Tuesday, October 1, 2024
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मोदी लहर बरकरार, बहुमत के साथ केंद्र में फिर लौटेगी मोदी सरकार: टाइम्स नाउ-VMR सर्वे

इस बार लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में होने तय हुए हैं। ऐसे में चुनाव के पहले चरण की तारीख़ आने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। 2019 में सत्ता को लेकर हर पार्टी अपने-अपने दावे कर रही है, लेकिन आख़िरी नतीजे क्या होंगे यह तो 23 मई को ही मालूम पड़ेगा। उससे पहले लोगों की जिज्ञासा को कुछ हद तक शांत करने करने के लिए टाइम्स नाउ द्वारा एक सर्वे कराया गया है। जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि इस बार भी लोगों का मूड एनडीए सरकार को ही सत्ता में लाने का है।

पाकिस्तान के बालाकोट में हुए हमले के बाद यह सबसे बड़ा सर्वे है। जिसका उद्देश्य ये जानना था कि क्या इस बार एनडीए सरकार को दूसरा कार्यकाल संभालने का मौक़ा मिलेगा? क्या नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे? हालाँँकि, इस सर्वे के मुताबिक 2014 में चली मोदी लहर के मुकाबले इस बार एनडीए के हिस्से में कम सीटें आती दिख रही हैं, लेकिन बावजूद इसके जीत एनडीए की ही होगी।

सर्वे के मुताबिक एनडीए को 543 में से 283 सीटें मिलने का अनुमान है, वहीं यूपीए केवल 135 सीटों पर सिमट जाएगी। इसके साथ ही इस सर्वे में ये बात भी निकलकर सामने आई कि दक्षिण भारत में एनडीए का जादू कुछ खास नहीं चल पाएगा, लेकिन बंगाल में बीजेपी को बढ़त प्राप्त होगी। इसके अलावा नार्थ इस्ट और हिंदी पट्टी वाले राज्यों में बीजेपी का दबदबा खासा कायम रहने वाला है। सर्वे बताता है कि भाजपा की पकड़ हिन्दी पट्टी राज्यों में बेहद मज़बूत है और सहयोगी दलों के बहुमत का आँकड़ा छूने के आसार भी नज़र आ रहे हैं।

यूपी में हुए सर्वेक्षण के अनुसार भाजपा अपना 2014 वाला जादू बरकरार रखने में असफल दिखाई पड़ रही है, क्योंकि 2014 में भाजपा का 43.3 फीसदी वोट साझा था और सहयोगियों के साथ मिलकर भाजपा ने 73 सीटें जीती थीं, लेकिन लग रहा है इस बार बीजेपी को केवल 42 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ेगा। हालाँकि जीत तब भी बीजेपी की ही तय होने का अनुमान है, क्योंकि महागठबंधन के खाते में 36 और कॉन्ग्रेस के खाते में केवल 2 सीटें आ सकती हैं।

जैसा कि हमने बताया कि सर्वे के अनुसार बीजेपी और एनडीए को सत्ता वापसी कराने में हिंदी पट्टी के राज्य काफ़ी मददगार साबित होंगे। सर्वे कहता है कि दिल्ली की 7 सीटों पर बीजेपी का कब्जा होगा, जबकि मध्य प्रदेश के 29 में से 22 सीटों पर बीजेपी के जीतने के और राजस्थान में 25 में से 20 सीटें जीतने के अनुमान हैं।

काफी अड़चनें आने के बाद भी बीते कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल में बीजेपी खुद को मज़बूत दिखाने में जुटी हुई है। ऐसे में यह सर्वे बीजेपी के लिए खुशखबरी लेकर आया है। अगर यह अनुमान हक़ीक़त में बदलते हैं, तो भाजपा को 32 फीसदी वोट शेयर और 11 सीटें प्राप्त हो सकती है। जबकि कॉन्ग्रेस और लेफ्ट का खाता खुलना न के बराबर नज़र आ रहा है।

बिहार में मोदी की लहर का जादू बरकरार है। 2014 में जहाँ पूरा चुनाव एकतरफा नज़र आ रहा था, वहीं हल्की फेर-बदल के साथ स्थिति वैसी ही हैं। 2014 में बिहार में बीजेपी को 51.5% वोट शेयर के साथ 30 सीटें मिली थी, जबकि 2019 में 48.40 वोट शेयर के साथ 27 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं यूपीए को चुनावों में 42.40 फीसदी वोट शेयर और 13 सीटें मिल सकती हैं।

दक्षिण राज्यों जीत हासिल करने की हर संभव कोशिशें बीजेपी द्वारा की जा रही है, लेकिन सर्वें के आधार पर इन सीटों पर भाजपा को फायदा मिलता नहीं दिख रहा है। 2014 में भी भाजपा को यहाँ से निराशा हाथ लगी थी और टाइम्स नाउ के सर्वे के मुताबिक इस बार भी परिस्थितियाँ पहले के मुकाबले बहुत बेहतर होती नहीं दिख रही हैं। तेलंगाना में टीआरएस के जीतने की संभावनाएँ हैं, क्योंकि यहाँ सर्वे भी उसे 17 में 12 सीट देता दिखा रहा है।

वहीं आन्ध्र प्रदेश में कॉन्ग्रेस को पिछले चुनावों में 8 सीटों पर जीत हासिल हुई, लेकिन इस बार यह आँकड़ा 22 सीटों के साथ जीत तक पहुँच संभव है। बता दें कि इससे पहले भी टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक मेगा पोल किया था जिसके नतीजों ने दर्शाया था कि इस बार बीजेपी को क़रीब 84 प्रतिशत लोग वापस सत्ता में लाना चाहते हैं।

हिन्दूफोबिया टपकता है हसन मिन्हाज के शो से

सोशल मीडिया पर कहीं पढ़ा था कि इस्लाम ने नरसंहार-पर-नरसंहार करते जाने और खुद को नफ़रत और असहिष्णुता का पीड़ित दिखाने की जुड़वाँ कला (twin arts) सदियों में परिष्कृत की है।

‘भारतीय’-अमेरिकी “मजहबी” (यह वह खुद लगाते हैं, हम नहीं) कॉमेडियन हसन मिन्हाज के नेटफ्लिक्स कॉमेडी शो ‘पैट्रियट एक्ट’ का भारतीय चुनावों पर एपिसोड इसी की तस्दीक करता है।

झूठ, प्रोपेगैंडा, अर्ध-सत्य, एकतरफा नैरेटिव बुनने की कोशिश- हसन मिन्हाज समुदाय विशेष

chutzpah यह कि हाँ, हाँ, हम तो समुदाय वाले हैं, इसलिए हमें तो बोलना ही नहीं चाहिए इन मुद्दों पर, वर्ना हम पाकिस्तान के एजेंट घोषित हो जाएँगे। गोया आपके घर कोई चोरी करे और उसके बाद बोले हाँ, हाँ, अब तो हमें चोर बोलोगे ही!

ओपनिंग ही विक्टिम-कार्ड से

शो शुरू करने से पहले ही हसन मिन्हाज वीडियो क्लिप्स चलाते हैं जिनमें उनके शुभचिंतक उन्हें भारतीय राजनीति पर न बोलने की सलाह देते हैं। एक मित्र तो उनसे कहते हैं कि ‘बाहर बहुत गंदगी है वहाँ, तुम अगर उन पर बोलोगे तो वही गन्दगी तुम पर आ जाएगी।’ उनके शो को देखकर यह साफ़ पता चलता है कि वह गंदगी हिदुत्व या हिन्दू धर्म को ही कह रहे हैं। ठीक भी है- जब इस्लाम काफ़िरों को इन्सान ही ‘काबिल-ए-क़त्ल’ मानता है तो आत्माभिमानी काफ़िर हिन्दू जाहिर तौर पर इन्सान नहीं, गंदगी ही बचेगा।

एयरस्ट्राइक पर पाकिस्तान का पक्ष, भारत का मखौल

हसन मिन्हाज शुरू से भारत सरकार को विलेन के तौर पर पेश करते हैं। वह बताते हैं कि ‘भारत सरकार मुकदमा कर देगी’ के डर से वह कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं दिखा सकते- यानि अगर डर न होता तो दिखा देते कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है, है न?

उसके बाद वह बताते हैं कि कैसे दूसरों के कश्मीर के नक़्शे धुंधले कराते-कराते भारत के खुद के नक़्शे धुंधले हो गए और इसीलिए भारतीय वायुसेना आतंकवादियों को मारने की जगह पेड़ों पर बम गिरा आई। Chutzpah इसी को कहते हैं- आप पाकिस्तान की बोली भी बोलिए, और पाकिस्तान-समर्थक, जिहाद-समर्थक कहे जाने से बचने के लिए खुद ही यह ‘भविष्यवाणी’ कर दीजिए कि अब आपको पाकिस्तान का एजेंट करार दिया जाएगा।

असहिष्णुता का प्रोपेगैंडा, माइनॉरिटी होने पर भी इस्लामी एकाधिकार

हसन बताते हैं कि मोदी के आने के बाद से भारत अल्पसंख्यकों के प्रति ज़्यादा आक्रामक हो गया है। न केवल यह साफ झूठ है बल्कि इस्लाम की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति को भी वो एक बार फिर उजागर करते हैं।

उनके लिए ‘माइनॉरिटी’ केवल प्यारे, शांतिप्रिय समुदाय वाले ही हैं- जो न मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाते हैं, न मज़हब के आधार पर 4 शादियों के विशेषाधिकार से लेकर कमलेश तिवारी का सर कलम करने तक की माँग रखते हैं, और न ही नाम बदल-बदल कर हिन्दू लड़कियों से धोखे से शादी करने और उनका मज़हब बलात् बदलने का प्रयास करते हैं।

हसन मिन्हाज की माइनॉरिटी की परिभाषा में न तो बौद्ध, जैन, सिख आते हैं, और न ही भारत में बाहर से आए और शांति से रह रहे पारसी और यहूदी। क्योंकि माइनॉरिटी की परिभाषा और उसका समूचा फायदा ऐंठने पर भी हिन्दुओं/मूर्तिपूजकों को नीचा देखने वाले ईसाईयों व समुदाय विशेष का ही तो एकछत्र अधिकार है न?

केवल अल्पसंख्यक मंत्रालय के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए खास तौर उन्हें सिविल सर्वेंट बनाने के लिए ‘नई उड़ान’ योजना लाई गई, उनके हुनर को सलामत रखने के लिए ‘हमारी धरोहर’ योजना शुरू की गई, स्कूल ड्रापआउट्स के लिए ‘नई मंजिल’ योजना लाई गई।

इसी कालखण्ड में हिन्दुओं ने सबरीमाला और शनि शिगनापुर मंदिर खो दिए, केवल और केवल हिन्दुओं द्वारा संचालित स्कूलों पर लागू आरटीई आज भी बदस्तूर जारी है, संविधान की धारा 25-30 हमें मज़हबी प्रताड़ना और सरकारी हस्तक्षेप से नहीं बचाती- अगर मोदी सरकार से किसी को मज़हबी तौर पर नाराज़ होना चाहिए तो हिन्दुओं को, न कि आपके जैसे उन कट्टरपंथियों को जिनका हिंदुस्तान से कोई लेना-देना ही नहीं है।

पंथनिरपेक्षता का झूठ, हिन्दुओं में हज़ारों वर्णों का झूठ

“सेक्युलरिज्म भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित है”। साफ झूठ।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जबरन उस समय ठूंसा था जब हिंदुस्तान में लोकतंत्र नहीं था, आपातकाल था।

इसके विपरीत जिस हिन्दू-धर्म/हिंदुत्व को आप गंदगी, ‘आक्रामक’, व ‘अल्पसंख्यक-विरोधी’ कहते हैं, उसी हिंदुत्व ने भारत में समुदाय विशेष वालों सहित सभी मज़हबों और आस्थाओं के लोगों को हज़ारों साल पनाह दी। उस समय न संविधान था न संविधान में लिखा हुआ ‘सेक्युलरिज्म’। इसके बावजूद लाखों लोगों की हत्या और बलात्कार के बाद भी, हज़ारों मंदिरों के तोड़े और जलाए जाने के बाद भी हिन्दू और हिंदुस्तान ने समुदाय विशेष को अपने बीच बनाए रखा।

हसन मिन्हाज का अगला झूठ था कि हिन्दू समाज “हज़ारों वर्णों” में बँटा हुआ है। और उनके झूठ की तस्दीक खुद उनकी स्क्रीन पर ‘ब्राह्मण’, ‘क्षत्रिय’, ‘वैश्य’, ‘शूद्र’ (और साथ में ‘दलित’) को हाईलाईट करना करता है। साफ पता चलता है कि मकसद खाली हिन्दू समाज को बँटा हुआ दिखाकर और बाँटने की ज़मीन तैयार करना है।

हसन भारत को ‘दुनिया की सबसे विभिन्नता भरी जगहों में से एक’ तो बताते हैं, पर यह गोल कर जाते हैं कि यह विभिन्नता ‘गंदे’, काफ़िर हिंदुत्व/हिन्दू धर्म के चलते है। उनके प्यारे इस्लाम में तो एक अल्लाह की सरपरस्ती न मानने वाले को जहन्नुम में भेजने का वादा भी है और उसे जल्दी-से-जल्दी जहन्नुम के लिए रवाना कर देने के लिए जिहाद का हुक्म भी। यह काफिर हिन्दुओं का “एकं सद् विप्रैः बहुधा वदन्ति” ही है, जिसने हिंदुस्तान में आपकी प्यारी ‘डाइवर्सिटी’ को जिंदा रखा है।

कश्मीर, गुजरात दंगों पर फिर से प्रोपेगैंडा

कश्मीर की ‘त्रासदी’ का ज़िक्र करते हुए हसन मिन्हाज भूल कर भी उन कश्मीरी पण्डितों का ज़िक्र नहीं करते जिन्हें तीस साल पहले अपनी औरतों का बलात्कार और मासूम बच्चों का बेरहमी से कत्ल दिखाने के बाद अपने घरों से दरबदर कर दिया गया था।

हसन वामपंथियों के उस पसंदीदा विषय को भी उठाते हैं जिसे हिंदुस्तान के वामपंथियों ने उठाना बंद कर दिया है क्योंकि पता है कि उस झूठ से मोदी को फायदा ही हो रहा है- 2002। वह ‘मोदी ने 2002 में कुछ नहीं किया’ का रोना तो रोते हैं पर यहाँ इसकी साँस-डकार भी नहीं लेते कि 2002 के दंगों के पीछे कारक 60 बेकसूर, निहत्थे, अहिंसक कारसेवकों को इस्लामी भीड़ द्वारा जिन्दा जला दिया जाना था।

नोटबंदी पर वह ‘गरीबों को बड़ी तकलीफ हुई’ का रोना रोते हैं पर यह भूल जाते हैं कि उन्हीं गरीबों ने कुछ ही हफ़्तों बाद भाजपा को उत्तर प्रदेश में प्रचण्ड बहुमत दिया।

असम में वह भाजपा पर ‘प्रवासियों’ से नागरिकता छीनने का आरोप लगाते हैं। शायद अमेरिका में अवैध प्रवास की राजनीति करते-करते वो भूल गए हैं कि हिंदुस्तान के काफ़िर गैरकानूनी तरीके से आने वालों को ‘प्रवासी’ नहीं घुसपैठिया कहते हैं।

आदित्यनाथ, दलितों, लिंचिंग पर फिर झूठ

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ तो उनका झूठ ऐसा है कि लगता है उनका खुद बोलने का मन नहीं, ज़बरदस्ती बुलवाया जा रहा है। रजत शर्मा से आदित्यनाथ के इंटरव्यू का वीडियो चलता है। रजत शर्मा पूछते हैं कि योगी को, सन्यासी को असलहों का क्या काम? आदित्यनाथ जवाब देते हैं कि उनकी शिक्षा शस्त्र और शास्त्र दोनों में हुई है।

हसन मिन्हाज इस वार्तालाप का साफ़ तौर पर झूठा अनुवाद करते हैं। वे कभी इसे हथियारों का साम्य ध्यान लगाने से जोड़ना बताते हैं तो कभी हथियारों और अनुशासन की एकता का दावा करने का आरोप आदित्यनाथ पर लगाते हैं।

काफ़िरों के बारे में यहाँ पर हसन मिन्हाज को एक बात बता देना ज़रूरी है। हम काफ़िरों के ‘गंदे’ धर्म हिंदुत्व में आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं, उसकी परंपरा ही शस्त्र और शास्त्र में साम्य बिठाकर चलने की रही है। और नाथपंथी योगियों का हथियार उठाना भी सामान्यतः हसन मिन्हाज के ‘पाक’ इस्लाम के हमलों और कत्ले-आम के खिलाफ रहे हैं।

और हम ही क्यों, शस्त्रधारी योगियों की परंपरा जापानी और चीनी काफ़िरों की भी रही है।

आदित्यनाथ पर वह मुगलकालीन नामों वाली जगहों का नाम हिन्दू कर देने का आरोप लगाते हैं। पर यह नहीं बताते कि उन जगहों के पहले हिन्दू ही नाम थे, जिन्हें तलवार की नोक पर इस्लामी शासकों ने बदला था।

दलितों और लिंचिंग पर वह दो झूठ बोलते हैं:

  1. दलित समुदाय विशेष की तरह एक ‘अल्पसंख्यक’ समुदाय हैं
  2. लिंचिंग की घटनाएँ मोदी के आने के बाद से हो रहीं हैं

दलित हिन्दू हैं या नहीं यह तो उन्हें जाकर दलितों से ही पूछना चाहिए कि वे हिन्दू हैं या समुदाय विशेष की ही तरह अल्लाह के बन्दे। काफ़िर दलित वह जवाब देंगे कि हसन मिन्हाज याद ही रखेंगे। लिंचिंग की घटनाएँ मोदी के आने के बाद से हो रहीं हैं वाली झूठ के खिलाफ़ दो ही सबूत काफ़ी हैं- एक किसी अज्ञात स्रोत द्वारा इकट्ठा किया गया नमूना, और दूसरा अनीश्वरवादी, नोटावादी (यानि इन पर हिन्दू राष्ट्रवाद या राजनीतिक हित का आरोप नहीं लग सकता) वैज्ञानिक-लेखक आनंद रंगनाथन का यह ट्वीट, जो केवल 2013 की लिंचिंग की प्रमुख घटनाएँ इंगित करता है।

इस्लाम को सुधारने पर दीजिए ध्यान

हसन मिन्हाज जी, बेहतर होगा कि आप अपना समय हिन्दूफोबिया फैलाने की बजाय इस्लाम की एकाधिकारवादी, वर्चस्ववादी, मध्ययुगीन बर्बरता को मिटाने पर खर्च करें। कॉमेडी मैटर की वहाँ भी कमी नहीं है।

बाकी हर मज़हब समय के अनुसार बदल चुका है पर आपका दीन आज भी 1400 साल पुरानी मानसिकता की जंजीरों में जकड़ा है।

रही बात हिंदुस्तान के समुदाय विशेष वालों की, तो जो आधुनिक समय और मुख्यधारा के साथ बदल रहे हैं, कट्टरता छोड़ कॉमन सेन्स और सिविक सेन्स को अपना रहे हैं, वह हिंदुस्तान से बेहतर किसी मुल्क को नहीं मानते। अहमद शरीफ का यह लेख आपकी आँखें खोल देने के लिए काफी होना चाहिए।

विवादित कॉन्ग्रेस MLA ने महिला सरपंच का किया अपमान, बगल की कुर्सी से हटा जमीन पर बिठाया

चुनाव जीतने के बाद से ही लगातार अपने तेवर दिखा रही राजस्थान के ओसियाँ से कॉन्ग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा का एक और वीडियो सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में विधायक महिला सरपंच को अपने बराबर बैठने से रोकती हुई दिख रही है। महिला सरपंच का अपमान करते हुए विधायक ने उन्हें मंच पर बैठने से रोक दिया। खेतासर गाँव की सरपंच चंदू देवी को विधायक दिव्या ने अपने बगल की कुर्सी से उठ कर मंच से नीचे पंडाल में बैठने को कहा। मजबूर सरपंच को मंच छोड़ कर नीचे बैठना पड़ा। इस वीडियो को लेकर विधायक साहिबा की जबरदस्त किरकिरी हो रही है। सोशल मीडिया पर लोगों ने विधायक के इस तेवर पर निशाना साधा। सरपंच के पति ने कहा कि चंदू देवी ने किसी भी प्रकार का विरोध नहीं किया क्योंकि वह एक सीधी-सादी महिला हैं और जीतने के बाद पहली बार गाँव आई विधायक का अपमान नहीं करना चाहती थीं।

वीडियो में साफ़-साफ़ देखा जा सकता है कि महिला सरपंच जैसे ही आकर विधायक के बगल में बैठती हैं, विधायक को यह नागवार गुजरता है। इसके बाद विधायक उन्हें कुर्सी से उठने का इशारा कर के नीचे बैठने को कहती हैं। इसके बाद सरपंच चंदू देवी को वापस जाना पड़ता है। महिला सरपंच ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विधायक ने जनप्रतिनिधि होने के बावजूद उन्हें बराबर नहीं बैठने दिया और उनका अपमान किया। सरपंच ने कहा कि यह विधायक की सोच हो सकती है लेकिन उन्होंने ग्रामीणों के आग्रह करने पर विधायक का स्वागत किया और मंच पर पहुँचीं। इस पूरे घटनाक्रम पर सफाई देते हुए विधायक ने कहा कि वे कॉन्ग्रेस के कार्यक्रम में गई थीं लेकिन सरपंच भाजपा की थी।

सरपंच ने कहा कि गाँव का प्रथम नागरिक होने के कारण उनके लिए मंच पर कुर्सी लगाई गई थी लेकिन विधायक ने फिर भी उन्हें बैठने से मना कर दिया। इस से पहले चुनाव जीतने के बाद पहली बार क्षेत्र में पहुँची दिव्या मदेरणा का एसडीएम को फटकारते हुए वीडियो वायरल हुआ था। उन्होंने एसडीएम को धमकी देते हुए कहा था कि प्रदेश में सबसे पहले सीएम गहलोत हैं और जोधपुर में सबसे पहले उनका स्थान आता है। उन्होंने अपने कार्यक्रम में लेट आए एसडीएम को फटकारते हुए कहा था कि विधायक का कार्यक्रम छोड़कर आपके पास क्या अर्जेन्ट काम हो सकता है। उन्होंने एसडीएम से पूछा था कि क्या वह सीएम के पास गए थे जो अर्जेन्ट कार्य को देरी का कारण बता रहे हैं।

इसके अलावा पुलिस अधिकारियों को घुड़की देते हुए भी विधायक का वीडियो वायरल हुआ था। मथानिया बाईपास पर पुलिस अधिकारियों को फटकारते हुए दिव्या मदेरणा ने उन्हें कहा था कि सरकार और विधायक दोनों बदल गए हैं, इसीलिए वे भी अपना रवैया बदल लें। विधायक ने अपने पास शासन की बन्दूक होने की धमकी दी थी।

2010 में जिला परिषद का चुनाव जीती मदेरणा ने 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव में तत्कालीन भाजपा विधायक भारा राम चौधरी को हराया था। विधायक दिव्या मदेरणा के पिता पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा बहुचर्चित नर्स भँवरी देवी केस में आरोपित हैं। भँवरी देवी के पति ने कहा था कि महिपाल के कहने पर उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया था। इसके बाद सीएम गहलोत ने महिपाल मदेरणा को मंत्रिमंडल से बरख़ास्त कर दिया था। इस से पहले 1970 में पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के भतीजे दिलीप सिंह की हत्या के मामले में भी महिपाल आरोपित रह चुके हैं। दिलीप सिंह की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी।

प्रमोद सावंत ने राजभवन में रात 2 बजे गोवा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, कैबिनेट ने भी ग्रहण की शपथ

गोवा में मनोहर पर्रिकर के उत्तराधिकारी के रूप में प्रमोद सावंत को पार्टी ने जिम्मेदारी सौंपी है। प्रमोद सावंत ने रात 2 बजे गोवा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। प्रमोद सावंत को गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने पद और गोपनियता की शपथ दिलाई। बता दें कि प्रमोद सावंत के अलावा गोवा में दो डिप्टी सीएम भी बनाए गए हैं। इस अवसर पर प्रमोद सावंत ने कहा, “पार्टी ने जो जिम्मेदारी मुझे दी है उसे निभाने की मेरी पूरी कोशिश रहेगी। मैं जो भी कुछ हूँ मनोहर पर्रिकर की वजह से ही हूँ। उन्होंने ही मुझे राजनीति में लाया और उन्हीं के बदौलत मैं गोवा विधानसभा का स्पीकर बना।”

पेशे से किसान और आर्युर्वेदिक डॉक्टर प्रमोद सावंत मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले गोवा विधानसभा के अध्यक्ष हैं। 45 वर्षीय डॉ. सावंत की पत्नी सुलक्षणा भी बीजेपी में नेत्री हैं और साथ में शिक्षिका भी हैं। गोवा बीजेपी के नेता 45 साल के डॉ. प्रमोद सावंत का जन्म 24 अप्रैल 1973 को हुआ। सैंकलिम विधानसभा क्षेत्र से चुनकर आए डॉ. प्रमोद सावंत का पूरा नाम डॉ. प्रमोद पांडुरंग सावंत है।

MGP के सुदिन धवलिकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। प्रमोद सावंत के साथ दोनों डिप्टी सीएम और मंत्रिमंडल ने भी शपथ ग्रहण किया। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के रविवार (मार्च 17, 2019) को हुए निधन के बाद से यह पद खाली था।   

रंग ला रहे भारत के प्रयास, लंदन कोर्ट ने नीरव मोदी के ख़िलाफ़ जारी किया गिरफ़्तारी वारंट

ताज़ा ख़बरों के अनुसार लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने आर्थिक भगोड़े नीरव मोदी के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है। एएनआई ने प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों के हवाले से यह सूचना दी। इसके बाद नीरव मोदी की कभी भी गिरफ़्तारी हो सकती है। दरअसल, बैंकों का 13 हजार करोड़ रुपया डकार कर फरार नीरव मोदी पिछले दिनों लंदन की सड़कों पर अपना लुक बदलकर निडर घूमता दिखा था। मीडिया के सवालों को उसने हँस कर टाल दिया था। उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका है। इसके बाद ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया। इसे भारत सरकार की एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है।

इस दौरान भारत में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई की टीमें लंदन स्थित सम्बंधित विभागों से लगातार संपर्क में है। भारतीय हाई कमीशन को भी संपर्क में रखा गया है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि कुछ ही दिनों में भारतीय एजेंसियों की टीमें लंदन के लिए रवाना होंगी। हाल ही में लंदन की सड़कों पर नीरव मोदी के दिखने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा था कि नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को लेकर कार्यवाही की जा रही है। लंदन में उनके दिखने का मतलब यह नहीं है कि उसे तुरंत भारत लाया जा सकता है। इसके लिए एक चरणबद्ध प्रक्रिया होती है, जिसे पूरी की जा रही है।

भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी लंदन में शानो-शौकत की ज़िंदगी जी रहा है। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, वह लंदन के वेस्ट एंड इलाके के जिस अपार्टमेंट में रह रहा है उसकी कीमत 73 करोड़ रुपए के आसपास है। नीरव मोदी ने अपने आवास से कुछ दूरी पर ही हीरे का नया कारोबार शुरू किया है, जो उसके फ्लैट से जुड़ा हुआ है। मई 2018 उसने नई कंपनी बनाई, जो उसके अपार्टमेंट से लिंक्ड है। यह कंपनी घड़ी और जूलरी का होलसेल और रिटेल कारोबार करने के लिए लिस्टेड है। ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर कोर्ट की तरफ से वारंट जारी करने से एक उम्मीद बँध रही है कि नीरव मोदी की गिरफ्तारी हो सकती है। इसके बाद उसका प्रत्यर्पण भी हो सकता है।

ख़बर आई थी कि पंजाब नैशनल बैंक को ₹13 हजार करोड़ का चूना लगाने वाले भगोड़े हीरा कारोबारी के अवैध बंगले ध्वस्त किए जाएँगे। महाराष्‍ट्र के रायगढ़ जिले में अलीबाग बीच के पास उसके ‘अवैध’ बंगले हैं, जिन्हें इसी सप्ताह ध्वस्त किया जाएगा। ये वही बंगले हैं जहाँ कभी नीरव भव्‍य पार्टियाँ दिया करता था। हाल ही में इस बंगले को कलेक्‍टर ऑफ़िस ने जाँच के बाद अवैध घोषित किया था।

दादी का घर घूमने वाली प्रियंका गाँधी ने कुछ ही दूर दादाजी फ़िरोज़ के क़ब्र को पूछा तक नहीं, जानिए क्यों?

प्रियंका गाँधी रविवार (मार्च 17, 2019) की रात स्वराज भवन में गुजारी। इस दौरान ‘भावुक’ प्रियंका ने अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भी याद किया। उन्होंने बताया कि उनकी दादी बचपन में उन्हें ‘जॉन ऑफ ओर्क’ की कहानी सुनाया करती थी। लेकिन, प्रियंका गाँधी ने अपने दादाजी को याद करना मुनासिब नहीं समझा। आनंद भवन से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित फ़िरोज़ गाँधी की कब्र को प्रियंका ने वैसे ही नज़रअंदाज़ किया, जैसे राहुल व सोनिया करते आए हैं। ऐसे में प्रियंका गाँधी जब अपनी दादी की बात कर रही थी, लोगों द्वारा यह पूछना लाजिमी था कि वह अपने दादा को कब याद करेंगी? पारसी समुदाय से आने वाले फ़िरोज़ जहाँगीर गाँधी का निधन 8 सितंबर 1960 को हो गया था। फ़िरोज़ ने महत्मा गाँधी से प्रेरित होकर अपना सरनेम ‘गैंडी’ से ‘गाँधी’ कर लिया था।

प्रियंका गाँधी से पहले राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी भी फ़िरोज़ गाँधी के कब्र को नज़रअंदाज़ करते आए हैं। कॉन्ग्रेस के प्रथम परिवार सहित सभी बड़े नेता राजीव गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी की समाधी पर तो जाते रहे हैं लेकिन फ़िरोज़ गाँधी की समाधी को कोई पूछता तक नहीं। फ़िरोज़ के अलावा गाँधी परिवार के अन्य पूर्वजों की जयंती या पुण्यतिथि के मौके पर सभी बड़े कॉन्ग्रेसी नेताओं का जमावड़ा लगता है लेकिन फ़िरोज़ की जयंती और पुण्यतिथि कब आकर निकल जाती है, इसका पता भी नहीं चलता। उनका कब्र यूँ ही सूना पड़ा होता है, सभी मौसम में, बारहो मास। चुनावी मौसम में भी कॉन्ग्रेस द्वारा इंदिरा, राजीव और नेहरू तो ख़ूब याद किए जाते हैं लेकिन उनकी ही पार्टी में फ़िरोज़ का नाम लेने वाला भी कोई मौजूद नहीं है।

ऐसा नहीं फ़िरोज़ गाँधी कॉन्ग्रेसी नहीं थे या राजनीति में उनकी हिस्सेदारी नहीं थी। गाँधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली के पहले सांसद भी फ़िरोज़ गाँधी ही थे। 1952 में हुए स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में उन्होंने यहाँ से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 में भी उन्होंने यहाँ से जीत दर्ज की थी। राजनीति में सक्रिय रहने वाले फ़िरोज़ गाँधी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी काफ़ी मुखर थे। आप जान कर चौंक जाएँगे कि उनके विरोध के कारण प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कैबिनेट में वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था। उस दौरान कॉन्ग्रेस नेताओं के बड़े उद्योगपतियों के साथ अच्छे-ख़ासे सम्बन्ध बनने लगे थे, जिसका फ़िरोज़ ने भरपूर विरोध किया था।

क्या कॉन्ग्रेस इसीलिए फ़िरोज़ गाँधी को याद नहीं करना चाहती क्योंकि उनका नाम आते ही उनका नेहरू सरकार की आलोचना करना फिर से प्रासंगिक हो जाएगा? क्या कॉन्ग्रेस इसीलिए फ़िरोज़ को याद नहीं करना चाहती क्योंकि उनका नाम आते ही उनके कारण नेहरू के मंत्री के इस्तीफा देने की बात फिर से छेड़ी जाएगी? क्या कॉन्ग्रेस फ़िरोज़ खान की बात इसीलिए नहीं करना चाहती क्योंकि बड़े कॉंग्रेस नेताओं व उद्योगपतियों के बीच संबंधों की बात फिर से चल निकलेगी? जब उनका नाम आएगा, तो इतिहास में फिर से झाँका जाएगा। अगर उनका नाम आएगा तो उनके सुनसान कब्रगाह की बात आएगी, कॉन्ग्रेस नेताओं व गाँधी परिवार की थू-थू होगी। अब कॉन्ग्रेस चाह कर भी फ़िरोज़ गाँधी की प्रासंगिकता को ज़िंदा नहीं करना चाहेगी क्योंकि उनसे सवाल तो पूछे जाएँगे।

फ़िरोज़ गाँधी की सूनी पड़ी कब्र

आपको बता दें कि पारसी फ़िरोज़ गाँधी का अंतिम संस्कार पूरे हिन्दू रीती-रिवाजों के साथ किया गया था। बीबीसी के अनुसार, उन्होंने कई बार अंतिम संस्कार के पारसी रीति-रिवाजों से नाख़ुशी जताई थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका क्रिया-कर्म हिन्दू तौर-तरीकों से ही किया जाए। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने राहुल गाँधी को उनके दादा की याद दिलाई। जनवरी 2019 में शर्मा ने राहुल गाँधी को कुम्भ में आने का आमंत्रण देते हुए उन्हें फ़िरोज़ गाँधी के कब्रगाह पर मोमबत्ती जलाने की सलाह दी थी। शर्मा ने कहा था कि राहुल के ऐसा करने से दिवंगत आत्मा को शांति मिलेगी, फ़िरोज़ गाँधी की कब्रगाह भी प्रयागराज में ही है।

पारसी कब्रगाह के एक कोने में फ़िरोज़ गाँधी की कब्र अभी भी आगुन्तकों की बाट जोह रही है। राहुल गाँधी शायद एक-दो बार वहाँ जा चुके हैं लेकिन पिछले 8 वर्षों से शायद ही गाँधी परिवार का कोई व्यक्ति वहाँ गया हो। पिछले एक दशक में प्रियंका गाँधी के वहाँ जाने के कोई रिकॉर्ड नहीं हैं। आलम यह है कि कब्रिस्तान की रखवाली के लिए एक चौकीदार है जिसके रहने के लिए दो कमरे बने हुए हैं। इसके अलावा कब्रिस्तान में एक कुआँ और एक मकान है। कब्र और कब्रिस्तान की स्थिति जर्जर हो चुकी है। अपने ही परिवार की उपेक्षा के कारण यह स्थिति हुई है। कहा जाता है कि 1980 में उनकी बहू मेनका गाँधी ने यहाँ का दौरा किया था। मेनका गाँधी अभी मोदी कैबिनेट में महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं।

अगर कॉन्ग्रेस फ़िरोज़ गाँधी की बात करती है तो यह भी याद दिलाया जाएगा कि उन्ही की पत्नी इंदिरा गाँधी ने अपने पति के द्वारा बनवाए गए क़ानून को कचरे के डब्बे में फेंक दिया था। नेहरू काल में नियम था कि संसद के भीतर कुछ भी कहा जा सकता था लेकिन अगर किसी पत्रकार ने इस बारे में कुछ लिखने या बोलने की कोशिश की तो उसे सज़ा तक मिल सकती थी। इसे हटाने के लिए फ़िरोज़ गाँधी ने संसद में प्राइवेट मेम्बरशिप बिल पेश किया। बाद में इस क़ानून को फ़िरोज़ गाँधी प्रेस लॉ के नाम से जाना गया। आपातकाल के दौरान इंदिरा ने अपने पति के नाम के इस क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी। क्या कॉन्ग्रेस को इस बात के चर्चा में आने का डर है? बाद में विरोधी जनता पार्टी की सरकार ने इस क़ानून को फिर से लागू किया। इस तरह से फ़िरोज़ गाँधी को अपनों ने ही दगा दिया, विरोधियों ने अपनाया।

क्या कारण है कि देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार के पूर्वज की कब्रगाह पर कचरों का ढेर लगा पड़ा है? दशकों तक केंद्र से लेकर यूपी तक कॉन्ग्रेस की सरकार रही लेकिन फ़िरोज़ गाँधी उपेक्षित क्यों रहे? सवाल तो पूछे जाएँगे। प्रियंका से भी पूछे जाएँगे। दादी को याद कर राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाली प्रियंका को दादा को याद करने से शायद कोई राजनीतिक फ़ायदा न मिले। अफ़सोस कि भारत में एक ऐसा भी परिवार है जो अपने पुरखों को याद करने के मामले में भी सेलेक्टिव है। आशा है कि प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश कैम्पेन के दौरान एक न एक बार तो फ़िरोज़ गाँधी की समाधी पर ज़रूर जाएँगी।

जिस ‘गंगा’ को लेकर हमेशा पीएम मोदी पर साधा निशाना, क्यों आज उसी की शरण में पहुँची प्रियंका

चुनाव के समय में राजनीति के गलियारे में हलचल होना तो लाजिमी है। कुछ राजनेता या राजनेत्रियों को चुनाव के समय ही देश की जनता और उनकी समस्याएँ दिखाई देती हैं। इन्हीं में से एक हैं हाल फिलहाल में ही राजनीति में सक्रिय होने वाली कॉन्ग्रेस नेत्री प्रियंका गाँधी वाड्रा। जिन्हें मोदी सरकार के कार्यकाल के साढ़े चार साल बाद याद आया कि देश और देश की जनता संकट में है।

दरअसल, कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने अपने चुनावी स्वार्थ साधने के लिए प्रयाग से काशी तक ‘गंगा यात्रा’ किया। इस दौरान उन्होंने एक जनसभा को संबोधित करते हुए देश की जनता प्रति अपनी सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि इस समय देश संकट में है, इसलिए उन्हें घर से बाहर निकलना पड़ा।

अब यहाँ पर ये सवाल बन पड़ता है कि उनके मुताबिक देश में अभी जो भी समस्याएँ हैं, जिसकी वजह से देश संकट में है, वो क्या इन्हीं पिछले छ: महीने में उत्पन्न हुई है? वास्तव में तो उनका ये मानना है कि जब से कॉन्ग्रेस के हाथ से सत्ता छिनकर मोदी सरकार के हाथ में आई, तभी से समस्याएँ हैं। तो फिर वो इतने दिन कहाँ थी? क्यों नहीं उन्होंने भारत भ्रमण करके देश के जनता की समस्याओं को जानने और समाधान करने की कोशिश की? अभी अचानक से क्यों याद आई? चूँकि, अभी चुनाव है इसलिए आपको देश की जनता और देश के ऊपर संकट नज़र आ रहा है।

वैसे गौर करने वाली बात तो ये भी है कि जिस वाराणसी क्षेत्र से पीएम मोदी ने 2014 में चुनावी बिगुल फूँका था और कहा था कि वो यहाँ खुद नहीं आए हैं। उन्हें माँ गंगा ने बुलाया है और फिर उन्होंने गंगा सफाई की बात की थी, जिसके लिए बाद में मंत्रालय भी बनाया गया। गंगा की सफाई को लेकर कॉन्ग्रेस ने हमेशा सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार जनता को बरगला रही है। साथ ही गंगा की सफाई को लेकर भी सवाल उठाए। आज उसी कॉन्ग्रेस की महासचिव माँ गंगा की शरण में जाकर जनता से वोट माँग रही है। वो जनता से कह रही हैं, “गंगा उत्तर प्रदेश का सहारा है। मैं गंगा का सहारा लेकर आपके बीच पहुँचूँगी।” इसके साथ ही उन्होंने गंगा जल भी पिया। जब आपकी नज़र में गंगा इतनी अस्वच्छ है तो फिर आप इसका जल पीकर जनता को क्या दिखाना चाहती हैं?

इससे तो साफ जाहिर होता है कि प्रियंका ने इन सब चीजों का सहारा हिंदुत्व और गंगा प्रेम दिखाने के लिए लिया है। जिससे कि वो हिंदू वोटरों को साधने में सफल हो सकें। वरना हमेशा पीएम मोदी का विरोध करने वाली प्रियंका क्यों आज उनका अनुसरण कर चुनाव जीतने की कोशिश में जुटी है?

कर्नाटक: लैब परीक्षणों में इंदिरा कैंटीन का भोजन खाने योग्य नहीं, भोजन में हानिकारक बैक्टीरिया पाया गया

कर्नाटक के इंदिरा कैंटीन फिर से विवादों में घिर गई है क्योंकि कॉर्पोरेटर उमेश शेट्टी ने आरोप लगाया है कि कैंटीन में परोसा जाने वाला भोजन खाने योग्य नहीं है। उन्होंने कथित तौर पर रमैया उन्नत परीक्षण प्रयोगशाला और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान द्वारा दी गई रिपोर्ट को आरोपों को आधार बनाया। इसमें कहा गया कि भोजन संतोषजनक मापदंडों पर खरा नहीं उतरता जो कि खाने योग्य नहीं है।

डेक्कन हेराल्ड की ख़बर के अनुसार, मुदलपाल, ब्यातारण्यपुरा, जयनगर, जेपी नगर और नागापुरा वार्ड कैंटीन से प्राप्त भोजन पर परीक्षण किया गया था। नमूनों की तौर पर चावल, सांभर और अन्य व्यंजन शामिल किए गए थे।

उमेश शेट्टी ने ख़बर का हवाला देते हुए कहा कि इंदिरा कैंटीन से पुरामिकिकास (नगरपालिका कार्यकर्ता) को दिया जाने वाला भोजन खाने योग्य नहीं है। दो प्रयोगशालाओं में यह परीक्षण करने के बाद, यह पाया गया कि भोजन में हानिकारक बैक्टीरिया मौजूद थे जो विभिन्न स्वास्थ्य बीमारियों का कारण बन सकते हैं। उन्होंने राज्य सरकार से ऐसे भोजन के निर्माताओं के ख़िलाफ़ हस्तक्षेप करने और कार्रवाई करने की भी अपील की।

कर्नाटक के डिप्टी सीएम जी परमेस्वर ने कहा है कि उन्होंने बीबीएमपी कमिश्नर को 198 वार्डों में सभी इंदिरा कैंटीनों में दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता की तुरंत जाँच करने का निर्देश दिया है। अगर खाद्य गुणवत्ता में मिलावट पाई गई तो ठेकेदारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।

बता दें कि इंदिरा कैंटीन योजना कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा अगस्त 2017 में सिद्धारमैया के नेतृत्व में शुरू की गई थी। यह तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन से प्रेरित थी, जिसके तहत ज़रूरतमंदों को कम क़ीमतों पर दिनभर भोजन उपलब्ध कराना था। हालाँकि, यह योजना अपने उद्घाटन के बाद से ही विभिन्न विवादों का हिस्सा रही है। बेंगलुरु में इंदिरा कैंटीन के उद्घाटन के दो दिनों के भीतर ही ख़बरें सामने आई थीं कि इंदिरा कैंटीन में प्लास्टिक ड्रम में आए खाने की उचित गुणवत्ता की जाँच किए बिना परोसा गया था।

आतंकी हाफ़िज़ सईद की जानकारी लीक होने पर पाक को लगी मिर्ची, संयुक्त राष्ट्र में उठाई जाँच की माँग

पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से जाँच की अपील की है कि जमात-उद-दावा के सरगना हाफि़ज़ सईद के संबंध में जानकारी भारत तक कैसे पहुँची। पाकिस्तान जिस जानकारी की बात कर रहा है उसका संबंध आतंकी हाफ़िज़ की वो याचिका है जिसमें उसने ख़ुद को वैश्विक आतंकवादियों की सूची से बाहर करने की माँग की थी। हालाँकि उस याचिका को संयुक्त राष्ट्र ने ख़ारिज कर दिया था।

बता दें कि समाचार एजेंसी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (PTI) ने 7 मार्च 2019 को अपनी एक ख़बर में लिखा था कि संयुक्त राष्ट्र ने मुंबई हमलों के सरगना हाफ़िज़ सईद का नाम प्रतिबंधित आतंकियों की सूची से हटाने की याचिका ख़ारिज कर दी। PTI को यह जानकारी उसके गोपनीय सूत्रों द्वारा प्राप्त हुई थी कि भारत ने आतंकी सईद की गतिविधियों से संबंधित बेहद गोपनीय सूचनाओं समेत विस्तृत साक्ष्य पेश किए थे जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने हाफ़िज़ की याचिका ख़ारिज करने का फ़ैसला किया था

ख़बर के अनुसार, पाकिस्तान सरकार के सूत्र ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोधी ने संयुक्त राष्ट्र को बक़ायदा एक पत्र लिखकर यह माँग की है कि 15 सदस्यीय समिति में से किसने भारत की समाचार एजेंसी PTI को हाफ़िज़ सईद की याचिका ख़ारिज होने संबंधी जानकारी दी। यही जानकारी पाकिस्तान के गले नहीं उतर रही है।

पाकिस्तान एक तरफ तो आतंकियों से अपने संबंधों को नकारता रहता है और दूसरी तरफ आतंकी सरगनाओं की जानकारी लीक होने से तिलमिला उठता है। अपनी इस दलगत नीति से वो जिस मंतव्य को साधने का प्रयास करता है वो किसी से छिपा नहीं है बावजूद इसके वो अपनी झूठी राजनीति करने से भी बाज नहीं आता।

जनता को भड़काना केजरीवाल को पड़ा महँगा, लोगों ने कहा ‘सदी के सबसे बड़े ठग, मक्कार, फ्रॉड, 420, फर्जीवाल’

कई बार बड़े पद पर पहुँचने के बाद सोशल मीडिया पर बे-बुनियाद कुछ भी लिख देना बहुत महँगा पड़ सकता है। अगर यकीन न हो, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के हालिया ट्वीट का ही उदाहरण ले लीजिए। इस ट्वीट में केजरीवाल ने अपनी पैठ बनाने के लिए और मोदी सरकार की साख मिट्टी में मिलाने के लिए एक ट्वीट किया।

इस ट्वीट में केजरीवाल ने लिखा, “29 साल का एक लड़का मिला। 24 साल की उम्र में उसने मोदी जी को वोट दिया था क्योंकि मोदी जी ने कहा था नौकरी देंगे। अभी तक बेरोज़गार है। ना नौकरी लगी, ना शादी हो रही। एक बार और मोदी जी को वोट दे दिया तो अगली बार तक 34 का हो जाएगा। तब तक बहुत देर हो जाएगी। इस बार दोबारा ग़लती मत करना।”

केजरीवाल ने इस ट्वीट को करने से पहले शायद अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि इसके बदले उन्हें ट्विटर पर जनता की ओर से किस तरह की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा। बेरोज़गारी का हवाला देते हुए जो केजरीवाल ने एक आभासी लड़के की कहानी बताई, जिसका न कोई नाम था और न ही कोई पता। उसके बारे में पढ़कर कई लोगों ने उस लड़के के लिए उसी ट्वीट पर नौकरी का प्रस्ताव रख डाला। किसी ने केजरीवाल से उस लड़के की जानकारी माँगी तो किसी ने उस लड़के का नंबर पूछा।

गजब तो तब हुआ जब केजरीवाल, लड़के की बेरोज़गारी पर जनता को अटकाने का प्रयास करते रह गए और दिलीप कुमार नाम के शख्स ने उन्हें बताया कि उनकी पत्नी ने मोदी सरकार की स्टार्ट-अप इंडिया के तहत कंपनी शुरू की थी जिसमें अब तक 8 लोगों को नौकरी दी जा चुकी है। उन्होंने अपनी पत्नी की कंपनी में उस बेरोजगार लड़के को नौकरी देने की इच्छा रखी। और अंत में यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर वह अपनी पत्नी की कंपनी में उस लड़के को रख सकते हैं, लेकिन उसके लिए केजरीवाल के पास कोई बेरोज़गार भी तो होना चाहिए?

केजरीवाल के इस ट्वीट पर एक लड़की का भी ट्वीट आया, जिसमें लड़की ने उनकी बात पर काउंटर करते हुए बताया कि वो 18 साल की थी जब मोदी सरकार को वोट दिया था। उसके बाद उसे कॉलेज में स्कॉलरशिप भी मिल गई और नौकरी भी लग गई। साथ ही उस लड़की के साथ स्कूल में पढ़ने वाले सभी लोगों की नौकरियाँ लग गई या कोई अपना व्यवसाय कर रहा है, सिर्फ़ उन्हें छोड़ कर जो कुछ नहीं करना चाहते। लड़की ने यह सब लिखने के बाद कहा कि, सोच लो किसे वोट दूँगी!

चुनाव जीतने के लिए जो हथकंडा केजरीवाल ने आजमाया वो इस बार उन पर ही महंगा पड़ गया, लोग मोदी के ख़िलाफ़ जाने की जगह उनकी ही चुटकी लेने लगे। एक शख्स ने तो केजरीवाल के लिए जनता की राय का वीडियो बनाकर ही पोस्ट कर दिया। इस ट्वीट में उन्हें सदी का सबसे बड़ा ठग, मक्कार, धोखे़बाज, फ्रॉड 420 तक कह दिया गया।

केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद पर बैठकर ऐसी ओछी राजनीति करना, बेहद हास्यास्पद है। प्रधानमंत्री के किए वादों का स्मरण जिन केजरीवाल को है, वो हर बार अपनी ही बात से मुकरने के लिए विख्यात पहचान बना चुके हैं। जिसकी वजह से वो जनता की ऐसी प्रतिक्रियाओं का आधार बनते हैं। बच्चों की कसम खाने वाले केजरीवाल 45 साल की उम्र में कहते थे कि मुख्यमंत्री बनने के लिए कभी कॉन्ग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे, लेकिन वही केजरीवाल 51 की उम्र तक पहुँचते हुए कॉन्ग्रेस से गठबंधन के लिए लालायित दिखाई पड़ते हैं। ऐसे में कौन समझाए कि सवाल उठाने के लिए जनता को तथ्य केजरीवाल ने ही उपलब्ध कराए हैं।

सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए जरूरी है कि वह अब 5 साल पूरे होने से पहले अपने पद की गरिमा को समझ लें, और अगले चुनाव होने तक ऐसे गलीच किस्म की राजनीति से खुद को दूर करें, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में ‘क्या-क्या’ किया है, वो जनता अच्छे से जान और समझ चुकी है। अब बहका पाना मुश्किल है, इसमें किसी प्रकार का आंतरिक सर्वेक्षण मदद नहीं कर पाएगा।