Friday, October 4, 2024
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लाठी-डंडे से लैस समुदाय विशेष के लोगों ने बारातियों को दौड़ाकर पीटा, 60 पर मुक़दमा दर्ज

उत्तर प्रदेश के मेरठ में समुदाय विशेष के कुछ दबंगों द्वारा बारातियों की पिटाई और दुल्हन के साथ छेड़-छाड़ के साथ लूट-पाट करने का मामला सामने आया है। जिले के भावनपुर थाना क्षेत्र के पचपेड़ा गाँव से बागपत लौट रही बारात पर दर्ज़न भर युवकों ने मामूली कहासुनी के बाद हमला बोल दिया और जमकर लूटपाट मचाई। दरअसल, पूरा मामला दुल्हन पर टिप्पणी करने के साथ शुरू हुआ था, जिसके बाद मामला इतना बढ़ गया कि दबंगों ने दुल्हन से छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और दुल्हन के जेवरात भी लूट लिए।

4 गाड़ी में आए दबंगों ने दूल्हे और बारातियों को लाठी-डंडे से पीटा

बताया जा रहा है कि, दुल्हन की तबियत बारात के दौरान अचानक ख़राब हो गई, जिसके बाद दुल्हन की गाड़ी को गाँव में ही दूसरे समुदाय के व्यक्ति की दुकान के सामने रोक दिया गया। जहाँ पर दुल्हन ने उलटी की जिसको लेकर दूसरे समुदाय के युवकों ने दुल्हन पर कमेंट्स कर दिया और जब दूल्हे समेत बारातियों ने इसका विरोध किया तो समुदाय विशेष के लोगों ने लाठी-डंडे से जमकर पिटाई शुरू कर दी। आरोप है कि मामला बढ़ने पर समुदाय विशेष के दबंगों ने चार अन्य गाड़ियाँ भी मँगा लीं, जिसमें करीब 60-70 लोग आए और सभी ने मिलकर मारपीट की और साथ ही दुल्हन का कुंडल भी लूट ले गए।

मौके पर पहुँची पुलिस ने संभाला मोर्चा

मामले को बढ़ता देख पुलिस को सूचना दी गई, जिसके बाद पाँच-छः थानों की फोर्स के साथ एसपी क्राइम डॉ. बीपी अशोक, एडीएम प्रशासन रामचंद्र, एएसपी सतपाल सिंह, सीओ सदर देहात चक्रपाणि त्रिपाठी ने मौके पर पहुँचकर मामले को शांत करवाया। बावजूद इसके बताया जा रहा है कि इलाके में तनाव बना हुआ है। बता दें कि, बारात पर हमले की सूचना मिलते ही बीजेपी और अन्य हिन्दू संगठनों के तमाम नेता भावनपुर थाने पर पहुँच गए।

उन्होंने आरोपितों पर कार्रवाई की माँग करते हुए जमकर हँगामा किया। मामले में पुलिस ने दुल्हन के भाई गौरव शर्मा की तहरीर पर शादाब, शाहबाज, बहादुर, इमरान, कामरान, नदीम, यूसुफ समेत 60 लोगों पर गंभीर धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर 6 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है और अज्ञात आरोपितों की गिरफ़्तारी के लिए दबिश दी जा रही है। इसके अलावा पुलिस ने दुल्हन समेत सात लोगों को मेडिकल परीक्षण के लिए जिला अस्पताल भेज दिया है।

प्रिय सुप्रीम कोर्ट, हिन्दुओं को निशाना बनाने के लिए इतना समय कहाँ से लाते हो?

आज एक विचलित करने वाली ख़बर पढ़ी। ख़बर थी कि सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संवैधानिक पीठ इस बात पर फ़ैसला करेगी कि केन्द्रीय विद्यालयों में हर सुबह होने वाली प्रार्थनाएँ, ख़ासकर संस्कृत वाली, संविधान निर्दिष्ट मूलभूत धर्मनिरपेक्ष अवधारणा के विरोध में है या नहीं। 

यह बात विचलित करने वाली नहीं है, विचलित करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने इस याचिका को इस लायक समझा कि इसे पाँच जजों की बेंच के लिए लिस्ट कर दिया। जब आप इसमें दिए जाने वाले तर्क सुनेंगे तो आपको लगेगा कि लगभग दो करोड़ लम्बित मामले वाले इस देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के पास किस-किस तरह की बातों के लिए समय है। 

पहले तो याचिकाकर्ता का कहना है कि वह नास्तिक व्यक्ति है, और केन्द्रीय विद्यालय में संस्कृत की ‘धार्मिक प्रार्थना’ के कारण इस देश के बहुत लोगों की भावनाएँ आहत होती हैं। हालाँकि, भावना आहत होने के आँकड़ों के लिए कोई शोध किया गया हो, ऐसा कहीं भी बताया नहीं गया है। भावनाएँ आहत होना हमारा राष्ट्रीय उद्योग बन चुका है, और सुप्रीम कोर्ट का हर भावना को बचाने के लिए समय निकाल कर दही हाँडी की ऊँचाई से लेकर जलीकट्टू के सांड की सींग और होली के पानी तक के प्रयास का आम जनता जबरदस्ती सम्मान करती रही है।

(इस लेख का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं।)

वापस आते हैं प्रार्थना के ऊपर। जो भी प्रार्थना होती है, जिसमें संस्कृत के कुछ श्लोक हैं जैसे कि ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्मय, मृत्योर्मामृतं गमय’ आदि हैं। ये एक बेहूदी दलील है कि ये धार्मिक है। यहाँ, धार्मिक मतलब ‘हिन्दू धर्म’ से संबंधित। इस कोर्ट के जज को क्या इतनी समझ नहीं है कि इस तरह की याचिकाओं को फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया जाना चाहिए? क्योंकि इस बात से समस्या विद्यार्थियों को होनी चाहिए, न कि किसी मलिन विचारों वाले व्यक्ति को।

प्रार्थना हम क्यों करते हैं, और क्या होता है इसमें? क्या सुविचार के संस्कृत में होने से धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं? फिर स्कूलों की प्रार्थनाओं को ही क्यों, ‘सत्यमेव जयते’ लिखे राष्ट्रीय प्रतीकों से लेकर संस्कृत की सारी किताबों में आग लगा देनी चाहिए। फिर तो, संस्कृत भाषा की पढ़ाई भी बंद करा देनी चाहिए। फिर तो, हमें मदरसों और मिशनरी स्कूलों से जीसस, अल्लाह की बातों पर भी ग़ौर करना चाहिए कि क्या वो धार्मिक हैं या नहीं?

इस तरह की याचिका का सुप्रीम कोर्ट के जज की टेबल पर पहुँचना बताता है कि लोगों के पास कितना खाली समय है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट का जज किसी प्रोग्राम में जाकर रोने लगता है कि जुडिशरी पर बहुत दबाव है! अरे भाई, जब इस तरह की बेहूदगी को बर्दाश्त करोगे, तो रोना ही नहीं, शर्म भी आनी चाहिए कि जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं वहाँ आख़िर कर क्या रहे हैं? 

प्रार्थना के शब्दों के लिए संस्कृत भाषा एक माध्यम भर है। क्या किसी बच्चे को स्कूल के आप भगवान का नाम लेने से मना कर सकते हैं? क्या किसी बच्चे को यह कहा जा सकता है कि संस्कृत में ‘हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधेरे से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो’ का मतलब हिन्दी, अंग्रेज़ी या उर्दू में किए गए अनुवाद से अलग होगा?

क्या मदरसे में नमाज़ पर प्रतिबंध लगा दिया जाए कि ये धार्मिक है? और अगर धार्मिक ही है, तो क्या यही संविधान हमें धर्म को चुनने, अनुसरण करने की अनुमति नहीं देता है? क्या केंद्रीय विद्यालयों के अस्सी प्रतिशत विद्यार्थी जो हिंदू हैं (एक औसत आँकड़ा ले रहा हूँ), वो कल को वकील भेजकर ये कहलवाएँ कि प्रार्थना करना उनका अधिकार है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट फिर से सात जजों की बेंच बनाएगी?

‘सेकुलर’ के नाम पर जो बेहूदगी इस देश में हो रही है, और इस लॉबी के कारण न्यायपालिका का जितना समय हर रोज बर्बाद होता है, वो न जाने किस मजबूरी में जजों को नहीं दिख रहा। ऐसे वकीलों पर न सिर्फ़ आर्थिक पैनल्टी लगनी चाहिए, बल्कि इन्हें कोर्ट और पब्लिक में बेइज़्ज़त किया जाना चाहिए कि इस क़िस्म की याचिका वो क्यों लेकर आता है। 

अगर धार्मिक शिक्षा के नाम पर, संस्कृत के श्लोक के नाम पर, ऐसी बातें सिखाई जाएँ जो मानवता और भाईचारे के सिद्धांतों से दूर हैं, बच्चों को बिगाड़ते हों, तो बेशक सुप्रीम कोर्ट को स्वयं ही दख़ल देकर पूछना चाहिए कि शिक्षा के नाम पर ये सब क्या हो रहा है। लेकिन, जब प्रार्थना का उद्देश्य सुविचार और दिन की शुरुआत एक शांत, गंभीर तरीके से करना हो, तो इसमें किसी को समस्या कैसे हो सकती है?

क्या बच्चों के अभिभावकों के पास स्कूल चुनने का हक़ नहीं है? क्या किसी भी स्कूल से लगातार ऐसी शिकायतें आई हैं कि वहाँ सारे बच्चों को संस्कृत प्रार्थना करने पर विवश किया जाता है? क्या किसी ने ऐसा कहा है कि उसे प्रार्थना करने का मन नहीं होता, लेकिन उसके धार्मिक पहचान के आधार पर उससे प्रार्थना करवाकर, उसे प्रताड़ित किया जा रहा है? 

ऐसे याचिकाकर्ता बहुत ही धूर्त लोग हैं जिनकी मंशा न तो देश की धर्मनिरपेक्षता है, न ही समाज की भलाई का। ये लोग दो मिनट की लोकप्रियता के लिए इस तरह की बेहूदगी करते हैं। हमें यह देखना चाहिए कि क्या इतनी छोटी उम्र के बच्चे संस्कृत की उस प्रार्थना को ‘धार्मिक’ रूप में देखते हैं? अगर ऐसा है तो उसके माँ-बाप को, उसके शिक्षकों का दोष है कि वह भाषा को धर्म से जोड़कर देखता है, वह शब्दों के अर्थ को न लेकर शब्दों पर ही सवाल कर रहा है।

आप बच्चों को किस-किस आधार पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े करने की बात कर रहे हैं? धर्मनिरपेक्ष का मतलब धर्म का लोप नहीं होता, बल्कि दूसरे धर्मों की बातों को सहजता से स्वीकारना होता है। धर्मनिरपेक्ष का मतलब यह नहीं है कि मैं ‘अल्लाहु अकबर’ या ‘जय श्री राम’ कहने से साम्प्रदायिक हो जाता हूँ, बल्कि इसका मतलब यह है कि किसी के ‘जय श्री राम’ या ‘अल्लाहु अकबर’ कहने से मुझे कोई समस्या नहीं है। 

मुझे याचिकाकर्ता से समस्या नहीं है, क्योंकि वो तो अपनी हरकतों से चिरकुट लगता है। मुझे समस्या सुप्रीम कोर्ट के जजों से है कि उसकी समझ इतनी बेकार है संविधान या समाज को लेकर कि उसे इस मामले में संवैधानिक पीठ तक जाना पड़ रहा है? कुछ लोग कहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट को फ़ाइनल कर ही देना चाहिए कि ये सही है या गलत। 

फिर तो सुप्रीम कोर्ट तक कोई आदमी ‘भगवा’ रंग को लेकर धर्म देखते हुए पूरे देश से उसे हटवाने की अपील करेगा क्योंकि उससे उसकी धार्मिकता या नास्तिकता आहत हो रही है? कोई कल को मस्जिदों को हटाने की माँग कर सकता है कि उसे देखकर उसका हिन्दुत्व ख़तरे में पड़ रहा है?

देश धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब यह नहीं है कि धर्म के प्रतीकों को हटा दिया जाए, बल्कि उसका मतलब है कि हर धर्म के प्रतीकों के लिए नागरिक के मन में सम्मान हो। सम्मान न भी हो तो, वो दूसरों की धार्मिक भावनाओं पर आक्रमण न करे। उन्हें नीचा न दिखाए। 

याचिकाकर्ता की तरफ से दलील यह भी दी जा रही है कि ये केन्द्र संचालित हैं, तो उसमें इस तरह की बातें नहीं होनी चाहिए। केन्द्र संचालित बहुत सी चीज़ें हैं और उसमें धर्म के नाम पर बहुत सी बातें होती हैं। कार्यक्रमों का शुभारंभ दीप जलाकर किया जाता है, मंत्रालयों, विभागों, संस्थानों के नाम में, उनके प्रतीकों में संस्कृत के सुविचार हैं, तो क्या ये सब धार्मिक हैं?

ये धार्मिक नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है। संस्कृति का हिस्सा धर्म से जुड़ा हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि धर्म से जुड़ा है तो गलत है? अगर कहीं यह लिखा हो कि विधर्मियों को काट देना चाहिए, तो उस पर प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है, न कि इस बात पर जो बेहतर जीवन जीने का उपदेश देता हो। 

किसी धर्म से जुड़ा होना उसे स्वयं ही गलत नहीं बना देता। आजकल का फ़ैशन है कि जो हिन्दू है, हिन्दू धर्म से जुड़ा है, हिन्दू विचारों की बात करता है, वो साम्प्रदायिक हो जाता है। चलन में आजकल है कि हिन्दुओं के हर प्रतीक को इस ‘सेकुलर’ नैरेटिव में खींचकर उसे नकार दिया जाए। यह स्थिति बहुत ख़तरनाक है क्योंकि देश की इतनी बड़ी आबादी के सब्र का इम्तिहान एक हद तक ही लिया जा सकता है।

जब जनता सड़क पर आ जाएगी तब न तो जज रहेंगे, न कोर्ट। इस तरह की याचिकाओं के लिए तीन सेकेंड से ज़्यादा समय देना बताता है कि हमारी न्यायिक व्यवस्था विवेक की जगह ‘टेक्निकेलिटी’ से चलती है, और इसे वकीलों ने अपने मनमानी का अखाड़ा बना लिया है। जजों को अपनी और संस्थान की अहमियत समझनी चाहिए, तथा जजमेंट या निर्देश देते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। 

ऐसी तमाम बातों को देखकर ही लगातार अब यह नैरेटिव भी सामने आ रहा है कि न्यायालय का सहारा लेकर हिन्दुओं को टार्गेट किया जा रहा है। सबरीमाला से लेकर दही हांडी तक, दीवाली से लेकर होली तक, सरस्वती की संस्कृत प्रार्थना से लेकर दुर्गा की मूर्ति तक, हमेशा एक ही धर्म इनके निशाने पर रहे हैं। यह बात सोचने को विवश करती है कि जजों का बुद्धि-विवेक चंद वकीलों के हाथ में क्यों बंधक बना हुआ  है। 

लेख का वीडियो यहाँ देखें

एमजे अकबर #MeToo केस: अदालत ने प्रिया रमानी को समन किया

एमजे अकबर पर ‘मी टू’ (Me Too) के तहत यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पत्रकार प्रिया रमानी को अदालत ने समन किया है। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने प्रिया को 25 फ़रवरी के दिन अदालत के समक्ष पेश होने को कहा है। बता दें कि प्रिया रमानी द्वारा पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर यौन शोषण के आरोप लगाए जाने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था। पूर्व मंत्री ने रमानी के ख़िलाफ़ अदालत में मानहानि का मुक़दमा दायर किया था, जिस पर सुनवाई करते हुए प्रिया रमानी को समन किया गया।

अक्टूबर 2008 में कई ट्वीट कर के रमानी ने अकबर पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। पूर्व मंत्री ने मानहानि के केस को साबित करने के लिए अपनी तरफ़ से 6 गवाह पेश किए। सभी गवाहों ने अदालत को बताया कि एमजे अकबर के ख़िलाफ़ प्रिया रमानी द्वारा लगाए गए आरोप उनके लिए चौंकाने वाले थे। अदालत ने इन गवाहों के बयान सुनने के बाद प्रिया रमानी को आरोपित के रूप में समन किया। गवाहों ने कोर्ट को बताया कि इन आरोपों के बारे में जानने के बाद उनकी आँखों में अकबर के लिए मान कम हो गया। गवाहों ने यह भी कहा कि उन्होंने अकबर के साथ इतने दिन काम करने के बावजूद उनके ख़िलाफ़ कोई शिकायत वाली बात नहीं सुनी।

एमजे अकबर हमेशा अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन करते रहे हैं और उनका कहना है कि उन्हें जान-बूझ कर फँसाया जा रहा है। एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट (ACMM) के समक्ष एमजे अकबर ने रमानी के आरोपों को ‘गढ़ी हुई घटनाएँ (Fabricated non-events)’ बताया था। वहीं अदालत के इस निर्णय के बाद प्रिय रमानी ने सोशल मीडिया के माध्यम से बताया कि अब उनकी तरफ की कहानी बताने का वक्त आ गया है।

प्रिया रमानी पेशे से पत्रकार हैं। उनके आरोपों के बाद कई अन्य महिलाओं ने भी एमजे अकबर पर आरोप लगाए थे। ‘मी टू’ में अब तक नाना पाटेकर, विनोद दुआ, आलोक नाथ, राजकुमार हिरानी और साज़िद ख़ान सहित कई हस्तियों के नाम आ चुके हैं।

कुम्भ की धरा से योगी कैबिनेट का गंगा एक्सप्रेस-वे सहित अन्य योजनाओं का ऐलान

प्रयागराज कुम्भ में मंगलवार को पहली बार ऐसा हुआ है जब कुम्भ क्षेत्र में राज्य सरकार की कैबिनेट की बैठक हुई। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ यूपी सरकार के सभी मंत्री मौजूद रहे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया जिनका ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ से लेकर प्रयागराज तक गंगा एक्सप्रेस-वे बनाया जाएगा। यह 6 लेन का गंगा एक्सप्रेस-वे गंगा के किनारों के साथ आगे बढ़ेगा। इस एक्सप्रेस-वे को बनाने के लिए 36000 करोड़ रुपए के बजट को मंज़ूरी दी गई।

गंगा एक्सप्रेस-वे मेरठ, अमरोहा, बुलन्दशहर, बदायूँ, शाहजहाँपुर, फ़र्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ होते हुए प्रयागराज तक आएगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ये एक्सप्रेस-वे दुनिया का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे होगा।

इसके अलावा फ़ैसला लिया गया है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का भी तेजी से निर्माण किया जाएगा, 270 किलोमीटर के इस एक्सप्रेस-वे के लिए लिए 8000 करोड़ रुपए से अधिक का आवंटन किया जाएगा। कैबिनेट मीटिंग में किसानों की आय को दोगुना करने के लिए भी किसान मंडी में प्रतिनिधित्व को लेकर कुछ अहम निर्णय लिए गए।

साथ ही, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सर्जिकल स्ट्राइक के ऊपर बनी फिल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ को उत्तर प्रदेश में कर मुक्त कर दिया है। महर्षि भारद्वाज की नगरी प्रयागराज के आश्रम का भी सौंदर्यीकरण करने की घोषणा की गई। निषादराज की नगरी श्रृंगवेरपुर को भी विकसित करने का ऐलान किया गया।

कैबिनेट बैठक के बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में इस बार कुम्भ का आयोजन भव्यतम है। मुख्यमंत्री ने इसके लिए प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया। बता दें कि इस बार कुम्भ में दुनिया के 70 से अधिक देशों के लगे राष्ट्रध्वज, इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा के प्रतिक हैं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी और निर्माणी अनी अखाड़े के प्रमुख महंत धर्मदास के साथ ही विभिन्न साधु-संतों के अलावा आम श्रद्धालुओं ने भी योगी सरकार के कुम्भ में कैबिनेट बैठक करने पर ख़ुशी का इज़हार किया है।

बजट में कटौती के बाद ₹52 करोड़ में तैयार होंगे बिहार मंत्रियों के लिए 20 बंगले

बिहार की राजधानी पटना में गर्दनीबाग इलाके में 20 मंत्रियों के बंगले ₹62 करोड़ में बनाए जाने थे। अब इन बंगलों की निर्माण राशि में सरकार ने कटौती की है। कटौती के बाद अब मंत्रियों के बंगलों का निर्माण ₹52 करोड़ में किया जाएगा।

सरकार द्वारा राशि में कटौती के बाद अब एक बंगले की निर्माण राशि 2.5 करोड़ होगी। राशि में 10 करोड़ की गिरावट के कारण भीतर के डिज़ाइन में भी परिवर्तन होगा। जिसके बाद इन बंगलों के निर्माण की प्रक्रिया चालू होगी।

बता दें कि गर्दनीबाग में बसने वाले टाउनशिप इलाके में न्यायाधीशों व मंत्रियों के 20 बंगले बनने हैं। वहीं अधिकारियों और तृतीय श्रेणी के कर्मियों के 700-700 आवास बनने हैं और चुतुर्थ ग्रेड कर्मियों के 400 सरकारी आवास बनने हैं। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बनने वाले बंगले का अब तक डिज़ाइन फाइनल नहीं हुआ है।

इसके साथ ही आपको बता दें कि टाउनशिप इलाके में अधिकारियों के जो 700 आवास बनने हैं उस पर ₹480 करोड़ का ख़र्चा आना है। इन आवास निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी हो रही है। इस इलाके में बने मास्टर प्लान में आवासीय भवनों के साथ व्यवसायिक क्षेत्र, आईटी पार्क, होटल, अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान आदि का भी निर्माण होना है।

इन सभी भवनों की संरचना में पटना के भूकंप को ध्यान रखते हुए सुरक्षात्मक मापदंडो का पालन होगा। प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट के अनुसार, भवन निर्माण विभाग के सूत्र ने बताया कि पहले मंत्रियों के बंगलों के निर्माण में 52 करोड़ ख़र्च का अनुमान लगाया गया था। लेकिन, नए डिज़ाइनों के चलते इन पर दस करोड़ अधिक खर्च बढ़ने की सम्भावना थी। इसी अतिरिक्त बढ़े ख़र्च में कटौती करते हुए डिजाइन में परिवर्तन करने पर अभी निर्णय लिया जाना है।

दो साल में ₹6900 करोड़ की बेनामी संपत्ति आयकर विभाग द्वारा ज़ब्त

आयकर (IT) विभाग ने पिछले दो वर्षों में ₹6900 करोड़ की बेनामी संपत्ति ज़ब्त की है। एजेंसी ने कहा कि उसने बेनामी लेनदेन निषेध अधिनियम के तहत इतनी मूल्य की संपत्ति को कुर्क किया। एजेंसी ने इस संबंध में समाचार पत्रों को विज्ञापन भी दिए, जिसमें बताया गया है कि दोषियों को 7 साल तक की सज़ा हो सकती है। बता दें कि नए क़ानून के तहत जो कार्रवाई होगी, वह आयकर क़ानून, 1961 के अतिरिक्त होगी। देश में संशोधित बेनामी क़ानून 2016 में लागू हुआ था।

विज्ञापन में बेनामी सौदे करने वाले, बेनामदार (बेनामी संपत्ति के मालिक) और लाभार्थी (बेनामी संपत्ति ख़रीदने के लिए रुपए ख़र्च करने वाले)- इन तीनो को ही दोषियों की श्रेणी में रखा गया है। एजेंसी ने कहा कि दोषियों पर अभियोजन चला कर उन्हें सज़ा तो दिलाई जाएगी, साथ ही उनसे संपत्ति के बाज़ार मूल्य का 25 प्रतिशत ज़ुर्माना भी वसूल लिया जाएगा। बता दें कि लोग टैक्स से बचने के लिए अपनी चल-अचल संपत्ति को किसी और के नाम कर देते हैं- इस संपत्ति को बेनामी संपत्ति के रूप में जाना जाता है।

आयकर विभाग द्वारा ज़ारी किया गया विज्ञापन

इसके अलावा बेनामी सपत्तियों को लेकर जो गलत सूचना देते हैं और जो सही जानकारी छिपाते हैं- उसके लिए भी सज़ा और ज़ुर्माना का प्रावधान किया गया है। उन्हें 5 वर्ष तक की सज़ा के साथ-साथ संपत्ति के बाज़ार मूल्य का 10% ज़ुर्माना के रूप में वसूला जाएगा। आयकर विभाग ने जनता से भी एजेंसी का सहयोग करने का निवेदन किया है ताकि इस बुराई को ख़त्म किया जा सके। बता दें कि पहले वाले क़ानून के तहत सिर्फ़ तीन वर्ष की ही सज़ा हुआ करती थी। आईटी विभाग ने लोगों को आगाह किया है कि बेनामी संपत्ति को सरकार द्वारा ज़ब्त किया जा सकता है।

बता दें कि साल 2017-18 में आयकर विभाग ने अकेले कर्नाटक और गोवा क्षेत्र से ₹12,268 करोड़ के गुप्त आय और संपत्ति को पकड़ा है जो कि अपने आप में एक बड़ी सफलता मानी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में एजेंसी की सक्रियता का ही परिणाम है कि करदाताओं की संख्या में भारी उछाल आया है।

राजनैतिक फ़ैंसी ड्रेस मे अवतरित नया कलाकार

दूसरे दिन छगनलाल जी मिल गए। चेहरे पर भारतीय मतदाता जैसे आश्चर्य और असमंजस के भाव थे। हिंदी पाठकों वाले निर्धन, निरीह मुख पर चमत्कृत होने के भाव छगनलाल जी को आदर्श भारतीय मतदाता की छवि प्रदान करते थे जो मध्यवर्गीय भी हों और विवाहित भी।

वह उस वर्ग से आते थे जो हिंदी पढ़ता है और अपनी समस्याएँ अंग्रेज़ी लेखकों को टीवी पर प्राइम टाइम विचार विमर्श की विषय वस्तु बना कर प्रस्तुत करता है। जब अंग्रेज़ी लेखक और प्रवक्ता टीवी पर उसकी समस्या और एक-दूसरे का छीछालेदर कर रहे होते, वह ब्रुश लेकर बाथरूम मे दाँत माँजने घुस जाता है और उसकी पत्नी चैनल बदल देती है। उसे विश्वास होता है कि उसकी समस्या के निराकरण का सौभाग्य नहीं है, बुद्धिजीवियों के मनोरंजन का सुयोग है। मध्यवर्गीय भारतीय की समस्याएँ बुद्धिजीवियों का च्यूईंग गम है, जो उनके जबड़ों के स्वस्थ और चेहरे की त्वचा को युवा रखता है।

इसी निरुत्साह के भाव के साथ छगनलाल जी ने हमारी ओर प्रश्न उछाला, “बताइए, यह क्या बात हुई कि आदमी बैंगन बन कर आए?” हमने चुनावी मौसम में आदमी को बेवक़ूफ़ बनते हुए सुना था, ये बैंगन वाला एंगल हमारे लिए भी नया था। हम छगनलाल जी की इस विचित्र विडंबना से उसी निर्विकार भाव से निकल सकते थे जैसे ग़रीब किसानों की स्थिति पर टेसुए बहाता नेता, रात की फ्लाइट से नानी के दर्शन को विदेश निकल जाता है। पर व्यंग्य लेख़क का काम होता है फँसना, सो हम फँसे।

हमने कहा, “चुनाव मे लोग आज कल ब्राह्मण और मौलवी बन लेते हैं, यह बैंगन बनने की प्रथा कब शुरू हुई?”

छगनलाल गहरी साँस छोड़ते हुए बोले- “बेटे के स्कूल मे वार्षिकोत्सव है।”

हमने कहा कि, ये हर्ष का विषय है। देश की राजनीति भी अभी उत्साहित है। पत्रकारों के घोर आह्वान के बावजूद, हर चुनाव के समय ‘ऋतु वसंत आया’ पर मनोरम नृत्य प्रस्तुत करने के बाद कॉन्ग्रेस की ट्रेन आऊटर पर निर्विकार अंगद के पाँव की भाँति स्थापित है। बाहरहाल, निरुत्साहित सभागणों के उत्साह को बनाए रखने के लिए नई शटल चलाई गई है।

जिन्हें पुराने दरबार मे स्थान नहीं मिला उनके लिए नवनियुक्ति के अवसर ले कर सत्ता का नया केंद्र कॉन्ग्रेस मे प्रस्तुत हुआ। छूटे हुए चाटुकारों ने राष्ट्रीय कृषक की पत्नी और भारत रत्न प्रपौत्री में इंदिरा गाँधी की छवि सहसा देखी, चहुँ ओर प्रथम परिवार की जय-जयकार गुंजायमान हुई। बुद्धिजीवी टिटिहरियों ने संसार मे धर्म की रक्षा पर संतोष व्यक्त किया, निष्पक्ष पत्रकारों ने सामूहिक सोहर कोरस मे गा कर कॉन्ग्रेस के प्रथम परिवार की दूसरी प्रविष्टि का स्वागत किया।

समर्थकों ने दक्षिण के सिनेमा के स्टाईल मे हिंद की शेरनी, ग़रीबों की मसीहा के शिमला के बँगले से अवतरित होने के स्वागत मे पोस्टर छापे और विश्लेषकों ने लेख लिखे जिनके मूल भाव मे देवी ऐसे उत्साह के वातावरण मे जहाँ ईवीएम का क्रांतिकारी कॉन्ग्रेसी प्रेस कॉफ्रे़ंस दब चुका है, और राफ़ेल की चिड़िया दाना चुग कर उड़ चुकी है, यह बैंगन छगनलाल जी कहाँ से ले आए, मै समझ नहीं पाया।

दोबारा पूछने पर बोले- “बेटे को स्कूल मे फ़ैंसी ड्रेस मे बैंगन बनना है? यह भी कोई बात हुई? ऊपर से पिछले साल वो शर्मा जी का बेटा कुम्हड़ा बन कर प्रथम स्थान ले गया था। बहुत प्रेशर है पत्नी का कि, लड़के को इस बार फ़र्स्ट आना है।”

हमने उन्हे समझाया कि यह उनकी पत्नी की राजनीतिक परिपक्वता बताता है। भारतीय राजनीति इन्हीं दो मानकों पर आधारित है- फ़ैंसी ड्रेस और शर्मा जी का बेटा होने पर। आप क्या हैं वह आपकी वेष-भूषा तय करती है। जींस में हैं तो प्रायवेट सिटिज़न, साड़ी मे है तो राष्ट्र नेता। दूसरे यदि, आप शर्मा जी के बेटे हैं तो आपकी पैदाइश ही आपकी महानता का साक्ष्य है। जैसा अपने सर्वदा समसामयिक उपन्यास मे श्रीलाल शुक्ल जी रूप्पन बाबू को पाठकों के समय प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि रुप्पन बाबू नेता हैं क्योंकि उनके पिता भी नेता है।

महागठबंधन के तीसरे या चौथे मोर्चे के नेताओं ने हाल मे हुए कोलकाता सम्मेलन में योग्य शर्मा जी के योग्य औलादों को जनता के समक्ष, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना प्रस्तुत किया तो घाघ, वृद्ध कॉन्ग्रेस ने सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च शर्मा पुत्री को मैदान मे उतार कर मास्टर स्ट्रोक खेला। सब शर्मा जी के बेटे मुँह बाए देखते रह गए। जल्द ही नेतोचित परिधान धारण कर के प्रियंका जी राष्ट्रोद्धार के पुनीत कार्य मे संलग्न होंगी और हमारी आशा है कि, श्री छगनलाल के पुत्र भी बैंगन बन कर प्रथम पुरस्कार प्राप्त करेंगे और शर्मा जी के पुत्र को परास्त करेंगे।

अस्त होती सभ्यता का सूर्य हैं सरस्वती पुत्र ‘पद्मश्री’ प्रीतम भरतवाण


प्रीतम भरतवाण का नाम सुनते ही उत्तराखंड लोक कला और संस्कृति की वो विरासत दिमाग में कौंधती है जो विलुप्ति के कगार पर खड़ी है। कारण है कि उत्तराखंड जैसा राज्य जो विभिन्न जनजातीय समाज और सभ्यताओं से मिलकर बना है, आज पलायन, बेरोज़गारी और प्रशासन की बेख़याली की मार झेल रहा है। उत्तराखंड राज्य को ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन यहाँ का एक दूसरा सत्य अभाव और संसाधनहीनता भी है।

ऐसे समय में उत्तराखंड की सुदूर जगहों के रहने वाली ऐसी हस्ती और उसकी विद्या को ढूँढकर उसे पद्म श्री से गौरवान्वित करने का जो काम वर्तमान सरकार ने किया है, वो हर लिहाज़ से सराहनीय है।

इस गणतंत्र दिवस पर भारत सरकार ने चिरकालिक प्रथा से बाहर निकलकर ऐसे लोगों को चुनकर उन्हें सम्मान देने का काम किया है, जो अब तक किसी ना किसी कारण से नज़रअंदाज़ किए जा रहे थे। इसी क्रम में जो एक नाम पद्म श्री पुरुस्कार की श्रेणी में आया, वो है प्रीतम भरतवाण यानि उत्तराखंड गढ़वाल के मशहूर ‘जागर सम्राट’।

जिस उम्र में बच्चे अपने माँ-बाप की उँगली पकड़कर चलना सीखते हैं, उस उम्र में प्रीतम के हाथों ने ‘ढोल-दमाऊँ’ थामा था। उत्तराखंड के लोक संगीत और वाद्य यंत्रों को विलुप्ति के अंधेरे से विश्व पटल पर लाने का श्रेय आज निसंदेह इस सरस्वती पुत्र को जाता है।

‘डौर’ के साथ स्टेज पर प्रस्तुति देते हुए प्रीतम भरतवाण

देवताओं की इस धरती पर यदि सबसे पहले किसी को नमन किया जाना चाहिए तो वह यह ‘दास समुदाय’ है जिन्हे स्थानीय भाषा में ‘औजी’ कहा जाता है, जिनके आह्वान से ही किसी भी शुभ कार्य या समारोह में सर्वप्रथम देवी-देवताओं का स्मरण किया जाता है। सांस्कृतिक देवताओं के साथ ही उत्तराखंड में स्थानीय देवताओं का भी बहुत महत्त्व है, जिनके स्मरण के लिए ‘औजी’ ढोल-दमाऊँ के साथ ‘जागर’ आदि गाते हैं। गढ़वाल में प्रत्येक सुबह, 4-5 बजे के बीच, उठकर गाँव के औजी ढोल-दमाऊँ द्वारा ‘नौबत’ बजाते हैं और साँझ गोधूलि पर भी ढोल-दमाऊँ के ज़रिए देवताओं को प्रणाम करते हैं।

उत्तराखंड अपनी सभ्यता के अंतिम पड़ाव पर है-

एक समय था जब उत्तराखंड में सभ्यताओं का महाकुम्भ हुआ करता था। सभ्यताओं की सजीव प्रतिमा, यह राज्य, आज उपेक्षाओं के कारण एक त्रासदी से गुजर रहा है। त्रासदी यह है कि अवसरों की कमी और साधनों की कमी के कारण यह राज्य अपनी तमाम पिछली विरासतों से विमुख होकर पलायन के लिए मजबूर है। सबसे त्रासद अगर आज के समय में कुछ है तो वह यही ‘औजी वर्ग’ है। इस वर्ग के लिए ढोल सागर अपनी अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना इसलिए चुनौती बन रहा है क्योंकि इस कार्य से उनका पेट नहीं भरता है। सरकार को चाहिए कि उन्हें संरक्षण देकर इस विधा को जीवित रखने का प्रयास करें।

प्रीतम भरतवाण इसी कारण सम्मान के पात्र बने हैं। एक ओर जहाँ गढ़वाल का औजी इस ढोल विद्या को हीन समझकर त्याग रहा था, उसी वक़्त प्रीतम भरतवाण ने अपनी विद्या को सरस्वती बनाकर एक अनोखी मिसाल क़ायम की है। प्रीतम भरतवाण ने इस विरासत को बेहद सादगी से प्रणाम कर ढोल को अपने गले में धारण कर ऐसा जूनून दिखाया कि आज वह देश-विदेशों में अपनी इस कला के लिए सम्मानित किए जा रहे हैं और एक बहुत बड़ा वर्ग उनका प्रशंसक है।

प्रीतम भरतवाण ने गढ़वाल की विलुप्त होती ढोल विधा को परिमार्जित कर समाज पर अनुग्रह किया है। अपने प्रोग्राम के दौरान भी संगीत गाते-बजाते उनका अंग-अंग थिरकता है। उनके दैवीय जागरों को सुनकर नास्तिकों के सर भी देवताओं के सम्मुख अवनत हो जाते हैं। वह सगुण और निर्गुण दोनों भक्तिधारा के उपासक हैं।

एशिया से यूरोप, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, दुबई तक संगीत की ‘जागर’ विधा को पहुँचाने और सम्मान दिलाने का काम प्रीतम भरतवाण ने किया है। आज हालात यह हैं कि देश-विदेश में उनके अनेक शिष्य हैं। बचपन से ही प्रीतम के कण्ठ में सरस्वती जाग्रत रूप में विराजमान हैं, सरस्वती इन्हें सिद्धस्त हैं। अपने बचपन का स्मरण करते हुए प्रीतम भरतवाण ने बताया कि गाँव में जब भी जागर का कोई कार्यक्रम होता था सबसे पहले ‘पिर्ति’ को ही बुलाया जाता था।

स्टेज पर उनके ‘लाइव’ कार्यक्रम देखते और सुनते समय दर्शकों को अपने भीतर किसी दैवीय चेतना का अनुभव होता है और कई लोग दैवीय स्वर में झूमने लगते हैं। प्रीतम भरतवाण बेहद सौम्य व्यव्हार के विराट व्यक्तित्व के धनी पुरुष हैं, इनके व्यक्तित्व की खासियत है कि बचपन के ‘पिर्ति’ की विनम्रता अभी भी उनके व्यक्तित्व में ज्यों की त्यों विद्यमान है।

विरासत में मिली इस सभ्यता को अपने दादा और पिता की तरह ही श्री भरतवाण जी ने भी ढोल वादन को आगे बढ़ाया। मात्र 6 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने विरासत में मिले ढोल वादन और जागर गायन के अपने हुनर का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। उनके घर पर ढोल, डौर-थाली जैसे कई उत्तराखंडी वाद्य यंत्र हुआ करते थे। इसके साथ ही उनके घर में भी संगीत का मौहाल था। वह अपने पिता के साथ गाँव-घरों में गाए जाने वाले जागरों में संगत करने लगे।

लेकिन जागर प्रीतम भरतवाण के संगीत का सिर्फ़ एक पहलू है। अपने संगीत के माध्यम से उन्होंने पहाड़ के अनेक पहलुओं पर गीत लिखे और गाए हैं। ख़ासकर, लोक संगीत पर उनकी पकड़ बेहद मजबूत रही है। लोक जागर के अलावा उन्होंने पहाड़ के दुरूह जीवन का चित्रण करते और पहाड़ से पलायन का दर्द भी अपने गीतों के माध्यम से बयाँ किया है।

अपने बेहद प्रचिलित गीत ‘आज कुजणी किलैई, गौं की याद आणि चा’ में उन्होंने पहाड़ से दूर रहने वाले व्यक्ति की पीड़ा को रखा है। ‘हम कुसल छौं माजी दगड्यून दगड़ी’ गाना सीमा पर तैनात सेना के जवानों की मनोस्थिति पर लिखा और गाया है। इसके अलावा उन्होंने ‘घुट-घुट बाडुलि लगिगे’ जैसे ‘खुदेड़’ लोकगीत भी गाए हैं। ‘धनुली मेरु जिया लगिगे’ और ‘सुंदरा छोरी’ प्रेम मनुहार वाले गाने हैं।

भले ही उनकी पहचान ‘जागर सम्राट’ की है, लेकिन वे गायकी की हर विधा के धनी हैं। अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संस्थाएँ प्रीतम भरतवाण को सम्मानित कर चुकी हैं, फिर भी एक अटल तपस्वी की भाँति वे निर्विकार संगीत साधना में लीन हैं।

प्रीतम भरतवाण के प्रयासों का ही नतीजा है कि कभी ‘औजी’ या दास (ढोलवादक) समुदाय तक सीमित रहे जागर आज न केवल समाज के सभी वर्गों में सुने और गाए जाते हैं, बल्कि उन्हें पूरा सम्मान भी दिया जाता है। उनकी इन उपलब्धियों के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने का निर्णय लिया।

जागर’ क्या है?

‘जागर’ का अर्थ सामान्य शब्दों में ‘जागृत करना’ होता है। उत्तराखंड में ग्राम्य देवताओं का विशेष महत्त्व रहा है और उनकी पूजा की जाती है, जैसे नरसिंह, गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण आदि। कुछ देवताओं को स्थानीय भाषा में ‘ग्राम्य देवता’ कहा जाता है। ग्राम्य देवता का अर्थ गाँव का देवता है। उत्तराखंड की जाति और जनजातियाँ इन्हीं देवताओं को जगाने हेतु ‘जागर’ लगाते हैँ। जागर में ‘जगरिया’ मुख्य पात्र होता है जो रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों से होते हैं। इसी जागर मंचन (जैसे देवी/देवता ऊर्जा रूप में शरीर में आ गए हों) के साथ ही जिस देवता का आवाह्न करना होता है, उस देवता के चरित्र को स्थानीय भाषा में वर्णन करता है। ‘औजी’ ढोल-दमाऊँ बजाने के साथ-साथ जगरीया हुड्का (हुडुक) कहानी गाता है।

प्रीतम भरतवाण संक्षिप्त परिचय :

प्रीतम भरतवाण उत्तराखंड के टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड के सिला गाँव के रहने वाले हैं। इस संगीत सम्राट का जन्म और बचपन बहुत कठिनाई में गुजरा है । प्रीतम का जन्म एक ‘औजी’ परिवार में हुआ है, जिस कारण लोक संगीत उन्हे विरासत में मिला है।

वर्ष 2000 के बाद से उत्तराखंड राज्य की अलग से स्थापना के बाद कुछ हद तक यहाँ की दूरस्थ जाति-जनजातियों को पहचान मिलनी शुरू हुई। हालाँकि, एक सत्य यह भी है कि तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उत्तराखंड राज्य पलायन जैसे अभिशाप जीने के लिए मजबूर है, जब गाँव ही नहीं रहे तो सभ्यताएँ किस तरह से जीवित रहेंगी, यह वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है।

प्रीतम भरतवाण के दादा और पिता भी जाने-माने ढोल वादक थे, जिन्होंने पूरा जीवन सरस्वती की साधना में लगाया। जागरों, लोकगीत और पंवाणों के ज्ञाता श्री भरतवाण जी को उत्तराखंड के लोक संगीत में  उल्लेखनीय योगदान देखते हुए विगत वर्ष उन्हें उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (UOU) हल्द्वानी, कुमाऊँ ने (डॉक्ट्रेट) मानद उपाधि से गवर्नर के हाथों सम्मानित किया है।

प्रीतम की शुरूआती शिक्षा गाँव के पास ही एक विद्यालय में हुई। संगीत के प्रति रूझान और उनकी कला की पहचान सबसे पहले स्कूल में ‘रामी-बारौणी’ नाटक में बाल आवाज़ देने से हुई। उन्होंने मसूरी के एक नृत्य-नाटक में डांस किया, जिसके बाद स्कूल के शिक्षकों की उन पर नज़र पड़ी और वे उनका हुनर पहचान गए। इसके बाद तो उन्हें स्कूल के हर कार्यक्रम में गाने का मौका मिलने लगा। सबसे ख़ास बात यह रही कि मात्र 12 साल की उम्र में ही उन्होंने लोगों के सामने जागर गाना शुरू कर दिया था। उनके जीजाजी और चाचाजी से उन्हें जागर गाने के लिए प्रोत्साहित किया और वे उन्हें इसका पूरा श्रेय देते हैं।

उनकी सादगी का परिचय इसी बात से मिलता है कि जब उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल, श्रीमती बेबी रानी मौर्य द्वारा उन्हें मानद उपाधि भेंट की गई तो उनके शब्द थे, “मैं अपने पूर्वजों तथा जागर, पंवाणों, ढोल सागर, ढोल दमों, हुड़का, डौंर, थाली को एवं अपने सम्मानीय श्रोताओं, शुभचिंतकों, मार्गदर्शकों को कोटिशः नमन करता हूँ।”

उत्तराखंड की राज्यपाल द्वारा डॉक्ट्रेट उपाधि ग्रहण करते हुए लोकगायक प्रीतम भरतवाण

स्थानीय स्तर पर गायकी और ढोल वादन को सराहना मिली तो प्रीतम भरतवाण  ने 1988 में आकाशवाणी के लिए गाना शुरू कर दिया। 4 साल बाद उनका पहला ऑडियो एल्बम ‘रंगीली बौजी’ बाजार में आया, जिसे खूब पसंद किया गया। इसके बाद प्रीतम ने एक के बाद एक तौंसा बौ, पैंछि माया, सुबेर, सरूली, रौंस, तुम्हारी खुद, बाँद अमरावती जैसे सुपरहिट एलबम निकाले। अब तक 50 से अधिक एल्बम में वे 350 से ज्यादा गाने गा चुके हैं।

एक ‘लाइव’प्रोग्राम के दौरान प्रीतम भरतवाण

प्रीतम भरतवाण से पहले वर्ष 2017 में जागर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए बसन्ती बिष्ट को भी पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। कई वर्षों से समाज और सरकारों की उपेक्षा और संसाधानों के अभाव से दास समुदाय ढोल और दमाऊँ बजाने से परहेज कर रहे थे। ऐसे मौके पर प्रीतम भरतवाण ने ढोल-दमाऊँ को बजाना शुरु किया और नई पहचान दिलाई। उम्मीद है कि भारत सरकार द्वारा उन्हें इस विधा के लिए पुरस्कृत करना औजी समुदाय के लिए प्रेरणा का कार्य करेगा और विलुप्त होती यह परम्परा एक बार फिर जीवित हो उठेगी।

इन दिनों भरतवाण जी पहाड़ी संस्कृति का झंडा अमेरिका में बुलंद कर रहे हैं। अपने अमेरिका प्रवास में वह ओहायो की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में अमेरिकियों को ढोल-दमाऊँ की बारिकियाँ सिखा रहे हैं।

किसानों को ₹6680 करोड़ का राहत पैकेजः मोदी सरकार ने दी स्वीकृति

मोदी सरकार ने किसानों को बजट से पहले बड़ा तोहफ़ा दिया है। सरकार ने चार राज्यों में किसानों के लिए ₹6680 करोड़ के राहत पैकेज को मंजूरी दे दी है। इसका लाभ आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों को मिलेगा। कुल रकम में से आंध्र प्रदेश के लिए ₹900 करोड़, गुजरात के लिए ₹130 करोड़, महाराष्ट्र के लिए ₹4700 करोड़ जबकि कर्नाटक के लिए ₹950 करोड़ का पैकेज दिया गया है।

बता दें की इन राज्यों में सूखे की समस्या से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है, और अब सरकार के इस पैकेज से किसानों को राहत मिलने की आशा है। सरकार छोटे एवं सीमांत किसानों की आय में कमी की समस्या को समाप्त करने की हर संभव कोशिश कर रही है।

बजट में भी किसानों को मिल सकती है बड़ी राहत

बिचौलियों के चलते किसानों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ता है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें लाभ तो क्या लागत की रकम भी नहीं मिल पाती है। सरकार इसे लेकर गंभीर है। रिपोर्ट की मानें तो बजट में किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने की योजना के बारे में विचार किया जा रहा है। इसके जरिए किसानों को अलग-अलग योजनाओं के जरिए सब्सिडी न देते हुए पूरा पैसा एक साथ सीधे उनके खाते में डाला जाएगा जो उनके लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। बता दें कि सरकार हर साल विभिन्न योजनाओं के तहत प्रत्येक किसान को सालाना ₹15,000 की सब्सिडी देती है।

FDI पर मोदी सरकार की उपलब्धिः 18% तक बढ़ा विदेश निवेश

विदेशी निवेश को लेकर गंभीर मोदी सरकार को एक और उपलब्धि हासिल हुई है। भारतीय रजर्व बैंक (RBI) ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि भारत में वित्त वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में 18% बढ़ा है। अब निवेश की रकम बढ़कर ₹28.25 लाख करोड़ हो गई है। रिपोर्ट की मानें तो बीते वित्त-वर्ष के दौरान देश में सबसे ज्यादा निवेश मॉरीशस से 19.7% रहा।

आरबीआई के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-18 में भारतीय प्रत्यक्ष निवेश कंपनियों की परिसंपत्तियों और विदेशी देनदारियों की गणना ₹4,33,300 करोड़ बढ़कर ₹28,24,600 करोड़ पहुँच गया, इसमें पिछले निवेशों का नया मूल्यांकन भी शामिल है।

बता दें कि, आरबीआई के मुताबिक हाल में 23,065 कंपनियों ने निवेश से जुड़े पूछे गए सवालों का जवाब दिया, जिसमें से 20,732 कंपनियों ने मार्च 2018 में अपनी बैलेंसशीट में एफडीआई या ओडीआई निवेश को दर्शाया है। इस दौरान भारतीय कंपनियों का विदेशों में निवेश (ओडीआई) 5% बढ़कर ₹5.28 लाख करोड़ हो गया।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में मॉरीशस (19.7%) के साथ पहले स्थान पर रहा। जबकि अन्य पर क्रमशः अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और जापान का स्थान है। दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों के विदेश में निवेश के मामले में 17.5% के साथ सिंगापुर सबसे प्रमुख स्थान रहा। विदेशी निवेशकों ने विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश किया। इसके अलावा सूचना एवं दूरसंचार सेवाओं, वित्तीय एवं बीमा गतिविधियाँ एफडीआई पाने वाले अन्य प्रमुख क्षेत्र रहे हैं।

क्या है एफडीआई?

जब कोई कंपनी दूसरे देश में निवेश करती है तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कहा जाता है। ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है, जिसमें उसका पैसा लगता है। आमतौर पर किसी निवेश को (FDI) का दर्जा दिलाने के लिए कम-से-कम कंपनी में विदेशी निवेशक को 10% शेयर खरीदना पड़ता है।

दरअसल, यह सीधा और दीर्घावधि का निवेश होता है। बता दें कि वर्तमान सरकार ने रक्षा, दवाई, नागरिक उड्डयन एवं खाद्य सामग्री के क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे रखी है।

एफडीआई से देश को क्या होता है फ़ायदा

जब कोई कंपनी देश में निवेश करती है तो वह केवल आर्थिक लाभ नहीं पहुँचाती है बल्कि उसके साथ कई प्रकार के अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं। जब वह किसी दूसरे देश में निवेश करती है तो पूँजी के साथ आधुनिक तकनीक भी देश में लाती हैं, जिससे देश को दोहरा लाभ मिलता है।

बता दें कि, आज अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का एक कारण एफडीआई भी है। विदेशी निवेश से उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर तकनीक भी आती है, जिससे वाणिज्य एवं कृषि-उत्पाद का विकास होता है और रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं।