Wednesday, October 2, 2024
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फजरुद्दीन, सलीम, अली ने मिलकर दलित संजय को मार डाला था, 6 महीने से न्याय की आस

हेट क्राइम का एक और पीड़ित परिवार पिछले 6 महीने से न्याय का इंतजार कर रहा है। पता नहीं कब उसे न्याय मिलेगा। मामला हरियाणा के फरीदाबाद जिले में अगस्त में अपनी पत्नी के परिवार के हाथों 22 वर्षीय संजय कुमार की निर्मम हत्या का है।

एक दलित हिंदू, संजय ने एक मुस्लिम महिला से शादी करने और अपने परिवार का धर्म परिवर्तित करने की माँग को स्वीकार न करने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। मुस्लिम युवती के परिवार वालों ने युवक की वीभत्स तरीके से हत्या कर दी।

संजय की मौत के बाद, उसकी माँ मंजू, मानसिक रूप से विकलांग नाबालिग भाई और पाँच साल पहले शादी के बंधन में बँध चुकी एक बहन सहित पूरा परिवार न केवल वित्तीय संकट से जूझ रहा है, बल्कि अपने प्रियजन के लिए न्याय की लड़ाई में भी खुद को अशक्त पा रहा है।

बता दें कि संजय 16 अगस्त 2018 की शाम को लापता हो गया था, एफआईआर 19 अगस्त को दर्ज की गई थी और उसका क्षत-विक्षत शरीर 21 अगस्त को पास के पहाड़ी जंगल में पाया गया था।

इस घटना से लगभग एक साल पहले, संजय ने रुखसार के साथ राजस्थान में अपने दादा के गाँव जाकर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर ली थी। दोनों आठ महीने बाद फरीदाबाद लौट आए, जब रुखसार, जो अब खुद को रुक्मिणी कहती थी, गर्भवती हो गई। लड़के की माँ मंजू के अनुसार, रुखसार के परिवार ने उसे उसके पाँच महीने के भ्रूण का गर्भपात कराने और उसके माता-पिता के घर लौटने के लिए मजबूर किया। फिर भी, दोनों ने लगातार संपर्क बनाए रखा था।

मंजू के अनुसार, रुखसार के पिता फजरुद्दीन खान और भाई सलीम खान ने 15 अगस्त को संजय को फोन किया था, जब वह राजस्थान में था, और उसे कॉलोनी लौटने के लिए मना लिया, ताकि दोनों पक्ष प्रेमी युगल के विवाह का मामला सुलझा सकें। अगले दिन, सलीम और फजरुद्दीन संजय के घर मोटरसाइकिल पर आए और उसे ले गए।

वे संजय को जंगल में ले गए, दो पुरुषों की मदद से इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया और उसके शरीर को सड़ने के लिए छोड़ दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जब संजय का मृत शरीर सड़ी हालत में हासिल हुआ तो उससे क्रूरता की हदों का पता चला। उसका मलाशय गायब था, उसके गुदा में कोई वस्तु डालकर उसे जबरन बाहर निकाला गया था। उनके लिंग को काट दिया गया था। उसके फेफड़े गायब थे, उसका शरीर खुला हुआ था। यहाँ तक कि आँखे भी निकाल ली गई थी। उसके कई दांत गायब थे। उसे बाँध कर घसीटा गया था। कुछ स्थानों पर त्वचा को बुरी तरह से छील दिया गया था, जिसमें एक पैच भी शामिल था जहाँ ‘ओम’ का एक टैटू मौजूद था।

मंजू के भाई प्रह्लाद ने कहा कि उसने अपनी बहन से उन तथ्यों को छिपाया। कई वर्षों से विधवा रहीं मंजू ने 10 साल पहले अपने बड़े बेटे को भी खो दिया था, जिनकी बिजली के झटके से मौत हो गई थी। और अब इस हादसे ने पूरी तरह से मंजू को तोड़ दिया।

स्वराज मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपपत्र में रुखसार का उल्लेख नहीं है। उसका बयान महत्वपूर्ण है, लेकिन दर्ज नहीं किया गया है। परिवार इसके लिए प्रशासन से कई बार गुहार लगा चुका है।

चार्जशीट में चार अभियुक्तों का नाम है- फजरुद्दीन, सलीम, सलीम के चाचा अली मोहम्मद और सलीम के पड़ोसी सुमित ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया है।

आज 6 महीने बीतने के बाद भी परिवार न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा है। चूँकि, इस मामले में मृत हिन्दू है तो तथाकथित हल्ला बोल मीडिया ने भी इसे कोई खास कवरेज नहीं दिया। और न ही इस मामले में कोई अवार्ड वापसी गैंग सामने आया।

पोखरण में हुआ पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली का सफल परीक्षण, अचूक मारक क्षमता से लैस

मोदी सरकार के नेतृत्व में सेनाओं के उन्नतिकरण पर लगातार काम हो रहा है। देश की सुरक्षा के लिए चाहे विदेशों से अत्याधुनिक हथियारों की खरीद हो या अपने ही देश में निर्माण, दोनों ही क्षेत्रों में तत्परता से काम हो रहा है।

इसी कड़ी में एक और छलाँग लगाते हुए, डीआरडीओ ने सोमवार (मार्च 11, 2019) को पोखरण फायरिंग रेंज में देश में ही विकसित उन्नत पिनाका मिसाइल का सफल परीक्षण किया। टेस्ट में रॉकेट प्रणाली ने बेहद सूक्ष्म और सटीक निशाना लगाया।

देश में ही विकसित पिनाका मिसाइल का यह तीसरा वर्जन है। जहाँ एक तरफ पहले दो वर्जन की मारक क्षमता 40 व 75 किलोमीटर थी। वहीं इस उन्नत वर्जन की मारक क्षमता बढ़ाकर 120 किलोमीटर की गई है। परीक्षण में 90 किलोमीटर दूर के लक्ष्य का सफल संधान किया गया। DRDO के अनुसार, इस मिसाइल में एडवांस नेवीगेशन व कंट्रोल सिस्टम लगाया गया है। इनकी सहायता से अब यह अपने लक्ष्य को पहचान कर एकदम सटीक प्रहार करने में सक्षम हो गई है। इससे भारतीय सेना की मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी।

डीआरडीओ की तरफ से बताया गया कि आज के परीक्षण में पिनाका मिसाइल ने अपने लक्ष्य पर पहले से निर्धारित मानक के अनुरूप ज़बरदस्त प्रहार कर ध्वस्त कर दिया। टेलीमीटरी सिस्टम के माध्यम से पिनाका मिसाइल दागने के बाद से पूरी नजर रखी गई। यह परीक्षण सभी मानकों पर पूरी तरह सफल रहा।

बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान पहाड़ों पर कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों पर पिनाका ने जबरदस्त प्रहार किया था। पिनाका को एक ट्रक पर बने लॉन्चर से दागा जाता है। 44 सेकंड में बारह राकेट दागे जा सकते है। प्रत्येक राकेट 250 किलोग्राम तक के बम अपने साथ ले जाने सक्षम है। अपने लक्ष्य पर यह अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हमला कर सकता है।

‘भाजपा को हराने के लिए SP-BSP गठबंधन परफेक्ट’, हाथी ने दिखाया हाथ को ठेंगा

बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी राज्य में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी। मायावती ने इस तरह से कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन की सभी संभावनाओं को समाप्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के लिए SP और BSP का गठबंधन है। SP यूपी की 37 सीटों और BSP 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

हालाँकि, SP अध्यक्ष और मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव कहते आए हैं कि इस गठबंधन में कॉन्ग्रेस भी शामिल है और उसे 2 सीटें दी गई हैं।

इस बीच मायावती के इस बयान से जाहिर होता है कि BSP आगामी लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहती है। BSP और SP के बीच मध्य प्रदेश में भी चुनावी समझौता हुआ है। कॉन्ग्रेस और BSP के बीच राजनीतिक दूरी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान भी देखने को मिली थी। मध्य प्रदेश में गठबंधन न होने के लिए मायावती ने कॉन्ग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था।

माना जा रहा है कि मायावती के चलते ही SP-BSP गठबंधन में कॉन्ग्रेस को जगह नहीं मिल पाई है। कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन न करने के पीछे मायावती का अपना तर्क भी रहा है। मायावती का कहना है कि चुनावों में उनकी पार्टी का वोट बैंक कॉन्ग्रेस और अन्य दलों को आसानी से ‘ट्रांसफर’ हो जाता है लेकिन उनका वोट BSP को नहीं मिल पाता। उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम कभी कॉन्ग्रेस पार्टी के वोट बैंक रहे हैं। इसीलिए मायावती को इस बात की आशंका रहती है कि कॉन्ग्रेस पार्टी BSP के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।

मायावती ने कहा, “BSP से चुनावी गठबंधन के लिए कई दल काफी आतुर हैं, लेकिन थोड़े से चुनावी लाभ के लिए हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है जो पार्टी मूवमेन्ट के हित में बेहतर नहीं है.”

आदिल डार के पिता का फ़ख्र glitch नहीं, इस आतंकी मानसिकता का feature है

अगर कोई भी, अभी भी, इस मुगालते में जी रहा है कि कश्मीर एक ‘राजनीतिक’ समस्या है, या ‘एक हाथ में कुरान, एक हाथ में कम्यूटर’ (माननीय प्रधान सेवक जी कृपया ध्यान दें) से आदिल अहमद डार बनाने की फैक्ट्री रोकी जा सकती है तो उसे ब्रिटिश अख़बार इंडिपेंडेंट में प्रकाशित डार के पिता का यह साक्षात्कार पढ़ना चाहिए- और बार-बार पढ़ना चाहिए; और तब तक पढ़ना चाहिए जब तक यह समझ में न आ जाए कि कश्मीर की समस्या ‘अलगाववाद’ नहीं, इस्लामी कट्टरपंथ है, और कश्मीर के लोगों में उबल रहा उफ़ान ‘anti-India’ नहीं, ‘anti-Hindu’ है।

‘कुछ गलत नहीं किया मेरे बेटे ने’

एडम विथनॉल से बात करते हुए डार के पिता गुलाम डार साफ़ कहते हैं कि उन्हें बेटे की मौत का ग़म भी है और पुलवामा हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ जवानों और उनके परिवारों से सहानुभूति भी, पर वह यह नहीं मान सकते कि उनके बेटे ने कोई गलती की है।

“यह (कश्मीर की) आज़ादी की लड़ाई है। हम (आतंकवादियों से) यह नहीं कह सकते कि वह गलत राह पर हैं… यह लड़ाई हमारी आज़ादी तक नहीं रुक सकती।”

आगे वह डार के आतंकवादी बन जाने का पूरा दोष भारतीय सेना के ‘अत्याचारों’ पर डाल देते हैं- और वह ऐसी घटनाओं का ज़िक्र करते हैं जिनका न सुबूत है न हो सकता है’ “उसके साथ सीआरपीएफ ने दुर्व्यवहार किया”, “उसके दोस्त को उसकी आँखों के सामने मार डाला।” (किस दोस्त को, वह यह नहीं बताते।)

बकौल गुलाम डार, “मुझे फ़िक्र नहीं कि बाकी दुनिया उसे क्या कह रही है। अपने लोगों के लिए वह शहीद है, उसके जनाज़े में 2-3 हज़ार लोगों की भीड़ थी।” और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह गलत नहीं कह रहे हैं।

आदिल अहमद डार का वीडियो, जिसमें वह ‘गौमूत्र पीने वाले काफ़िरों’ की बात करता है, ‘exodus’ के नाम पर कश्मीरी पण्डितों का नरसंहार, और याकूब मेमन-अफज़ल गुरू-बुरहान वानी से लेकर अब डार के जनाज़े में उमड़ा जनसैलाब- इन सब चीज़ों के बीच समानता है इस्लाम की वह आधारभूत विचारधारा, जो दार-उल-इस्लाम (इस्लामी उपासना-पद्धति की स्थापना और अल्लाह के अलावा किसी भी अन्य देवता की पूजा का खात्मा, शासन के ज़ोर से) को हर ‘सच्चे मुस्लिम’ के दुनियावी फर्ज़ों में ज़रूरी कर देती है।

जब आदिल डार के पिता “मुझे अपने बेटे पर फ़ख्र है, उसने जो कुछ किया अपने लोगों के लिए किया” कहते हैं तो वह किसी हाशिए पर पड़े अतिवादी की बोली नहीं, मुख्यधारा की समकालीन इस्लामी सोच को ज़ाहिर करते हैं।

‘भारत का सेक्युलर सिस्टम हमें कतई मंज़ूर नहीं’  

2010 में दिए गए एक साक्षात्कार में कश्मीर के सबसे बड़े अलगाववादी नेताओं में शुमार सैयद अली शाह गीलानी साफ़-साफ़ कह चुके हैं (और यह पहली बार भी नहीं था) कि कश्मीर समस्या इस्लामी वर्चस्व की है, राजनीति की नहीं। वे जिन्ना के “हिन्दू-मुस्लिम दो अलग-अलग मुल्क हैं” को भी दोहराते हैं, “कश्मीर बनेगा पाकिस्तान” के उद्गार भी व्यक्त करते हैं, और भारत की पंथनिरपेक्षता को भी नकारते हैं। वे साफ़-साफ़ कहते हैं कि एक पंथनिरपेक्ष समाज में कोई भी सच्चा मुस्लिम अपने मज़हब को पूरी तरह नहीं निभा सकता।

“आखिर ऐसे कौन से तकाज़े हैं इस्लाम के जो हर एक इन्सान को अपने मज़हब को मानने की पूरी आज़ादी मिलने, और किसी भी एक मज़हब को हुकूमती ताकत न मिलने, पर पूरे नहीं हो सकते?”

इसी सवाल के जवाब में सारे जवाब छिपे हैं- बशर्ते ईमानदारी से ढूँढ़ने की नीयत हो!

पाकिस्तान में पिछले 70 सालों में हिन्दुओं का क्या हश्र हुआ, केरला के कन्नूर जिले में ईसाई पादरी के हाथ काटे जाना, शार्ली एब्दो, कमलेश तिवारी, बशीरहाट, हकीकत राय को चुनवाया जाना, शम्भाजी साहू के इस्लाम न स्वीकारने पर उनकी आँखें निकाल कर खाल उधेड़ दिया जाना, आइसिस का यज़ीदी लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाना, कश्मीरी पण्डितों का नरसंहार, बामियान बुद्ध को ढहाया जाना- बानगियों की कमी नहीं है यह जानने के लिए कि आखिर एक सेक्युलर समाज में ऐसी क्या कमी है जो गीलानी को वह मंज़ूर नहीं, और जिससे कश्मीर को आज़ाद कराने के लिए बुरहान वानी और आदिल डार ने जान लेने और देने में कोई संकोच नहीं किया।

और अगर आपको यह सब अतिवादी ‘fear-mongering’ लग रहा है तो ऊपर जाकर गीलानी का इंटरव्यू खोल कर पढ़ ही लीजिए।

इस्लाम अपने लोगों में ही नहीं, अपने आस-पास भी गैर-इस्लामी चीज़ें जैसे शराब, अनैतिकता, आदि बर्दाश्त नहीं कर सकता, यह हम नहीं, खुद गीलानी कह रहे हैं। इस्लामी कायदे के मुताबिक, गीलानी कहते हैं, इस्लामी हुकूमत की स्थापना की भरसक कोशिश हर सच्चे मुस्लिम के लिए उतनी ही ज़रूरी है जितना कि गरीबों को दान-पुण्य। सम्प्रदायों के बीच अमन इस्लाम के लिए बस उतना ही ज़रूरी है जितना इस्लाम के फैलाव के लिए ‘सही माहौल’ बनाने में सहायक हो।

कश्मीरी मुस्लिमों के बीच खासा असर रखने वाले गीलानी हालाँकि “दार-उल-इस्लाम में गैर-मजहबियों के मज़हबी जज्बातों का ख्याल रखा जाएगा” का खोखला दावा ज़रूर करते हैं, पर पाकिस्तान की निंदा वह हिन्दुओं और अन्य गैर-इस्लामी मज़हबों की हिफ़ाज़त और इज़्ज़त न कर पाने के लिए नहीं करते, बल्कि इसलिए कि पाकिस्तान अमेरिका की गोद में जा बैठा है।

दोहरी नागरिकता

“आम तौर पर हर मुस्लिम दो देशों का नागरिक होता है- एक उस देश का जिसका वह राजनीतिक रूप से नागरिक होता है, और दूसरा मुस्लिम ‘उम्माह’।” इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ़ लड़ रहे ईरान में जन्मे आस्ट्रेलियाई इमाम तौहीदी टॉक शो होस्ट डेव रूबिन से बात करते हुए समस्या को रेखांकित करते हैं। “जब दुनिया के किसी भी कोने में बैठा कोई भी मुल्ला किसी का सर कलम कर देने का फ़तवा जारी करता है तो वह अँधेरे में तीर नहीं मार रहा होता है। उसे यह पता होता है कि उसके इस फ़तवे को पूरा करना किसी न किसी मुस्लिम का फ़र्ज़ होगा।”

आदिल अहमद डार ऐसे ही किसी फ़तवे को पूरा कर रहा था, ऐसे ही किसी उम्माह की नागरिकता का फ़र्ज़ निभा रहा था, क्योंकि हिन्दुस्तानी हुकूमत के सैनिकों की मौजूदगी उसके लोगों को काफ़िरों को सही राह पर लाने या दोज़ख़ की राह पर रवाना करने से रोक रही थी।

एकतरफ़ा सेक्युलरिज्म    

हिंदुस्तान का सेक्युलरिज्म एकतरफ़ा है और सियासतदान शुतुरमुर्गों की तरह रेत में सर गाड़कर सोच रहे हैं आसमान को फ़टने से रोक लेंगे। सेक्युलरिज्म दोतरफ़ा होता है- अगर सामाजिक कुप्रथा के नाम पर सती से लेकर सबरीमाला तक पर रोक लगाई जा सकती है तो “हिन्दू काफ़िर और काबिले-क़त्ल हैं” सिखाने वाली विचारधारा में शासकीय हस्तक्षेप से ‘एडिटिंग’ बहुत पहले हो जानी चाहिए थी।

कश्मीर की समस्या यह नहीं है कि वहाँ सेना ज़्यादा तादाद में मौजूद है, या किसी सरकार ने किसी चुनाव में धाँधली करवा दी, या किसी ‘भटके हुए नौजवान’ को पुलिस ने पीट दिया। अगर चुनावी धाँधली से अलगाववाद पनपता होता तो लालूराज झेल चुका बिहार 20-25 बार आज़ादी के नारे लगा चुका होता।

कश्मीर की समस्या यह है कि वहाँ इस्लामी कट्टरपंथी बहुमत में हैं। कश्मीर की समस्या यह है कि बहुतायत में कश्मीरी मुस्लिम भारत से ज़्यादा एक दूसरे राष्ट्र पाकिस्तान नहीं बल्कि इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान के परस्त हैं- और कुरान और हदीथ में चाहे जो लिखा हो, कश्मीर का कट्टरपंथी यही मानता है कि उसका मज़हब उसे सेक्युलरिज्म का फ़ायदा उठाकर अपना दार-उल-इस्लाम का एजेण्डा बढ़ाए जाने की भी छूट देता है, और पलट कर गैर-मुस्लिम/काफ़िर के धर्मांतरण के लिए उनके देवताओं को गरियाने से लेकर उनकी औरतों का बलात्कार और आदमियों-बच्चों का क़त्ल कर देने की भी छूट।

आगे की राह

आगे की राह क्या है, यह हमें भी नहीं पता- सिवाय इसके कि समाधान ढूँढ़ने के पहले समस्या को ईमानदारी से और पूरी असुविधा के साथ देखने की ज़रूरत है; “इस्लाम बाकी और उपासना-पद्धतियों जैसा ही है”, “इस्लाम और पंथनिरपेक्षता के मूल्यों में कोई टकराव नहीं है” जैसे मुगालतों से निज़ात पाने की ज़रूरत है। तभी हम समाधान से बारे में सोच भी सकते हैं।

कट्टरपंथियों को पलट कर “या तो मज़हब छोड़ो, या मुल्क छोड़ो, या जान छोड़ो” की धमकी देना भी सही समाधान नहीं हो सकता। सुब्रमण्यम स्वामी का “मुस्लिम इस देश के नागरिक तभी हो सकते हैं जब वे अपने पूर्वजों का हिन्दू होना स्वीकार करें” भी सही जवाब नहीं है, क्योंकि गीलानी पासपोर्ट के लिए मुल्क और संविधान के प्रति निष्ठा की अधिकारिक कसम खा कर भी अपना जिहाद पूरी ताकत से छेड़े हुए हैं। इसके अलावा अगर आम मुस्लिम यह मान भी ले कि उसके पूर्वज हिन्दू थे तो जिहादी मानसिकता ‘कमीने काफ़िर’ का लेबल चस्पा कर उनसे अपने काफ़िर पूर्वजों का मानसिक परित्याग करवा ही देगी।

समाधान का एक हिस्सा यह हो सकता है कि व्यक्तिगत तौर पर मुस्लिमों के नागरिक अधिकारों पर कोई अतिक्रमण न करते हुए भी भारतीय धर्मों (शैव, शाक्त, सिख,वैष्णव, बौद्ध, जैन, इत्यादि ) और इस्लाम, तथा सेक्युलर भारतीय शासन पद्धति और इस्लाम, के बीच मौजूद विसंगतियों को राजनीतिक, और उससे भी पहले सांस्कृतिक-बौद्धिक वर्ग, ईमानदारी से स्वीकारे। इसके बाद अगले चरण में इस विसंगति को संविधान में भी स्वीकार किए जाने की आवश्यकता है।

इसके बाद ही आगे ऐसे किसी भी समाधान की सम्भावना बन सकती है जिसकी परिणति अभी तक की विफलताओं से अलग हो।

तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बना दूँगा: दलाल मिशेल ने राकेश अस्थाना पर लगाया आरोप

बहुचर्चित अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला मामले में रक्षा दलाल क्रिश्चियन मिशेल ने मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत में दावा किया है कि CBI के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना उनसे दुबई में मिले थे। इस दौरान उन्होंने धमकी देते हुए कहा था कि अगर वह जाँच एजेंसी के मुताबिक नहीं चलता है, तो जेल के अंदर उसकी ज़िंदगी को जहन्नुम बना दिया जाएगा।

बता दें कि मिशेल पर आरोप है कि उसने अपने दो साथियों गुइदो हाश्के और कार्लो गेरेसा के साथ मिलकर यह आपराधिक षडयंत्र रचा था। अभी तक की जांच में ईडी को पता चला है कि मिशेल ने अपनी दुबई की कंपनी ग्लोबल सर्विसेज के माध्यम से दिल्ली की एक कंपनी को शामिल किया था और फिर उसके बाद उसने अगस्ता वेस्टलैंड से रिश्वत ली।

मिशेल ने अदालत को यह भी बताया कि उसने 16-17 कश्मीरी अलगाववादी और छोटा राजन जैसे खतरनाक अपराधियों के साथ जेल में रखा जा रहा है। बता दें कि उन्होंने यह बयान तब दिया जब स्पेशल जज अरविंद कुमार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को तिहाड़ जेल में इस मामले को लेकर पूछताछ करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि जाँच एजेंसी इसके बारे में कल पूछताछ करेगी।

कोर्ट ने मिशेल के द्वारा जेल के अंदर हो रहे मेंटल टॉर्चर को लेकर कही गई बातों पर ध्यान देते हुए सुनवाई की और जेल अधिकारी से संबंधित वीडियो और रिपोर्ट गुरूवार को सौंपने को कहा है। जिसके आधार पर क्रश्चियन को उच्च सुरक्षा वाले वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा।

गौरतलब है कि मिशेल को पिछले साल 22 दिसंबर को दुबई से प्रत्यर्पण संधि के तहत गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद ईडी ने 5 जनवरी को अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाप्टर घोटाले के मामले में पूछताछ के लिए उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

होली के समय दिवाली, पटाखों और प्रदूषण पर SC ने बताया गाड़ियाँ हैं ज़्यादा खतरनाक

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (मार्च 12, 2019) को पटाखों से होने वाले प्रदूषण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सवाल किया कि आखिर लोग पटाखों के पीछे क्यों पड़े हुए हैं, जबकि प्रदूषण को बढ़ाने का सबसे बड़े कारण तो ऑटोमोबाइल हैं।

अदालत ने केंद्र से पूछा कि जो लोग पटाखे की फैक्ट्रियों में काम करते थे, उन बेरोजगार कर्मचारियों का क्या हुआ? कोर्ट ने उन कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि उन्हें भूखा नहीं छोड़ा जा सकता है।

जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने कहा कि उनकी मंशा बेरोजगारी पैदा करने की बिलकुल भी नहीं है। अगर कोई कारोबार वैध रूप से संचालित हो रहा है, और उसके पास लाइसेंस भी है, तो आप किसी को काम करने से कैसे रोक सकते हो?

इस मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 3 अप्रैल की तय हुई है। अदालत ने केंद्र से पटाखों और ऑटोमोबाइल्स से होने वाले प्रदूषण पर एक तुल्नात्मक अध्य्यन की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। साथ ही पटाखे बैन करने वाली माँग पर कोर्ट ने विचार करने को कहा है कि जब ऑटोमोबाइल से प्रदूषण ज्यादा फैलता है तो पटाखों पर बैन लगाने की बात क्यों की जाती है।

पटाखों से फैलते प्रदूषण पर केंद्र ने अदालत से कहा है कि पटाखों में अब बेरियम के इस्तेमाल को प्रतिबंधित किया जा चुका है, साथ ही ग्रीन पटाखों का फार्मुला अभी फाइनल करना बाकि है। यहाँ बता दें कि गत वर्ष कोर्ट ने दिवाली पर पटाखे छोड़ने के लिए रात 8 से 10 बजे का समय तय किया था, साथ ही सुरक्षित ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री को भी मंजूरी दी थी ताकि प्रदूषण को कम नुकसान पहुँचे।

नेहरू BJP के थे और जिन्ना RSS के, यही कह रहे हैं राहुल गाँधी

राहुल गाँधी को जो रटा जाए, उसे ही रिपीट मोड में हर जगह दोहराते रहें हैं। फिर चाहे कोई कितना भी तथ्य दे या पूरा का पूरा सच ही सामने क्यों न आ जाए। एक तरफ राहुल का रा-फेल राग अभी भी जहाँ-तहाँ सुनने को मिल ही जाता है। पर अब जब उन्हें लगने लगा है कि इससे मामला बन नहीं रहा तो उन्होंने एक नया राग छेड़ा कि बीजेपी और RSS ने देश को बाँटा।

तो लगे हाथ भाजपा सांसद परेश रावल ने उनसे पूछ ही लिया कि ठीक है बीजेपी और RSS ने देश को बाँटा तो ये तो बता दीजिए कि नेहरू और जिन्ना में से कौन बीजेपी का था और कौन RSS का?

इससे पहले राहुल गाँधी कुख्यात आतंकी मसूद अज़हर को, ‘मसूद अज़हर जी’ कहकर सेल्फ गोल कर चुके हैं। यही राहुल गाँधी प्रधानमंत्री के प्रति अवसाद की हद तक जाकर एक से एक अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। उनके कल के ‘मसूद अज़हर जी’ वाले बयान पर भी परेश रावल ने चुटकी लेते हुए इसे ‘संस्कार’ की संज्ञा दी है।

कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ‘हाफिज सईद साहब’ तो वहीं ख़ुद सोनिया गाँधी नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कह चुकी हैं।

अभी तो बस चुनाव अभियान शुरू ही हुए हैं, अब देखना ये है कि राहुल गाँधी या कॉन्ग्रेस के अन्य नेता भाषाई मर्यादा का कितना उल्लंघन करते हैं, तथा चुनाव प्रचार के स्तर को और कितना नीचे ले जाते हैं।

जनरल बख्शी का मज़ाक उड़ाने वालो, लॉन्ड्री ही चलाओ क्योंकि पत्रकारिता तुम्हारे वश की बात नहीं

आजकल एक नया चलन चला है। हर एक ऐसे व्यक्ति का मज़ाक बनाया जाता है, जिसने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया हो, बलिदान दिया हो, ज़िंदगी खपा दी हो या देशहित में अपना शरीर गलाया हो। मीडिया के नए ब्रीड में आवारा की तरह दिखने वाले और हार्दिक पांड्या से कॉपी किए गए अंग्रेजी एक्सेंट में ‘हे गाइज’ बोलने वाली ये टोली ‘कूल’ बनने के लिए नीचता पर उतर आई है। न्यूज़लांड्री के अभिनन्दन शेखर ने मेजर जनरल गगनदीप बख्शी का मज़ाक बनाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें टीवी डिबेट्स में उनके अंदाज को लेकर उनपर तंज कसा गया है। इस वीडियो में अभिनन्दन शेखर मेजर जनरल बख्शी की नक़ल करने की कोशिश में कुत्ते-बिल्लियों की आवाज़ें निकालते हैं और उनके कुछ क्लिप्स दिखा कर ‘कूल’ बनने की कोशिश करते हैं।

ऊपर दिए गए इस वीडियो में मेजर जनरल बख्शी का मज़ाक बनाना उतना दुःखद नहीं है जितना कि कुछ लिबरल्स का आकर इस वीडियो को बढ़ावा देना। तथाकथित अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने इस वीडियो को रीट्वीट करते हुए लिखा कि जीडी बख्शी ‘National Embarrassment’ हैं। ये वही लोग हैं जिनके लिए आतंकवादी तो सहानुभूति के पात्र हैं लेकिन उन आतंकवादियों से लोहा लेकर नागरिकों की रक्षा करने वाले राष्ट्रीय परेशानी। इन लोगों समझाना भैंस के आगे आगे बीन बजाने के बराबर है। स्वरा भास्कर और अभिनन्दन शेखर जैसे लोगों को हम पाठ पढ़ाएँगे लेकिन उस से पहले ज़रूरी है कि हम सब मेजर जनरल गगनदीप बख्शी के बारे में थोड़ा-बहुत जान लें। उनके बारे में जानना इसीलिए भी आवश्यक है ताकि आगे जब भी ऐसे ‘हे गाइज’ टाइप लोग हमारे रक्षकों का मज़ाक बनाएँ, हम उन्हें करारा सबक सिखाएँ।

किश्तवार में पाकिस्तानी मंसूबे को किया नाकाम

कश्मीरी पंडितों की व्यथा किसी से छिपी नहीं है। अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मज़बूर हो गए इन पंडितों ने कभी हथियार नहीं उठाया और जहाँ भी रहे, देशहित में अपना योगदान देते रहे। फ़िल्म इंडस्ट्री से लेकर पत्रकारिता तक परचम लहराने वाले कश्मीरी पंडित आज तक अपनी मातृभूमि नहीं लौट सके हैं। उन्हें सबकुछ छोड़ना पड़ा- अपनी संपत्ति, घर-बार.. सबकुछ। कइयों को तो मार दिया गया। इस बारे में लगभग कुछ न कुछ सबको पता है। लेकिन, कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाने के बाद पाकिस्तान के मंसूबे और भी ख़तरनाक हो चले थे। इसके बाद आतंकियों, अलगाववादियों व पाकिस्तान समर्थित ताक़तों की नज़र जम्मू कश्मीर में रह रहे डोगरा लोगों पर पड़ी। किश्तवार जिले में डोगराओं को निशाना बनाया जाने लगा। उनका भी हाल कश्मीरी पंडितों जैसा करने का कुचक्र रचा गया।

लेकिन, इसी दृश्य में एक ऐसे नायक ने एंट्री ली, जिसके रहते पाकिस्तान और आतंकियों के इरादे असफल हो गए। यह इतना सरल नहीं था। मेजर जनरल बख्शी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘Kishtwar Cauldron‘ में इस ऑपरेशन की चर्चा की गई है। 2013 में ईद के दौरान एक हिन्दू बाइक सवार मुस्लिम जलूस के बीच फँस गया और उसके साथ बदतमीजी की गई। राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए व उनके बाद भड़के दंगों में कई लोगों की मौत हो गई। आतंकियों की इस बौखलाहट के पीछे वो घाव था जो बख्शी ने उन्हें दिया था। जम्मू से डोगराओं को भगाना आज भी आतंकियों की ‘To Do List’ में है लेकिन हमें मेजर जनरल बख्शी को धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने इस कुचक्र पर ऐसा प्रहार किया कि अब वे चाह कर भी ऐसा करने में सफल नहीं हो सकते।

भारत के सबसे अनुभवी काउंटर-इंसर्जेन्सी कमांडर्स में से एक जीडी बख्शी को अक्टूबर 2000 में इस क्षेत्र में सेक्टर कमांडर के रूप में तैनात किया गया। परिस्थितियों को नियंत्रित करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। 2001 में 13 डोगरा हिन्दुओं को निर्ममतापूवक मार डाला गया। उनमे महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे। जीडी बख्शी ने इसके बाद आतंकियों के ख़िलाफ़ चौतरफा प्रहार शुरू किया। एक महीने के अंदर-अंदर इस नरसंहार को अंजाम देने वाले सभी आतंकियों का खदेड़-खदेड़ कर उनका काम तमाम कर दिया गया। जीडी बख्शी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने इस जोख़िम भरे ऑपरेशन को अंजाम दिया। डोडा-किश्तवार इलाक़े का भूगोल थोड़ा अलग है। दक्षिण में हिमाचल, पूर्व में कारगिल और पश्चिम में पीर-पंजाल से लगे इस क्षेत्र में आतंकियों ने भारतीय सेना से बचने के लिए पनाह ली थी।

उस समय डोडा में सैन्य उपस्थिति कम थी। इस कारण पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई ने इस इलाक़े का गलत प्रयोग करना शुरू कर दिया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता चुप बैठे थे। मीडिया इन ख़बरों को तवज्जो नहीं देती थी। राजनेता डोगराओं की फिक्र नहीं करते थे। डोगरा लगातार पलायन कर रहे थे। उनका नरसंहार हो रहा था। ऐसे समय में जीडी बख्शी ने स्थिति को नियंत्रित किया। 2005 के एक ख़बर में जीडी बख्शी ने साफ़-साफ़ कहा था कि डोगराओं व उनके गाँवों को बचाना उनकी प्राथमिकता है और उसके लिए वह कुछ भी करेंगे। सड़कों की अनुपस्थिति में उन पहाड़ियों पर आतंकियों से लोहा लेना कितना कठिन कार्य रहा होगा, आप सोच सकते हैं। डोडा में आतंकियों का आना 1991 के बाद से ही प्रारम्भ हो गया था।

क्या आपको पता है कि मेजर जनरल जीडी बख्शी अपने परिवार की बात न मान कर सेना में शामिल हुए थे? उनके भाई सृष्टि रमन बख्शी जम्मू कश्मीर राइफल्स का हिस्सा थे। मात्र 23 वर्ष की उम्र में वे एक माइंस ब्लास्ट में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जिसने अपने भाई को इतनी कम उम्र में खो दिया, वो भी देश की रक्षा हेतु- उस आदमी का मज़ाक बनाने में क्या स्वरा ब्रिग्रेड को शर्म नहीं आती? इसके बावजूद युवा गगनदीप ने एनडीए का फॉर्म भरा और आल इंडिया मेरिट लिस्ट में दूसरे स्थान पर आए। इस व्यक्ति की जिजीविषा को आप समझ सकते हैं। उन्होंने वोलंटरी रूप से कारगिल में अपनी पोस्टिंग कराई- एलओसी से मात्र 5 किलोमीटर दूर।

आपको यह भी बता दें कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के सबसे कठिन क्षेत्रों में से एक किश्तवार में भी पोस्टिंग स्वेच्छा से ही कराई थी। डोगराओं की वापसी के बाद उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उन्हें कारगिल में उनके योगदान के लिए विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया। अभी भी वे किसी न किसी रूप में देशहित में कार्य करते रहते हैं और टीवी चर्चाओं में भी हिस्सा लेते हैं।

जीडी बख्शी का मज़ाक बनाने की कोशिश कर ख़ुद मज़ाक बन रहे

अगर कोई व्यक्ति अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करता है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके चरित्र हनन पर उतर आएँ। सावरकर की प्रशंसा करना अपराध नहीं है। अपने कठिन और लम्बे अनुभवों के आधार पर अगर जीडी बख्शी कुछ कहते हैं तो उन्हें सुना जाना चाहिए क्योंकि आप किसी एसी कमरे में बैठ कर सेना का मज़ाक बनाते हैं जबकि उन्होंने सीमा पर आतंकियों से लोहा लिया है, आपकी रक्षा के लिए। कुत्ते-बिल्ली की आवाज़ निकालने से आप ‘कूल’ नहीं बन जाएँगे और न ही अपने पिता के उम्र के एक सैन्य अधिकारी का अपमान कर आपको कुछ हासिल होगा।

किसी भी देश में अपने सेना के वेटरन्स का सम्मान किया जाता है, उनके लिए तालियाँ बजती है, बच्चों को उनका सम्मान करना सिखाया जाता है। भारत में भी ऐसा होता रहा है लेकिन आज मुट्ठी भर गिरोह विशेष के लोग उनका मज़ाक बना कर युवा पीढ़ियों को दिग्भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं।

छुट्टा गायों को गौशाला पहुँचाने के लिए सेल्फी विद काउ की शुरुआत

नोएडा में कुछ युवाओं द्वारा ‘सेल्फी विद काउ’ अभियान की शुरुआत की गई है। इस अभियान का उद्देश्य सड़क पर या उसके किनारे बेतरतीब बैठी छुट्टा गायों को सेक्टर-63 के वाजिदपुर स्थित नए काऊ शेल्टर में पहुँचाना है। जिससे ट्रैफिक व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अभियान की शुरुआत करने वाले अमित गुप्ता, अभय पांडेय और सचिन गोयल के पहल को स्थानीय लोगों का भी साथ मिलना शुरू हो गया है।

सेल्फी विद काऊ (फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इंडिया)

स्थानीय लोग द्वारा जहाँ-तहाँ बैठी गायों के साथ सेल्फी लेकर नगर निगम प्रशासन को टैग कर रहे हैं। ऐसे में उन पर दबाव बन रहा है कि वह गायों को नए बने काऊ शेल्टर पहुँचाए।

इस पहल से जहाँ एक्सीडेंट में कमी आएगी, वहीं ट्रैफिक व्यवस्था में भी सुधार होगा। साथ ही इस अभियान से ऐसे शहरों को भी प्रेरणा मिलेगी, जहाँ सड़क पर छुट्टा गायों के घूमने से लोग परेशान हैं।

पति ने वॉट्सऐप पर दिया तीन तलाक, फ़ोन पर हुआ था निक़ाह

तीन तलाक के रोजाना आने वाले मामले यह साबित करते जा रहे हैं कि सामाजिक कुरीतियों से जन्मे अपराध और रूढ़िवादिता पर अंकुश लगाने के लिए क़ानून बना देना मात्र व्यापक समाधान नहीं हो सकता है। केंद्र सरकार द्वारा ‘तीन तलाक’ पर अध्यादेश लाए जाने के बावजूद हैदराबाद से इस तरह का एक मामला सामने आया है।

22 वर्षीय महिला फराह फातिमा का कहना है कि उसके पति ने व्हाट्सएप्प मैसेंजर के जरिए उसे तीन तलाक दिया है। आरोपित पति की पहचान यासीर सिद्दकी के रूप में की गई है जो हैदराबाद के मीर आलम मंडी कर रहने वाला है, लेकिन वर्तमान में अमेरिका में रह रहा है। शादी प्रमाणपत्र के अनुसार, दोनों की शादी फोन के माध्यम से हुई थी।

रिपोर्ट्स के अनुसार, फातिमा के पति ने मोबाइल मैसेंजर व्हाट्सएप्प के जरिए उसे तलाक दे दिया। व्हाट्सएप्प मैसेज मिलने के बाद महिला ने अमेरिका जाने का और अपने पति से मिलने का निर्णय किया, लेकिन जब वह अमेरिका के सैन फ़्रांसिस्को एयरपोर्ट पर पहुँची तो उसे हिरासत में ले लिया गया। इमिग्रेशन ऑथरिटी द्वारा यह जानकारी दी गई है कि अब वह सिद्दकी की पत्नी नहीं रही। यह जानकारी मिलते ही महिला हैरान रह गई।

फातिमा ने बताया कि वह 24 दिनों तक इमिग्रेशन कस्टडी में रही। 12 फरवरी को वह अमेरिका पहुँची थी और फिर 09 मार्च को भारत वापस लौटी। जब उसे फ्लाइट पर लाया गया तो उस समय उसके हाथों व पैरों में जंजीर बाँध दी गई थी।

फातिमा ने आगे बताया कि वह अपने पति के साथ 2 बार अमेरिका गई थी। कुछ महीने पहले जब वह भारत में थी, तब उसे एक संदेश मिला कि वह (पति) उसे (महिला) तलाक दे चुका है। उन दोनों के बीच हुए व्हाट्सएप्प मैसेज में पति ने महिला को कहा था कि यदि वह चाहती है तो उसके खिलाफ एक शिकायत भी दर्ज करवा सकती है। इस दौरान तलाक को लेकर किसी कागज पर हस्ताक्षर भी नहीं किया गया था।

यासीर सिद्दकी और फ़राह फातिमा दोनों की शादी 3 मार्च 2016 को हुई थी। 1 जून 2016 को तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्र के अनुसार दोनों की शादी फोन पर हुई थी। महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति का किसी और महिला के साथ संबध है, जिस वजह से उसने तलाक दिया है।