जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने की राह में चीन ने एक बार फिर अपनी टांग अड़ा दी। यह चौथा मौका है जब चीन ने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने से बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो पावर का इस्तेमाल किया। चीन के इस रवैये पर भारत ने कठोर आपत्ति दर्ज कराई है।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत के लिए यह एक झटका माना जा सकता है। लेकिन अंत में जिस तरह से अमेरिका और अन्य सदस्य देशों ने आतंक के खिलाफ एक तरफा पक्ष रखा, ‘अन्य कड़े कदम उठाने पर मजबूर’ जैसे शब्दों के साथ चीन को खुले तौर पर लताड़ा, कूटनीतिक स्तर पर इसे भारत की बड़ी सफलता मानी जा रही है।
अकेला पड़ा चीन
अमेरिका की ओर से जारी बयान में मसूद अजहर को साफ तौर पर ग्लोबल आतंकी कहा गया। तीखे शब्दों का प्रयोग करते हुए अमेरिकी बयान में इस तथ्य को उभारा गया है कि चौथी बार चीन ने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित होने से बचाया है। और उसे सुरक्षा परिषद को अपना काम करने देने में बाधक नहीं बनना चाहिए। दक्षिण एशिया में शांति और स्थायित्व के लिए चीन अगर प्रतिबद्ध है तो उसे पाकिस्तान या किसी भी देश के आतंकियों को संरक्षण नहीं देना चाहिए। अंत में बयान की भाषा और सख्त हो गई, जब चीन को एक तरह की वॉर्निंग देते हुए कहा गया कि यदि आतंकियों को संरक्षण देने की आपकी नीति में बदलाव नहीं आता है तो सुरक्षा परिषद के सदस्य देश अन्य कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर होंगे।
भारत में अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति की सिफारिशों पर खुल कर चर्चा नहीं की जा सकती है। लेकिन हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध सूची में नाम शामिल कराने और सूची को अपडेट करने के अपने प्रयास जारी रखेंगे।
US Embassy Spokesperson: As UN sanctions committee deliberations are confidential, we don’t comment on specific matters, but we will continue working with the sanctions committee to ensure that the designations list is updated and accurate. pic.twitter.com/0UCl4yq0NI
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी मसूद अजहर के ही आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने ली थी। इसके बाद अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश किया था।
मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी नेतराम के परिसरों पर आयकर विभाग ने छापा मारा। इस छापे में करोड़ों रुपए की संपत्ति, 1.64 करोड़ रुपए नकद और 300 करोड़ रुपए से भी अधिक की बेनामी संपत्तियों के दस्तावेज जब्त किए गए। ये छापे उत्तर प्रदेश कैडर के 1979 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी से जुड़े लखनऊ, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में स्थित दर्जन भर ठिकानों पर मारे गए। छापे में 50 लाख रुपए के मॉन्ट ब्लांक पेन, 2.2 करोड़ रुपए नकद, मर्सडीज समेत चार लग्जरी गाड़ियाँ भी जब्त की गई। अधिकारियों ने बुधवार (मार्च 13, 2019) को यह जानकारी दी।
अब अफ़सर भी तो मायावती का ख़ास था…50 लाख के पेन से ही लिखेगा ना..या हमारी आपकी तरह Reynolds यूज़ करेगा ? ?#NetRam#ITRaids
विभाग को इस बात की पक्की जानकारी मिली थी कि पूर्व शीर्ष नौकरशाह और उनके सहयोगियों ने नोटबंदी के बाद और उससे पहले कोलकाता की शेल कंपनियों के नाम पर 95 करोड़ रुपए की फर्जी प्रविष्टियाँ दिखाई है। अधिकारियों के अनुसार, तलाशी में विभाग ने लखनऊ और दिल्ली के तीन घरों से 1.64 करोड़ रुपए की नकदी बरामद की। अधिकारियों को यह भी पता चला है कि 50 लाख रुपए एक बैंक लॉकर में रखे हैं, जिसे जल्द खोला जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि नकदी में दो-दो हजार रुपये के नए नोटों की गड्डियाँ बरामद की गईं। पूर्व मुख्य सचिव नेतराम बसपा से लोकसभा चुनाव की टिकट पाने की बातचीत में लगे थे और इसी दौरान वह आयकर विभाग की जाँच के दायरे में आए।
नेतराम बसपा शासनकाल में राज्य के मुख्य सचिव थे। आयकर विभाग ने उनके बैंक खातों को भी जाँच के घेरे में ले लिया है। विपुलखंड स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नेतराम और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर जो भी खाते थे, उन्हें सीज कर दिया गया है। छापेमारी के दौरान स्टेशन रोड स्थित उनके घर से कई क़ीमती चीजें बरामद की गई हैं। उन पर टैक्स चोरी के मामले में कार्रवाई की जा सकती है। यूपी में मायावती की सरकार के दौरान आईएएस नेतराम सबसे ताक़तवर अधिकारियों में से एक थे। वह 2007 से 2012 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के प्रमुख सचिव भी रहे हैं।
ख़बरों के अनुसार, इनकम टैक्स की 12 सदस्यीय टीम के साथ गोमतीनगर के विशाल खंड स्थित नेतराम के आलीशान बंगले के भीतर अभी भी सुरक्षाकर्मियों की बड़ी टीम अभी भी मौजूद है। टीम कोलकाता में एक कंपनी को लाभ दिए जाने को लेकर पूछताछ की जा रही है। छापेमारी में करीब 87 करोड़ कैश बरामद हुआ। जांच टीम ने नेतराम सहित पूरे परिवार को घर से निकलने की इजाजत नहीं दी। सभी के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए हैं। बंगले के अगले व पिछले हिस्से को लॉक कर दिया गया।
मायावती के शासनकाल के दौरान उनका प्रभाव ऐसा था कि बड़े-बड़े नेताओं को भी उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। उनके आवास पर नेताओं की लम्बी लाइन लगी रहती थी। कैबिनेट मंत्रियों तक को उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। क़यास लगाए जा रहे हैं कि आयकर विभाग के अलावा अन्य केंद्रीय एजेंसियाँ भी उन पर शिकंका कस सकती है। 1979 बैच के अधिकारी नेतराम कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी काबिज़ रहे हैं।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी हथियार सौदागर संजय भंडारी के साथ अपने रिश्तों व संदेहास्पद ज़मीन सौदों में बुरी तरह घिरते नज़र आ रहे हैं। उन पर पहले से ही राफ़ेल मुद्दे पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकने और देश की सुरक्षा को हलके में लेने का आरोप लगा रही भाजपा ने OpIndia के सनसनीखेज़ ख़ुलासे के बाद राजनीतिक हमले और तेज़ कर दिए हैं। संदेहास्पद व्यापारियों के साथ उनके व्यवसायिक संबंधों और ज़मीन सौदों पर OpIndia ने कल दस्तावेज़ जारी करते हुए राफ़ेल सौदे पर उनके हमलों की मंशा पर सवालिया निशान लगाए थे।
अब तक राफ़ेल मुद्दे पर राहुल गाँधी के निशाने पर रही भाजपा ने आज तीन-तीन कद्दावर मंत्रियों को राहुल गाँधी के खिलाफ़ मैदान में उतारा है।
पहला हमला स्मृति ईरानी का
सबसे पहले मोर्चा संभालते हुए केन्द्रीय मंत्री और 2014 में राहुल गाँधी को अमेठी लोकसभा सीट पर कड़ी टक्कर देने वाली स्मृति ईरानी ने बुधवार को नई दिल्ली में एक प्रेस वार्ता कर राहुल गाँधी पर तीखे सवाल दागे। ‘गाँधी-वाड्रा परिवार’ पर खुद संदेहास्पद ज़मीन घोटाले करने के साथ देश के रक्षा सौदों की दिशा अपने निजी हितों की ओर मोड़ने का प्रयास करने का आरोप भी लगाया। साथ ही उन्होंने एक राजनीतिक दल के रूप में कॉन्ग्रेस पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देना इस दल के ‘मूल्यों’ में शामिल है।
राहुल गाँधी को हथियार सौदों के बिचौलिये संजय भंडारी के साथ जोड़ने वाली OpIndia की खबर का उल्लेख करते हुए स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राफ़ेल सौदे के विरोध द्वारा राहुल गाँधी न केवल राजनीतिक हित साधना चाहते थे बल्कि अपनी और अपने परिवार के आर्थिक हित भी गलत तरीके से साधना चाहते थे। उन्होंने कहा, “राहुल गाँधी ने देश की रक्षा तैयारियों को केवल इसलिए खतरे में डाल दिया क्योंकि उनके मित्र संजय भंडारी को राफ़ेल से ‘डील’ नहीं मिली”।
राहुल गाँधी पर राफ़ेल की प्रतिद्वंद्वी कंपनी यूरोफाइटर से अंदरखाने सौदेबाज़ी के भी आरोप लग रहे हैं। बताते चलें कि 126 लड़ाकू विमानों के पहले टेंडर के लिए राफ़ेल और यूरोफाइटर में कड़ी प्रतिस्पर्धा हुई थी, जिसमें राफ़ेल ने बाज़ी मारकर यह सौदा हासिल किया था। इसी सौदे में फ़ेरबदल कर 126 ख़ाली जहाज़ों की बजाय मोदी सरकार ने 36 युद्ध-को-तैयार लड़ाकू विमानों का ऑर्डर राफ़ेल को दिया था, जिसे राहुल गाँधी काफ़ी समय से घोटाला साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
जिस बिज़नेसमैन संजय भंडारी के साथ राहुल गाँधी का नाम जुड़ रहा है, उस पर ईडी की जाँच भी जारी है और उस पर कॉन्ग्रेस सरकार के समय कई रक्षा और कच्चे तेल के सौदों में ‘kickbacks’ लेने का आरोप लग रहा है।
देश की विश्वसनीयता रसातल में
स्मृति ईरानी के बाद देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने फ़ेसबुक ब्लॉग पर लिखते हुए राहुल गाँधी के साथ-साथ भूतपूर्व यूपीए सरकार के सारे घोटालों को लपेटा। सालों तक सत्ता में रहे राजनीतिक दलों के ‘फ़ोन बैंकिंग’ (घोटाले), टैक्स चोरी, मनी लॉन्डरिंग आदि जैसे हथकण्डों से देश को आर्थिक रूप से लकवे की स्थिति में पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार करार देते हुए जेटली ने अगस्ता-वेस्टलैंड, खाद घोटाले से लेकर बोफ़ोर्स और पनडुब्बियों तक हर घोटाले में कॉन्ग्रेस और उसके नेताओं की छाप होने की बात कही।
OpIndia के ख़ुलासे का अव्यक्त ज़िक्र करते हुए जेटली ने कहा कि राजनीति में घोटालों और भ्रष्टाचार के तौर-तरीके बदल चुके हैं। सीधे रिश्वत लेने की बजाय बिचौलियों के ज़रिए अनुचित लाभ के लेन-देन की ‘स्वीटहार्ट डील्स’ करते हैं, और यह बिचौलिए राजनेताओं को अपने कृत्यों की ज़िम्मेदारी और दण्ड से भी बचा ले जाते हैं।
‘मिलिट्री-मैन’ राठौर का क्षोभ
भारतीय सेना में सक्रिय सेवाएँ देने वाले और जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा ले चुके सूचना एवं प्रसारण मंत्री मेजर राज्यवर्धन सिंह राठौर ने ट्वीट कर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष से संजय भंडारी और यूरोफाइटर से अपने संबंधों का स्पष्टीकरण देने की मांग की। साथ ही यह सवाल भी दागा कि क्या वे राफ़ेल सौदे का विरोध भी अपने मित्रों को लाभ पहुँचाने के लिए कर रहे थे।
Rahul Gandhi has been repeatedly asking questions on the Rafale Deal but is he ready for the answers?
He must explain his links with arms dealer Sanjay Bhandari and his meeting with Eurofighter officials. Is that why he opposes the purchase of Rafale?https://t.co/S96IzrB5Z6
स्मृति ईरानी की प्रेस वार्ता के बाद से एक ‘अनौपचारिक’ नोट मीडिया और सोशल मीडिया में चक्कर काट रहा है। (अपुष्ट और अज्ञात उत्पत्ति का, होने के कारण हम उसे इस रिपोर्ट में संलग्न नहीं कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस या किसी भी अन्य सम्बंधित पक्ष का आधिकारिक बयान आने पर हम इस रिपोर्ट को update कर देंगे)।
इस नोट के अनुसार, वर्ष 2008 में राहुल गाँधी द्वारा जमीन खरीदने के बाद वर्ष 2012 में उन्होंने प्रियंका वाड्रा को जमीन गिफ्ट की थी। हालाँकि, भूमि सौदे को स्वीकार करते हुए, कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी और भूमि विक्रेता एचएल पाहवा के साथ संबंधों पर चुप्पी साध रखी है। एचएल पाहवा ने रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी वाड्रा को भी जमीन बेची थी। OpIndia ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि किस तरह से इस जमीन को बाद में एचएल पाहवा द्वारा रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी वाड्रा से बढ़ी हुई कीमत पर वापस खरीद लिया गया था। असल में एचएल पाहवा ने भुगतान के लिए सीसी थम्पी से पैसे उधार लिए थे, जिसने हथियार डीलर संजय भंडारी के साथ कई वित्तीय सौदे किए हैं।
कॉन्ग्रेस द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के कारण राहुल गाँधी के लिए इस मुद्दे से बाहर निकलना अब और भी जटिल हो गया है। इस आधी-अधूरी व्याख्या ने गांधी-वाड्रा परिवार और पाहवा के आर्थिक संबंधों को और अधिक स्पष्ट कर दिया है।
रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा ने भी पाहवा से ज़मीन खरीदी थी और उसे वापस ऊँचे दामों पर बेच दिया था। अब कॉन्ग्रेस ने स्वीकार किया है कि भूमि को राहुल गाँधी ने एचएल पाहवा से खरीदा था और प्रियंका गाँधी वाड्रा को उपहार में दिया था।
खबर लिखे जाने तक इस पूरे प्रकरण में राहुल गाँधी के एचएल पाहवा, सीसी थम्पी और संजय भंडारी के बीच के लिंक पर अभी भी कोई सीधा बयान नहीं दिया गया है।
कॉन्ग्रेस परिवार के सामूहिक प्रयासों से किए गए घोटालों पर ऑपइंडिया द्वारा किए गए खुलासे के बाद भाजपा नेता कॉन्ग्रेस परिवार से लगातार सवाल कर रहे हैं। यह मामला राहुल गाँधी, उनके जीजा जी रॉबर्ट वाड्रा, हथियारों के सौदागर संजय भंडारी और ED के रडार पर आए NRI बिजनेसमैन सीसी थंपी के बीच जमीन डील का है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी के बाद सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने भी OpIndia की न्यूज़ ट्वीट करते हुए राफेल डील पर हर दिन मोदी सरकार से सवाल करने वाले राहुल गाँधी से सवाल किए हैं कि क्या राहुल गाँधी इस जमीन घोटाले और हथियार डीलर के बीच के सम्बन्ध पर जवाब देने के लिए तैयार हैं?
Rahul Gandhi has been repeatedly asking questions on the Rafale Deal but is he ready for the answers?
He must explain his links with arms dealer Sanjay Bhandari and his meeting with Eurofighter officials. Is that why he opposes the purchase of Rafale?https://t.co/S96IzrB5Z6
राज्यवर्धन राठौड़ ने OpIndia की लिंक शेयर करते हुए अपने ट्वीट (अंग्रेजी) में लिखा, “Rahul Gandhi has been repeatedly asking questions on the Rafale Deal but is he ready for the answers? He must explain his links with arms dealer Sanjay Bhandari and his meeting with Eurofighter officials. Is that why he opposes the purchase of Rafale?”
हिंदी: “राहुल गाँधी बार-बार राफेल डील पर सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन क्या वो इस आरोप पर जवाब के देने के लिए तैयार हैं? उन्हें हथियारों के सौदागर संजय भंडारी और यूरोफाइटर अधिकारियों के साथ उनकी मुलाकात के बारे में बताना चाहिए। क्या वह इसी वजह से राफेल की खरीद का विरोध कर रहे हैं?”
दरअसल, OpIndia ने गाँधी और वाड्रा परिवार के ज़मीन सौदों की डिटेल दी है। जिसमें बताया गया है कि राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा और रॉबर्ट वाड्रा ने ज़मीनें ना सिर्फ बाज़ार से सस्ते दामों पर खरीदी बल्कि कुछ मामलों में इन्हें बाद में उसी शख्स को बेच दिया जिससे ज़मीन खरीदी गई थी। इस व्यक्ति का नाम है एचएल पहवा! पहवा के तार सीसी थंपी और भंडारी से भी जुड़े हैं। राहुल गाँधी ने एचएल पहवा से एक ज़मीन खरीदी, ये 6.5 एकड़ ज़मीन हरियाणा के हसनपुर में है। आरोप है कि ये ज़मीन कम दामों पर खरीदी गई, ज़मीन का ये सौदा ₹26 लाख 47 हज़ार का था।
ऑपइंडिया द्वारा संदिग्ध भूमि सौदों में राहुल गाँधी को संजय भंडारी से जोड़ने वाली जानकारी मीडिया में पहुँचाने के बाद भाजपा ने कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी को परिवार सहित जमीन घोटाले में लिप्त होने के आरोप पर जमकर घेर लिया है। आज दिन में प्रेस वार्ता के माध्यम से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी को घोटाले में शामिल होने पर और इस मामले में अन्य लोगों से सम्बन्ध होने पर खूब घेरा। भाजपा ने आज दावा किया कि 70 सालों में संस्थागत भ्रष्टाचार कॉन्ग्रेस की देन रहा है और पिछले 24 घंटों में समाचार माध्यमों से सामने आए तथ्य दर्शाते हैं कि कैसे गाँधी-वाड्रा परिवार ने पारिवारिक भ्रष्टाचार को परिभाषित किया है।
इसके साथ ही अरुण जेटली ने भी कॉन्ग्रेस के घोटालों के कच्चे चिट्ठे पर अपने ब्लॉग में OpIndia की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कॉन्ग्रेस पर कटाक्ष किए। इसके साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि पीएम मोदी की अगुवाई में NDA सरकार सत्ता में वापसी करेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार के खाते में कामयाबियों की लंबी लिस्ट है। ये सरकार स्कैम फ्री सरकार के तौर पर याद रखी जाएगी। अपनी बात के समर्थन में वो 2014 के पहले का हवाला देते हैं। जेटली ने कहा कि आप याद करिए कि यूपीए पार्ट-2 में हर एक साल भ्रष्टाचार के मामले अलग अलग रूप में सामने आते थे। जनमानस में ये सामान्य धारणा बन चुकी थी कि यूपीए सरकार के लिए विकास का मतलब सिर्फ भ्रष्टाचार का विकास है।
#CongArmsDealerWeb | “If ‘capital creation’ of Gandhi family is subjected to forensic audit, facts will speak”: Arun Jaitley on Rahul Gandhi’s land deal link to Arms dealer Sanjay Bhandarihttps://t.co/jGEwf9Jm7f
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग के अंत में लिखा, “जब मैं इस ब्लॉग को अंतिम रूप दे रहा था, तब एक ऑनलाइन साइट (ऑपइंडिया) द्वारा विस्तृत गाँधी परिवार (गाँधी-वाड्रा परिवार) को लेकर किया गया एक गहन विश्लेषण सामने आया। जब भी भारतीय समाज में एक साफ-सुथरी छवि के साथ सार्वजनिक जीवन जीने की बात होती है तो हमेशा एक बात उठती है कि कई भारतीय नेता और उनसे जुड़े लोग बिना कोई कार्य किए ही बेहतरीन जीवन जी रहे हैं। यह खोजी ख़बर आपके ऐसे सवालों का जवाब देती है कि गाँधी-वाड्रा परिवार कैसे ऐसा कर पाता है।”
उन्होंने आगे लिखा, “जबकि कई लोग घूस आदि जैसे पारम्परिक तरीके से भ्रष्टाचार के रास्ते अपनाते रहे हैं, इस परिवार ने नया तरीक़ा इजाद किया है। ‘व्हीलर डीलर्स’ और ‘फ्लाय बाय नाइट ऑपरेटर्स’ होने के कारण आपको ‘स्वीटहार्ट डील्स’ पाने के योग्य पाया जाता है। बस थोड़े से निवेश के साथ, कुछ लोगों के लिए बहुत बड़े फ़ायदे का रास्ता बनाया जाता है क्योंकि उनके ज़रिए और पैसा बनाया जा सकता है।”
आगे अरुण जेटली इस पूरे नेक्सस की बारीकी बताते हुए लिखते हैं, “पोलिटिकल इक्विटी के कारण आपकी पैठ बनती है। इसके कारण आप बाहर से भीतर के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। जब इनका खुलासा होता है तो इसका लाभ उठाने वाले लोग ‘बिजनेस करने की चतुराई’ के नाम पर छुप जाते हैं। अगर कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा पैसा बनाने के तरीक़ों की फोरेन्सिक जाँच हो तो तथ्य अपने आप ही सामने आकर बोलेंगे। शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए।”
इससे पहले भाजपा सहित उनके कई नेताओं ने ऑपइंडिया के इस ख़ुलासे का ज़िक्र करते हुए राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस को आड़े हाथों लिया। स्मृति ईरानी ने इस पर बात करते हुए प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि बीते चौबीस घंटों में इस ख़ुलासे ने दिखा दिया है कि गाँधी-वाड्रा परिवार के लिए भ्रष्टाचार एक पारिवारिक उद्यम है।
ऑपइंडिया ने कुछ संदिग्ध भूमि सौदों के माध्यम से राहुल गाँधी को संजय भंडारी से जोड़ने वाली जानकारी मीडिया में पहुँचाने के बाद कॉन्ग्रेस के गलियारों में हड़कंप का माहौल देखने को मिल रहा है। OpIndia के खुलासे के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बुधवार (मार्च 13, 2019) को कॉन्ग्रेस को जमकर घेरा। भाजपा ने आज दावा किया कि 70 सालों में संस्थागत भ्रष्टाचार कॉन्ग्रेस की देन रहा है और पिछले 24 घंटों में समाचार माध्यमों से सामने आए तथ्य दर्शाते हैं कि कैसे गाँधी-वाड्रा परिवार ने पारिवारिक भ्रष्टाचार को परिभाषित किया है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गाँधी परिवार के जमीन घोटाले की बात मीडिया के सामने रखी। इसमें राहुल गाँधी, उनके जीजा जी रॉबर्ट वाड्रा और श्रीमति प्रियंका गाँधी वाड्रा का नाम भी शामिल है। स्मृति ईरानी ने कहा कि जीजा जी के साथ साले साहब भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। केंद्रीय मंत्री ने कॉन्ग्रेस पर ‘फैमिली पैकेज भ्रष्टाचार’ करने का आरोप लगाया। स्मृति ईरानी ने कहा कि गाँधी परिवार ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। एचएल पाहवा के यहाँ पर ED की रेड में राहुल गाँधी के नाम के दस्तावेज पाए गए।
#LIVE on #CongArmsDealerWeb | रिपब्लिक भारत की खबर पर बीजेपी की प्रेस कॉन्फ्रेंस: जीजा-साले ने मिलकर किया घोटाला
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संवाददाताओं से कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा से संबंधित सौदे और पेट्रोलियम संबंधित सौदे में संजय भंडारी और सीसी थंपी के तार जुड़े हैं। स्मृति ईरानी ने जोर दिया कि रॉर्बट वाड्रा के खिलाफ जाँच जारी है और मीडिया में जो रिपोर्ट आ रही है, उसमें मिसेज वाड्रा यानी प्रियंका गाँधी का उल्लेख भी मिलता है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी के विस्तृत परिवार पर हुए इस खुलासे को लेकर कहा कि पैसा बनाने के लिए इस परिवार के लोग नए तरीके अख्तियार करते रहते हैं, “जबकि कई लोग घूस आदि जैसे पारम्परिक तरीके से भ्रष्टाचार के रास्ते अपनाते रहे हैं, इस परिवार ने नया तरीक़ा इजाद किया है। ‘व्हीलर डीलर्स’ और ‘फ्लाय बाय नाइट ऑपरेटर्स’ होने के कारण आपको ‘स्वीटहार्ट डील्स’ पाने के योग्य पाया जाता है। बस थोड़े से निवेश के साथ, कुछ लोगों के लिए बहुत बड़े फ़ायदे का रास्ता बनाया जाता है क्योंकि उनके ज़रिए और पैसा बनाया जा सकता है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गठबंधन धर्म में विश्वास रखते हैं। किसी के व्यवहार इसी बात से लगाया जाता है कि वे अपने से छोटों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं। कोई आपसे उम्र में छोटा हो सकता है, कोई पद में, कोई प्रसिद्धि में और राजनीतिक दलों के मामले में संख्याबल यह तय करता है कि कौन छोटा और कौन बड़ा। स्पष्ट है कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा सबसे बड़ी है, राजग में भी बड़े भाई की भूमिका में है। जहाँ कॉन्ग्रेस हर एक राज्य में गठबंधन बनाने के लिए तरस रही है, भाजपा ने सभी राज्यों में लगभग अपना गठबंधन फाइनल कर लिया है।
नरेंद्र मोदी को हिटलर और तानाशाह कहने वाले विपक्षी दल एक-दूसरे से ख़ुश नहीं हैं और पल-पल पाला बदल रहे हैं जबकि मोदी सभी गठबंधन साथियों को मिला कर आगामी लोकसभा चुनाव की रणभेड़ी बजा चुके हैं। चाहे वो दूर दक्षिण में तमिलनाडु हो या उत्तर-पूर्व में असम, चाहे वो दिल्ली से सटा उत्तर प्रदेश हो या सिख बहुल पंजाब- भाजपा ने हर जगह बिना किसी लाग-लपेट के नया गठबंधन बनाया है और पुराने साथियों को छिटकने से रोका है।
केजरीवाल दिल्ली में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन करने का सपना देख रहे। कॉन्ग्रेस उन्हें ठुकरा रही। राहुल गाँधी को यूपी के महागठबंधन में एक भी सीट नहीं मिली। बिहार में पेंच फँसा हुआ है। ये कैसे मिला कर चलने वाले नेता हैं जो मंच पर तो एक साथ दिखते हैं लेकिन परदे के पीछे एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं। भाजपा को अलोकतांत्रिक और तानाशाही पार्टी बताने वालों को उनसे सीखना चाहिए कि गठबंधन साथियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। यहाँ हम भाजपा द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण गठबंधनों के बारे में बात कर बताएँगे कि कैसे राजग इस फ्रंट पर सबसे ऊपर नज़र आ रहा है। मोदी-शाह की जोड़ी ने जो किया है, उस से आगामी चुनाव में स्वतः ही उनका पलड़ा भारी हो गया है।
अन्नाद्रमुक को मना कर तमिलनाडु में विजयकांत को जोड़ा
2011 से 2016 तक तमिलनाडु में विपक्ष के नेता रहे अभिनेता विजयकांत की बात द्रमुक और अन्नाद्रमुक, दोनों पार्टियों से चल रही थी। उनकी पार्टी डीएमडीके 2014 में राजग का हिस्सा थी लेकिन 2016 तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में उसने वामपंथी संगठनों के साथ गठबंधन किया और अधिकतर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 2011 में तमिलनाडु विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही डीएमडीके को 2016 में एक भी विधानसभा सीट नहीं मिली। ऐसी स्थिति में राज्य की सत्ताधारी पार्टी अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन कर भाजपा को निश्चिंत हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने अन्नाद्रमुक से साफ़-साफ़ कह दिया कि डीएमडीके कितनी भी छोटी पार्टी हो, उसे गठबंधन में लेना चाहिए। अन्नाद्रमुक के नेताओं के कई बार खुलेआम कहा कि वे विजयकांत के साथ इतने मोलभाव नहीं कर सकते लेकिन भाजपा के दबाव के कारण मज़बूरी में उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
अंततः विजयकांत की पार्टी को 4 सीटें देकर मना लिया गया और तमिलनाडु में भाजपा को एक और गठबंधन सहयोगी मिल गया। यह दिखाता है कि भाजपा ने 37 सांसदों वाली लोकसभा में देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी अन्नाद्रमुक के साथ रहते तमिलनाडु में एक छोटे दल को आदर दिया, वो भी उसकी पुरानी गलती को भूल कर। डीएमडीके वामपंथियों के साथ चली गई थी और भाजपा के पास उस से नाराज़ होने के कई वजह थे लेकिन भाजपा ने सब भूल कर डीएमडीके को अपनाया। यह प्रधानमंत्री की सबको साथ लेकर चलने की नीति को स्पष्ट करता है।
गालियाँ खा कर भी महाराष्ट्र में शिवसेना और यूपी में राजभर को साथ बनाए रखा
महाराष्ट्र में भाजपा के लिए संकट खड़ा हो गया था। शिवसेना सालों से पार्टी पर हमलावर थी। यहाँ तक कि शिवसेना, उसके नेताओं और पार्टी के मुखपत्र सामना ने प्रधानमंत्री मोदी को कई बार निशाना बनाया। जिस तरह से शिवसेना के टुच्चे नेता भी मोदी को लेकर अनाप-शनाप बक रहे थे, भाजपा की उसके साथ गठबंधन न होने की उम्मीद थी। शिवसेना ने सरकार की हर योजना की आलोचना की, गठबंधन तोड़ने की धमकी दी और कई बार तो संसद तक में सरकार का साथ नहीं दिया। लेकिन, देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी ने काफ़ी शांति से मैच्युरिटी का परिचय देते हुए न सिर्फ़ गठबंधन बचाया बल्कि शिवसेना को मना कर सीटों की संख्या भी फाइनल कर ली। हाँ, गडकरी ने शिवसेना नेताओं को पीएम के ख़िलाफ़ अपशब्द न बोलने की चेतावनी ज़रूर दी।
अगर कॉन्ग्रेस की सहयोगी पार्टी एनसीपी उसे इस तरह गालियाँ देनी शुरू कर दे और हर एक मंच से पवार सोनिया गाँधी की आलोचना करने लगे तो शायद ही महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस-राकांपा का गठबंधन हो। भाजपा और कॉन्ग्रेस में यही अंतर है।
लोकसभा चुनाव: राजभर के बदले तेवर, कहा- ‘2019 में मोदी जी फिर बनेंगे PM’https://t.co/VrdX1dryYg
इसी तरह सुहेलदेव समाज के नेता सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओपी राजभर ने योगी कैबिनेट का हिस्सा होकर भी सीएम योगी और पीएम मोदी की ख़ूब आलोचना की। राजभर ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा भी था कि वह अपने नेता स्वयं हैं। योगी को भी अक्सर तानाशाह बताने की कोशिश की जाती है लेकिन न सिर्फ यूपी में राजभर के सुर बदल गए बल्कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का फिर से संकल्प लिया। इस पार्टी के उम्मीदवारों का जमानत जब्त कराने का पुराना इतिहास रहा है और न तो यूपी में योगी को उनकी ज़रूरत है और न केंद्र में मोदी को (एसबीएसपी के 4 विधायक व शून्य सांसद हैं), लेकिन फिर भी राजग ने उन्हें छिटकने नहीं दिया। यह दर्शाता है कि भाजपा छोटे दलों के साथ भी अच्छी तरह पेश आती है।
असम में एजीपी को 2 महीने में ही वापस मना लिया
असम में भाजपा और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट मिल कर बहुमत की स्थिति में हैं। 128 सदस्यों वाली विधानसभा में अकेले भाजपा के 61 विधायक हैं। एक निर्दलीय भी है। अगर सरकार की स्थिति को देखें तो मुख्यमंत्री सर्बानंद सोणोवाल को अपनी सरकार बचाने या चलाने के लिए असम गण परिषद (एजीपी) की कोई ज़रूरत नहीं है। नागरिकता संशोधन विधेयक भाजपा के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक है और इसके विरोधियों को भाजपा करारा जवाब देती आई है। एजीपी ने भी इसी विधेयक को लेकर असम सरकार से समर्थन वापस ले लिया और अपने मंत्रियों को भी इस्तीफा दिला दिया। पार्टी के पास एक भी लोकसभा सांसद नहीं है। 2 महीने पहले राजग से छिटके एजीपी को आज बुधवार को भाजपा ने फिर अपने खेमे में मिला लिया।
एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने इस अवसर पर साफ़-साफ़ कहा कि वे भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निवेदन के कारण पार्टी में वापस आए हैं। अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सुदूर असम में एक सांसदों वाली पार्टी से भी स्वयं निवेदन करती है, यह एक बड़ी पार्टी की सौहार्दता और विनम्रता को दिखाता है। यह दिखाता है कि कैसे भाजपा सहयोगी पार्टियों की गलतियों को भी भूल जाती है और गठबंधन के लिए किसी भी प्रकार की रंजिश को आड़े नहीं आने देती।
बिहार में जदयू-लोजपा और पंजाब में अकाली दल
रामविलास पासवान मौसम वैज्ञानिक माने जाते हैं। उनकी पार्टी को मनाने के लिए भाजपा को ख़ास मेहनत करनी पड़ी। पासवान की पार्टी लोजपा से गठबंधन बचाने के लिए स्वयं अमित शाह ने कई राउंड की बैठकें की और अंततः सीटों की साझेदारी फाइनल की गई। ख़ुद नितीश कुमार लोजपा को अपने हिस्से की सीटें देने को तैयार नहीं थे लेकिन भाजपा ने जदयू को भी समझा-बुझा कर रखा और लोजपा अध्यक्ष ने मोदी को पीएम बनाने का संकल्प लिया। जिस तरह से जदयू को भाजपा से सहर्ष स्वीकार किया, वो भी एक राजनीतिक पार्टी की परिपक्वता को दिखाता है। भाजपा के धुर विरोधी लालू परिवार को राजनीती में पुनर्स्थापित करने वाले नितीश कुमार की राजग में धमाकेदार वापसी हुई और भाजपा ने सभी रंजिश भुला कर गठबंधन बनाया।
इसी तरह पंजाब में शिरोमणि अकाली दल को ले लीजिए। अकाली दल भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक है और विपक्ष द्वारा हिन्दुओं की पार्टी कही जाने वाली भाजपा के सिखों की इस पार्टी के साथ जैसे सम्बन्ध हैं, वैसे कॉन्ग्रेस के शायद ही उसकी किसी सहयोगी पार्टी से हो। कर्नाटक में रोंदू कुमारस्वामी के साथ कैसा गठबंधन चल रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। बजट सेशन के पहले दिन अकाली दल ने राजग की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। भाजपा ने समय रहते गठबंधन सुनिश्चित किया और पहले की तरह ही पंजाब में दोनों साथ चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह कुल मिला कर देखें तो राजग में इस बार 2014 के मुक़ाबले ज्यादा पार्टियाँ हैं।
कुल मिलाकर देखें तो जिसे ‘तानाशाह’ कहा जाता है, वो सबको मिला कर चल रहा है, सहयोगियों की आलोचनाओं को भी बर्दाश्त कर रहा है और नए सहयोगी भी जोड़ रहा है। लेकिन, जो मंच पर हाथ मिला कर और हाथ उठा कर साथ होने का दावा करते हुए कोलकाता से बंगलोर तक फिर रहे थे, वे एक-दूसरे की पीठ में छुरा घोप कर अलग-अलग डील फाइनल कर रहे हैं। विडम्बना भी इसे दख घूँघट से अपना सर ढक ले।
एक हिन्दू कितना धर्मपरायण हो सकता है इसकी बानगी देखने को मिली विश्व के दक्षिणी कोने में स्थित न्यूज़ीलैंड में। वहाँ एक युवक को सुपरमार्केट वालों ने भेड़ का मांस कहकर बीफ अर्थात गोमांस खिला दिया।
हुआ यह कि न्यूजीलैंड के साउथ आइलैंड में रहने वाले जसविंदर पाल एक सुपरमार्केट में गए और उन्होंने मांसाहार मांगा। उन्होंने ब्लेनहाइम काउंटडाउन मार्केट से लैंब मीट (भेड़ का मांस) खरीदा। लेकिन खाने पर पता चला कि वह गाय का मांस था। जब परिवारवालों को पता चला तो उन्होंने जसविंदर से बात करना तक बंद कर दिया।
हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और गोवंश को मारना भी पाप है। इसलिए क्षुब्ध होकर अब जसविंदर भारत आकर संतों से अपनी शुद्धि करवाना चाहते हैं। शुद्धि में चार छः हफ्ते का समय लग सकता है।
जसविंदर का कहना है कि जब उनके साथ हुए धोखे का अहसास हुआ तो वे सुपरमार्केट हर्जाना मांगने पहुंचे। वहाँ कर्मचारियों ने उनसे माफी मांगते हुए 200 डॉलर का एक गिफ्ट वाउचर ऑफर किया। लेकिन जसविंदर ने इसे लेने से इनकार कर दिया और भारत आने-जाने की फ्लाइट का खर्च मांग लिया।
जसविंदर न्यूज़ीलैंड में छोटा सा बिज़नेस चलाते हैं इसलिए भारत आने जाने का खर्च उठाने में अक्षम हैं। जसविंदर ने सितंबर 2018 में मांस खरीदा था और वे पिछले पाँच महीने से भारत आकर शुद्धि करवाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की प्रेस वार्ता के बाद आखिरकार कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी द्वारा की गई जमीन की डील को स्वीकार कर लिया गया है, लेकिन पार्टी अभी तक भी जमीन विक्रेता एचएल पाहवा और संजय भंडारी के बीच सम्बन्ध को लेकर चुप है।
आज सुबह (मार्च 13, 2019) स्मृति ईरानी ने OpIndia द्वारा किए गए खुलासे के आधार पर कहा, “एक समाचार सूत्र के माध्यम से राष्ट्र को जानकारी मिली है कि एचएल पाहवा नाम के एक व्यक्ति के यहाँ ED की रेड में उसके पास से राहुल गाँधी के साथ लेनदेन के दस्तावेज मिले हैं। जमीन की खरीददारी से संबंधित इन दस्तावेजों से ये बात सामने आई कि एचएल पाहवा के साथ राहुल गाँधी के आर्थिक संबंध हैं।”
#BREAKING on #CongArmsDealerWeb | SENSATIONAL admission by Rahul Gandhi, says ‘bought land, gave it to Priyanka Gandhi
इस अनौपचारिक नोट के अनुसार, वर्ष 2008 में राहुल गाँधी द्वारा जमीन खरीदने के बाद वर्ष 2012 में राहुल गाँधी ने प्रियंका वाड्रा को जमीन गिफ्ट की थी। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 2008 से 2012 की अवधि में, हथियार डीलर संजय भंडारी कॉन्ग्रेस सरकार के तहत सक्रिय रूप से अपने ‘बिज़नेस’ के लिए वापसी कर रहे थे और दसाँ (Dassault) के ऑफ-सेट पार्टनर बनने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास भी कर रहे थे। दसाँ ने संजय भंडारी के ऑफ-सेट पार्टनर बनने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
हालाँकि, भूमि सौदे को स्वीकार करते हुए, कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी को भूमि के विक्रेता एचएल पाहवा के साथ संबंधों पर चुप्पी ही साध रखी है। एचएल पाहवा ने रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी वाड्रा को भी जमीन बेची थी। OpIndia ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि किस तरह से इस जमीन को बाद में एचएल पाहवा द्वारा रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी वाड्रा को एक बढ़ी हुई कीमत पर वापस बेच दिया गया था। असल में एचएल पाहवा ने भुगतान के लिए सीसी थम्पी से पैसे उधार लिए थे, जिसके पास हथियार डीलर संजय भंडारी के साथ कई वित्तीय सौदे हुए हैं।
संयोगवश, कॉन्ग्रेस द्वारा की गई इस बेकार प्रतिक्रिया ने राहुल गाँधी को लेन-देन की इस प्रक्रिया को और भी जटिल बना दिया है। इस लेन-देन की प्रक्रिया की ‘व्याख्या’ करने की कोशिश करते हुए राहुल गाँधी ने परिवार और पाहवा की भूमिका को और अधिक स्पष्ट कर दिया है। रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा ने भी पाहवा से ज़मीन खरीदी थी और उसे वापस ऊँचे दामों पर बेच दिया था। अब कॉन्ग्रेस ने स्वीकार किया है कि भूमि को राहुल गाँधी ने एचएल पाहवा से खरीदा था और प्रियंका गाँधी वाड्रा को उपहार में दिया था।
इस पुरे काण्ड में राहुल गाँधी के एचएल पाहवा, सीसी थम्पी और संजय भंडारी के बीच लिंक के विवाद पर अभी भी बयान नहीं दिया गया है। एक और सवाल यह भी उठता है कि आखिर कॉन्ग्रेस के युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी इन जमीनों सौदों की फंडिंग किस तरह से कर रहे हैं?
चेन्नई का स्टेला मैरिस कॉलेज। मद्रास यूनिवर्सिटी से संबद्ध लेकिन ऑटोनमस। कैथोलिक संस्था से जुड़ा हुआ। उच्चतर शिक्षा में सिर्फ लड़कियों के लिए बहुत प्रसिद्ध। यहीं कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और ‘युवा नेता’ (जो उन्होंने खुद कहा) आज मतलब 13 मार्च को गए हुए थे। लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र राहुल गाँधी के लिए दक्षिण भारत की यह पहली यात्रा है। युवा वोटरों से कॉलेज कैंपस में उन्होंने दिल खोलकर बात की। हँसते-टहलते सारे सवालों का जवाब दिया।
शुरुआत में ही उन्होंने कॉलेज की छात्राओं को सरल नहीं बल्कि कठिन सवाल पूछने की सलाह दी थी। छात्राओं ने भी बखूबी उनका मान रखा। राफेल, मोदी, बीजेपी आदि जैसे जिन मुद्दों पर राहुल गाँधी की ‘अच्छी’ पकड़ है, उन पर उन्होंने ‘शानदार’ जवाब दिए और खूब तालियाँ भी बटोरी। लेकिन विदेश से पढ़े होने के कारण जिन देशी मुद्दों से वो आजीवन अछूते रहे, उन सवालों पर डगमगा गए और फिर से अपने ‘चिर-परिचित’ नाम को सार्थक कर दिया।
पूरा वीडियो अगर आप देखेंगे तो लगभग 37 मिनट 50 सेकंड पर खुशी नाम की छात्रा ने राहुल गाँधी से एक सवाल किया – comment on women about inequality and discrimination and how women will be benefited (महिलाओं को लेकर असमानता और भेदभाव के बारे में अपनी टिप्पणी दें और यह भी बताएँ कि महिलाओं को कैसे लाभान्वित किया जाएगा)। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने इस सवाल का जवाब लगभग ढाई मिनट (40:35) तक दिया। और इसी ढाई मिनट में उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया, जो नहीं कहा जाना चाहिए था। नहीं कहा जाना चाहिए था क्योंकि सवाल में कहीं भी बिहार-उत्तर प्रदेश नहीं था, फिर भी उन्होंने इसे जबरन घुसाया। क्यों? सिवाय राहुल के शायद ही कोई जान पाए। जो पूरा वीडियो नहीं झेल सकते हैं, उनके लिए सिर्फ वो हिस्सा भी है, जहाँ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने बिहार-यूपी का जिक्र किया है।
सत्ता की आजादी तो 47 में ही मिल गई पर मानसिक आजादी शायद कॉन्ग्रेस को आज तक नहीं मिली है। ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति तो अंग्रेजों की थी। लेकिन उसे ढोते-ढोते दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत कर देना तो कोई कॉन्ग्रेस से ही सीख सकता है। और राहुल गाँधी तो ठहरे खैर इसके अध्यक्ष ही। इसलिए खुशी को जवाब देते हुए बोल गए कि उत्तर भारत में महिलाओं की स्थिति दक्षिण के महिलाओं के मुकाबले बहुत खराब है। बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाओं की स्थिति तो और भी दयनीय है। इसके बाद वो पॉलिटकली करेक्ट होते हुए आदर्शवाद की बातें करने लगे कि महिलाएँ पुरुषों से कम नहीं… 2019 में आरक्षण दूँगा और फलान-ढिमकान!
उत्तर बनाम दक्षिण वाली बात अगर एक बार होती तो शायद उसे जुबान का फिसलना मान कर माफ़ किया जा सकता था। लेकिन नहीं। राहुल ने बहुत ही शातिराने और राजनीति से प्रेरित होकर यह बात कही। कैसे? वीडियो के 52:50 मिनट से 54:35 मिनट तक का हिस्सा सुनिए। यहाँ सुष्मिता नाम की एक छात्रा को राहुल हेलो बोलकर उसका सवाल सुने बिना ही एक मिनट तक कुछ और ही बोलते रहे। फिर सुष्मिता को सॉरी बोल कर सवाल सुना। उसने पूछा – South India is going to play a major role for making government in 2019. If you come to power, what do you plan to do for the South India? (2019 में केंद्र में सरकार बनाने में दक्षिण भारत एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। अगर आप सत्ता में आते हैं, तो दक्षिण भारत के लिए क्या करने की योजना है)? इस पर एक बार फिर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत का राग छेड़ा। मोदी सरकार को उत्तर भारत की ओर ज्यादा ध्यान देने वाला बताया और खुद को ‘संपूर्ण भारत, एक भारत’ का समर्थक।
अध्यक्ष महोदय ही जब उत्तर-दक्षिण की बातें करने लगे तो छुटभैये नेता तो लाठी लेकर खड़े होंगे ही। ऐसा ही एक टटपुंजिया नेता (विधायक) है- अल्पेश ठाकोर। पिछले साल गुजरात के साबरकांठा जिले में एक बच्ची से बलात्कार के बाद राज्य में उत्तर भारतीयों, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर स्थानीय लोगों ने हमले किए थे। इस घटना के बाद वहाँ से इन दोनों राज्यों के लोगों का पलायन भी हुआ था।
जब टूटा था ‘दुर्गा’ का दंभ
सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से 1971 में मिली जीत पर तब देश की प्रधानमंत्री को दुर्गा का प्रतीक बताया था। लेकिन शायद वाजपेयी को भी नहीं पता होगा कि प्रतीक स्वरूप कहे गए शब्द को वह सच मान लेंगी और खुद को राजनीति का भी ‘दुर्गा’ मान बैठेंगी। पर हुआ वही। 77 आते-आते इंदिरा ने खुद को दुर्गा मान लिया था – अपराजेय दुर्गा। 77 में ही इस ‘अपराजेय दु्र्गा’ को जयप्रकाश नाम के एक ‘बिहारी’ ने बिहार के ही ऐतिहासिक गाँधी मैदान से ललकारा था और तोड़ा था ऐसा दंभ, जिसे राजनीतिक इतिहास में शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा। लेकिन राहुल गाँधी चूँकि विदेश से पढ़े हैं इसलिए अपनी दादी की कहानी से शायद वाकिफ नहीं होंगे।
दादी से थोड़ा आगे बढ़ें तो राहुल गाँधी के पिताजी भी कोई कम बड़े राजनेता नहीं थे। वजह चाहे भी जो भी रहा हो लेकिन 415 सांसदों के साथ प्रधानमंत्री बनने का सपना तो वर्तमान परिस्थिति में शायद मोदी भी न देख पाएँ। लेकिन राजीव गाँधी और कॉन्ग्रेस पार्टी ने यह करिश्मा कर दिखाया था। लेकिन 1989 आते-आते हुआ क्या? वीपी सिंह और चंद्रशेखर (दोनों ही उत्तर प्रदेश के लाल) ने राजीव गाँधी की सत्ता को पलट दिया था।
समस्याएँ तो हैं…
महिलाओं को लेकर बिहार में समस्याएँ तो हैं। कोई शक नहीं। लेकिन क्यों? कभी सोचा राहुल गाँधी आपने? मैं बताता हूँ। समस्याएँ हैं क्योंकि आपकी पार्टी ने सबसे अधिक समय तक बिहार में राज किया। राज किया मतलब सच में सिर्फ राज ही किया। थोड़ा सा भी काज करते तो महिलाओं की स्थिति जो एक सामाजिक समस्या है, को जरूर सुधार पाते। क्योंकि यह सुधरता है शिक्षा से, साक्षरता से, साधन से, संसाधन से… लेकिन इसके लिए कॉन्ग्रेस में आपके बाप-दादाओं (राजनीतिक तौर पर प्रतीक स्वरूप, सच में मत समझ लीजिएगा) को काज करना पड़ता, जो उनसे शायद संभव ही नहीं था।
इसलिए हे राहुल गाँधी! अगर सत्ता किसी भी हाल में चाहिए तो केजरीवाल बन जाइए। बीजेपी के साथ जुड़ जाइए। वो मना कर दे तो दोबारा कोशिश कीजिए। न सुने तो गिड़गिड़ाइये। लेकिन आपको खुदा का वास्ता! कृपया इस देश को उत्तर-दक्षिण में मत बाँटिए।