Friday, November 22, 2024
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वोटर कार्ड को आधार से जोड़ना, मतदाता सूची का एकीकरण: चुनाव सुधार की दिशा में मोदी सरकार के महत्वपूर्ण फैसले, ‘एक देश एक चुनाव’ की ओर कदम

चुनाव-प्रक्रिया के दुहराव को रोकने की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। 'एक देश, एक चुनाव' ही इस दोहराव का सही समाधान है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराकर श्रम, समय और संसाधनों की बचत की जा सकती है।

चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए बीते दिनों मोदी सरकार ने पिछले दिनों मतदाता पहचान-पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने सहित कई कदम उठाए। इनमें पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/लोकसभा चुनावों की मतदाता सूचियों को एक करने और नए मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए 18 वर्ष की आयु-निर्धारण करने के लिए एक तिथि (एक जनवरी) की जगह 4 तिथि (1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर) करने जैसे कई अहम निर्णय लिए। सरकार के इन फैसलों की तारीफ करते हुए देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी समेत अन्य लोगों ने इन सुधारों को ऐतिहासिक व लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम बताया है।

सरकार के इस फैसले से मतदाता लिस्ट को आधार कार्ड से जोड़ने पर फेक वोटर्स को चिन्हित कर उनके नाम को हटाना आसान हो जाएगा। देश में कई सारे लोगों का नाम जाने-अनजाने में एक से अधिक जगहों पर वोटिंग लिस्ट में शामिल किया गया है, जिससे ‘एक व्यक्ति एक मत’ के संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन होता है और वास्तविक जनादेश भी प्रभावित होता है। एक व्यक्ति का नाम एका से अधिक मतदाता सूचियों में होने से मतदान का सही प्रतिशत पता कर पाना मुश्किल हो जाता है। इसका लाभ उठाकर चुनावी प्रक्रिया को बाधित किया जाता है। ऐसा करके लोग लोकतंत्र को कमजोर करते हैं। लंबे समय से चुनाव आयोग इस समस्या से निजात पाने के लिए कोशिशें कर रहा है। इसके लिए कई सॉफ्टवेयर बनाकर भी मतदाता सूचियों में दुहराव को खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। हालाँकि, वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से जोड़ने पर फर्जी मतदाताओं से निजात मिल सकेगी। विपक्ष इसे लोगों की निजता पर हमला बता रहा है।

जम्मू यूनिवर्सिटी के अधिष्ठाता प्रोफेसर रसाल सिंह के मुताबिक, चुनाव सुधार की दिशा में मोदी सरकार द्वारा लिया गया दूसरा निर्णय पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/लोकसभा चुनावों की मतदाता सूचियों को एक करने का है। आगे बढ़ने से पहले बता दें कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर समेत दूसरे राज्यों में पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/ लोकसभा चुनावों में अलग-अलग मतदाता सूचियों का प्रयोग किया जाता है। पंचायत/निकाय चुनाव की वोटर लिस्ट को सम्बंधित राज्य का निर्वाचन आयोग तैयार करता है, जबकि विधानसभा/लोकसभा चुनाव की मतदाता सूचियों का निर्माण भारत का निर्वाचन आयोग करता है। राज्य विशेष के चुनाव आयोग को भारत के चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई लिस्ट को पंचायत/निकाय चुनाव के लिए प्रयोग करने का अधिकार है। हालाँकि, ऐसा होने के बाद भी इन राज्यों में ऐसा नहीं किया जाता है। दरअसल, ये राज्य अलग से अपनी मतदाता सूची तैयार कराते हैं। मतदाताओं के दुहराव की तरह मतदाता सूचियों के दुहराव से भी समस्या होती है। इस प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से संसाधनों का इस्तेमाल होता है। नई वोटर लिस्ट को तैयार करना बहुत कठिन होता है। ऐसे में इस काम को एक ही बार में निपटाने की कोशिश की जाती है।

इसका दोहराव इसलिए भी हास्यास्पद लगता है, क्योंकि पंचायत/निकाय चुनावों, विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के मतदाता अलग-अलग न होकर एक ही हैं। एक ही मतदाता सूची को उपरोक्त तीनों चुनावों के लिए प्रयोग करने से बड़ी मात्रा में धन और मानव श्रम की बचत हो सकेगी। इसे समझते हुए देश के कई राज्यों में चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई वोटर लिस्ट का इस्तेमाल पंचायत/निकाय चुनाव के लिए करते हैं, लेकिन अब से यह कार्य भारत भर में अनिवार्य हो सकेगा। निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार कराई जाने वाली मतदाता सूची में वार्ड का कॉलम बढ़ाकर वार्ड प्रतिनिधियों का चुनाव भी सफलतापूर्वक कराया जा सकता है।

18 साल की उम्र पूरी करते ही वोटर लिस्ट में जुड़वा सकेंगे नाम

अभी तक ऐसा नियम था कि हर साल एक जनवरी को 18 साल की उम्र पूरी करने वाले युवाओं के नाम को मतदाता सूची में शामिल किया जाता था। इससे 2 जनवरी से लेकर 31 दिसम्बर के बीच 18 वर्ष के होने वाले मतदाताओं को 1 वर्ष तक अपना नाम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। ऐसे में अगर इस बीच में कोई चुनाव होता है तो बड़ी संख्या में युवा इससे वंचित रह जाते थे। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने 18 वर्ष की आयु निर्धारण के लिए 1 जनवरी के अलावा 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्तूबर की तारीख को तय कर दिया है। इससे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में युवा मतदाताओं की बड़ी संख्या की समयबद्ध भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।

केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इन तीन फैसलों से चुनाव सुधार का मार्ग प्रशस्त होगा और भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और प्रगति सुनिश्चित होगी। हालाँकि, अभी भी ये पर्याप्त नहीं हैं। धन पशुओं और अपराधियों ने भारतीय लोकतंत्र को बंधक बना लिया है। इसे उनके पंजों से छुड़ाने के लिए कठोर प्रावधानों की आवश्यकता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की कई रिपोर्ट में ग्राम पंचायतों से लेकर विधान मंडलों और संसद के दोनों सदनों में करोड़पतियों और अपराधियों की भरमार को लेकर चिंता व्यक्त की गई है। स्थिति ये है कि आज साफ़-सुथरे और सीधे-सच्चे आदमी का चुनाव लड़ना और जीतना संभव नहीं है। संसद और विधानसभाएँ भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की आरामगाह बन गई हैं। देश उनके लिए चारागाह बन गया है। डेलिगेट वाले (अप्रत्यक्ष) चुनावों को बंद करके कुछ सफाई की जा सकती है।

गलत शपथ-पत्र देने वाले और अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक, कई जगह से चुनाव लड़ने या कार्यकाल पूरा होने से पहले ही दूसरा चुनाव लड़ने, राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता, भड़काऊ बयान देने और लोक-लुभावन घोषणाएँ करने वाले प्रत्याशियों/दलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई, चुनावी घोषणा-पत्र को शपथ-पत्र की तरह न्यायिक दस्तावेज बनाने, दल-बदल करने वालों और उनके परिजनों के लिए पाँच साल तक नई पार्टी या सरकार में पद लेने पर रोक, एक पद के लिए एक व्यक्ति के पाँच बार से अधिक बार चुनाव लड़ने पर रोक जैसे प्रावधान जरूरी हो गया है। दल-बदल करने वाले प्रत्याशी और उसके परिवार के लिए भी पाँच साल का “कूल-इन पीरियड” अनिवार्य किया जाना चाहिए। संपत्ति के विवरण और कूल-इन पीरियड जैसे प्रावधानों के लिए परिवार का अर्थ संयुक्त परिवार किया जाना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर राजनीतिक दल अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के संयुक्त परिवार हैं।

चुनाव-प्रक्रिया के दुहराव को रोकने की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। ‘एक देश, एक चुनाव’ ही इस दोहराव का सही समाधान है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराकर श्रम, समय और संसाधनों की बचत की जा सकती है।

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प्रो. रसाल सिंह
प्रो. रसाल सिंह
प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। साथ ही, विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, छात्र कल्याण का भी दायित्व निर्वहन कर रहे हैं। इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ाते थे। दो कार्यावधि के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के निर्वाचित सदस्य रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक और साहित्यिक विषयों पर नियमित लेखन करते हैं। संपर्क-8800886847

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