सोशल मीडिया के समय में प्रोफेशन को आड़ बनाकर अपना प्रोपगेंडा चलाना या कुंठा निकालना कोई नया नहीं रहा.. इस बात को समझने के लिए दो लोगों का उदाहरण लिया जा सकता है। पहली खुद को पत्रकार बताने वाली प्रज्ञा मिश्रा और दूसरी खुद को लोकगायिका कहने वाली नेहा सिंह राठौड़।
इनकी फैन फॉलोइंग देखकर आपको समझ आएगा कि ये अपने-अपने प्रोफेशन के नाम पर आज जनता के बीच इतनी मशहूर हो गई हैं कि इन पर चर्चा हो, लेकिन टाइमलाइन देखने पर पता चलेगा कि ये अपने असली काम को छोड़कर सिर्फ जनता के बीच चुनिंदा पार्टियों का नैरेटिव बनाने में और अपना प्रचार करने में व्यस्त हैं।
प्रज्ञा मिश्रा की पत्रकारिता का अर्थ सिर्फ मोदी का विरोध
प्रज्ञा मिश्रा पत्रकार बनकर जब कैमरे पर आती हैं तो उनसे अपेक्षा की जाती होगी कि वो निष्पक्ष होकर रिपोर्टिंग करें, चाहे वो किसी पार्टी के अच्छे काम पर हो या फिर बुरे। हालाँकि असल में ऐसा होता नहीं है।
I heard that this video of Brave Journalist @PragyaLive has rattled the world of BJP IT Cell,Bhakts & Godi Media upside down.
— The Legal Man (@LegalTL) January 6, 2023
She has shown the public support for @RahulGandhi in lakhs
*NOTE (pragya mishra is the one who in past fought with UP Govt on Hathras case coverage too) pic.twitter.com/xmHAdxjgJg
जो प्रज्ञा राहुल गाँधी की एक झलक दिखने पर जोर-जोर से फैन्स की तरह चिल्लाती हैं, वही प्रज्ञा जब माइक उठाकर ग्राउंड पर उतरती हैं जो उन्हें जनता के रूप में सिर्फ पीएम मोदी की आलोचना करने वाले लोग ही चाहिए होते हैं। वो जितना चिल्लाकर ये पीएम मोदी के कार्यों को बताने वाली मीडिया संस्थानों पर सवाल उठाती हैं, उतनी ही वह चुप तब हो जाती हैं जब प्रियंका गाँधी उनके कंधे पर हाथ रख दें।
माइक उठाओ और चमचा पतलकाल बन जाओ। pic.twitter.com/wsvOJPR8fW
— Ajay Sehrawat (मोदी का परिवार) (@IamAjaySehrawat) January 11, 2023
उनके चैनल को देखने पर पता चलेगा कि वो या तो ग्राउंड पर मोदी विरोधियों का पक्ष दमदार ढंग से रखती हैं या फिर अगर कोई मोदी समर्थक मिल जाए तो उसे अंधभक्त कह देती हैं। उनके इस रवैये से तो यही साफ होता है कि उन्हें हर हाल में सिर्फ मोदी सरकार का विरोध ही करना है चाहे जनता उनके पक्ष में कितना ही बोल ले।
अभी 24 घंटे पहले उलटा चश्मा पर डाली गई प्रज्ञा मिश्रा की वीडियो का उदाहरण देखिए। इसमें भी प्रज्ञा पत्रकार होने की बजाय विश्लेषक बनी हुई हैं। एक ऐसी विश्लेषक जो समझा रही हैं कि पीएम मोदी द्वारा किए गए 400 पार का दावा नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि क्रिकेटर भी जब खेलता है तो रन पहले नहीं बताता, सिर्फ अच्छा खेलता है…मगर मोदी जी तो पहले से ही अपने ‘रन’ बता रहे हैं।
प्रज्ञा मिश्रा की खास बात यह है कि वो ऐसा ज्ञान पीएम मोदी के लिए ही देते हुए मिलती हैं। उनके चैनल पर बाकी पार्टियों से जुड़ी वीडियोज को अगर आप देखेंगे तो पता चलेगा कि जिन प्रज्ञा को पीएम मोदी द्वारा अपना प्रचार किए जाने से समस्या है।
वहीं प्रज्ञा विपक्ष की पार्टियों के लिए माहौल अपने चैनल से बना रही हैं। चैनल पर पीएम मोदी के साथ-साथ समर्थकों को भी नेगेटिव छवि में दिखाने का प्रयास चल रहा है और समाजवादी पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी के समर्थकों को मोदी सरकार के विरोध में आवाज उठाने के लिए मंच दिया जा रहा है।
नेहा सिंह राठौड़ की गायिकी में राजनीति का छौंक
इसी तरह नेहा सिंह राठौड़… अगर आप नेहा को सोशल मीडिया के माध्यम से जानते हैं तो आपको याद होगा कि इन्होंने ‘यूपी में का बा’ जैसे गीतों से अपनी पहचान बनाई थी। वीडियो में भाजपा सरकार की आलोचना थी तो विपक्षियों ने इसे इतना वायरल किया था कि धीरे-धीरे नेहा राठौड़ का विपक्ष फेवरेट होता गया।
व्यूज और लाइक ने उन्हें समझा दिया कि सामान्य गीतों से सिर्फ चंद लोगों तक पहुँचा जाएगा लेकिन लोकगायिकी में राजनीति का तड़का लगाकर अगर वीडियो बनाई तो पहचान और रीच बड़े-बड़े नेताओं तक जाएगी। नतीजतन अब अगर उनका यूट्यूब चैनल आप खोलकर देखेंगे तो समझ आएगा कि उनकी लोकगायिकी अब सिर्फ मोदी विरोधी गीतों में बदलकर रह गई हैं।
नेहा की राजनीतिक महत्वकांक्षाएँ पिछले दिनों एक इंटरव्यू के जरिए भी देखने को मिली थीं जब उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि अगर उन्हें कॉन्ग्रेस चुनाव लड़ने का मौका देगी तो वो क्या करेंगी, नेहा ने न केवल इस बात का जवाब उत्सुकता के साथ दिया था बल्कि जब खबर आई थी मनोज तिवारी के खिलाफ वह कॉन्ग्रेस प्रत्याशी बनाई जा सकती हैं उस पर भी उन्होंने कहा था कि उन्हें ये सब सुनकर अच्छा लग रहा है। इसके बाद आप देखेंगे कि अचानक से पिछले कुछ दिनों में नेहा ने प्रधानमंत्री को निशाना बनाते हुए कई वीडियोज डाली हैं।
नेहा राठौड़ और प्रज्ञा मिश्रा के लिए अब मोदी विरोधी होना ही उनके प्रोफेशन को जस्टिफाई करना रह गया है। अगर वो ऐसा नहीं करते और सिर्फ पत्रकारिता और लोकगायिकी पर ही ईमानदारी से आगे बढ़ते हैं तो या तो उनकी फैन फॉलोइंग कम हो जाएगी या उनकी प्रासंगिकता। दोनों को मालूम है कि प्रोपगेंडा का छौंक ही उनके करियर को महका सकता है, यही वजह है कि चुनावों से पहले वो इसमें कोई कमी नहीं होने दे रहीं।
वैसे मोदी और हिंदू विरोध से दाल-रोटी का जुगाड़ करने वाली प्रज्ञा मिश्रा और नेहा सिंह राठौर अकेली नहीं हैं। पर इनकी प्रोपेगेंडाबाजी से भी खतरनाक उनकी वह मानसिकता जिसमें अपनी आलोचना होने पर दोनों महिला वाला विक्टिम कार्ड प्ले करने लगती हैं। इससे ये दोनों हर उस महिला को कठघरे में खड़ा कर देती हैं जो सशक्त हैं, जो सशक्त भारत के स्वप्न की सहभागी बनना चाहती हैं। जिन्हें खुले में शौच से स्वतंत्रता मिली है। जो अब रसोई में धुआँ पीने को अभिशप्त नहीं हैं।