Sunday, October 6, 2024
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चुंबन दिवस विशेष: राफ़ेल ने कहा राहुल से ‘ज़हर है कि प्यार है तेरा चुम्मा’

आज कैग रिपोर्ट भी आ गई, बताया कि राफ़ेल विमान मोदी सरकार ने मनमोहन काल से 2.86% सस्ते में लिया है। ये डील सस्ती कैसे हुई, उसके सारे कारण आप यहाँ पढ़ सकते हैं। लेकिन गुणियों में श्रेष्ठ, घोटालों को सूँघकर जान लेने वाले, घोटालों की गोद में पल कर बड़े हुए राहुल गाँधी ने एक लाइन में नकार दिया है इस रिपोर्ट को।

‘मेरे पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन मैं जानता हूँ कि मोदी चोर है’ जैसे कालजयी संवादों के जन्मदाता राहुल गाँधी ने ज़माने को दिखा दिया है कि अगर आप प्रेम करते हैं किसी से तो उसे पागलपन की हद तक चाहना पड़ता है। राफ़ेल राहुल की वही प्रेमिका है, जिसके बारे में व्यंग्यकार नीरज बधवार जी ने लिखा है कि ‘राफ़ेल मामला राहुल गाँधी के लिए उस रिश्ते की तरह है, जिसमें वो इतना इन्वेस्ट कर चुके हैं कि धोखा मिलने के बाद भी, उससे बाहर आने को तैयार नहीं।’

इसी आर्टिकल का वीडियो यहाँ देखें

ये बात बिलकुल सही है। हर जिले में प्रेस कॉन्फ़्रेंस से लेकर, हर शाम काग़ज़ के टुकड़े दिखा कर केजरीवाल ब्रांड के ‘सबूत’ लहराने वाले राहुल गाँधी ने जिस राफ़ेल को इतनी शिद्दत से चूमा था, उसे मोदी ने इतना ठंढा कर दिया है कि उनके होंठ चिपक गए हैं, और वो अगर वहाँ से खींचना चाहें तो चेहरा लहुलुहान हो जाएगा। 

राहुल गाँधी और पत्रकारिता के समुदाय विशेष गिरोह के तथाकथित पत्रकारों ने पहले ही साल से ये लाइन पकड़ रखी थी कि सरकार है तो घोटाले भी होंगे ही। वो लोग धैर्य के साथ आगे बढ़ रहे थे, कि अब होगा घोटाला, तब होगा घोटाला। घोटाला नहीं हुआ। फिर लांछन लगाने में गिरोह सक्रिय हुआ। गडकरी को घेरा, अमित शाह को घेरा, अजित डोभाल को घेरा, लेकिन हर बार मामला फुस्स हो गया। 

फिर नई योजना बनी कि गडकरी को प्रधानमंत्री के लिए प्रमोट किया जाए, उनके बयान को काट-छाँट कर दिखाया गया। दरार पैदा हुई नहीं, गडकरी ने दो लाइन में खंडन किया और फ्लायओवर बनाने लगे। 

अब कुछ नहीं रह गया, तो फिर गोएबल्स को याद कर भाजपा को घेरने वाले गोएबल्स से सीख लेकर राफ़ेल मुद्दे को पीटना शुरु किया कि ये एक पब्लिक डिबेट का मामला बन जाए। मामला बन भी गया। लगातार, हर दूसरे दिन ‘मैं नहीं मानता’, ‘चौकीदार चोर है’, ‘सब को मैनेज किया हुआ है’, ‘कैग पर दबाव है’ आदि कह-कह कर एक नॉनइशू को इशू बनाया गया। 

मुद्दा बना और लोग इस पर बातें करने लगे कि कोई इतनी बार एक ही बात क्यों बोल रहा है, इस पर सरकार कुछ बोलती क्यों नहीं? सरकार ने बताना शुरु किया तो तर्क आया कि जाँच होनी चाहिए। जाँच भी सुप्रीम कोर्ट या सीबीआई से नहीं, ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी से जिसमें कॉन्ग्रेस के भी लोग हैं। यानी, निष्पक्ष जाँच नहीं, बल्कि जहाँ उनके नेता फ़ैसले पर प्रभाव बना सकें, रिपोर्ट लीक कर सकें, ऐसी जाँच।

इसमें एक बात यह भी है कि दो देशों के साथ हुए रक्षा समझौतों पर, जिसमें गोपनीय तकनीक आदि का इस्तेमाल हो रहा हो, उसे पब्लिक डोमेन में नहीं लाया जा सकता है। इससे दो देशों के संबंध खराब होते हैं, और देश की छवि धूमिल होने से आगे से कोई भी देश आपको इस तरह के समझौतों में शामिल करने से हिचकिचाता है। 

ऐसा नहीं है कि इस बात को राहुल गाँधी या उनकी पार्टी के लोग नहीं जानते। इसके उलट, बात यह है कि वो जानते हैं, ऐसा नहीं हो सकता इसीलिए इस बात पर अटके हुए हैं क्योंकि आम जनता को ये बातें समझानी मुश्किल है। आम जनता का तर्क यही होता है कि ‘जाँच करा लो, क्या दिक्कत है?’ फिर, पत्रकारों के गिरोह, जो अच्छे से जानते हैं कि क्या हो सकता है, क्या नहीं, वो भी इसी लाइन पर कहने लगते हैं, “नहीं, क्या समस्या है जाँच कराने में? एक बार सरकार करा क्यों नहीं लेती?”

ये पूरा गिरोह एक वेल-ऑयल्ड मशीन की तरह काम करता है। अंधेरा होते ही एक सियार ‘हुआँ’ करता है, तो बाकी भी करने लगते हैं। लोकसभा में चर्चा हो गई, सवालों का जवाब दे दिया गया, सुप्रीम कोर्ट ने संतुष्टि जता दी, बिंदुवार आँकड़े दे दिए गए, कैग की रिपोर्ट आ गई, लेकिन राहुल का लिप-लॉक टूट ही नहीं रहा! 

मीडिया के समुदाय विशेष की असहनीय पीड़ा तो देखिए कि बेचारों की मति इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि ‘मेरे पास कोई सबूत नहीं, लेकिन मैं जानता हूँ मोदी चोर है’ जैसे कुतर्कों को सुनने के बाद भी एक मतछिन्नू आदमी के पीछे खड़ा है। ये बात अपने आप में विचित्र है कि ऐसी बहकी-बहकी बातें करने वाले कुलदीपक को हवाओं से बचाने में लगे पड़े हैं। आज कल इसी को निष्पक्ष पत्रकारिता भी कहा जाता है। 

कैग की रिपोर्ट में हर बिंदु पर बताया गया है कि किस हिस्से में सरकार ने ज़्यादा पैसे दिए, किस हिस्से में कम, और कुल मिलाकर डील सस्ती ही मिली। अब, कल कॉन्ग्रेस द्वारा कैग को ही ख़ारिज किए जाने के बाद, राहुल आज मोदी को घेर रहे हैं कि उसने कहा था कि नौ प्रतिशत सस्ता है, ये तो कम ही सस्ता हुआ है। मतलब, मोदी ने किस आधार पर इसे सस्ता कहा था, उसका ज़िक्र नहीं। 

और तो और, अब मुद्दा यह नहीं है कि राफ़ेल में घोटाला हुआ है, बल्कि यह है कि मोदी ने जितना पैसा बताया था, उतना तो नहीं बचा है! अब कैग की रिपोर्ट की वो लाइन उठकर नृत्य चालू आहे! जबकि उसी कैग की रिपोर्ट में यह अच्छे से समझाया गया है कि नौ प्रतिशत वाली बात किस संदर्भ में कही गई थी। 

हाल ही में, पता चला कि रक्षा सौदों का दलाल क्रिश्चियन मिशेल जो कि कॉन्ग्रेस के ही समय हुए अगस्टा वैस्टलैंड घोटाले में अभियुक्त है, वो राफ़ेल डील रोकने को लिए उसके प्रतिस्पर्धी यूरोफाइटर के लिए लॉबी कर रहा था। अब राहुल जी अपनी पार्टी की गंदगी पर मिट्टी डालने के लिए राफ़ेल को अपनी प्रेमिका बनाकर उसके गीतों को नहीं गाएँगे तो और क्या करेंगे?

अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद से लेकर सत्ता पाने की हर संभव कोशिश करने में जी-जान से जुटा गिरोह राफ़ेल को पीट-पीट कर चपटा करने के बाद, उसे पिघला कर तार बना चुका है, लेकिन मिलावट के कण मिले नहीं। हाँ, अब ये जंजाल इतना बड़ा बन चुका है कि कॉन्ग्रेस इससे बाहर आना ही नहीं चाहती। अब यही एक सहारा है जिससे मोदी को चोर और भ्रष्ट साबित किया जा सके।

वैलेंटाइन सप्ताह चल रहा है और, राहुल गाँधी की बातों को भी गंभीरता से लेने लायक बनाने वाले राफ़ेल को राहुल गाँधी ऐसे समय में छोड़ दें, यह संभव नहीं दिखता। अभी तो फ़िज़ाओं में प्रेम है, और आनेवाले समय में राजनीति होगी। राहुल जी दोनों ही विषयों में, एक ही प्रेमिका के साथ उतरना चाह रहे हैं, लेकिन बेवफ़ा राफ़ेल बिदक कर भाग जाती है। 

प्रधानमंत्री को डिबेट के लिए चुनौती देने वाले राहुल गाँधी सदन में सरकार से एक भी सवाल नहीं पूछ पाए

16 वीं लोकसभा का अंतिम बजट सत्र खत्म हो गया है। विपक्ष के हो-हंगामे की वजह से संसद के दोनों ही सदनों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक 16 वीं लोकसभा कार्यकाल के दौरान सदन में राहुल गाँधी की उपस्थिति 52% रही है।

यही नहीं राहुल ने सदन के अंदर महज 14 चर्चाओं में ही हिस्सा लिया है। भले ही राहुल गाँधी प्रधानमंत्री मोदी को सामने आकर 15 मिनट डिबेट के लिए चुनौती पेश करते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि सदन में पूरे कार्यकाल के दौरान राहुल ने सरकार से एक भी धारदार सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की। यही नहीं, राहुल गाँधी सदन के अंदर एक भी प्राइवेट मेंबर बिल लेकर नहीं आए।

इस वीडियो में राहुल प्रधानमंत्री को डिबेट के लिए चुनौती दे रहे हैं

16 वीं लोकसभा के इस सत्र की समाप्ति के बाद सरकार के कामकाज और विपक्ष के सवाल के बारे में आकलन शुरू हो गया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दूसरे कार्यकाल की तुलना में भाजपा नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल में प्रोडक्टिविटी अधिक रही है।

विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार ने जनता के हित में कई बिल को सदन में पास कराकर कानून का रूप दिया है। सरकार के प्रयास की वजह से लोकसभा में 156 और राज्यसभा में 118 बिल पास हुए। विपक्ष के विरोध के चलते लोकसभा में 46 व राज्यसभा में 33 बिल अटक गए।

इस तस्वीर के जरिए 15वीं और 16वीं लोकसभा के कामकाज को समझें

भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने सदन के अंदर सबसे अधिक 48 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए। यही नहीं, उत्तर प्रदेश भाजपा के सांसद भैरो प्रसाद मिश्रा और मुंबई नॉर्थ से भाजपा के सांसद गोपाल शेट्टी ने सदन में 100% उपस्थिति दर्ज कराई है।

54 HAROP किलर ड्रोन को मंजूरी: अब सर्जिकल स्ट्राइक होगा और भी आसान!

रक्षा मंत्रालय ने एक उच्च स्तरीय बैठक में भारतीय वायु सेना की मानवरहित युद्ध क्षमता को और मजबूत बनाने के लिए 54 इजरायली HAROP किलर ड्रोन की खरीद को मंजूरी दी गई है। ये किलर ड्रोन दुश्मन के हाई-वैल्यू मिलिट्री टारगेट को पूरी तरह से ध्वस्त कर सकता है। इन घातक ड्रोनों को चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात किया जाएगा।

बता दें कि इजरायल के ये ड्रोन इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर से लैस हैं। ये हाई वैल्यू वाले सैन्य ठिकानों जैसे निगरानी के ठिकाने और रडार स्टेशनों की भी निगरानी कर सकते हैं। इजराइल के HAROP किलर ड्रोन दुश्मन के ठिकानों पर क्रैश होकर उन्हें पूरी तरह से तबाह कर देने में भी सक्षम हैं। इससे आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करना और भी आसान हो जाएगा। सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन भी आसानी से अंजाम देने में सक्षम होगी हमारी सेना। मौजूदा समय में वायुसेना के पास 110 ड्रोन हैं।

बता दें कि मोदी सरकार पड़ोसी देशों पर बढ़त बनाए रखने के लिए सेना के तीनो विंग के उन्नयन के लिए प्रयासरत है। न केवल वायुसेना बल्कि मोदी सरकार ने नौसेना के लिए 111 हेलिकॉप्टर खरीदने का फैसला भी किया है। ये सभी हेलिकॉप्टर रणनीतिगत साझेदारी मॉडल के तहत खरीदे जाएँगे। इतना ही नहीं, हाल ही में आर्मी के लिए भी 73,000 अमेरिकी सिग सॉअर असॉल्ट राइफल्स (Sig Sauer Assault Rifles) की खरीद को भी मंजूरी दी है।

बता दें कि भारत सरकार ने 111 अत्याधुनिक नेवल हेलिकॉप्टर्स के निर्माण के लिए बोली लगाने को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आमंत्रित किया है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार यह डील लगभग 3 बिलियन डॉलर की है।

रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि लॉकहीड मार्टिन, एयरबस हेलिकॉप्टर्स और बेल हेलिकॉप्टर्स भी संभावित बोली में भाग लेने वालों में से हैं। चीन की बढ़ती ताकत के साथ संतुलन बनाने के लिए भारत निरंतर अपनी सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए प्रयासरत है। इस कड़ी में नेवी के सोवियत रूस के समय के पुराने हेलिकॉप्टर्स को बदलने के लिए यह बिडिंग की जाएगी।

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि बिड में शामिल भारतीय कंपनियों में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स (Tata Advanced Systems), महिंद्रा डिफेंस (Mahindra Defence), अदानी डिफेंस (Adani Defence), एल एंड टी (L&T), भारत फोर्ज (Bharat Forge) और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (Reliance Infrastructure) शामिल हैं।

पिछले दिनों रक्षा मंत्रालय ने सेना में आधुनिकीकरण को लेकर एक और अहम फै़सला लिया है। सरकार ने अमेरिका से करीब 73,000 अत्याधुनिक राइफ़लें ख़रीदने को मंजू़री दे दी है। बता दें कि राइफ़लों की ख़रीद का ये प्रस्ताव लंबे समय से अटका हुआ था। रिपोर्ट की मानें तो इसका इस्तेमाल क़रीब 3,600 किलोमीटर लंबी सीमा पर तैनात जवान करेंगे।

भीमा कोरेगाँव हिंसा: अर्बन नक्सलियों को नहीं मिलेगी डिफ़ॉल्ट ज़मानत

भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (फरवरी 13, 2019) को बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के मामले में पाँचों आरोपितों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुणे पुलिस को 90 दिनों का अतिरिक्त समय दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फ़ैसले को रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्णय को रद्द करने के बाद सुरेंद्र गडलिंग सहित अन्य आरोपितों को डिफ़ॉल्ट ज़मानत मिलने की राह बंद हो गई है।

फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस एसके कौल ने कहा कि इस मामले में पुलिस अपनी चार्जशीट दाख़िल कर चुकी है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि आरोपित नियमित ज़मानत पाने लिए आवेदन देने को स्वतंत्र हैं। ज्ञात हो कि महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 10 जनवरी को ही अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली पीठ में जस्टिस संजय किशन कॉल और जस्टिस एल नागेश्वर शामिल थे।

क्या था घटनाक्रम?

29 अक्टूबर 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए गडवील को नोटिस जारी किया था। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने चार्जशीट समय पर दाख़िल न होने के पीछे तकनीकी कारणों का हवाला दिया था। 10 दिनों का समय मिलने के बाद पुलिस ने चार्जशीट दाख़िल कर दी थी।

अर्बन नक्सलियों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने महाराष्ट्र सरकार की दलीलों का विरोध किया था। निचली अदालत के फ़ैसले को रद्द करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था:

“आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय देना और गिरफ्तार लोगों की हिरासत की अवधि बढ़ाने का निचली कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है।”

आज बुधवार को हुई सुनवाई में आरोपितों की तरफ से कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। इन अर्बन नक्सलियों को पुणे में भड़की हिंसा के संबंध में गिरफ़्तार किया गया था। भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200वीं बरसी मनाने के दौरान हिंसा भड़क गई थी।

सत्ता के लिए पिता के दुश्मनों से गठबंधन कर रहे हेमंत सोरेन: रघुवर दास

झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सोमवार (फ़रवरी 11, 2019) को राँची के हरमू मैदान में आयोजित भाजपा शक्ति कार्यकर्ता सम्मलेन में महागठबंधन पर जम कर निशाना साधा। मुख्यमंत्री दास ने सोरेन परिवार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि हेमंत सोरेन सत्ता के लिए उन्ही के पाले में चले गए हैं ,जिन्होंने उनके पिता शिबू सोरेन को प्रताड़ित किया था। सम्मलेन में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने भी शिरकत की। सम्मलेन में खूँटी, राँची और हजारीबाग से कार्यकर्ता आए हुए थे।

झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो नेता हेमंत सोरेन पर निशाना साधते हुए हुए रघुवर दास ने कहा:

“झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को प्रताड़ित करनेवालों के साथ उनके पुत्र हेमंत सोरेन सत्ता के लिए महागठबंधन कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस ने शिबू सोरेन को कोयला मंत्री पद से हटाया। कोयला घोटाला में उन्हें जेल भेजा। झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने चिरूडीह कांड में शिबू सोरेन को जेल भिजवाया। यह सब भूल कर सत्ता के लिए हेमंत सोरेन कॉन्ग्रेस, झाविमो और राजद के साथ महागठबंधन कर रहे हैं।”

सोरेन परिवार की संपत्ति और ज़मीन को लेकर भी रघुवर ने उन्हें आड़े हाथों लिया। मुख्यमंत्री ने सोरेन परिवार पर आदिवासियों की ज़मीन लूटने का आरोप लगाते हुए कहा:

“झामुमो के सोरेन परिवार ने झारखंड के आदिवासियों की ज़मीन लूटी है। जल, जंगल व जमीन का नारा देने वाले झामुमो का सोरेन परिवार रामगढ़ के गोला पंचायत से निकलकर बोकारो, धनबाद, दुमका, रांची, साहेबगंज समेत कई जगहों पर ज़मीन ख़रीदा है। सोरेन परिवार ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासियों की ज़मीन लूटी है। सोरेन परिवार को बताना चाहिए कि ज़मीन खरीदने के लिए पैसा कहाँ से आया, क्या उनके पास कोई नोट छापने की मशीन है। इस परिवार ने भाेलेभाले आदिवासियों को लूटने का काम किया है। मगर अब आदिवासी सजग हो गए है, उन्हें सब समझ में आता है। वे संथाल में अधिक विकास पर जोर दे रहे हैं।”

सभा को सम्बोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह ने रघुवर सरकार की योजनाओं की जम कर तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि मात्र ₹1 में रजिस्ट्री कराना उपलब्धि है, ऐसा किसी भी भारतीय राज्य में नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अगर रघुवर सरकार की कुछ योजनाएँ छत्तीसगढ़ में लागू की जाती तो शायद वहाँ लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार होती।

शहीद मेजर की नन्हीं बेटी का Viral Video: 52 सेकंड में आप भी बोल उठेंगे – जय हिंद!

नवंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के नागरोटा में आतंकवादियों के हमले में देश के 7 जवान शहीद हो गए थे। सेना के इन 7 शहीद जवानों में से एक का नाम मेजर अक्षय गिरीश कुमार था।

31 वर्षीय अक्षय की शादी 4 साल पहले संगीता रवींद्रन से हुई थी। शहीद मेजर अक्षय अपनी पत्नी की गोद में तीन साल की बेटी और ढेर सारी यादें छोड़ गए। मेजर अक्षय की इसी बेटी नैना का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो को शहीद की पत्नी और नैना की माँ ने ट्वीटर के जरिए शेयर किया है।

अपने इमोशनल वीडियो में नैना अपने पिता को याद करती हैं। नैना वीडियो में पिता से हुई बातचीत के बारे में कहती है- सेना का मतलब हम लोगों को प्यार करना होता है। आर्मी बुरे अंकल से लड़ने के लिए होती है। आर्मी हमारे डर को दूर करने के लिए होती है। आर्मी वाले वे होते हैं, जो सभी को जय हिंद कहते हैं।

शहीद मेजर अक्षय ने अपनी पढ़ाई जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से की थी। अक्षय के शहीद होने के बाद उनकी कई सारी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी।

नैना अपने पिता अक्षय की गोद में

नैना अपने पिता शहीद मेजर अक्षय और अपनी माँ के साथ…

2.86% सस्ती हुई राफ़ेल डील: सिर्फ 6 स्क्रीनशॉट्स में समझें CAG रिपोर्ट का पूरा गणित

राफेल डील पर कॉन्ग्रेस के आरोपों के बीच मोदी सरकार ने मंगलवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश की। इस दौरान विपक्ष ने जेपीसी से जांच के लिए हंगामा किया। रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए के मुकाबले NDA के शासनकाल में 2.86% सस्ती डील फाइनल की गई है।


CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 1
CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 2
CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 3

कैग की रिपोर्ट में 2007 और 2015 की बोलियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में लिखा है:

“आईएनटी द्वारा गणना किए गए संरेखित मूल्य ‘यू 1’ मिलियन यूरो था जबकि लेखापरीक्षा द्वारा आंकलित की गई संरेखित कीमत ‘सीवी’ मिलियन यूरो थी जो आईएनटी संरेखित लागत से लगभग 1.23 प्रतिशत कम थी। यह वह मूल्य था जिस पर 2015 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए थे यदि 2007 और 2015 की कीमतों को बराबर माना जाता। लेकिन इसके जगह 2016 में ‘यू’ मिलियन यूरो के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो लेखापरीक्षा के संरेखित कीमत से 2.86 प्रतिशत कम थी।”

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कैग रिपोर्ट को बकवास बताया और इसे चौकीदार ऑडिट जनरल रिपोर्ट नाम दिया। भारत ने पहले प्रस्तावित 126 विमान सौदे की तुलना में 36 राफेल विमान अनुबंध में ‘इंडिया स्पेसिफिक एनहांसमेंट (India Specific Enhancement)’ के मामले में 17.08% बचाने में कामयाबी हासिल की।

CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 4
CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 5
CAG रिपोर्ट की कॉपी का स्क्रीनशॉट- 6

जब तक शेर अपनी कहानी खुद नहीं कहता शिकारी महान बना रहेगा

कोलंबिया का एक अखबार था “एल एस्पक्टाडोर”, जिसमें 1955 में चौदह दिनों की एक सीरीज छपनी शुरू हुई। ये सीरीज एक सत्य घटना पर लिखी जा रही थी। सीरीज का हीरो करीब बीस साल का एक नौजवान लुइस अलेक्सान्द्रो वेल्साको, होता है। ये कहानी इसलिए महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि ये सरकारी बयानों से बहुत अलग थी। सरकारी बयानों में एक ऐसा तूफ़ान गढ़ा गया था, जो कि कभी आया ही नहीं था। सच्चाई ये थी कि जहाज पर तस्करी का इतना माल लाद दिया गया था कि वो डूब गया।

असली कहानी ये थी कि वेल्साको अमेरिका से अपने जहाज पर लौट रहे थे। कई दिनों बाद अपने देश लौटने की सब नाविकों को जल्दी भी थी। जहाज पर औकात से ऊपर तस्करी का माल लादकर जहाज को रवाना किया गया था। कैरिबियन में लहरें ऊँची होती हैं, और जहाज पर वजन ज्यादा था। संभालने की कोशिश में वेल्साको के आठ साथी बह गए और आखिर जहाज डूब गया। कोलंबिया की नौसेना ने चार दिन तलाश की और सभी लापता नाविकों को मृत मानकर खोज बंद कर दी। मगर लुइस वेल्सांको के हाथ कुछ टूटी-फूटी सी एक लाइफबोट आ गई थी और वो बच गया था।

चार दिन तक जो तलाश करने का बहाना हुआ, उसमें भी कुछ किया नहीं गया था! ऐसे में वेल्साको भूखा-प्यासा अपनी टूटी नाव पर बहता रहा। किसी तरह दस दिन बाद वो जिस किनारे पर पहुंचा, किस्मत से वो कोलंबिया था। समंदर से जिन्दा बच निकले इसी नाविक की असली कहानी लिखकर लेखक ने छाप दी थी। जाहिर है सरकार की पोल खोल देने वाली इस कहानी के छपते ही उन्हें स्थानीय पत्रकार से विदेशी संवाददाता हो जाना पड़ा। तथाकथित समाजवादी-साम्यवादी सरकारों को भी अपनी पोल खोलने वाले पसंद नहीं आते।

खैर ये कहानी पहले तो स्पैनिश में ही छपी थी, मगर कई साल बाद (1970 में) इसे एक किताब की शक्ल दी गई। कुछ साल और बीतने पर रैन्डोल्फ होगन ने (1986 में) इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। नोबल पुरस्कार से सम्मानित गैब्रिअल ग्रेसिया मार्क्वेज़ की ये किताब थी “द स्टोरी ऑफ़ अ शिपरेक्ड सेलर (The Story of a Shipwrecked Sailor)” जो पहले कभी अखबार के लेखों का सीरीज थी। मार्क्वेज़ ने किताब के अधिकार भी उस नाविक लुइस वेल्साको को दे दिए थे। खुद किताब की रॉयल्टी नहीं ली।

बाद में किताब का अंग्रेजी अनुवाद जब खूब चला तो इस नाविक ने मार्क्वेज़ पर उसके अधिकार के लिए भी मुकदमा ठोक दिया। मतलब जिसे उसने ना लिखा, ना अनुवाद किया, ना कुछ योगदान दिया, उसे उसके भी पैसे चाहिए थे। वैसे तो जहाज डूबने की कहानी डेनियल डेफो के रोबिनसन क्रुसो के दौर से ही प्रसिद्ध हैं। वोल्टायर ने कैंडिड, उम्बरटो एको की द आइलैंड ऑफ़ द डे बिफोर, जेएम कोट्जी की फो भी इसी विषय पर हैं। लेकिन मार्क्वेज़ ने एक सत्य घटना को एक किस्से की तरह सुनाया और वो उनकी किताब को ख़ास बनाता है।

भारत की बहुसंख्यक आबादी को देखेंगे तो ये “द स्टोरी ऑफ़ अ शिपरेक्ड सेलर” की कहानी काम की कहानी लगेगी। अच्छा किस्सा गढ़ने वाला – जैसे रविश कुमार, जैसे देवदत्त पटनायक – कितने हैं, जो भारत की “बहुसंख्यक”, बोले तो हिन्दुओं की ओर से कहानी सुना सकें? कोई नाम याद आता है क्या? अब ये तो जाहिर बात है कि हमलावर मजहब और रिलिजन जहाँ-जहाँ गए, वहां से उन्होंने स्थानीय धर्मों को समूल ख़त्म कर दिया। अगर भारत के एक छोटे से हिस्से में हिन्दू बहुसंख्यक हैं (सात राज्यों में नहीं हैं) तो जाहिर है, हमने लड़ाइयाँ जीती भी होंगी।

सभी हारे होते तो निपटा दिए गए होते। गोवा इनक्वीजिशन के फ्रांसिस ज़ेवियर जैसे सरगना पानी पी-पी कर ब्राह्मणों को कोसते पाए जाते हैं, क्योंकि उनके होते वो लोगों को इसाई नहीं बना पा रहे थे। रानी पद्मावती पर चित्तौड़ वाला हमला आखिरी तो नहीं था। भंसाली ‘द मुग़ल’ ने तो हाल में ही किला घेरने की कोशिश की है। चमचों के लिए हम-आप सब बरसों “चारण-भाट” जुमले का इस्तेमाल करते रहे हैं। एक बार इतिहास पलटते ही पता चल जाता है कि चारण-भाट तो गला कटने की स्थिति में भी बिलकुल झूठ ना बोलने वाले लोग थे! उनके कॉन्ग्रेसी टाइप होने की तो संभावना ही नहीं है?

सवाल ये है कि हम अपने पक्ष के किस्से सुनाने वाले कब ढूँढेंगे? हज़ार वर्षों से हमलों के सामने प्रतिरोध की क्षमता ना छोड़ने वाले हिन्दुओं की कहानी लिखने वालों को पब्लिक कब ढूँढेगी? शिकार की कहानियों में शिकारी का महिमामंडन तो खूब पढ़ लिया। हे महामूर्ख, हिन्दुओं! आप अपने पक्ष की कहनी सुनाने वालों को कब ढूँढेंगे?

चिदंबरम इंटरव्यू ‘कांड’: बेइज्जती सहेंगे लेकिन पैरवी उन्हीं की करेंगे

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम से जब एक इंटरव्यू के दौरान एयरसेल-मैक्सिस घोटाले के बारे में पूछा गया तो वह बिदक गए। एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘द प्रिंट’ को दिए एक इंटरव्यू में पी चिदंबरम से जब उनके और उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम पर चल रहे घोटालों की जाँच के सम्बन्ध में सवाल किया गया, तो उन्होंने धमकी भरे अंदाज़ में कहा:

“यह साक्षात्कार के लिए पूरी तरह अप्रासंगिक है। आप मेरे और अपने विश्वास का उल्लंघन कर रहीं हैं, भरोसे को तोड़ रहीं हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि साक्षात्कार को ख़त्म कर दें। अगर आपको लगता है कि आप मुझे इस सवाल से डराएँगी तो आप गलत हैं। मैं मीडिया ट्रायल चलाने की अनुमति नहीं देता। यह आपकी नियम पुस्तिका में हो सकता है कि मीडिया में ट्रायल किया जाना चाहिए।”

मीडिया की चुप्पी पर सवाल

पी चिदंबरम की इस धमकी पर मीडिया में कोई आउटरेज नहीं हुआ। बात-बात में बयान जारी कर पत्रकारों के ख़िलाफ़ किसी भी कार्रवाई की निंदा करने वाले एडिटर्स गिल्ड ने भी कोई बयान जारी नहीं की। ज्योति मल्होत्रा को धमकी भरे अंदाज़ में घुड़की देते हुए जिस तरह का व्यवहार पी चिदंबरम ने किया, ऐसा अगर किसी भाजपा के मंत्री ने किया होता तो शायद स्थिति कुछ और होती! शायद नहीं, ‘लोकतंत्र खतरे में’ और ‘मीडिया पर अंकुश’ या ‘सुपर-इमर्जेंसी’ जैसा कुछ भयंकर ट्रेंड कर गया होता ट्विटर पर।

अगर ऐसा भाजपा के किसी बड़े नेता ने किया होता, तो अब तक एडिटर्स गिल्ड ट्विटर पर बयान जारी कर चुका होता। देश में ‘मीडिया को दबाने’ की कोशिशों के ख़िलाफ़ नेतागण एकजुट हो कर बयान दे रहे होते, मीडिया की स्वतन्त्रता पर मंडरा रहे ख़तरे को लेकर अदालत में याचिका दाख़िल हो गई होती, और पत्रकारों का एक गिरोह मार्च निकाल रहा होता। ऐसा ‘सेलेक्टिव आउटरेज’ कई बार हो चुका है।

आपको याद होगा कि नरेंद्र मोदी के एक इंटरव्यू की काफ़ी चर्चा हुई थी। करण थापर को दिए इस इंटरव्यू में मोदी से बार-बार ऐसे सवाल पूछे जा रहे थे, जैसे इंटरव्यूअर उनके मुँह में उंगली डाल कर कुछ निकलवाना चाह रहा हो। बार-बार जवाब देने के बावजूद जब मोदी से इसी तरह का व्यवहार होता रहा, तो उन्होंने इंटरव्यू को विराम दे दिया। उन्हें पत्रकार की नीयत का पता चल गया, जिसका एकमात्र लक्ष्य था- मोदी से विवादित सवाल करते रहना ताकि उनके मुँह से कुछ ऐसा निकले, जिस से टीआरपी के खेल में वो अव्वल आ सकें। इतना के बाद भी मोदी ने सिर्फ इंटरव्यू ख़त्म किया था, धमकी नहीं दी थी।

नहीं जागेगा एडिटर्स गिल्ड

पी चिदंबरम वाला मामला अलग है। ‘द प्रिंट’ की राष्ट्रीय एवं सामरिक मामलों की सम्पादक ज्योति मल्होत्रा को दिए साक्षात्कार में उन्होंने घोटालों को लेकर सवाल आते ही इंटरव्यू ख़त्म करने की धमकी दी। इतना ही नहीं, उन्होंने पत्रकार पर विश्वास के उल्लंघन का आरोप भी मढ़ा। यह ऐसे नेताओं के चरित्र को दिखाता है, जिनका पूरा परिवार घोटालों में आरोपित है। चिदंबरम, उनकी पत्नी और उनके पुत्र- सभी किसी न किसी घोटाले या स्कैम में आरोपित हैं। ऐसे में, उनसे इस तरह के सवाल पूछना अप्रासंगिक कैसे हो सकता है?

एडिटर्स गिल्ड का दोहरा रवैया हम तभी देख चुके हैं जब ‘मी टू’ के दौरान उसने सिर्फ़ उन्ही पत्रकारों के ख़िलाफ़ बयान जारी किया, जो उनके गिरोह के नहीं थे। एमजे अकबर को लेकर तो बहुत कुछ कहा गया, लेकिन विनोद दुआ पर ‘पिन ड्रॉप साइलेंस’ का दामन थाम लिया गया। आपको वो समय भी याद होगा जब राजदीप सरदेसाई सहित कई पत्रकारों ने दिल्ली में मार्च निकाल कर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। यह कैसा चौथा स्तम्भ है? यह कैसी पत्रकारिता है? यह कैसी निष्पक्षता है जहाँ आप खुले तौर पर किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आते हैं?

बेइज्जती? ‘वो’ करें तो चलता है

हमें उम्मीद थी कि पी चिदंबरम का इंटरव्यू ले रहीं ज्योति मल्होत्रा तो ज़रूर आवाज उठाएँगी क्योंकि चिदंबरम ने विश्वास के उल्लंघन का आरोप भी उन्हीं पर लगाया। लेकिन अफ़सोस, ज्योति मल्होत्रा अपने ट्विटर प्रोफाइल पर चिदंबरम वाले इंटरव्यू का ही प्रचार-प्रसार करती दिखीं लेकिन इंटरव्यू के दौरान चिदंबरम के धमकी भरे लहजे में दिए गए बयानों की उनके प्रोफाइल पर कोई चर्चा तक नहीं थी। क्या पत्रकारों के उस गिरोह ने मान लिया है कि वो जिनकी पैरवी करते हैं, उनकी बेइज्जती भी बर्दाश्त करेंगे?

‘द प्रिंट’ जैसे कई न्यूज़ पोर्टल लगातार सरकारी योजनाओं से लेकर मोदी सरकार के हर एक क़दम में त्रुटियाँ निकालने में लगे रहते हैं। भाजपा के एक वार्ड पार्षद का कोई बयान भी बड़ी बहस का मुद्दा बनता है, जबकि कॉन्ग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री के विवादित बयान भी छिपा दिए जाते हैं। इसके पीछे क्या नीयत है? इसके पीछे लक्ष्य क्या है? जनता अब इनके रवैये को समझ चुकी है। इनके जीवन का एकमात्र सार यही है- ‘उनकी पैरवी करते रहो, वो बेइज्जती भी करें तो चलता है।’

₹11.2 करोड़: चंद्रबाबू नायडू के 1 दिन के धरने का ख़र्च, पार्टी फंड से नहीं बल्कि सरकारी ख़जाने से

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सिर्फ़ 1 दिन के धरने के लिए सरकारी ख़जाने से ₹11.2 करोड़ की भारी रक़म लुटाई। हज़ारों लोगों को दिल्ली पहुँचाने से लेकर महंगे होटलों में उनके रहने की व्यवस्था करने तक- नायडू ने सरकारी रुपयों को पानी की तरह बहाया। अतिथियों को आंध्र से दिल्ली ले जाने के लिए श्रीकाकुलम और अनंतपुर से दो ट्रेनें बुक की गईं थीं। इन ट्रेनों पर सरकार ने कुल ₹1.12 करोड़ ख़र्च किए। इसके अलावा अन्य ख़र्चों के लिए राज्य सरकार ने 10 करोड़ रुपए जारी किए, जिसका विवरण नीचे है।

विपक्षी पार्टियों ने चंद्रबाबू नायडू के इस महंगे धरने पर निशाना साधा है। आंध्र प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी YSR कॉन्ग्रेस ने नायडू पर जनता के पैसों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। पार्टी ने कहा:

“यह संविधान का उल्लंघन है क्योंकि यह लोगों का पैसा है। ‘दीक्षा’ के लिए धन राजकोष से आ रहा है, वह ऐसा कैसे कर सकता है?”

सरकारी ख़र्च का ब्यौरा (फोटो साभार: न्यूज़ 18)

बता दें कि आंध्र प्रदेश के गठन के समय किए गए वादों को पूरा करने की माँग करते हुए चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली में एक दिवसीय धरना दिया। इस धरने का नाम ‘धर्म पोरत दीक्षा’ रखा गया था। सोमवार (फरवरी 11, 2019) को आयोजित इस धरने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के ख़िलाफ़ विपक्षी पार्टियों ने एकता का प्रदर्शन किया। पीएम मोदी पहले ही नायडू की आलोचना करते हुए कह चुके हैं कि चंद्रबाबू आंध्र की तिजोरी से जनता का पैसा निकाल कर अपनी पार्टी के लिए ख़र्च कर रहे हैं। गुंटूर रैली के दौरान उन्होंने ऐसा कहा था।

ख़बरों के मुताबिक़ अतिथियों के रुकने के लिए महंगे होटलों में 1100 से भी अधिक कमरे बुक किए गए थे। आंध्र प्रदेश सरकार ने दो अलग-अलग आदेश जारी कर धरने में हुए ख़र्च का बिल पास किया। इस धरने के दौरान पीएम मोदी के लिए अपशब्दों का प्रयोग भी किया गया था। धरने के दौरान कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, शरद यादव, तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन, पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, मुलायम सिंह यादव, फ़ारुख़ अब्दुल्ला सहित कई विपक्षी नेताओं का जमावड़ा लगा।