Thursday, May 2, 2024
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‘मैं हूँ सुप्रीम कोर्ट का इंचार्ज, मैं करूँगा फैसला’: समलैंगिक शादी वाली याचिका पर उठे सवाल तो बोले CJI चंद्रचूड़, कहा – प्रक्रिया क्या होगी ये बताने की अनुमति किसी को नहीं दूँगा

सीजेआई के जवाब के बाद सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि फिर सरकार भी मामले की सुनवाई में शामिल होने पर विचार करेगी। इस पर बेंच में शामिल जस्टिस संजय कौल ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और सरकार का यह कहना कि 'सुनवाई में शामिल होने पर विचार करेगी' ठीक नहीं है।

सुप्रीम कर्ट में समलैंगिग विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने के याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने याचिकाओं की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के राजी होने पर सवाल उठाया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शादी विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट नई संस्था नहीं बना सकता। कोर्ट रूम में उपस्थित वकील और जज देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इसलिए इन मसलों पर विचार के लिए संसद सही जगह है।

हालाँकि, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सरकार की आपत्ति को खारिज कर दिया और सुनवाई जारी रखने का फैसला किया। याचिकाकर्ता का पक्ष वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत के सामने रखा।

सेम सेक्स मैरेज को मान्यता देने के लिए दी गई अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की। इनमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रविंद्र भट, पी एस नरसिम्हा और हिमा कोहली शामिल हैं। सुनवाई के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कहा कि केस पर सरकार अपनी आरंभिक आपत्तियाँ बताना चाहती है। जिसे सुना जाना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि पहले याचिकाकर्ता को सुन लेते हैं।

इसपर एसजी ने कहा कि पहले याचिकाकर्ता को सरकार की आपत्तियों पर जवाब देना चाहिए। इसके बाद CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “मैं कोर्ट का इंचार्ज हूँ। यह फैसला मैं करूँगा। पहले याचिकाकर्ता को सुना जाएगा। इस अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया क्या होगी यह बताने की अनुमति मैं किसी को नहीं दूँगा।”

सीजेआई के जवाब के बाद सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि फिर सरकार भी मामले की सुनवाई में शामिल होने पर विचार करेगी। इस पर बेंच में शामिल जस्टिस संजय कौल ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और सरकार का यह कहना कि ‘सुनवाई में शामिल होने पर विचार करेगी’ ठीक नहीं है। इसके बाद बहस शुरू हो सकी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अदालत में पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि समलैंगिक भी दूसरे नागरिकों की तरह अधिकार रखते हैं।

उन्होंने कहा कि एक समय में कानून की धारा 377 के तहत उनके बीच संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे पर आज ऐसा नहीं है। यदि समलैंगिक लोग साथ रह सकते हैं तो उनकी शादी को भी मान्यता मिलनी चाहिए।

याचिका पर जमियत उलेमा हिंद ने भी आपत्ति जताई है। जमीयत की तरफ से वरिष्ठ वकील और कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल सेम सेक्स मैरेज का विरोध करने के लिए अदालत में पहुँचे। उन्होंने कहा कि समलैंगिक यदि किसी बच्चे को गोद लेते हैं तो किसे माँ और किसे बाप माना जाएगा? उन्होंने पूछा कि गुजारा भत्ता की जिम्मेदारी किसकी होगी? कपिल सिब्बल ने कहा कि शादी विवाह से जुड़े मामले संविधान की समवर्ती सूची (Concurrent List of the Constitution) में आते हैं। इसलिए इस विषय पर राज्य सरकारों की भी राय ली जानी चाहिए।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में याचिका दाखिल करने वाले लोगों की तरफ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी और के वी विश्वनाथन ने भी अपनी शुरुआती दलीलें दीं। मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न मिल पाने की वजह से समलैंगिक जोड़े कई कानूनी अधिकार हासिल नहीं कर पा रहे हैं। मुकुल रोहतगी ने कहा कि कानून की हल्की व्याख्या से समलैंगिक जोड़ों को राहत मिल जाएगी।

उन्होंने कहा कि 31 देशों ने समलैंगिग विवाह को मान्यता दी हुई है, इसलिए भारत में भी प्रगतिशील नजरिए को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई बुधवार (18 अप्रैल) को भी जारी रहेगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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