Wednesday, May 22, 2024
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NIA जज को माँगनी पड़ी माफी, क्योंकि नमाज के लिए नहीं रोकी कोर्ट की कार्यवाही: मुस्लिम वकील पहुँच गया HC, जस्टिस शमीम अहमद ने बताया ‘धार्मिक भेदभाव’

हाई कोर्ट ने कहा, "यह धर्म के आधार पर ट्रायल कोर्ट की ओर से स्पष्ट भेदभाव को दर्शाता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 में निहित मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।" न्यायालय ने यह भी कहा कि एक न्यायाधीश द्वारा व्यक्तिगत आचरण में लिप्त होकर कदाचार करना, उनकी न्यायिक अखंडता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने NIA के विशेष न्यायाधीश वीएस त्रिपाठी को एक मुस्लिम वकील मोहम्मद इदरीस पर ‘टिप्पणी’ करने को लेकर समन जारी किया। इसके बाद जज त्रिपाठी ने हाई कोर्ट के समक्ष 15 अप्रैल 2024 को बिना शर्त माफी माँग ली। दरअसल, जज त्रिपाठी ने पाया कि इदरसी नमाज में भाग लेने के लिए बार-बार अदालत से बाहर जाते थे। इसलिए उन्होंने आरोपितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक न्याय मित्र नियुक्त कर दिया था।

NIA के विशेष जज के इस टिप्पणी के बाद मोहम्मद इदरीस ने हाई कोर्ट का रुख किया। हाई कोर्ट के जस्टिस शमीम अहमद ने इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव बताया और जज त्रिपाठी को समन भेज दिया। जज त्रिपाठी ने हाई कोर्ट में पहुँचकर जज के समाने बिना शर्त के माफी माँग ली।

यह घटना दो मुस्लिम मौलवियों- मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहाँगीर आलम कासमी और अन्य के खिलाफ आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान हुआ। इन दोनों पर उत्तर प्रदेश के आतंकवाद विरोधी दस्ते (UP ATS) द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया गया है। इनकी सुनवाई के दौरान यह घटना घटी।

सुनवाई के दौरान अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (विशेष न्यायाधीश NIA/ATS, लखनऊ) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने जनवरी में अदालत की सहायता के लिए अतिरिक्त वकील के रूप में एमेकस क्यूरी को नियुक्त किया था। दरअसल, कुछ मुस्लिम वकीलों के शुक्रवार (जुमे) की नमाज में जाने के लिए कोर्ट को कुछ समय के लिए स्थगित करने का अनुरोध किया था।

ट्रायल जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने मुस्लिम वकीलों के इस प्रार्थना को ठुकरा दिया था और आदेश दिया था कि जब भी मुस्लिम वकील नमाज में शामिल होने के लिए जाएँगे तो न्याय मित्र अभियुक्तों का कोर्ट में प्रतिनिधित्व करेंगे। इसे मुस्लिम वकीलों ने अपने साथ धार्मिक भेदभाव बताया और इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँच गए।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश शमीम अहमद ने निचली अदालत द्वारा पारित आदेशों पर पिछले महीने रोक लगा दी थी। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ट्रायल कोर्ट ने मुस्लिम वकीलों को आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी थी, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के आवेदन पर फैसला नहीं किया था।

न्यायाधीश शमीम अहमद ने 3 अप्रैल 2024 के आदेश में ट्रायल कोर्ट के जज त्रिपाठी के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश स्थगन आदेश की गंभीरता को समझने में विफल रहे और बहुत ही मनमाने ढंग से आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि वकीलों की गैर-मौजूदगी में ट्रायल हुआ, क्योंकि वे एक निश्चित धर्म से संबंधित हैं।

हाई कोर्ट ने कहा, “यह धर्म के आधार पर ट्रायल कोर्ट की ओर से स्पष्ट भेदभाव को दर्शाता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 में निहित मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।” न्यायालय ने यह भी कहा कि एक न्यायाधीश द्वारा व्यक्तिगत आचरण में लिप्त होकर कदाचार करना, उनकी न्यायिक अखंडता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

हाई कोर्ट ने आगे कहा, “यह न्यायिक कदाचार को दर्शाता है, जो एक कार्यात्मक न्यायपालिका के लिए आवश्यक चीज़ों के मूल को तोड़ देता है, जिसके तहत नागरिक मानते हैं कि उनके न्यायाधीश निष्पक्ष हैं। न्यायपालिका लोगों के विश्वास और भरोसे के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकती। इसलिए, न्यायाधीशों को कानूनी और नैतिक मानकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।”

इसके बाद NIA के जज त्रिपाठी सोमवार (15 अप्रैल 2024) को न्यायाधीश शमीम अहमद के सामने पेश हुए और बिना शर्त माफी माँगी। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने गलतफहमी के तहत आदेश पारित किया है और भविष्य में सतर्क रहेंगे। उनके वकील ने व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के लिए कुछ समय माँगा, जिसके बाद अदालत ने उन्हें दो दिन का समय दिया है।

इस मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल 2024 को होगी। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता मोहम्मद आमिर नकवी, जिया उल कय्यूम, अभिषेक सिंह और अजीत प्रताप सिंह ने किया। न्यायाधीश विवेकानन्द शरण त्रिपाठी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने किया। वहीं, सरकार की ओर से अधिवक्ता शिवनाथ तिलहरी ने पैरवी की।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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