Tuesday, November 19, 2024
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बुलंदशहर: 3 मासूमों की हत्या का मुख्य आरोपित सलमान गिरफ़्तार, इफ्तार को लेकर हुई थी तकरार

बुलंदशहर ट्रिपल मर्डर मामले के मुख्य अभियुक्त को धर दबोचा गया है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को यह बड़ी कामयाबी मिली। सलमान मलिक नामक मुख्य आरोपित को बुधवार (मई 29, 2019) को सीलमपुर क्षेत्र से गिरफ़्तार किया गया। इससे पहले पुलिस बिलाल नामक आरोपित को शिकंजे में ले चुकी है, जिसने तीन मासूमों के हत्या की योजना बनाई थी। पुलिस के अनुसार, सलमान 15 दिनों पहले बुलंदशहर आया था और बिलाल ने उसके रहने के लिए जगह की व्यवस्था की थी। बिलाल को बार-बार परिजनों (माँ की तरफ का रिश्तेदार) द्वारा आगाह किया जा रहा था कि वह ग़लत संगत में रह रहा है। इसीलिए, उन्होंने उसे इफ्तार पार्टी के दिन सलमान को निमंत्रित करने से मना कर दिया।

मामला कुछ यूँ है कि रोजा इफ्तार में न बुलाए जाने के कारण बुलंदशहर, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के सलेमपुर क्षेत्र में होस्ट परिवार के तीन बच्चों की गोली मार कर निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। मृतकों में अब्दुल (8 वर्ष), आसमा (7 वर्ष) और अलीबा (8 वर्ष) तीन बच्चे शामिल थे। इनमें से दो लड़कियाँ और एक लड़का था। हत्या के बाद बच्चों के शव घटनास्थल से 15 किलोमीटर दूर ले जाकर सलेमपुर थाने के अंतर्गत आने वाले धतूरी गाँव के एक कुएँ में फेंक दिए गए थे। हत्या का खुलासा तब हुआ जब बच्चों की लाश शनिवार सुबह पुलिस ने कुएँ से बरामद किया।

यह साफ़ हो गया था कि हत्याकांड को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही आपसी रंजिश के चलते अंजाम दिया, लेकिन उसके बाद भी कुछ लोग इसे जबरदस्ती हिन्दू-मुस्लिम विवाद का रूप देने से लेकर ‘मोदी का न्यू इंडिया’ तक को घसीटने के कुटिल प्रयास किए गए। ऐसे में क्षेत्र और प्रदेश में बेवजह का साम्प्रदायिक तनाव फैलने का खतरा मंडराने लगा था। 

घोर कम्युनिस्ट लेकिन ‘मोदी प्रशंसक’ को शपथग्रहण समारोह का मिला न्योता

आज नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में लगभग 8000 लोग सम्मिलित होंगे। बिम्सटेक (BIMSTEC) के सदस्य देशों के अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव समर्थकों को भी समारोह में बुलाया गया है। बंगाल के उन भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों को भी न्योता दिया गया है जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान हुई राजनैतिक हिंसा में प्राण गंवा दिए थे।

नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले रहे होंगे तब उसमें विचारधारा के बिलकुल उलटे छोर पर स्थित उनकी एक प्रशसंक भी होंगी। उनका नाम है रीना साहा जो बंगाल से आती हैं और घोर कम्युनिस्ट हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में सीपीआई के मोहम्मद सलीम को वोट भी दिया है।

रीना साहा भगवान कृष्ण की भक्त हैं और गले में तुलसी माला पहनती हैं। वो गुजरात के विकास मॉडल की प्रशसंक हैं। उनके अनुसार बंगाल आज भी गुजरात से इतना पिछड़ा है कि वहाँ तक पहुँचने में बंगाल को अभी सौ साल लगेंगे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में रीना ने यह बातें कही हैं। रीना ने यहाँ तक कहा कि कि वो गुजरात 22 दिन घूमकर आई हैं और उनके अनुसार गुजरात स्वर्ग जैसा है। इसका श्रेय वो मोदी को देती हैं लेकिन अपना वोट उन्होंने सीपीआई को ही दिया है।

रीना साहा एक समर्पित कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं और पंचायत स्तर पर भी काम कर चुकी हैं। साहा शपथग्रहण समारोह का निमंत्रण मिलने पर बहुत खुश हैं और उनकी इच्छा है कि वो स्वयं नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें बधाई दें सकें। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी की जीत उनके काम को प्रमाणित करती है।

एयरसेल मैक्सिस केस: चिदंबरम पिता-पुत्र को सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त तक दी गिरफ़्तारी से राहत

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को गिरफ़्तारी से राहत प्रदान किया है। चिदंबरम पिता-पुत्र की गिरफ़्तारी से राहत की अवधि बढ़ा कर अगस्त तक कर दी गई है। एयरसेल-मैक्सिस केस में अनियमितता के आरोप में दोनों कॉन्ग्रेस नेताओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार गिरफ़्तारी से राहत प्रदान की जा चुकी है। कार्ति चिदंबरम हाल ही में सांसद बने हैं और उन्होंने शिवगंगा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए भाजपा के डी राजा को 3,32,000 से भी अधिक मतों के अंतर से हराया। तमिलनाडु में डीएमके से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही कॉन्ग्रेस को 8 सीटें आईं।

चिदंबरम पिता-पुत्र के ख़िलाफ़ सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सरकारी एजेंसियाँ जाँच कर रही हैं। दोनों की गिरफ़्तारी से छूट की अवधि 30 मई को समाप्त हो रही थी, जिसे आगे बढ़ने के लिए इन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। गुरुवार (मई 30, 2019) को हुई सुनवाई के दौरान ओपी सैनी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह अवधि आगे बढ़ा दी। ईडी ने दोनों की अग्रीम जमानत पर दलीलें पेश करने के लिए तीन सप्ताह का समय माँगा है। एजेंसी ने कहा कि उसके निदेशक सिंगापुर गए हुए हैं और जिन बैंक खातों की जाँच चल रही है, उनके बारे में सारी जानकारियाँ उपलब्ध हैं।

इससे पहले छह मई को पी चिदंबरम और कार्ति को दिल्ली की अदालत ने 30 मई तक गिरफ्तारी से छूट प्रदान की थी। एजेंसियों ने अदालत में कहा था कि मामले की पूरी जाँच के लिए उनकी टीमें ब्रिटेन और सिंगापुर गई हुई हैं।

पी. चिदंबरम पर आरोप है कि उन्होंने वित्त मंत्री रहते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी। उन्हें 600 करोड़ रुपए तक के निवेश की मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन यह सौदा करीब 3500 करोड़ रुपयों के निवेश का था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपने अलग आरोप पत्र में कहा है कि कार्ति चिदंबरम के पास से मिले उपकरणों में से कई ई-मेल मिली हैं, जिनमें इस सौदे का जिक्र है। इसी मामले में पूर्व टेलिकॉम मंत्री दयानिधि मारन और उनके भाई कलानिधि मारन भी आरोपित हैं। 

पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले मुश्ताक ने खोले कई राज

आर्मी स्टेशन रत्नूचक की जानकारी पाकिस्तान भेजने के आरोप में कल (मई 29, 2019) जिन दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था। उनसे पूछताछ में अहम खुलासे हुए हैं। जाँच में इनके पास से दो मोबाइल बरामद किए गए, जिनमें एक दर्जन से ज्यादा नंबर पाकिस्तान के हैं। संदिग्धों ने इनमें से एक नंबर पर स्टेशन की वीडियो बनाकर भेजी थी। पूछताछ में मालूम चला है कि वीडियोग्राफी की योजना हिमाचल प्रदेश के शिमला में बनाई गई थी, क्योंकि दोनों संदिग्ध शिमला में ही एक दूसरे के संपर्क में आए थे। शिमला में ही डोडा के रहने वाले मुश्ताक ने और कठुआ के रहने वाले नदीम अख्तर में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दिन के लिए काम करने की सहमति बनी थी।

डोडा से मजदूरों को हिमाचल प्रदेश ले जाने वाला मुश्ताक पेशे से ठेकेदार है। शिमला में उसका संपर्क नदीम से हुआ था और उसने उसे हिजबुल के लिए काम करने के लिए तैयार किया। साथ ही, मुश्ताक कई अन्य युवकों को भी हिजबुल के लिए काम करने के लिए तैयार कर रहा था। अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक मुश्ताक का एक चचेरा भाई शाहनवाज खान कुछ समय पहले पीओके के कोटली जाकर आतंकी बन गया था।

शाहनवाज और मुश्ताक में लगातार बात होती रहती है। नदीम को अपने साथ जोड़ने के लिए उसने शाहनवाज के नाम का ही सहारा लिया। मुश्ताक ने नदीम को बताया कि अगर वह हिजबुल के लिए काम करेगा तो उसे मोटी रकम मिलेगी। इसके बाद ही दोनों के बीच सहमति बनी और दोनों हिजबुल के लिए काम करने लगे। मुश्ताक के खाते में आतंकी संगठन से पैसे भी आने शुरू हो गए। दोनों मिलकर आर्मी स्टेशनों की जानकारी पीओके भेजने लगे।

इन दोनों संदिग्धों से लगातार तमाम सुरक्षा एजेंसियाँ पूछताछ कर रही हैं। पूछताछ में इन लोगों ने कुछ और लोगों के नाम बताए हैं, जिनको पकड़ने के लिए बुधवार (29 मई) को पुलिस ने कई इलाकों में छापेमारी की। इनसे पूछताछ में पता चला कि इन दोनों को पाकिस्तान में जानकारी भेजने के लिए मोटी रकम मिलती थी। खबरों के मुताबिक शाहनवाज ने रत्नूचक आर्मी स्टेशन की रेकी (टोह लेना) करने का काम मुश्ताक को दिया था। इसी कार्य के लिए मुश्ताक और नदीम विशेष तौर पर शिमला से जम्मू आए थे। यहाँ आकर दोनों ने रेकी भी की थी और अपने मोबाइल फोन से जम्मू के सैन्य ठिकानों की जानकारी पीओके में बैठे हैंडलर को भी भेजी थी।

जानकारी प्राप्त होते ही वहाँ बैठे हैंडलर इन्हें थंब्स अप का साइन भेजते थे, जिससे यह सुनिश्चित होता था कि भेजे गए फोटो और वीडियो देख लिए गए हैं। बताया जा रहा है कि इन दोनों ने जम्मू के नगरोटा, सतवारी के आर्मी स्टेशन, कालू चक आदि की भी वीडियोग्राफी कर रेकी की थी।

कॉन्ग्रेस नेता दे रहे थे जनता को धन्यवाद, कट गई उनकी जेब, जानें क्या है माजरा

एक तो लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की पूरे देश में बुरी तरह हार हुई है, ऊपर से अब जेबकतरों ने भी उनकी मौज लेनी शुरू कर दी है। जैसा कि हमें पता है, देश भर में मोदी लहर होने के बावजूद पंजाब में कैप्टेन अपना किला बचाने में सफल रहे और अपनी व्यक्तिगत छवि के दम पर राज्य में पार्टी की नैया पार लगाई। पंजाब में 13 में से 8 सीटों पर कॉन्ग्रेस ने जीत का परचम लहराया जबकि भाजपा व शिरोमणि अकाली दल को दो-दो सीटें मिलीं। आम आदमी पार्टी भी एक सीट जीतने में सफल रही। भगवंत मान ने दोबारा जीत कर अपना गढ़ बचा लिया। पंजाब में कॉन्ग्रेस सत्ताधारी पार्टी है लेकिन अमरिंदर सिंह ने ताबड़तोड़ रलियाँ कर पार्टी की इज्जत बचाई। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस सरकार होने के बावजूद पार्टी का सफाया हो गया।

उधर पंजाब से एक अजीब घटना सामने आई है। फतेहगढ़ साहिब सीट से कॉन्ग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने डॉ. अमर सिंह के धन्यवाद कार्यक्रम में जेबकतरों ने नेताओं की जेबों पर हाथ साफ कर दिया। ख़बर के अनुसार, जेबकतरे नवनिर्वाचित सांसद के साथ सेल्फी खींचने के बहाने कार्यक्रम में शामिल हुए थे। डॉ अमर सिंह ने अकाली दल के दरबारा सिंह गुरु को करीब 94,000 मतों से हराया। इसके बाद जनता को धन्यवाद करने के लिए उन्होंने क्षेत्र में अन्य स्थानीय नेताओं के साथ एक कार्यक्रम रखा था।

यह घटना अमलोह रोड पर स्थित सुरजीत बैंक्वेट हॉल में घटी। यहाँ सांसद को बधाई देने के लिए जगह-जगह से कई कार्यकर्ता और नेता पहुँचे हुए थे। दैनिक भास्कर की ख़बर के अनुसार, जेबकतरों ने कॉन्ग्रेस विधायक तक को नहीं छोड़ा। विधायक रणदीप काका की जेब कटने की बात भी पता चली है। कुल मिलाकर 10 कॉन्ग्रेसी नेताओं को जेबकतरों ने अपना शिकार बनाया। विधायक के पीए रामकृष्ण भल्ला का पर्स भी चुरा लिया गया। पुलिस ने कहा कि चोरी करने वाले लोगों को ट्रेस कर लिया गया है और उन्हें जल्द ही गिरफ़्तार किया जाएगा।

ईश्वर की योजना है नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना, प्रधानसेवक हमारे अभिभावक हैं: शिवसेना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (मई 30, 2019) दूसरे कार्यकाल के लिए पीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं, जिसमें शामिल होने के लिए बिम्सटेक (BIMSTEC) देशों के राष्‍ट्र-प्रमुखों को आमंत्रित किया गया है। शपथ-ग्रहण से पहले शिवसेना ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा है कि वह ‘ईश्‍वर की योजना से’ एक बार फिर इस देश की अगुवाई करने जा रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में NDA को मिली प्रचंड जीत के बाद शिवसेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते नहीं थक रही है। इसी क्रम में उन्होंने मुखपत्र “सामना” में नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर चुने जाने को ईश्वर की योजना बताया है। शिवसेना का कहना है कि पीएम मोदी का शपथ ग्रहण समारोह देश को मजबूती की और ले जाने वाला साबित होगा। इसी के साथ शिवसेना पार्टी ने पीएम मोदी की तारीफों के पुल बाँधते हुए कहा है कि पहले पीएम मोदी प्रधानसेवक और चौकीदार थे, लेकिन अब वो अभिभावक भी हैं। नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए शिवसेना ने यह भी लिखा है कि आज देश के समक्ष कई मुद्दे हैं, लेकिन पीएम मोदी इनसे दृढ़ संकल्‍प से पार पाने में समर्थ हैं।

शिवसेना ने कहा, “जीत के बाद पीएम मोदी ने विपक्ष के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, इस पर गौर किया जाना चाहिए। पीएम मोदी की कार्यशैली से साफ हो गया है कि ये नई सरकार मानवता और संयम की भावना के साथ काम करेगी।”

मुखपत्र “सामना” में शिवसेना ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी निशाना साधा है। ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने को लेकर सामना में कहा गया है कि ममता बनर्जी का ये कदम लोकतंत्र के दायरे में नहीं आता। शिवसेना ने सामना में लिखा है, “पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में उन लोगों के परिवार वालों को भी बुलाया गया है, जो पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के दौरान मारे गए। ये नाराज होने की कोई वजह नहीं हो सकती। उन परिवारों को भी शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहने का अधिकार है। अगर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को ये मंजूर नहीं, तो ये तय है कि वो लोकतंत्र को नहीं मानते।”

‘ये जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है’: Pak में पश्तून आंदोलन और प्रेस पर ज़ुल्म

पाकिस्तान में पत्रकार गौहर वज़ीर को गिरफ्तार किए जाने पर अंतरराष्ट्रीय पत्रकार बिरादरी ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (Committee to Protect Journalists) नामक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ने पाकिस्तानी अधिकारियों से गौहर को रिहा करने को कहा है। CPJ ने कहा है कि गौहर को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने PTM जैसे विवादास्पद संगठन की रिपोर्टिंग की। दरअसल गौहर वज़ीर पाकिस्तान में पश्तूनों के हक़ के लिए लड़ने वाले संगठन ‘पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट’ (PTM) के समर्थन में थे इसलिए पाकिस्तानी फौज के इशारे पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।

गौहर वज़ीर को 21 अन्य लोगों के साथ खैबर पख्तूनख्वाह के बन्नू ज़िले से गिरफ्तार किया गया है। ‘खैबर न्यूज़’ अख़बार के रिपोर्टर गौहर पर आरोप है कि उन्होंने मोहसिन डावर का इंटरव्यू लिया था जिसने PTM मेम्बरों के साथ मिलकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। डॉन की खबर के अनुसार यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था और इसमें 3 लोगों की जान चली गई थी, तथा 15 घायल हो गए थे।

पीटीएम का कहना है कि वो रविवार (26 मई) को शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी मांगों के लेकर प्रदर्शन कर रहे थे और पाकिस्तानी फ़ौज ने उनके निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग शुरू कर दी, जिसमें कई लोग घायल हो गए। हमले के बाद पाकिस्तान के ट्विटर पर #StateAttackedPTM ट्रेंड कर रहा था। हालाँकि पाकिस्तान के न्यूज़ चैनलों पर दूसरी ख़बरें दिखाई जा रही थीं। पाकिस्तानी फ़ौज यह बता रही थी कि कुछ हथियारबंद लोगों ने फ़ौज पर हमला किया।

बता दें कि पाकिस्तान की सरकार ने पश्तूनों को सारे अधिकारों से वंचित कर रखा है। लोगों को बिना किसी अपराध के उठा लिया जाता है और उनपर ज़ुल्म किए जाते हैं। पीटीएम की माँग रही है कि ट्राइबल बेल्ट में अनावश्यक चेक पोस्ट और जानलेवा लैंडमाइन हटाई जाएँ, और उन्हें वापस लौटाया जाए जिन्हें पाकिस्तानी फ़ौज जबरन उठा ले गई। गौरतलब है कि पश्तून क्षेत्रों में आज भी अंग्रेजों वाले कानून ही लागू हैं और वहाँ के लोगों की माँग है की उन्हें भी वही अधिकार दिए जाएँ जो कराची या इस्लामाबाद में रहने वाले नागरिकों को मिले हैं। पाकिस्तान की सरकार पश्तूनों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचने नहीं देना चाहती इसलिए वहाँ की प्रेस और मीडिया को दबा कर रखती है। इसी सिलसिले में गौहर वज़ीर को गिरफ्तार किया गया है जिसपर अब अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने आवाज़ बुलंद की है।

पश्तून पाकिस्तान के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से हैं और उनके आंदोलन की जड़ें पाकिस्तान के निर्माण से पहले से हैं। उनकी माँग रही है कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर पर पश्तूनों का अलग देश बनाया जाए। पाकिस्तानी सरकार इस बात से डरती है कि कहीं पीटीएम उस आंदोलन से न जुड़ जाए। गत वर्ष जनवरी 2018 में वज़ीरिस्तान के एक 27 वर्षीय पश्तून मॉडल नक़ीबुल्लाह महसूद को पुलिस ने गोली मार दी थी जिसके बाद पश्तून आंदोलन और भड़क उठा था। नक़ीबुल्लाह एक उभरता हुए मॉडल था। उसकी मौत के ख़िलाफ़ लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसमें मंज़ूर पश्तीन शामिल हो गए। मंज़ूर पश्तीन की पहचान पाकिस्तान के पिछड़े और दबे-कुचले समाज की आवाज़ के रूप में की जाती है।

पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट (PTM) जिसे 2014 में मंज़ूर पश्तीन ने बनाया था, नक़ीबुल्लाह की हत्या के बाद और मुखर हो उठा। नक़ीबुल्लाह की गैर क़ानूनी रूप से की गई हत्या के बाद पीटीएम की मुहिम का असर यह हुआ कि हत्या में शामिल सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस राव अनवर अहमद खान को भागकर छिप जाना पड़ा। पीटीएम ने नारा दिया था– “यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है।” इस नारे के कारण ही पाकिस्तानी फ़ौज पीटीएम को देशद्रोही कहती है।

पाकिस्तान में दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह पश्तून लगातार अपनी सुरक्षा, नागरिक स्वतंत्रता और समान अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वास्तव में पश्तून समाज अपने लिए एक अलग देश की माँग तब से करता रहा है जब पाकिस्तान बना भी नहीं था। पीटीएम एक अहिंसक आंदोलन है और उसे किसी अन्य देश से किसी प्रकार का संसाधन नहीं मिलता। पाकिस्तान यह अफवाह फैलाता है कि पश्तून आंदोलन को भारत द्वारा फंडिंग की जा रही है लेकिन वास्विकता यह है कि पीटीएम अपने दम पर पाकिस्तानी ज़ुल्म से लड़ रहा है।

बाइक, सिगरेट, हेयर जेल, डियोडरेंट, जूते… आतंकी ज़ाकिर मूसा के शौक़ पर मर-मिटा मेनस्ट्रीम मीडिया

खूंखार आतंकवादी ज़ाकिर मूसा के अपराधों पर पर्दा डालने की क़वायद में मेनस्ट्रीम मीडिया भी पीछे नहीं है। मूसा जो हिज़्बुल का पूर्व कमांडर था और फ़िलहाल अल-क़ायदा से जुड़े आतंकी संगठन अंसार ग़ज़ावत-उल-हिंद का सरगना था, उसे सुरक्षा बलों ने 23 मई को मार गिराया था।

लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया और कुछ तथाकथित-धर्मनिरपेक्ष-उदारवादी मारे गए इन आतंकियों की मौत का शोक मनाने में कभी विफल नहीं होते और वो अक्सर कुख़्यात आतंकियों के अपराधों पर पर्दा डालने पर उतारू हो जाते हैं। इतना ही नहीं मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसे आतंकियों को ‘नायक’ या ‘शहीद’ का दर्जा देने से भी नहीं चूकती।

न्यूज़ 18 ने मारे गए आतंकवादी मूसा पर एक ख़बर प्रकाशित की है। इस ख़बर में मूसा के बारे में ऐसी-ऐसी सांसारिक जानकारी शेयर की गई हैं, जैसे कि वो एक रॉकस्टार या फ़िल्म अभिनेता हो। न्यूज़ 18 की ख़बर में इस बात को उजागर करने का प्रयास किया गया है कि 2013 में, पेशे से इंजीनियर मूसा के पिता अब्दुल रशीद भट को आईफोन, आईपॉड और तीन डेबिट कार्ड वाला एक पैकेट कैसे मिला था। इस ख़बर में मूसा के दुखी पिता के शब्दों को अहमियत देते हुए बताया गया कि मूसा ने अपने विलासिता के जीवन को त्यागकर आतंकवादी बनने का फ़ैसला लिया था।

ख़बर में आतंकवादी मूसा के दोस्तों के हवाले से लिखा गया है कि मूसा को हेयर जेल, महँगे डियोडरेंट, नए कपड़े और जूते पसंद थे।

न्यूज़ 18 की ख़बर में उस मुख्य वजह को भी जानने का प्रयास किया गया, जिसकी वजह से तथाकथित “युवा लड़के जो स्पोर्ट्स बाइक और सिगरेट से प्यार करते थे” वो आतंकवादी संगठनों में क्यों शामिल हो जाते हैं? इस ख़बर में यह ‘ख़ुलासा’ किया गया कि मूसा के आतंकवादी बनने के पीछे एक घटना शामिल है, जब उसे एक पुलिसकर्मी ने थप्पड़ मारा था और उस पर पथराव का झूठा आरोप लगाया गया था।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है, जिसमें आतंकी ज़ाकिर मूसा के पिता एक भीड़ को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि सभी ‘मुज़ाहिद’ अल्लाह के लिए लड़ रहे हैं और उन्हें एकजुट होना चाहिए। मूसा ने इस तथाकथित ‘आज़ादी’ के लिए कभी संघर्ष नहीं किया, बल्कि उसने ख़लीफ़ा के लिए लड़ाई लड़ी। वो जिहाद का सिपाही था और उसका घोषित उद्देश्य ग़ज़वा-ए-हिंद था।

इससे पहले AltNews के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने आतंकवादी मूसा को ‘अलगाववादी’ कह कर उसके गुनाहों पर पर्दा डालने का भरसक प्रयास किया था।

इसके अलावा मेनस्ट्रीम मीडिया और कई पत्रकारों द्वारा बुरहान वानी और पुलवामा के हमलावरों के नरसंहारों पर भी पर्दा डाला गया था। कुख्यात आतंकियों और मानवता के दुश्मनों को स्टाइलिश, फैशनेबल युवा पुरुष और क्रांतिकारियों के रूप में चित्रित करने का प्रयास ठीक उसी तरह है जैसे पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में अपने एजेंडे को सफल करने के लिए किया जाता है। कुख्यात आतंकियों की पसंद-नापसंद से भला जनता को क्या लेना-देना!

ज़ाकिर मूसा एक अमीर परिवार से था। वह पंजाब के एक कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग का छात्र था। इस तथ्य के बावजूद मूसा ने आतंकवादी बनने का विकल्प चुना। उसके आतंकवादी बनने के पीछे बेरोज़गारी और ग़रीबी को दोष नहीं दिया जा सकता। अगर फिर भी कोई उसके बारे में ऐसा सोचता है तो यह सिर्फ़ इस्लामी कट्टरता ही है।

पुलवामा का हमलावर हो या ज़ाकिर मूसा, इन सभी आतंकियों ने अपने मक़सद को स्पष्ट किया था कि वो इस्लामिक ख़िलाफ़त चाहते थे, लेकिन वो कश्मीर को अलग नहीं करना चाहते। जबकि पुलवामा के हमलावर ने कहा था कि वह गोमूत्र पीने वालों को मारना चाहता है। मूसा ने कहा था कि वह भारत के हिन्दुओं से छुटकारा चाहता है। मीडिया और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग ऐसे नरसंहार करने वालों की विचारधाराओं के पीछे के कारणों को खोजने का प्रयास करते रहते हैं, इनका मक़सद केवल जनता को वास्तविक मुद्दों से भटकाना होता है।

सेब जितने वजन के साथ हुआ ‘सबसे छोटी’ बच्ची का जन्म, डॉक्टरों को लगा सिर्फ़ 1 घंटे का है समय…

जब वो पैदा हुई तो उसका वजन एक सेब जितना था – 245 ग्राम। डॉक्टरों ने उसके पिता से कहा कि उनकी बेटी के पास सिर्फ़ एक घंटा है। लेकिन देखते ही देखते वो एक घंटा, 24 घंटों में बदल गए, और वो 24 घंटे पूरे एक हफ्ते में तब्दील हो गया। लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ। 5 महीने से ज्यादा की जिंदगी जी चुकी ‘saybie’ आज 2 किलोग्राम की हो चुकी है। अपने इस नन्हें से जीवन से उसने उन सभी मानकों को झुठलाया है जिनके आधार पर एक नवजात की जिंदगी का फैसला किया जाता है। ‘saybie’ का जीवन इस बात का उदाहरण है कि जिंदगी मिलना स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक करिश्मा है।

बुधवार (मई 29, 2019) को सैन डियागो अस्पताल ने बच्ची के माँ-बाप की अनुमति से इस किस्से का खुलासा किया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची का जन्म प्रिमैच्योर अवस्था में दिसंबर में हुआ था। 40 हफ्तों का समय जहाँ किसी भी नवजात के विकास के लिए न्यूनतम माना जाता है वहीं ‘saybie’ 23 हफ्तों में ही दुनिया में आ गई। जिस कारण दुनिया के सबसे छोटे बच्चे के रूप में जीवित रहने के लिए उसकी रैंकिंग आइवा विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए tiniest बेबी रजिस्ट्री में उल्लेखित है। आइवा विश्वविद्यालय के पीडिएट्रिक्स प्रोफेसर एडवर्ड बेल का कहना है कि रजिस्ट्री में सबसे कम वजन वालों में ‘saybie’ का नाम दर्ज है, लेकिन इस बात को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि ‘saybie’ से भी कम वजन के नवजात हुए हैं, जानकारी के अभाव में शायद उनका नाम रजिस्ट्री में मौजूद नहीं है। ‘saybie’ से पहले 2015 में जर्मनी में जन्मा एक बच्चा tiniest बेबी था, जो 7 ग्राम ज्यादा वजनी था।

शार्प मैरी बर्च हॉस्पिटल फॉर वुमेन एंड न्यूबॉर्न द्वारा जारी वीडियो में बच्ची की माँ ने बताया कि वो दिन उनके लिए सबसे डरावने दिनों में से एक था। उन्होंने बताया कि जिस दिन उन्हें अस्पताल ले जाया गया उस दिन उनकी स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई थी। बीपी बढ़ने के कारण डॉक्टरों ने तुरंत डिलीवरी करना उचित समझा। बच्ची की माँ कहती हैं कि वो डॉक्टरों को बार-बार कह रही थीं कि उनकी डिलीवरी हुई तो बच्ची नहीं जी पाएगी, वो सिर्फ़ 23 हफ्तों की है। लेकिन सभी विषम परिस्थितियों में साँस लेकर ‘saybie’ ने अपनी माँ के इस डर को दूर किया। अस्पताल की नर्स बताती हैं कि जब वह हुई थी तो उसे बेड पर बहुत मुश्किल से देख पाते थे क्योंकि वो बहुत छोटी थी। जब ‘saybie’ ने अस्पताल छोड़ा तो वहाँ की नर्सों ने उसे एक छोटी सी ग्रैज्युएशन कैप पहनाई।

बता दें कि बच्ची का असल नाम ‘saybie’ नहीं है। दरअसल, अस्पताल के कहने पर माँ-बाप ने इस कहानी को शेयर करने की अनुमति तो दे दी, लेकिन नाम को गुमनाम रखा और कहा कि पूरा किस्सा शेयर करते समय ‘saybie’ नाम का ही प्रयोग किया जाए। यह नाम अस्पताल की नर्सों द्वारा उसे दिया गया है।

जनादेश से बौखला कर जनता को ‘कॉलर पकड़ कर धमकाने’ वाले YoYa की दाढ़ी में कितने तिनके?

भाजपा की प्रचंड जीत के बाद अगर सबसे ज्यादा धक्का किसी को लगा है, तो उसका नाम है- योगेन्द्र यादव। ख़ुद को सेफोलोजिस्ट बताने वाले योगेन्द्र यादव ने प्रोपेगैंडा वेबसाइट ‘द प्रिंट’ में एक लेख लिखा है। ‘द प्रिंट’ के कई राजनीतिक विश्लेषण पूरी तरह से ग़लत साबित हुए हैं और योगेन्द्र यादव के अब तक के विश्लेषणों में शायद ही कोई सही साबित हुए हों। आप सोच सकते हैं कि इन दोनों का साथ आना किसी लेख को कितना बड़ा प्रोपेगैंडा बना सकता है। इस लेख में योगेन्द्र यादव मतदाताओं से परेशान नज़र आते हैं। जैसा कि अंदेशा था, मोदी, EVM, भाजपा और सरकार को गाली देने के बाद अब लिबरल गैंग भारत के मतदाताओं को ही गालियाँ देगा। अब ठीक वैसे ही हो रहा है। सवालों की शक्ल में जरा यादव की भाषा पर गौर फ़रमाइए –

“इस वक़्त मेरा कर्त्तव्य क्या करना बनता है? क्या मैं अपनी प्रतिबद्धताओं को भूल जाऊँ, पीएम मोदी और उनकी पार्टी के प्रति अपनी राय बदल दूँ? भारत को लेकर जो मेरी सच्ची धारणा है, उसे उनके नज़रिए के रूप में स्वीकार कर लूँ? अब जब जनमत आ चुका है, विजेता ट्रोल शायद मुझ से यही चाहते हैं। इसके अलावा, क्या मैं मतदाताओं को कॉलर पकड़कर बताऊँ कि वे कितने धर्मांध और कट्टर हो गए हैं? या फिर, मैं उनके निर्णय की निर्धनता को लेकर उनकी अनभिज्ञता पर तरस खाऊँ? या मैं अपनी विचारधारा के लोगों से सहानुभूति जताऊँ कि इस दुनिया को क्या हो गया है?”

किसी ट्रोल की भाषा में लेख लिख रहे योगेन्द्र यादव के शब्दों के चुनाव पर गौर फरमाइए। अगर वो लिखते कि “जनता कट्टर और धर्मांध हो गई है” तो उन पर उँगलियाँ उठतीं, लेकिन उन्होंने लिखा, “क्या मैं मतदाताओं को कॉलर पकड़कर बताऊँ कि वे कितने धर्मांध और कट्टर हो गए हैं?” योगेन्द्र यादव ने बड़ी चालाकी से अपनी दिमागी हालत और सोच को शब्दों में बयाँ करने के लिए उसे सवालों का रूप दे दिया, लेकिन उससे करोड़ों मतदाताओं को लेकर उनकी घटिया राय समझ में आ गई। जब टीवी डिबेट में महीन बातें करने वाला व्यक्ति कॉलर पकड़ने और धमकाने की बातें करे, तो समझा जा सकता है कि उसके मानसिक संतुलन की क्या स्थिति होगी।

इसे कुछ यूँ समझिए। अगर कोई व्यक्ति योगेंद्र यादव के बारे में अपने लेख में लिखता है, “योगेंद्र पागल हो गया है“, तो इसे ग़लत कहा जा सकता है। लेकिन वहीं कोई दूसरा व्यक्ति लिखता है, “मैं योगेंद्र को चाँटा मारकर नहीं पूछ सकता कि क्या तुम पागल हो गए हो?“, तो भाव यही रहेगा लेकिन, शब्दों के खेल में फँसकर उसके पीछे की सोच सही से उजागर नहीं हो पाएगी। इसमें योगेन्द्र यादव ने बड़ी चालाकी से अपने पिछले लेखों की बात की है और गर्वित होकर याद दिलाया है कि कैसे उन्होंने पीएम को सबसे बड़ा झूठा बताया था।

इसके बाद योगेन्द्र यादव आलोचना करने व आरोप लगाने के लिए अन्य माध्यम ढूँढने लगते हैं। उन्हें चुनाव आयोग के रूप में अगला शिकार मिला। चुनाव आयोग को पुर्णतः पक्षपाती बताते हुए उन्होंने लिखा कि भाजपा ने इस चुनाव में हद से ज्यादा पैसे ख़र्च किए। अप्रैल में एक ख़बर आई थी, जिसमें पता चला था कि मायावती की बसपा के पास भारतीय राजनीतिक दलों में सबसे ज्यादा बैंक बैलेंस है। इसके बाद सपा का स्थान आता है। बैंक बैलेंस के मामले में सपा-बसपा देश की दो सबसे अमीर पार्टियाँ साबित हुईं, लेकिन दोनों के गठबंधन को यूपी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। योगेन्द्र यादव को आँकड़ों में विश्वास नहीं है, बिना तथ्य अस्पष्ट किए लिख देना उनका पेशा है।

विपक्ष की गलतियाँ, चुनाव आयोग का पक्षपात, ख़ुद के कथित किसान आन्दोलन का हाइजैक हो जाना सहित योगेन्द्र यादव ने भाजपा की जीत की कई कमियाँ गिनाई हैं। यहाँ तक तो सब ठीक है, लेकिन तभी उन्हें भाजपा की प्रचंड जीत नज़र आती है और वे फिर से मतदाताओं को गाली देने के लिए लौटते हैं। इस बार सवालों की जगह उन्होंने “ऐसा हो सकता है कि” का प्रयोग किया है ताकि सीधे कुछ लिखने की जगह इससे ही भाव स्पष्ट हो जाए। वो लिखते हैं:

“मतदाता अनभिज्ञ हो सकते हैं (अर्थात वो चीजों से अनजान हो सकते हैं), सम्मोहित किए गए हो सकते हैं, उनका ध्यान कहीं और भटका हुआ हो सकता है या फिर पूर्वग्रह से ग्रसित हो सकते हैं। ठीक उसी तरह, जैसा हम लोग शॉपिंग मॉल में खरीददारी करते समय महसूस करते हैं। मतदाताओं ने सजग निर्णय नहीं लिया, ध्यान देकर और समझ-बूझ से काम नहीं लिया।”

मतदान की तुलना शॉपिंग मॉल में खरीददारी से करने वाले योगेंद्र यादव को शायद यह पता नहीं कि देश की एक बड़ी आबादी ने कभी शॉपिंग मॉल को देखा भी नहीं है। इसका अर्थ ये नहीं कि इन्हें अपनी इच्छानुसार वोट देने का अधिकार नहीं है। उनके मत का भी उतना ही मान है, जितना यादव का और मुकेश अम्बानी का। यही तो लोकतंत्र है। योगेंद्र यादव के लिए भले ही पोलिंग बूथ एक मॉल हो, जनता के लिए वह अगली सरकार चुनने का एक माध्यम होता है। योगेंद्र यादव ने ये तो बता दिया कि वे मॉल में चीजें खरीदते समय कैसा महसूस करते हैं, लेकिन जनता भी वोट देते समय ऐसा ही महसूस करती है, इसके लिए कोई कारण नहीं बताया यानी, ब्रह्मवाक्य है, लिख दिया तो लिख दिया।

आधे लेख के बाद योगेन्द्र यादव को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और देशहित को देखते हुए उन्हें लगता है कि मौजूदा विकल्प में नरेन्द्र मोदी ही बेहतर हैं। दिव्य ज्ञान की अवधि ख़त्म होते ही उन्हें मोदी मुस्लिमों को छाँट कर चलने वाले दिखने लगते हैं और उनकी ‘विभाजित करने वाली और नेगेटिव’ प्रचार अभियान चलाने से लेकर उनके द्वारा ‘अपने कार्यकाल के वास्तविक रिकॉर्ड को छिपाने’ का आरोप लगाते हैं। इसके बाद उनके पास विपक्षी दलों के लिए कुछ सलाह होती है। योगेन्द्र यादव को लगता है कि अब जातिवाद से काम नहीं चल रहा है, कुछ और आजमाना पड़ेगा।

ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा और मोदी पर लगातार हिन्दू-मुस्लिम राजनीति करने का आरोप लगाने वाले योगेन्द्र यादव ने जातिवाद का जिक्र तो किया है, लेकिन कहीं भी इसकी निंदा नहीं की है। दिव्य ज्ञान वाले भाग में उन्हें मोदी ठीक नज़र आते हैं, लेकिन कई बिना तथ्यों के अंट-शंट आरोपों के साथ वो फिर अपनी कारगुजारी पर उतर आते हैं। यहाँ सोचने वाली बात यह है कि यादव जैसे लोगों को मतदाताओं से समस्या क्यों है? 2014 में गुड़गाँव लोकसभा से चुनाव लड़ने के बाद चौथे नम्बर पर आकर जमानत जब्त कराने वाले योगेंद्र यादव जैसे लोग जब करोड़ों मतदाताओं के बारे में एक आम राय बनाते हुए नेगेटिव ठहरा दें, तो इस पर सवाल उठाना लाजिमी है।

जनादेश के बाद चुने गए लोगों की आलोचना तो होती रही है, लेकिन शायद यह पहला मौका है, जब जनादेश देने वाली जनता को ही भला-बुरा कहा जा कहा जा रहा है क्योंकि उसनें ऐसा नहीं किया, जैसा मुट्ठी भर लिबरल चाहते थे। जनता को ही भटका हुआ, अनपढ़ और पागल साबित करने की कोशिश की जा रही है। कल को ये लोग कहने लगेंगे कि फलाँ पार्टी को वोट देने वाले आतंकवादी हैं, तब क्या? जनादेश को लगातार अपमानित करने वाले इन नेताओं को कुछ दलों द्वारा सदियों से वोटबैंक के लिए फैलाए जा रहे जातिवाद से कोई समस्या नहीं है। फिर बात वहीं आकर रुक जाती है, मैं ये नहीं कह सकता कि “योगेन्द्र यादव की सूजी है” लेकिन मैं ये कह सकता हूँ, “मैं योगेन्द्र यादव की दाढ़ी नोच कर कभी नहीं देखना चाहूँगा कि उनमें कितने तिनके हैं।