नहीं, तो क्या करे प्रधानमंत्री? कोने में सर झुका कर भोक्कार पार कर रोता रहे? क्या करना चाहिए प्रधानमंत्री को? आपकी तरह की गिरी हुई राजनीति कि आप उसे पंद्रह दिन में क्रमशः, ‘कहाँ है 56 इंच’, ‘ये तो एयरफ़ोर्स ने किया’, ‘मोदी के कारण ही पकड़ा गया’, ‘जेनेवा कन्वेंशन के कारण वापस आएगा’, ‘इमरान ने दे दिया’, ‘मोदी का क्या हाथ है इसमें’, ‘मोदी रैलियाँ करने में बिजी है’, कहते हुए एसी-डीसी करते रहे?
प्रधानमंत्री ने जो किया है वो ऐतिहासिक है। ऐतिहासिक इस लिहाज से कि प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री की तरह काम किया है जो कि जनता का प्रतिनिधि होता है। उसका काम जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए, देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा की चिंता करते हुए, उन लोगों को इसकी सुरक्षा की योजना बनाने की स्वतंत्रता देनी चाहिए जो इस क़ाबिल हैं। इस मामले में तीनों सेनाध्यक्ष, कश्मीरी मामलों के जानकार, आतंकी ऑपरेशन्स को हैंडल करने वाले दिग्गज सैन्य अधिकारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि वो लोग हैं जो इस कार्य के क़ाबिल हैं।
प्रधानमंत्री ने इन्हें अपना काम करने की स्वतंत्रता दी और नतीजा सामने है कि 40 के बाद 350 तबाह कर दिए गए जिसका रोना वही आतंकी रो रहे हैं जो कैंप चला रहे थे। ये बात और है कि दिग्विजय से लेकर ममता तक सबूत माँगते फिर रहे हैं। उनके पास विदेशों के समाचार पत्र पढ़ने के लिए संसाधन हैं, और उन पर विश्वास है लेकिन भारतीय सेनाओं के आला अधिकारियों के प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिए गए सबूत और बयान काफी नहीं। इनको लाइव टेलिकास्ट चाहिए था। इसीलिए चुटकुला चलता है कि अगली बार मिग के ऊपर दीदी, बाबू, बेबी सबको बिठाकर ले जाना चाहिए एयर स्ट्राइक्स के लिए।
प्रधानमंत्री अगर एक दिन बैठ जाए तो कितने कार्यक्रम टल जाएँगे, उसकी बात कोई नहीं करता। लोग भूल जाते हैं कि इन रैलियों को संबोधित करने से पहले मोदी कितने हजारों करोड़ की योजनाओं की शुरुआत करने से लेकर लोकार्पण तक करता है। लोगों की समस्या यही है कि मोदी कुछ भी करे, वो काफी नहीं है।
क्या ये लोग बताएँगे कि मोदी को कितने दिन तक रुक कर रैलियाँ करना चाहिए था? कितने दिन का शोक होना चाहिए था? क्या शोक मनाने का ज़िम्मा मोदी पर ही है, वो भी आपके तरीके से? आप भी तो इस तरह की बेहूदी और बेसिरपैर की बातें नहीं करके जवानों के बलिदान का सम्मान कर सकते थे? लेकिन नहीं, आप अपनी राजनीतिक रोटी सेंकिए, लेकिन मोदी राजा रामचंद्र बनकर चौदह साल के वनवास पर निकल जाए!
आपने तो बहुत कोशिश की कि साबित हो जाए कि हमले की ख़बर मिलने के बाद मोदी जिम कॉर्बेट में विडियो बनवा रहा था, लेकिन वहाँ आपकी तृष्णा शांत नहीं हो पाई। आपने बहुत कोशिश की यह फैलाने की कि मोदी ने ही चुनावों को देखते हुए ये हमले कराए। आपने यहाँ तक कहा कि आत्मघाती हमलावर का शव कहाँ है, ये हमला तो भाजपा वालों ने कराया है! आपने क्या-क्या नहीं कहा और लिखा!
आपने मोदी के नेतृत्व को पहले चैलेंज किया, फिर नकारा, फिर उपहास किया, फिर उसे क्रेडिट देने से मना किया… ये चलता रहा, और ग़ज़ब की बात तो देखिए कि मोदी ने आपके लिए एक भी शब्द ख़र्च नहीं किए। उसे पता है कि उसको जवाब जनता को देना है, और सीमा की रक्षा का दायित्व सेना पर है, वही इसको बेहतर तरीके से करेंगे, तो उसने उन्हें स्वतंत्रता दे रखी है। जितनी जानकारी लेनी होती है, वो मोदी तक पहुँच जाती है।
मेरे ही एक मित्र ने कह दिया कि वो सवाल नहीं कर सकता क्या कि मोदी रैली क्यों कर रहा है? ये सवाल है ही नहीं, ये सवाल में छिपा एक जवाब है जो कि मीडिया और राजनैतिक विरोधियों द्वारा फैलाया जा रहा अजेंडा है जिसके केन्द्र में यह बात साबित करने की कोशिश है कि देखो, मोदी सैनिकों का अपमान कर रहा है।
आप मोदी को सैनिकों के विरोध में खड़ा करना चाह रहे हैं। आप उसके सर ‘शहीदों का दर्जा’ नहीं देता का प्रोपेगेंडा चलाते हैं। आप उस व्यक्ति को ही सेना के विरोध में दिखाना चाहते हैं जिसने सेना की बेहतरी के लिए बुलेट प्रूफ वेस्ट से लेकर, कश्मीर में पैलेट गन के प्रयोग की अनुमति, वन रैंक वन पेंशन जैसे क़दम उठाए। और इन सब बातों के द्वारा आप किसको लेजिटिमेसी दे रहे हैं? राहुल गाँधी को? महागठबंधन के चोरों को? अपनी ज़मीन तलाशिए कि कहाँ खड़े हैं आप।
आप ही तो वो हैं न जो आरोप लगाते हैं कि मोदी ही हर जगह है, किसी को अपना काम करने नहीं देता है? अब जब वो एयरफ़ोर्स या आर्मी को अपना काम करने दे रहा है, और वो प्रधानमंत्री के तौर पर लोगों के लिए लोककल्याणकारी योजनाओं पर काम कर रहा है, तो आपको समस्या है कि वो रोता हुआ कहीं कोने में क्यों नहीं दिखता?
मैं चाहूँगा कि ये सवाल पूछने वाले लोग इस सवाल के बाद के तर्क भी रखें कि रैलियाँ करना गलत क्यों है, कैसे है। साथ ही, लोग यह भी बताएँ कि कितने दिन कमरे में बंद रहने के बाद मोदी को बाहर आकर काम शुरू करना चाहिए था। प्रश्नवाचक चिह्न को गले में स्वैग बनाकर घूमने वाली जनता यह भी बता दे कि पुलवामा के कुछ ही दिन बाद छः जवान MI17 हेलिकॉप्टर क्रैश में बलिदान हुए, कुपवाड़ा में कल ही चार जवान हुतात्मा हुए, तो क्या उनके लिए शोक न मनाया जाए?
घाटी में स्थिति इतनी संवेदनशील है कि हर सप्ताह हमारे जवानों का बलिदान होता है। आप जरा सोचिए कि प्रधानमंत्री रुक जाए, कैबिनेट रुक जाए? या जो इससे निपटने के लिए सक्षम हैं, उन्हें इस पर कार्य करने दे? हर जवान का शव किसी एक परिवार, उसके यूनिट, उसके दोस्तों, उसके गाँव-घर के लिए उतना ही महत्व रखता है, जितना एक साथ चालीस का आना। एक भी जवान बिना युद्ध के नहीं बलिदान होना चाहिए, लेकिन देशविरोधी ताक़तें ऐसा होने नहीं देतीं।
यही कारण है कि हम लगातार उनसे संघर्ष करते रहते हैं। हम रुकते नहीं क्योंकि काम करते रहना हमें संवेदनहीन नहीं बनाता। सवाल तो यह भी है कि आप पुलवामा के बलिदानियों की चिता की आग और कब्र की मिट्टी के दबने का भी इंतजार कहाँ कर पाए, आप तो स्वयं ही ऐसे सवाल उठाकर अपनी संवेदनहीनता का उम्दा सबूत पेश कर रहे हैं।
आपने ऑफिस जाना बंद कर दिया? आपने लोगों से बात करना छोड़ दिया? ओह! आप तो जनप्रतिनिधि नहीं हैं। लेकिन आप मानव तो हैं न? वस्तुतः, आप तो उससे भी आगे देशभक्त व्यक्ति हैं जो कि प्रधानमंत्री से ज़्यादा ध्यान देते हैं ऐसी बातों पर, फिर आप क्या कर रहे हैं संवेदना प्रकट करने के लिए? फेसबुक पोस्ट लिखकर, व्हाट्सएप्प में ये पूछ रहे हैं कि मोदी रैलियाँ क्यों कर रहा है? क्या कहीं लिखा है कि जनप्रतिनिधि ही संवेदनशील होता रहे? पूछिए ये सवाल, आपको जवाब मिल जाएगा।
आप बेचैन प्राणी हैं, या अजेंडाबाज व्यक्ति जिसके लिए कहीं से ऐसे सवाल भेजे जाते हैं, और आप बिना सोचे पूछ देते हैं। मैं बताता हूँ आपको कि अगर प्रधानमंत्री रुक जाता तो आप क्या करते। आपके पास सवाल पहुँचाए जाते कि राजनाथ सिंह फ़लाँ जगह स्पीच क्यों दे रहे हैं? फिर वो भी चुप रहते तो आप ले आते कि हर्षवर्धन जी फ़लाँ जगह पर फ़ीता काट रहे थे… आप ये चलाते रहेंगे क्योंकि आपको सैनिकों की चिंता नहीं है, आपको ब्राउनी प्वाइंट्स लेने हैं। दुःख की बात यह है कि आप अपनी इस नीचता को भी ठीक से स्वीकार नहीं पाते।