Monday, October 7, 2024
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पुलवामा आतंकी हमला: 7 संदिग्ध पुलिस हिरासत में, हमले की योजना में शामिल होने का शक़

पुलवामा आतंकी हमले में अधिकारियों ने शुक्रवार (फ़रवरी 15, 2019) को 7 संदिग्धों को हिरासत में लेने की जानकारी दी है। पुलिस को संदेह है कि 14 फरवरी को जवानों पर हुए आतंकी हमले की योजना में इन युवकों का भी हाथ है।

ख़बरों के अनुसार, पुलवामा हमले की पूरी योजना पाकिस्तान के नागरिक कामरान ने बनाई थी। जैश-ए-मोहम्मद का यह सदस्य पुलवामा, अवंतीपुर और त्राल इलाके में सक्रिय है। इस पूरे हमले को अंजाम देने वाले फ़िदायीन आतंकी की पहचान आदिल अहमद डार के रूप में हुई है। साल 2018 में जैश में शामिल होने वाला आदिल, पुलवामा के काकापुर इलाक़े का ही रहने वाला था।

बताया जा रहा है कि दक्षिण कश्मीर के त्राल इलाके के मिदूरा में इस भयावह आतंकी हमले की योजना तैयार की गई थी और कामरान ही विस्फोटकों की व्यवस्था में मददगार भी बना।

पुलिस लगातार जैश के अन्य स्थानीय सक्रीय आतंकियों की तलाश में जुटी हुई है। हालाँकि, अब तक पता नहीं लग पाया है कि महज़ 22 साल के आदिल अहमद डार ने इतने बडे़ आतंकी हमले को कैसे अंजाम दिया। आदिल एक स्कूल ड्रॉपआउट था। जिस समय उसने पढ़ाई छोड़ी, उसकी उम्र महज़ 20 साल थी। आदिल, घटना स्थल से सिर्फ़ 10 किमी की दूरी पर रहता था।

पुलिस अब इस बात की जानकारी जुटाने में लगी है कि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक का इंतज़ाम करने में आदिल की मदद किन-किन लोगों ने की और सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम होने के बावजूद वो कैसे घटनास्थल तक विस्फोटक से लदी गाड़ी लेकर पहुँचा।

सोशल मीडिया पर ज़हर उगलने वालों पर कड़ी नज़र, जवानों का अपमान करने वाले हो रहे गिरफ़्तार

पुलवामा में CRPF के 40 से अधिक जवानों की शहादत के बाद सोशल मीडिया पर कुछ गिरी हुई मानसिकता के लोगों ने ज़हर फ़ैलाना शुरू कर दिया है। ये इतने घटिया लोग हैं कि इस समय में भी ऐसी बातें कर रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब देश के जवानों के बलिदान का मजाक उड़ाना नहीं होता। अपने ही देश में ऐसी विचारधारा के लोग हैं, तभी ऐसे लोग इस तरह बेख़ौफ़ ऐसी बातें करते हैं। जब बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा इस बात पर डिबेट करने लगता है कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे अभिव्यक्ति की आज़ादी हैं, तो ऐसे देशद्रोहियों को बल क्यों नहीं मिलेगा?

पिछले दो दिनों में यूनिवर्सिटी के छात्रों से लेकर, टीटी और आम नागरिकों तक ने जवानों के बलिदान का अपमान किया। लेकिन सोशल मीडिया पर ही कई नागरिकों ने आपत्ति जताते हुए उन्हें पुलिस के संज्ञान में लाया। पुलिस ने कई मामलों में एक्शन लिया। कुछ मामलों में ऐसे लोगों को उनकी कम्पनी ने नौकरी से भी निकाला। पुलिस ने त्वरित एक्शन लेते हुए फेसबुक और ट्विटर पर इनका संज्ञान लेते हुए कई लोगों को गिरफ़्तार किया है:

  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र बसीम हिलाल ने 14 फरवरी को ट्वीट किया जिस पर यूनिवर्सिटी ने तुरंत एक्शन लिया
  • NDTV की पत्रकार निधि सेठी ने फेसबुक पेज पर शहीद जवानों का मजाक उड़ाया जिसके बाद चैनल ने उन्हें सस्पेंड कर दिया
  • रेलवे में जूनियर टिकट कलेक्टर कुमार उपेंद्र बहादुर सिंह ने पाकिस्तान परस्त नारे लगाए जिसके बाद उसे निलंबित कर दिया गया
  • कश्मीर के रियाज़ अहमद वानी को उसकी कंपनी ने जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन में फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए शो कॉज़ नोटिस जारी किया। वानी की पोस्ट का समर्थन करने वाले इक़बाल हुसैन से उसकी कंपनी ने जवाब तलब किया
  • राश बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी के छात्र कैसर रशीद को व्हाट्सप्प पर पुलवामा की घटना का मजाक उड़ाने के लिए निलंबित किया
  • उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले के निवासी मोहम्मद ओसामा को ट्विटर पर आपत्तिजनक ट्वीट के लिए गिरफ़्तार किया गया
  • गोपालगंज बिहार के अज़हर हाशमी को फेसबुक पर पुलवामा की घटना का शर्मनाक मजाक उड़ाने के लिए गिरफ्तार किया गया
  • पापरी बनर्जी ने भी पुलवामा के शहीदों का उड़ाया मजाक। असम पुलिस ने लिया संज्ञान

वो तो अपना काम कर गए, तुमने देश के लिए कुछ करना शुरू किया है?

अंग्रेज़ी में बनी “एनिमी एट द गेट्स”, सत्य घटनाओं पर बनी फिल्मों में से एक थी। सन 2001 में आई ये फिल्म, आज से करीब पचास साल पहले आई विलियम क्रैग की किताब पर आधारित थी। युद्ध पर बनी इस फिल्म में घटनाओं को बहुत सटीकता से दिखाया गया था ऐसा बिलकुल भी नहीं है। उदाहरण के तौर पर ये फिल्म स्टालिनग्राड की 1942-43 की लड़ाई पर आधारित है। फिल्म में जो रुसी राष्ट्रगान सुनाई देता है उसे 1944 में बनाया गया था।

ये लड़ाई इसलिए अनूठी थी क्योंकि हिटलर की नाज़ी सेना के हमले को ब्लिट्जक्रिग (Blitzkrieg) कहा जाता था। लड़ाई के इस तरीके में टैंक और मशीनों के जरिये सुरक्षा के लिए खड़ी पहली पंक्ति पर बहुत तेज हमला किया जाता था। हवाई मदद के ज़रिये पहली कतार को तोड़ दिया जाता था। पिछली पंक्तियाँ जो सिर्फ सुरक्षात्मक तैयारी में होती थीं, हमले के लिए तैयार नहीं होती, उन्हें चौंकाया जा सकता था। इसके इस्तेमाल से नाज़ी सेनाएं लगातार जीतती आ रही थीं।

स्टालिनग्राड की लड़ाई वो पहली लड़ाई थी जहाँ ब्लिट्जक्रिग काम नहीं आया। रुसी सेनाओं ने पहली बार नाजी सेनाओं की बढ़त को रोक दिया था। इसी युद्ध पर आधारित फिल्म में पूरे युद्ध पर ध्यान नहीं दिया गया है। इस फिल्म की कहानी वसीली ज्यात्सेव नाम के एक स्नाइपर के इर्द गिर्द घूमती है। शुरूआती दृश्यों में ही उसकी निशानेबाजी को पहचाना जाता है। एक प्रचार-तंत्र का अधिकारी उसके निशाने के कारनामे देख लेता है।

इस मोर्चे पर जीतना रूसियों के लिए कितना महत्वपूर्ण था इसे दर्शाने के लिए थोड़ी ही देर बाद के एक दृश्य में एक बड़ा अधिकारी रूसियों से पूछता है कि आखिर हम जीत क्यों नहीं रहे? जो अफसर पीछे हटने की कोशिश कर रहा था उसे आत्महत्या करने को मजबूर करते दर्शाया जाता है। डरे हुए बाकी अधिकारी चुप थे तभी जिस प्रचार तंत्र के अधिकारी ने वसीली का निशाना देखा था वो बोल पड़ता है कि हमें जीतने के लिए हमारे नायक चाहिए!

जो मासूम ये तर्क देते पाए जाते हैं कि “हिंसा का इलाज हिंसा नहीं हो सकता”, वो क्यूट लोग अक्सर भूल जाते हैं कि हिटलर को रोकने के लिए हिंसा का ही इस्तेमाल करना पड़ा था। इदी अमीन हिंसा से ही रुका था। पोल पॉट को रोकने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करना पड़ा था। हाल में ओसामा बिन लादेन जैसों को भी हिंसा से ही रोका गया था। नाज़ियों के भीतर डर पैदा करने के लिए भी वसीली नाम के इस स्नाइपर के कारनामे प्रकाशित कर सामने लाये जाते हैं।

हर सुबह अखबार दिखाना शुरू करते हैं कि आज वसीली ने इतने नाज़ी मार गिराए, कल उतने मारे थे। प्रचार तंत्र इतने पर ही नहीं रुकता। वो पूछना शुरू करता है कि वसीली ने तो आज इतने नाज़ी मारे हैं, तुमने कितने मारे? जहाँ पूरा शहर ही युद्ध का मैदान बना हुआ हो, सभी सैनिक ही हों, वहां इस सवाल का नतीजा क्या हुआ होगा ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। स्टालिनग्राड की लड़ाई वो पहली लड़ाई थी जहाँ नाज़ियों को हार का सामना करना पड़ा था।

बाकी लंबे समय से जिस एमएफएन स्टेटस की बात होती थी, मोदी ने तो उनके आर्थिक स्रोत सुखाने के लिए डब्ल्यूटीओ के नियमों के वाबजूद उस एमएफएन स्टेटस से पाकिस्तान को वंचित कर दिया है। आप बताइये, आपने उनसे आर्थिक लेन-देन बंद किया है क्या?

आतंकी हमले पर माओवंशी गिरोह सक्रिय: ‘मोदी ने कराया होगा’ से लेकर जवानों की जाति तक पहुँचे

पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद वामपंथी लोगों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया देश में विभाजन के बीज बोने का एक ठोस प्रयास प्रतीत होता है। जब पूरा देश सदमे की स्थिति में है और शहीदों के परिवार के साथ चट्टान के रूप में खड़ा है, तब इस तरह की घटिया प्रतिक्रिया वामपंथियों के असली चेहरे को हमारे सामने ला देता है।

दर्दनाक पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीदों की संख्या 40 के करीब होने के बाद सोशल मीडिया के अलग-अलग माध्यमों में लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की। अधिकांश लोगों ने इस कायराने घटना में शहीद जवानों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और सुरक्षा में लगे जवानों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। लेकिन सोशल मीडिया पर एक खास तरह के वर्ग ने अपने घटिया स्तर की राजनीति के लिए सस्ती टिप्पणियों का सहारा लिया।

कई उदारवादी मीडिया की स्तंभकार, TEDx स्पीकर और फेलो, संजुक्ता बसु के ने ट्वीट करके कहा कि आतंकवादी हमले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रची गई साजिश हो सकती है क्योंकि ये आदमी कुछ भी कर सकता है।

बसु की ट्वीट में की गई टिप्पणियाँ भयानक हैं। बसु चाहती हैं कि लोग यह मानें कि भारतीय सशस्त्र बलों ने नरेंद्र मोदी के इशारे पर अपने ही सैनिकों की हत्या कर दी है। और सोचने वाली बात यह है कि बसु ने यह ट्वीट जैश-ए-मुहम्मद द्वारा हमले के लिए जिम्मेदारी का दावा करने के लंबे समय बाद पोस्ट किया है। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के अंध-विरोध में बिना कुछ सोचे-समझे ही बसु ने लापरवाह और अपमानजनक टिप्पणी की है। बसु ने ऐसे समय में सशस्त्र बलों का अनादर किया है जब इस कायराने घटना के बाद वो गम में हैं।

यही नहीं, कॉन्ग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा आतंकवादियों को शरण देने और पोषण करने पर पाकिस्तान को लगभग क्लीन चिट देने के कुछ घंटे बाद, एक अन्य कॉन्ग्रेस प्रवक्ता ने एक यह सवाल पूछने के अंदाज में प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अफवाह फैलाने की कोशिश की। कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता ने कहा कि क्या पुलवामा आतंकी हमला मोदी की साजिश थी?

इसके बाद कुछ प्रतिष्ठित उदारवादी बुद्धिजीवी, जो विदेशों से बैठकर अपने देश में नफरत फैलाने के बारे में सोचते रहते हैं, ऐसे लोगों ने जाति के आधार पर हमारे सैनिकों की शहादत का भी राजनीतिकरण करने का प्रयास किया।

पाकिस्तानी मीडिया ने पहले प्रधानमंत्री मोदी को नीचा दिखाने के लिए अशोक स्वैन के ट्वीट का इस्तेमाल किया है। विदेश में बैठे स्वैन ने अपने ट्वीट में जोर देकर कहा था कि नरेंद्र मोदी चुनाव से पहले पाकिस्तान के साथ सीमा टकराव में भारत को मजबूर करेंगे। पाकिस्तानी मीडिया ने तब उन ट्वीट्स को लाइक किया था और कहा था कि पाकिस्तान शांति चाहता है जबकि भारत सरकार संघर्ष चाहती है।

इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने ट्वीट करके कहा है कि पुलावामा की घटना में शहीद होने वाले जवानों में से एक भी ब्राह्मण नहीं है।

वास्तव में, देश के भीतर उस समय विभाजन के बीज बोने का ठोस प्रयास किया जा रहा है, जब पूरा देश सदमे की स्थिति में है और हमारे शहीदों के परिवार के पीछे चट्टान के रूप में खड़ा है।

भीख का कटोरा लेकर घूमने वाले पाक के लिए सेना को समय, स्थान, योजना तय करने की पूरी छूटः मोदी

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ क़ाफ़िले पर कल (14 फ़रवरी 2019) हुए आतंकी हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की भूमिका को लेकर जमकर हमला बोला। पीएम ने कहा कि आतंकवाद को जारी रखने वाला पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है। पीएम ने जैश-ए-मोहम्मद द्वारा किए गए भीषण हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने पर दुख व्यक्त किया।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि पाकिस्तान आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उसके लिए रोजमर्रा का ख़र्चा तक चलाना मुश्किल हो गया है, वह दुनिया में भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया उसके असली चरित्र को महसूस कर रही है। दुनिया जान रही है कि पाकिस्तान आतंकवाद का पोषण करता है, यही कारण है कि तमाम देश उसे अलग-थलग कर रहे हैं।

पीएम ने कहा कि कहा कि भारत ने विकास का रास्ता अपनाया है और दुनिया भर के सामने उल्लेखनीय वृद्धि की। आज कई देश भारत के साथ जुड़े रहना चाहते हैं। लेकिन पाकिस्तान सिर्फ़ आतंकियों को पनाह देकर उन्हें पोषित करता है। पीएम ने कहा कि पुलवामा में आतंकियों ने जो कायरता दिखाई है उसका अंजाम उन्हें भुगतना पड़ेगा, इनसे पूरा हिसाब लिया जाएगा।

पीएम ने कहा कि सुरक्षा बलों को आगे की कार्रवाई, समय, स्थान और योजना तय करने की पूरी इजाज़त दी गई है। उन्होंने कहा कि हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, “हर नुकसान का हिसाब पाकिस्तान को देना पड़ेगा, उसे इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी होगी।”

‘झांसी की रानी ने मातृभूमि की रक्षा के लिए लोगों को प्रेरित किया’

प्रधानमंत्री ने झांसी की रानी- मणिकर्णिका की वीरता को नमन करते हुए कहा कि झांसी की धरती ने भारतीयों को अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने कहा कि मणिकर्णिका ने 1857 के विद्रोह में भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना को जाग्रत किया था। पीएम ने कहा कि मैं धन्य हूँ जो उस वाराणसी की सेवा करने का अवसर पाया हूँ, जहाँ रानी लक्ष्मी बाई का जन्म हुआ।

झांसी को ₹20 हजार करोड़ की सौगात

प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर ₹20,000 करोड़ की विभिन्न विकास परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया। पीएम ने ₹9,000 करोड़ की पाइपलाइन परियोजना के बारे में बताते हुए कहा कि यह परियोजना न केवल झाँसी के निवासियों के लिए बल्कि आसपास के गाँवों में रहने वाले लोगों को जल संकट से मुक्ति प्रदान करेगी। उन्होंने कहा, “यह केवल एक पाइपलाइन परियोजना नहीं होगी, यह बुंदेलखंड क्षेत्र की लाइफलाइन होगी।”

शहीदों के शवों को दिल्ली लाया गया, प्रधानमंत्री मोदी ने दी श्रद्धांजलि

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए कायराना आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के शव दिल्ली पहुँच गए हैं। यहाँ सभी शहीद जवानों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी। इसके बाद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा थल, जल और वायु सेना के सेनाध्यक्षों ने उनके पार्थिव शरीर पर श्रद्धासुमन अर्पित किए।

पुलवामा के कायरतापूर्ण आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए देश के कई मंत्री और आला अधिकारी पालम एयरपोर्ट पहुँचे।

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी शहीदों को पुष्प अर्पित किए। इसके बाद सभी पार्थिव शवों को परिजनों को सौंप दिया जाएगा। शहीद जवानों के शव बोइंग C-17 ग्लोबमास्टर के जरिए दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लाए गए।

बता दें कि इसी सन्दर्भ में सरकार ने बड़ा फैसले लेते हुए हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की बात कही है।

पाक को अलग-थलग करने के लिए विदेश मंत्रालय में बड़े देशों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में कायरतापूर्ण आतंकी घटना को लेकर कई देशों ने इसकी निंदा की है। आतंकी घटना के बाद कई देश भारत के साथ खड़े हैं। जर्मनी, हंगरी, इटली, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, रूस, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित कई अन्य देशों के प्रतिनिधि भारतीय विदेश मंत्रालय पहुँचे।

इन सभी देशों के राजनयिकों ने विदेश मंत्रालय में आतंकवाद के मुद्दे पर होने वाली वृहद बैठक में हिस्सा लिया। आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट हुए सभी देशों के प्रतिनिधि आतंकवाद और आतंकियों से निपटने और जड़ से खत्म करने के लिए विचार विमर्श किया। यह मीटिंग पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय पटल पर अकेला करने के हिसाब से महत्वपूर्ण है।

बता दें कि, जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ क़ाफ़िले पर कल (14 फ़रवरी 2019) को हुए आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के 42 जवान शहीद और दर्जनों जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे। जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने सीआरपीएफ के क़ाफ़िले में एक बस में विस्फ़ोटक लदी एसयूवी घुसा दी थी, जिसके बाद यह हादसा हुआ था।

आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया हमारे साथ है

गृहमंत्री ने कहा, “आतंकवाद पर हम लगाम लगाकर ही रहेंगे। दुनिया के कई देश आतंकवाद को खत्म करने के लिए प्रयासरत हैं, हम साथ मिलकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई को जीतेंगे। जम्मू-कश्मीर में कुछ लोगों के तार आतंकी संगठन आईएसआई से जुड़े हैं हम उन्हें खत्म करेंगे। भारत सरकार शहीद जवानों के परिवार के साथ हमेशा खड़ी है। सभी राज्य सरकारों से अपील है कि शहीदों के परिवारों की मदद करें।” 

गृहमंत्री ने कहा कि सभी अधिकारियों को अवश्यक निर्देश दिए गए हैं, अब सीमा पार से आतंक फै़लाने वालों के मंसूबे किसी भी हाल में कामयाब होगा। उन्होंने कहा, “सुरक्षाबलों के हौसले पूरी तरह से बुलंद हैं। आतंकवाद के ख़िलाफ़ हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, उसमें हमें कामयाबी मिलेगी।”

कश्मीर में जिहाद को रोकने के लिए अपनाने होंगे ‘out of the box’ विकल्प

पुलवामा में CRPF के काफिले से 350 किलो विस्फोटक से लदे एक वाहन को टकरा कर 40 से अधिक जवानों की प्राण लेकर जिहादियों ने पुनः अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। हालाँकि ऐसी वारदातें पहले भी विदेशों में हो चुकी हैं लेकिन उन्हें ‘Lone Wolves’ कहकर भुला दिया गया है। ऐसे ‘लोन वुल्फ’ या अकेले छुट्टा भेड़िये आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए स्वतः प्रेरित होते हैं। इन्हें प्रेरणा मिलती है सोशल मीडिया और अन्य वेबसाइट पर निरंतर फैलते मज़हबी उन्मादी ज़हर से।

महत्वपूर्ण यह है कि किसी विस्फोटक भरे वाहन को ले जाकर भिड़ा देना, हमला करने का सबसे आसान तरीका होता है और यह पहले में भी कश्मीर में आज़माया जा चुका है। इसे Suicide Vehicle Borne Improvised Explosive Device (SVBIED) का नाम दिया गया है। संदीप उन्नीथन लिखते हैं कि यह तरीका लेबनानी गृह युद्ध में विकसित हुआ था जब अक्टूबर 1983 में बेरूत में इस्लामी जिहादी संगठन ने 241 अमरीकी मरीन सैनिकों की हत्या कर दी थी।

कश्मीर में पाकिस्तान पोषित आतंकवादी इस प्रकार की वारदातों को नब्बे के दशक में और पुनः 2001 से 2005 के बीच भी अंजाम दे चुके हैं। अप्रैल 2003 में जैश-ए-मुहम्मद ने फिदायीन हमले में एक विस्फोटक भरी कार को श्रीनगर में ऑल इंडिया रेडिओ स्टेशन के गेट से टकरा दिया था और वह धमाका इतना तीव्र था कि कार का इंजन कुछ सौ मीटर दूर स्थित एक ब्रॉडकास्टर के दफ्तर में जा कर गिरा था।

इस प्रकार की वारदात एक झटके में अंजाम तो दी जाती हैं लेकिन इसकी तैयारी बहुत पहले से की जाती है। भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री लाना, उसे वाहन पर असेम्बल करना, कई दिन पहले से इलाके की रेकी करना और पूरा प्लान बनाने में अच्छा-खासा समय लगता है। यह स्थानीय सहायता के बिना संभव ही नहीं है।

आतंकवादियों ने विस्फोटक भरे वाहन से हमला करने की रणनीति करीब डेढ़ दशक पहले से नहीं अपनाई थी। संभवतः इसीलिए सुरक्षा बलों से चूक हुई। वरिष्ठ विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल अता हसनैन (सेवानिवृत्त) लिखते हैं कि ऐसे में गुरुवार की घटना को पूरी तरह से इंटेलिजेंस फेल्योर नहीं कहा जा सकता। लेकिन यह घटना अपने आप में बहुत सारे सवाल खड़े करती है।

पहली बात तो यह कि इंटेलिजेंस का दायरा केवल विभिन्न इंटेलिजेंस एजेंसी के अधिकारियों तक ही क्यों सीमित रहे? कश्मीर की पूरी समस्या ही इंटेलिजेंस जुटाने और उसपर एक्शन लेने से संबंधित है। ज़्यादा मात्रा में मिलने वाली सूचनाएँ या कच्ची जानकारी (raw intelligence) में से कार्रवाई के लायक (actionable intelligence) सूचनाएँ निकालना एक चुनौती होती है। इंटेलिजेंस जुटाने के लिए कश्मीर में विभिन्न एजेंसियाँ दो प्रकार के एजेंट्स का उपयोग करती हैं।    

एक होते हैं डबल एजेंट जो सीमा पार पाकिस्तान के कब्जे वाले अड्डों में घुलमिल जाते हैं। उनसे हमें जो सूचनाएँ मिलती हैं वे अत्यंत गोपनीय होती हैं और दीर्घकालिक परिणाम देने वाली होती हैं। दूसरे होते हैं डुअल (dual) एजेंट जो पैसा लेकर तात्कालिक सूचना देते हैं। ये हमारे देश के इंटेलिजेंस अधिकारी नहीं होते। यदि जिहादी गुटों ने इनको ज्यादा पैसा दिया है तो ये सुरक्षा बलों की जानकारी उनको दे देते हैं। इंटेलिजेंस जुटाने का इस प्रकार का खतरनाक खेल कश्मीर में खेला जाता है।

कुल मिलाकर आतंकियों से लड़ने के लिए हमारी रणनीति आक्रामक (offensive) या प्रतिकारात्मक (counter offensive) होती है। लेकिन असली समस्या बंदूकधारी आतंकवादी नहीं हैं। समस्या है कश्मीर के नागरिकों की आतंकियों से साठ-गाँठ की संभावना। सेना और अन्य सुरक्षा बल इसे समाप्त करने के लिए बहुत सारे काम करते हैं। भारतीय सेना अस्पताल से लेकर स्कूल तक चलाती है। बाढ़ में तो कश्मीरियों को सेना ने अपने कंधों पर ढोया था, फिर भी कश्मीरी युवा बहक जाते हैं। इसका कारण है कि हम अपनी इंटेलिजेंस प्रणाली को सुधारने के लिए ‘आउट ऑफ़ द बॉक्स’ जाकर नहीं सोचते।

जनरल अता हसनैन ने ही एक बार कहा था कि हमें कश्मीर में लगभग 5000 ‘सूचना योद्धा’ अर्थात ‘information warrior’ तैनात करने चाहिए। इनकी आयु 25 से कम होनी चाहिए और इन्हें एक शोध संगठन के अधीन काम करना चाहिए जिसमें कश्मीर मामलों के जानकार, मनोवैज्ञानिक, और इस्लाम के जानकार शामिल हों। अमरीकी सेना ऐसे ‘सूचना-लड़ाकों’ को संवेदनशील इलाकों में तैनात करती है।

अब समय आ गया है कि हम केवल offensive या counter offensive न होकर ‘Subversive Measures’ अपनाएँ। इंटेलिजेंस प्रणाली में बड़े फेरबदल की आवश्यकता है। हमें ऐसे अधिकारी चाहिये जो कश्मीर की आब-ओ -हवा में घुल मिल जाएँ और वहाँ के नागरिकों के अंदर की मज़हबी कट्टरता को ‘dilute’, ‘manipulate’ और अंततः ‘subvert’ करने का कार्य करें। कोई संस्था वहाँ जमीन लेकर प्रवचन देने के लिए आश्रम तो बना नहीं सकती इसलिए यह काम इंटेलिजेंस एजेंसियाँ ही कर सकती हैं।

सबसे पहले इंटेलिजेंस एजेंसियों के बजट में वृद्धि करने की आवश्यकता है। आंतरिक सुरक्षा के लिए वर्ष 2017 में इंटेलिजेंस ब्यूरो का बजट मात्र ₹1577 करोड़ था। एक ऐसी काउंटर इंटेलिजेंस एजेंसी जिसके कंधों पर पूरे देश में आतंकी घटनाओं को रोकने का दारोमदार है और जिसके लिए कश्मीर सबसे बड़ी चुनौती है उसके लिए यह बजट बहुत ही कम है। विभिन्न इंटेलिजेंस एजेंसियों में कश्मीर में सर्वाधिक सक्रिय इंटेलिजेंस ब्यूरो है। लेकिन इन्हें किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। ये जम्मू कश्मीर पुलिस, सेना या CRPF को सूचना भर देते हैं जिसके आधार पर कार्रवाई होती है। ऐसे में आईबी को अधिक अधिकार और साधन सम्पन्न करने की आवश्यकता है।

आउट ऑफ़ द बॉक्स विकल्पों में अत्याधुनिक तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग भी करना होगा। आधुनिक तकनीक जैसे बिग डेटा एनालिटिक्स की सहायता से आतंकवादी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के प्रयास पहले भी किये जा चुके हैं। अमरीका की मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वी एस सुब्रमण्यन ने ऐसी एल्गोरिदम की खोज की है जिससे उन्होंने इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर ए तय्यबा जैसे संगठनों की हरकतों की भविष्यवाणी की थी। वे इसे SOMA और Temporal Probabilistic Rules कहते हैं। इनकी सहायता से प्रोफेसर सुब्रमण्यन ने 2013 में नरेंद्र मोदी की पटना रैली में हुए बम धमाकों की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी।

इस प्रकार के तरीकों का प्रयोग करना आज समय की मांग है। विस्फोटक भरे वाहन टकरा देने की टैक्टिक भले ही डेढ़ दशक पुरानी हो चुकी लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती। हमें यह समझना होगा कि कश्मीर में प्रॉक्सी वॉर चरम पर है। इसके कोई लिखित नियम नहीं हैं। सुरक्षा बलों पर हमला कर देश के मनोबल को गिराने का काम कई दशकों से चल रहा है। यह थका देने वाला मनोवैज्ञानिक युद्ध है अतः इससे लड़ने के उपाय भी पारंपरिक नहीं हो सकते।  

हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ली जा सकती है, पुलवामा हमले के बाद सरकार ने किया बड़ा फैसला

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में कायरतापूर्ण आतंकी हमले के बाद सरकार ने बड़ा फैसले लेते हुए हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की बात कही है। दरअसल, इस दर्दनाक आतंकी हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया था कि घाटी में कुछ लोग नापाक ताकतों के साथ खड़े हैं। यही नहीं घाटी में पाकिस्तान और आईएसआई से पैसा लेने वाले लोग भी मौजूद हैं। उन्होंने शाम में कहा था कि सेना को हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया है। इस बयान के कुछ समय बाद ही सरकार द्वारा हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की बात कही जा रही है।

राजनाथ सिंह के इस बयान से साफ हो गया था कि पाकिस्तानी पैसा पर पलने वाले हुर्रियत नेताओं के ख़िलाफ़ सरकार जल्द कोई बड़ा फैसला लेने वाली है। सरकार ने अपने इस फ़ैसले से देश में पल रहे आतंकी और देशद्रोही को कड़ा संदेश दिया है।

राजनाथ सिंह के साथ बैठक में राज्यपाल, होम सेक्रेट्री, चीफ सेक्रेट्री, डीजीपी जम्मू कश्मीर, आर्मी कमांडर और डीजी सीआरपीएफ के साथ कुछ आला अधिकारी भी मौजूद थे। इस बैठक में सेना को जरूरी निर्देश दे दिए गए हैं। सुरक्षाबलों का हौसला बुलंद करके आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने की बात राजनाथ सिंह ने कही है। राजनाथ सिंह ने कहा कि इस लड़ाई में पूरा देश सेना और सरकार के साथ खड़ा है।

उन्होंने कहा, ‘जम्मू कश्मीर की आवाम को मैं यकीन दिलाना चाहता हूं कि सीमा पार से आतंक फैलाने वालों के मंसूबों को सफल नहीं होने देंगे। मुझे खुशी है कि जम्मू कश्मीर की जनता हमारे साथ खड़ी है। कुछ ऐसे एलिमेंट हैं जो सीमा पार की ताकतों, आतंकी संगठन और आईएसआई के साथ उनकी मिली भगत है. यह लोग आतंकवाद की गहरी साजिश में भी शामिल हैं। आतंक फैलाने वाले यह लोग जम्मू कश्मीर की जनता और जवानों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

गृह मंत्री कश्मीर में मौजूद अलगाववादियों पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि, ‘पाकिस्तान और आईएसआई से पैसा लेने वाली ताकतें भी यहां मौजूद हैं। मैंने सेना के अधिकारियों से कहा है कि ऐसे लोग जो पाकिस्तान से पैसा लेते हैं, आईएसआई के साथ जिन लोगों की मिली भगत है, उनकी सुरक्षा पर विचार करना चाहिए। देश की जनता से भी अपील करना चाहता हूं कि इस समय कई ऐसी ताकतें हैं जो देश में सांप्रदायिक सौहार्द को भी तोड़ने की कोशिश करेंगी।

उन्होंने कहा कि आज की बैठक में यह निर्णय हुआ है कि जिस समय सेना का काफिला चलेगा उस समय स्थानीय लोगों की आवाजाही को रोका जाएगा। इससे होने वाली असुविधा के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।

चीन ने दिखाया असली रंग, मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने से फिर किया इनकार

पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले की जहाँ एक तरफ वैश्विक स्तर पर इस हमले की कड़ी निंदा हो रही है वहीं दूसरी तरफ चीन ने अपना असली रंग दिखा ही दिया। हालाँकि चीन ने इस हमले की निंदा तो की है लेकिन इस हमले को अंजाम तक पहुँचाने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी मानने से इनकार कर दिया।

जानकारी के अनुसार, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग के कहा, “चीन को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले की जानकारी मिली है। हम इस हमले से स्तब्ध हैं। हम शहीदों के परिवारवालों के प्रति संवेदना जताते हैं। हम आतंकवाद के ख़िलाफ़ हैं और इसका पुरज़ोर विरोध करते हैं। इसके अलावा शुआंग ने उम्मीद जताई कि देश की इन आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए आपसी सहयोग करेंगे और क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता को बनाए रखेंगे।”

इसके बाद जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने की बात पूछी गई तो शुआंग ने कहा, “जहाँ तक इस मुद्दे के लिस्टिंग का सवाल है, मैं आपको कह सकता हूँ कि सुरक्षा परिषद की 1267 कमिटी ने लिस्टिंग और आतंकी संगठनों पर अपनी प्रक्रिया और शर्तें साफ़ कर दी हैं। जैश-ए-मोहम्मद को सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध सूची में शामिल किया गया है, चीन इस मसले को ज़िम्मेदारपूर्ण तरीक़ो से हैंडल करना जारी रखेगा।”

बता दें कि अज़हर पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने की माँग करते हुए भारत ने कहा, “हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों से जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख अज़हर समेत आतंकियों की लिस्ट के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की 1267 सैंक्शंस कमिटी के तहत आतंकी घोषित करने के लिए समर्थन देने की फिर अपील करते हैं। हम पाकिस्तान के कब्ज़े वाले इलाकों से संचालित आतंकी संगठनों को भी बैन करने की माँग करते हैं।” लेकिन UNSC के स्थायी सदस्य चीन ने भारत की इस माँग पर सहमति देने की बजाए फिर से इनकार किया है।

ऐसा माना जा रहा कि पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर अज़हर को वैश्विक आतंकी करार देनी की माँग उठाई जाएगी। फिर भले ही सरकार की तरफ से यह पहली प्रतिक्रिया हो। जैश प्रमुख मसूद के अलावा उसके भाई अब्दुल रउफ असगर को भी आतंकी लीडर के तौर पर शामिल किया गया है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को तो 1267 कमिटी के द्वारा ग़ैरक़ानूनी करार दिया जा चुका है, लेकिन उसका प्रमुख अज़हर अभी भी बेख़ौफ़ बाहर घूम रहा है।

चीन का यह दोहरा चरित्र एक बार नहीं बल्कि कई बार पहले भी देखने को मिल चुका है। इससे पहले भी वो भारत के संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के तहत अज़हर को वैश्विक आतंकी की लिस्ट में नामजद करने के प्रयासों को विफल करता आया है। इसके अलावा चीन के संबंध भारत के साथ विवादित रहे हैं कभी डोकलाम को लेकर तो कभी पाकिस्तान को सहायता देने के बहाने। वहीं हाल के दिनों में पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध प्रगाढ़ होते दिख रहे हैं, जिसके चलते चीन हमेशा से ही भारत के साथ दोहरा रवैया अपनाता चला आया है।