Monday, October 7, 2024
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2014 में मसूद अज़हर की वापसी और आतंक की स्क्रिप्ट का पुनर्लेखन

जनवरी 2014 का महीना था। पूरा भारत आम चुनाव के लिए तैयार हो रहा था, नरेंद्र मोदी के उद्भव से उत्साहित जनता राजनीतिक चर्चों में मशगूल थी, राजनीतिक पार्टियाँ और उनके स्टार प्रचारक हवाई दौरे से लेकर ज़मीनी पदयात्रा तक- जनता तक पहुँचने के लिए सारे विकल्पों का प्रयोग कर रहे थे। 2G घोटाले की मार से अभी-अभी उबरे देश में 3D रैलियाँ की जा रही थी। लेकिन ठीक उसी समय पाकिस्तान में कुछ ऐसी घटनाएँ घट रही थी, जिन पर मीडिया या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान नहीं गया। वो घटनाएँ, जिनके दूरगामी परिणाम हुए। उस दौरान भले ही ये घटनाएँ छोटी-मोटी प्रतीत हुई हो, लेकिन उसके दुष्प्रभावों ने भारत को कई बार झकझोरा।

खूंखार आतंकी की वापसी

जनवरी 2014 का महीना था। मौका था अफ़ज़ल गुरु द्वारा लिखी गई पुस्तक के विमोचन का। जी हाँ, वही अफ़ज़ल गुरु जो भारत के संसद भवन पर हुए हमले का मास्टरमाइंड था। उसे फाँसी दे दी गई थी। पाक अधिकृत कश्मीर की कथित राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद में आयोजित इस रैली में एक ऐसे शख़्स ने एंट्री ली, जिस से पूरे पाकिस्तानी मीडिया में खलबली मच गई। भारतीय जाँच एजेंसियों तक के कान खड़े हो गए। रैली में आए 10,000 लोगों को आतंकी मसूद अज़हर ने फोन के द्वारा सम्बोधित किया।

उस दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत को आश्वासन दिया था कि मसूद अज़हर की वापसी से उसे डरने की ज़रुरत नहीं है। लेकिन, जिस आतंकी ने भारत को अगनित घाव दिए हों, उसकी वापसी से भारत भला कैसे चिंतित नहीं होता? मसूद अज़हर का नाम आते ही कंधार प्लेन हाईजैक से लेकर 6 विदेशियों के अपहरण तक- ख़ून और आतंक से सनी दास्तानें याद आ जाती है। कई दिनों से निष्क्रिय मसूद अज़हर का आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद कहने को तो पाकिस्तान में प्रतिबंधित था और यह भी मान लिया गया था कि संगठन पर मसूद की पकड़ ढ़ीली पड़ रही है। लेकिन, मसूद की वापसी के पीछे उसका कुछ और ही इरादा था।

अगर मसूद अज़हर की उस रैली में कही गई बातों पर हम आज ग़ौर करें, तो पता चलता है कि पठानकोट और पुलवामा की पटकथा उसी वक़्त लिखी जानी शुरू कर दी गई थी। मसूद अज़हर ने पाकिस्तान सरकार से जिहाद पर लगे कथित प्रतिबन्ध को हटाने की माँग की। मसूद के उस भाषण ने पाकिस्तानी आतंकियों को नए जोश से लबरेज कर दिया, वहाँ के अधिकतर आतंकियों को मसूद के भीतर एक मसीहा नज़र आने लगा। ख़ासकर जो कश्मीर की ‘आज़ादी’ के नाम पर आतंक फैलाने वाले समूह थे, उनमे नई ऊर्जा का संचार हुआ।

पाकिस्तान ने मसूद को फिर से स्थापित किया

मुज़फ़्फ़राबाद की वो रैली काफ़ी अच्छे तरीक़े से आयोजित की गई थी। अगर एक प्रतिबंधित आतंकी संगठन के नेता ने इतना बड़ा आयोजन करवा लिया तो कोई यह कैसे मान सकता है कि पाकिस्तानी प्रशासन, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दे रही है। रैली इतने सुव्यवस्थित तरीक़े से आयोजित की गई थी और समर्थकों को आयोजन स्थल तक लाने के लिए ऐसे इंतजाम किए गए थे, जिस से पता चलता है कि इस रैली को आयोजित करवाने में पाकिस्तान सरकार का पूरा हाथ था।

रैली का स्थल और तारीख़ का चुनाव भी काफ़ी तैयारी के बाद किया गया था। आयोजन की तारीख़ थी- 26 जनवरी। यानी भारत का गणतंत्र दिवस। तिरंगे के रंग में रंगे भारत की जनता तक शायद इस रैली की ख़बर पहुँची ही नहीं, या फिर हमने इसे हलके में लिया। किसे पता था कि इस एक रैली की वजह से भारतीय सपूतों को मातृभूमि की बलि-बेदी पर क़ुर्बान होना पड़ेगा। जहाँ एक भी भारतीय नागरिक या सुरक्षा बल के जवान की मृत्यु दुःखद और त्रासद है, किसे पता था कि वहाँ 50 से भी अधिक (पठानकोट और पुलवामा) शहीद हो जाएँगे।

उस रैली को सम्बोधित करते हुए मसूद ने कहा था कि भारत में आतंक फैलाने के लिए उसके पास हज़ार से भी अधिक जिहादी तैयार बैठे हैं। उसके भाई असगर ने भी उस रैली में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था- वही असगर जो पुलवामा हमले का भी मास्टरमाइंड है। उस रैली में वो सारे किरदार जमा हुए थे, जो भारत के टुकड़े करने का दिवास्वप्न देखते हैं। पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने पाकिस्तान सरकार के दोहरे रवैये पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि एक प्रतिबंधित संगठन के नेता ने कैसे इतना बड़ा आयोजन कर लिया।

यह कैसा प्रतिबन्ध? यह कैसा रवैया?

हुक्मरानों का यह दावा रहा है कि जैश पर प्रतिबन्ध पाक अधिकृत कश्मीर में लागू नहीं होता। डॉन अख़बार ने इस पर भी कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह हास्यास्पद है क्योंकि मसूद अज़हर पाकिस्तान के पंजाब में स्थित बहावलपुर से ही संगठन के सारे कामकाज देख रहा था। मसूद के उस भाषण को रिकॉर्ड कर के पाकिस्तान में सर्कुलेट किया गया। लोगों को और जिहादियों को उसके भाषण के अंश सुनाए गए। कुल मिला कर देखा जाए तो उस एक रैली से खूंखार मसूद अज़हर पाकिस्तान की व्यवस्था में सक्रिय होकर अपना आतंकी किरदार निभाने के लिए फिर से जी उठा था।

मसूद अज़हर को बचाने में चीन का भी अहम रोल रहा है। भारत ने जब-जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की, तब-तब चीन ने भारत के इस क़दम पर वीटो लगा दिया। पाकिस्तान की बची-खुची प्राकृतिक सम्पदाओं पर नज़र गड़ाए बैठे चीन ‘बेल्ट एन्ड रोड’ में उसका साथ पाने के लिए भी पाकिस्तान की तरफ़दारी करता रहा है। साम्राज्यवाद की मानसिकता के मारे चीन ने तो यहाँ तक भी कह दिया था कि पाकिस्तानी सरज़मीं पर भारत द्वारा की गई कोई भी कार्रवाई सीधा चीन पर आघात माना जाएगा।

पाकिस्तान और आतंकवाद: यह रिश्ता क्या कहलाता है…

जब पठानकोट पर आतंकी हमला हुआ था, तब भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दबावों के कारण चीन ने मसूद अज़हर को कस्टडी में लेने का दावा किया था। 2008 मुंबई हमले के बाद अंडरग्राउंड हुआ मसूद जब 2014 में निकला, तभी पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों को उसे गिरफ़्तार करना चाहिए था। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। मसूद और असगर- दोनों भाइयों के ख़िलाफ़ मई 2016 में ही इंटरपोल द्वारा रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका है, लेकिन फिर भी पाकिस्तान में उन्हें खुले में रैली करने की छूट है।

2008 मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड हाफ़िज़ सईद वहाँ के चुनावों में भाग लेता है, मसूद को जिहादी रैली आयोजित करने की पूरी छूट दी जाती है, इंटरपोल की नोटिस के बावजूद इन्हें गिरफ़्तार नहीं किया जाता- यह सब दिखाता है कि पाकिस्तान जान-बूझ कर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, आतंकियों को पोषित कर रहा है। सबूत पर सबूत देने के बावजूद पाकिस्तान आतंकियों पर कार्रवाई करने में विफल रहा है। आपको बता दें कि इंटरपोल किसी भी आतंकी के ख़िलाफ़ तभी नोटिस जारी करता है, जब उसे सबूत दिया जाए कि फलाँ अपराधी ने फलाँ अपराध किया है। वही सबूत अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के लिए विश्वसनीय हैं लेकिन पाकिस्तान के लिए बस एक काग़ज़ का टुकड़ा है।

असल में राजनीति, सेना और आतंकवादी- ये सभी पाकिस्तान में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये तीनों एक-दूसरे के हितैशी हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को ही तालिबान ख़ान के नाम से जाना जाता है क्योंकि तालिबान व आतंकी संगठनों के प्रति उनका रवैया बहुत ही सॉफ्ट रहा है। वो उनकी वकालत करते रहे हैं। इमरान तो बस एक मुखौटा है, सत्ता अभी भी पाकिस्तानी सेना के हाथों में ही है।

Pulwama Terror Attack: गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवान को दिया कंधा

आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह जम्मू-कश्मीर के पुलवामा पहुँचे। गृहमंत्री ने वहीं एक शहीद जवान के शव को कंधा दिया। समाचार एजेंसी एएनआई ने एक वीडियो ट्वीट किया है, इस वीडियो में गृहमंत्री राजनाथ सिंह और कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह शहीद जवान को कंधा देते हुए नजर आ रहे हैं।

इसके बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और भारतीय सेना के उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने पुलवामा हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवानों को श्रद्धांजलि भी दी।

दरअसल, जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकियों द्वारा किए गए हमले में सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवान शहीद हो गए हैं। श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर स्थित अवंतीपोरा इलाके में आतंकियों ने जवानों की गाड़ी को निशाना बनाते हुए आतंकी घटना को अंजाम दिया।

हमले के बाद दक्षिण कश्मीर के कई इलाकों में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अलर्ट जारी किया गया है। बताया जा रहा है कि सुरक्षाबलों के काफ़िले पर जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन ने आत्मघाती हमला किया जिसमें करीब 40 से अधिक जानें गईं।

इस घटना की कड़ी निंदा करते प्रधानमंत्री ने पुलवामा आतंकी घटना पर बोलते हुए कहा: “साथियो, पुलवामा हमले के बाद, अभी मन:स्थिति और माहौल दुःख और साथ ही साथ आक्रोश का है। ऐसे हमलों का देश डटकर मुकाबला करेगा, रुकने वाला नहीं है।”

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं पुलवामा के आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उन्होंने देश की सेवा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए हैं। दुःख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएँ, उनके परिवारों के साथ हैं।”

प्रधानमंत्री ने इस मामले पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है।

NDTV की डेप्यूटी न्यूज़ एडीटर सस्पेंड, जवानों की शहादत का उड़ाया था मजाक

विवादों में रहने वाले मीडिया हाउस एनडीटीवी ने अपने Deputy News Editor को पुलवामा हमले को लेकर किए गए एक विदास्पद फे़सबुक पोस्ट के बाद निलंबित कर दिया। एनडीटीवी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, “संगठन के एक एडिटर द्वारा की गई टिप्पणियों की हम निंदा करते हैं। हमने उन्हें 2 सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया है। आगे की कार्रवाई पर कंपनी की अनुशासनात्मक समिति विचार करेगी।”

दरअसल, निधि सेठी ने अपने फे़सबुक पर एक टिप्पणी पोस्ट की थी, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद द्वारा आतंकवादी हमले का महिमामंडन किया गया था। निधि ने लिखा था, “काल्पनिक 56 इंची पर 44 भारी पड़ गए।” इसके साथ, उन्होंने हाल ही में आई फिल्म उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक के प्रसिद्ध डायलॉग ‘हाउज़ द जोश’ पर एक हैशटैग #HowstheJaish जोड़ा था।

निधि के पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर कई लोगों ने एनडीटीवी से पूछा कि क्या वह अपने कर्मचारी के विचार से सहमत हैं? फे़सबुक पर किए गए उनके पोस्ट को ट्विटर पर स्क्रीनशॉट डालते हुए लोगों ने उनकी कड़ी निंदा की। लोगों ने लिखा कि क्या निधि सेठ जवानों के शहीद होने पर जश्न मना रही हैं?

आलोचनाओं में घिरने के बाद निधि ने बड़ी तेज़ी के साथ अपना फे़सबुक एकाउंट डीएक्टिवेट कर दिया। जिससे उनके द्वारा किए गए पोस्ट को अब नहीं देखा जा सकता। फिलहाल यह देखना बाक़ी है उनके इस निंदनीय कृत्य पर क्या कार्रवाई होगी?

यह बड़ी चिंता का विषय है कि जब एक तरफ शहीदों की शहादत पर देश उबल रहा हो और दूसरी तरफ पत्रकार निधि की यह हरक़त भुलाए नहीं भूली जा सकती। बता दें कि निधि के अलावा देश में और भी लोग हैं जो जवानों के शहीद होने पर जश्न मना रहे हैं। ऐसा ही एक और मामला सामने आया है जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र बसीम हिलाल ने भी अपने ट्विटर हैंडल से आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, लेकिन बाद में उसने अपना अकाउंट ही डिएक्टिवेट कर दिया।

आपको बता दें कि बसीम हिलाल को धारा 153A (दो धर्मों में शत्रुता बढ़ाने के लिए) और सूचना एवं प्रौद्योगिक की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए) के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया है और उसे प्रशासन ने यूनिवर्सिटी से निलंबित भी कर दिया।

‘How’s the Jaish’ ट्वीट करने वाले AMU छात्र पर केस दर्ज, ट्वीट के बाद डिएक्टिवेट किया अकॉउंट

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे जम्मू-कश्मीर के एक छात्र बसीम हिलाल को ज़िला पुलिस ने पुलवामा हमले के बाद बेहद आपत्तिजनक ट्वीट करने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया है।

एक तरफ जहाँ इस आतंकी हमले में हमारे सेना के 42 जवान शहीद और दर्जनों घायल हुए हैं, वहीं AMU (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) से गणित में बीएससी कर रहे इस कश्मीरी छात्र ने अपने ट्विटर पर “How’s the Jaish” लिखा। इसके बाद उसने अपने इस ट्विटर अकॉउंट को डिएक्टीवेट कर दिया।

बसीम हलील के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

बता दें कि बसीम की इस हरक़त के लिए उसे धारा 153A (दो धर्मों में शत्रुता बढ़ाने के लिए) और सूचना एवं प्रौद्योगिक की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए) के तहतमामला दर्ज कर लिया गया है। बसीम को AMU से सस्पेंड भी कर दिया गया है। साथ ही परिसर में उसका प्रवेश भी वर्जित कर दिया गया।

बसीम हिलाल पर एएमयू की तरफ़ से उमर सलीम पीरज़ादा ने बताया कि जब उन्हें इस अत्यधिक आपत्तिजनक ट्वीट का पता चला तो तत्काल संज्ञान लेते हुए बसीम को एएमयू से निलंबित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को बदनाम नहीं होने दिया जाएगा।

कुछ समय से छात्रों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के चलते अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी विवादों में घिरी रहती है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब किसी छात्र को यूनिवर्सिटी से निलंबित किया गया हो, सितंबर 2016 में उरी हमले के बाद मुद्दसर यूसुफ़ नाम के कश्मीरी छात्र को भी आपत्तिजनक कमेंट करने पर यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान में अपने उच्चायुक्त को बुलाया वापस, पाकिस्तानी उच्चायुक्त को किया तलब

पुलवामा आतंकी हमले के बाद विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त को तलब किया है, और पाकिस्तान में मौजूद भारत के उच्चायुक्त को वापस बुलाया है। भारत के विदेश सचिव ने कहा कि पाकिस्तान अपने यहाँ आतंकी संगठनों पर तुरंत कार्रवाई करे।

विदेश सचिव ने पाकिस्तान के उस दलील को भी खारिज किया जिसमें उसने आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका से इंकार किया था, और कहा था कि बिना तथ्यों के आरोप लगाना सही नहीं है।

भारत सरकार ने इस आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान में मौजूद अपने उच्चायुक्त अजय बिसारिया को वापस स्वदेश बुला लिया है। विदेश सचिव विजय गोखले ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त सोहेल मोहम्मद को तलब करते हुए आतंकी हमले में शहीद जवानों को लेकर रोष जाहिर किया।

इसके अलावा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर पहुँचकर हालात का जायजा लिया। इस दौरान घाटी के बडगाम में राजनाथ सिंह, राज्यपाल मलिक और नॉदर्न कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने शहीद जवानों की श्रद्धांजलि दी। भारत के पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और श्रीलंका ने इस घटना के बाद आतंक के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की बात कही है।

SC ने अयोध्या मामले में केंद्र को दिखाया संविधान पीठ का रास्ता

केंद्र सरकार की अयोध्या में विवादित ज़मीन छोड़कर बाकी बची ज़मीन मालिकों को वापस लौटाने वाली याचिका पर सुनावाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि इस मामले में आप अपनी बात संविधान पीठ के पास रखें।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा, ”आपको जो कहना है, मुख्य मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से कहें।” चीफ़ जस्टिस और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस मुद्दे को लेकर नई याचिका को मुख्य याचिका के साथ ही संलग्न करने का आदेश दिया है।

क्या है ज़मीन अधिग्रहण से जुड़ा मामला?

बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत मंदिर और उसके आसपास की ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद उस ज़मीन को लेकर दायर की गई सारी याचिकाओं को भी ख़त्म कर दिया गया था। इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की, इसके अनुसार 0.3 एकड़ के ‘विवादित’ क्षेत्र के अलावा बाक़ी के 67 एकड़ की भूमि को उनके मालिकों को लौटाया जा सकेगा। इसी 67 एकड़ के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की गई। अगर कोर्ट ने केंद्र सरकार के पक्ष में फ़ैसला दिया तो यह ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास सहित सभी संबंधित पक्षों को लौटाई जाएगी।

बता दें कि इन 67 एकड़ में से लगभग 42 एकड़ भूमि राम जन्मभूमि न्यास की है। अदालत ने 1994 में कहा था कि जिसके पक्ष में निर्णय आएगा, उसे ही ज़मीन दी जाएगी। अदालत ने केंद्र सरकार को इस ज़मीन को ‘कस्टोडियन’ की तरह रखने को कहा था।

भूरे बनाम भारत सरकार मामले में ज़मीन पर यथास्थिति बरक़रार

2003 में सुप्रीम कोर्ट ने असलम भूरे बनाम भारत सरकार मामले में फै़सला देते समय यह माना था कि पूरी ज़मीन पर यथास्थिति बरक़रार रखना जरूरी है, क्योंकि फै़सला आने पर जिसके भी पक्ष में ज़मीन आए, उसे उस जगह तक पहुँचने में कोई दिक्कत न आए।

कोर्ट का तर्क था कि अगर ज़मीन दे दी जाती है, तो निर्माण कार्य हो सकता है और फै़सले के बाद जिस भी पक्ष को ज़मीन मिलेगी उसे उक्त स्थान तक पहुँचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। अब मामले पर सरकार का कहना है कि फ़ैसला आने के इंतजार में बाक़ी ज़मीन का पड़ा रहना सही नहीं है। उसे उसके मालिकों को लौटा देना चाहिए। सरकार ने कहा है कि विवादित ज़मीन तक आने-जाने का रास्ता देने के लिए जगह छोड़ने को हम तैयार हैं।

उरी से पुलवामा तक… संसद से पठानकोट तक… सब का ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान

पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने पूरे विश्व का ध्यान इस समय आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे की तरफ मोड़ दिया है। लेकिन, आतंकवाद के केंद्र पाकिस्तान पर अब भी कोई खासा फर्क़ पड़ता नहीं दिख रहा है। एक तरफ़ जहाँ पूरे विश्व भर में इस भयावह घटना की निंदा की जा रही है। वहीं पाकिस्तान निंदा करना तो छोड़िए, बल्क़ि कह रहा है कि इस घटना से उसका कोई लेना-देना नहीं है।

पुलवामा में गुरुवार (फरवरी 14, 2019) को हुए आतंकी हमले की पूरी ज़िम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली। पाकिस्तान समर्थित इस संगठन का सरगना मसूद अजहर है, वही मसूद जिसका नाम साल 1991 में भारतीय विमान की हाई जैकिंग, 2001 में संसद पर हमले में और 2016 में पठानकोट के हमले में आ चुका है।

आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं के बाद भी लगातार पाकिस्तान उसमें अपनी संलिप्ता नकारता आया है। इस भयावह घटना के बाद भारत संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान में आज़ादी से घूम रहे इस आतंकी को बार-बार प्रतिबंधित करने की माँग कर रहा है। वहीं पाकिस्तान अपने यहाँ से संचालित होने वाली सभी आतंकी गतिविधियों पर बिल्कुल भी शर्म महसूस नहीं करते हुए कहता है कि वो भारत के लगाए आरोपों को ख़ारिज करता है

पूरे विश्व को मालूम है कि पाकिस्तान की धरती पर लगातार आतंकवादियों को पनाह दी जाती रही है। इसकी सूची बहुत लंबी है। लेकिन, पाकिस्तान को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। नतीजतन भारतीय सेना के ज़वानों को बिना किसी प्रत्यक्ष युद्ध के ही शहीद होना पड़ रहा है। 2016 में उरी हमले के बाद सेना पर यह दूसरा सबसे बड़ा आतंकी मामला सामने आया है।

आज पीएम आवास पर हुई सुरक्षा को लेकर चर्चा के बाद वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस ले लिया गया है। साथ ही उन्होंने बैठक के बाद यह भी आश्वाशन दिया कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि पाकिस्तान को दुनिया से अलग कर दिया जाए।

पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जितने कड़े क़दम उठाए जाएँ, वो बहुत कम हैं। पाकिस्तान का कहना है कि उसका इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए भारत उसे इससे न जोड़े। सोचिए, जिस पाकिस्तान में हर आतंकी संगठन अपना घर मुख्यालय बनाकर रह रहा हो, उस पाकिस्तान को इनका अनुमान बिल्कुल नहीं होगा क्या? लगातार धर्म की आड़ में आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान को अच्छे से यह बात मालूम है कि जो आतंक का बीज वो अपनी सरज़मीं पर लगाता है, उसकी जड़ें भी बनेंगी और वो फैलेंगी भी। जैश-ए-मोहम्मद से लेकर अनेको आतंकियों को और आतंकी संगठनों को आज पाकिस्तान शरण देता है।

हर आतंकवादी को मिलती है जहाँ पनाह…उसे पाकिस्तान कहते हैं!

पाकिस्तान में मसूद ने 31 जनवरी 2000 को जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन का गठन किया था। शायद, इतना काफ़ी है कि पाकिस्तान को ही इस हमले का आरोपित बताया जाए। विदेश मंत्रालय के अनुसार इस आतंकी संगठन के सरगना मसूद अज़हर को पाकिस्तानी सरकार ने पाकिस्तान नियंत्रण वाले इलाकों में अपनी गतिविधियों चलाने और आतंकी ठिकानों को बढ़ाने के साथ ही भारत में और अन्य किसी भी जगह पर हमला करने की छूट दे रखी है। हालाँकि भारत ने कई बार मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने का प्रयास किया है लेकिन इसमें चीन हर बार का अपनी टाँग फँसा देता है।

इसके अलावा दुनिया में सबसे ज़्यादा आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका ‘तालिबान’ 1994 में अपने अस्तित्व में आया था। आज भी अलग-अलग देशों में यह सक्रिय है। क़रीब 60 हज़ार से अधिक आतंकियों का इसमें शामिल होने का अनुमान है। तालिबान की आतंकी गतिविधियों ने अफ़ग़ानिस्तान में हमेशा से ही ख़ौफ का माहौल बनाया हुआ है। जब अमरीकी सेना ने तालिबान को वहाँ से भगाया तो आतंकियों के कर्ता-धर्ता पाकिस्तान ने उसे अपने राष्ट्र में जगह दी। नतीजन आज पाकिस्तान के क्वेटा व पेशावर में इसके मुख्यालय कर मौजूद हैं।

अलकायदा जैसे खूँखार आतंकी संगठन का मुखिया ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान में ही मिला था। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का नेतृत्व करने वाले हाफिज़ सईद भी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है। यह वही हाफिज़ सईद है जिस पर अमेरिका एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित कर चुकी है, लेकिन पाकिस्तान की मेहरबानी से हाफ़िज न नागरिकों की तरह आम जीवन जी रहा है, चुनाव के लिए पार्टी भी बना रहा है और चुनाव के लिए मैदान में उम्मीदवार भी उतार रहा है।

पाकिस्तानी तालिबान कहे जाने वाले ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ की स्थापना 2007 में हुई थी। इसमें 25 हज़ार आंतकी शामिल हैं। अमेरिकी संस्‍था नेशनल कंसोर्टियम फॉर द स्‍टडी ऑफ टेररिज्‍म एंड रिस्‍पॉन्‍सेज टू टेररिज्‍म ने अपनी रिपोर्ट में इसे 2017 का दुनिया का 11वां सबसे खूंखार आतंकी संगठन बताया है।

पाकिस्तान में लश्कर-ए-झंग्वी नाम का आतंकी संगठन भी पनाह पाए हुए है। 2009 में हुए श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए आतंकी हमले में भी इसी संगठन का नाम आया था।

हिज़्बुल मुज़ाहिद्दिन जिसका नाम आए दिन कश्मीर में हो कही आतंकी गतिविधियों में आता रहता है, उसका गठन भी 1989 में हो गया था। इस संगठन के आतंकी कैंप पाकिस्तान की सरज़मीं से चलते हैं। इसका मुख्यालय मुज़्फ़्फरबाद में है। इस समय इसके मुखिया सैयद सलाहुद्दीन हैं। जिसे अमेरिका ने  2017 में स्‍पेशियली डेजिनेटेड ग्‍लोबल टेररिस्‍ट घोषित किया है।

इतने सारे आतंकियों को पनाह देने वाला पाकिस्तान जब अपनी ग़लती को मानने की जगह उस पर हाथ खड़े करता है। तो ज़ाहिर है कि किसी भी राष्ट्र का और अपने राष्ट्र से प्रेम करने वाले राष्ट्रवादी का ख़ून खौलेगा ही। आज भारत में गौ प्रेम में अगर व्यक्ति कुछ बोल दे तो उस पर हिंदू आतंकी होने का टैग लग जाता है। लेकिन, पाकिस्तान की इन हरक़तों पर बोलने वाले सेकुलर लोग ऐसी घटनाओं पर शांति बनाए रखने जैसी बातें करते हैं। पाकिस्तान
का अस्तित्व में होना (जब तक वो आतंकवाद को पनाह देता है पूरे विश्व के लिए ख़तरनाक है, इसलिए ज़रूरी है उसे अलग कर दिया जाए।

ऊपर लिखे आतंकी संगठन बहुत चुनिंदा है जिनके अस्त्तिव में होने की ख़बर हमें मालूम है। लेकिन, सोचिए एक सरज़मीं पर जहाँ इतने आतंकी संगठन पल-पोस कर बढ़ रहे हों। वहाँ के आम जनों पर इसका क्या फ़र्क़ पड़ता होगा। क्या कभी वहाँ के नागरिकों को आतंकियों को शरण देने पर विरोध नहीं करना चाहिए? या, हमलों के बाद पल्ला झाड़ लेने वाली सरकार को क्या इसके ख़िलाफ़ कड़े क़दम नहीं उठाने चाहिए? ये कोई पहली घटना तो है नहीं… अगर हर आम जन के मन में उठ रहे सावलों के जवाब पाकिस्तान नहीं दे सकता, तो क्या यह मान लिया जाए कि वहाँ का हर व्यक्ति आतंकवाद के समर्थन में हैं। और, अगर ऐसा है तो इल्ज़ाम लगने पर पल्ला क्यों झाड़ा जा रहा है?

आख़िर कब तक 72 हूरों की कहानी और काफ़िरों के गुनाहों की शिक्षा देकर उन्हें आतंकी बनने की ओर बढ़ावा मिलता रहेगा? कब तक शांति को बनाए रखने वाला इस्लाम हर आतंकी संगठन का धर्म होगा? पाकिस्तान के कारनामों पर मैं अगर सवाल न भी करूँ तो यह सब सबूत बोलने लगते हैं, कि उरी से लेकर पुलवामा तक, संसद से लेकर पठानकोट तक सबका ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान ही है।

फैक्ट चेक: क्या जाँच एजेंसियों के इनपुट होने के बावजूद पुलवामा सुरक्षा में कोताही बरती गई?

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में कायरतापूर्ण आंतकी हमले में देश की सुरक्षा में लगे 40 से अधिक जवान शहीद हो गए। 40 से अधिक जवानों के शहीद होने के बाद जब देश दु:ख की घड़ी में है। जब इस विषम परिस्थिति में शहीद परिवारों के साथ खड़े होने की जरूरत है। जब एक स्वर में आतंक के ख़िलाफ़ पूरे विश्व को एक संकेत देने की जरूरत है। ऐसे समय में कुछ लोग अपने ओछे ज्ञान के हवाले से आरोप-प्रत्यारोप करने और सरकार को कोसने में लगे हैं।

ऐसे समय में अटल बिहारी द्वारा संसद में कही गई वो पंक्ति याद की जानी चाहिए कि – सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएँगी और जाएँगी, पार्टियाँ बनेंगी और बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए और देश का लोकतंत्र रहना चाहिए।

दरअसल, इस दर्दनाक घटना के बाद कुछ लोगों द्वारा सोशल मीडिया के अलग-अलग माध्यमों पर एक पर्ची फैलाकर यह कहने की कोशिश की जा रही है कि सरकार को इस घटना के बारे में इनपुट पहले ही दी गई थी। सरकार को घटना के बारे में पहले ही सतर्क किया गया था, लेकिन रक्षा मंत्रालय और सेना के उच्चाधिकारियों द्वारा इस मामले में ध्यान नहीं दिया गया। इसके फलस्वरुप आतंकी ने इस घटना को अंजाम दिया है।

इस पर्ची को सोशल मीडिया के अलग-अलग माध्यमों पर भेजने वाले लोगों को सबसे पहले तो यह सोचना चाहिए कि क्या सरकार या सेना पर आरोप लगाने का यह सही समय है? क्या वो जानते हैं कि इनपुट होने के बावजूद सुरक्षा बलों ने सतर्कता नहीं बरती है? क्या ऐसी पर्ची सोशल मीडिया पर भेजने वालों ने सुरक्षा में लगे इन जवानों के पक्ष को जाना है? सोशल मीडिया पर यह पर्ची सर्कुलेट कर रहे लोगों के पास शायद इन सवालों के जवाब नहीं है। इन लोगों के पास यदि इस सवाल का जवाब होता तो शायद दु:ख की इस घड़ी में वो छिंटाकशी नहीं कर रहे होते।

यह बात सही है कि देश की सुरक्षा में लगे जाँच एजेंसियों के लोग दिन-रात काम कर रहे हैं। देश की सेवा में लगे जाँच एजेंसियों को आतंकी हमले के बारे में जैसे ही संदेह हुआ, उन्होंने देश की सुरक्षा में लगे CRPF, BSF, ITBP, CISF आदि को सतर्क करते हुए प्लाटून के आवागमन के दौरान सतर्क बरतने की सलाह दी थी।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि नोटिस भेजे जाने के बावजूद CRPF या रक्षा मंत्रालय द्वारा इस मामले में सतर्कता नहीं बरती गई है। सुरक्षा बल के जवानों को रवाना करने से पहले हाइवे की जाँच की गई थी।

सीआरपीएफ के इंसपेक्टर जनरल (ऑपरेशन) जुल्फीकार हसन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पिछले दिनों आतंकी द्वारा आईडी ब्लास्ट किए जाने की संभावना जाहिर की थी। यही वजह है कि 78 गाड़ियों पर लगभग 2500 सीआरपीएफ के जवानों को भेजने से पहले हाइवे पर आईडी ब्लास्ट किए जाने की हर पहलु को सही से जाँच लिया गाया था। आतंकी को आईडी ब्लास्ट करने का कोई लूप-होल नहीं मिला, जिसके बाद स्कार्पियो की मदद से हमले को अंजाम दिया।

इसी तस्वीर के आधार पर सुरक्षा एजेंसी और सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है

सीआरपीएफ के इंसपेक्टर जनरल (ऑपरेशन) जुल्फीकार हसन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पिछले दिनों आतंकी द्वारा आईडी ब्लास्ट किए जाने की संभावना जाहिर की थी। यही वजह है कि 78 गाड़ियों पर लगभग 2500 सीआरपीएफ के जवानों को भेजने से पहले हाइवे पर आईडी ब्लास्ट किए जाने की हर पहलू को सही से जाँच लिया गया था। आतंकी को आईडी ब्लास्ट करने का कोई सही तरीका नहीं मिला, जिसके बाद स्कार्पियो की मदद से हमले को अंजाम दिया।

इसके अलावा अधिकारी ने कहा कि आतंकी द्वारा काफिले पर गोलीबारी किए जाने या फिर ग्रेनेड हमला करने की भी कोई संभवाना नहीं थी।

सीआरपीएफ इंस्पेक्टर हसन की मानें तो आमलोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हाइवे को वनवे आवाजाही के लिए खुला छोड़ा गया था, जिसका गलत फायदा उठाकर आतंकी ने इस कायरतापूर्ण घटना को अंजाम दिया।

इस तरह सीआरपीएफ अधिकारी के इस बयान से साफ होता है कि देश की जाँच एजेंसी ने जो इनपुट दिया, उसके आधार पर सीआरपीएफ द्वारा रूट को अच्छे से जाँच लिया गया था। यही नहीं आतंकी द्वारा किए जाने वाले किसी भी तरह के अटैक की संभावना की बारीकी से जाँच की गई थी। लेकिन आम जनता के सुविधाओं के लिए जो छूट दी गई आतंकी आदिल अहमद ने उसका गलत फायदा उठाकर घटना को अंजाम दिया।

यदि सोशल मीडिया पर इस पर्ची को सर्कुलेट करने वाले लोग इन पहलुओं को जान लेते तो शायद उन्हें पता चल जाता कि सरकार और देश के सुरक्षा में लगे लोग अपनी तरफ़ से दिन रात इस तरह की घटना को रोकने के लिए काम कर रहे हैं।

यदि किसी कमी का फायदा उठाकर आतंकी इस तरह की कायर घटना को अंजाम देता है, तो हमें समझना होगा कि सरकार या देश की सुरक्षा में लगे जवानों की कमजोरी का पता कर आलोचना करने के बजाय हमें एक स्वर में आतंकी सोच के ख़िलाफ एकमत होकर खड़े होने की जरूरत है।

जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अज़हर के भाई के पुलवामा मास्टरमाइंड होने की संभावना

DNA के लेख के अनुसार, पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अज़हर के भाई, मुफ़्ती अब्दुल रऊफ़ असगर के मास्टरमाइंड होने का संदेह है। इस बाबत पुख़्ता सबूत जुटाने का प्रयास किया जा रहा है कि क्या अब्दुल रऊफ़ असगर ने पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के साथ मिलकर इस आत्मघाती हमले की साज़िश रची थी?

बता दें कि इससे पहले एनआईए (राष्ट्रीय जाँच एजेंसी) नवंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के नगरोटा में सेना के एक शिविर पर हुए हमले से जुड़े मामले में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद के भाई मौलाना अब्दुल रोउफ असगर समेत 13 अन्य के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की थी। इस चार्जशीट में जाँच एजेंसी के प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा था कि दंड संहिता, ग़ैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी।

फ़िलहाल, जाँच एजेंसियों को पता चला है कि पिछले तीन महीनों में जैश-ए मौहम्मद आतंकी संगठन दक्षिण कश्मीर में अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए फिर से अपना नेटवर्क दुरुस्त कर रहा है।

पुलवामा हमले की साज़िश रचने वाले जैश के आतंकी आदिल अहमद उर्फ वकास कमांडो का एक संदेशरूपी वीडियो भी जारी किया गया। ये वही आतंकी है जो मई 2018 में सेना के एनकाउंटर में बच निकला था। इसी ने विस्फोटक से भरी कार जवानों की बस से टकराई। 

पिछले साल (2018), सुरक्षा बलों ने घाटी में आतंकी मौहम्मद उस्मान को मार गिराया था। ये वही उस्मान है जो जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अज़हर का भतीजा था। इससे पहले साल 2017 में, सुरक्षा बलों ने बारामूला में जैश के ऑपरेशनल चीफ़ ख़ालिद को मार गिराया था।

राज्य के घटनाक्रम पर नज़र रखने वालों ने कहा कि राज्य में एक आत्मघाती कार द्वारा किया गया यह हमला बहुत असामान्य था और पिछले दो दशकों में कश्मीर में ऐसा हमला नहीं हुआ है।

जैश-ए-मोहम्मद ने पहला आत्मघाती हमला साल 2000 में किया था, जब श्रीनगर के अफ़ाक अहमद शाह ने श्रीनगर में सेना के 15 कोर मुख्यालय के प्रवेश द्वार में विस्फोटक से लदी मारुति 800 को टक्कर देने की कोशिश की थी। हालाँकि, सैनिकों ने हमलावर को चुनौती दी और विस्फोटकों को समय से पहले विस्फोट करने के लिए मजबूर किया।

इसके बाद जैश संगठन ने फिर से उसी स्थान पर एक और आत्मघाती हमला किया, जिसे नाकाम कर दिया गया। इस तरह की बमबारी 2001 के दौरान हुई थी जब जैश संगठन ने श्रीनगर के जहाँगीर चौक पर पुराने विधानसभा भवन के गेट के बाहर विस्फोटकों से भरी एक टाटा सूमो में विस्फोट किया था। इस हमले में 38 लोग मारे गए थे और 40 अन्य घायल हुए थे। विस्फोट के बाद, जैश के तीन आतंकवादी विधानसभा परिसर में घुस गए, जिन्हें बाद में मार गिराया गया था।

पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले की पूरे राजनीतिक क्षेत्र में व्यापक निंदा हुई। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा: “पुलवामा में सीआरपीएफ कर्मियों पर हमला निंदनीय है। मैं इस नृशंस हमले की कड़ी निंदा करता हूँ। हमारे बहादुर सुरक्षाकर्मियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पूरा देश शहीदों के परिवारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।” इस बीच, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के भी आज श्रीनगर पहुँचने की उम्मीद है।

नाम टाइम्स ऑफ ‘इंडिया’ लेकिन काम ‘पाकिस्तान’ वाला; लानत है!

हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया तंत्र की हमारे देश में मज़बूत उपस्थिति है। सैंकड़ों अख़बार, न्यूज़ चैनल, न्यूज़ पोर्टल से लेकर रेडियो और यूट्यूब तक मीडिया हर जगह उपस्थित है। मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वो राष्ट्रहित की बात करे, जनता से जुड़े मुद्दों को उठाए और जनहित की बात करे। लेकिन हमारे देश में स्थिति उलट गई है। ऐसा लगता है कि मीडिया के एक गिरोह विशेष का भारतीय सुरक्षा बलों के ऊपर से भरोसा उठ गया है। ताज़ा मामला टाइम्स ऑफ इंडिया का है।

पुलवामा में हुए त्रासद आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान परस्त आतंकियों का हाथ है। सर्वविदित है कि पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों का पोषक है, उनका अभिभावक है। अपनी सुविधा के हिसाब से पाकिस्तान इन आतंकियों का इस्तेमाल करता रहा है ताकि भारतीय सरज़मीं पर आतंक फैलाया जा सके। अब जब सिर्फ़ भारत में ही नहीं, भारत के बाहर भी पाकिस्तान पर उन आतंकी संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है तब देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान में से एक ने ऐसी ही भाषा अपनाई है, जो पाकिस्तान से मिलती-जुलती है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की भाषा, जो पाकिस्तान के बयान से काफ़ी मिलती जुलती है (साभार: TOI)

सिद्धू जैसे नेता पाकिस्तान के गुण गाते नहीं थकते। कश्मीर के अलगाववादियों का तो जीवन-यापन ही पाकिस्तान के पैसों से चलता है। कश्मीरी नेतागण का पाकिस्तान प्रेम जगज़ाहिर है। मीडिया के एक गिरोह का तो कहना ही क्या! टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलवामा हमले को लेकर जो हैडिंग बनाई है, वो शहीदों का अपमान है। जहाँ हमें उन रक्तपिपासु आतंकियों की निंदा करनी चाहिए जिन्होंने हमे इतना बड़ा घाव दिया है, यहाँ हमारे ही देश का मीडिया उन्हें आतंकी कहने में शर्म महसूस कर रहा है।

आतंकी को आतंकी कहना सीखिए जनाब

अब, टाइम्स ऑफ इंडिया के हैडिंग पर ग़ौर फरमाएँ। इसने अपने प्रमुख पृष्ठ की हैडिंग में लिखा है कि भारत सरकार ने पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान पर ‘आरोप’ मढ़ा है। देश की जनता TOI से पूछना चाहती है कि क्या यह सिद्ध नहीं है कि पाकिस्तान अपने आतंकियों को भेज कर कश्मीर में ख़ून का रमज़ान खेलता रहा है? क्या TOI को भी कुछ नेताओं की तरह आतंकी घटनाओं में पाकिस्तान का हाथ होने के सबूत चाहिए? प्रत्यक्ष के प्रमाण को देख कर भी इस प्रकार की अनर्गल बातें करना, क्या यह देश की प्रमुख मीडिया नेटवर्क को शोभा देता है?

TOI मानता है कि भारत सरकार पाकिस्तान पर आरोप लगा रहा है। इस मामले में पाकिस्तान का जो बयान आया है उस पर भी ग़ौर करना चाहिए। पाकिस्तान ने कहा कि वह बिना जाँच के भारतीय मीडिया और सरकार द्वारा हमले का लिंक पाकिस्तान से जोड़ कर तमाम आरोपों को सिरे से ख़ारिज करता है। पाकिस्तान इसे आक्षेप बताता है, टाइम्स ऑफ इंडिया इसे आरोप कहता है- दोनों में अंतर क्या है? हमारे देश का मीडिया देश के दुश्मनों की भाषा में बात करे, यह देश और देश का लोकतंत्र- दोनों के लिए ही ख़तरनाक है।

सबसे अव्वल तो यह कि टाइम्स ऑफ इंडिया को आतंकी को आतंकी कहने में भी शर्म महसूस हो रही है। पाकिस्तान की वास्तविकता को ‘आरोप’ कहने वाले TOI के लिए 40 से भी अधिक भारतीय जवानों की जान लेने वाला आत्मघाती हमलावर आतंकी नहीं है। वह ‘कश्मीर का स्थानीय युवा’ है। अब तो बस कीजिए जनाब। आपको करोड़ों लोग रोज पढ़ते हैं। आपके इस हैडलाइन से देश की जनता के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ेगा- कम से कम इसका तो ध्यान रखा कीजिए।

क्या पाकिस्तान जैश और अज़हर का पोषक नहीं है?

अपनी हैडलाइन के नीचे सबटाइटल के रूप में TOI ने लिखा है- ‘भारत ने पाकिस्तान पर जैश-ए-मोहम्मद’ और अज़हर मसूद का समर्थन करने के आरोप लगाए।’ अख़बार ने जैसी भाषा का प्रयोग किया है, उसे पढ़ कर पाकिस्तान और पाकिस्तान में पल रहा हर आतंकी ख़ुश होगा। जैश-ए-मोहम्मद एक आतंकी संगठन है, जो पाकिस्तान की धरती पर फलता-फूलता है। सर्वविदित है कि पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई ने उसे भारत में आतंक फ़ैलाने के लिए तैयार किया था। आतंकी संगठन जैश का आका अज़हर पाकिस्तान की छत्रछाया में पालते हैं।

जहाँ भारत सरकार अज़हर को गिरफ़्तार करना चाहती है, उसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है (उस अभियान के इस हमले के बाद और प्रबल होने की ज़रूरत है), उसे भारत के ही मीडिया का एक वर्ग पाकिस्तान पोषित नहीं मानता। अगर जनाब ऐसा है, तो आप अपना नाम बदल कर ‘टाइम्स ऑफ पाकिस्तान’ कर लीजिए, क्योंकि भारत सरकार, भारतीय सुरक्षा बल, भारतीय सेना और भारत की जनता की भावनाओं के ख़िलाफ़ लिख कर आपने अपने नाम में भारत का नाम रखने का हक़ खो दिया है।

भारत के भीतर भी ज़रूरी है सर्जिकल स्ट्राइक

पाकिस्तान के आतंकी आकाओं का सफ़ाया तो आवश्यक है ही, साथ ही ज़रूरी है देश के भीतर पनप रहे राष्ट्र-विरोधी मानसिकता वाले लोगों का सफ़ाया। हमने देखा कि कैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निकला छात्र आतंक का दामन थाम लेता है। हम देखते हैं कि अलगाववादी भारत का नमक खा कर भारत-विरोधी कार्यकलाप में व्यस्त रहते हैं। कुछ नेताओं का भारतीय सुरक्षा बलों को सवालों के घेरे में खड़ा करना भी हमें दिखता है। हमारी नज़र के सामने ही कश्मीरी नेतागण पाकिस्तानपरस्ती वाली भाषा बोलते हैं। हम कुछ नहीं कर पाते।

सब कुछ सरकार नहीं करेगी। कुछ ज़िम्मेदारियाँ आम लोगों को भी लेनी होगी। जब हमारे सुरक्षा बल पाकिस्तान पोषित आतंकियों को सीमा पर मार गिरा रहे हों, हमे अपने देश-समाज में ऐसे पाकिस्तान परस्तों का बहिष्कार करना चाहिए। जो अख़बार भारत में व्यापार चला कर भारत के दुश्मनों की भाषा बोलता है, उसे बहिष्कृत कर उस से सवाल पूछे जाने चाहिए। उसे माफ़ी माँगने को मजबूर किया जाना चाहिए। तब वो ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे।

जो नेता सुरक्षा बलों को कटघरे में खड़ा करता है, अपनी जान पर खेल कर हमारी जान की रक्षा करने वाले जवानों के ख़िलाफ़ -बोलता है- वो नेता जब चुनावों के दौरान वोट माँगने आए तो जनता द्वारा उसे राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। भारत में रह कर पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों को यह बताने का समय आ गया है कि आप ऐसी घटिया हरक़त कर के देश की जनता को और उस जनता की मदद से चला रहे अपने व्यापार को ग्रांटेड नहीं ले सकते। अब समय आ गया है। सीमा को सेना दुरुस्त करेगी, देश को हम और हमारा समाज ठीक करेगा।