Tuesday, April 22, 2025
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प्रयागराज के थानों में ‘PDA’ सिर्फ 25% नहीं, अखिलेश यादव ने साफ झूठ बोला: UP पुलिस ने किया फैक्ट चेक, DGP बोले- यहाँ पोस्टिंग जाति देखकर नहीं होती

उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी प्रशांत कुमार ने कहा कि थानेदारों की तैनाती जाति देखकर नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को नियुक्तियों के विषय में ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इन बातों को 'भ्रामक' और 'अफवाह' बताया।

समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव के एक दावे की हवा उत्तर प्रदेश पुलिस ने निकाल दी है। अखिलेश यादव ने थानेदारों की तैनाती में प्रयागराज जिले में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज (PDA) को सही प्रतिनिधित्व ना दिए जाने की बात कही थी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसका आँकड़ों के साथ जवाब दिया।

यह पूरा मामला पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट के बाद चालू हुआ। अखिलेश यादव ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, “90% PDA को प्रयागराज पुलिस में केवल 25% प्रतिनिधित्व। ये है पीडीए के साथ किया जा रहा ‘आनुपातिक अन्याय’ है।”

इसी के साथ उन्होंने एक ग्राफ भी पोस्ट किया। इसमें प्रयागराज जिले के पुलिस थानों में तैनात थाना प्रभारी (SHO/SO) के विषय में दावे किए गए थे। इस ग्राफ के अनुसार, प्रयागराज जिले के 44 थानों में 19 में सामान्य वर्ग (गैर सिंह उपनाम वाले) और 14 ‘सिंह’ उपनाम वाले थाना प्रभारी तैनात हैं।

अखिलेश यादव ने दावा किया कि प्रयागराज में मात्र 11 थानों में ही PDA समाज के थाना प्रभारी हैं जो कि उनकी आबादी के हिसाब से कम है। इस पोस्ट के माध्यम से अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस की तैनातियों में सरकार ‘सिंह’ उपनाम वाले लोगों को वरीयता दे रही है। यह अखिलेश यादव का योगी सरकार पर ‘ठाकुरवाद’ का आरोप था।

अखिलेश यादव की पोस्ट के बाद उत्तर प्रदेश ने इसका फैक्ट चेक कर दिया और सही स्थिति बयान कर दी। प्रयागराज पुलिस कमिश्नरेट ने इस मामले में अखिलेश यादव को जवाब दिया और बताया कि थाना प्रभारियों की नियुक्तियाँ कैसे होती हैं।

प्रयागराज पुलिस कमिश्नरेट ने बताया, “उक्त पोस्ट में दी गई सूचना सही नहीं है। जनपद प्रयागराज में थाना प्रभारी की नियुक्ति हेतु कर्तव्यनिष्ठा, सत्य निष्ठा, सामाजिक सद्भाव व जन शिकायतों के प्रति संवेदनशीलता के आधार पर योग्य कर्मचारियों का चयन किया जाता है।

कमिश्नरेट ने आगे संख्या सम्बन्धी दावों पर कहा, “जनपद में तैनात लगभग 40 प्रतिशत थाना प्रभारी OBC और SC/ ST वर्ग से हैं। थाना प्रभारी की नियुक्ति एक निष्पक्ष प्रक्रिया के द्वारा की जाती है।” इसी के साथ पुलिस ने साफ़ किया कि थाना प्रभारियों की नियुक्ति में योग्यता आधार बनाई जाती है।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब समाजवादी पार्टी और उसके समर्थकों द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस में तैनातियों में राजपूतों को वरीयता देने के आरोप योगी सरकार पर लगाए गए हों। इससे पहले आगरा पुलिस ने भी ऐसी खबरों पर एक स्पष्टीकरण जारी किया।

आगरा पुलिस ने बताया था, “आगरा जनपद में कतिपय सोशल मीडिया साइट्स/हैण्डलर्स/माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स के द्वारा एसएचओ की नियुक्ति के बारे में भ्रामक तथ्य प्रस्तुत किये जा रहे है। इसके सम्बन्ध में अवगत कराना है कि शासन के निर्देशो के अनुसार एसएचओ की नियुक्ति के नियमों का अक्षरशः पालन किया जा रहा है।”

पुलिस ने आगे बताया, “कमिश्नरेट आगरा में 39% ओबीसी संवर्ग, 19% एससी संवर्ग तथा सामान्य संवर्ग के 42% थाना प्रभारी नियुक्त है, जबकि शासनादेश के अनुसार ओबीसी संवर्ग के 27% नियुक्त होने चाहिए।” पुलिस ने भ्रामक सूचना ना फ़ैलाने और तथ्यों पर बात करने की अपील की थी।

उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी प्रशांत कुमार ने भी इस संबंध में बात की है। उन्होंने कहा कि थानों में जाति के आधार पर पोस्टिंग नहीं होती। मीडिया से उन्होंने कहा कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को नियुक्तियों के विषय में ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इन बातों को ‘भ्रामक’ और ‘अफवाह’ बताया। उन्होंने वर्तमान में प्रसारित हो रही जानकारी को गलत बताया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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