शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिससे व्यक्ति न सिर्फ़ अपनी सोच-समझ को विकसित कर पाता है बल्कि समाज को जागरूक करने में भी अपना योगदान देता है। शिक्षित लोग ही एक सभ्य समाज की नींव रखते हैं जो देश को बुनियादी तौर पर मज़बूत करने में सहायक साबित होता है। वहीं अशिक्षित होना किसी अभिशाप से कम नहीं होता। कई ऐसे मौक़े आते हैं जब अशिक्षित होने की वजह से शर्मसार भी होना पड़ जाता है।
ऐसी ही एक घटना बिहार के मधुबनी ज़िले की है जहाँ पंडौल गाँव में एक दुल्हन ने दूल्हे से शादी के करने से इनकार कर दिया क्योंकि वो अशिक्षित ही नहीं अनपढ़ भी था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुल्हन को दूल्हे के अनपढ़ होने की बात वरमाला पहनाने के बाद पता चली जिसके बाद उसने शादी न करने का फ़ैसला किया।
दरअसल पंडोल प्रखंड के ब्रह्मोत्तरा गाँव के लड़के की शादी रहिका प्रखंड के मोमीनपुर गाँव की लड़की के साथ 13 मार्च को होनी तय हुई थी। बारात अपने तय दिन पर निर्धारित स्थान पर पहुँची और वरमाला होने के बाद शादी की रस्मों के दौरान दुल्हन की सहेलियाँ दूल्हे से बातें करने लगीं और बातों ही बातों में सहेलियों को शक हुआ कि दूल्हा अशिक्षित है।
अपने शक़ को यकीन में बदलने के लिए दुल्हन की सहेलियों ने दूल्हे को 100 रुपए के 10 नोट गिनने के लिए दिए जिन्हें गिनने में उसे दिक्कत होने लगी। काफी मशक्कत करने के बावजूद वो उन 10 नोटों को गिनने में असफल रहा। इसके बाद दूल्हे से उसका और गाँव का नाम पूछा गया जिससे पता चल गया कि वो पढ़ा-लिखा नहीं है। असलियत जानने के बाद दुल्हन ने दूल्हे से शादी करने से मना कर दिया।
बता दें कि दुल्हन बनी लड़की के इस फैसले का गाँव वालों ने स्वागत किया। लड़की द्वारा शादी न करने के फ़ैसले की तारीफ़ करते हुए शादी में उपस्थित एक व्यक्ति ने अपने पढ़े-लिखे बेटे से शादी का प्रस्ताव रखा और पूछा कि मेरा बेटा पढ़ा-लिखा है क्या आप उससे शादी करेंगी? लड़की वालों ने इस प्रस्ताव पर हामी भर दी।
गोवा के यशस्वी मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का कैंसर की बीमारी से जूझते हुए 63 साल की उम्र में रविवार को निधन हो गया था। मनोहर पर्रिकर अग्नाशय कैंसर से जैसी असाध्य बीमारी से पीड़ित थे। बता दें कि मनोहर पर्रिकर के निधन पर सोमवार (मार्च 18, 2019) को केंद्र सरकार ने एक दिन का वहीं गोवा की राज्य सरकार ने सात दिनों का शोक घोषित किया है।
प्रधानमंत्री मोदी सहित मंत्रिमंडल के कई नेताओं ने पूर्व रक्षामंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजली अर्पित की। साथ ही प्रधानमंत्री ने मनोहर पर्रिकर के परिवार वालों से भी मुलाकात की।
Prime Minister Narendra Modi, Defence Minister Nirmala Sitharaman and Governor Mridula Sinha meet family of Goa CM #ManoharParrikar, in Panaji. pic.twitter.com/X11DkUJofU
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी, केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य की राजधानियों में राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा। मनोहर पर्रिकर का राजकीय सम्मान के साथ सोमवार शाम 5 बजे अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। इससे पहले सुबह 9.30 बजे से 10.30 बजे तक पणजी के बीजेपी ऑफिस में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था।
शाम 4.00 बजे तक आम लोग अपने नेता को भावभीनी श्रद्धांजलि दे सकेंगे। शाम 4 बजे कला अकेडमी से मीरामार तक मनोहर पर्रिकर की अंतिम यात्रा निकलेगी और 5 बजे उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा।
जब आप किसी भी काम में आगे बढ़ते हैं, तो अमूमन आपकी इच्छा होती है कि आप सबसे ऊपर तक पहुँचे। भले ही आप नकारे हों, आपको पता हो कि आप उस लायक नहीं हैं, आपको पता हो कि आप बहुत ज़्यादा भी जाएँगे तो बीच तक पहुँचेंगे, फिर भी ख़्वाब देखने से किसने मना किया है। ये एक फ़ंडामेंटल मानवीय उम्मीद है।
भले ही कभी एक्टिंग न की हो लेकिन आदमी बंद कमरे में बैठकर सोचता है कि एक नेशनल अवॉर्ड मिल जाता तो कितना सही रहता। क्रिकेट की लेदर बॉल कभी हाथ में पकड़ी न हो, लेकिन इच्छा होती है कि तीन बॉल में तीन विकेट लेकर इतिहास बना दिया जाए। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर संसाधन न हों, तब भी व्यक्ति बहुत आगे तक सोच लेता है।
वैसे तो राजनीति कोई कार्य नहीं माना जाता, फिर भी ये एक ऐसी जगह है जहाँ देवगौड़ा प्रधानमंत्री और प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बन जाते हैं। ये वैसी जगह है जहाँ जादूगर और नशेड़ी लोग संयुक्त राष्ट्र संघ की हरी दीवारों के बैकड्रॉप में भारत की तरफ से भाषण देते हुए खुद को देखते हैं। अजीब बात यह है कि ऐसा संभव हो सकता है, ऐसा संभव हो चुका है। वरना राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाना महिला सशक्तिकरण तो नहीं ही कहा जा सकता!
लोकसभा चुनावों के समय दो-तीन शब्द ऐसे हैं जो हर पाँच साल में, चुनावों से 6-8 महीने पहले से खूब चर्चा में आते हैं। महागठबंधन, थर्ड फ़्रंट, साम्प्रदायिक ताक़तें आदि वो शब्द और विशेषण हैं जिनकी वास्तविकता हर चुनाव में औंधे मुँह गिरती है, लेकिन नेता लोग अपने आप को पागल बनाना बंद नहीं करते।
जिस देश में सेकेंड फ़्रंट ठीक से बन नहीं पा रहा, थर्ड और फोर्थ फ़्रंट की बात करना बेवक़ूफ़ी तो है लेकिन सुनने में सेक्सी लगता है। इसीलिए बोला जाता है। इसीलिए कभी पटनायक से बनर्जी की मुलाक़ात होती है, कभी केजरीवाल से कोई मिल लेता है, कभी ममता की मुलाक़ात चंद्र बाबू से होती है, कभी कमल हासन ओपन माइंडेड रहते हैं।
लेफ़्ट वालों की बात नहीं करूँगा। उन्हें वक्त ने भी सताया है, और अर्धसैनिक बल भी उनके काडरों के जंगलों में घुस गए हैं। बचा था यूनिवर्सिटी में वल्नरेबल और सीधी लड़कियों को विचारधारा के नाम पर जोड़कर सीडी दिखाकर बलात्कार करना, अब वो भी सोशल मीडिया के समय में बाहर आ जाता है।
बाहर आने तक तो ठीक है, वायरल हो जाता है। जंगलों में नक्सलियों के साथ ‘क्रांति’ करने गई लड़कियाँ जब सेक्स स्लेव का जीवन गुज़ारकर, किसी तरह बाहर पहुँचती हैं तो बताती हैं कि वहाँ महिला काडरों से कम्यून को देह सौंपकर क्रांति में सहयोग कैसे दिलवाई जाती है। अब ये बेचारे कैक्टस लेकर घूमते हैं और फ़्रस्ट्रेशन में यहाँ-वहाँ रगड़कर खुद को कष्ट देते हैं।
आज सुबह ख़बर आई कि बंगाल में कॉन्ग्रेस का गठबंधन नहीं हो पाया, अकेले लड़ेगी चुनाव। यूपी में आपको पता ही है कि परिवार वालों की सीटें छोड़कर बाकी हर सीट पर तथाकथित महागठबंधन का छोटा बंधन, सपा-बसपा, बनकर निकला है। कॉन्ग्रेस को वहाँ भी सबने अकेले छोड़ दिया। तेलंगाना में जो हुआ वो सबको दिख ही गया। कर्नाटक में मुख्यमंत्री अपने आप को क्लर्क कहकर रोता है, उसका बाप अपने बेटे की दुर्गति पर रोता है।
दिल्ली में दो सौ पन्नों के सबूत के नाम पर केजरीवाल ने जो लहरिया लूटा था, वो शीला जी को याद है और माकन समेत कई कॉन्ग्रेसी नेताओं की दलीलों के बाद भी यहाँ गठबंधन बनते नहीं दिख रहा। देखना यह है कि बंगाल में तृणमूल की ममता कॉन्ग्रेस के साथ कितनी दया करती है। क्योंकि कॉन्ग्रेस तो दया की ही पात्र बन कर रह गई है।
वो मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जब देश की सबसे पुरानी और सबसे ज़्यादा समय सत्ता में रहने वाली पार्टी, क्षेत्रीय पार्टियों के उनके बिना माँगे ही उनके पीछे सपोर्ट देने के लिए अड़ जाए, तो लगता है कि वी डू लिव इन डेस्पेरेट टाइम्स, एंड डेस्पेरेट टाइम्स नीड डेस्पेरेट मेजर्स! हिन्दी में कहें तो हताश कॉन्ग्रेस के लिए हाथ-पाँव मारकर, नदी में विसर्जन का नारियल निकालने के चक्कर में मरे हुए आदमी की काई जमी खोपड़ी का भी मिल जाना एक उपलब्धि ही है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों पर मत जाइए। भारत का वोटर अब चालाक हो गया है। वो उड़ीसा की विधानसभा किसी को देता है, लोकसभा किसी और को। और तो और, चुनावों के समय ही बता देते हैं कि ‘राजे तेरी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं’। तो अब मतदाताओं को मूर्ख समझना, उनको गलत आँकने जैसा है।
वैसे, भारत के 38.5% मतदाताओं को कॉन्ग्रेस ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से ‘स्टूपिड’ कहा ही है जबकि उनके अध्यक्ष आलू से सोना बनाते हैं और खेत में दवाई की फ़ैक्टरी लगाते हैं। इस तरह की बातें करके आप इंटरनेट पर वायरल हो सकते हैं, लेकिन अब इलेक्शन मैनेजमेंट करने वाली कम्पनियों की सुविधा छोटे दल भी लेते हैं, और उन्हें भी पता है कि किस बात से वोटर आपको घेरेगा।
जब आप लगातार सर्जिकल और एयर स्ट्राइक पर सवाल करते हैं, जब आप भारत की एक तिहाई जनसंख्या को जिसने मोदी को वोट दिया, उसे मूर्ख कहते हैं, जब आप खुद राफेल को निजी हितों को साधने के लिए यहाँ आने से रोकना चाहते हैं, तब आपकी विश्वसनीयता गिरती है, और कोई भी आपके साथ होने से कतराता है।
जो लोग कॉन्ग्रेस को समझदार और अनुभवी पार्टी बताते हैं, उनसे मेरा यही सवाल है कि इस पार्टी के मुखिया ने कौन से मुद्दे उठाए हैं सरकार को घेरने के लिए? राफेल इनके लिए राष्ट्रीय नहीं, बल्कि निजी मुद्दा है, इसलिए उसे इतनी बार उठाया कि लोग बोर हो गए हैं। रोजगार पर सवाल किए, पता चला कि मोदी सरकार ने कई एजेंसियों के मुताबिक़ करोड़ों नौकरियाँ सृजित की हैं। अब इस पर आँकड़े आने के बाद चुप्पी छाई हुई है।
महागठबंधन का दुर्भाग्य हमेशा से यही रहा है कि इनके साथ आने का लक्ष्य किसी फासीवाद ताक़त, साम्प्रदायिक विचारधारा, भ्रष्ट सरकार और तमाम नकारात्मक मुद्दों को लेकर नहीं होता, इनका लक्ष्य होता है कि कैसे शॉर्टकट से प्रधानमंत्री बना जाए। यहाँ कोई पैदाइश से ‘योग्य’ है, कोई एक राज्य में सबसे ज्यादा सीट लाने के कारण खुद को योग्य पाती है। कोई राज्यसभा में है, लेकिन दावा करती है कि दलितों का कोई है तो वही है।
कोई सिर्फ इसलिए पीएम बनने के ख़्वाब देखता है कि उसके पास वो दो सीटें होंगी जिसके कारण विश्वास प्रस्ताव जीता और हारा जा सकेगा। आपको मेरी बात मजाक लगेगी, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है? लोकतंत्र की हत्या का राग अलापने वालों ने क्या एक वोट से सरकार गिराकर इस देश को चुनाव में नहीं ढकेला है?
आपको क्या सच में लगता है कि इतनी महात्वाकांक्षाएँ एक साथ खड़ी हो पाएँगी? क्या आपको सच में लगता है कि ये लोग किसी साम्प्रदायिक ताक़त, भ्रष्ट सरकार, फासीवाद सरकार को हराकर देश और संविधान की रक्षा करने इकट्ठे हुए थे? ऐसा कुछ नहीं है। यो लोग चोरों की जमात हैं, जिनकी पतलून का नाड़ा किसी और के हाथ में है। सब एक-दूसरे का नाड़ा थामकर नंगे होने से बचना चाहते हैं।
इन नामों को गौर से सुनिए और याद कीजिए कि अभी हाल में इन्होंने क्या किया है: मायावती, अखिलेश, चंद्र बाबू नायडू, ममता, लालू, तेजस्वी, कुमारस्वामी आदि। याद कीजिए, नहीं याद आए तो इंटरनेट पर खोजिए। हर नाम के बाद करप्शन लिखिए, सही जगह पहुँच जाएँगे।
ये सब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। देश सेवा ढोंग है इनके लिए, वरना देश और संविधान की क़समें खाने वाले लोग ये नहीं पूछते कि सर्जिकल स्ट्राइक का विडियो दो, एयर स्ट्राइक में पेड़ टूटे या आदमी मरे। देश जैसी संस्था की परिकल्पना ये कर ही नहीं पाते, या समझ नहीं है। आप देश के नाम का नारा लगाते हुए अपनी ही सेना को कैसे ह्यूमिलिएट कर सकते हैं? आप पाकिस्तान के टीवी पर भारत के खिलाफ कैसे बोलते दिख जाते हैं? आप ऐसी बातें क्यों बोलते हैं जिसे पाकिस्तान की मीडिया ये कहकर चलाती है कि भारत में तो सत्तारूढ़ पार्टी के साथ बाकी पार्टियाँ हैं ही नहीं।
ये गठबंधन नहीं, ये बंधन है, जिसमें कई गाँठें हैं। गाँठें कैंसर का परिचायक होती हैं।
पड़ोसी देश चीन ने आतंकवाद से लड़ाई के मुद्दे पर वाइट पेपर जारी किया है। चीन पर शिंजियांग प्रान्त में मानवाधिकार हनन के आरोप लगते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता संभालने के बाद मानवाधिकार हनन के मामले और ज्यादा हो गए हैं। अब चीन ने दावा किया है कि उसने पिछले पाँच वर्षों में शिंजियांग प्रान्त से 13,000 इस्लामिक आतंकियों को गिरफ़्तार किया है। चीन का शिंजियांग प्रान्त अलगाववाद और कट्टरवाद की चपेट में है। चीन के इस पश्चिमी प्रांत में रह रहे उईगर मुस्लिम ख़ुद को तुर्क के क़रीब मानते हैं लेकिन चीन ने “The Fight Against Terrorism and Extremism and Human Rights Protection in Xinjiang” नामक रिपोर्ट में कहा है कि 20वीं सदी की शुरुआत में ही यहाँ पैन-इस्लामिक और पैन-तुर्की सोच हावी हो गई थी।
रिपोर्ट में चीन ने कहा है कि इस क्षेत्र में इस्लाम के आने के साथ ही यहाँ की धार्मिक संरचना में बदलाव आ गया और शासकों ने युद्ध और जबरदस्ती इस्लाम को फैलाया। चीन ने साथ ही यह भी दावा किया कि उसने क्षेत्र में मानवाधिकार की रक्षा की है। यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की ‘वर्ल्ड रिपोर्ट 2018‘ में कही गई बातों के एकदम विपरीत है। यूएन ने कहा था कि चीन उईगर मुस्लिमों के तौर-तरीकों और परम्परा को ख़तरनाक मानता है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि चीन ने क्षेत्र के कुछ हिस्सों में लोगों को जबरन एक सरकारी सर्विलेंस ऐप डाउनलोड करने को मजबूर किया।
जबकि, चीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि उसने 2014 से अब तक 12,995 आतंकियों को गिरफ़्तार किया, 2,052 विस्फोटक सामग्री को जब्त किया, 1,588 हिंसक एवं आतंकी गैंगों को नेस्तनाबूत किया, 30,645 लोगों को 4,858 अवैध धार्मिक गतिविधियों (illegal religious practices) के लिए दण्डित किया। चीन ने आँकड़े गिनाते हुए कहा कि कई तो ऐसे आतंकी थे जिन्होंने दंड पाने के बावजूद फिर से वही कार्य किया। ऐसे लोगों पर और भी अधिक कार्रवाई की गई। चीन ने कहा है कि शासन से लेकर स्कूलों तक, हर जगह धार्मिक बीज बोए जा रहे थे, जिसपर क़ाबू पाने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए।
चीन ने क्षेत्र में रोज़गार सहित कई विकास कार्यों को गिनाते हुए दावा किया कि उसने आतंक और अलगाववाद को समाप्त करने के लिए जनता के लिए विकास कार्यों का सहारा लिया है। चीन ने अपने प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इन्ही सब उपायों के कारण पिछले 2 वर्षों से शिंजियांग में कोई हिंसक आतंकी गतिविधि नहीं हुई है। चीन ने दावा किया कि उसने इसके लिए किसी भी धर्म विशेष या उसकी रीति-रिवाजों को निशाना नहीं बनाया। चीन ने दावा किया कि कम्युनिस्ट पार्टी के शासनकाल में शिंजियांग के लिए यह आर्थिक व सामाजिक उत्थान का दौर है।
“It is indisputable that Xinjiang is an inseparable part of Chinese territory,” said the white paper, titled “The Fight Against Terrorism and Extremism and Human Rights Protection in #Xinjiang.” https://t.co/yGCrabTHrEpic.twitter.com/JzogdlYB4i
हालाँकि, चीन के इन आँकड़ों से पता चलता है कि चीन भले ही मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने में लगातार अड़ंगा लगाता रहा हो लेकिन अपने देश में उसने आतंकवाद को लेकर मानवाधिकारों का हनन करने के साथ-साथ सभी हथकंडे अपनाए हैं। चीन के अनुसार, उसके देश में आतंकवाद वही है जो उसने अपनी परिभाषा के हिसाब से तय किया है। उस आतंकवाद को निरस्त करने के लिए चीन संयुक्त राष्ट्र से लेकर अपने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक की भी नहीं सुनता। ऐसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ‘क्रैकडाउन 709’ का प्रयोग कर जेल में डाल दिया गया।
हैदराबाद में एक कॉन्ग्रेस नेता ने गुस्से में आकर पार्टी के झंडे के साथ अन्य चुनाव प्रचार सामग्री में आग लगा दी। साथ ही आरोप लगाया कि पार्टी में उनके कार्यों और प्रयासों को तवज्जों नहीं दी जाती है, इसलिए उन्होंने फैसला किया है कि वो अब टीआरएस में शामिल हो जाएँगे।
इस कॉन्ग्रेसी नेता का नाम कृष्णक मन्ने है। कृष्णक का कहना है कि उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है क्योंकि तेलंगाना प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) अध्यक्ष यूके रेड्डी उनके किए कार्यों को तवज्जो नहीं देते थे। जिसके कारण वो काफ़ी निराश हैं। उनका आरोप है कि पार्टी के नेताओं ने बहुत पैसा कमा लिया है लेकिन फिर भी पार्टी के लिए काम नहीं करते हैं।
Hyderabad: Congress leader Krishank sets party flags & other election campaign material on fire; says, “I resigned from Congress party as I was disappointed by TPCC president UK Reddy for not recognizing my work. I will join TRS in presence of KT Rama Rao in Telangana”(17.03) pic.twitter.com/lq7X2a8JNj
कृष्णक ने बताया कि वह केटी रामा राव की मौजूदगी में टीआरएस में शामिल होंगे। कृष्णक के साथ कॉन्ग्रेस को लगने वाले झटके चुनाव के नज़दीक आते-आते बढ़ते ही जा रहे हैं। इसके पूर्व कॉन्ग्रेस के 2 विधायक आर के राव और अतराम सक्कू ने भी कॉन्ग्रेस को छोड़कर टीआरएस में शामिल होने का फैसला लिया था। इसके पीछे उन्होंने कारण दिया था कि अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और हित के लिए यह कदम उठाया है।
कृष्णक मन्ने सिकंदराबाद के जाने-माने नेताओं में से एक हैं। उनका कहना है कि 2014 के चुनावों में उन्हें सिकंदराबाद से उम्मीदवार घोषित किया गया था लेकिन आखिरी समय में उनके नाम को वापस ले लिया गया। मन्ने ने 2012-13 में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की माँग की थी, और बाद में वह कॉन्ग्रेस से जुड़ गए थे।
बता दें कि सिर्फ़ हैदराबाद ही नहीं, अन्य राज्यों में भी कॉन्ग्रेस पार्टी के कई नेता पहले ही पार्टी को छोड़ चुके हैं। ऐसे में देखना है कि कार्यकर्ताओं की पार्टी से शिकायत से लेकर मतदाताओं को मनाने तक कॉन्ग्रेस किस तरह खुद को लोक सभा चुनाव तक मजबूत रख पाती है।
साल 2019 में न्यूजीलैंड के लिए 14 मार्च का दिन बिलकुल वैसा ही था जैसा भारत के लिए 14 फरवरी का दिन था। अंतर केवल यह था कि वहाँ इबादत करने आए आम लोगों ने अपनी जान गवाई और यहाँ भारत ने अपने सैनिकों को खोया। जाहिर है दुख दोनों ही घटनाओं पर सबको बराबर हुआ और होना भी चाहिए। पूरे विश्व में इन दोनों हमलों को लेकर लोगों में रोष देखने को मिला। बावजूद इसके कुछ लोगों ने मज़हब और मुल्क की आड़ में अपनी भावनाओं पर ऐसी महीन रेखा खींची कि न चाहते हुए भी इन दोनों वाकयों में ऐसे लोगों की ‘सोच का फेर’ दिखने लगा।
ये लोग कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान के ही कुछ वो कलाकार हैं, जिन्हें भारत में आकर नाम, पैसा, शोहरत, प्यार सब हासिल हुआ। लेकिन बात जब आतंक से जुड़ी तो वह कर्मभूमि के एहसानों को भूल गए, और अपने देश या मज़हब परस्त होने का सबूत दे डाला। न्यूजीलैंड हमले पर खुलकर बोलने पर वाले अली ज़फर, माहिरा खान जैसे कलाकार पुलवामा पर चुप्पी साधे हुए थे। हैरानी की बात है कोई शख्स इतना मज़हब या देश परस्त कैसे हो सकता है कि कर्मभूमि से ही एहसान फरामोशी पर उतर आए।
हम उनके न्यूजीलैंड हमले पर दुख जाहिर करने पर सवाल नहीं उठा रहे। उठाएँगे भी क्यों? हम केवल जानना चाहते हैं कि पुलवामा पर उनके चुप रहने के क्या कारण हैं? क्या कारण है कि उनकी ‘कर्मभूमि’ की रक्षा पर तैनात सैनिकों पर हुए इतने बड़े हमले से उनका दिल नहीं पसीज़ा लेकिन न्यूजीलैंड हमले पर वो एकदम से भावुक हो उठे?
यहाँ हम आपको कुछ उन पाकिस्तानी कलाकारों के ट्विटर अकॉउंट में फर्क़ दिखा रहे हैं, जिसके कारण यह सवाल पैदा हुआ।
अली ज़फर
न्यूजीलैंड हमले के बाद पाक कलाकार अली जफर ने ट्वीट किया, “नमाज के वक्त बेगुनाह मुस्लिमों को मौत के घाट उतारते हुए शख्स का वीडियो देखा, जिसने मुझे सबसे ज्यादा परेशान किया, यह बात दिमाग में आ रही है कि अब विश्व इसे हिंसक कार्रवाई कहेगा या आतंकी।” बॉलीवुड फिल्में देखने वाला शायद ही कोई ऐसा होगा जो अली ज़फर को नहीं पहचानता हो।
Saw video of a man killing innocent Muslims in the mosque during prayers. Most disturbing visual ever. Wonder if the world will call this a “violent act” or an “act of terrorism”. New Zealand: Many Dead in 2 Mosque Shootings | Time #NewZealandShootinghttps://t.co/ioh3jOPcvy
न्यूजीलैंड में विश्व के ज्ञान पर सवाल उठाने वाला अली 14 फरवरी को ट्विटर पर अपना फोटोशूट शेयर कर रहा था, सूखे मेवों के साथ अपने दोस्त को उर्दू की किताब भेजने के लिए शुक्रिया बोल रहा था, वीडियो अपलोड कर रहा था। लेकिन पुलवामा पर उसने कुछ नहीं बोला। 18 तक भी चुप रहा। 19 को उसने पुलवामा पर अपना मुँह खोला – ‘पाकिस्तान पीएम के पावरफुल स्पीच’ और ‘पाकिस्तान करेगा जवाबी कार्रवाई’ – वाले ट्वीट को रिट्वीट करके।
मावरा होकेन
बॉलीवुड फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ से पहचान हासिल करने वाली मावरा होकेन का भी हाल कुछ अली जैसा ही रहा। पुलवामा पर चुप्पी बांधे रखने वाली ने मावरा ने न्यूजीलैंड हमले पर लिखा, “जुम्मा मुबारक, प्यार, अमन, शांति, सम्मान और सहनशीलता होनी चाहिए, इस हमले से आहत हूँ, अगर कोई भी शख्स इबादत की जगह हमला करता है तो वह किसी भी धर्म का कैसे हो सकता है।”
Jumma Mubarak! Let there be Love & peace & tolerance & respect for one another! ❤️❤️❤️???????????????? Saddened by the news of #ChristchurchMosqueAttack NZ Any individuals who attack especially at a place of prayer, how can they belong to any religion at all.#WorldPeace #
इबादत की जगह आतंक पर सवाल उठाने वाली यही मावरा 15 फरवरी को भी जुम्मा मुबारक बोल रही थी, प्रेम के सौंदर्य का बखान कर रही थी, खूबसूरत तस्वीरें डाल रही थी। लेकिन पुलवामा पर…
माहिरा खान
रईस की लीड हिरोईन और पाकिस्तानी कलाकारों में एक नाम माहिरा का भी है, जिसे भारत ने बड़ी पहचान दी। माहिरा को उरी हमले के बाद पाकिस्तान वापस भेज दिया गया था, जिसके कारण कुछ तथाकथित सेकुलरों ने विरोध में आवाज़ें भी उठाई थीं। उसी माहिरा ने न्यूजीलैंड पर गहरा दुख व्यक्त किया और मारे गए लोगों के परिजनों के लिए दुआएँ भी माँगीं।
So deeply disturbing to read about the #Christchurch mosque attack! Prayers with the people of New Zealand and the grieving families.
ऐसे में कमाल की बात यह है कि माहिरा ने पुलवामा हमले वाले दिन ट्विटर से अपने फैंस को इंस्टाग्राम पर लाइव होने की सूचना दी थी। जबकि पुलवामा में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों पर एक शब्द भी उससे नहीं लिखा गया।
हैरानी होती है ऐसे लोगों पर जिन्हें कमाने-खाने के लिए भारत का सहारा चाहिए, लेकिन संवेदनाएँ प्रकट करने के लिए दोहरा रवैया अपनाते हैं। ऐसे लोगों पर शक होता है कि अगर यह न्यूजीलैंड का हमला मस्जिद में न होकर किसी और जगह होता तो भी शायद इनके ट्विटर अकॉउंट पर केवल सेल्फी और इनके इवेंट्स की जानकारी ही होती। ‘पाक’ कलाकारों पर बरती जाने वाली सख्ती पर कुछ लोगों की आवाज़े हर मौक़े पर बुलंद होती हैं, लेकिन वो भूल जाते हैं कि जिस प्रेम के चलते वो इन कलाकारों के समर्थन में अपनों के विरोध पर आ खड़े हुए हैं, वही कलाकार ऐसे मौक़ों पर अपनी वास्तविक प्रवृति का सबूत दे देते हैं।
इससे पहले एक पोस्ट में हम आपको पाकिस्तान के गायक और भारतीय राजनयिक की हवाई यात्रा पर हुई बातचीत का किस्सा बता चुके हैं, जिसमें गायक ने भारतीय राजनयिक को पाकिस्तानी समझते हुए भारत में होने वाले उनके दौरों पर बात करते हुए भारत के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसी माहौल में वो ‘काफ़िर’ भारतीय लोगों पर खूब बरस भी रहे थे, साथ ही उन्होंने कहा था कि एक ‘मोमिन’ होने के नाते वो भारत देश के काफ़िरों की सिर्फ शराब, शबाब और पैसा पसंद करते हैं और इसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं होती।
हवाई सफ़र से उतरने के बाद जब राजनयिक ने उन्हें बताया कि वो पाकिस्तानी नहीं बल्कि भारतीय राजनयिक हैं तो गायक ने फ़ौरन उनसे माफ़ी माँगी और गिड़गिड़ाए भी। लेकिन राजनयिक की सिफ़ारिश पर उस गायक को तुरंत ही ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था।
सोचिए! जिन पर आफत आने पर ‘हम कलाकारों की कोई जाति नहीं होती’ जैसे बातें बोलते हैं, वही समय आने पर कैसे अपनी हकीक़त से खुद ही पर्दा उठा देते हैं।
लंबे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का रविवार को निधन हो गया। जीवन और राजनीति में फाइटर रहे पर्रिकर अंतिम समय में भी एक फाइटर की तरह लड़े। उनकी सादगी और कर्मठता की हर कोई सराहना कर रहा है।
मनोहर पर्रिकर नवंबर 2014 से मार्च 2017 तक देश के रक्षा मंत्री रहे। 2017 में रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देकर वो गोवा के सीएम बने। बतौर रक्षा मंत्री, पर्रिकर ने देश के हित में कई ऐसे अहम फैसले लिए हैं, जिसकी मिसाल दी जाती है। साल 2016 में जब भारतीय जवानों ने PoK में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया था, उस समय देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ही थे और इनकी अगुवाई में ही इतने बड़े पैमाने पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजना को अंजाम दिया गया था। और इससे पहले भी जब साल 2015 में भारतीय फौज ने म्यांमार में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया था, तब भी देश के रक्षा मंत्री पर्रिकर ही थे।
इतना ही नहीं पर्रिकर ने रक्षा मंत्री रहते हुए कई ऐसे भी फैसले लिए हैं, जिसका फायदा देश को 2027 तक होता रहेगा। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देश के एयर डिफेंस प्लांस में बदलाव किए, जिसकी वजह से अब अगले दशक तक एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद पर देश के टैक्स देने वाले नागरिकों के ₹49,300 करोड़ बचने की संभावना हैं।
आपको बता दें कि मनोहर पर्रिकर ने रूस के एस-400 लॉन्ग रेंज मिसाइल शील्ड की ऊँची कीमत को देखते हुए 2027 तक नए एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद के लिए 15 वर्ष के टर्म प्लान की समीक्षा का आदेश दिया। इस समीक्षा प्रक्रिया में कम दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद घटाने पर सर्वसहमति बनी। एस-400 एक ऐसी मिसाइल है, जो चोरी- छुपे हमला करने आ रहे विमानों और मिसाइलों को 380 किमी की दूरी से ही मार गिराने में सक्षम है।
हालाँकि, एयर डिफेंस स्ट्रैटजी तीन स्तरों की होती है- 25 किमी तक की दूरी से अति गंभीर उपकरणों की सुरक्षा के लिए कम दूरी वाले सिस्टम, 40 किमी तक की मध्यम दूरी वाले सिस्टम और इससे ज्यादा दूरी के खतरों से रक्षा के लिए लंबी दूरी के सिस्टम। मगर मनोहर पर्रिकर ने वायु सेना को इस बात के लिए सहमत किया कि उनकी त्रिस्तरीय सुरक्षा योजना के मुताबिक लंबी दूरी के सिस्टम (एस-400) से मध्यम एवं कम दूरी के एसएएम की कोई जरूरत नहीं रहेगी और ये बेकार हो जाएँगे। जिसके बाद वायु सेना भी इसके लिए सहमत हो गए और ये डील भारत का अब तक का सबसे सस्ता डील बताया जा रहा है।
कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने आधिकारिक रूप से उत्तर प्रदेश के चुनावी महासमर में पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत कर दी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनावी जिम्मेदारी संभाल रही प्रियंका गाँधी ने हिन्दुओं को लुभाने और भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पूजा-पाठ से अपने चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत की। उन्होंने प्रयागराज से वाराणसी तक गंगा में बोट यात्रा भी शुरू कर दी है। रविवार (मार्च 17, 2019) रात को ही प्रयागराज पहुँची प्रियंका ने अपनी दादी के घर स्वराज भवन में रात गुजारी। गंगा यात्रा के लिए सुबह में निकली प्रियंका ने सबसे पहले संगम क्षेत्र स्थित बड़े हनुमान जी मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने वहाँ आरती में भी हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने किला स्थित अक्षयवट और सरस्वती कूप का भी दर्शन किया।
स्वराज भवन को पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू ने बनवाया था। बाद में उन्होंने इसे कॉन्ग्रेस कमेटी को। संगम पहुँच कर प्रियंका गाँधी ने गंगा आरती में हिस्सा लिया। इसके बाद वह नाव पर सवार होकर अरैल गईं। अरैल में कार से वह करछना के मनैया घाट पहुंची। वहाँ से वह मोटरबोट में सवार होकर उन्होंने गंगा यात्रा रैली शुरू कर दी। प्रदेश कॉन्ग्रेस प्रवक्ता किशोर ने उनके कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा:
“प्रियंका गाँधी स्टीमर से दुमदुमा, सिरसा, लाक्षागृह, महेवा, कौंधियारा में स्थानीय लोगों से मिलेंगी। दौरे के पहले दिन प्रियंका पुलवामा के शहीद महेश यादव के परिजनों से मिलने मेजा स्थित बदल का पुरवा गाँव जाएँगी। प्रियंका सीतामढ़ी में रात्रि विश्राम करेंगी।”
WATCH | As people raise slogans in her support, Priyanka Gandhi Vadra asks, “How did you recognise me from so far?”
The Congress general secretary for Uttar Pradesh-East is on a 3-day boat ride from Prayagraj to Varanasi as part of her party’s poll campaign#ElectionsWithNDTVpic.twitter.com/dRSXmLcBgF
इस यात्रा को सफल बनाने के लिए सोनिया गाँधी के लिए सोनिया गाँधी के सचिव द्वय केएल शर्मा और ज़ुबैर ख़ान लगे हुए हैं। प्रियंका की इस रैली को सफल बनाने के लिए कॉन्ग्रेस ने जी-जान झोंक दी है। प्रियंका द्वारा गंगा में बोत यात्रा निकाले जाने को नरेंद्र मोदी के ‘मुझे माँ गंगा ने बुलाया है’ वाले अभियान की काट के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि 2014 के चुनाव में मोदी ने वाराणसी में माँ गंगा का ज़िक्र किया था। उसके बाद वे समय-समय पर निर्मल गंगा की बात करते रहे हैं। प्रियंका द्वारा हनुमान मंदिर में पूजा करना भी कॉन्ग्रेस के सॉफ्ट-हिंदुत्व की तरह देखा जा रहा है।
प्रयागराज में प्रियंका गाँधी, बड़े हनुमान मंदिर में पूजा की, संगम किनारे पहुँचीं pic.twitter.com/HMr8351OUp
प्रियंका गाँधी की इस रैली में उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर भी शामिल होंगे। क़रीब 150 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी करने के बाद प्रियंका वाराणसी में पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात करेंगी। इससे पहले प्रियंका लखनऊ में रोड शो कर चुकी हैं। उनकी यह यात्रा 38 गाँवों से होकर निकलेगी। ताज़ा रैली के दौरान वह विंध्यवासिनी व विश्वनाथ मंदिर में दर्शन भी करेंगी। इस दौरान प्रियंका गाँधी निम्नलिखित चीजों को कवर करेंगी:
मंदिर: बड़े हनुमान मंदिर, विंध्यवासिनी मंदिर, बाबा विश्वनाथ मंदिर
संसदीय क्षेत्र: इलाहाबाद, फूलपुर, भदोही, मीरजापुर, चंदौली और वाराणसी
रैली का स्टॉपेज: मनैया, दुमदुमा, सिरसा, लाक्षागृह व मांडा
लोकसभा चुनाव के महासंग्राम में जोड़-तोड़ का का समीकरण हर ओर छाया है। आपसी गठबंधन पर बनते-बिगड़ते समीकरणों का ताना-बाना में लगभग हर पार्टी बुनने में व्यस्त है। ऐसे में कॉन्ग्रेस अपने बुरे दौर में साथियों की तलाश में है जिसके सहारे वो चुनावी मैदान में खुद को उतार सके। उत्तर प्रदेश में तो सपा-बसपा गठबंधन ने कॉन्ग्रेस को कोई तरजीह नहीं दी और शुरुआत से ही कॉन्ग्रेस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाया। वो बात अलग है कि कॉन्ग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा बनने को पूरी तरह से लालायित थी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने एक ट्वीट से यह स्पष्ट किया कि कॉन्ग्रेस पार्टी से उसका कोई तालमेल या गठबंधन नहीं है और लिखा कि लोग कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा फैलाए जा रहे तरह-तरह के भ्रमों में न आयें। मायावती के इस ट्वीट से कॉन्ग्रेस की स्थिति साफ हो जाती है कि यूपी में उसके साथ कोई नहीं है।
बीएसपी एक बार फिर साफ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आयेदिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में कतई ना आयें।
अपने एक अन्य ट्वीट में मायावती ने कॉन्ग्रेस को लगभग लताड़ लगाते हुए लिखा कि वो यूपी में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, चाहें तो सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दे लेकिन ज़बरदस्ती ये भ्रांति न फैलाए कि उसने यूपी में गठबंधन के लिए 7 सीटें छोड़ दी हैं।
कांग्रेस यूपी में भी पूरी तरह से स्वतंत्र है कि वह यहाँ की सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करके अकेले चुनाव लड़े आर्थात हमारा यहाँ बना गठबंधन अकेले बीजेपी को पराजित करने में पूरी तरह से सक्षम है। कांग्रेस जबर्दस्ती यूपी में गठबंधन हेतु 7 सीटें छोड़ने की भ्रान्ति ना फैलाये।
ऐसा ही कुछ हुआ पश्चिम बंगाल में, जहाँ बीते रविवार को पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन की अपनी सभी संभावनाओं को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बता दें कि पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस की यह घोषणा तब की गई जब वाम मोर्चे ने 42 संसदीय सीटों में से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा दो दिन पहले ही कर दी थी।
पश्चिम बंगाल के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोमेन नाथ मित्रा ने कहा, “वाम मोर्चे ने 15 मार्च को पश्चिम बंगाल में 25 लोकसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट की घोषणा की, जिसमें पश्चिम बंगाल की कॉन्ग्रेस के साथ कोई चर्चा नहीं की गई। वाम मोर्चे में CPI (M) और उसके सहयोगी दलों के एकजुट होने की वजह से, हम राज्य में प्रस्तावित सीट बँटवारे संबंधी संभावनाओं पर विराम लगा रहे हैं और बंगाल में स्वयं के बल पर बीजेपी और तृणमूल कॉन्गेस से लड़ने का फैसला किया है।”
यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से कॉन्ग्रेस पार्टी का दामन कोई थामने को तैयार नहीं है उससे उसके बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है। अब देखना होगा कि चुनावी दौर में कॉन्ग्रेस को अभी और कितने झटके लगने बाकी हैं।
चुनाव की तारीख़ों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। साथ ही इसके उल्लंघन की खबरें भी आनी शुरू हो गईं। आपको बता दें कि आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में गाजियाबाद के साहिबाबाद व इंदिरापुरम में पुलिस ने 24 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। जिसमें सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार उर्फ मुन्नी भी शामिल हैं। इनके ऊपर आरोप है कि ये वसुंधरा सेक्टर-11 में होली मिलन समारोह में चुनावी भाषण दे रहे थे।
इंदिरापुरम थाना प्रभारी निरीक्षक संदीप कुमार सिंह ने बताया कि वसुंधरा सेक्टर-11 में बिना अनुमति होली मिलन समारोह मनाया जा रहा था। इसमें सुरेंद्र कुमार को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। इस दौरान उन्होंने चुनावी भाषण तो दिए ही, साथ ही वोट भी माँग लिए। यह सीधे तौर पर आचार संहिता का उल्लंघन बताया जा रहा है। फ्लाइंग स्क्वायड की तहरीर पर पुलिस ने दोनों मामलों में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की है। फ्लाइंग स्क्वॉड ने सुरेंद्र कुमार सहित जयचंद शर्मा, जे पी शर्मा, सी पी शर्मा और विजय भारद्वाज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। मामले की जाँच की जा रही है। आरोप सिद्ध होने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
खबरों की मानें तो इससे जुड़ा एक विडियो भी सामने आया है। इस वीडियो में सुरेंद्र कुमार उर्फ मुन्नी सार्वजनिक होली मिलन कार्यक्रम में वोट माँगते दिख रहे हैं। इस मामले पर सुरेंद्र कुमार का कहना है कि होली समारोह में जाना कोई गुनाह नहीं है और अगर उनके खिलाफ केस हुआ है तो इसका जवाब कानूनी प्रक्रिया के तहत देंगे। इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सब भाजपा की साजिश है। बीजेपी के नेता तमाम जगह भाषण दे रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।