Tuesday, October 1, 2024
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BSF जवान का वायरल वीडियो: सैनिक दिवस पर ये नहीं देखा मतलब कुछ नहीं देखा!

देश की रक्षा कर रहे जवानों को लेकर अक्सर तरह-तरह की बातें की जाती हैं। कई बार सोशल मीडिया के यूज़र्स उन पर तंज कसते हुए उनकी सफलताओं पर सवालिया निशान लगाते हुए दिखाई देते हैं। कई बार शाहरुख़ और सलमान की 100 करोड़ पार कर गई फ्लॉप फिल्मों को शेयर करने में चक्कर में हम नौज़वानों के बलिदान को एक दूसरे के साथ साझा करना ही भूल जाते हैं।

लेकिन, हमारी सराहनाओं की अपेक्षा किए बिना भी वो देश की रक्षा में हमेशा जुटे रहते हैं ताकि हर नागरिक सुरक्षित रह सके। 1997 में आई बॉर्डर फिल्म उन्हीं सैनिकों की कहानी दिखाती है, जो देश की रक्षा करने में अपने घर से दूर, ज़िम्मेदारियों को दरकिनार करके देश के लिए मर-मिटने की कसम खाए, सरहद पर मौत का सेहरा बाँधे हमेशा तैनात रहते हैं।

इस फिल्म का पर्दे पर आना भले ही कलाकारों और निर्देशक की मेहनत का परिणाम है, लेकिन इसकी सफ़लता सिर्फ उन सैनिकों के जीवन का आधार है, जो हकीकत में भी बिलकुल उसी तरह देश की सुरक्षा करते हैं, कभी गर्म रेत पर तो कभी सियाचीन की बर्फ पर…

इस फिल्म में एक गाना है, “संदेशे आते हैं, हमें तड़पाते हैं….” जिसमें हर सैनिक अपने घर को, अपने लोगों को, अपनी ज़िम्मेदारियों को याद करते हुए बेहद भावुक हो जाता है और बदलते अंतरों में अपनी यादों को और व्यथाओं को गुनगुना कर बताने की कोशिश करता है। वो वाकई आँसूं छलका देने वाला दृश्य होता है। सोचिए अगर कोई जवान सही में ये बोल गुनगुनाए तो शायद हम उनके दर्द की खनक को दोगुना महसूस कर पाएंगे।

सोशल मीडिया पर इस समय एक वीडियो वायरल हुआ है। इस वीडियो में बीएसएफ का एक जवान बॉर्डर फिल्म के उसी गाने को बहुत ही शानदार ढंग से गा रहा है। फेसबुक से लेकर ट्विटर और ढेर सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस वीडियो को शेयर किया जा रहा है।

इस वीडियो की सबसे खास बात यह है कि फिल्म में जहाँ कई उपकरणों की मदद से और दृश्यों के चुनाव के साथ इस गाने में जान डाली गई थी, वहीं इसमें एक रियल लाइफ सैनिक इस गाने को अपनी भावनाओं में लपेटकर गाते जा रहा है, वो भी पूरे सुर-लय-ताल के साथ।

बता दें बॉर्डर फिल्म में यह गाना सोनू निगम और रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में है।

‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’: कन्हैया चिल्ला रहा था, कर रहा था भीड़ का नेतृत्व – पुलिस ने की पुष्टि

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार, सईद उमर ख़ालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य पर सोमवार (जनवरी 14, 2019) को देशद्रोह के मामले में आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है। पुलिस का आरोप है कि ये लोग 9 फरवरी 2016 को हुए प्रदर्शन में अन्य अपराधों से भी जुड़े हुए थे।

इस पूरे मामले पर पुलिस ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए बताया कि जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व नेता कन्हैया कुमार ने ही उस दिन पूरी भीड़ का नेतृत्व किया था और बतौर छात्रसंघ नेता उसने सबको रोकने की जगह उन सबके साथ मिलकर देश-विरोधी नारेबाज़ी की थी।

दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट फाइल की है, वो पूरे 1200 पन्नों का है। इसमें इस बात का ज़िक्र है कि 2016 में हुई यह घटना सोची-समझी साज़िश और पूरी प्लानिंग के साथ हुई थी। अपनी चार्जशीट में पुलिस ने इस मामले से जुड़े 90 गवाहों को साक्ष्य के तौर पर रखा है। इनमें से 30 ऐसे हैं, जो देशद्रोही नारेबाज़ी के प्रत्यक्षदर्शी हैं। इनमें से कुछ वहाँ के स्टॉफ और सुरक्षाकर्मी भी हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सैयद उमर ख़ालिद के खिलाफ देशद्रोह के साथ-साथ आईपीसी की दो अन्य धाराएँ भी लगाई गई हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ख़ालिद पर आरोप है कि उसने कुछ छात्रों और लोगों के नाम पर फर्जी हस्ताक्षर किए थे। खालिद पर 124ए, 323, 465, 471, 143, 147, 149 और 120 बी धारा लगाई गई है। अन्य आरोपितों पर 465 और 471 धारा को छोड़कर बाकी सारी धाराएँ लगाई गई हैं।

लगभग 3 साल पहले सैयद उमर ख़ालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्बन भट्टाचार्य को इस पूरे मामले में मुख्य आरोपितों के रूप में गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन बाद में सबको ज़मानत मिल गई थी। इन तीन के अलावा इस मामले में 7 कश्मीरी छात्रों – अक़ूब हुसैन, मुज़ीब हुसैन गट्टू, मुनीब हुसैन गट्टू, उमर गुल, रईस रसूल, बशरत अली और ख़ालीद बशीर भट्ट के भी नाम शामिल हैं। इन सातों आरोपितों में से उस समय किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया था।

सात कश्मीरी छात्रों में से रईस रसूल एक फ्रीलांस पत्रकार है, जबकि अक़ूब हुसैन डेंटिस्ट्री की पढ़ाई कर रहा है। बाकी के छात्र अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से या जेएनयू से है।

इस पूरी घटना के आरोपितों में से कन्हैया, उमर ख़ालिद और अनिर्बन के अलावा मुज़ीब हुसैन गट्टू जेएनयू का छात्र था। जबकि देश-विरोधी इस घटना को अंज़ाम देने के लिए कुछ लोगों को बाहर से बुलाया गया था, जिन्होंने पूरे समय अपने चेहरों पर मास्क ढक रखा था। हालाँकि पुलिस की स्पेशल सेल ने वहाँ पर मौजूद गवाहों और सोशल मीडिया के ज़रिए इन सबकी पुख़्ता पहचान कर ली है।

नमो ऐप पर PM मोदी ने माँगा जनता से फीडबैक; BJP सांसदों की धड़कनें तेज़

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से सीधा संवाद करने के लिए जाने जाते हैं। चाहे रेडियो द्वारा ‘मन की बात’ हो या नमो ऐप द्वारा ‘मेरा बूथ, सबसे मज़बूत’- ये सभी उपक्रम प्रधानमंत्री मोदी और जनता के बीच सीधा संवाद का माध्यम बने हैं। शायद यही कारण है कि पीएम को ‘लुटियंस मीडिया’ को इंटरव्यू देने की जरूरत नहीं पड़ती। जनता से सीधा जुड़ाव के इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने अब नमो ऐप पर एक सर्वे शुरू किया है। इस सर्वे में जनता द्वारा वोट डाल कर ये सुनिश्चित किया जाएगा कि उनके हिसाब से उनके क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय भाजपा नेता कौन है। प्रधानमंत्री ने इस सर्वे के बारे में बताते हुए फेसबुक पर पोस्ट किए एक वीडियो में कहा:

“नमो ऐप पर एक सर्वे लॉन्च किया गया है। मैं आपकी सीधी प्रतिक्रिया चाहता हूँ। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए मायने रखती है। विभिन्न मुद्दों पर आपकी प्रतिक्रिया हमें महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करेगी। क्या आप सभी इस सर्वे को भरेंगे और दूसरों को भी ऐसा करने को कहेंगे?”

इस सर्वे में जनता से उनके क्षेत्र में हुए विकास कार्यों की समीक्षा करने को भी कहा गया है। इस सर्वे में लोग सुलभ स्वास्थ्य सुविधा, किसानों की समृद्धि, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, स्वच्छ भारत, राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढाँचा, रोजगार और ग्रामीण विद्युतीकरण को लेकर उनके क्षेत्र में हुए विकास कार्यों की समीक्षा करेंगे। इसके अलावा, इस सर्वे में जनता का मूड भाँपने की भी कोशिश की गई है। महागठबंधन को लेकर भी सवाल पूछे गए हैं, जिससे यह पता चले कि जनता महगठबंधन के बारे में क्या सोचती है।

इस सर्वे में यह भी पूछा गया है कि आप मोदी सरकार को किस तरह रेट करना चाहेंगे। इसमें खराब (Poor) से लेकर उत्कृष्ट (Excellent) तक का विकल्प है। यह भी पूछा गया है कि अगर आप वोट करने जाते हैं तो आप किस मुद्दे पर सबसे ज्यादा विचार करते हैं। विकल्प के तौर पर स्वच्छता, रोज़गार, भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था इत्यादि दिए गए हैं।

पॉंचवें सवाल में जनता से उनके लोकसभा क्षेत्र के तीन सबसे लोकप्रिय नेताओं के नाम बताने को कहा गया है। वहीं इसके अगले सवाल में उनसे उनके राज्य के तीन सबसे लोकप्रिय भाजपा नेताओं के नाम पूछे गए हैं। इसके बाद जो प्रश्न पूछे गए हैं, वो भाजपा सांसदों की धड़कनें बढ़ा सकती हैं। इस प्रश्न में जनता से उनके क्षेत्र से चुने गए सांसद को लेकर राय मांगी गई है। इसमें पुछा गया है कि क्या आप अपने सांसद के कार्यों से संतुष्ट हैं? सांसद अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं या नहीं- इस बारे में भी जनता से ज़वाब देने को कहा गया है।

नौवें प्रश्न में जनता से उनके क्षेत्र में सड़कें, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार इत्यादि को लेकर सवाल पुछा गया है। इसमें उनसे पूछा गया है कि क्या आपके क्षेत्र में इन सबको लेकर हो रहे कार्य से आप संतुष्ट हैं?

अब देखना यह है कि इस सर्वे से क्या परिणाम निकलता है। लेकिन यह तो तय है कि इससे कई सांसदों की धड़कनें बढ़ जाएँगी। ऐसा इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी जनता के मूड के हिसाब से निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं और अगर किसी सांसद ने अपने क्षेत्र में अच्छा काम नहीं किया है तो उसका टिकट भी काटा जा सकता है।

जब कॉन्ग्रेस ने की शिवराज को ट्रोल करने की कोशिश और ख़ुद ही हो गए ट्रोल

मध्यप्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार ने अपना काम करना शरू कर दिया है, और काम करने की एक ऐसी थ्योरी बनाई है, जिससे पाँच दिनों में ‘चमत्कार’ हो रहा है। दरअसल कॉन्ग्रेस का कहना है कि सदियों से गंदी, मैली, पड़ी क्षिप्रा नदी को उन्होंने बस पाँच दिनों में साफ़ कर दिया। सफ़ाई का श्रेय लेने के लिए, और अपने काम का ट्रेलर शिवराज सिंह (मामा) को भी दिखाने के लिए, कॉन्ग्रेस के ऑफ़िसियल ट्विटर एकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया गया, जिसमें उन्हें टैग करते हुए लिखा गयाः

“कमलनाथ जी ने उज्जैन में क्षिप्रा नदी को स्वच्छ करने और नियमित जलप्रवाह का वादा किया और महज़ 5 दिन में परिणाम आपके सामने है। गंगा सफ़ाई के नाम पर जनता का हज़ारों करोड़ बर्बाद करने वाले उज्जैन आएँ और देखें-सीखें।”

खै़र, शिवराज सिंह ने इनके वीडियो का लोड तो लिया ही नहीं और वीडियो बनाने एवं क्षिप्रा को साफ़ करने का श्रेय देने के बजाय, पूरी मेहनत पर बिना कुछ सोचे-समझे पानी फेरते हुए एक मुस्कुराहट वाली ईमोजी पोस्ट कर दी।

चलिए आपने ये कॉन्ग्रेस के ट्विटर हैडल का वीडियो तो देख ही लिया अब हम आपको दो साल पुरानी क्षिप्रा और उसके तट के घाटों को दिखाते हैं, जिसमें क्षिप्रा पूर तरह से निर्मल दिख रही है।

दो साल पहले इस तरह दिख रही थी क्षिप्रा नदी

अब इस वीडियो को देखकर आपको अंदाज़ा लग ही गया होगा कि आखिर कैसे इस नदी को पाँच दिनों में साफ़ कर दिया गया। वैस आपकी जानकारी के लिए बता दे कि नदी में पानी नहीं था और उसमें पानी छोड़कर क्षिप्रा को साफ़ करने का श्रेय ले लिया गया। इस ट्वीट पर लोगों की ख़ूब प्रतिक्रियाएँ आईं जिसमें से कुछ लोग ये पूछते दिखे कि अगर 5 दिन में साफ़ हो सकती थी नदी, तो इतने समय से कमलनाथ कहाँ थे, सफ़ाई तब ही करवा देते जब लोगों को पानी के न होने पर कीचड़ में नहाना पड़ा था। ज़ाहिर सी बात है कि नदियाँ 5 दिनों में साफ़ नहीं होती, बल्कि उसके लिए तमाम इंतज़ाम किए जाते हैं ताकि उसमें बाहर से गन्दगी ना आए, उसके तटों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएँ आदि।

जाते-जाते आपको दिखाते हैं कि पाँच दिन में क्षिप्रा को साफ़ करने की बात पर लोगों ने क्या कहा:

‘अर्बन नक्सल’ आनंद तेलतुम्बडे के ख़िलाफ़ दर्ज़ FIR को SC ने रद्द करने से किया इनकार

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (जनवरी 14, 2019) को भीमा कोरेगाँव हिंसा के मामले में संलिप्तता और प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रचने के सिलसिले में पुणे पुलिस द्वारा दर्ज़ FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस के कौल की एक खंडपीठ ने मामले में चल रही जाँच में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और आनंद तेलतुंबडे को ट्रायल कोर्ट से नियमित जमानत लेने का आदेश दिया। हालाँकि, शीर्ष अदालत ने तेलतुंबडे को चार हफ्तों के लिए गिरफ़्तारी से सुरक्षा दे दी है।

इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर को तेलतुंबडे द्वारा दायर पुणे पुलिस के FIR को रद्द करने की याचिका ख़ारिज़ कर दी थी और उन्हें तीन सप्ताह के लिए गिरफ़्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया था।

पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगाँव हिंसा के सिलसिले में स्वयंभू ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ – गौतम नवलखा, पी वरवरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण परेरा, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे और स्टेन स्वामी – को गिरफ़्तार किया था। ये सभी पीएम मोदी की हत्या की साज़िश रचने के आरोपित हैं। गिरफ़्तार किए गए इन ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ पर माओवादियों के नेटवर्क के साथ सम्बन्ध होने के पुख़्ता सबूत मिले थे।

गिरफ़्तारियाँ भीमा कोरेगाँव हिंसा के संबंध में थीं। इससे पहले, पुणे पुलिस ने इस मामले में रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और सुधीर धवले को गिरफ़्तार किया था। अगस्त (2018) महीने के छापे में गिरफ़्तार किए गए ये आरोपित सर्वोच्च न्यायालय में चले गए थे और न्यायिक हिरासत के बजाय ‘हाउस अरेस्ट’ का अंतरिम आदेश प्राप्त किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगाँव हिंसा में कथित भूमिका के लिए पाँच नक्सलियों की गिरफ़्तारी के मामले में इतिहासकार रोमिला थापर द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका की तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।

28 सितंबर को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय ने इन पाँच ‘अर्बन नक्सलियों’ की गिरफ़्तारी के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। साथ ही इनकी हाउस अरेस्ट की अवधि को बढ़ा दिया था। शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि इन आरोपित कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का विपरीत राजनीतिक विचारधारा या भिन्न विचार होने से कोई लेना-देना नहीं है।

राहुल गाँधी का इस्लाम और शांति: अक़बर और नरमुंडों का पहाड़ (भाग-1)

राहुल गाँधी ने दुबई में एक बयान देते हुए कहा है कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इस्लाम से भी शांति सीखी। हालाँकि उन्हें ‘हिन्दू’ बोलने में उन्हें कुछ सकुचाहट महसूस हुई और तमाम नाम लेने के बाद वो सनातनियों की अहिंसा तक नहीं पहुँच पाए। हो सकता है जनेऊ पार्टी कार्यालय में ही छूट गया हो। राहुल गाँधी के दुबई में दिए गए इस बयान के बाद इस बात पर तर्क-वितर्क आवश्यक हो जाता है कि आख़िर राहुल गाँधी किस इस्लाम की बात कर रहे हैं। इस्लाम के इतिहास में आख़िर वो कौन-सा वाक़या था जिसने राहुल गाँधी के अनुसार गाँधीजी तक को शांति का सन्देश दिया। इसकी पड़ताल ज़रूरी है।

भारत में जब इस्लाम का नाम आता है और सहिष्णुता की चर्चा की जाती है तब लिबरल और सेक्युलर लोग सबसे पहले अक़बर ‘महान’ की बात करते हैं। इसीलिए यहाँ भी हम बात अक़बर से ही शुरू करेंगे। जी हाँ, इस्लाम, शांति, सहिष्णुता और सद्भाव को एक साथ रख कर चलने वाले अक़बर के चेलों की जब चर्चा हो रही है, तो बात वहीं से शुरू की जाएगी।

हेमचन्द्र विक्रमादित्य- एक ऐसा नाम जो सिलेबस में बहुत कम मिलता है, एक ऐसा नाम जिस पर हमारे इतिहास के किताबों में कोई चैप्टर नहीं है। एक ऐसी गाथा- जो हर भारतीय के जबान पर होनी चाहिए लेकिन अधिकतर लोग इससे अवगत नहीं हैं। लेकिन अब समय आ गया है जब हम इतिहास की गलतियों से सीख लेकर वर्तमान को ठीक करें।

तो आइए, एक छोटी सी कहानी से शुरू करते हैं। एक कहानी जो भारत में इस्लामिक सद्भावना के सबसे बड़े प्रतीक- अक़बर ‘महान’ से जुडी है, अक़बर की ताज़पोशी से जुड़ी है, भारतीय इस्लामिक इतिहास के सबसे बड़े अध्याय की शुरुआत से जुड़ी है।

कुछ दिनों पहले अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनावों को पानीपत की तीसरी लड़ाई बताई थी। हो सकता है इसमें सच्चाई हो। लेकिन, उससे पहले हमें यह जानना चाहिए कि पानीपत के दूसरे युद्ध में क्या हुआ था। 5 नवंबर 1556 का दिन था। यानि कि आज से लगभग साढ़े चार सौ वर्ष पहले। दिल्ली के सिंहासन पर अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य उर्फ़ हेमू विराजमान थे। एक ऐसा वीर योद्धा जिसने 22 युद्ध जीत कर इतिहास रच दिया था। एक ऐसा वीर जो एक साधारण गरीब परिवार से मंत्री, सेनाध्यक्ष और फिर सम्राट तक की पदवी पर पहुँचा। लेकिन उसके सिंहासन धारण किए एक महीने भी नहीं हुए थे। तब तक अक़बर की सेना ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया।

हेमू की सेना, दिल्ली के लोग, चाणक्य के अखंड भारत के स्वप्न को फिर से साकार होने का स्वप्न देख रही भारत की जनता- सब आश्वस्त थे कि 22 युद्ध जीतने वाला महान योद्धा उनके लिए फिर जीत की सौग़ात लाएगा। लेकिन हुआ इसके उलट। संख्याबल, शस्त्र और साधन- हर मामले में हेमू की सेना मुग़लों पर भारी थी। पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। अपनी सेना का खुद नेतृत्व कर रहे हेमचन्द्र ने जब हाथी पर बैठ कर विकराल रूप धरा तो अकबर का क़रीबी और तुर्क सेना का नेतृत्व कर रहा आततायी बैरम खान भी एक पल के लिए काँप गया।

जीत क़रीब थी तभी न जाने कहाँ से एक तीर आकर हेमू की आँख को बेध गया। मूर्छित हेमू हाथी से सीधा गिर पड़ा और उसकी सेना में ऐसा हाहाकार मचा कि भारत में अगले 300 से भी अधिक वर्षों के लिए इस्लामिक राजसत्ता स्थापित हो गई। यहाँ तक जो भी हुआ वो तख़्त की लड़ाई में दुनिया भर में बहुतों बार हो चुका है। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो अक़बर को महान बताने वाले और इस्लाम से शांति सीखने का सन्देश देने वाले हर एक आदमी को अपना मुँह छिपाने पर मजबूर कर दे। अक़बर के आदेश से अधमरे हेमचन्द्र विक्रमादित्य का गला काट कर उसके धड़ और सर को अलग कर दिया गया।

उसके बाद अक़बर की सेना ने दिल्ली में जो तबाही मचाई उसकी तुलना चंगेज़ खान द्वारा बीजिंग में की गई क्रूरता से की जा सकती है। आख़िर, अक़बर के अंदर भी तो बीजिंग को लाशों का शहर बनाने वाले मंगोल चंगेज़ खान का ही खून दौड़ रहा था। हेमू के सर को काबुल भेज दिया गया और उसके धड़ को दिल्ली के एक द्वार से लटका दिया गया ताकि हर एक भारतवासी जो उधर से गुज़रे, अपने राजा का क्षत-विक्षत शव देख कर क्रंदन करे और अपने देश के भाग्य को हज़ार बार कोसे। आज भी अगर आप पानीपत में हेमू के समाधी स्थल के दर्शन करने जाएँ तो सोचे कि वो कौन सी शांति थी जिसका सन्देश अक़बर और बैरम खान ने भारत में आकर दिया था। अक़बर को महान बताने वाले किस मुँह से उसे भारत में धर्मनिरपेक्षता का चेहरा बताते हैं?

अकबरनामा में किया गया चित्रण: स्कल टॉवर (नरमुंडों का पहाड़) ; फोटो साभार: ट्रू इंडोलॉजी

इसके बाद दिल्ली में खोपड़ियों का एक इतना बड़ा टावर खड़ा किया गया जिसे पूरी दिल्ली देख सके। नरमुंडों का एक इतना विशाल ढेर, जिसे देख कर नृशंसता भी हज़ार बार काँपे। भारत में इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा किये गए सैकड़ों आक्रमणों में से ये सबसे ज़्यादा क्रूर, नृशंस और घिनौना था। उसके बाद अकबर की सेना ने दिल्ली में घुस कर हज़ारों महिलाओं का बलात्कार किया, जिन्होंने इस्लाम अपनाने से मना किया- उनका सर बेहद ‘शांति’ से अलग कर दिया गया। ऐसी मारकाट मचाई गई जिस से दिल्ली में या तो लाश बचे या फिर ज़िंदा लाश।

नरमुंडों के कंकाल के बीच शांति का एक बहुत ही अच्छा सन्देश दिया गया। और उस पर विडम्बना ये कि उस घटना के बाद जो शहंशाह बन कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा- वो ‘महान’ बना और उसे भारत में सांप्रदायिक समावेश का सबसे बड़ा चेहरा बना दिया गया। ये कहाँ का न्याय है? ऐसा किसी देश में नहीं हुआ की जिस आक्रांता ने वहाँ जाकर उनके पूर्वजों को मारा-काटा हो, महिलाओं की इज़्ज़त लूटी हो- उसे ही भगवान बना दिया गया।

अगर यही इस्लाम है, अगर यही इसके लिए शांति का सन्देश है- तो फिर ईश्वर न करे कि ऐसी शांति भविष्य में कभी देखने को मिले। ऐसे शांति के अनगिनत सन्देश दिए गए हैं भारत को- इस्लाम द्वारा, इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा, आज के लिबरल्स के पोस्टर बॉय्ज़ द्वारा। इस सबकी पड़ताल होगी एक-एक कर। इतिहास में जाकर हर उस घटना को खँगाला जाएगा जहाँ इस्लाम ने शांति का सन्देश देने की कोशिश की है और उसे आज के लोगों के सामने बताया जाएगा। इंतज़ार कीजिये हमारे इस सीरीज़ के अगले लेख का।

कर्नाटक सरकार के 13 असन्तुष्ट विधायक दे सकते हैं इस्तीफ़ा, कुमारस्वामी ने किया इनकार

ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक की सियासत में एक बड़ा परिवर्तन आने की सुगबुगाहट है। अगर बात सही है तो कुमारस्वामी सरकार पर संकट के बादल घिर आये हैं। कुछ दिन पहले कुमारस्वामी ने ख़ुद काम के अत्यधिक बोझ का हवाला दिया था और कहा था, “गठबन्धन की मज़बूरी की वज़ह से क्लर्क बन गया हूँ।” शायद अब उनका बोझ हल्का होने वाला हो।

रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्ग्रेस के 10 और जेडीएस के 3 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। बीजेपी की कोशिश है कि जल्दी ही ये 13 विधायक इस्तीफ़ा दे दें। मीडिया में ख़बर यह भी है कि अगर सब कुछ सही रहा तो बीजेपी कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ अगले हफ़्ते अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकती है। ये इस बात का संकेत भी है कि कुमारस्वामी सरकार से उनके अपने ही विधायक असन्तुष्ट चल रहे हैं। हालाँकि, काँग्रेस ने बीजेपी पर विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त का आरोप लगाया है।  उधर, बीजेपी ने भी काँग्रेस पर पलटवार करते हुए इससे इनकार किया है।

अभी तक की ख़बर के अनुसार, बीजेपी ने अपनी पार्टी के विधायकों को दिल्ली बुला लिया है। कर्नाटक विधायकों की बैठक 1:30 बजे दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट एनेक्सी में सम्पन्न हुई। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष येदियुरप्पा के साथ-साथ प्रदेश बीजेपी के कई नेता भी शामिल हुए। हालाँकि, बताया जा रहा है कि बैठक लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा हुई। वहीं दूसरी तरफ़ ख़बर यह भी है कि भाजपा अपने विधायकों को एकजुट करने की कोशिश में है क्योंकि उन्हें भी संभावित तोड़-फोड़ का डर है। फ़िलहाल, BJP के 102 विधायक गुड़गाँव के रिज़ॉर्ट में शिफ़्ट किए जा रहे हैं।

उधर, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने सोमवार को कहा कि राज्य में कॉन्ग्रेस-जेडीएस की सरकार की ‘अस्थिरता’ का कोई सवाल नहीं है। कुमारस्वामी पहले ख़ुद बीजेपी पर विधायकों को तोड़ने का आरोप लगाते रहे हैं और आज भी मुख्यमन्त्री कुमारस्वामी ने अपने इस आरोप को दोहराया कि बीजेपी सत्तारुढ़ गठबंधन के विधायकों को लुभाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने ये दावा किया कि गठबंधन का कोई भी विधायक पाला नहीं बदलेगा।  

खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर में घटकर 2.19 प्रतिशत, 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर

खुदरा मुद्रास्फीति पिछले 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। ये दिसंबर में घटकर 2.19% रही। सब्ज़ी, फल और ईंधन के सस्ते होने से खुदरा मुद्रास्फीति में अपने निचले स्तर पर आ गई है। 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में 2.33 प्रतिशत तथा दिसंबर, 2017 में 5.21 प्रतिशत पर थी। और इससे पहले जून, 2017 में मुद्रास्फीति 1.46 प्रतिशत के निचले स्तर पर थी। पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कमी से इन उत्पादों की मूल्यवृद्धि घटी। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने रिपोर्ट जारी करते हुए इसकी जानकारी दी।

मुंबई हमले के दोषी आतंकी तहव्वुर राणा को जल्द भारत लाया जा सकता है

वर्ष 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के दोषी तहव्वुर राणा को जल्द भारत लाए जाने की संभावना है। मीडिया में आ रही ख़बर के मुताबिक़ भारत सरकार अमरीकी प्रशासन के पूरे सहयोग से आतंकी को भारत लाने की कोशिश की जा रही है।

बता दें कि मुंबई को दहला देने वाले इस कांड की साज़िश रचने वाला आतंकी तहव्वुर राणा पिछले 14 साल से अमरीका की जेल में सज़ा काट रहा है। तहव्वुर को साल 2009 में गिरफ़्तार किया गया था, और उसकी सज़ा 2021 में पूरी होगी।

ख़बरों के अनुसार, भारत सरकार ट्रम्प प्रशासन की मदद से पाकिस्तानी-कैनिडियन नागरिक के प्रत्यर्पण के लिए सभी ज़रूरी काग़ज़ी कार्रवाई पूरा कर रही है। राणा को 2013 में 14 साल की सज़ा सुनाई गई थी, जो अब 2021 को रिहा किया जाएगा।

मुंबई को दहला देने की साज़िश को तहव्वुर राणा ने रचा था और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मिलकर उसे अंजाम तक पहुँचाया था। इन 10 हमलावर आतंकियों में से 9 आतंकियों को मौक़े पर ही ढेर कर दिया गया था, जबकि बाक़ी ज़िंदा बचे 1 आतंकी (अजमल कसाब) को फ़ाँसी दे दी गई थी।

इस जानलेवा आतंकी हमले में लगभग 166 लोगों ने अपनी जान गँवाई थी, जिनमें अमरीकी नागरिक भी शामिल थे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अमरीका में राणा की सज़ा पूरी होने के बाद उसे भारत लाया जा सकता है। प्रत्यर्पण प्रक्रिया के धीमे होने से तहव्वुर राणा के भारत आने तक के सफर में भले ही थोड़ा विलंब हो, लेकिन भारत सरकार की यह कोशिश पुरज़ोर पर है कि राणा को जल्द से जल्द भारत लाया जाए और इसके लिए सभी ज़रुरी कार्रवाई समय पर पूरी की जा रही है।

सहज भाषा में पठनीय व्यंग्यबाणों से लैस है ‘गंजहों की गोष्ठी’

हरिशंकर परसाई ने अपनी पुस्तक ‘सदाचार की ताबीज़’ में व्यंग्य को परिभाषित करते हुए कहा था – “व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, मिथ्याचारों और पाखंड का पर्दाफ़ाश करता है।”

अगर हम ये कहें कि निरन्तर गिरते जा रहे सामाजिक मूल्यों तथा बढ़ती महत्वकांक्षाओं के इस दौर में व्यंग्य लेखन एक चुनौती से कम नहीं तो अतिशयोक्ति न होगी। व्यंग्य स्वयं नहीं जन्मता बल्कि विरोधाभासों का तांडव व्यंग्य को जन्म देता है।

आज का व्यंग्यकार समाज में व्याप्त चुनौतियों/विसंगतियों के प्रति चौकन्ना है। ऐसे ही सजग रचनाकार साकेत सूर्येश अपनी पहली ही पुस्तक ‘गंजहों की गोष्ठी’ में विविध विषयों पर अपनी लेखनी से चमत्कृत करते हैं। पूर्व में भी लेखक की अंग्रेज़ी भाषा में कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी है तथा वे निरन्तर दैनिक जागरण, स्वराजमैग आदि में लिखते रहते हैं।

85 पृष्ठों की पुस्तक ‘गंजहों की गोष्ठी’ में कुल 20 व्यंग्यबाण (लेख) हैं। हर लेख एक मनके के समान है जो अद्वितीय है।

पुस्तक की पहली रचना ‘क़स्बे का कष्ट’ है। लेखक के व्यंग्य की कुशलता और संक्षिप्तता इतनी अद्भुत है कि वह क़स्बे का चित्रण एक ही पंक्ति में कर देता है- “क़स्बा गाँव के लार्वा और शहर की ख़ूबसूरत तितली के बीच का टेडपोल है।”

वस्तुतः, व्यंग्य किया जाता है, व्यंग्य कसा जाता है, व्यंग्य मारा जाता है, व्यंग्य बाण चलाया जाता है। ये मुहावरे व्यंग्य के तीखेपन को दर्शाते हैं। ‘गंजहो की गोष्ठी’ में ये तीखापन सर्वत्र बिखरा हुआ पड़ा है। कुछ उदाहरण देखें:

– विषय न भी हो तो पत्रकार विषय का निर्माण कर के जीवन में हलचल बनाए रहते है। कुछ नहीं होता तो किसी अभिनेता के पुत्र के पोतड़े बदलने का कार्यक्रम गोष्ठी का विषय बन जाता है।

– एल प्लेट पूड़ी-सब्ज़ी राजनीतिक जनसभाओं की सफलता का और ग़रीबों की थाली में सजी भूख चुनावी निर्णयों का निर्धारण करती रही है।

– मनुष्य की बौद्धिकता के विकास में कॉटन साड़ियों का भी वही स्थान है, जो सिगरेट के आविष्कार का और नाई के अवकाश का।

– राष्ट्र सब्ज़ी वाले से प्रेमिका के लिए मुफ़्त धनिया लाता रहा, चाचा जी गुलाब टाँगे घूमते रहे, राष्ट्र उनका बिगड़ा लम्ब्रेटा कल्लू मैकेनिक के यहाँ जाकर कर्तव्यनिष्ठा के साथ बनवाता रहा। मध्यमवर्गीय शहर के मध्यमवर्गीय प्रेमी की भाँति जनता के हाथ सत्ता के हवाई चुम्बन के अतिरिक्त कुछ न लगा।

– चार्वाक घी से डालडे पर आ रुके और ग़ालिब साहब को बस ठर्रे का सहारा बचा।

– सत्ता में आने वाला, तीन वर्ष पिछली सरकार को कोसता है, दो वर्ष पुनः सत्ता में आने का जुगाड़ बिठाता है।

– श्री औरंगज़ेब एक लोकतांत्रिक नेता थे जो प्रजा को ‘बीफ़ इन द प्लेट’ और ‘सेल्फ़ इन द प्लेट’ का हमेशा विकल्प देते थे।

ऐसे ही अनेक व्यंग्यबाणों से सजी इस पुस्तक में ‘नेता का अट्टहास’, ‘क्षमा बड़ेन को चाहिए’, ‘महाभियोग पर महाभारत’, ‘कर्ज़ की पीते थे मय’, ‘जम्बूद्वीप का शब्दचित्र’, ‘बुद्धिजीवियों की बारात’, ‘छगनलाल का ब्याह’ आदि अनेक पाठ हैं जो आपको गुदगुदाते हैं। पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि व्यंग्यों में पठनीयता बनी रहती है, भाषा कहीं भी बोझिल नहीं है। अंततः यह पुस्तक पाठक को गुदगुदाने, खिलखिलाने और वर्तमान विसंगतियों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। इन बीस मनकों को एक सूत्र में पिरोकर बनी ये ‘गंजहों की गोष्ठी’ रूपी लेखमाला का हिंदी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा, ऐसी मुझे आशा है। पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।

पुस्तक का नाम- गंजहो की गोष्ठी
व्यंग्यकार- साकेत सूर्येश
प्रकाशक- Notion Press
पृष्ठ-85
कीमत- ₹120
समीक्षक- श्री मनोज मौर्य
(शोध छात्र- हिंदी विभाग,काशी हिंदू विश्वविद्यालय। सुमित्रानंदन पंत जी के काव्यशिल्प पर शोध कर रहे हैं।)