Friday, April 19, 2024
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अजीत झा

देसिल बयना सब जन मिट्ठा

‘उस समय माहौल बहुत खौफनाक था…’: वे घाव जो आज भी कैराना के हिंदुओं को देते हैं दर्द, जानिए कैसे योगी सरकार बनी सुरक्षा...

योगी सरकार की क्राइम को लेकर जीरो टॉलरेस की नीति ही वह सुरक्षा कवच है जो कैराना के हिंदुओं को भरोसा दिलाती है कि 2017 से पहले का वह दौर नहीं लौटेगा, जिसकी बात करते हुए वे आज भी सहम जाते हैं।

एक मुहम्मदवाद के इतने खतरे, और ‘पैगंबर’ गढ़कर क्या करेंगे: कालीचरण महाराज की ‘गाली’ से गायब नहीं हो जाते गाँधी पर सवाल

क्या यह विचित्र नहीं है कि इस देश में हिंदू अराध्यों को गाली दी जा सकती है, देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात हो सकती है... पर गाँधी पर सवाल नहीं किया जा सकता।

पहले ‘मैं हिंदुत्ववादी नहीं हूँ’, अब महात्मा गाँधी पर बदजुबानी: रायपुर ‘धर्म संसद’ की पटकथा कॉन्ग्रेस की लिखी?

आखिर क्या कारण है कि चित्रकूट के हिंदू महाकुंभ की उपेक्षा करने वाले ​हरिद्वार और रायपुर के 'धर्म संसद' पर इतना हल्ला मचा रहे?

‘पहिले से तो अब बहुत अच्छा हो गया है, इस समय बनारस स्वर्ग हो गया है’: हिंदू गौरव का नया प्रतीक श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर

जिस श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को देश को समर्पित करेंगे, वहाँ के उत्सवी वातावरण, दिव्यता, भव्यता और जीवंत आध्यात्मिकता की ग्राउंड रिपोर्ट।

छावनी सी अयोध्या, राम राज्य सी व्यवस्था और एक साधु… 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में क्या-कैसे हुआ, एक महंत की जुबानी

6 दिसंबर 1992। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर खड़ा एक ढाँचा ध्वस्त कर दिया गया। यह कैसे संभव हुआ? उस समय युवा साधु रहे महंत ब्रजमोहन दास की आँखों देखी।

विनोद दुआ को कैसे याद करूँ… पाखंड हुआ नहीं जाता और गोधरा में जलाए गए रामभक्त भी याद आ रहे

इसे पाखंड कहूँ या विडंबना विनोद दुआ को उसी तरह की श्रद्धांजलि खूब पड़ रही है जो वे नहीं चाहते थे। दुखद यह है कि ऐसा उनके लिबरल-सेकुलर मित्र भी कर रहे।

वो ‘क्विड प्रो क्को’ जिसके लिए सुषमा स्वराज ने राहुल गाँधी से कहा था- अपनी ममा से पूछें: कहानी भोपाल गैस त्रासदी की, शहरयार...

कहा जाता है कि भोपाल के गुनहगार वॉरेन एंडरसन की आजादी के बदले अमेरिका ने राजीव गाँधी के यार आदिल शहरयार को रिहा किया था।

माना लोकतंत्र में विपक्ष हो, पर जब उसकी नकारात्मक राजनीति लोकतंत्र के लिए ही नासूर बन जाए तो क्या करें?

ऐसे विपक्ष का क्या इलाज है? क्या लोकतंत्र के नाम पर ऐसे विपक्ष को ढोते रहना चाहिए?

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