Monday, November 25, 2024
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जो मंदिर कभी बॉलीवुड फिल्मों और गानों में था मशहूर, आखिर क्यों किसी मुस्लिम को बना दिया गया वहाँ का पुजारी?

गुलमर्ग पुलिस थाने के प्रभारी सब इंस्पेक्टर फारूक अहमद के अनुसार, मंदिर की देखरेख पुजारी समेत तीन लोग करते हैं। इनमें दो लोग स्थानीय मुस्लिम समुदाय से हैं। इनमें से एक गुलाम मोहम्मद शेख का भांजा है। मंदिर छोटा होने के चलते रात को दोनों मंदिर के निकट स्थित हट में चले जाते थे। घटना की रात मंदिर का पुजारी भी निकटवर्ती गुरुद्वारे में सो रहा था।

जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग की पहाड़ी पर स्थित महारानी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर में 5 जून 2024 की तड़के आग लग गई। आग को तो बुझा लिया, लेकिन मंदिर पूरी तरह जल गया है। आग लगने का कारणों का फिलहाल पता नहीं चल पाया है। लगभग 109 साल पुराने इस मंदिर को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की धर्मपत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया ने सन 1915 में बनवाया था। 

महारानी मंदिर में मोहिनीश्वर शिव स्थित हैं। यह घास के मैदानों से घिरी एक पहाड़ी पर स्थित था। लकड़ी और पत्थरों से बने 109 साल पुराने इस शिव मंदिर का विशिष्ट पिरामिडनुमा गुंबद है। इसमें ऐसी खिड़कियाँ थीं, जो गुलमर्ग के सभी कोनों से दिखाई देती थीं। मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम शर्मा ने मंदिर में आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया। हालाँकि, अभी असली वजह का पता नहीं चल पाया है।

कश्मीर में 1990 के हिंदू विरोधी नरसंहार से पहले इस महारानी मंदिर की भव्यता और प्रसिद्धि अपने चरम पर थी। यही कारण है कि यहाँ ना सिर्फ हिंदू श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता था, बल्कि फिल्मों में इसे दिखाने की होड़ लगी रहती थी। उस समय तक मंदिर में पुजारी से लेकर इसका प्रबंधन तक हिंदुओं के हाथों में हुआ करता था। महाराजा हरि सिंह के समय से ही मंदिर में ब्राह्मण पुजारी नियुक्त थे।

यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय था। इतना ही नहीं, इस मंदिर को बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी दिखाया जा चुका है। राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत सुपरहिट फिल्म ‘आप की कसम’ का लोकप्रिय गाना ‘जय जय शिव शंकर’ इसी मंदिर में फिल्माया गया था। इसके अलावा इसके अलावा फिल्म ‘रोटी’, ‘अंदाज’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसी फिल्मों की शूटिंग भी इस मंदिर में हो चुकी है।

हालाँकि, 1990 के दशक में घाटी में इस्लामी आतंकियों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ छेड़े गए अभियान और हिंदुओं के पलायन के बाद यहाँ के हिंदू-सिखों के ही नहीं, बल्कि मंदिरों के भी दुर्दिन शुरू हो गए। हिंदुओं के पलायन के बाद पलायन के बाद यह मंदिर लंबे समय तक बंद रहा। बाद में बारामुल्ला जिले के दंडमुह निवासी गुलाम मोहम्मद शेख ने 23 सालों तक इस मंदिर की देखभाल और पूजा-अर्चना की।

गुलाम मोहम्मद शेख को धर्मार्थ ट्रस्ट की ओर से मासिक वेतन पर शुरू में चौकीदार के रूप में नियुक्त किया गया था। हालाँकि, बाद में उन्होंने हिंदुओं के पवित्र कर्मकांड एवं अनुष्ठान की विधि को सीखा। मंदिर में जब नियमित पुजारी की अनुपस्थिति हो गई तो गुलाम मोहम्मद शेख पूजा के साथ-साथ शाम और सुबह की आरती करने लगे। हालाँकि, साल 2021 में वह इस काम से सेवानिवृत्त हो गए।

गुलमर्ग पुलिस थाने के प्रभारी सब इंस्पेक्टर फारूक अहमद के अनुसार, मंदिर की देखरेख पुजारी समेत तीन लोग करते हैं। इनमें दो लोग स्थानीय मुस्लिम समुदाय से हैं। इनमें से एक गुलाम मोहम्मद शेख का भांजा है। मंदिर छोटा होने के चलते रात को दोनों मंदिर के निकट स्थित हट में चले जाते थे। घटना की रात मंदिर का पुजारी भी निकटवर्ती गुरुद्वारे में सो रहा था।

अब यह मंदिर जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट के अधीन है। नवंबर 2023 में धर्मार्थ ट्रस्ट ने पुरुषोत्तम शर्मा को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया है। ट्रस्ट मंदिर के पुनर्निर्माण की तैयारी कर रहा है। वहीं, फारूक अहमद ने बताया कि शुरुआती जाँच में पता चला कि मंदिर में बिजली के तारों में शॉर्ट सर्किट हुआ, जिसके कारण आग लगी। वहीं, पुजारी पुरुषोत्तम शर्मा ने मंदिर में आगजनी की घटना से इनकार किया है।

सोशल मीडिया पर सवाल

ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब मंदिर में ना पुजारी सो रहा था और ना ही उसका सहयोगी तो कैसे पता चला कि किसी ने आगजनी नहीं की। बिजली के तारों में भी छेड़छाड़ करके शॉर्ट सर्किट किया जा सकता है, क्योंकि घटना के वक्त मंदिर में कोई मौजूद नहीं था। लोगों का तर्क है कि ऐसा करके अब शांति को कदम बढ़ा रहे जम्मू-कश्मीर में माहौल बिगाड़ने वाले अराजक तत्वों की अभी भी कमी नहीं है।

वहीं, मंदिर में मुस्लिम व्यक्ति को देखभाल एवं पुजारी नियुक्त करने पर सवाल उठाया है। लोगों का तर्क है कि मंदिर एक पवित्र जगह है, जहाँ प्रवेश करने पर कई तरह नियम और कायदे का पालन करना जरूरी है। इनमें सात्विक भोजन, शुद्ध आचार-व्यवहार एवं अन्य तरह पाबंदियाँ भी शामिल हैं। उनका कहना है कि गुलाम मोहम्मद को मंदिर का देखरेख करने के लिए उस दौर में रखा गया था, जब वहाँ कोई हिंदू नहीं था।

लोगों ने गुलाम मोहम्मद द्वारा मंदिर में पूजा-पाठ एवं आरती का विरोध किया। इसके साथ ही वर्तमान में नियुक्त किए गए दो मुस्लिम देखरेख करने वालों पर सवाल उठाया गया है। अन्य कुछ लोगों का तर्क है कि मंदिर की देखभाल करना अलग बात है और उसमें पूजा-पाठ करना अलग बात है। इसके पीछे लोगों ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की एक घटना का भी जिक्र किया।

बीएचयू में संस्कृत विभाग में डॉक्टर फिरोज की नियुक्ति होने पर छात्रों ने जमकर बवाल किया था। उन्होंने कहा था कि डॉक्टर फिरोज को कर्मकांड का क्या जानकारी होगी। इसके खिलाफ छात्रों ने धरना प्रदर्शन भी किया था। हालांकि, बीएचयू के वीसी और कुछ प्रोफेसरों ने डॉक्टर फिरोज की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति का समर्थन किया था।

लोगों का यह भी तर्क है कि जिस मुस्लिम समुदाय में मूर्ति पूजा शिर्क है, हराम है…. क्या वे उतनी पवित्रता या भाव से पूजा-पाठ या कर्मकांड को अंजाम देते होंगे या फिर सिर्फ इसे भी किसी दैनिक काम की तरह ही निपटाते होंगे। उनका तर्क है कि जिस तरह से एक गैर-मुस्लिम को कुरान आदि पढ़ने के बाद भी मौलवी आदि नहीं बनाया जा सकता, उसकी तरह हिंदू धर्म में भी गैर-हिंदू को पुजारी नहीं बनाया जाना चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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