Sunday, November 17, 2024
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जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों ने पुलिस पर किया घातक हमला, 3 जवान घायल, 2 की मौत

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में केपी रोड पर बुधवार (जून 12, 2019) को आतंकियों ने पुलिस पर हमला किया है। खबर के मुताबिक इलाके में भारी गोलीबारी अभी भी जारी है।

अभी तक कि ख़बरों के अनुसार, 2 जवान बलिदान हो गए हैं, तीन जवानों के घायल होने की सूचना है। साथ ही एक आतंकी भी मारा गया है।

मीडिया खबरों के मुताबिक इस गोलीबारी में एसएचओ अर्शीद अहमद के छाती पर गोली लगने के कारण गहरे जख्म आए हैं। जिस कारण उन्हें इलाज के लिए श्रीनगर में भर्ती करवा दिया गया है।

इलाके में इस घटना से तनाव बढ़ने के कारण इलाके की घेराबंदी कर दी गई है। गौरतलब है इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों पर हमला होते रहे हैं। 30 मार्च को श्रीनगर-जम्मू हाइवे के पास एक कार धमाका हुआ था। ये धमाका सैंट्रो कार में हुआ था, उसके नज़दीक से सुरक्षाबलों का एक काफ़िला गुज़र रहा था। काफ़िले में सीआरपीएफ जवानों की 6-7 बस थीं और उसमें करीब 40 जवान थे। इस घटना में सिर्फ़ राहत की बात इतनी थी कि हमले में किसी के हताहत होने की खबर नहीं आई थी।

गायब AN-32 विमान पर धूर्तता दिखाने वाली BBC को हार्दिक पटेल की बेहूदगी ने दी कड़ी टक्कर

अल्पबुद्धि और दुराग्रह का जब सही मेल मिलता है तब BBC जैसे मीडिया गिरोह जन्म लेते हैं। हालाँकि, जिन लोगों का ध्येयवाक्य ‘हमारा काम सरकार का विरोध करना है’ हो, उनसे किसी भी तरह से तार्किक होने की उम्मीद करना महज स्वयं से छलावा है। लेकिन जब इन लोगों द्वारा किए जा रहे नुकसान का दायरा देखा जाए तो यह आवश्यक होता है कि इनके वर्षों पुराने चले आ रहे इकतरफा संवाद को नकेल लगाई जाए।

BBC ने अपने स्तरहीन होने का सबसे नया परिचय दिया है भारतीय वायुसेना के गायब विमान पर भी सरकार को निशाना बनाकर। भारतीय वायु सेना के AN-32 एयरक्राफ्ट का मलबा अरुणाचल प्रदेश में मिला है। पिछले 8 दिनों से AN-32 गायब था और भारतीय वायु सेना उसे खोजने में जुटी थी।

सरकार एवं सेना के सहयोग से कल ही 8 दिनों बाद इस विमान का मलबा अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग ज़िले में मिला। भारतीय वायु सेना का कहना है कि विमान का मलबा एमआई-17 हेलिकॉप्टर से 12,000 फुट की ऊँचाई पर देखा गया है।

इस विमान में 13 लोग सवार थे, जिनमें 8 चालक दल के सदस्य थे। मलबा मिलने के बाद इस पर सवार और चालक दल के सदस्यों के बारे में अभी जानकारी जुटाई जा रही है।

लेकिन, इन सभी बातों से हटकर BBC का मर्म कुछ और है। सुन्दर प्रतीत होने वाली बातों के माध्यम से सुबह से शाम तक हिन्दू-मुस्लिम का रंग घोलकर ख़बरें बनाने वाले मीडिया के समुदाय विशेष की ही एक टुकड़ी BBC ने इस खबर में भी नैरेटिव सेट करने का प्रयास बेहद चालाकी से किया है। BBC की हेडलाइन कहती नजर आई है- “AN-32 का मलबा मिला लेकिन 13 सवार लोगों पर अब भी चुप्पी”

ऑड दिनों में सुप्रीम कोर्ट में यकीन करने वाले और इवन दिनों में सुप्रीम कोर्ट को बिकाऊ बताने वाे कुछ लोगों की तरह ही BBC की धूर्तता का विस्तार अब सरकार के साथ ही भारतीय वायसेना तक हो चुका है। ऐसे समय में, जब कि गायब विमान का मलबा तक मिलना भी एक बहुत बड़ी सफलता मानी जा रही है, BBC और मौकापरस्त भेड़ियों का ध्यान सरकार और संस्थाओं को निशाना बनाना है। सवाल यह है कि इन सबके बीच वो सभी मानवीय संवेदनाएँ कहाँ हैं जिनकी सुरक्षा का ये लोग दावा करते हैं?

BBC की क्रांतिकारी ‘पत्थरकारिता’

कॉन्ग्रेस के ‘CD-मंत्री’ हार्दिक पटेल का सामान्य ज्ञान राहुल गाँधी के स्तर का है

वहीं कॉन्ग्रेस के अरविन्द केजरीवाल यानी, हार्दिक पटेल ने भी इस मुद्दे को राजनीतिक बहस बनाने की कोशिश तो की लेकिन इस बीच वो इस बात का परिचय जरूर दे गए कि धीरे-धीरे उनका नेहरूवीकरण सही दिशा में होने लगा है। जनसभाओं में रैपट खाकर चर्चा में आने वाले पाटीदार आंदोलन के प्रमुख हार्दिक पटेल का सामान्य ज्ञान हर दूसरे इंटरनेट सिपाही जितना ही है, या शायद उससे भी कम। हार्दिक पटेल के अनुसार विमान जहाँ गिरा है, वो जगह चीन की है।

लापता विमान AN-32 को लेकर हार्दिक पटेल ने अपने एक ट्वीट में लिखा, “चीन मुर्दाबाद था और मुर्दाबाद ही रहेगा। चीन को कहना चाहते हैं कि हमारा विमान AN-32 और जवान वापस करे। मोदी साहब चिंता मत करो, हम सब आपके साथ हैं। चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक कीजिए और हमारे जवान को वापस लाइए।”

हार्दिक पटेल के अनुसार चीन ने भारतीय सेना के विमान को मार गिराया और जवानों को अपने कब्जे में ले लिया है। ऐसे में पीएम मोदी को चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक करना चाहिए। हालाँकि राहुल गाँधी की अध्यक्षता वाली पार्टी के सदस्य होने के कारण हार्दिक पटेल की बुद्दिमत्ता पर शक करने का तो सवाल ही नहीं उठता है, लेकिन फिर भी अगर मान लें कि हार्दिक के ट्ववीट को कटाक्ष की तरह देखा जाना चाहिए, तो यह देखना राहत की बात है कि कॉन्ग्रेस की जमात में अगली पीढ़ी में भी सैम पित्रोदा, मणि शंकर अय्यर और कपिल सिब्बलों की कमी नहीं है।

हार्दिक पटेल की इस बेवकूफी पर खेल मंत्री किरण रिजिजू ने सवाल किया, “आप कॉन्ग्रेस पार्टी के एक नेता हैं, क्या आपको पता है अरुणाचल प्रदेश कहाँ है?”

भारतीय वायुसेना की टीम ने AN-32 के मलबे को अरुणाचल प्रदेश के लिपो नाम की जगह से 16 किलोमीटर उत्तर में देखा। एयरफोर्स की टीम अब इन मलबों की जाँच कर रही है। गायब हुए विमान की खोज के लिए 3 दल बनाए गए थे। हर संभावित स्थल पर सर्च ऑपरेशन जारी था और आखिरकार अरुणाचल प्रदेश के लिपो नामक स्थान से 16 किमी उत्तर स्थित घने जंगलों में विमान के पार्ट्स मिले हैं।

पत्रकारिता का ‘पत्थरकार’ बनकर रह गया है BBC

रुपए लेकर कश्मीर में सेना पर पत्थर बरसाने वाले विगत कुछ वर्षों से चर्चा में आए हैं। इसी तरह से देर-सबेर ही सही लेकिन पत्रकारिता के नाम पर पत्थरकारिता करने वाले लोग भी बौखलाहट में खुलकर अपने वास्तविक रुझान दिखाने लगे हैं।

BBC की ‘चुप्पी’ का मतलब तो यही निकलता है कि मलबा मिलते ही वायुसेना के अधिकारियों को तुरंत अपने घर से निकलकर मोटरसाइकिल में किक मार के हादसे वाली जगह तक दौड़ जाना चाहिए था। लेकिन इस बीच मीडिया गिरोह का ये बड़ा प्लेयर ये बात भूल जाना चाहता है कि किसी जिम्मेदार संस्था द्वारा संवेदनशील ऑपरेशन चलाने और BBC के कुछ टुटपूँजियों द्वारा संस्थाओं के खिलाफ नैरेटिव और प्रोपेगैंडा चलाने में अंतर होता है। यह उतना आसान नहीं होता है जितना कमरों में बैठकर भीड़ का मजहब तय कर देना।

घने जंगल, बारिश के बीच लगातार सर्च ऑपरेशन के बावजूद भी एक गायब विमान को तलाशने में ही 8 दिन का समय लग गया तो संसाधनों और मानवीय बाधाओं की सीमाओं में रहकर यह सोचा जाना चाहिए कि आखिर मलबा मिलने के भी करीब 12 घंटे बाद एक अन्य दल को क्रैश साइट पर भेजा जाना तय हुआ है। लेकिन नहीं, BBC को इस तरह की प्लानिंग से मतलब नहीं है। खैर BBC को तो इससे भी मतलब नहीं है कि अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लापता हो गए अमेरिकी विमान अब जाकर मिले हैं। अभी के टुटपूँजिए पत्रकार अगर तब BBC में होते तो अमेरिकी सरकार को भी ‘चुप्पी’ का मतलब समझा चुके होते।

भारतीय वायुसेना के C-130J यातायात विमानों, सुखोई Su-30 लड़ाकू विमानों, नौसेना के P8-I तलाशी विमानों तथा वायुसेना व थलसेना के हेलीकॉप्टरों की टुकड़ियों ने पूरे हफ्ते मलबा तलाश करने की भरपूर कोशिश की, और आखिरकार मंगलवार को विमान का कुछ हिस्सा देखा गया। नाइटटाइम सेंसरों से लैस थलसेना, नौसेना तथा ITBP की टीमों ने खराब मौसम के बावजूद दिन-रात घने जंगलों और कठिन माहौल वाली जगहों पर तलाशी को जारी रखा। लापता हुए विमान के क्रू सदस्यों के परिजन जोरहाट में इंतज़ार कर रहे हैं।

BBC जैसे मीडिया गिरोहों को यह जानना चाहिए कि पहाड़ों में जिस जगह विमान का मलबा देखा गया है, वहाँ घना जंगल है, और हवाई यातायात के लिए इसे दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में शुमार किया जाता है। AN-32 (पूर्व) सोवियत संघ द्वारा डिज़ाइन किया गया ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप यातायात विमान है, जिसे भारतीय वायुसेना पिछले चार दशक से इस्तेमाल करती आ रही है।

भारतीय वायुसेना के लापता विमान AN-32 का मलबा देखे जाने के बाद सर्च ऑपरेशन और तेज हो गया है। भारतीय सेना के विंग कमांडर रत्नाकर सिंह ने जानकारी देते हुए कहा है कि क्रैश की साइट का पता चलने के बाद भारतीय वायुसेना, थल सेना और पर्वतारोहियों की एक टीम को इस जगह के पास एयरड्रॉप किया गया है। वायुसेना के एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार शाम मलबा दिखाई देने के बाद ही सेना ने मलबे वाले स्थान पर चीता और एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर को उतारने का प्रयास किया था, लेकिन घने पहाड़ी जंगल होने के चलते हेलिकॉप्टर को वहाँ नहीं उतारा जा सका। हालाँकि, मंगलवार देर शाम तक वायुसेना ने एक जगह को चिन्हित किया।

शायद वायसेना को BBC के दल को किसी भी तरह के सर्च ऑपरेशन में भेजना चाहिए ताकि कीबोर्ड के सिपाही कम से कम अपनी दुराग्रही कल्पना और वास्तविकता से तो वाकिफ हों। BBC और हार्दिक पटेल जैसे उदाहरण पुलवामा आतंकी हमले के वक़्त इस तरह के गैर जिम्मेदाराना और अमानवीय नैरेटिव तैयार करते हुए देखे गए हैं और हो सकता है कि यही इनके अस्तित्व का मकसद भी है और बस इसे ही जस्टिफाई करते जा रहे हैं।

डांस न करने पर बठिंडा की 2 बहनों को दुबई के होटल में बनाया बंदी, आरोपित सलमान की तलाश जारी

लोकल ट्रैवल एजेंट द्वारा बठिंडा से टूरिस्ट वीज़ा पर दुबई भेजी गई दो बहनों (प्रिया और प्रीती) को होटल के मालिक ने उस वक्त बंदी बना लिया, जब उन्होंने वहाँ होटलों में डांस करने से मना कर दिया। इस घटना की जानकारी प्रिया ने अपने पति को वॉयस मैसेज के जरिए दी। जिसके बाद मामले की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाई गई।

प्रिया ने बताया कि दुबई पहुँचने पर उन्हें होटल में नाचने को कहा गया, जब उन्होंने ऐसा करने से मना किया तो होटल के मालिक ने उनका पासपोर्ट ले लिया और उन्हें कमरे में बंद कर दिया। मैसेज मिलते ही प्रिया के पति ने इसकी जानकारी पुलिस को दी। पुलिस ने तीन लोगों (सुखदेव सिंह, जोसनप्रीत सिंह और सलमान खान ) के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया और मामले की जाँच शुरू कर दी।

इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक अभी तक दो आरोपित सुखदेव सिंह और जोसनप्रीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है और तीसरे आरोपित सलमान खान की खोज जारी है। पीड़ित के पति जसवंत सिंह वासी परसराम नगर बठिंडा ने पुलिस को बताया है कि उनकी पत्नी प्रिया और साली प्रीती को टूरिस्ट वीज़ा पर दुबई भेजा गया था।

जसवंत ने बताया कि 7 जून को उनकी दुबई की फ्लाइट थी। 8 जून को वो करीब 12 बजे दुबई पहुँची और 1 बजे प्रिया ने उन्हें वॉयस मैसेज के जरिए इस घटना की जानकारी दी और बताया कि वो दोनों वहाँ जाकर फँस गई हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक सब-इंस्पेक्टर कुलवंत सिंह का मामले पर कहना है कि उन्होंने होटल मैनेजर से बात की है। महिलाओं को उनके पासपोर्ट लौटा दिए गए हैं और वो भारत जल्द लौट आएँगी।

‘अच्छा वाला ओवैसी’ एक छलावा है, दोनों भाई ही एक ही विकृत मानसिकता के शिकार हैं

आज़म खान के बेहूदे बयानों को अगर कोई बेहतर शब्दों से टक्कर देता है तो वो हैं मजहब विशेष की नई आवाज़ असद-उद-दीन ओवैसी। ये ओवैसी अकबरुद्दीन के ब्रो हैं जिन्होंने ‘पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा देने पर’ ‘वो’ क्या-क्या कर सकते हैं उसकी एक झलक देने की कोशिश की थी। लेकिन लोगों ने कहा कि ये वाला ओवैसी लम्पट है, इसका ब्रो असद जो है, वो समझदार है।

लोकिन जब आपकी राजनीति मुस्लिम ध्रुवीकरण से चले, और उसमें भी मोदी विरोध का तड़का लगता रहे, तो फिर बयानबाजी में तर्क और मानवीय संवेदना की हदों को पार करना आम बात हो जाती है। असद ओवैसी का ताजा बयान यही दर्शाता है कि नेताओं में मज़े लेने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल हो चुकी है कि वो अपनी संवेदना को कहीं परचून की दुकान पर छोड़ आते हैं।

हाल ही में ख़बर आई थी कि भारतीय वायुसेना का एक मालवाहक विमान AN 32 खराब मौसम के कारण रडार से गायब हो गया। उसके बाद कल उसके मलबे के मिलने की ख़बर आई। ऐसा बताया जा रहा है कि ख़राब मौसम में जहाज़ पहाड़ी से टकरा कर क्षतिग्रस्त हुआ। हमारे तेरह वायुसैनिक अभी तक लापता हैं। हृदय नहीं चाहता कि ऐसा मान लूँ लेकिन तर्क यही है कि हमारे वीर अफसर और जवान इस दुर्घटना में शायद बलिदान हो गए।

जब भी ऐसी कोई ख़बर आती है तो लगभग हर भारतीय, धर्म-जाति-क्लास स्टेटस से परे, प्रार्थना करता है कि वो कहीं सुरक्षित मिल जाएँ। अभी भी, जब तक हमारे पास उनके बलिदान हो जाने की पुष्टि नहीं हुई है, तो हम सोचते हैं कि शायद वो जंगलों में कहीं ज़िंदा होंगे और अपने साथियों के आने का इंतज़ार कर रहे होंगे। जिस इलाके में यह विमान क्षतिग्रस्त हुआ है वो दुर्गम है, खोजी दल भी वहाँ जाने में सक्षम नहीं है क्योंकि अभी भी मौसम सही नहीं हुआ है।

इन मौक़ों पर भी छप्पन इंच की बात करने वाले गिरोह के लोग आ जाते हैं कि कहाँ है मोदी, क्यों दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं जहाज़? ऐसे लोग यह बात भूल जाते हैं कि ऐसी दुर्घटनाएँ बस हो जाती हैं, उनसे आप बच नहीं सकते। वैश्विक लिहाज़ से भी देखें तो भारतीय वायु सेना के विमानों के क्षतिग्रस्त होने का प्रतिशत बहुत कम है। इसलिए, इसे एक प्रकृति का कोप कहा जा सकता है, सरकारी या सैन्य ग़लती नहीं।

ऐसे में ओवैसी का जो बयान आया है वो बेहद ख़राब है। जब एयर फ़ोर्स के हवाई खोज अभियान को मौसम के कारण सफलता नहीं मिल रही थी तो वायुसेना ने पाँच लाख रुपए के इनाम की घोषणा की ताकि कोई ग्रामीण व्यक्ति उसकी सूचना दे सके। ऐसा भी नहीं होता कि मौसम ख़राब है और एक लापता विमान की खोज में तीन और विमान वैसे ही मौसम में भेज दिए जाएँ, और वो भी क्षतिग्रस्त हो जाए। इसके लिए मौसम के बेहतर होने से लेकर उस इलाके के मिजाज़ तक को ध्यान में रख कर योजना बनाई जाती है। इसलिए, धैर्य और इंतज़ार ही हमारे वश में होते हैं।

ओवैसी ने वायु सेना के इस घोषणा पर कहा कि मोदी से पूछ लेते क्योंकि उनको तो रडार की बहुत जानकारी है, और वो तो दुश्मनों के इलाके तक में जहाज़ भेज कर एयर स्ट्राइक करते हैं। वायु सेना को तो मोदी को फोन कर लेना चाहिए था, उनके पाँच लाख बच जाते। इस बयान की क्या ज़रूरत थी, मुझे नहीं पता। अभी तो चुनाव भी नहीं हैं कि कहा जाए कि चुनावी जुमलेबाज़ी है।

शायद, मोदी के दोबारा जीतने पर ये कुंठा बाहर आ रही है। दूसरी बात यह है कि रडार के मामले में मोदी ने जो कहा वो तो वैज्ञानिक रूप से भी सही साबित हो चुका है। हालाँकि, इस मामले में ओवैसी का इस तरह से हमला बोलना यही दिखाता है कि उन्हें उन जवानों की कितनी फ़िक्र है या भारतीय सेना को लेकर उनमें कितनी संवेदना है।

अब, नेता हैं तो यह कह कर भी बच जाएँगे कि उनके बयान को संदर्भ से हटा कर बता दिया गया है लेकिन मुझे ऐसे बयानों में संदर्भ की ज़रूरत कहीं नहीं दिखती। ये बयान विशुद्ध रूप से पोलिटिकल प्वाइंट बनाने के लिए दिए जाते हैं ताकि उनके समर्थकों में ख़ुशी की लहर चल जाए कि उनके नेता ने तो मोदी की कह के ले ली!

इस बयान से ओवैसी या उनके तरह के लोगों ने यह भी जताया है कि अनभिज्ञता और अज्ञान तब हावी हो जाते हैं जब आपके मन में घृणा का स्तर बहुत ज़्यादा हो। मोदी को उन मुद्दों पर घेरिए जहाँ उसकी ग़लती हो। मोदी सरकार की नीतियों पर बयानबाज़ी कीजिए। मोदी सरकार के बजट पर घेरिए। सही आँकड़े और तर्क लाकर घेरिए। लेकिन यूनिट के वो वायुसैनिक जो अपने साथियों के लौटने के इंतज़ार में हैं, उस सेना को अपनी घृणा की राह में मत लाइए।

ऐसा करने से सेना या मोदी को नुक़सान नहीं होगा। मोदी ने तो दिखा दिया कि राष्ट्रवाद भी चुनाव का मुद्दा हो सकता है और सेना पर सवाल करने वाले नेताओं को जनता जवाब दे चुकी है। इसलिए नुक़सान घूम-फिर कर आपका ही होगा क्योंकि आपकी वैचारिक नग्नता सबके सामने खुले में आ जाएगी।

ओवैसी जैसे लोगों का भारतीय राजनीति में होना ज़रूरी है। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह है कि ऐसे लोग जब भी बोलते हैं तो समझदार लोग जान जाते हैं कि कैसे नेता या कैसी पार्टी से दूरी बना कर रखनी है। दूसरी यह कि जब तक ऐसे लोग बयान देते रहेंगे, इस विचारधारा को व्यापक कवरेज मिलेगी और लोग बेहतर नेताओं को सत्ता में रखेंगे।

इसलिए, चाहे जितना अजीब लगे सुनने में, आज़म खान और ओवैसी जैसे नेताओं की बयानबाज़ी भारतीय राजनीति की ज़रूरत है। ये लोग जितना ज़हर उगलेंगे, राजनीति में लोगों की भागीदारी उतनी ही बढ़ेगी और लोगों के पास एक ख़ास विचारधारा को नकारने के लिए कई विकल्प उपलब्ध होंगे।

गैंग रेप आरोपित सपा मंत्री के घर समेत दिल्ली से यूपी तक 22 ठिकानों पर CBI ने की छापेमारी

अवैध खनन मामले में समाजवादी पार्टी में मंत्री पद पर रहे गायत्री प्रजापति के निवास स्थान समेत लगभग 22 ठिकानों पर CBI ने छापेमारी की। इस दौरान उनके अमेठी स्थित घर में CBI के क़रीब आधे दर्जन अधिकारी मौजूद थे। बता दें कि गायत्री प्रजापति का निवास स्थान अमेठी के आवास विकास कॉलोनी में है।

ख़बर के अनुसार, CBI इस मामले में प्रजापति के भतीजे से भी पूछताछ कर रही है। इसके अलावा सिंचाई विभाग में घोटाले को लेकर कई स्थानों पर CBI ने छापे मारे हैं। दरअसल, खनन घोटाले में लगभग 22 जगहों पर छापेमारी की गई है, जिसके तहत गायत्री प्रजापति के तीन ठिकानों पर भी छापे मारे गए हैं। गायत्री प्रसाद सपा सरकार में खनन मंत्री रह चुके हैं। उन पर अवैध खनन के भी आरोप हैं। साथ ही वो महिला के साथ गैंग रेप मामले में भी आरोपित हैं और फ़िलहाल जेल में बंद हैं। अगले महीने की 8 तारीख को उनकी जमानत पर सुनवाई होनी है।

एक अन्य ख़बर के अनुसार, CBI द्वारा अवैध खनन के मामले में 11 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जा चुका है। सीबीआई ने हमीरपुर जिले की पूर्व कलेक्टर और आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला, खनिक आदिल खान, भूवैज्ञानिक/खनन अधिकारी मोइनुद्दीन, समाजवादी पार्टी के नेता रमेश कुमार मिश्रा, उनके भाई दिनेश कुमार मिश्रा, राम आश्रय प्रजापति, हमीरपुर के खनन विभाग के पूर्व क्लर्क संजय दीक्षित, उनके पिता सत्यदेव दीक्षित और रामअवतार सिंह के नाम प्राथमिकी में शामिल हैं।

BJP कार्यकर्ताओं पर ममता की पुलिस ने बरसाई ताबड़तोड़ लाठी, वॉटर कैनन, आँसू गैस…

पश्चिम बंगाल में बुधवार (जून 12, 2019) को एक और भाजपा कार्यकर्ता का शव मिलने के कारण प्रदेश में तनाव काफ़ी बढ़ गया है। भाजपा कार्यकर्ता ममता सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरकर पुलिस मुख्यालय की ओर आगे बढ़ रहे थे। इन कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए पुलिस ने बिपिन बिहारी गांगुली स्ट्रीट पर लाठीचार्ज किया और आँसू गैस के गोले फेंके। साथ ही कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल भी किया गया।

गौरतलब है बुधवार को बंगाल में तनाव और भाजपा कार्यकर्ताओं में आक्रोश उस समय बढ़ गया जब मालदा में 2 लापता भाजपा कार्यकर्ताओं के शव मिले। कार्यकर्ताओं की लगातार होती हत्या से भाजपा कार्यकर्ताओं में गुस्सा और भड़क गया। लोग ममता सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरकर नारेबाजी करने लगे। लालबाजार में बीजेपी ने मार्च निकाला। साथ ही पुलिस मुख्यालय का घेराव भी किया।

इस दौरान पुलिस और नाराज़ कार्यकर्ताओं के बीच जमकर ईंट-पत्थर भी चले। बढ़ते तनाव को देखकर पूरे शहर में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। भाजपा कार्यकर्ता प्रदर्शन के दौरान जय श्री राम के नारे भी लगा रहे हैं।

कमलनाथ की सरकार गिराने के लिए दिग्विजय और सिंधिया ने किया संपर्क: कैलाश विजयवर्गीय

मध्य प्रदेश में किसान आक्रोश रैली को संबोधित करते हुए भाजपा के मुख्य सचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक बड़ा खुलासा किया। विजयवर्गीय ने रैली के दौरान बताया कि कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी ने उन्हें मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने के लिए संपर्क किया था।

रैली के दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, “दिग्विजय सिंह और उनके दो विधायकों ने मुझे संपर्क किया और कहा कैलाश जी, अगर आप चाहें तो सरकार गिराई जा सकती है। इस पर मैंने जवाब दिया कि मैं सरकार गिराना नहीं चाहता। इसके बाद सिंधिया जी के लोगों ने मुझसे संपर्क किया कि वो प्रदेश में जालसाज़ कमलनाथ की सरकार गिराना चाहते हैं। उन लोगों ने कहा कि हम आपके साथ हैं। फिर, सुरेश पचौरी के लोगों ने मुझसे संपर्क किया कि वो सरकार को गिराना चाहते हैं।”

विजयवर्गीय ने रैली संबोधन के दौरान कहा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनों के साथ ही जालसाजी की, इसलिए पार्टी के कई दिग्गज़ नेता उनके ख़िलाफ़ हैं। उन्होंने बताया कि कमलनाथ के सभी ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) के पास पैसा गिनने की मशीन है। भाजपा मुख्य सचिव ने इस दौरान कहा कि बीते दिनों जितने तबादले मध्य प्रदेश में हुए, उतने देश में कहीं भी नहीं हुए। विजयवर्गीय ने दावा किया कि मध्य प्रदेश में पद बेचे जाते हैं। उन्होंने इस दौरान एक पुलिस अधिकारी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया था कि तबादले के लिए उससे 25 लाख की घूस ले ली गई और उसका तबादला भी नहीं किया गया।

गौरतलब है कमलनाथ के मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के बाद से चीजें कॉन्ग्रेस के पक्ष में होती नहीं दिखीं। गत वर्ष कमलनाथ की जीत के बाद मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस को जन आक्रोश का सामना करना पड़ा। प्रदेश में कॉन्ग्रेस किसानों का लोन ही माफ़ नहीं कर पाई, जिसका वादा करके उन्होंने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी । इसके अतिरिक्त अप्रैल महीने में कमलनाथ के सहयोगियों के आवास पर हुई रेड में भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ था।

सबरीमाला के पास की 5 एकड़ जमीन चर्च के कब्जे में, हिंदुओं की आस्था पर केरल सरकार की चोट

केरल की कम्युनिस्ट सरकार की कथित मदद से ईसाई चर्च पर अब सबरीमाला मंदिर से जुड़े ‘पवित्र वनों’ का अतिक्रमण करने का आरोप लगा है। न्यूज़ पोर्टल ऑर्गनाइज़र के अनुसार, केरल में इस स्थान को ‘पूनकवनम’ कहा जाता है।

ऑर्गनाइज़र के अनुसार, मलयालम अख़बार जन्मभूमि की एक ख़बर बताती है कि इडुक्की ज़िले के सबरीमाला जंगलों के एक हिस्से पांचालिमेडु के पास वनभूमि का बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत इस पूरे क्षेत्र को ऐसा माना गया था जिसे पारिस्थितिक रूप से संरक्षण की आवश्यकता है।

पांचालिमेडु (Panchalimedu), स्थानीय हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है, जिसका नाम पांचाली/ द्रौपदी के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि 12 साल के वनवास के दौरान वो पांडवों का निवास स्थान था। त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड के तहत एक प्राचीन भुवनेश्वरी मंदिर भी अतिक्रमित भूमि के पास स्थित है। ऐसा माना जाता है कि चर्च कथित तौर पर राज्य के समर्थन से कब्ज़ा करके सरकार और वनभूमि को ज़ब्त करने की अपनी सामान्य रणनीति को दोहरा रहा है।

चिंताजनक मुद्दा यह है कि चर्च ने पहले से ही एक बोर्ड स्थापित कर रखा है और वन क्षेत्र में एक आर्कियन भी है जो यह दावा करता है कि यह स्थान ईसाई तीर्थस्थल है। रिपोर्टों से पता चलता है कि इसका केंद्र बिंदु सबरीमाला मंदिर है, जो पिछले सात वर्षों से धर्मांतरण लॉबी के रडार पर है।

चार दशक पहले, ईसाई संगठनों ने नीलक्कल में सबरीमाला भूमि को हड़पने का प्रयास किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उन्होंने 57 A.D में यीशु के प्रचारक संत थॉमस द्वारा स्थापित एक पत्थर का पता लगाया था। पुजारी (ईसाई) ने साइट पर एक ईसाई चर्च बनाने का प्रस्ताव पेश करते हुए अपने दावे पर ज़ोर दिया। इस पर हिंदुओं के कड़े विरोध के बावजूद, सरकार ने कैथोलिक चर्च को लगभग 5 एकड़ जमीन मुफ़्त में सौंप दी।

केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने इस मुद्दे पर अनिश्चित रूप से अब तक चुप्पी साधे रखी है, जबकि सबरीमाला के विरोध के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई थी कि यह मुद्दा हिंदुओं से जुड़ा हुआ है। कथित तौर पर, मुन्नार में Pappathichola से इसी तरह के अतिक्रमण की सूचना मिली है, लेकिन राजस्व अधिकारियों ने इसे हटा दिया। इतना होने के बावजूद, राज्य सरकार ने एक बार फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए और मुख्यमंत्री विजयन व अन्य सीपीएम नेताओं के हस्तक्षेप के बाद वहाँ क्रॉस को फिर से स्थापित कर दिया गया।

जेल में बंद नक्सलियों को निर्दोष बताने वाले फादर स्टेन स्वामी के घर छापेमारी

भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में पुलिस ने नई कार्रवाई की है। झारखण्ड की राजधानी राँची स्थित नामकुम बगीचा में कथित सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के ठिकाने पर छापेमारी की। यह कार्रवाई महाराष्ट्र पुलिस और एटीएस ने की। छापेमारी टीम ने फादर के ठिकाने से कंप्यूटर हार्ड डिस्क सहित कई अन्य कागजात भी ज़ब्त किए। इस मामले में उनके यहाँ दूसरी बार छापा पड़ा है। उससे पूछताछ भी की गई है। इससे पहले 28 अगस्त, 2018 को भी फादर स्टेन स्वामी के घर में छापेमारी हुई थी। ताज़ा कार्रवाई के लिए मंगलवार (जून 11, 2019) की शाम ही महाराष्ट्र पुलिस की टीम राँची पहुँच गई थी। बुधवार के दिन सुबह होते ही छापेमारी शुरू कर दी गई।

छापेमारी के दौरान स्थानीय पुलिस भी मौके पर मौजूद थी। मीडिया को फादर के घर के बाहर ही रोक दिया गया था। इससे पहले पिछले वर्ष जब फादर के यहाँ छापेमारी की गई थी, तब उसके घर से एक लैपटॉप, दो टैब और कुछ सीडीज बरामद की गई थीं। इन सबके अलावा कुछ अहम दस्तावेज भी पुलिस के हाथ लगे थे। फादर ने छापेमारी टीम के सामने काफ़ी नखरे दिखाए थे। जब पुलिस ने उन्हें सर्च वारंट थमाया था, तब उन्होंने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। फादर का कहना था कि यह सर्च वारंट मराठी में है और उसे मराठी नहीं आती। इसके बाद पुलिस को सर्च वारंट का अनुवाद करना पड़ा था, तब उसने हस्ताक्षर किए थे।

फादर स्टेन स्वामी ख़ुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता बताता है और आदिवासी क्षेत्रों में वह अक्सर सक्रिय रहता है। पिछले कई दशकों से वह आदिवासियों के बीच सक्रिय रहा है। वह मानवाधिकार की बातें भी करता है और इसे लेकर सरकारों को घेरता रहा है। वह नक्सलियों का प्रखर समर्थक है। वह ख़ुद दावा करता रहा है कि लगभग 3000 निर्दोष लोगों को जेल में नक्सली बता कर बंद रखा गया है और उसके लिए उसनें अदालत में पीआईएल दाखिल कर रखी है। भीमा कोरेगाँव मामले में पुलिस ने कई नक्सलियों व उनके समर्थकों को गिरफ़्तार किया था। इनमें कई ऐसे थे, जो ख़ुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं।

बताते चलें कि वर्ष 2018 में पेशवा बनाम अंग्रेज युद्ध के 200वें साल का जश्न मनाने के लिए भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे। जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गयी थी, जिसके बाद हिंसा भड़क गई थी। स्टेन स्वामी व अन्य कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उस दौरान भड़काऊ भाषण दिया था, इसी मामले में फादर स्टेन के खिलाफ देशद्रोह का मामला भी दर्ज किया गया था। स्टेन स्वामी पर महाराष्ट्र के नक्सली संगठन अलगार परिषद को समर्थन देने के भी आरोप लगे हैं।

आज़म चड्डी खान की ज़रूरत है इस देश को, ऐसे लोगों को ज़िंदा रखा जाना चाहिए

आज़म खान और असदुद्दीन ओवैसी, दोनों ही, कथित तौर पर पढ़े लिखे लोग माने जाते हैं। माने ही जाते हैं, क्योंकि इनके बयानों से लगता तो नहीं कि वास्तव में पढ़े-लिखे हैं। एक विरोधी नेत्री के अंडरवेयर का रंग बताने से लेकर ग़ैरक़ानूनी उर्दू गेट को ढाहने पर मजहब को बीच में ले आता है, दूसरे की तो पूरी राजनीति ही यह झूठ बताने में जाती है कि सरकारी नीतियों का लाभ ख़ास समुदाय को नहीं मिल रहा है।

हाल ही में दोनों ने बड़े अजीब बयान दिए हैं। पहले आज़म खान की बात करते हैं जिनका दिमाग ज़्यादा ढीला मालूम पड़ता है। अपनी और अपने पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए, मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति का वर्षों से सहारा लेकर बचने वाले आज़म खान, जो हर इस्लामी आतंकी द्वारा किए गए हमले पर चुप रहते हैं, आज मदरसों के उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का उदाहरण देते हुए कहा है कि मदरसों से गोडसे और प्रज्ञा जैसे लोग नहीं निकलते।

ये बिलकुल सही बात है क्योंकि मदरसों में अमूमन हिन्दू धर्म को मानने वाले नहीं जाते, तो वहाँ से गोडसे या प्रज्ञा जैसे प्रकृति तो छोड़िए, नाम वाले भी निकल आएँ तो आश्चर्य की ही बात होगी। फिर मदरसों में जाते कौन हैं? क्या मदरसों में ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा बुलंद करते हुए बाज़ारों में फटने वाले लोग जाते हैं? क्या मदरसों में सड़कों पर 500 रुपए के लिए शुक्रवार की नमाज़ के बाद पत्थरबाज़ी करने वाले सात-आठ साल के बच्चे जाते हैं? क्या सेना की गाड़ियों पर पत्थर, डंडे, रॉड से लेकर बम और रॉकेट लॉन्चर से हमला करने वाले मदरसों में जाते हैं?

मैं बता नहीं रहा, मैं पूछ रहा हूँ कि आज़म खान जैसे नेता जब पूरे इतिहास से दो नाम निकाल पाते हैं, और उन्हें किसी मजहबी स्कूली व्यवस्था से जोड़ने की कोशिश करते हैं, तो आप ऐसे चुटकुलों पर हँस भी नहीं सकते क्योंकि ये चुटकुला कोई कुणाल कामरा टाइप का सस्ता कॉमेडियन नहीं मार रहा, ये चुटकुला एक क़द्दावर नेता मार रहा है जो 30 साल से ज़्यादा समय उत्तर प्रदेश की विधायिका का सदस्य या कैबिनेट मंत्री बन कर गुज़ार चुका है।

अगर आज़म खान की बात करें और मदरसों को ले आएँ तो आज़म खान पहले यही बता दें कि ऐसी कौन सी शिक्षा मदरसों में दी जाती है, या नहीं दी जाती है कि ख़ास समुदाय की मात्र एक प्रतिशत लड़कियाँ बारहवीं के बाद ग्रेजुएशन कर पाती हैं? क्या इसे ख़ास समुदाय पर फेंका जाए या फिर मदरसों को तंत्र पर जहाँ के बाद आज के दौर में भी लड़कियों को ग्रेजुएशन तक नहीं करने दिया जाता?

ये सारे आतंकी क्या आरएसएस के स्कूलों में पढ़ते थे जिनके गुनाह साबित हो गए और जिन्हें फाँसी मिल गई? ये मजहबी उन्माद क्या हार्वर्ड में पढ़ाया जाता है कि काले झंडे पर इस्लाम का नाम लिखने वाले लोग भारत की गलियों में उगते और डूबते रहते हैं? ये मजहबी शिक्षा क्या रामकृष्ण मिशन या सरस्वती शिशु मंदिर में मिलती है जहाँ एक समुदाय के अल्लाह और पैग़म्बर के नाम पर बेगुनाहों की जान लेने में आतंकी हिचकिचाते नहीं?

फिर गोडसे का नाम क्यों? गोडसे ने जो किया, उसे उसकी सजा मिली। साध्वी प्रज्ञा पर केस चल रहा है, और अगर वो गुनहगार है तो उसे इसी देश की कोर्ट सजा देगी जिसने सुबह के चार बजे तक अपने दरवाज़े आतंकी की फाँसी रोकने के लिए खोले हैं। और कोई नाम है तो आज़म खान ले आएँ, उसका भी समुचित जवाब दिया जाएगा।

लेकिन आज़म खान अपनी भी घटिया शिक्षा का उद्गम स्थल बता देते ताकि हमें पता तो चलता कि कारगिल को फ़तह करने वाले सैनिकों में मजहब लाने के पीछे की पढ़ाई किस जगह पर होती है। वो बता देते कि किस मदरसे में उन्होंने ऐसी बेहतरीन शिक्षा पाई जहाँ बच्चों की आँखें और विचार इतने बौने हो जाते हैं कि वो स्त्रियों के अंडरवेयर का कलर तक मालूम कर लेते हैं। वो बता देते कि किस मजहबी शिक्षा की जड़ें इतनी खोखली हैं जो मजहबी बयानबाजी में इतना आगे निकल जाता है कि संभल की रैली में समुदाय विशेष को मुज़फ़्फ़रनगर दंगों का बदला लेने को उकसाता है?

आज़म खान की पहचान ही इस बात से है कि वो निहायत ही घटिया बातें बोलते हैं। वो अगर बेहूदगी न करें तो देश को पता भी न चले कि खुद को समुदाय विशेष का ज़हीन नेता मानने वाला, और प्रोजेक्ट करने वाला, ये आदमी किस दर्जे का धूर्त है। ये वही आदमी है जो प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पत्नी के अलग-अलग रहने को लेकर घृणित बयान देता है कि जो अपनी पत्नी के साथ न रह सका वो देश के साथ कैसे रहेगा।

अब ये तो पता चले कि ये मदरसा छाप हैं या फिर संघ के विद्यालयों में इनकी ऐसी घटिया सोच विकसित हुई है। आज़म खान जैसे नेता ही मजहब विशेष के प्रति फैली दुर्भावना के लिए ज़िम्मेदार हैं। ये व्यक्ति पेरिस में हुई इस्लामी आतंकी घटना को ज़ायज ठहराता है क्योंकि कहीं और किसी दूसरे देश ने पहले समुदाय विशेष को ऐसा करने को उकसाया।

ऐसे आदमी सिर्फ इसलिए खुले में घूम रहे हैं क्योंकि ये नेता हैं और हमारी सरकारी व्यवस्था में ऐसे लोग इस तरह से बोल सकते हैं। ये वैचारिक दंगाई है जो मज़हब के नाम पर लोगों को उकसाता है, और चाहता है कि दंगे हों ताकि इनकी दुकानें चलें। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार द्वारा मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने को लिए बनाई जा रही नीति का स्वागत करने की जगह ये महामूर्ख इसमें गोडसे और प्रज्ञा कहाँ से ले आता है?

आज़म खान जैसे लोग कभी नहीं चाहते कि उनका समुदाय बेहतर शिक्षा पाए क्योंकि मदरसों में अगर दुनिया के समानांतर शिक्षा मिलने लगेंगी तो कोई क्यों पत्थर लेकर सड़क पर खड़ा हो जाएगा? कोई शरीर में बम बाँध कर मज़हब के नाम पर खुद को क्यों उड़ा देगा? शिक्षा बेहतर सोच विकसित करती है। शिक्षा का उद्देश्य मानवता की भलाई होता है, लेकिन उसी शिक्षा के नाम पर अगर मजहबी उन्माद की धीमा ज़हर छोटे बच्चों में डाला जाए तो वो कट्टरपंथी बनेगा और उसे एक मशीन की तरह, अपने कुत्सित विचारों को अमल में लाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

अगर ऐसा नहीं होता तो पत्थरबाज़ी का कलंक किसी एक मज़हब के लोगों के सर पर नहीं होता। अगर ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती तो सात साल के बच्चों के चेहरे पैलट गन के छर्रों से नहीं बंधे होते। अगर मजहबी उन्माद न बोया जा रहा होता तो आरडीएक्स से भरी गाड़ी सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले से अब्दुल अहमद डार नहीं मिलता। अगर इस्लाम की हुकूमत लाने की पढ़ाई इन मदरसों में नहीं दी जा रही होती तो हर साल लगभग दो सौ की दर से ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे और ख़िलाफ़त की राह में इस्लामी आतंकी नहीं मर रहे होते।

गोडसे और प्रज्ञा तो दो नाम हैं। मेरे पास तो इसी शिक्षा पद्धति से जुड़े लोगों के इतने नाम हैं कि उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा की जगह जातिवाचक रूप में बताना पड़ रहा है। लेकिन आज़म खान जैसों का रहना बहुत ज़रूरी है इस देश में। ये लोग अगर नहीं रहेंगे तो समाज के वो नकारात्मक आदर्श गायब हो जाएँगे जिन्हें देख कर माँ-बाप अपने बच्चों को कह सकेंगे कि देखो बच्चे, ऐसा इन्सान मत बनना।

ओवैसी की बेहूदगी पर चर्चा दूसरे आर्टिकल में होगी