ऐसे ही लोग पत्थरबाजों के समर्थन में खोज-खोज कर आर्टिकल लिखने को तैयार रहते हैं लेकिन जैसे ही भारतीय सेना इनके ख़िलाफ़ कदम उठाती हैं तो इन्हें उससे गुरेज़ होता है।
प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी जीत में सहायता के लिए यह अकादमिक समूह विभिन्न विषयों पर चर्चाओं और राजनीतिक बहसों का आयोजन करने के अलावा इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न ऑनलाइन मंचों पर अपनी बात लेखों के द्वारा रखेगा।
इस बार भी पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लिअर कमांड अथॉरिटी की मीटिंग बुलाकर ब्लफ खेलने की कोशिश की थी, लेकिन परिणाम में उसे भारत की चुप्पी की जगह, उसके अत्याधुनिक F16 को भारतीय मिग का शिकार होना पड़ा।
पहले तो ऐसे मसलों पर बात ही नहीं होनी चाहिए, और अगर हो भी रही है तो खुदाई में निकले मंदिर और बक्सों में बंद सबूतों को बाहर लाकर, उस पर निर्णय हो, न कि दलाली से, जिसके लिए आपने मीडिएशन और मध्यस्थता जैसे सुनने में अच्छे लगने वाले शब्द बना दिए हैं।
आज हम गाज़ी फ़क़ीर की बात इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि इससे जुड़ी एक बड़ी ख़बर आई है। उसके इतिहास और भूगोल को समझने से पहले हमें आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी के केस को समझना पड़ेगा, जिन्हें आज बर्ख़ास्त कर दिया गया।
मीडिया गिरोह और देश के आदर्श लिबरल समूह की बौखलाहट साफ़ है। इसे पिछले 4 सालों में हर दूसरे दिन ये कहते हुए सुना गया है कि देश का मतलब नरेंद्र मोदी नहीं है।
सन 1989-90 के दौरान कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करने पर मजबूर करने के लिए की गयी यह पहली हत्या थी। पंडितों के सर्वमान्य नेता पं० टपलू को मार कर अलगाववादियों ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अब कश्मीर घाटी में ‘निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा’ ही चलेगा।
पाकिस्तान के घर में घूसने की 'हिम्मत' कर दी प्रधानमंत्री ने! ऐसे में पाक-प्रेमी भला कैसे शांत बैठते! तय रणनीति के तहत वामपंथी पत्रकारों और विरोधियों ने एयर स्ट्राइक के बाद मोदी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। और...