Monday, September 30, 2024
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‘नरेंद्र मोदी का उत्साह और विदेश नीति के प्रति जुनून आखिरी बार नेहरू में देखा गया था’

अमेरिका के थिंक टैंक माने जाने वाले हडसन इंस्टीट्यूट में ‘इंडिया इनिशिएटिव’ की चीफ़ और भारतीय-अमेरिकी लेखिका अपर्णा पांडे का मानना है कि जो इच्छाशक्ति और विज़न विदेश नीति के प्रति नरेंद मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दिखाई है, वो आख़िरी बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु में नज़र आई थी।

नई दिल्ली में आयोजित रायसीना डायलॉग के चतुर्थ संस्करण के दौरान फर्स्टपोस्ट को दिए गए एक इंटरव्यू में अपर्णा पाण्डे ने नरेंद्र मोदी की विदेश नीतियों सहित भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर भी चर्चा की।

नरेंद्र मोदी के कारण आज देश की छवि सुधरी है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में विदेश नीति के प्रश्न पर अपर्णा पाण्डे ने कहा, “मेरा मानना ​​है कि हमारी विदेश नीति वर्षों से सततता पर जोर देती आई है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसमें उत्साह और जुनून झोंकने का काम किया है। आखिरी बार विदेश नीति के प्रति इस प्रकार का जुनून पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू में देखा गया था, जो कि यह मानते थे कि जितना अधिक भारत दुनिया के देशों से जुड़ा रहेगा, उतना ही उसे फायदा होगा। भारत को बस इसके बारे में जानने के लिए लोगों की आवश्यकता थी।”

देश में वर्तमान व्यापार और निवेश पर अपर्णा ने कहा, “मोदी चाहते हैं कि दुनिया को पता चले कि हमारे पास क्षमता है। हमारे पास सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेना है। हम दुनिया से सेवाएँ सिर्फ माँग ही नहीं रहे हैं बल्कि हम सेवाएँ प्रदान भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को एक बड़े बाजार, एक बड़े देश, एक मित्र और सहयोगी के रूप में पेश करते हैं, जिसके साथ कोई भी व्यवसाय कर सकता है।”

मोदी के कार्यकाल में GST है बड़ा सुधार

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, “हालाँकि, नरेंद्र मोदी की समस्याएँ जस की तस हैं। अगर आप चाहते हैं कि कोई देश में आए और निवेश करे, तो आपको इसे पूरी तरह से खोलना होगा। इस तरह से मोदी के कार्यकाल में GST, दिवालिया कानून (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) जैसे बेहतरीन सुधार तो हुए हैं लेकिन ‘भूमि, मज़दूर और पूँजी’ जैसे व्यवसाय के तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अधिक गहराई से ख़ास परिवर्तन देखने को नहीं मिला है।”

उन्होंने कहा कि भारत देश में एक दूसरी बड़ी समस्या सैन्य है, जिसे कम से कम दो दशक पहले आधुनिकीकरण की आवश्यकता थी। भारतीय सेना का निर्माण आज के लिए नहीं बल्कि 2050 के लिए होना चाहिए। अपर्णा ने बताया कि हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर हमारी खरीद प्रक्रिया और निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी होने के साथ जटिल और राजनीतिक भी हैं।

पाकिस्तान हमेशा भारत देश की समझौते की नीति का विरोध करता आया है

पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्धों पर पर अपर्णा ने कहा कि यह बातचीत किसी भी मोड़ पर पहुँचती नहीं दिखती है। भारत ने हमेशा समझौते की बात की है, चाहे शिमला समझौता हो या फिर 1960 का सिन्धु जल समझौता हो या फिर 1988 का नाभिकीय सुविधाओं का समझौता रहा हो, पाकिस्तान हमेशा समझौते की नीति का विरोध करता है। पाकिस्तान कारगिल जैसे पीठ में चाक़ू घोंपने वाले काम कर चुका है। भारत ने फिर भी हमेशा समझौते की राह पकड़ी लेकिन फिर भी मुंबई हमले जैसे हादसे हुए। मोदी जी ने ASEAN आसियान देशों के साथ दोस्ती को मजबूत किया है।

रायसीना संवाद 2019

रायसीना डायलॉग भारत का प्रमुख वार्षिक भू-राजनीतिक और भू-स्थानिक सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के हितधारक, राजनेता, पत्रकार उच्चाधिकारी तथा उद्योग एवं व्यापार जगत से सम्बंधित प्रतिनिधि एक मंच पर अपने विचार साझा करते हैं। रायसीना डायलॉग का चौथा संस्करण मंगलवार (जनवरी 8, 2019) को शुरू हुआ। इसमें 93 देशों के वक्ताओं ने भाग लिया। यह भारत सरकार के विदेश मंत्रालय तथा आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की संयुक्त पहल है। रायसीना डायलॉग का मुख्य उद्देश्य एशियाई एकीकरण एवं शेष विश्व के साथ एशिया के बेहतर समन्वय की संभावनाओं तथा अवसरों की तलाश करना है। वर्ष 2019 के रायसीना सम्मेलन का मुख्य विषय (Theme) था: “A World Reorder : New Geometries; Fluid Partnership; Uncertain Outcomes”

राहुल गाँधी को 8 साल की बच्ची ने सिखाई राफेल की A B C D…

विपक्ष द्वारा राफेल डील पर मचा कोहराम आए दिन कुछ नया ही करतब दिखाता है। या यूँ कह लीजिए कि इन करतबों में कॉन्ग्रेस का हमलावर और आक्रामक रुख़ कभी थमने का नाम ही नहीं लेता। इस तरह तो यह लगता है कि कॉन्ग्रेस पार्टी ने तरह-तरह के करतब दिखाने वाले एक कलाकार की भूमिका में अपने वजूद को तब्दील कर लिया हो, जिसका मक़सद केवल और केवल तमाशा देखने वाली भीड़ इकट्ठी करना है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में राफेल डील करतबों का मैदान बन चुका है या इसे अब तक बेवजह ही हवा दी जाती रही है। आम जनता और कॉन्ग्रेस समर्थकों के लिए भले ही यह समझ पाना मुश्किल हो कि इस डील के तहत राफेल की क़ीमत में इतना उतार-चढ़ाव क्यों है या यूँ कह लीजिए कि वो समझना ही नहीं चाहते। लेकिन एक 8 साल की बच्ची के द्वारा राफेल के गुणा-गणित को समझाना वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

आपको बता दें कि, ‘एकभारतश्रेष्ठभारत’ के ट्विटर हैंडल से एक ऐसा वीडियो शेयर हुआ है, जिसमें 8 साल की बच्ची अपनी दो ज्यॉमेट्री बॉक्स के माध्यम से यह समझाने का प्रयास कर रही है कि क्या फ़र्क है मोदी जी के राफ़ेल में और राहुल गाँधी के राफेल में। इस बच्ची ने एक बेहतर ढंग से राफेल जैसे विवादित मुद्दे को जितनी सरलता से परिभाषित किया है, वो एक मिसाल है। ट्विटर पर वायरल हुए इस वीडियो को 9 जनवरी 2019 को शेयर किया गया था।

वैसे तो विपक्ष का काम केंद्र को ग़लत निर्णय लेने से रोकने का होता है, लेकिन फ़िलहाल कॉन्ग्रेस बेवजह की भ्रामकता फैलाने में अपनी अहम भूमिका निभा रही है। जनता की नज़र में हीरो बनने की राहुल गाँधी की यह चाहत आगामी लोकसभा चुनाव के नज़दीक आने के साथ ही और परवान चढ़ती जा रही है, जिसके लिए वो ग़लत बयानों और प्रतिक्रियाओं का जमकर इस्तेमाल करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब कॉन्ग्रेस ने बिना वजह ही बीजेपी को घेरने की न सिर्फ़ कोशिश भर की बल्कि सरकार द्वारा लिए गए कई बेहतर फ़ैसलों में अपनी टांग भी अड़ाई।

देश की बड़ी पार्टी होने के कारण कॉन्ग्रेस की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वो देश हित में लिए जाने वाले फ़ैसलों पर अपनी आपत्ति न जताए। देश की जनता को ग़लत दिशा में ले जाने की अपनी व्यर्थ की कोशिशों पर विराम लगाएँ।  

CBI मामले में कॉन्ग्रेस को मोदी का करारा जवाब: संवैधानिक संस्थाओं को कॉन्ग्रेस कर रही है बर्बाद

दिल्ली के रामलीला मैदान में भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए देश के प्रधानमंत्री मोदी ने विरोधियों के पर जमकर हमला बोला। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा, “आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की सरकार ने अपने यहाँ सीबीआई जैसी संस्था के एंट्री पर रोक लगा दी है। उन्होंने ऐसा कहीं किसी डर की वजह से तो नहीं किया है? आज जो लोग सीबीआई के महत्व को नकार कर रहा हैं, हो सकता है कल वही लोग आर्मी, पुलिस, कैग, कैग जैसी संस्थाओं का भी नकारना शुरू कर दें।”

प्रधानमंत्री का यह बयान तब आया है, जब विपक्षी दल के नेताओं के द्वारा सीबीआई की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अपने इस बयान के ज़रिए विपक्षी दलों द्वारा देश के प्रतिष्ठित संस्थानों पर उठाए जा रहे सवाल का करारा जवाब दिया है। प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम के दौरान यह भी कहा कि जब गुजरात में हमारी सरकार थी, तो अमित जी को सीबीआई ने जेल में डाल दिया था। इसके बावजूद हमारी सरकार ने सीबीआई को राज्य में आने से मना नहीं किया था, क्योंकि हमें देश के कानून में भरोसा है।

इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा बैंक पर दवाब देकर डिफ़ॉल्टरों को कर्ज दिलाया गया। देश की आजादी के बाद 60साल में बैंकों द्वारा 18 लाख करोड़ कर्ज बाँटा गया जबकि यूपीए सरकार के अंतिम 6 सालों में 34 लाख करोड़ रूपए कर्ज के रूप में बाँटा गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कॉन्ग्रेस की सरकार ने अपने अंतिम 6 साल के दौरान डिफ़ॉल्टरों को पैसा देने के लिए बैंकों पर दवाब बनाया है।

जानकारी के लिए बता दें कि सीबीआई मामले में भाजपा पर सवाल उठाते हुए कपिल सिब्बल ने पिछले दिनों बयान दिया था कि तोता पिंजड़े से उड़ जाता तो, सारे राज खोल देता। सिब्बल इस तरह के बयान के ज़रिए वर्तमान सरकार पर भले ही सवाल खड़ा करने के प्रयास कर रहे हों। लेकिन कपिल सिब्बल को ऐसा बोलने से पहले खुद और अपनी पार्टी के भी गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए। कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार में सिब्बल मंत्री थे, तब 2जी स्कैम, कोल आवंटन स्कैम, कॉमनवेल्थ खेल गाँव स्कैम जैसे कई बड़े घोटाले हुए। इन सभी घोटाले की जाँच में सीबीआई ने कपिल साहब के बयानों वाले तोते जैसी ही भूमिका निभाई थी।   

2020 में USA को मिल सकता है पहला हिन्दू राष्ट्रपति!

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में पहली बार ऐसा हुआ है, जब राष्ट्रपति चुनावों के लिए किसी हिन्दू ने दावेदारी ठोकी। अमेरिका की पहली महिला हिन्दू कॉन्ग्रेस वुमेन तुलसी गबार्ड ने 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प के ख़िलाफ़ मैदान में उतरने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोगो के पास कई चुनौतियाँ हैं, जिनकी वो चिंता करती हैं और उन्हें हल करना चाहती हैं। अपनी उम्मीदवारी के बारे में जानकारी देते हुए तुलसी ने ट्विटर पर कहा;

“एक-दूसरे के लिए और अपने देश के लिए जब हम एक साथ खड़े होते हैं, तो ऐसी कोई चुनौती नहीं है, जिसे हम दूर नहीं कर सकते। क्या आप मेरा साथ देंगे?”

बता दें कि तुलसी गबार्ड अमेरिकी कॉन्ग्रेस में चुनी जाने वाली पहली हिन्दू हैं। अमेरिका के हवाई प्रांत से कॉन्ग्रेस में चुनी गई तुलसी डेमोक्रैट पार्टी से ताल्लुक़ रखती हैं। 38 वर्षीय तुलसी के पिता ईसाई होने के बावजूद मंत्र ध्यान और कीर्तन में अच्छी-ख़ासी रूचि रखते हैं। उनकी माँ भी हिन्दू धर्म को ही मानती हैं। तुलसी जब किशोरावस्था में थीं, तभी उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया था।

2002 में मात्र 21 वर्ष की उम्र में कॉन्ग्रेस सदस्य बन कर उन्होंने इतिहास रच दिया था। हवाई प्रांत की सबसे युवा कॉन्ग्रेस सदस्य बनने का रिकॉर्ड बना चुकीं तुलसी गबार्ड अब डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के लिए ताल ठोकेंगी। चार बार से कॉन्ग्रेस सदस्य रहीं तुलसी अमेरिका में रह रहे भारतीयों और हिन्दुओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं। इस कारण पहले से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि वो आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा ले सकती हैं। 2012 में reddif को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था:

“मैंने अपने किशोरावस्था में गंभीर विचार-विमर्श और चिंतन के बाद सनातन धर्म को पूरी तरह से अपना लिया मैं बचपन से भगवद्गीता का अध्ययन कर रही हूँ। मैं अपने जीवन के हर पहलू पर कर्म योग और भक्ति योग के भगवद्गीता के सिद्धांतों को लागू करने की कोशिश कर रही हूं। और निश्चित ही मैं महाभारत, रामायण आदि से बहुत परिचित हूं।

सितम्बर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी दौरे पर गए थे तब तुलसी गबार्ड ने अपनी पारिवारिक भगवद्गीता की पुस्तक उन्हें भेंटस्वरूप दी थी। ये भी जानने लायक बात है कि जब तुलसी अमेरिकी कॉन्ग्रेस में शपथ ले रही थीं, तब भी हाथ में उन्होंने गीता पकड़ी हुई थी। पीएम मोदी को ये पुस्तक भेंट करने के बाद गीता के प्रति अपने प्रेम को ज़ाहिर करते हुए तुलसी ने कहा था:

मेरे लिए इस गीता से अधिक विशेष और मूल्यवान कुछ भी नहीं हो सकता है जो मैंने बचपन से संभाल कर रखी है।”

तुलसी की ताजा घोषणा के बाद अमेरिका के कई नेताओं और विशेषज्ञों ने उनके इस फैसले का स्वागत किया है। बता दें कि अमेरिका के 200 साल से भी अधिक के लोकतांत्रिक इतिहास में अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं चुनीं गई हैं। पिछले चुनावों में हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार थीं लेकिन उन्हें डोनाल्ड ट्रम्प के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। अगर तुसली गबार्ड ये कारनामा करने में सफल होती हैं तो वो अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी।

हम मज़बूत सरकार चाहते हैं, विपक्ष मज़बूर सरकार चाहता है ताकि देश को लूट सके: PM मोदी

राजनीति में वाकई पहली बार ऐसा हुआ है कि हर राजनैतिक गुट एक-दूसरे से हाथ सिर्फ़ इसलिए मिलाते नज़र आ रहे हैं ताकि मोदी सरकार को सत्ता से हटाया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (जनवरी 12, 2019) को विरोधियों को जवाब देते हुए कहा कि विपक्ष चाहता है कि सरकार कमज़ोर और मज़बूर हो जाए, जिससे देश को लूटा जा सके।

रामलीला मैदान पर भाजपा राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने सपा-बसपा के गठबंधन पर भी निशाना साधा और कहा कि आजकल ‘महागठबंधन’ का नाम का अभियान चल रहा है, जोकि भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे असफल प्रयोग है। ये लोग देश में सरकार को मज़बूर बनाना चाहते हैं। इन्हें देश में मज़बूत सरकार नहीं चाहिए क्योंकि उससे इनके घोटालों की दुकाने बंद हो जाएँगी।

पीएम मोदी ने कहा- “हम एक मज़बूत सरकार चाहते हैं जिससे कि देश के किसानों को उनके फसलों का सही दाम मिल सके, विपक्ष चाहता है कि देश में मज़बूर सरकार बने ताकि वो यूरिया घोटालों को अंजाम दे सकें।”

महागठबंधन पर पीएम ने सम्मेलन में कहा कि राजनीति तर्कों के धरातल पर होती है, जबकि गठबंधन का कोई उद्देश्य होता है। ये पहली बार है जब राजनैतिक पार्टियाँ एक दूसरे के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं, वो भी सिर्फ एक व्यक्ति को हराने के लिए।

इस सम्मेलन में अयोध्या विवाद पर पीएम मोदी ने कहा कि कॉन्ग्रेस चाहती ही नहीं है, कि ये विवाद कभी सुलझे। वो हर बार अपने वकीलों के ज़रिए इस इस मामले पर अटकलें लगाती रही है। इतना ही नहीं कॉन्ग्रेस झूठे आरोपों का उपयोग कर CJI पर महाभियोग चलाने तक के लिए भी तैयार है। प्रधानमंत्री मोदी ने कॉन्ग्रेस की इन हरकतों पर पर भी सवाल उठाए, कि आखिर उनकी कैसी मानसिकता है जो उन्हें देशहित के हर मामले पर बीजेपी के ख़िलाफ़ खड़ा कर देती है।

इसके बाद आरक्षण बिल पर लगातार हो रही आलोचनाओं पर भी पीएम ने इस सम्मेलन पर बात की और कहा कि सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम भले ही हर समस्या का समाधान नहीं है, लेकिन देश को एक नई दिशा पर ले जाने के लिए ये एक अच्छा कदम है। शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमज़ोर युवाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्होंने ‘नए भारत’ के आत्मविश्वास को बढ़ाया है।

किसानों की परेशानियों पर बात करते हुए पीएम ने कहा कि पहले की सरकार ‘अन्नदाताओं’ को सिर्फ ‘मतदाताओं’ के रूप में ही देखती थी जबकि बीजेपी की सरकार लगातार उनके सामने आने वाली परेशानियों पर काम कर रही है। पीएम के अनुसार उनकी पार्टी लगातार किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने के लिए प्रयासरत हैं।

इसके अलावा उन्होंने अपने संबोधन में आंध्र प्रदेश, वेस्ट बंगाल और छत्तीसगढ़ सरकार में सीबीआई से बिना अनुमति रेड मारने के अधिकार को छीन लेने का भी ज़िक्र किया। जबकि 12 साल तक लगातार यूपीए सरकार द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर भी उन्होंने गुजरात में कभी भी सीबीआई पर बैन नहीं लगाया था।

उत्तिष्ठत जाग्रत: ज्ञान रूपी अस्त्र के हिमायती थे स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म जिस समय में हुआ था वह भारत में अज्ञान का नहीं, तो संभवतः जनचेतना का सुषुप्त काल था। लोग पारंपरिक रूढ़ियों में बँधे थे और समुदायों के आवरण से बाहर आकर समग्र हिन्दू राष्ट्र के रूप में संगठित नहीं थे। शेष विश्व में भारत की छवि एकीकृत राजनैतिक इकाई के रूप में तो छोड़ दीजिए एक भौगोलिक-सांस्कृतिक इकाई के रूप में भी नहीं देखी जाती थी। ऐसे समय में विवेकानंद ने ‘उठो जागो…’ का नारा दिया था और विश्व धर्म संसद में सनातन की अलख जगाई थी।

‘उठो-जागो…’ का नारा वास्तव में कठोपनिषद से आया है। कठोपनिषद के प्रथम अध्याय तीसरी वल्ली का 14वाँ मंत्र है: “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥” श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी इस मंत्र का अर्थ इस प्रकार बताते हैं- “उठो जागो और श्रेष्ठ ज्ञानियों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो। ज्ञान के बिना इस जगत में कुछ भी उन्नति साध्य नहीं हो सकती। यह आत्मज्ञान और आत्मोन्नति का मार्ग अत्यंत कठिन है वैसे ही जैसे तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना। इस पथ पर संभलकर चलना चाहिए, पथ से थोड़ा भी डिगे तो पतन हो जाएगा। सब ज्ञानी इस मार्ग का ऐसा ही वर्णन करते आए हैं। सदा सावधान रहना चाहिए। उठो जागो, यहाँ सोने से काम नहीं चलेगा।”

सातवलेकर जी की इस व्याख्या में निहित अर्थ बड़े गहरे हैं। कठोपनिषद का यह मंत्र कहता है कि ज्ञान प्राप्त करने और उसे साधने का मार्ग अस्त्रों को साधने जितना ही कठिन है। यहाँ ज्ञान को अस्त्र के समान बताया गया है अर्थात ज्ञान मारक और प्रतिरक्षा दोनों स्थितियों में कारगर हथियार है। ज्ञान के प्रयोग की विधा भी सबको सुलभ नहीं होती। विषय में पारंगत व्यक्ति ही ज्ञान का प्रतिपादन करने में सक्षम है। इसीलिए कहा गया कि श्रेष्ठ ज्ञानियों के पास जाकर ही ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

कठोपनिषद का दूसरा नाम नचिकेतोपाख्यान है क्योंकि इसमें नचिकेता की कहानी है जो आत्मज्ञान की खोज करता है। स्वामी विवेकानंद ने भी नचिकेता की भाँति ज्ञान की खोज करने के पश्चात् ‘उठो, जागो…’ का उद्घोष कर भारत के सुषुप्त जनमानस को जगाया था। जब विवेकानंद 1893 में शिकागो के ‘पार्लियामेंट ऑफ़ रिलीजंस‘ में बोल रहे थे तब वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के ‘सॉफ़्ट पॉवर’ को विश्व के सामने प्रोजेक्ट किया था। उस समय वे भारत को एकीकृत सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं राजनैतिक इकाई के रूप में विश्व के सामने रख रहे थे।

जब हम किसी देश को एक सांस्कृतिक, भौगोलिक और राजनैतिक इकाई के रूप में प्रदर्शित करते हैं तब हम सीमाओं से घिरे उस क्षेत्र को राष्ट्र-राज्य के रूप में देख रहे होते हैं। तब हमें यह समझ में आता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है और इसमें ज्ञान का कितना महत्व है। यह समझना थोड़ा कठिन है किंतु यदि अमेरिका के संस्थानों पर विचार किया जाए तो हम पाएँगे कि उन्होंने सदैव ही ज्ञान को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया है।

प्राचीनकाल के युद्धों का अध्ययन करें तो हम पाएँगे कि पहले वे समूह शक्तिशाली होते थे जिनके कबीले बड़े होते थे, फिर उनका प्रभुत्व रहा जो सैन्य बल के द्वारा अधिकाधिक भूमि पर कब्ज़ा कर सकते थे। उसके बाद ब्रिटेन का प्रभाव रहा जिसकी नौसेना अत्यधिक शक्तिशाली थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका पूरी तरह से सूचना आधारित युद्ध के बल पर विश्व शक्ति बना हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका ने ज्ञान को अपना हथियार बनाया है जिसके बल पर वह प्रोपेगंडा फ़ैलाते हुए अपना दबदबा बनाए रखता है। रणनीतिक शब्दावली में इसे ‘propaganda warfare’ या ‘information warfare’ कहा जाता है।

अमेरिका ने ज्ञान को अस्त्र के रूप में प्रयोग करने के लिए बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों, वैज्ञानिकों, फिल्मकारों और कला जगत की हस्तियों की फ़ौज तैयार कर रखी है जो पूरे विश्व में जाकर अमेरिका के नाम का ढिंढोरा पीटते हैं। इनके पीछे होते हैं ढेर सारे थिंक टैंक जहाँ बुद्धिजीवी बैठकर पचास वर्ष आगे की रणनीति बनाते हैं। इसमें केवल मिलिट्री स्ट्रेटेजी चिंतक ही नहीं होते बल्कि शिक्षा, अर्थशास्त्र, विज्ञान एवं तकनीक आदि विषयों के विशेषज्ञ होते हैं जिनका काम होता है पब्लिक पॉलिसी के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना और उसपर सरकार को अपने मत से अवगत कराना।

नस्सिम निकोलस तालेब भले ही यह कहते हों कि पब्लिक पॉलिसी के चिंतकों की देश दुनिया को चलाने में कोई प्रत्यक्ष भूमिका (skin in the game) नहीं होती परंतु वास्तविकता यह है कि अमेरिका में RAND कॉर्पोरेशन जैसे थिंक टैंक में बैठे चिंतक दिन रात यही रणनीति बनाते हैं कि दक्षिण एशिया में अमेरिका किस प्रकार विप्लव की स्थिति बनाए रखे अथवा मध्यपूर्व में किस प्रकार अपने हितों की रक्षा की जाये।

यह बड़ी विडंबना है कि भारत ने उपनिषदों तथा स्वामी विवेकानंद के उद्घोष से वह नहीं सीखा जो सीखना चाहिए था। हम information warfare में इतना पीछे हैं कि अपने एक राज्य जम्मू कश्मीर के बारे में भी सही सूचना देश को नहीं दे पाते। उदाहरण के लिए लेफ्टिनेंट जनरल सय्यद अता हसनैन (सेवानिवृत्त) ने अपने एक लेख में लिखा है कि हमें जम्मू कश्मीर राज्य में 5,000 ‘information warrior’ तैनात करने चाहिए जो सही सूचना दे सकें और गलत सूचनाओं से लड़ सकें।

स्वामी विवेकानंद ने ‘उठो जागो’ का उद्घोष इसीलिए किया था क्योंकि वे देश में कभी न सोने वाले ज्ञानी योद्धाओं को देखना चाहते थे। ऐसे योद्धा जिनके पास ज्ञानरूपी अस्त्र हों और जो कभी बरगलाए न जा सकें। आज का युवा वर्ग जब किसी के द्वारा बरगला दिए जाने पर ऊँचे सपने देखना बंद कर देता है तब उसकी इच्छाशक्ति मर जाती है। एक ऐसा देश जिसका 60% मानव संसाधन युवा हो यदि वह गलत सूचनाओं और प्रोपगंडा के जंजाल में फंसकर अपनी इच्छाशक्ति खो देगा तो युद्ध में आधी पराजय तो वैसे ही हो जाएगी।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोभाल अपने एक व्याख्यान में इसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर संकट बताते हैं। वे कहते हैं कि युद्ध किसी को मारने के उद्देश्य से नहीं लड़े जाते बल्कि शत्रु देश की इच्छाशक्ति को मारने के लिए लड़े जाते हैं ताकि वह हमारी शर्तों पर शांति समझौता करने को बाध्य हो जाए। स्वामी विवेकानंद ने भी संभवतः अपने समय से सौ वर्ष बाद का भारत देख लिया होगा इसीलिए उन्होंने कहा था: “उठो जागो और तब तक मत रुकना जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

‘देशहित’ में मायावती भूलीं ‘गेस्टहाउस काण्ड’; त्रिवेदी ने कहा सपा-बसपा बचा रही है ज़मीन

2019 लोकसभा चुनावों को अब ज्यादा समय नहीं बचा है। हर पार्टी सत्ता में आने के लिए साम-दाम दंड-भेद के तरीके को अपनाने के लिए तैयार है। सपा-बसपा का गठबंधन इस बात का सबसे प्रासंगिक उदहारण है।

इस गठबंधन पर बीजेपी के नेता और प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी का बड़ा बयान सामने आया है। सुधांशु ने आत्मविश्वास के साथ सपा-बसपा के गठबंधन को जवाब देते हुए कहा है, “ये दोनों ही पार्टियाँ इस समय बस अपनी राजनैतिक धरातल को बचाए रखने के लिए साथ में आई हैं। एक समय था जब ये दोनों एक दूसरे पर हत्या का आरोप मढ़ती नज़र आती थी।” सुधांशु ने इस फैसले को उनकी मर्जी बताते हुए कहा कि उनकी पार्टी को पूरा विश्वास है कि चाहे सारी पार्टियाँ भी साथ में आ जाएँ, बीजेपी फिर भी जीतेगी।

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी ने और बहुजन समाज पार्टी ने भाजपा को हराने के लिए 23 सालों से चली आ रही दुश्मनी को खत्म कर दिया है। बहुजन समाज पार्टी की मुखि़या मायावती ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बँटवारे की घोषणा की। इस गठबंधन को पवित्र कहते हुए मायावती ने इस बात की जानकारी दी कि इस लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा 38-38 सीटों पर चुनावों को लड़ेगी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने संबोधन की शुरूआत नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए की। मायावती का मानना है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नींदे उड़ जाएँगी। मायावती ने इस गठबंधन पर बात करते हुए कहा कि वो देशहित में लखनऊ गेस्टहाऊस कांड को भुलाकर सपा के साथ एक बार फिर से रिश्ता जोड़ने जा रही हैं।

दुबई में ‘असहिष्णुता’ पर बोल रहे हैं राहुल, कोलकता में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता फ़िल्म रिलीज़ पर कर रहे तोड़फोड़

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का विवादों से गहरा नाता है। अपने विवादित बयानों के ज़रिए वो आए दिन सुर्ख़ियों में छाए रहते हैं। हाल ही में उन्होंने एक ऐसा बयान दिया जिसमें वो एक बार फिर अपनी धुर-विरोधी पार्टी को बदनाम करने की साज़िश रचते दिखे।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने दुबई में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चैंपियन के रूप में ख़ुद को दिखाने की कोशिश की। संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गए कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दुबई में एक रैली को संबोधित किया जहाँ उन्होंने देश के प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए दावा किया कि भारत ‘असहिष्णुता’ को साढ़े चार साल से देख रहा है। मोदी सरकार को घेरते हुए राहुल ने आरोप लगाया कि आज भारत असहिष्णुता और बँटवारे की स्थिति का सामना कर रहा है, उससे भारत कभी सफल नहीं हो सकता।

दिलचस्प बात यह है कि राहुल गाँधी पिछले साढ़े चार वर्षों में असहिष्णु होने का आरोप लगाकर देश को बदनाम कर रहे थे, जबकि उनकी अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता उन सिनेमाघरों को तबाह करने पर तुले हुए थे, जो ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ नामक फ़िल्म की स्क्रीनिंग कर रहे थे। गुंडागर्दी के बेहद निंदनीय प्रदर्शन में, कोलकाता के युवा कॉन्ग्रेस नेताओं ने सेंट्रल कोलकाता में हिंद आईनॉक्स (Hind Inox) के बाहर न सिर्फ़ हंगामा किया बल्कि फ़िल्म की स्क्रीनिंग को रोकने के लिए दो जगहों पर स्क्रीन को फाड़ भी दिया।

एक अन्य घटना में, मध्य प्रदेश के इंदौर में, कॉन्ग्रेस और युवा कॉन्ग्रेस ने फ़िल्म की स्क्रीनिंग के विरोध की घोषणा की थी, जिसके कारण स्थानीय पुलिस ने क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ा दी। युवा कॉन्ग्रेस नेताओं की महाराष्ट्र इकाई ने फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के निर्माताओं को एक पत्र भेजा था, जिसमें फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले उनके द्वारा एक विशेष स्क्रीनिंग की माँग की गई थी, ताकि वे इसे सेंसर कर सकें।

इस तरह के हिंसात्मक विरोध और तमाम व्यवधान के अलावा, कॉन्ग्रेस के पारिस्थितिकी तंत्र ने अदालत में कई याचिकाएँ दायर करके फ़िल्म को रिलीज़ होने से रोकने की कोशिश की गई। पंजाब के एक कान्ग्रेसी नेता ने फ़िल्म की रिलीज़ को रोकने के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख़ किया। जनवरी 3, 2019 को, सुधीर कुमार ओझा नाम के एक वकील ने फ़िल्म के अभिनेताओं के ख़िलाफ़ कुछ बड़े लोगों की छवि को नुक़सान पहुँचाने संबंधी मामला दर्ज़ किया। एक ऐसी ही दलील दिल्ली हाई कोर्ट में एक फ़ैशन डिज़ाइनर पूजा महाजन ने अपने वकील अरुण मंत्री के ज़रिये भी दायर की।

देश के बँटे होने का दावा करने वाले राहुल गाँधी उस समय कहाँ थे, जब उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी को मुस्लिमों की पार्टी होने जैसा विवादित बयान दिया था। राहुल कब से इतने परिपक्व हो गए कि वो देश को असहिष्णु और बँटा हुआ करार दे सकें।

बेरोज़गारी जैसा मुद्दा उठाकर क्या वे ख़ुद इस बात का प्रमाण देने में सक्षम हैं, कि कॉन्ग्रेस शासन में रोज़गार मुहैया कराने जैसी कितनी योजनाएँ वास्तविक स्तर पर फलीभूत हुईं। वहीं, बात करें मोदी सरकार की तो अनेकों ऐसी योजनाएँ फलीभूत हुईं हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार को युवाओं की चिंता ही नहीं बल्कि उनके लिए स्किल इंडिया, मेक-इन-इंडिया जैसी तमाम योजनाओं को साकार रूप भी दिया है, जो कॉन्ग्रेस की सोच से भी परे थीं।

इन परिस्थितियों में, राहुल गाँधी के बयान किसी बचकानी हरक़त से कम नहीं, जो यह प्रमाणित करते हैं कि राजनीतिक परिवेश में पलना-बढ़ना ही काफ़ी नहीं होता बल्कि जनता के समक्ष परिपक्वताभरा व्यवहार भी करना होता है, बजाए जनता को भ्रमित करने के उन्हें सही तथ्यों और आँकड़ो से भी अवगत कराना चाहिए।

सपा-बसपा सीटों के बंटवारे के बाद, मीडिया की बेचैनी को महसूस कर पा रहे होंगे जयंत चौधरी!

लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए बुआ और भतीजे की राजनीतिक जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया है। 12 जनवरी 2019 को अपने प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान अखिलेश यादव व मायावती ने 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही। इस तरह यदि दोनों ही राजनीतिक पार्टियाँ 38 सीटों पर चुनाव लड़ती हैं, तो महज 2 सीट ही गठबंधन के दलों के लिए बच जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मायावती ने अमेठी और रायबरेली की संसदीय सीट को कॉन्ग्रेस के लिए छोड़ने का ऐलान किया है।

राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने उत्तर प्रदेश के 5 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा पेश किया था। अब गठबंधन में अखिलेश व मायावती के इस फ़ैसले के बाद अजित सिंह की पार्टी रालोद का गठबंधन में शामिल होने की गुंजाइश लगभग खत्म हो चुकी है या उन्हें कम सीटों पर संतुष्ट करना होगा। कुछ दिनों पहले मीडिया द्वारा सीटों के बंटवारे पर पूछे गए सवाल को टालते हुए जयंत चौधरी ने कहा, “सीटों के बंटवारे की बेचैनी मीडिया को है। सारी बातें साफ़ होंगी, सस्पेंस बनाए रखें।”  

इस बयान से भले ही जयंत ने सवाल को टाल दिया हो, लेकिन इस सवाल के मायने और मीडिया की बेचैनी को जयंत सपा-बसपा द्वारा सीटों के बँटवारे की घोषणा के बाद अच्छी तरह से समझ रहे होंगे।

रालोद ने पाँच सीटों पर दावा पेश किया था

अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल ने उत्तर प्रदेश के पाँच लोकसभा सीटों पर दावा पेश किया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन पाँच लोकसभा सीट में बागपत, अमरोहा, हाथरस, मुजफ्फरनगर और मथुरा है। मायावती पहले भी रालोद को दो से ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं थी। लेकिन अब जब सपा-बसपा ने सीटों के बंटवारा कर लिया है, तो शायद रालोद को इस गठबंधन का हिस्सा बनना मंजूर न हो।

उत्तर प्रदेश में गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों ही दलों (सपा-बसपा) में दूरी पैदा हो गई थी। 25 साल बाद एक बार फ़िर से यूपी में सपा-बसपा ने गठबंधन किया है।

कॉन्ग्रेस-रालोद का साथ पुराना है

कॉन्ग्रेस-रालोद उत्तर प्रदेश में पहले भी गठबंधन करके चुनाव लड़ चुके हैं। वर्तमान समय में राजस्थान की कांग्रेस सरकार का रालोद हिस्सा है। ऐसे में इन दोनों दलो को साथ आने में कोई समस्या नहीं होगी। पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद खाता तक नहीं खोल पाई थी। हालाँकि, बाद में कैराना में हुए उपचुनाव में सपा और बसपा के समर्थन से आरएलडी उम्मीदवार की जीत हुई।

10% कोटा बिल को अदालत में चुनौती देने वाली NGO का यू-टर्न

सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने सबंधी विधेयक को गुरुवार (जनवरी 10, 2019) को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने वाली NGO ने यू-टर्न लेते हुए अब इस विधेयक का स्वागत किया है। बता दें कि इस बिल को संसद में पास हुए अभी 24 घंटे भी नही हुए थे तभी ‘यूथ फॉर इक्वलिटी (YFE)’ नामक NGO ने इसके ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी थी। अपनी याचिका में इस क़ानून को रद्द करने की मांग करते हुए संस्था ने कहा था कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है और आरक्षण के लिए बनाए गए 50 प्रतिशत के दायरे को पार करता है।

अब यू-टर्न लेते हुए इस NGO के प्रेसिडेंट डॉक्टर कौशल कान्त मिश्रा ने इस विधेयक का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मूल रूप से ये विधेयक एक स्वागत-योग्य कदम है। उनके इस बयान से छह घंटे पहले ही संस्था के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा था कि उन्होंने इस विधेयक को अदालत में चुनौती दी है।

संस्था के दोहरे रवैये से लोगों को पता नहीं चल पा रहा है कि आख़िर YFE इस विधेयक के समर्थन में है या फिर ख़िलाफ़ है। एक तरफ़ इसके अध्यक्ष इस विधेयक का स्वागत कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वो इसके खिलाफ याचिकाकर्ता भी हैं। एक तरफ वो इसे गरीबों के हित में बता रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अदालत में इसे संविधान के ख़िलाफ़ बताया है।

YFE ने गुरूवार को देश की शीर्षतम अदालत में दायर की गई याचिका में कहा था:

“यह संशोधन पूरी तरह से संवैधानिक मानदंड का उल्लंघन करता है क्योंकि संविधान में कहा गया है कि सिर्फ़ आर्थिक स्थिति ही आरक्षण पाने का आधार नहीं हो सकती। इंद्रा साहनी केस में 9 सदस्यों वाली पीठ ने ये निर्णय दिया था। ये संशोधन उच्चतम न्यायलय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है, इसीलिए इसे रद्द कर देना चाहिए।”

वहीं यू-टर्न लेते हुए उन्होंने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा:

“ये विधेयक स्वागत योग्य है क्योंकि इसमें जाति नहीं, गरीबी को आधार बनाया गया है।”