Friday, May 3, 2024
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Anand Kumar

Tread cautiously, here sentiments may get hurt!

जया बच्चन का कुत्ता टॉमी, देश के आम लोगों का कुत्ता कुत्ता: बॉलीवुड सितारों की कहानी

जया बच्चन जी के घर में आइना भी होगा। कभी सजते-संवरते उसमें अपनी आँखों से आँखे मिला कर देखिएगा। हो सकता है कुछ शर्म बाकी हो तो वो आँखों में...

जिस दरभंगा में 1930-40 में हवाई जहाज और रनवे था… वो बंद क्यों हुआ? क्यों कॉन्ग्रेसी सरकारों ने यहाँ की जनता को छला?

दरभंगा एयरपोर्ट की माँग आखिर सुन ली गई। अब नवम्बर से यहाँ से स्पाइस जेट की तीन उड़ानें दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई जाएँगी।

मोदी किसानी-गाय-बैल-मछली की बात कर रहा है… हम लड़ेंगे साथी, पौव्वा पीकर उससे लड़ेंगे

पिछले डेढ़-दो दशकों में हमने कभी एक राज्य में एक साथ सिर्फ कृषि क्षेत्र के लिए इतनी अलग-अलग परियोजनाओं का नाम सुना हो - याद नहीं!

मंदिर निर्माण एक धार्मिक घटना ही नहीं, संस्कृति का पुनर्जागरण है

जन्मभूमि से इतनी दिक्कत क्योंकि विदेशियों की फेंकी हुई बोटियों पर पलने वाले कुत्तों की दशकों की मेहनत पर ये एक झटके में पानी फेर देता है।

एक नारे से क्या होता है? ‘राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे’ भी एक नारा ही था…

कई लोग अगस्त में ही दीपावली मानाने की तैयारी में भी दिखते हैं। वैसे इससे हमें दूसरा वाला नारा - काशी-मथुरा बाकी है, याद आ जाता है, मगर उससे दीयों के बजाए कुछ और ही जलने लगेगा! नहीं?

भारतीय सेना जब भी विदेशी जमीन पर उतरी है, नया देश बनाया है… मुस्कुराइए, धुआँ उठता देखना मजेदार है

भारत-चीन विवाद के बीच प्रधानमंत्री का लेह-लद्दाख पहुँच जाना सेना के लिए कैसा होगा इस बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। पुराने दौर में “दिल्ली दूर, बीजिंग पास” कहने वाले तथाकथित नेता पता नहीं किस बिल में हैं। ऐसे मामलों पर उनकी टिप्पणी रोचक होती।

खग ही जाने खग की भाषा: रामचरित मानस के बहाने कोरोना और चमगादड़ वाली धूर्तता के पीछे का सच

रामचरित मानस एक पन्ने की तस्वीर को किसी धूर्त व्यक्ति ने दोहा संख्या 120 में चमगादड़ और रोग का जिक्र है, ऐसा कहकर व्हाट्स-एप्प इत्यादि.....

सिर्फ सेहत के सहारे जिन्दगी कटती नहीं, क्योंकि बिरियानी में बोटियाँ तलाशते रहते हैं टुकड़ाखोर

बिरियानी में बोटियाँ तलाशते टुकड़ाखोर किसी "फोबिया" शब्द को बिलकुल वैसे ही पत्थरों की तरह चलाते हैं, जैसे अभी-अभी यूपी के किसी जिले में स्वास्थ्यकर्मियों पर चलाए गए। गोएबल्स की ये औलादें गाँधीवादी नहीं हैं। आपको ये भी पता है कि नाज़ियों से किसी गाँधीवादी तरीके से निपटा नहीं गया था।