Wednesday, November 6, 2024
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झारखंड: 5 लड़कियों के गैंगरेप का दोषी फादर अल्फांसो, 15 मई को तय होगी सजा

झारखंड के खूँटी जिले में 5 लड़कियों के गैंगरेप के मामले में न्यायालय ने चर्च के एक पादरी समेत तीन अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया। खूँटी के जिला व सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार ने पूरे मामले को सुनने के बाद 7 मई को फादर अल्फांसो को षडयंत्रकारी मानते हुए उसकी जमानत को रद किया और न्यायिक हिरासत में भेजा। कोर्ट दोषियों को 15 मई को सजा सुनाएगा।

यह मामला पिछले साल का है जब 19 जून 2018 को कोचांग के गाँव स्थित स्कॉट मैन मिडिल स्कूल में नुक्कड़ नाटक करने आई 5 लड़कियाँ का अपहरण कर उनका बलात्कार किया गया था। एफआईआर के मुताबिक 18 जून 2018 को खूँटी के पिस्टाकोली में आशा किरण नाम की संस्था के कुछ लोग नुक्कड़ नाटक करने पहुँचे थे। इनका उद्देश्य लोगों में सरकारी योजनाओं को लेकर जागरूकता फैलाना था।

नाटक के दौरान टीम की एक सिस्टर को एक व्यक्ति मिला, जिसने खुद को कोचांग का मुखिया बताया। उसने सिस्टर से कहा कि उसे उनका कार्यक्रम पसंद है और वह चाहता है कि कोचांग में भी ऐसे कार्यक्रम किए जाएँ। मीडिया खबरों के मुताबिक पहले तो सिस्टर ने वहाँ नाटक करने से मना कर दिया, लेकिन बाद में व्यक्ति के कहने पर टीम वहाँ जाने को तैयार हो गई। 19 जून को टीम वहाँ पहुँची और बाजार में नुक्कड़ नाटक शुरू हुआ।

इस दौरान टीम की दोनों सिस्टर बगल के स्कूल के फादर से मिलने चली गईं, जहाँ बाद में पूरी टीम को भी बुलाया गया, यहाँ भी टीम ने नुक्कड़ नाटक किया। इसके बाद वहाँ 2 लड़के फादर से बात करने आए। बात खत्म हुई तो फादर ने टीम की लड़कियों को उन लड़कों के साथ जाने के लिए कहा, जब लड़कियों ने विरोध किया तो हथियारों के बल पर लड़कियों को लड़कों के साथ भेजा गया।

इसके बाद सुनसान जगह ले जाकर उनका रेप किया गया। उनके गुप्तांगों पर सुलगती सिगरेट दगाई गई। उन्हें पेशाब पिलाया गया। जब लड़कियों ने इसकी शिकायत फादर से की तो अल्फांसो ने उन्हें धमकी दी कि अगर उन्होंने इस घटना का जिक्र किसी से किया तो उनके माता-पिता को मार दिया जाएगा। 20 जून को जब इस बात की जानकारी पुलिस को मिली तो बड़ी मुश्किल से पुलिस ने एक लड़की को बयान के लिए राजी किया।

इस गैंग रेप मामले में पुलिस ने बलराम समद, बाजी समद उर्फ टकला, जूनास मुंडा, जॉन जुनास तिडू, आशीष लूंगा, फादर अल्फांसो आईंद और नोएल सांडी पूर्ती को आरोपित बताया था, लेकिन एक अभियुक्त नाबालिग घोषित हुआ और नोएल सांडी पूर्ति के ख़िलाफ़ जाँच जारी है। इस मामले में अल्फांसो को हाइकोर्ट ने 2018 में जमानत दे दी थी, लेकिन अपराधी और षड्यंत्रकारी सिद्ध होने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

रेनकोट वाले डॉक्टर साहब! ‘इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफ़िला क्यों लुटा’

कोयला घोटाले में जब ज्यादा सवाल पूछे जाने लगे तो रेनकोट वाले डॉक्टर साहब ने फ़रमाया था- ‘हज़ारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखे।’ डॉक्टर साहब बिना पूछे कभी नहीं बोलते थे। यहाँ तक कि जब पार्टी के अत्यंत होनहार युवा नेता ने भरी सभा में अध्यादेश फाड़ दिया तब भी इतना भर कह के चुप लगा गए कि वे इस परम प्रतिभाशाली सुयोग्य नेता के नेतृत्व में कार्य करने के लिए हमेशा तैयार हैं। डॉक्टर साहब के अनुसार देश का प्रधानमंत्री ऐसा ही होना चाहिए जो किसी का भी नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार रहे।

आजकल एक चमत्कार हुआ है कि डॉक्टर साहब बोलने लगे हैं। कुछ इस तरह से कि लगता है इनकी खामोशी ही अच्छी थी। एक इंटरव्यू में डॉक्टर साहब न जाने किस रौ में बोल गए कि अरे छोड़ो मेरे राज में भी कई बार सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। अगले दिन जनरल वी के सिंह ने पूछ लिया, “मेरे सेना प्रमुख रहते कोई हुई हो तो बताएँ।” फिर जनरल बिक्रम सिंह ने आखिरकार कह दिया कि उनके सेना प्रमुख रहते हुए भी कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई। करगिल युद्ध के समय सेना प्रमुख रहे जनरल वी पी मलिक ने भी कह दिया कि जहाँ तक उन्हें पता है, कांग्रेस राज में ऐसा कुछ नहीं हुआ था।

अब आरटीआई से मिले एक जवाब से भी पता चल गया है कि सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ डॉक्टर साहब के राज में कोई सर्जिकल स्टाइक नहीं हुई थी। शायद डॉक्टर साहब को अरुण शौरी ने बताया होगा, “आपको भले न पता हो लेकिन हमें मालूम है कि अहमद पटेल ने कई सर्जिकल स्ट्राइक की थीं लेकिन राष्ट्रहित में आपको भी पता नहीं चलने दिया। हमने पाकिस्तान को भी चुप रहने के लिए मना लिया, ये होती है विदेश नीति की सफलता।”

वैसे अभी तक एंटनी साहब इस मुद्दे पर चुप हैं जो बड़े लंबे समय तक रक्षा मंत्री रहे। एंटनी साहब का जवाब नहीं। सोनिया जी के वफादार एंटनी जी ने एक वीवीआईपी हेलिकाप्टर के अलावा भूले भटके ही किसी रक्षा सौदे पर दस्तखत किया होगा।यहाँ तक तो गनीमत थी। वो तो पूरा इंतजाम करके गए थे कि आगे कुछ खरीदा भी नहीं जा सके। एंटनी साहब की कमीज उजली रखने के लिए देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। टेंडर और फील्ड ट्रायल हो जाने के बाद सौदा रद्द कराने के लिए आपको बस इतना ही करना होता था कि एक गुमनाम चिट्ठी भेज दें कि इस कंपनी ने फलां-फलां को घूस दिया है। इतने पर एंटनी साहब उस कंपनी को ही ब्लैकलिस्टेड कर देते, और फिर नए सिरे से टेंडर-ट्रायल।

अरे एंटनी साहब तो मासूम थे यार। भारत की खोज करने वाले नेहरू जी का सेना से प्रेम इतना गहरा था कि क्या बताएँ आपको। लोग बकवास करते हैं कि चाचा नेहरू को बच्चों से या एडविना से बहुत प्रेम था। सेना के प्रति उनके प्रेम की एक बानगी तो देखिए। हमारे चच्चा शांतिकामी ताकतों के वैश्विक नेता बनना चाहते थे। आजादी के तुरंत बाद भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ जनरल राबर्ट लॉकहार्ट ने जब चच्चा से कहा कि हमें एक रक्षा योजना (Defence Plan) की जरूरत है तो उन्होंने लॉकहार्ट को डपट दिया। कहा, “आप चाहें तो सेना को भंग कर सकते हैं। हमारी सुरक्षा जरूरतों के लिए पुलिस काफी है।”

सेना को भंग करने की बहुत जल्दी थी चच्चा को। आजादी के ठीक एक महीने बाद 16 सितंबर को उन्होंने फरमान सुनाया कि सैनिकों की संख्या 2,80,000 से घटाकर डेढ़ लाख की जाए। 1950-51 में जब चीन तिब्बत पर कब्जा कर चुका था और तनाव बढ़ रहा था तब भी इस ‘देशभक्त’ ने सेना को भंग करने का सपना देखना नहीं छोड़ा। उस साल 50,000 सैनिकों को घर भेजा गया। 1947 में दिल्ली के नॉर्थ ब्लाक में सेना का एक छोटा सा दफ्तर होता था जहां गिनती के सैनिक थे। एक दिन चच्चा की नजर उन पर पड़ गई और उन्हें तत्क्षण गुस्सा आ गया, “ये यहाँ क्या रहे हैं? फौरन हटाओ इन्हें यहाँ से।” हमारे सैनिक यूं दुत्कारे गए थे।

प्रधानमंत्री बनते ही चच्चा ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के हित में बहुत बड़ा कदम उठाते हुए सेना को थलसेना, वायुसेना और नौसेना में बाँट दिया। ब्रिटिश राज में भारत शायद एकमात्र देश था जहाँ सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों के लिए एक कमांडर इन चीफ था। लेकिन चच्चा ने कमांडर इन चीफ का पद ख़त्म कर दिया और आर्मी नेवी एयरफ़ोर्स के अलग-अलग ‘चीफ ऑफ़ स्टाफ’ बना दिए। तब से लेकर आज तक हम यूनीफाइड कमांड/थियेटर कमांड और सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) बनाने को जूझ रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी को शायद गंभीरता से लगता था कि भारतीय सेना को लड़ने नहीं आता। तभी तो 1948 के युद्ध में सैन्य कमांडरों को बताने लगे कि कैसे लड़ें। परिणाम यह हुआ कि एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के हाथ चला गया। जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) के एम करियप्पा ने 1948 के युद्ध में उत्कृष्ट नेतृत्व करते हुए मोर्चे पर सेना की अगुआई की। चच्चा कैसे खुश होते? उन्होंने जनरल करियप्पा को हटाने की ठान ली और उनकी जगह जनरल राजेंद्र सिंहजी जडेजा को सेनाध्यक्ष बनाने की कोशिश की। जनरल जडेजा मना नहीं करते तो ये भी हो जाता।

भारतीय सेना के निरंतर अपमान और मनोबल तोड़ने की परंपरा को आगे बढ़ाने में चच्चा के चहेते और विलक्षण प्रतिभा के धनी कृष्ण मेनन ने पूरी ऊर्जा झोंक दी। मेनन ने सेना के पूरे चेन ऑफ कमांड को ध्वस्त कर दिया। कायदे से रक्षा मंत्री सिर्फ सेना प्रमुख से बात करता है लेकिन मेनन तो फोन उठा कर मेजर से भी बात कर लेते थे। सेना प्रमुख की उनके लिए कोई विशेष हैसियत नहीं थी। के एम करियप्पा के बाद नेहरू-मेनन की जोड़ी के निशाने पर जनरल के एस थिमैया आए।

1957 में सेना प्रमुख बने जनरल थिमैया का कद इतना बड़ा था कि नेहरू-मेनन को खतरा लगने लगा। दिखावे के लिए चच्चा सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा का कोई मौका नहीं चूकते थे। गर्वीले सैनिक जनरल थिमैया सेना से नेहरू-मेनन की चिढ़ से अंजान नहीं थे पर घुटने टेकने वालों में से नहीं थे। 28 अगस्त, 1959 को उनकी नेहरू से तल्ख बहस हो गई। उसी रात पी के टल्ली रक्षा मंत्री मेनन ने जनरल साहब को धमकाया कि सीधे प्रधानमंत्री से कैसे बात कर लिए, नतीजा बुरा होगा। जनरल थिमैया ने अगले दिन इस्तीफा दे दिया।

नेहरू ने उन्हें बुलाया और इस्तीफा नहीं देने के लिए मनाया। पर जैसे ही जनरल पीएमओ से निकले, चच्चा ने खबर लीक कर दी। दो सितंबर को नेहरू ने इस्तीफे के बाबत संसद में बयान दिया और ठीकरा थिमैया पर फोड़ दिया। जिस सेना को दफन करने का सपना चच्चा ने पाल रखा था, जरूरत पड़ने पर उसी के भरोसे वे चीन को ठिकाने लगाने का भी सपना पाल रखे थे। 1961 में चच्चा के परम प्रिय जनरल बी एम कौल आर्मी के चीफ ऑफ स्टाफ बने। उनका मानना था कि चीनी बिना लड़े ही भाग जाएँगे लेकिन चीनी जब घर में घुस आए तो कौल साहब बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो गए। बाकी चीनियों ने हमें रौंद दिया। लगा कि पूरा असम चला जाएगा और चच्चा ने रेडियो पर कहा, “मेरा दिल असम के लिए रो रहा है।”

चच्चा, आपने जो किया वो भुगता। अब भी समाजवाद और धर्मनिरेपक्षता की मुगली घुट्टी पी रहे सुधीजनों को यह ईशनिंदा लग सकता है। पर कर्मन की गति न्यारी! और रेनकोट वाले डॉक्टर साहब, आप भी अगर खामोश रहते तो अच्छा था। अब आबरू क्यों गंवाई? हम तो कॉन्ग्रेसियों से सुषमा जी की तरह ही पूछेंगे- ‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफ़िला क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’

आदर्श सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)

दिग्गी राजा के ‘शांतिदूत’ ज़ाकिर नाइक के भारतीय खाते में किसी ने डाले ₹49 करोड़, ED का नया ख़ुलासा

इस्लामिक उपदेशक और भगोड़ा ज़ाकिर नाइक के पास इनकम का कोई स्रोत नहीं है, फिर भी उसके खाते में 49 करोड़ रुपए डाले गए। प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार, ज़ाकिर नाइक के पास आय का कोई ज्ञात स्रोत नहीं है, फिर भी उसके भारतीय बैंक खाते में 49 करोड़ रुपए कैसे डाले गए? प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने विशेष अदालत में ज़ाकिर नाइक के ख़िलाफ़ दायर किए गए आरोप-पत्र में यह दावा किया है। जस्टिस एमएस आज़मी ने ज़ाकिर नाइक के ख़िलाफ़ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून रोकथाम अधिनियम के तहत दाखिल आरोपपत्र का संज्ञान लिया। भगोड़ा ज़ाकिर नाइक अभी मलेशिया में रह रहा है और उसकी वीडियोज में भड़काऊ चीजें होती हैं।

अभी हाल ही में केरल में एक आतंकी की गिरफ़्तारी भी हुई है, जो ज़ाकिर नाइक के वीडियो देख-देख कर आत्मघाती हमलावर बनने की योजना बना रहा था। प्रवर्तन निदेशालय ने कहा है कि ज़ाकिर नाइक के पास कारोबार, रोज़गार या फिर व्यापार से आय का कोई स्रोत नहीं है। ऐसी स्थिति में भी वह अपने खाते में कहाँ से और क्यों 49.2 करोड़ रुपए ट्रांसफर करने में कामयाब रहा, सरकारी एजेंसियाँ इसका पता लगा रही हैं। केंद्रीय जाँच एजेंसी अब तक नाइक के दो सहयोगियों आमिर गजदार और नज़मुद्दीन साथक को गिरफ्तार कर चुकी है। गैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत नाइक के ख़िलाफ़ 2016 में मामला दर्ज किया गया था।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी की प्राथमिकी के आधार पर यह कार्रवाई की गई थी। ख़बरों के मुताबिक़ नाइक की अब तक जितनी संपत्ति ज़ब्त की गई है, उसके पास उस से कहीं ज्यादा संपत्ति अभी भी मौजूद है। उसकी संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के पास ₹100 करोड़ से भी ज्यादा की अचल संपत्ति है। इस से पहले भी ED उसकी संपत्ति को ज़ब्त कर चुका है। 2017 में ED ने उसकी और उस से जुड़ी संस्था की ₹18 करोड़ से भी अधिक की सम्पत्तियों को ज़ब्त किया था।

सरकार ने ज़ाकिर नाइक की संस्था को ग़ैरक़ानूनी करार देकर प्रतिबंधित किया हुआ है। कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकारी एजेंसियाँ अब तक नाइक की ₹50 करोड़ से भी अधिक की संपत्ति ज़ब्त कर चुकी है। वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली एजेंसी ED के मुताबिक़ ये कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी। श्री लंका में हुए हमलों के बाद वहाँ ज़ाकिर नाइक के पीस टीवी नामक चैनल को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर तंज कसा था और कहा था कि दिग्गी राजा तो ज़ाकिर नाइक को अपने कंधे पर बिठा कर चलते हैं। उन्होंने कहा था कि कॉन्ग्रेस नेता ज़ाकिर के दरबार में जाकर उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे।

ये ‘चौकीदारों का गाँव’ है, यहाँ राहुल गाँधी का आना मना है

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के समीप ककरहिया नामक गाँव के लोगों ने पोस्टर लगाकर इस बात की ‘घोषणा‘ कर दी है कि उनके गाँव में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का प्रवेश निषेध है।

ग्रामीणों द्वारा लगाए गए पोस्टर में लिखा है-‘ये चौकीदारों का गाँव है, यहाँ आना मना है।‘ वाराणसी जिले में पड़ने वाले ककरहिया गाँव के निवासियों का मानना है कि यह संदेश राहुल गाँधी के लिए ही है।

आईएएनएस की ख़बर के मुताबिक, ककरहिया में रहने वाले एक ग्रामीण ने बताया है कि राहुल गाँधी द्वारा प्रधानमंत्री पर की गई टिप्पणी- ‘चौकीदार चोर है’ ने देश के गौरव को आहत किया है। उनके मुताबिक वो नहीं चाहते कि उन्हें (नरेंद्र मोदी) चोर कहने वाला इंसान उनके गाँव में कदम रखे, इसलिए उन्होंने ये पोस्टर लगाए हैं।

ककरहिया गाँव के बारे में बता दें कि इस गाँव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदर्श ग्राम योजना के तहत 23 अक्टूबर 2017 को गोद लिया गया था। इसके बाद गाँव में हुए विकास ने वहाँ के लोगों का जीवन बदल कर रख दिया।

द स्टेट्समैन में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक, कार्तिक कश्यप नाम के युवक ने बताया है कि उनके गाँव में अब सड़के हैं, साफ़-सफ़ाई है, शौचालय और बिजली है, उन्हें और क्या चाहिए? वह कहते हैं कि वो लोग ऐसे किसी भी व्यक्ति को गाँव में आकर प्रचार करने की अनुमति नहीं देंगे जो मोदी के ख़िलाफ़ होगा।

मीडिया ख़बरों के मुताबिक ककरहिया गाँव की भाँति ही जयापुर (प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिया गया पहला गाँव) जैसे गाँव भी ऐसे पोस्टर लगाने का विचार बना रहे हैं। बता दें कि विपक्षी दलों ने भी अभी तक इन गाँवों में किसी प्रकार की जनसभा और बैठक करने की घोषणा नहीं की हैं।

बंगाल में BJP को मिल रहा है CPM कैडर का गुपचुप साथ, CM ममता ने भी चेताया

लोकसभा चुनाव अब लगभग अपने अंतिम चरण में है और अंतिम 2 चरणों के लिए सभी पार्टियाँ पूरा ज़ोर लगा रही हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहाँ सभी 7 चरणों में मतदान चल रहा है। अतः इन तीनों बड़े और चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों में सियासी पारा अंतिम चरण का मतदान संपन्न होने तक गर्म ही रहेगा। जहाँ बिहार में अलग-अलग जाने के बाद फिर से साथ हुए नीतीश-भाजपा गठबंधन की अग्निपरीक्षा है, वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा पर अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। लेकिन, पश्चिम बंगाल में मुक़ाबला सबसे दिलचस्प है क्योंकि कभी वाम का गढ़ रहे इस क्षेत्र में आज ममता का राज है और हिंसा के मामले में तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने वाम को भी पीछे छोड़ दिया है। लेकिन इस बार माहौल बदला-बदला सा है। प्रधानमंत्री मोदी, फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैलियों में बड़ी भारी भीड़ जुट रही है।

पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल सीपीएम अब तीसरे नंबर पर खिसक चुका है और धीरे-धीरे भाजपा बड़ी शक्ति बन कर उभर रही है। पूरे देश में वामपंथी और भाजपा एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं और भाजपा के ख़िलाफ़ सभी वाम दल एकजुट हैं। केरल में संघ व भाजपा कार्यकर्ताओं की लगातार हत्याएँ हुई हैं और इसके पीछे वामपंथी कार्यकर्ताओं के हाथ सामने आते रहे हैं। लेकिन, पश्चिम बंगाल में ज़मीनी समीकरण कुछ और ही कहता है। यहाँ बूथ लेवल पर सीपीएम के कार्यकर्ता गुपचुप तरीके से भारतीय जनता पार्टी की मदद ही कर रहे हैं। सीपीएम कार्यकर्ताओं के इस कार्य के पीछे ममता बनर्जी और तृणमूल कॉन्ग्रेस के प्रति उनकी कट्टर विरोधी सोच है। जहाँ कॉन्ग्रेस बंगाल से लगभग साफ़ हो चुकी है और सीपीएम को लगातार आज़माने के बाद लोगों ने उसे उखाड़ फेंका, ऐसे में ममता विरोधी सीपीएम कैडर को भाजपा की मदद करने में यहाँ फायदा दिख रहा है।

वामपंथी कार्यकर्ता भी अब ममता सरकार की दमनकारी नीतियों से ख़फ़ा हैं और वार्डों में घूम-घूम कर भाजपा की मदद कर रहे हैं, भाजपा उम्मीदवारों को ग्राउंड लेवल मैनेजमेंट में सहायता कर रहे हैं। सीपीएम के कार्यकर्ता अब भाजपा को नई उभरती शक्ति के रूप में देख रहे हैं, जो ममता सरकार को अपदस्थ कर सकती है – जो कम से कम बंगाल में उनकी दुश्मन नंबर एक है। उदाहरण के लिए कोलकाता उत्तर को ले लीजिए। यहाँ 1862 पोलिंग बूथ हैं। वर्तमान सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को हराने के लिए भाजपा को यहाँ सीपीएम कार्यकर्ता मदद कर रहे हैं। भाजपा नेता बिना किसी नारे के, बिना किसी मीडिया कवरेज के, भाजपा संगठन के पदाधिकारी सीपीएम कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर के डोर-टू-डोर प्रचार-प्रसार अभियान में उनकी मदद ले रहे हैं।

भाजपा यहाँ भी त्रिपुरा वाला प्रयोग ही करने वाली है। त्रिपुरा में भी लम्बे समय से कार्यरत माणिक सरकार को हटाने के लिए भाजपा को सीपीएम कार्यकर्ताओं ने मदद की थी। ख़ुद माणिक सरकार ने इस बात को स्वीकार किया था। सीपीएम के बड़े नेता बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देकर बड़गलाने में लगे हैं कि तृणमूल से बचने के लिए भाजपा की तरफ मत देखिए क्योंकि त्रिपुरा में उन लोगों ने 14 महीने में ही तृणमूल से भी ज्यादा आतंक कायम कर दिया है। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस बारे में नहीं पता। उन्होंने पहले ही एक रैली में अपने कार्यकर्ताओं को सीपीएम वर्कर्स के प्रति सावधान रहने के लिए कहा था और चेताया था कि वो (सीपीएम कार्यकर्ता) फिर से ऐसा कर रहे हैं, ‘दुश्मनों’ की मदद कर रहे हैं।

देश भर से साफ़ हो रही वामपंथी ताक़तों से उनके ख़ुद के कार्यकर्ताओं का विश्वास उठ रहा है। कभी त्रिपुरा और बंगाल सहित देश भर के कई इलाक़ों में बड़ी ताक़तें रहे ये दल अब सफाए के कगार पर खड़े हैं और कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिए कोई बड़ा नेता फिलहाल मौजूद नहीं है। इसीलिए, सीपीएम कार्यकर्ताओं द्वारा बंगाल में भाजपा को मदद करना एक महत्वपूर्ण संकेत है।

उसने कहा कि ‘भ्रूण हत्या ही ठीक है, ये दुनिया आप पुरुषों को मुबारक’

तीन बहनें पैदा हो चुकी थीं, पता चला चौथी भी लड़की हुई है, चाचा-ताऊ ने कहा कि वो परिवार से अलग हो रहे हैं। चेहरा तक नहीं देखा। पता चला कि सोनोग्राफी में पेट के भीतर लड़की है, डॉक्टर को पैसे देकर पेट के भीतर उस चार-पाँच इंच के शरीर को कई हिस्सों में काट कर, या तोड़ कर बाहर निकाल दिया गया। पता चला कि पहली संतान बेटी हुई है, वहीं निर्ममता से गला घोंट दिया गया। ये काम घर की औरतों ने किया है, घर के मर्दों ने किया है। ये काम माँओं ने किया है, बापों ने किया है।

वो किसी तरह बड़ी हुई तो पुरुषों ने उसके एक महीने के होने से लेकर, घुटनों पर घुड़कने तक की भी अवस्था में बलात्कार किया। घर के लोगों ने उसे यहाँ-वहाँ छुआ। बाप से लेकर भाई, मामा, चाचा, जीजा, मौसी, फूफा और शिक्षक, दोस्त आदि हर संबंध में पुरुष ने उसे उसकी मर्ज़ी के खिलाफ छेड़ा, छुआ, रेप किया, लगातार किया और इतना किया कि वो मर गई लेकिन बोल नहीं सकी किसी को कि उसके साथ क्या हुआ है, क्या हुआ था, क्या होता रहा।

प्रथम प्रेम ने उसे धोखा दिया और उसके निजी पलों को सार्वजनिक बना दिया। फिर वो सबसे डर कर रहने लगी। उसकी पढ़ाई बंद हो गई। कहीं वो किसी संबंधी के यहाँ बेहतर जगह पर पढ़ाई करने पहुँची तो पता चला कि उसका अपना जीजा, चचेरा भाई, चाचा, मौसा या कोई भी उसे इस बात पर ब्लैकमेल कर के उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती करता रहा कि उसे ज़रूरत है वहाँ रहने की, या, अगर उसने उनका साथ नहीं दिया तो उसकी बहन, बुआ, मौसी या जो भी संबंधी है, उसके साथ अच्छा नहीं होगा।

फिर वो काम करने के लिए किसी तरह ऑफिस तक पहुँची तो वहाँ बताया गया कि तुम हीन हो, और आगे बढ़ने के लिए तुम्हें ज़रूरत है तुम्हारे बॉस की। कहीं लिफ़्ट में उसके साथ जबरदस्ती हुई, कभी केबिन में बुला कर उसे बताया गया कि क्या करने पर वो आगे बढ़ सकेगी।

ये बहुत ही जेनेरिक कहानी है। इसमें आप नाम, जगह और संबंध चुन लीजिए, ये सत्यकथा हो जाएगी। यही कारण है कि यह भयावह है। यह ख़तरनाक स्थिति है। यह सर्वव्याप्त है। यह आपके घर में हो रहा है, आपकी क्लास में हो रहा है, आपके बच्चे के साथ हो रहा है, आपके पड़ोस में हो रहा है, आपके समाज में हो रहा है। आप अपने घर की लड़कियों से पूछिए, पता चल जाएगा कि क्या हो रहा है समाज में।

अलवर की घटना हुई और उस पर चुनावों के मौसम में बवाल हो रहा है। अलवर में क्या घटना हुई यह जान कर भी क्या कीजिएगा। ऐसी घटनाएँ हर मिनट हो रही हैं। ऐसी घटनाएँ बहुत ही अडवान्स इकॉनमी से लेकर पिछड़े समाज तक में होती हैं। इसलिए जगह और समाज दोनों ही ग़ैरज़रूरी हो जाते हैं।

इन घटनाओं का एक सेट पैटर्न है। घटना होगी, पुलिस केस दर्ज करने में आनाकानी करेगी, सत्ता पक्ष निंदा करेगा, विपक्ष सत्ता पक्ष को ऐसे लताड़ेगा जैसे तीन महीने पहले वहाँ सब कुछ ठीक था, फेसबुक पर लोग उस घटना का लिंक शेयर करेंगे, फिर बग़ल वाले लड़के से कहेंगे कि दूसरे केबिन की लड़की कितनी मस्त है। दोनों हँसेंगे, और माहौल चिल हो जाएगा। एक लड़की के बलात्कार की यही कहानी है। गलत है, लेकिन यही है।

हमारी समस्या यह है कि हम गलत जगह से इन मुद्दों पर बात करना शुरु करते हैं, और गलत जगह पहुँच कर खत्म कर देते हैं। मुद्दा वहीं, अपनी यथास्थिति में मौजूद रहता है जो जगह और समय बदल कर, नए रूप में फिर से आ जाता है। मोलेस्टेशन या बलात्कार राजनैतिक समस्या नहीं है, इस पर आप नेताओं को कोसने से कुछ नहीं पाएँगे। ये सामाजिक समस्या है, और समाज को इसके लिए कुछ बुनियादी बदलाव लाने होंगे।

नेताओं को कोसने से कुछ भी नहीं होगा क्योंकि नेताओं को कोसने से आज तक कुछ भी नहीं हुआ। आप यह मान कर चलिए कि इन्हें सुधारने के लिए गृहयुद्ध या लार्ज स्केल पब्लिक अपरायजिंग यानी जन आंदोलन की ज़रूरत है। लेकिन उसके बाद भी इस समाज में मर्द तो रहेंगे ही, मर्द रहेंगे तो नवजात से लेकर वृद्धा तक का बलात्कार तो होता ही रहेगा। गृहयुद्ध से हासिल यही होगा कि नेताओं के मुँह से ऐसी वाहियात बातों की जगह कुछ एक्शन की बातें होंगी ताकि पुलिस यह न कह सके कि चुनाव थे इसलिए केस दर्ज नहीं किया गया।

इसलिए, बदलाव की ज़रूरत कहीं और है। मेरी मित्र ने मुझे मैसेज किया कि भ्रुण हत्या ही ठीक है, उसे भी वैसे ही मार दिया जाता तो कितना अच्छा रहता। उसने आगे लिखा कि ये दुनिया पुरुषों को मुबारक हो। मैं जवाब नहीं दे सका। जवाब देता भी तो क्या देता? मैं तब भी जवाब नहीं दे पाता हूँ जब किसी लड़की से मेरी कोहनी मेट्रो की भीड़ में टकरा जाती है और वो मुझे डाँट देती है। मैं जानता हूँ कि गलती मेरी नहीं है, पर मैं जवाब नहीं देता।

मैं जवाब इसलिए नहीं दे पाता क्योंकि वो डाँट मुझे नहीं, मेरे मर्द होने को पड़ी है जो उसी मेट्रो की भीड़ में हस्तमैथुन भी करता है, उसी मेट्रो की भीड़ में लड़कियों के कंधे पर हाथ रखता है, उसी मेट्रो की भीड़ में उनकी कमर छूता है, उसी मेट्रो की भीड़ में वो उसकी पीठ सहलाता है। ये हर जगह मैं ही तो हूँ। ये मेरा ही तो रूप है जो बसों में उस पर गिर जाता है, जो गर्ल्स हॉस्टल की खिड़कियों की सीध में अपने लिंग पर हाथ फेरता है। वो मैं ही तो होता हूँ जो अपनी किसी जान-पहचान की बच्ची को चॉकलेट देकर कहीं ले जाता हूँ, और उसके साथ हैवानियत दिखाने के बाद उसकी हत्या भी कर देता है।

ये सारे रूप मेरे हैं, इसलिए जब मेरी गलती नहीं होती, फिर भी मैं उसकी डाँट को सुन कर शर्म से सिर झुका लेता हूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि इसी लड़की को आधे घंटे पहले किसी ने इसी कोहनी से जानबूझकर छुआ होगा। ये हरकतें इतनी आम हैं कि एक लड़की दिन में औसतन दस बार ऐसी गंदी स्थिति का शिकार बनती होगी।

मर्दानगी और पावर

मर्दानगी के साथ पावर की जो अनुभूति होती है, वो एक कंकाल-सदृश मर्द के भीतर भी होती है। वो सेक्स भी करता है तो वो सामने वाले के ऊपर आनंद से ज़्यादा अपने पावर का इस्तेमाल करता दिखता है। वो उन क्षणों की निर्मलता को ग्रहण करने की जगह इस फ़िराक़ में होता है कि उसके भीतर का जानवर उस लड़की या स्त्री पर कैसे अपना प्रभाव छोड़े।

हम सेक्स नहीं करते, हम बता रहे होते हैं कि हम कितनी शक्ति समेटे हुए हैं, और हमारी सारी शक्ति की पूर्णता एक स्त्री की योनि पर प्रहार करने से प्रदर्शित होती है। बिस्तर पर हम कितने वहशी है, वो हमारी प्रेमिकाएँ जानती हैं।

यही पावर, इसी शक्ति का स्थानांतरण एक वैसे तरीके से होता है जो अपनी पूर्णता में जब बाहर न आ सके, तो किसी भीड़ में किसी की बाँह को मसल देने में बाहर आता है। यही पावर आपको किसी के कूल्हों पर थपकियाँ मारने की हिम्मत दे देता है। यही पावर आपको किसी स्त्री के वक्ष पर अपना हाथ टिका देने की ताक़त देता है। ये उसी वहशीपने का सूक्ष्म रूप है। ये दरिंदगी मर्दों में सामान्यतः पाई जाती है, फ़र्क़ बस इतना है कि कुछ इस पर नियंत्रण रखते हैं, पर अधिकतर इस समाज में घुटती लड़कियों के अस्तित्व को ही ख़ारिज मानते हुए हर अवस्था में, हर जगह पर, हर समय, हावी होना चाहते हैं।

बलात्कार का सामान्यीकरण

इसी का कुत्सित रूप है रेप, या बलात्कार। यह शब्द सुन कर हमें चौक जाना चाहिए, लेकिन हम नहीं चौंकते। यह शब्द हमें चौंकाता क्यों नहीं? क्योंकि इसे हम मर्दों ने इतना आम कर दिया है कि अब ऐसी खबरें हमें आश्चर्यचकित नहीं करतीं। इसे हमने एक बच्ची के जन्म से लेकर, उसकी लाश पर भी अपने निशान छोड़ने तक सामान्य बना दिया है। हमें क्षणिक दुःख होता है, लेकिन हम भूल जाते हैं। लेकिन रेप भूलने वाली घटना नहीं है।

अगर हम भूल जाते हैं तो हमारे सिस्टम में समस्या है। हमारे समाज में समस्या है। अलवर, ग़ाज़ियाबाद, मुज़फ़्फ़रपुर, देवरिया, तिरुवनंतपुरम, बंग्लोर, गोवा, पार्क स्ट्रीट से मतलब नहीं है, मतलब इससे है कि हर समाज में यह कोढ़ है, जिसका इलाज करने की जगह हमने इसे टाला है। हमने कभी बहुत ज़्यादा सोचा भी नहीं। हमने खुद के भीतर कभी झाँका ही नहीं। हमने अपने ऊपर नियंत्रण करने की कोशिश ही नहीं की।

हमारे भीतर का दरिंदा अपनी प्रेमिका पर ही सही, अपनी पत्नी पर ही सही, हावी तो होता है। हमने क्या उन क्षणों में प्रेम किया है, या वो करवाया है जो हमारे मन में पलता रहता है। कहीं हमसे जुड़ने वाली लड़की को यह तो नहीं लगा कि प्रेम यही है जबकि आपने सहमति लेकर उसका बलात्कार ही किया हो? क्या आपने कोशिश की जानने की कि उसने जो सर्वस्व सौंपा है, उसे आपने भी अपना सर्वस्व दिया है?

यहीं से हमारी मानसिकता पर सवाल उठते हैं। यहीं हमारी पहली गलती होती है। जब हम उस स्थिति को भी नहीं समझ सके, जो हमारे पास है, पूर्ण सहमति से है, तो हम बाहर क्यों किसी को देखकर उन्मादित नहीं होंगे? या, हमें क्यों फ़र्क़ पड़ेगा ऐसी खबरों से कि नोएडा में एक सोलह साल की बच्ची को 51 दिनों तक तीन लड़कों ने लगातार क़ैद में रखा और बलात्कार किया?

मर्दों की मानसिकता में सुधार नहीं आया तो भले ही हमारे समय में नहीं, पर आने वाले समय में हम अपने ही घरों में बलात्कार करते पाए जाएँगे। हमारा डर खत्म हो चुका होगा, पुलिस घरों में मौजूद नहीं होगी, और हमारे भीतर की कुंठा हमें अपनी माँ, बहन या बेटी के ऊपर कूदने का ज़रिया बना देगी।

हम क्या कर सकते हैं?

हम क्या करें फिर? सबसे पहले तो यही करें कि स्वीकारें कि हर ऐसी घटना के भागीदार हम सारे मर्द हैं। किसी मर्द को ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के पीछे की हिम्मत हम ही तो देते हैं। ये सामूहिक वारदात है, जिसका अपराध हर मर्द के सर पर है। हम अपने भीतर की कुंठा से निजात तभी पा सकते हैं जब हम अपनी गलती, अपने समाज की गलती को स्वीकारने की स्थिति में आएँ। अपनी पत्नी और प्रेमिका पर हमले करने वाले, ऐसी बातों पर क्या संवेदना दिखा पाएँगे!

अपने बच्चों को शुरु से बताइए कि लैंगिक समानता क्या है। उसे बताइए कि उसमें और उसकी बहन, दोस्त में जो अंतर है, वो बस ऐसा ही है कि पौधे में गुलाब का फूल भी होता है, गेंदा का भी। लड़कियों की सुंदरता को प्राप्य या अप्राप्य की श्रेणी में मत डालिए। उसे रेस की ट्रॉफ़ी मत बनाइए। दोनों ही बच्चों को, एक समान ट्रीटमेंट दीजिए।

घर के भीतर, स्कूल में आपके बच्चे के साथ क्या हो रहा है, बार-बार पूछिए। लड़का हो या लड़की, उनसे पूछिए कि कहीं स्कूल में, ट्यूशन पर कोई उसे गलत तरीके से छूता तो नहीं। पढ़ाई के अलावा और क्या है जो किसी ने उसे बताने से मना किया हो। बच्चों को इग्नोर मत कीजिए, किसी भी हालत में। कोई बच्चा अचानक से बदल रहा हो तो उसे अपनी व्यस्तता के कारण मत भूलिए। आपको हमेशा याद रहना चाहिए कि वो बच्चा अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं हुआ, बल्कि आपने उसे पैदा किया है, और आपकी ज़िम्मेदारी है उसे बेहतर भविष्य देना। इसलिए, उसकी उपेक्षा भूल कर भी मत कीजिए।

आप जहाँ काम करते हों, वहाँ अपने दोस्तों को चिरकुटों वाले काम करने से रोकिए। उसे बताइए कि यही स्थिति उसे एक बलात्कारी बना सकती है, या कोई उसी से सीख कर कुछ ऐसा कर जाएगा जो उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी। लड़कियों को देखने, घूरने और एक्स-रे करने में अंतर है। इस बात का ध्यान रखिए।

हमारा समाज तो बर्बाद हो चुका है, हम इसमें बहुत कुछ नहीं बदल सकते। लेकिन, हमारे बच्चों को हम थोड़ा बेहतर समाज देकर, उन्हें भी यही बात सिखा कर, आने वाले बच्चों के लिए और भी बेहतर समाज बना सकते हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है। आप इसे चाहें तो इग्नोर कर सकते हैं कि आपका घर तो सुरक्षित है, लेकिन व्यक्ति कभी भी अकेलेपन में नहीं होता, उसके साथ होने वाली घटनाओं पर उसके अकेले होने का ज़ोर नहीं होता, वो बाहरी शक्तियों से भी प्रभावित होती हैं।

बेहतर शिक्षा और सतत प्रयास ही इस समाज को साफ करने में सहायक होगा। अपने स्तर पर अपनी प्रेमिका और पत्नी पर ज़ोर आज़माने से बेहतर, प्रेम करना शुरु कीजिए। इन क्षणों की अपनी अहमियत है, इन्हें इनकी पूर्णता में समझिए। क्षणिक आनंद और शक्ति प्रदर्शन कई स्तर पर आपकी मानसिक स्थिति पर आघात पहुँचाता है। इसकी परिणति बहुत भयावह होती है।

अलवर हर मिनट घटित होता है। नेता लोग हर दिन बयान देते हैं। हम हर दिन कहीं न कहीं फेसबुक पर इस पर चर्चा करते हैं। लेकिन इन घटनाओं में कमी नहीं आती। कमी इसलिए नहीं आती क्योंकि हमने महसूस करना छोड़ दिया है। हमने इसकी भयावहता को नॉर्मलाइज कर दिया है। हम इसे सामान्य बात मान कर आगे बढ़ जाते हैं।

जबकि हमें यह समझना होगा कि अपने भीतर थोड़े बदलाव लाकर, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण लाकर, दमन की जगह प्रेम ला कर, हम समाज तक एक बेहतर ऊर्जा भेज सकते हैं। मैं जानता हूँ कि शायद यह लेख भी मेरे उन सवा लाख शब्दों की तरह डिजिटल दुनिया में तैरता रहेगा, किसी के काम न आएगा, जो मैंने अभी तक सिर्फ बलात्कार पर लिखे हैं। लेकिन मैं लिखता रहूँगा क्योंकि इससे अगर एक व्यक्ति भी थोड़ा बदल पाता है, अपने भीतर की नकारात्मकता को स्वीकार पाता है, तो मेरा लिखना सफल होगा।

जय श्री राम, हुह… जिस पत्रकार ने ऐसा कहा, वो एक नंबर का धूर्त है, बंगालियों के नाम पर कलंक है

प्रीतिश नंदी ने ‘जय श्री राम’ से आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि ये ‘जय श्री राम वाले’ माँ सरस्वती से अनजान हैं। उन्होंने दावा किया कि वे और अन्य बंगाली नागरिक माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। उन्होंने कहा कि सरसवती विद्या, ज्ञान और बुद्धि की देवी है। उन्होंने कहा कि ‘वे लोग’ महिलाओं की इज़्ज़त करते हैं। उन्होंने कहा कि इसी कारण बंगाली लोग दुर्गा और काली, दोनों की ही पूजा करते हैं। इसके बाद उन्होंने ‘जय श्री राम’ पर तंज कसते हुए लिखा, “जय श्री राम, हुह“। प्रीतिश नंदी के दावे सही हैं, सरस्वती की पूजा बंगाल में होती है, माँ काली एवं दुर्गा की पूजा बंगाल में होती है, बंगाली महिलाओं की इज़्ज़त करते हैं, लेकिन पेंच कहाँ है, ये हम आपको बताते हैं। दरअसल, उन्होंने जिन देवी-देवताओं का नाम लिया, उनकी पूजा किसी न किसी रूप में हर उस जगह होती है, जहाँ हिन्दू समाज रहता है।

दुर्गा पूजा के दौरान आप बिहार की किसी भी गली में चले जाइए, लोगों में जोश और उत्साव वहाँ किसी बंगाली की तरह ही रहता है। ठीक ऐसे ही, माँ सरस्वती की पूजा केरल एवं तमिलनाडु में भी होती है, जो पश्चिम बंगाल से काफ़ी दूर है। वहाँ नवरात्रि के अंतिम तीन दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्र के दौरान पूरे भारत में की जाती है। क्या केरल, तमिलनाडु और बिहार के लोग महिलाओं की इज़्ज़त नहीं करते हैं? दरअसल, भारत में कन्या पूजन और देवियों की पूजा लम्बे समय से होती आ रही है। हाँ, बंगाल के दुर्गा पूजा में भव्यता, उत्साह और जोश सबसे ज्यादा होता है, लेकिन यही तो भारत की विशालता की ख़ासियत है। बिहार में छठ के दौरान कुछ ऐसा ही उत्साह होता है, केरल में ओणम के दौरान, महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के दौरान और तमिलनाडु में पोंगल के दौरान कुछ ऐसी ही भव्यता होती है।

प्रीतिश नंदी अंग्रेजों की उसी ‘फूट डालो’ नीति को आगे बढ़ा रहे हैं, जिस पर चलते हुए कॉन्ग्रेस ने लिंगायत समुदाय को हिन्दू धर्म से अलग देखते हुए उसे एक अलग धर्म बनाने की कोशिश की थी। धर्मों में लड़ाने, जातियों में लड़ाने और सम्प्रदायों में लड़ाने के बाद अब ये गिरोह विशेष अलग-अलग देवी-देवताओं के भक्तों और क्षेत्रीय परम्पराओं के आधार पर लड़ाने पर उतारू है। अगर बंगाल में श्रीराम की पूजा नहीं होती, लोग उन्हें नहीं मानते, तो प्रीतिश नंदी क्या बता सकते हैं कि वहाँ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने वाले क्या अयोध्या से आ रहे हैं? अगर इन छद्म बुद्धिजीवियों ने जरा भी भारत का इतिहास पढ़ा होता, तो शायद ये ऐसा नहीं कहते। नंदी ने ऐसी ही ग़लती की है, जैसी जावेद अख़्तर ने घूँघट और बुर्क़े की तुलना कर के की थी। इन्हें ऐतिहासिक तथ्यों से जवाब देना आवश्यक है।

पश्चिम बंगाल में श्रीराम के प्रभाव को नकारने वाले और ‘जैस श्री राम’ के नारे से चिढ़ने वाले प्रीतिश नंदी से बस एक सवाल पूछा जाना चाहिए और वह ये है कि कृत्तिवासी रामायण क्या है? प्रीतिश को या तो नहीं पता या वो सब जानते हुए भी लोगों को बेवकूफ बनाना चाहते हैं। हमारा कार्य है उन चीजों को सामने लाना, जो ये छद्म बुद्धिजीवी नहीं चाहते कि आप जान पाएँ। हमारा कार्य है उस तथ्य को सामने रखना, जिसे ये वामपंथी छिपा लिया करते हैं, दबा दिया करते हैं और इसके उलट एक अलग नैरेटिव बनाते हैं। दरअसल, कृत्तिवासी रामायण भगवान श्रीराम की गाथा है, बंगाली भाषा में, और वाल्मीकि रामायण का बंगाली रूपांतरण है। कृत्तिवासी रामायण में भगवान श्रीराम द्वारा रावण वध से पहले दुर्गा पूजा करने की कहानी भी है और बंगाल में दुर्गा पूजा की लोकप्रियता बढ़ने में इसका भी योगदान है।

आज जो रामचरितमानस हिंदी बेल्ट में लोकप्रिय है, जिस पुस्तक ने रामायण को उत्तर भारत के घर-घर तक पहुँचाया, उस रामचरितमानस के लेखक भी उसी धरा से प्रभावित थे, जो कृत्तिवासी रामायण के लेखक कृत्तिवासी ओझा ने शुरू की थी। तुलसीदास का रामचरितमानस कृत्तिवासी रामायण के बाद लिखा गया और तुलसीदास उससे प्रभावित भी थे। न सिर्फ़ तुलसीदास, बल्कि रविंद्रनाथ टैगोर जैसे महान लेखक भी कृत्तिवासी रामायण में भगवान श्रीराम के चित्रण से प्रभावित थे। बंगाल में दुर्गा पूजा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय अगर जिसको जाता है, तो वह हैं- कृत्तिवासी ओझा। वही कृत्तिवासी ओझा, जिन्होंने रामायण का बंगाली रूपांतरण लिखा। प्रीतिश नंदी किसे ठगने की कोशिश कर रहे हैं? किसे बेवकूफ बना रहे हैं वह? जब एक बंगाली रामायण लिख सकता है, रामायण में ‘दुर्गा पूजा’ की चर्चा कर इसे घर-घर में लोकप्रिय बना सकता है, तो बंगाल में ‘जै श्री राम’ के नारे से किसी को भी आपत्ति क्यों?

माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम के भक्तों को अलग-अलग देखते हुए क्षेत्र और श्रद्धा के नाम पर उन्हें लड़ने की कोशिश में लगे नंदी क्या यह नहीं जानते कि बंगाली रामायण के लेखक ने दुर्गा पूजा को बंगाल के घर-घर तक पहुँचाया। जब ख़ुद भगवान श्रीराम माँ दुर्गा के उपासक हैं, उन्होंने दुर्गा पूजा की थी, तो क्या रामभक्त देवी दुर्गा की पूजा नहीं कर सकते? या फिर माँ दुर्गा को मानने वाले भगवान श्रीराम के भक्त नहीं हो सकते? मिथिलांचल में दुर्गा पूजा के दौरान रामायण और दुर्गा सप्तशती साथ-साथ पढ़ी जाती है। रामनवमी के दौरान माँ सीता को जगतजननी दुर्गा का अवतार मानकर पूजा की जाती है। ख़ुद तुलसीदास ने रामचरितमानस में माँ पार्वती के जन्म की कहानी कहते हुए उन्हें जगदम्बा कहा है।

हिन्दू धर्म को तोड़ने-मरोड़ने के प्रयास में लगे प्रीतिश नंदी को जानना चाहिए कि कृत्तिबास ओझा के ‘श्री राम पंचाली’ ने बंगाल में दुर्गा पूजा को मशहूर कर जन-जन तक पहुँचा दिया। इसमें पहली बार शक्तिपूजा के बारे में लिखा था। ‘श्री राम पंचाली’ में राम द्वारा रावण को हराने के लिए शक्ति पूजा करने का जिक्र है। इसमें इस बात का जिक्र है कि जब राम को लगा कि रावण से युद्ध करना कठिन है तो जामवंत ने उनकी चिंता को देखकर उन्हें शक्ति की पूजा करने को कहा। इसके बाद भगवान श्रीराम ने दुर्गा पूजा किया। प्रीतिश नंदी को शायद यह पता ही नहीं। आख़िर हो भी कैसे, इन्हें माँ दुर्गा तभी याद आती है जब भगवान श्रीराम का अपमान करना होता है। इन्हें रामायण और महाभारत तभी यात आता है जब इन्हें हिन्दुओं को हिंसक साबित करना होता है। वामपंथियों ने नया कुटिल तरीका आज़माने की असफल कोशिश की है।

प्रीतिश नंदी, सीताराम येचुरी और जावेद अख़्तर जैसे लोग अगर रामायण-महाभारत, माँ दुर्गा और घूँघट की बात कर रहे हैं तो इन्हें शक की नज़रों से देखा जाना चाहिए। क्योंकि, ये लोग कभी भी इन चीजों में विश्वास नहीं रखते। ये इन चीजों के गुण तभी गाते हैं, जब हिन्दुओं को भड़काना हो, अलग-अलग करना हो और नीचा दिखाना हो। प्रीतिश नंदी से निवेदन है कि कृत्तिवास ओझा को पढ़ें, ‘श्रीराम पांचाली’ को पढ़ें, टैगोर को पढ़ें। तब उन्हें पता चलेगा कि बंगाल और रामायण का वही कनेक्शन है, जो उस क्षेत्र का माँ दुर्गा से है। यहाँ बात क्षेत्रीयता की नहीं है, बात पूरे हिन्दू समाज की है, भारतीय इतिहास की है, श्रीराम और माँ दुर्गा के भक्तों को अलग-अलग कर के देखने वालों की साज़िश के पर्दाफाश करने की है।

‘लतखोर’ और अजूबा हो गए हैं ‘धरनामंत्री’ केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ की निंदनीय टिप्पणी

“सबसे बड़ा अजूबा दिल्ली के मुख्यमंत्री स्वयं हो गए हैं, पता ही नहीं लगता कि वे मुख्यमंत्री हैं या धरना मंत्री। क्या मुख्यमंत्री को धरने पर बैठना चाहिए? जब कोई कोई सुधरता नहीं तो इसलिए ही उसे कहते हैं ‘लतखोर’। व्यक्ति फिर उसी तरीके से उसे जवाब देता है। वही यहाँ हो रहा है।” उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार (मई 07, 2019) को दिल्ली में एक चुनावी सभा में यह विवादित बयान दिया है जिससे अरविन्द केजरीवाल समर्थकों में खासा नाराजगी देखने को मिल रही है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विवादित बयान देते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ‘लतखोर’ और ‘धरनामंत्री’ कह डाला। उन्होंने केजरीवाल से सवाल करते हुए कहा कि AAP प्रमुख शहर की सरकार के मुखिया हैं अथवा धरना और प्रदर्शन के नेता हैं? पूर्वी दिल्ली से भाजपा के उम्मीदवार गौतम गंभीर के समर्थन में मंगलवार को दिल्ली में रैली को संबोधित करते हुए आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘हमें विश्वास है कि वह दिल्ली में हमारी जीत का खाता खोलेंगे, जैसे वह क्रिकेट में भारतीय टीम के लिए खाता खोलते थे।’’

यूपी सीएम ने कहा, “आज उत्तर प्रदेश में सभी जनपदों में बिजली है। पूरी सुरक्षा की व्यवस्था है। लेकिन पहले जो बीमारी उत्तर प्रदेश में थी, अब वह बीमारी आम आदमी पार्टी दिल्ली में लेकर आ गई है। जो आम आदमी पार्टी पानी पी-पीकर भ्रष्टाचार के लिए कॉन्ग्रेस को गाली देती थी, आज उस भ्रष्टाचार में स्वंय डूब गई है। बहन-बेटियों की सुरक्षा का खतरा AAP की गलत नीतियों की वजह से बढ़ा है। आप देख सकते हैं कि इनके मंत्री, विधायक रोज किसी न किसी घटना में शामिल होते हुए दिखाई देते हैं। सबसे बड़ा अजूबा तो दिल्ली के मंत्री ही हो गए हैं। पता ही नहीं चलता कि वे मुख्यमंत्री हैं या धरना मंत्री। विकास की कोई योजना आती है, तो वे धरने पर बैठ जाते हैं। जब कोई कोई सुधरता नहीं तो इसलिए ही उसे कहते हैं ‘लतखोर’। व्यक्ति फिर उसी तरीके से उसे जवाब देता है। वही यहाँ हो रहा है।”

योगी आदित्यनाथ ने कहा, “अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया। उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है, कुत्ते की मौत मरेगा जैसे ओसामा मरा था। यह मोदी जी की वजह से है, जब पाकिस्तान की बॉर्डर के अंदर आतंकियों के खिलाफ आपरेशन हुए तो कॉन्ग्रेस ने पूछा सबूत कहाँ है? आतंकवाद पर भी कॉन्ग्रेस पाकिस्तान की बोली बोलती नज़र आई।”

जब राजीव गाँधी ने निजी मनोरंजन के लिए युद्धपोत ‘विराट’ का किया इस्तेमाल, साथ में थे ससुराल के लोग

प्रधानमंत्री मोदी ने जब आज रामलीला मैदान की रैली में यह जानकारी दी कि भारत के मुख्य युद्धपोत आईएनएस विराट का इस्तेमाल राजीव गाँधी ने अपने निजी मनोरंजन और छुट्टियों के लिए किया तो बहुत लोगों को लगा कि यह एक जुमला है। लेकिन भाषण के थोड़ी ही देर में इंटरनेट पर इंडिया टुडे की एक स्टोरी शेयर की गई जिसमें राजीव गाँधी के कथित मनोरंजक छुट्टियों की पूरी जानकारी विस्तृत रूप से दी गई है।

इंडिया टुडे मैगजीन की जनवरी 31, 1988 की एक रिर्पोट के अनुसार, अनिता प्रताप ने इस पूरे ‘हॉलीडे’ का ब्यौरा दिया है। उन्होंने लिखा है कि राजीव गाँधी की पूरी कोशिश थी कि प्रेस उनसे दूर रहे लेकिन इंडियन एक्सप्रेस एवं बाकी मीडिया के फ़ोटोग्राफ़र ने कई तस्वीरें निकाल लीं। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय नौसेना के युद्धपोत का इस्तेमाल हुआ, जो कि आश्चर्यजनक बात है।

द्वीप के उस हिस्से को बहुत ही सावधानी से चुना गया था जहाँ मीडिया की पहुँच आसान नहीं थी। मीडिया को दूर रखने का भरपूर प्रयास किया गया था। लेकिन द्वीप का वह छोटा हिस्सा 26 दिसंबर 1987 को तब सुर्खियों में आया, जब राजीव के बेटे राहुल गाँधी ने चार दोस्तों के साथ नारंगी और सफेद रंग की लक्षद्वीप प्रशासन के हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी। मीडिया को दूर रखने के लाख प्रयासों के बावजूद भी आमंत्रितों की सूची ने खुद ही खबर बना दी।

मेहमानों की सूची में राहुल और प्रियंका के चार दोस्त, सोनिया गाँधी की बहन, बहनोई और उनकी बेटी, उनकी विधवा माँ आर. मैनो, उनके भाई और एक मामा शामिल थे। साथ ही पूर्व सांसद अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी जया और उनके बच्चे अभिषेक और श्वेता भी मौजूद थे। अमिताभ के भाई अजिताभ की बेटी, जिनकी विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के संदिग्ध उल्लंघन के लिए जाँच की जा रही थी, वह भी साथ में गई थी। इसके आलावा अन्य भारतीय मेहमानों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण सिंह के भाई बिजेंद्र सिंह की पत्नी और बेटी थीं। दो अन्य विदेशियों ने भी इस पार्टी की शान बढ़ाई।

आज कल राजीव गाँधी गलत कारणों से इस लोकसभा चुनाव का हिस्सा बन गए हैं। राहुल गाँधी के ‘चौकीदार चोर है’ नारे के जवाब में जब से मोदी ने राजीव गाँधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर वन’ कहा है, तब से मधुमक्खियों के छाते में ढेला मारने जैसी स्थिति हो गई है। लगातार बयानबाज़ी चल रही है जिसमें कॉन्ग्रेस और उसके समर्थक राजीव गाँधी को महान बताने में लगे हुए हैं, वहीं भाजपा वाले हर रोज राजीव गाँधी के कोई कारनामे को बाहर ले आते हैं।

51 दिनों तक 16 साल की नाबालिग लड़की को बंधक बनाकर करते रहे बलात्कार

नोएडा में तीन युवकों ने 16 साल की एक लड़की को बंधक बना लिया और 51 दिनों तक उसके साथ गैंगरेप करते रहे। नोएडा के मामूरा इलाके में रहने वाली एक किशोरी को उसके पड़ोस में रहने वाले दो युवकों ने किसी अनजान जगह ले जाकर उसे बंदी बना लिया। 51 दिन बाद किसी तरह लड़की वहाँ से भागने में कामयाब रही।

नोएडा पुलिस के अनुसार पीड़िता पढ़ी-लिखी नहीं है और वह बता नहीं पा रही है कि युवकों ने उसे कहाँ बंधक बनाकर रखा था। हालाँकि, वह उन दो लड़कों को पहचान सकती है। किशोरी के परिजनों ने बताया कि बार-बार कोशिश करने के बावजूद पुलिस शिकायत दर्ज नहीं कर रही थी, एसपी (क्राइम) के पास जाने के बाद FIR दर्ज की गई।

किशोरी के पिता द्वारा दी गई शिकायत के मुताबिक, छोटू और सूरज दोनों उनके घर गए और बेटी का विश्वास जीतकर उसे अगवा कर ले गए। यह घटना मार्च के पहले सप्ताह में हुई थी। लड़की के पिता एक फैक्ट्री में काम करते हैं और आरोपी लड़कों में छोटू मध्य प्रदेश के छतरपुर, और सूरज, महोबा का रहने वाला है।

भागने की कोशिश करने पर जान से मारने की धमकी देते थे

शिकायत के अनुसार, “अगवा की गई किशोरी को एक कमरे में बंधक बनाकर रखा गया था, जहाँ उसके साथ 2 मार्च से लेकर 22 अप्रैल तक कई बार रेप किया गया। पीड़िता ने भागने की कोशिश करने पर उसे जान से मारने की धमकी दी थी। उनकी गैरमौजूदगी में आदित्य किशोरी के साथ मारपीट करता था, वह नोएडा सेक्टर 135 में रहता है।” शिकायतकर्ता पिता ने बताया है कि तीसरा आरोपित आदित्य, बाँदा जिले का रहने वाला है।

22 अप्रैल को पीड़िता किसी तरह वहाँ से भाग निकलने में कामयाब हुई और अपने माता-पिता के पास पहुँची। इस मामले में पुलिस अधिकारी का कहना है कि शुरुआत में किशोरी के पिता ने आरोपित के साथ कथित तौर पर समझौता कर लिया था, लेकिन बाद में पिता ने कहा कि समझौता दबाव में किया गया था। पड़ोसियों ने कहा कि पुलिस शिकायत से उनकी बदनामी होगी और बहकावे में आकर उन्होंने लिखित समझौते पर दस्तखत कर दिए थे। फेज-3 एसएचओ अखिलेश त्रिपाठी ने कहा कि पुलिस के सामने किसी कागजात पर दस्तखत नहीं किए गए थे, पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है और जल्द ही किशोरी का बयान लिया जाएगा।