Thursday, September 19, 2024

राजनैतिक मुद्दे

वेतन मौलवियों को और PM ‘किसी’ को… हद कर दी ‘सड़’ने!

"मोदी-शाह को रोकने के लिए मैं किसी भी हद तक जाने को तैयार हूँ। इसके अलावा, जो भी बन रहा होगा उसको समर्थन दे देंगे। कांग्रेस अगर जीतती है तो उसको भी समर्थन देने को तैयार हैं।"

जब सूट-बूट वाली सरकार ने आम आदमी को वो दिया जो उन्हें 50 साल पहले मिलना था

लड़कियाँ स्कूल सिर्फ इस कारण नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि वहाँ उनके पास शौचालय जाने जैसे सुविधाएँ ही नहीं मिल पाती हैं। उन्हें उन तमाम मनोवैज्ञानिक असुविधाओं से गुजरना होता है, जिनके बारे में हम कल्पना तक नहीं कर सकते हैं।

येचुरी का लेनिन प्रेम: माओवंशियों पर तर्क़ के हमले होते हैं तो वो ‘महान विचारों’ की पनाह लेता है

आपकी बेटी नक्सलियों के साथ जंगलों में एरिया कमांडर के सेक्स की भूख नहीं मिटा रही। आपका बेटा सीआरपीएफ़ के लिए माइन्स नहीं बिछा रहा। आप बुद्धिजीवी बनते हैं और मौन वैचारिक सहमति देते हैं क्योंकि प्यादों की लाइन ही राजा को बचाने के लिए पंक्तिबद्ध होती है।

1993 के घूस काण्ड की पार्टियाँ झारखंड में BJP के ख़िलाफ़ एकजुट

झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं। राज्य में आदिवासियों की संख्या अच्छी तादाद में है। आदिवासियों के वोट बैंक पर झामुमो की पकड़ मजबूत है।

मैं तो बस एक झूठ लेकर चला था, ‘वायर’ जुड़ते गए, और ‘कारवाँ’ बनता गया…

कारवाँ एक ऐसा मैगजीन है जिसके बारे में आप तभी सुनते हैं जब रवीश कुमार फ़ेसबुक पर लेख लिखकर जताते हैं कि उस शाम के प्राइम टाइम में क्या कवर किया जाएगा।

नक़ाबपोश एक्सपर्ट के समर्थकों, तुम्हारे कपड़ों का ही नक़ाब उसने पहना है!

आख़िर सवाल यह है कि क्यों करा ली जाए जाँच? क्या लगातार हो रहे चुनावों में अलग-अलग पार्टियों की जीत इस सवाल का स्वतः जवाब नहीं दे देती?

वेरी शौरी साहब! आपको दलदल से कोई और नहीं, सिर्फ ‘शौरी’ ही निकाल सकते हैं

कल उन्हें 'तानाशाह' पसंद था, अब विकेन्द्रीकरण का बहाना मारते हैं। कल एक आँख के बदले दो आँख की बात करते थे, अब सेना के शौर्य को 'फ़र्ज़ीकल' स्ट्राइक बताते हैं

आख़िर क्या कारण है कि ‘लेफ़्ट’ इतना बलवान और ‘राइट’ इतना कमज़ोर?

लेफ़्ट इसलिए बलवान नहीं है कि उसके पास पैसा है। लेफ़्ट इसलिए भी बलवान नहीं है कि उसके पीछे विदेशी ताकते हैं। बल्कि लेफ़्ट इसलिए बलवान है क्योंकि उनमें एकता है

बिहार में कॉन्ग्रेस का हाथ थाम राजनीति करने वाली मीसा रामकृपाल का हाथ क्यों काटना चाहती हैं?

मीसा को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, दरअसल वो लालू यादव की ही देन है। एक कहावत 'बापे पूत परापत घोड़ा, नै कुछ तो थोड़म थोड़ा' लालू जी के प्रदेश में खूब बोला जाता है। मतलब बच्चों पर कुछ न कुछ असर तो अपने पिता का पड़ता ही है

परमादरणीय रवीश कुमार! अपना ‘कारवाँ’ रोक दीजिए, आपको हिंदी पत्रकारिता का वास्ता

अपने पिछले तमाम एजेंडों में मोदी सरकार और उससे सम्बंधित पदाधिकारियों को नीचा दिखाने और अपमानित करने के तमाम नाकाम प्रयासों के बाद रवीश कुमार एक बार फिर से एक काल्पनिक वाकया लेकर जनता के सामने आए हैं।

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