी हो गए। आज जैसे कॉन्ग्रेस में उनके बेटे को दरकिनार किया गया है, ऐसा कभी उनके साथ भी हुआ था। तब 1993 में उन्होंने 'मध्य प्रदेश विकास कॉन्ग्रेस' बनाई थी।
"कॉन्ग्रेस और कमलनाथ की सरकार बनी रहेगी। 16 मार्च को पता चल जाएगा कि नंबर किसके साथ है। उनके (ज्योतिरादित्य सिंधिया) के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राजा-महाराजाओं के दिन लद चुके हैं।"
एक तरफ कमलनाथ सरकार के विधायकों का इस्तीफा देने का सिलसिला जारी है, जो कि इस्तीफा देने वालों की संख्या 19 से बढ़कर 22 पहुँच गई है। वहीं एक तरफ तो कमलनाथ सरकार का गिरना तय माना जा रहा है तो दूसरी ओर बीजेपी ने अपना गणित फिट करने की जुगत शुरू कर दी है।